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Questions and Answers
राज्य के नीति ननदेशक ित्त्व (डीपीएसपी) का वर्णन किस अनुच्छेद में किया गया है?
राज्य के नीति ननदेशक ित्त्वों का तवचार किस संतवधान से लिया गया है?
राज्य के नीति ननदेशक ित्त्वों को कौन सी विशेषता प्रदान करता है?
राज्य के नीति ननदेशक ित्त्वों की प्रकृति कैसी होती है?
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राज्य के नीति ननदेशक ित्त्वों का क्या उद्देश्य है?
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राज्य के नीति ननदेशक ित्त्वों का वर्गीकरण कैसे किया जा सकता है?
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राज्य के नीति ननदेशक ित्त्वों का संबंध किस निर्धारित अर्थ से होता है?
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राज्य के नीति ननदेशक ित्त्वों में कौन सा तत्व शामिल नहीं होता?
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भारत के संविधान में मौलिक कर्तव्यों को कब जोड़ा गया?
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कौन सा देश दुनिया का एकमात्र देश है जिसमें नागरिकों के कर्तव्यों की सूची है?
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1976 में मौलिक कर्तव्यों के बारे में सिफारिश करने के लिए कौन सी समिति गठित की गई थी?
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संविधान में मौलिक कर्तव्यों का नया भाग किस अनुच्छेद में शामिल किया गया?
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भारतीय संविधान का कौन सा भाग मौलिक कर्तव्यों का विवरण प्रस्तुत करता है?
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नागरकों के मौलिक कर्तव्यों की पहली बार सूची संविधान में कब जोड़ी गई?
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मौलिक कर्तव्यों के संबंध में भारतीय संविधान का संशोधन किस government द्वारा गठित किया गया था?
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संविधान में मौलिक कर्तव्यों को जोड़ने वाली समिति का नाम क्या था?
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कौन सी मौलिक जिम्मेदारी का संविधान में उल्लेख नहीं है?
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संविधान में मौलिक कर्तव्यों की अंतर्गत कितने कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है?
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राज्य द्वारा किस नीति को लागू किया गया है?
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ग्राम पंचायतों के संगठन का क्या उद्देश्य है?
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श्रमिकों की भागीदारी का प्रावधान किसमें है?
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राज्य का कर्तव्य किस क्षेत्र में सुधार लाना है?
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किस आयु वर्ग के बच्चों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल का प्रावधान किया गया है?
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अनुसूचित जातियों और जनजातियों के अधिकारों की रक्षा के लिए राज्य का क्या कर्तव्य है?
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श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी की सुनिश्चितता किस नीति के तहत है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में क्या शामिल है?
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पोषण के स्तर को सुधारने के लिए राज्य का क्या कर्तव्य है?
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राज्य की सामाजिक व्यवस्था किसके संरक्षण के लिए कार्यरत है?
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किस संशोधन अधिनियम ने मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा?
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किस कानून ने राष्ट्र गौरव अपमान से संबंधित अपराधों को रोकने का प्रावधान किया है?
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मूल संरचना का सिद्धांत किस प्रकार की शक्तियों पर आधारित है?
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केशवानंद भारती मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने किस बात की पुष्टि की थी?
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भारीय राज्य व्यवस्था में मौलिक कर्तव्यों के अंतर्गत कौन सा कर्तव्य शामिल नहीं है?
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स्वतंत्रता की रक्षा के लिए राष्ट्रीय संघष्त को किस प्रकार प्रेरित किया जा सकता है?
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भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत को किस प्रकार महत्व दिया जा सकता है?
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देश की रक्षा करने का सही तरीका क्या है?
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पूर्ण समानता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने के लिए क्या करना चाहिए?
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वैज्ञानिक सोच और मानववाद को बढ़ावा देने का क्या अर्थ है?
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स्वतंत्रता की रक्षा में कौन सी गतिविधियाँ महत्वपूर्ण हैं?
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प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा के लिए क्या करना चाहिए?
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सामाजिक गतिवधियों में उत्कृष्टता की दिशा में क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
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सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देने का तरीका क्या है?
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राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करने का क्या महत्व है?
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संविधान में मौलिक अधिकारों और व्यक्तियों की स्वतंत्रता के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया गया है?
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किस अनुच्छेद के अंतर्गत उच्च न्यायालयों की शक्तियां दी गई हैं?
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भारतीय संविधान में राज्यों के नीति निर्देशक तत्वों का उद्देश्य क्या है?
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किस विशेषता को कल्याणकारी राज्य की पहचान के रूप में देखा जाता है?
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सर्वोच्च न्यायालय की अपील की शक्तियों में कौन सा अनुच्छेद शामिल है?
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समाजवादी तत्व में कौन से अनुच्छेद शामिल हैं?
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गांधीवादी तत्व का मुख्य उद्देश्य क्या है?
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उदारवादी-बौलिक तत्व के अंतर्गत कौन से अनुच्छेद आते हैं?
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1976 में संविधान में जोड़े गए नए निदेशक तत्व कौन से अनुच्छेद हैं?
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गैर-न्यायिक निदेशक तत्वों का क्या कारण है?
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गंभीर राजनीतिक जोखिमों के कारण नीतिगत तत्वों की आलोचना क्यों की गई?
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निदेशक तत्वों को कानूनी रूप से गैर-प्रविधनीय क्यों माना जाता है?
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किस संशोधन ने भारत के संविधान में सहकारी समितियों से संबंधित नया निदेशक तत्व जोड़ा?
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देश की स्वतंत्रता, एकता और अखंडता को बनाए रखने का क्या उद्देश्य है?
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राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करने का क्या महत्व है?
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महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करने का क्या उद्देश्य है?
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प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने का क्या उद्देश्य है?
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वैज्ञानिक सोच और मानववाद को बढ़ावा देने का क्या अर्थ है?
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सामाजिक गतिवधियों में उत्कृष्टता की दिशा में क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
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राष्ट्रीय सेवा प्रदान करने का क्या महत्व है?
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भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत को कैसे महत्व दिया जा सकता है?
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सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए?
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राज्य के नीति निदेशक तत्वों का मुख्य उद्देश्य क्या है?
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राज्य के नीति निदेशक तत्वों का कार्यान्वयन किन क्षेत्रों में होता है?
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किस वर्ष योजना आयोग की स्थापना की गई थी?
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किस कानून ने गरीबों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए नेटवर्क की स्थापना की?
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राज्य के नीति निदेशक तत्वों की सूची में कितने तत्व शामिल हैं?
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किस कानून के तहत न्यूनतम मजदूरी की सुनिश्चितता की जाती है?
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राज्य के नीति निदेशक तत्वों का कार्यान्वयन किन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया जाता है?
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किस अधिनियम ने वन्यजीवों और वनों की सुरक्षा के लिए प्रावधान किए हैं?
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किस नीति के तहत अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण प्रावधानित है?
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किस कानून ने समान पारिश्रमिक के लिए विशेष प्रावधान किए हैं?
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भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया था?
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भारतीय संविधान की 'मूल संरचना' के अंतर्गत निम्नलिखित में से कौन सा तत्व शामिल नहीं है?
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किस अधिनियम ने राष्ट्र गौरव अपमान से संबंधित अपराधों को रोकने के लिए कानूनी प्रावधान किए हैं?
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मूल संरचना के सिद्धांत के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने निम्नलिखित में से क्या कहा था?
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किस वर्ष में केशवानंद भारती मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने मूल संरचना का सिद्धांत स्थापित किया था?
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निम्नलिखित में से कौन सा अधिनियम वन्यजीवों के संरक्षण से संबंधित है?
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कौन सा अधिनियम गैर-कानूनी संगठनों को गैरकानूनी संघ के रूप में घोषित करता है?
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भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों को मानने वाले नागरिकों के लिए सबसे प्रमुख कर्तव्य कौन सा है?
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किस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने मूल संरचना की अधिकारिता को कम करने के प्रयास को अमान्य कर दिया?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का उद्देश्य किस प्रकार का होना चाहिए?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की प्रकृति किस प्रकार की होती है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को किस आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है?
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राज्य की नीति किस तरह की योजना के निर्माण में सहायक होती है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को किससे लिया गया है?
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गैर-न्यायिक नीति निर्देशक तत्वों का क्या कार्य है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की विशेषताएं क्या होती हैं?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का क्या महत्व है?
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कल्याणकारी राज्य का मुख्य उद्देश्य क्या है?
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संसदीय प्रणाली की मुख्य विशेषता क्या है?
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न्यायिक समीक्षा का क्या अर्थ है?
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मौलिक अधिकारों और जिम्मेदारियों के बीच संतुलन किस प्रकार स्थापित किया गया है?
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न्यायपालिका की स्वायत्यता का क्या महत्व है?
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राज्य का मुख्य कर्तव्य क्या है?
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ग्राम पंचायतों का संगठन किस उद्देश्य से किया जाता है?
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अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए राज्य का क्या कर्तव्य है?
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राज्य द्वारा बच्चों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल का प्रावधान किस आयु वर्ग के लिए है?
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राज्य का कर्तव्य पोषण स्तर को ऊपर उठाना है। यह निम्न में से किसके अंतर्गत आता है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में समान न्याय का क्या महत्व है?
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कैसे श्रमिकों का समावेश उद्योगों के प्रबंधन में सुनिश्चित किया जाता है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में से कौन सा स्वास्थ्य सेवाओं का प्रावधान करता है?
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राज्य द्वारा की जाने वाली नीतियों का मुख्य उद्देश्य क्या है?
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राज्य की सामाजिक व्यवस्था किनके कल्याण के लिए कार्यरत है?
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समाजवादी तत्व में कौन से अनुच्छेद शामिल हैं?
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गांधीवादी तत्व का प्रमुख अनुच्छेद कौन सा है?
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उदारवादी-बौलिक तत्व में कौन से अनुच्छेद शामिल नहीं है?
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नए निदेशक तत्व कौन से संशोधन द्वारा जोड़े गए थे?
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गैर-न्यायिक तत्वों की मुख्य वजह क्या है?
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किस अनुच्छेद में राज्य का कर्तव्य स्पष्ट किया गया है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को कानूनी रूप से प्रवितीय क्यों नहीं बनाया गया?
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निदेशकों की आलोचना का मुख्य कारण क्या है?
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सामाजिक व्यवस्था का प्रमुख उद्देश्य क्या है?
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श्रमिकों की भागीदारी का प्रावधान किस नीति में है?
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भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों को पहली बार किस वर्ष जोड़ा गया था?
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कौन सा कानून राष्ट्र गौरव अपमान को रोकने के लिए बनाया गया है?
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भारतीय संविधान की 'मूल संरचना' का उद्देश्य क्या है?
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कैसे का सुझाव दिया गया है कि संसद मौलिक अधिकारों को संशोधित कर सकती है?
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किस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने 'मूल संरचना' के सिद्धांत को पुष्टि की थी?
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भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों की सूची में कितने कर्तव्य शामिल हैं?
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कौन सा अधिनियम जाति और धर्म से संबंधित अपराधों के लिए दंड का प्रावधान करता है?
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संविधान की मूल संरचना में कौन सी विशेषता शामिल नहीं है?
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किस संशोधन अधिनियम के तहत संसद के लिए मौलिक अधिकारों में सीमा नहीं रखी जा सकती?
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भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों को लागू करने के लिए किस समिति का गठन किया गया था?
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कौन सा तत्व कल्याणकारी राज्य की पहचान में शामिल है?
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व्यक्तिगत स्व independencia का निहितार्थ क्या है?
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न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए कौन सा तत्व महत्वपूर्ण है?
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संविधान में संशोधन करने के लिए संसद को कौन सी शक्ति दी गई है?
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न्याय के प्रभावी पहुंच का तात्पर्य क्या है?
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राज्य के नीति ननदेशक तत्वों के द्वारा किस प्रकार की राज्य की अवधारणा को मूर्त रूप दिया जाता है?
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राज्य के नीति ननदेशक तत्वों का प्रमुख उद्देश्य क्या है?
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राज्य का मुख्य कार्य क्या है?
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राज्य के नीति ननदेशक तत्वों की प्रकृति कैसी होती है?
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किस धारा के अंतर्गत किसानों और पशुपालकों का संगठन किया गया है?
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1935 के भारतीय सरकार अधिनियम में राज्य के नीति ननदेशक तत्वों के लिए किस term का उल्लेख किया गया था?
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राज्य के नीति ननदेशक तत्वों को किस विशेषता से वर्णित किया जा सकता है?
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राज्य द्वारा बच्चों के लिए प्रारंभिक देखभाल एवं शिक्षा का प्रावधान किस आयु वर्ग के लिए है?
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श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करने का प्रावधान किस नीति का हिस्सा है?
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राज्य के नीति ननदेशक तत्वों का किस तरह का वर्गीकरण किया जा सकता है?
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अनुसूचित जातियों और जनजातियों के कल्याण को बढ़ावा देने का कर्तव्य किस धारा में निहित है?
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डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने राज्य के नीति ननदेशक तत्वों को किस रूप में वर्णित किया?
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राज्य के नीति ननदेशक तत्वों का संबंध किस प्रकार के कानूनों से होता है?
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राज्य का कार्य क्या है जो स्वास्थ्य और जीवन स्तर को ऊपर उठाने में मदद करता है?
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किस औपचारिकता के तहत सहकारी समितियों का संवर्धन किया जाता है?
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राज्य की पक्षपात रहित कानूनों की विशेषता क्या है?
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ग्राम पंचायतों के संगठन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
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भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों को कब जोड़ा गया?
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संविधान में नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों की पहली बार सूची कौन से अनुच्छेद में शामिल की गई है?
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सरदार स्वर्णत जसमंतीफल समिति का गठन किस उद्देश्य के लिए किया गया था?
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1980 के बाद भारत में मौलिक कर्तव्यों में दी गई सुविधाओं का संदर्भ किस संगठन से संबंधित है?
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भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों की प्रेरणा किस राष्ट्र के संविधान से ली गई है?
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भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों का नया भाग किस संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया?
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जापान का संविधान नागरिकों के कर्तव्यों की सूची के संदर्भ में किस प्रकार की विशेषता रखता है?
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1976 में मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ने के लिए कौन सी समिति का गठन किया गया था?
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भारत में मौलिक कर्तव्यों को बढ़ावा देने का मुख्य उद्देश्य क्या है?
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भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों का संबंध किस प्रकार की वैधानिकता से है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का क्या मुख्य उद्देश्य है?
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नीति निर्देशक तत्वों के कार्यान्वयन में किस विधेयक ने गरीबों को कानूनी सहायता प्रदान की है?
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कौन सा कानून वन और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है?
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श्रमिकों के न्यूनतम मजदूरी अधिनियम का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का कार्यान्वयन किस प्रकार के वातावरण को बनाना है?
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किस योजना के तहत भारत में योजनाबद्ध विकास की शुरुआत हुई थी?
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गांधी जी के सपने को साकार करने के लिए किस प्रणाली की संभावना प्रस्तावित की गई है?
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भारत की राष्ट्रीय नीति किसके ऊपर आधारित है?
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राज्य के नीति निर्देशकों में से कौन सा तत्व सामाजिक और आर्थिक नीतियों में स्थिरता और निरंतरता प्रदान करता है?
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किस अधिनियम ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए सेवाओं में आरक्षण को संभाला है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की मूल प्रकृति क्या है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का अनुसरण किस प्रकार के राज्य को प्रोत्साहित करता है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को किस सदंर्भ में कानून बनाने के समय ध्यान में रखा जाना चाहिए?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का नियम किसमे उल्लिखित है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का मुख्य उद्देश्य क्या है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का संबंध किस प्रकार की नीतियों से होता है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की विशेषताएँ कैसे व्यक्त की जा सकती हैं?
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संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को किस विशेष दृष्टिकोण से देखा जाता है?
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किस अनुच्छेद के अंतर्गत न्याय क्षेत्र की प्रभावी पहुंच सुनिश्चित की गई है?
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किस सिद्धांत के तहत मौलिक अधिकारों और निनिष्क लड़ित तत्वों के बीच संतुलन स्थापित किया गया है?
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किस अनुच्छेद के अंतर्गत सवोच्च न्यायालय की विशेष शक्तियाँ वर्णित हैं?
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भारत में किस तत्व को कल्याणकारी राज्य की विशेषता माना जाता है?
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किस अनुच्छेद के अंतर्गत उच्च न्यायालयों की शक्तियों का वर्णन किया गया है?
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भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों को किस वर्ष जोड़ा गया था?
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किस समिति ने मौलिक कर्तव्यों के बारे में सिफारिश की थी?
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भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों का नया भाग किस अनुच्छेद के तहत जोड़ा गया?
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राष्ट्र के प्रति अपेक्षित जिम्मेदारी में कौन सा तत्व शामिल नहीं है?
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भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों का अनुसरण किन देशों की प्रेरणा से किया गया है?
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किस देश का संविधान नागरिकों के कर्तव्यों की सूची प्रदान करता है?
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42वें संविधान संशोधन के तहत संविधान में क्या जोड़ा गया?
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स्वंतत्र जसिंह समिति के द्वारा सुझाए गए मौलिक कर्तव्यों का कितना हिस्सा कांग्रेस पार्टी ने स्वीकार किया था?
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मौलिक कर्तव्यों में दिए गए कर्तव्यों का कर्तव्य संविधान में किस प्रकार की संरचना पेश करता है?
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किस अनुच्छेद में मौलिक कर्तव्यों की पहली बार सूची दी गई है?
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राज्य का मुख्य उद्देश्य क्या है जिसमें सामाजिक व्यवस्था का संरक्षण शामिल है?
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ग्राम पंचायतों के संगठन का प्रमुख उद्देश्य क्या है?
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किस आयु वर्ग के बच्चों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल का प्रावधान किया गया है?
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अनुसूचित जातियों और जनजातियों के अधिकारों की रक्षा के लिए राज्य का क्या कर्तव्य है?
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राज्य की नीति में किस तत्व का सटीकता से उल्लिखित किया गया है?
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राज्य के द्वारा पोषण के स्तर और जीवन स्तर को सुधारने के लिए किननी नीतियों का पालन किया जाता है?
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किस धारणा का प्रावधान राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में नहीं है?
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राज्य के नीति निदेशक तत्वों का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य क्या है?
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राज्य द्वारा किस स्थिति में श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की जाती है?
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राज्य द्वारा जीवन स्तर में सुधार के लिए किस प्रकार की योजना तय की जाती है?
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किस कानून ने राष्ट्र गौरव अपमान से संबंधित अपराधों को रोकने का प्रावधान किया है?
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भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों का मौलिक संरचना से क्या संबंध है?
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निम्नलिखित में से कौन सा अनुच्छेद संसद की शक्तियों को संतवधान के मौलिक संरचना से सीमित करता है?
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यह कहां बताया गया है कि संसद अपने मौलिक कर्तव्यों को कम या खत्म नहीं कर सकती?
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किस समिति ने 1976 में मौलिक कर्तव्यों के संबंध में सिफारिश की थी?
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किस अधिनियम के तहत जाति और धर्म से संबंधित अपराधों के लिए दंड का प्रावधान किया गया है?
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मूल संरचना के सिद्धांत में निम्नलिखित कौन सा तत्व शामिल नहीं है?
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संसद ने 42वें संशोधन विधेयक के द्वारा किस पहलू पर प्रतिक्रिया व्यक्त की?
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भारत में मौलिक कर्तव्यों का प्रस्ताव करने वाली समिति का नाम क्या था?
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किस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने मौलिक संरचना के सिद्धांत को पहला विकल्प दिया था?
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न्यायपालिका की स्वतंत्रता का क्या महत्व है?
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कौन सा अनुच्छेद सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियों का उल्लेख करता है?
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कानून का शासन किस सिद्धांत पर आधारित है?
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स्वतंत्रता की रक्षा में न्यायिक समीक्षा की क्या भूमिका है?
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किस तत्व को कल्याणकारी राज्य की पहचान मानते हैं?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का संबंध निम्नलिखित में से किस से है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की प्रकृति क्या होती है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को बनाने का उद्देश्य किसका निर्माण करना है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के वर्गीकरण का आधार क्या है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्व किस प्रकार के राज्य की अवधारणा को समर्थन देते हैं?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख किस अनुच्छेद में किया गया है?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्व किस सोच को आगे बढ़ाते हैं?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की कौन सी विशेषता है?
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राज्य के मुख्य कर्तव्यों में से कौन सा कर्तव्य सामाजिक स्वास्थ्य में सुधार लाने से संबंधित है?
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राज्य के नीति निदेशक तत्वों का प्रमुख उद्देश्य क्या है?
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अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए राज्य का क्या विशेष कर्तव्य है?
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किस अधिनियम ने गरीबों को कानूनी सहायता प्रदान करने का प्रावधान किया है?
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ग्राम पंचायतों के संगठन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
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राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अंतर्गत किस प्रकार की योजनाओं का समावेश है?
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किस श्रैणी के बच्चों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल का प्रावधान है?
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राज्य द्वारा किन तत्वों का अनुप्रयोग किया जाता है?
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राज्य द्वारा किस प्रकार की नीति अपनाई जाती है ताकि समान न्याय को बढ़ावा मिल सके?
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न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करने के लिए कौन सा अधिनियम पारित किया गया था?
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राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में श्रमिकों की भागीदारी किस संदर्भ में है?
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ग्राम पंचायतों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य क्या है?
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किस नीति के तहत श्रायद्रिश्यों के प्रति न्यूनतम मजदूरी अस्थापित की जाती है?
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किस संदर्भ में राज्य का कर्तव्य समान नागरिक संहिता का प्रावधान करना है?
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राज्य नीति निदेशक तत्वों का कार्यान्वयन किस प्रकार नागरिकों के जीवन में सुधार लाने में मदद करता है?
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किस अधिनियम ने राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों की सुरक्षा के लिए प्रावधान किए हैं?
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राज्य द्वारा किस प्रकार के शैक्षिक सहायता का प्रावधान किया गया है?
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राज्य द्वारा स्थापित की गई योजना का प्रमुख लक्ष्य क्या है?
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राज्य का कर्तव्य किस उद्देश्य से पोषण के स्तर को सुधारने का है?
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किस नीति के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में कुर्टीर उद्योगों की स्थापना को बढ़ावा दिया जाता है?
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भारतीय नागरिकों के कर्तव्यों में से एक क्या है?
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भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत को संरक्षित करने का उद्देश्य क्या है?
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स्वतंत्रता की रक्षा के लिए लिया गया श्रेय का मुख्य उद्देश्य क्या है?
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भारत में भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
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सामाजिक गतिवधियों में उत्कृष्टता की दिशा में कौन सा प्रयास होना चाहिए?
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भारतीय स्वतंत्रता की प्राथमिकता में तात्कालिकता को किन साधनों से संदर्भित किया जाता है?
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राष्ट्रीय सेवा प्रदान करने का क्या मुख्य कारण है?
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सभी लोगों के बीच सद्भाव और समानता को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक कार्यों का क्या महत्व है?
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वैज्ञानिक सोच और मानववाद को बढ़ावा देने में क्या सबसे महत्वपूर्ण है?
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प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा के लिए कौन सी प्रथाएँ अपनाई जानी चाहिए?
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Study Notes
राज्य के नीति निदेशक तत्व
- राज्य के नीति निदेशक तत्व (डीपीएसपी) संविधान के भाग IV में अनुच्छेद 36 से 51 तक हैं।
- डीपीएसपी का विचार 1937 के आयरिश संविधान से लिया गया है, जिसने इसे स्पेनिश संविधान से लिया था।
- डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने इन तत्वों को भारतीय संविधान की नई विशेषताओं के रूप में वर्णित किया।
- मौलिक अधिकारों के साथ डीपीएसपी संविधान के मूल तत्व हैं और यह संविधान का आत्मा है।
डीपीएसपी की विशेषताएं
- राज्य को नीतियां बनाने और कानून बनाने के समय इन विचारों को ध्यान में रखना चाहिए।
- ये राज्य के लिए विधायी, कार्यकारी और प्रशासनिक मामलों में संवैधानिक निर्देश या सिफारिशें हैं।
- डीपीएसपी 1935 के भारत सरकार अधिनियम में उल्लिखित 'निर्देश के साधन' से निकटता से जुड़े हैं।
- डीपीएसपी एक आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य के लिए व्यापक आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक कार्यक्रम का गठन करते हैं।
- वे 'कल्याणकारी राज्य' की अवधारणा को मूर्त रूप देते हैं।
- वे देश में आर्थिक और सामाजिक न्याय स्थापित करना चाहते हैं।
- डीपीएसपी प्रकृति में गैर-न्यायिक हैं।
डीपीएसपी का वर्गीकरण
- संविधान में डीपीएसपी का कोई वर्गीकरण नहीं है।
- हालांकि, उनकी सामग्री और दिशा के आधार पर, उन्हें तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
राज्य की परिभाषा:
- अनुच्छेद 37: इस भाग में निहित तत्वों का अनुप्रयोग
- अनुच्छेद 38: लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए एक सामाजिक व्यवस्था को सुरक्षित करने के लिए राज्य
- अनुच्छेद 39: राज्य द्वारा पालन किए जाने वाले नीति के कुछ तत्व
- अनुच्छेद 39ए: समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता
- अनुच्छेद 40: ग्राम पंचायतों का संगठन
- अनुच्छेद 41: कुछ परिस्थितियों में कार्य, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता का अधिकार
- अनुच्छेद 42: कार्य की न्यायिक और मानवीय परिस्थितियों और मातृत्व राहत का प्रावधान
- अनुच्छेद 43: श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी आदि।
- अनुच्छेद 43ए: उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी
- अनुच्छेद 43बी: सहकारी समितियों का संगठन
- अनुच्छेद 44: नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता
- अनुच्छेद 45: छह वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा का प्रावधान
- अनुच्छेद 46: अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देना
- अनुच्छेद 47: पोषण के स्तर और जीवन स्तर को ऊपर उठाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए राज्य का कर्तव्य
- अनुच्छेद 48: कृषि और पशुपालन का संगठन
- अनुच्छेद 48ए: पर्यावरण का संरक्षण और सुधार और वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा
- अनुच्छेद 49: राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों और स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण
- अनुच्छेद 50: न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करना
- अनुच्छेद 51: अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना
मौलिक कर्तव्य
- मूल संविधान में केवल मौलिक अधिकार थे, मौलिक कर्तव्य नहीं।
- बाद में 1976 में नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा गया।
- 2002 में, एक और मौलिक कर्तव्य जोड़ा गया।
- भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्य तत्कालीन सोवियत संघ के संविधान से प्रेरित हैं।
- प्रमुख लोकतांत्रिक देशों के किसी भी संविधान में विशेष रूप से नागरिकों के कर्तव्यों की सूची नहीं है।
- जापानी संविधान, शायद, दुनिया का एकमात्र लोकतांत्रिक संविधान है जिसमें नागरिकों के कर्तव्यों की एक सूची है।
सर्वदल समिति की सिफारिशें
- 1976 में, कांग्रेस पार्टी ने मौलिक कर्तव्यों के बारे में सिफारिशें करने के लिए सरदार स्वर्ण सिंह समिति का गठन किया।
- समिति ने संविधान में मौलिक कर्तव्यों पर एक अलग अध्याय शामिल करने की सिफारिश की।
- केंद्र की कांग्रेस सरकार ने इन सिफारिशों को स्वीकार कर लिया और 1976 में 42वां संविधान संशोधन अधिनियम बनाया।
- इस संशोधन ने संविधान में एक नया भाग, अर्थात भाग IVA जोड़ा।
- इस नए भाग में केवल एक ही अनुच्छेद है, जो कि अनुच्छेद 51ए है, जिसमें पहली बार नागरिकों के दस मौलिक कर्तव्यों का एक सूची स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट किया गया है।
- समिति की कुछ सिफारिशों को कांग्रेस पार्टी द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था, जैसे सावध जमा के रूप में करों का भुगतान करने के लिए शुल्क को शामिल करना।
मौलिक कर्तव्यों की सूची
- संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों और संस्थानों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना।
- स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित करने वाले महान आदर्शों को संजोना और उनका पालन करना।
- भारत की स्वतंत्रता, एकता और अखंडता को बनाए रखने और उसकी रक्षा करने के लिए।
- देश की रक्षा करने के लिए और ऐसा करने के लिए बुलाए जाने पर राष्ट्रीय सेवा प्रदान करना।
- भारत के सभी लोगों के बीच धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय या अनुभागीय विविधताओं से परे सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना और महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करना।
- देश की समृद्ध संस्कृति की विरासत को महत्व देना और संरक्षित करना।
- वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना और जीवित प्राणियों के लिए सहानुभूति रखना।
- वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद और जांच और सुधार की भावना विकसित करना।
- सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा से दूर रहना।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की दिशा में प्रयास करना जिससे राष्ट्र निरंतर प्रयास और उपलब्धि के उच्च स्तर पर पहुंचे।
- छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच के अपने बच्चे या पाल्य को शिक्षा के अवसर प्रदान करना। यह कर्तव्य 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया था।
मौलिक कर्तव्यों की विशेषताएं
- कुछ मौलिक अधिकारों के विपरीत, जो सभी व्यक्तियों, चाहे नागरिक हों या विदेशी, के लिए हैं, मौलिक कर्तव्य केवल नागरिकों तक सीमित हैं और विदेशियों के लिए नहीं हैं।
- डीपीएसपी की तरह मौलिक कर्तव्य भी गैर-न्यायिक हैं।
वमात समिति के विचार
- नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों पर वमात समिति (1999) ने कुछ मौलिक कर्तव्यों के कार्यान्वयन के लिए कानूनी प्रावधानों के अस्तित्व की पहचान की।
- वे हैं:
- राष्ट्र गौरव अपमान निवारण अधिनियम (1971) भारत के संविधान, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान के अनादर को रोकता है।
- जाति और धर्म से संबंधित अपराधों के लिए दंड का प्रावधान करता है।
- विध्वंसक क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 एक सांप्रदायिक संगठन को एक गैरकानूनी संघ के रूप में घोषित करने का प्रावधान करता है।
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 दुर्लभ और विलुप्त प्रजातियों के व्यापार पर प्रतिबंध लगाता है।
- वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 अव्यवस्थित वनों की कटाई और गैर-वन उद्देश्यों के लिए वन भूमि के हस्तांतरण को रोकता है।
संविधान की मूल संरचना
- केशवानंद भारती मामले (1973) में, सर्वोच्च न्यायालय ने गोलाकनाथ मामले (1967) में अपने निर्णय को खारिज किया।
- इसने 24वें संशोधन अधिनियम (1971) की वैधता को बरकरार रखा और कहा कि संसद को किसी भी मौलिक अधिकार को कम करने या छीनने का अधिकार है।
- साथ ही, इसने संविधान की 'मूल संरचना' (या 'मूल विशेषताएं') का एक नया सिद्धांत निर्धारित किया।
- इसने फैसला सुनाया कि अनुच्छेद 368 के तहत संसद की शक्तियां इसे संविधान के 'मूल संरचना' को बदलने में सक्षम नहीं बनाती है।
- इसका अर्थ है कि संसद उस मौलिक अधिकार को कम या खत्म नहीं कर सकती है जो संविधान के 'मूल संरचना' का एक हिस्सा है।
सरकार की प्रतिक्रिया
- संसद ने 42वें संशोधन अधिनियम (1976) को पारित करके 'मूल संरचना' के न्यायिक रूप से नवोन्मेषी सिद्धांत पर प्रतिक्रिया व्यक्त की।
- इस अधिनियम ने अनुच्छेद 368 में संशोधन किया और घोषित किया कि संसद की शक्ति पर कोई सीमा नहीं है और किसी भी आधार पर किसी भी संविधान संशोधन पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है, जिसमें मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी शामिल है।
- मिनेर्वा मिल्स मामले (1980) में सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को अमान्य कर दिया क्योंकि इसने न्यायिक समीक्षा को बाहर कर दिया जो कि संविधान की एक 'मूल विशेषता' है।
- वामन राव मामले (1981) में फिर से, सर्वोच्च न्यायालय ने 'मूल संरचना' के सिद्धांत का पालन किया और आगे स्पष्ट किया कि यह 24 अप्रैल, 1973 (यानी केशवानंद भारती मामले में निर्णय की तारीख) के बाद पारित संवैधानिक संशोधनों पर लागू होगा।
मूल संरचना के तत्व
- वर्तमान स्थिति यह है कि अनुच्छेद 368 के तहत संसद संविधान के किसी भी हिस्से में, मौलिक अधिकारों सहित, संशोधन कर सकती है, जब तक कि संविधान के 'मूल संरचना' को प्रभावित न करे.
- हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने अभी तक यह परिभाषित या स्पष्ट नहीं किया है कि संविधान की 'मूल संरचना' क्या है।
- विभिन्न निर्णयों से, निम्नलिखित संविधान की 'मूल विशेषताओं' या संविधान की 'मूल संरचना' के तत्वों के रूप में उभरे हैं:
- संविधान की सर्वोच्चता
- भारतीय राज्य व्यवस्था की स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक प्रकृति
- संविधान की धर्मनिरपेक्ष विशेषता
- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का पृथक्करण
- मौलिक अधिकारों का संरक्षण
- संविधान की मूल संरचना का संरक्षण
राज्य के नीति निदेशक तत्व (DPSPs)
- ये तत्व भारतीय संविधान के भाग IV में निहित हैं।
- DPSPs भारत सरकार को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
- ये तत्व न्यायसंगत नहीं हैं, यानी न्यायालयों में उनका प्रवर्तन नहीं किया जा सकता है।
- लेकिन ये "राज्य" के लिए "मौलिक महत्व" के हैं और राज्य के नीति निर्माण के लिए "मार्गदर्शक सिद्धांत" के रूप में कार्य करते हैं।
- इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 37 में उल्लेख किया गया है।
- DPSPs को कोडिफाई किया गया था ताकि भारत में एक कल्याणकारी राज्य (सामाजिक कल्याणकारी राज्य) का निर्माण किया जा सके।
DPSPs के प्रकार
- ये समाजवादी, गांधीवादी और उदारवादी (उदारवादी मूल्यों के आधार पर) विचारधाराओं पर आधारित हैं।
DPSPs का मुख्य उद्देश्य
- DPSPs का उद्देश्य सामाजिक-आर्थिक न्याय को बढ़ावा देना, व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों को पूरक करना, एक न्यायसंगत और समावेशी समाज का निर्माण करना और सरकारी नीतियों के लिए एक मापदंड प्रदान करना है।
DPSPs को शामिल करने वाले अनुच्छेद
- अनुच्छेद 36 से 51 तक DPSPs को शामिल किया गया है।
- 1976 में 42वां संशोधन DPSPs को मिलाकर संविधान में एक महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करता है।
- यह संशोधन DPSPs को "राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत" की संज्ञा देता है और उन्हें "मौलिक अधिकारों" के समान महत्व देता है।
DPSPs के पीछे का तर्क
- DPSPs को न्यायसंगत नहीं बनाया गया था क्योंकि उस समय भारत के पास उन्हें लागू करने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं थे।
- उन्हें एक समाजवादी राज्य स्थापित करने के लिए कल्याणकारी नीतियों के लिए "मार्गदर्शक" सिद्धांत के रूप में बनाया गया था।
DPSPs की आलोचना
- DPSPs की मुख्य रूप से उनकी गैर-न्यायसंगत प्रकृति, आर्थिक रूप से असंगत (असंगति) और उदारवादी होने की वजह से आलोचना हुई है।
- यह तर्क दिया गया है कि DPSPs 19 वीं शताब्दी के ब्रिटिश राजनीतिक सिद्धांतों पर आधारित हैं और वे आधुनिक भारत के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
- DPSPs को संवैधानिक संघर्ष पैदा करने का भी आरोप लगाया गया है, खासकर केंद्र और राज्यों के बीच, राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री के बीच, और राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच।
DPSPs की भूमिका
- DPSPs ने देश की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक नीतियों में स्थिरता और निरंतरता प्रदान की है।
- DPSPs ने नीति निर्माण के लिए एक रूपरेखा प्रदान की है और देश की सामाजिक-आर्थिक प्रगति के लिए महत्वपूर्ण रहा है।
DPSPs का प्रभावशाली कार्यान्वयन
- योजना आयोग (अब नीति आयोग) की स्थापना 1950 में देश के विकास की योजना बनाने के लिए की गई थी।
- लगभग सभी राज्यों ने भूमि सुधार कानून पारित किए हैं।
- न्यूनतम वेतन अधिनियम (1948), वेतन भुगतान अधिनियम (1936), बोनस भुगतान अधिनियम (1965), ठेका श्रम विनियमन और नियोजन अधिनियम (1970) आदि बनाए गए हैं.
- महिला श्रमिकों की सुरक्षा के लिए प्रसूति सुविधा अधिनियम (1961) और समान पारिश्रमिक अधिनियम (1976) बने हैं।
- राष्ट्रीयकरण (जैसे, जीवन बीमा का राष्ट्रीयकरण (1956), बैंकों का राष्ट्रीयकरण (1969), सामान्य बीमा का राष्ट्रीयकरण (1971)) DPSPs का एक प्रमुख उदाहरण है।
- कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम (1987) ने देश भर में कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए एक नेटवर्क स्थापित किया है।
- खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड, खादी और ग्रामोद्योग आयोग, लघु उद्योग बोर्ड आदि ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किए गए हैं।
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम (1972) और वन (संरक्षण) अधिनियम (1980) पर्यावरण संरक्षण के प्रयास हैं।
- तीन स्तरीय पंचायती राज प्रणाली (ग्राम, ब्लॉक और जिला स्तर पर) गांधीजी के "हर गांव का गणराज्य" के स्वप्न को साकार करने हेतु एक महत्वपूर्ण कदम है।
- शैक्षिक संस्थानों, सरकारी सेवाओं और प्रतिनिधि निकायों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण को DPSPs के तत्व के रूप में लागू किया गया है।
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता (1973) ने न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग किया है।
- प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम (1951) राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों और स्थलों की सुरक्षा के लिए बनाया गया था।
- कुछ राज्यों में गाँवों, बछड़ों और बैलों के वध पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून बनाए गए हैं।
- भारत एक गुटनिरपेक्ष और पंचशील नीति का पालन करता है।
भाग IV के बाहर के DPSPs
- DPSPs के अलावा, संविधान के अन्य भागों में भी कुछ अन्य निर्देश हैं, जैसे:
- अनुच्छेद 335: पदोन्नति में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण
- अनुच्छेद 350A: मातृभाषा में शिक्षा
- अनुच्छेद 351: हिंदी भाषा का विकास
मौलिक कर्तव्य
- मौलिक कर्तव्य संविधान के भाग IV A में शामिल किए गए हैं।
- ये कर्तव्य सभी भारतीय नागरिकों पर बाध्यकारी हैं।
- ये भारतीय समाज के लिए प्रगति और विकास को बढ़ावा देने, राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने - और नागरिकों की जिम्मेदारियों को पहचान करने की दिशा में महत्वपूर्ण हैं।
मूल संरचना (Basic Structure)
- केशवानंद भारती मामले (1973) ने संविधान की "मूल संरचना" का सिद्धांत स्थापित किया।
- यह सिद्धांत बताता है कि संसद किसी भी संवैधानिक संशोधन के माध्यम से सक्षम नहीं है संविधान की "मूल संरचना" को बदले।
- यह सिध्दांत भारत के राजनीतिक प्रणाली की स्थिरता और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
मूल संरचना के तत्व
- संसद के पास संविधान में संशोधन करने की शक्ति है लेकिन संविधान की "मूल संरचना" को नहीं बदल सकती।
- यह स्पष्ट नहीं है कि "मूल संरचना" में क्या शामिल है।
- लेकिन न्यायालयों के विभिन्न निर्णयों से कुछ महत्वपूर्ण तत्व उभरे हैं, जैसे, संसद की सर्वोच्चता, भारतीय राज्य व्यवस्था की संघीय प्रकृति, संविधान की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति का पृथक्करण, संविधान की संघीय प्रकृति, देश की एकता और अखंडता, कल्याणकारी राज्य (सामाजिक-आर्थिक न्याय), न्यायिक समीक्षा, व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा, संसदीय प्रणाली, कानून का शासन,
- मौलिक अधिकारों और नीति निदेशक सिद्धांतों के बीच समन्वय, समानता का सिद्धांत, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, संविधान में संशोधन करने के लिए संसद की सीमित शक्ति, न्याय की प्रभावी पहुंच, मौलिक अधिकारों का सार (या सार),
- अनुच्छेद 32, 136, 141 और 142 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ, अनुच्छेद 226 और 227 के अंतर्गत उच्च न्यायालयों की शक्तियाँ, आदि
राज्य के नीति निर्देशक तत्व
- राज्य के नीति निर्देशक तत्व (डीपीएसपी) संविधान के भाग IV में अनुच्छेद 36 से 51 तक उल्लिखित हैं।
- ये तत्व 1937 के आयरिश संविधान से लिए गए हैं, जिसने स्वयं इन्हें स्पेनिश संविधान से लिया था।
- डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने इन तत्वों को भारतीय संविधान की नयी विशेषताओं के रूप में वर्णित किया।
- मौलिक अधिकारों के साथ, ये तत्व संविधान की आत्मा का निर्माण करते हैं।
डीपीएसपी की विशेषताएं
- ये तत्व राज्य को नीतियाँ और कानून बनाते समय ध्यान में रखने चाहिए।
- ये तत्व विधायी, कार्यकारी और प्रशासनिक मामलों में राज्य को संवैधानिक निर्देश या सिफारिशें देते हैं।
- डीपीएसपी 1935 के भारत सरकार अधिनियम में वर्णित "निर्देश के साधन" से जुड़े हैं।
- डीपीएसपी एक आधुनिक कल्याणकारी राज्य के लिए व्यापक आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक कार्यक्रम का निर्माण करते हैं।
- ये तत्व 'कल्याणकारी राज्य' की अवधारणा को वास्तविक रूप प्रदान करते हैं।
- डीपीएसपी देश में आर्थिक और सामाजिक न्याय स्थापित करना चाहते हैं।
- डीपीएसपी गैर-न्यायिक प्रकृति के हैं।
- डीपीएसपी, गैर-न्यायिक प्रकृति के होते हुए भी, कानून की संवैधानिक वैधता को जांचने और निर्धारण में न्यायालयों की सहायता करते हैं।
डीपीएसपी का वर्गीकरण
- डीपीएसपी का कोई भी वर्गीकरण संविधान में नहीं है।
- हालांकि, उनकी सामग्री और दिशा के आधार पर इन्हें तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- समाजवादी
- गांधीवादी
- उदारवादी-बौद्धिक
समाजवादी तत्व
- ये तत्व समाजवाद की विचारधारा को दर्शाते हैं।
- संबंधित अनुच्छेद:
- अनुच्छेद 38
- अनुच्छेद 39
- अनुच्छेद 39A
- अनुच्छेद 41
- अनुच्छेद 42
- अनुच्छेद 43
गांधीवादी तत्व
- ये तत्व राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान गांधी द्वारा प्रस्तावित पुनर्निर्माण कार्यक्रम का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- संबंधित अनुच्छेद:
- अनुच्छेद 40
- अनुच्छेद 43
- अनुच्छेद 46
- अनुच्छेद 47
उदारवादी-बौद्धिक तत्व
- संबंधित अनुच्छेद:
- अनुच्छेद 44
- अनुच्छेद 45
- अनुच्छेद 48
- अनुच्छेद 49
- अनुच्छेद 50
- अनुच्छेद 51
नए डीपीएसपी
- 1976 के 42वें संशोधन अधिनियम ने मूल सूची में चार नये डीपीएसपी जोड़े:
- अनुच्छेद 39
- अनुच्छेद 39A
- अनुच्छेद 43A
- अनुच्छेद 48A
- 1978 के 44वें संशोधन अधिनियम में अनुच्छेद 38 को जोड़ा गया।
- 2002 के 86वें संशोधन अधिनियम ने अनुच्छेद 45 की विषय-वस्तु को बदला।
- 2011 के 97वें संशोधन अधिनियम ने सहकारी समितियों से संबंधित एक नया डीपीएसपी जोड़ा - अनुच्छेद 43B
डीपीएसपी के पीछे मंशा
- मौलिक अधिकार, जो प्रकृति में न्यायिक हैं, भाग III में शामिल हैं और डीपीएसपी, जो प्रकृति में गैर-न्यायिक हैं, संविधान के भाग IV में शामिल हैं।
- डीपीएसपी गैर-न्यायिक हैं, संविधान (अनुच्छेद 37) स्पष्ट करता है कि 'ये तत्व देश के शासन में मौलिक हैं और कानून बनाने में इन तत्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा'
- संविधान निर्माताओं ने डीपीएसपी को गैर-न्यायिक और कानूनी रूप से गैर-प्रवर्तनीय बनाया क्योंकि:
- उन्हें लागू करने के लिए देश के पास पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं थे।
- देश में वित्तीय विविधता और पिछड़ेपन की उपस्थिति उनके कार्यान्वयन में बाधक होगी।
- देश उस समय, स्थान और उन्हें पूरा करने के तरीके को निर्धारित करने के लिए स्वयं सक्षम नहीं था, जब कि नवजात भारतीय राज्य अपनी कई ज़िम्मेदारियों के साथ बोझ से दबाया जा सकता है।
डीपीएसपी की आलोचना
- कानूनी बल नहीं: डीपीएसपी का उनकी गैर-न्यायिक विशेषता के कारण मुख्य रूप से आलोचना की गई है।
- बौद्धिक रूप से असंगठित: आलोचकों का मानना है कि डीपीएसपी को एक सुसंगत दिशानिर्देश के आधार पर बौद्धिक रूप से व्यवस्थित नहीं किया गया है।
- अनुदारवादी: सर इवोर जेनिं ग्स के अनुसार, निर्देश 19वीं सदी के इंग्लैंड के राजनीतिक दिशानिर्देशों पर आधारित हैं।
- संवैधानिक संघर्ष: डीपीएसपी और मौलिक अधिकारों के बीच संघर्ष के बारे में चिंताएँ व्यक्त की गई हैं, विशेष रूप से जहां ये दो एक-दूसरे से टकराते हैं या विरोधाभास पैदा करते हैं।
मौलिक कर्तव्य
- मौलिक कर्तव्य संविधान के भाग IV-A (अनुच्छेद 51A) में शामिल किए गए हैं।
- ये कर्तव्य 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा संविधान में जोड़े गए थे।
- मौलिक कर्तव्य नागरिकों को उनके राष्ट्र और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों की याद दिलाते हैं।
मौलिक कर्तव्यों की विशेषताएं
- कुछ मौलिक अधिकारों के विपरीत, जो सभी व्यक्तियों, चाहे नागरिक हों या विदेशी, के लिए हैं, मौलिक कर्तव्य केवल नागरिकों के लिए सीमित हैं और विदेशी कर्तव्यों के अधीन नहीं हैं।
- डीपीएसपी की तरह मौलिक कर्तव्य भी गैर-न्यायिक हैं।
मौलिक कर्तव्यों का कायतन्वयन
- सर्वोच्च न्यायालय ने वमात सतमति केस (1999) में कुछ मौलिक कर्तव्यों के कार्यान्वयन के लिए कानूनी प्रावधानों के अस्तित्व की पहचान की।
समाजवादी, गांधीवादी और उदारवादी तत्वों के संदर्भ में कुछ डीपीएसपी
- अनुच्छेद 38: सामाजिक व्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए राज्य का कर्तव्य
- अनुच्छेद 39: राज्य द्वारा पालन किए जाने वाले कुछ सिद्धांत
- अनुच्छेद 39A: समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता
- अनुच्छेद 40: ग्राम पंचायतों का संगठन
- अनुच्छेद 41: कुछ परिस्थितियों में काम, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता का अधिकार
- अनुच्छेद 42: कार्य के न्यायिक और मानवीय परिस्थितियों और मातृत्व सहायता का प्रावधान
- अनुच्छेद 43: श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी आदि
- अनुच्छेद 43A: उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी
- अनुच्छेद 43B: सहकारी समितियों का संगठन
- अनुच्छेद 44: नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता
- अनुच्छेद 45: छह वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा का प्रावधान
- अनुच्छेद 46: अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देना
- अनुच्छेद 47: पोषण के स्तर और जीवन स्तर को ऊपर उठाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए राज्य का कर्तव्य
- अनुच्छेद 48: कृषि और पशुपालन का संगठन
- अनुच्छेद 48A: छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच के अपने बच्चे या प्रतिपाल्य को शिक्षा के अवसर प्रदान करना।
मौलिक अधिकार और डीपीएसपी के बीच संबंध
- मौलिक अधिकारों का लक्ष्य व्यक्तियों को राज्य के अत्याचार से बचाना है, जबकि डीपीएसपी का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक न्याय प्रदान करना है।
- ये दोनों बुनियादी अधिकार एक दूसरे के पूरक हैं और समाज में संतुलन स्थापित करते हैं।
संविधान की मूल संरचना
- केशवानंद भारती केस (1973) में सर्वोच्च न्यायालय ने गोलाकनाथ केस (1967) में अपने फैसले को खारिज कर दिया।
- इसने 24वें संशोधन अधिनियम (1971) की वैधता को बरकरार रखा और कहा कि संसद को किसी भी मौलिक अधिकार को कम करने या छीनने का अधिकार है।
- साथ ही, इसने संविधान की 'मूल संरचना' (या 'मूल विशेषताएँ ') का एक नया सिद्धांत स्थापित किया।
संविधान की 'मूल संरचना'
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संसद की शक्ति में सीमा: संसद संविधान के 'मूल संरचना' को बदलने में सक्षम नहीं है, भले ही इसका अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन करने का अधिकार हो।
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ज्यांचा समावेश होतो: संविधान की मूल संरचना में निम्न तत्व शामिल हैं:
- संविधान की सर्वोच्चता
- भारतीय राज्य व्यवस्था की स्वायत्तता, लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक प्रकृति
- संविधान की धर्मनिरपेक्ष विशेषता
- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का पृथक्करण
- संविधान की संघीय विशेषता
- देश की एकता और अखंडता
- कल्याणकारी राज्य (सामाजिक-आर्थिक न्याय)
- न्यायिक समीक्षा
- व्यक्ति की स्वायत्तता और गरिमा
-
संसदीय प्रणाली
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कानून का शासन
- मौलिक अधिकारों और डीपीएसपी के बीच सामंजस्य और संतुलन
- समानता का सिद्धांत
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव
- न्यायपालिका की स्वायत्तता
- संविधान में संशोधन करने के लिए संसद की सीमित शक्ति
- न्याय तक प्रभावी पहुंच
- मौलिक अधिकारों के सार
- अनुच्छेद 32, 136, 141 और 142 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ
- अनुच्छेद 226 और
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संघर्ष निराकरण: सर्वोच्च न्यायालय नियमित रूप से 'मूल संरचना' के सिद्धांत का उपयोग करके संविधान में संशोधन की वैधता की जांच करता है।
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चुनौती: 'मूल संरचना' का सिद्धांत विवादस्पद है, क्योंकि यह अस्पष्ट है कि संविधान की 'मूल संरचना' क्या है और किस हद तक संसद को संविधान में संशोधन करने की अनुमति है।
राज्य के नीति निर्देशक तत्व
- राज्य के नीति निर्देशक तत्व (डीपीएसपी) भारतीय संविधान के भाग IV में अनुच्छेद 36 से 51 तक शामिल हैं।
- डीपीएसपी का विचार 1937 के आयरिश संविधान से लिया गया है, जिसने इसे स्पेनिश संविधान से ग्रहण किया था।
- डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने इन तत्वों को भारतीय संविधान की नई विशेषताओं के रूप में चित्रित किया।
- मौलिक अधिकारों के साथ डीपीएसपी में समान महत्व है, और यह संविधान की आत्मा का अभिन्न अंग है।
- ये तत्व राज्य के लिए नीतियां बनाने और कानून बनाने के दौरान मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
- ये तत्व विधायी, कार्यकारी और प्रशासनिक मामलों में राज्य को संवैधानिक निर्देश या सिफारिशें प्रदान करते हैं।
- डीपीएसपी, 1935 के भारत सरकार अधिनियम में उल्लिखित "निर्देश के साधन" से निकटता से जुड़े हैं.
- डीपीएसपी एक आधुनिक कल्याणकारी राज्य के लिए एक व्यापक आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक कार्यक्रम का निर्माण करते हैं।
- डीपीएसपी 'कल्याणकारी राज्य' की अवधारणा को मूर्त रूप देते हैं।
- वे देश में आर्थिक और सामाजिक न्याय स्थापित करने का लक्ष्य रखते हैं।
- डीपीएसपी अपनी प्रकृति में गैर-न्यायिक हैं।
- हालांकि गैर-न्यायिक, डीपीएसपी कानून की संवैधानिक वैधता की जांच और निर्धारण में न्यायालयों की सहायता करते हैं।
डीपीएसपी का वर्गीकरण
- संविधान में डीपीएसपी का कोई विशिष्ट वर्गीकरण नहीं है।
- हालांकि, उनकी सामग्री और दिशा के आधार पर, उन्हें तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- संबंधन ने बताया है कि निर्देश एक संवैधानिक संघर्ष की ओर ले जाते हैं
- केंद्र और राज्यों के बीच
- राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री के बीच
- राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच
डीपीएसपी द्वारा निभाई गई भूमिकाएं
- वे सत्ता में पार्टी के परिवर्तनों के बावजूद राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में घरेलू और विदेशी नीतियों में स्थिरता और निरंतरता प्रदान करते हैं।
- वे नागरिकों के मौलिक अधिकारों के पूरक हैं। उनका उद्देश्य भाग III में रिक्त स्थान को भरना है, सामाजिक और आर्थिक अधिकार प्रदान करके।
- उनका कार्यान्वयन नागरिकों द्वारा मौलिक अधिकारों का पूर्ण और उच्चतम आनंद के लिए अनुकूल वातावरण बनाना है।
- वे विपक्ष को सरकार के संचालन पर प्रभाव और नियंत्रण बनाने में सक्षम बनाते हैं।
- वे सरकार के प्रदर्शन के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा के रूप में कार्य करते हैं।
- वे आम राजनीतिक घोषणा पत्र के रूप में काम करते हैं।
डीपीएसपी का कार्यान्वयन
- योजना आयोग की स्थापना 1950 में देश के विकास को योजनाबद्ध तरीके से करने के लिए की गई थी।
- कृषि समाज में बदलाव लाने और ग्रामीण जनता की स्थिति में सुधार लाने के लिए लगभग सभी राज्यों ने भूमि सुधार कानून पारित किए हैं।
- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम (1948), मजदूरी संदाय अधिनियम (1936), बोनस संदाय अधिनियम (1965), ठेका श्रम विनियमन और उत्पादन अधिनियम (1970)
- महिला श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए प्रसूति सुविधा अधिनियम (1961) और समान पारिश्रमिक अधिनियम (1976) बनाया गया है।
- सार्वजनिक वस्तुओं को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय संसाधनों के उपयोग के लिए कई उपाय किए गए हैं।
- इनमें जीवन बीमा का राष्ट्रीयकरण (1956), चौदह प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण (1969), सामान्य बीमा का राष्ट्रीयकरण (1971) शामिल हैं।
- कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम (1987) ने गरीबों को मुफ्त और सक्षम कानूनी सहायता प्रदान करने और समान न्याय को बढ़ावा देने के लिए लोक अदालतों का आयोजन करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी नेटवर्क की स्थापना की है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों के विकास के लिए खादी एवं ग्राम उद्योग बोर्ड, खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग, लघु उद्योग बोर्ड आदि का गठन किया गया है।
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 और वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980, क्रमशः वन्यजीवों और वनों की सुरक्षा के लिए अधिनियम बनाए गए हैं।
- तीन स्तरीय पंचायती राज प्रणाली (गांव, ब्लॉक और जिला स्तर पर) गांधीजी के हर गांव के गणराज्य होने के स्वप्न को हकीकत में बदलने के लिए प्रस्तुत की गई है ।
- शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी सेवाओं और प्रतिनिधि निकायों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य कमजोर वर्गों के लिए सीटें आरक्षित हैं।
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता (1973) ने राज्य की सार्वजनिक सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग हटाया।
- राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं की सुरक्षा के लिए प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक तथा पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम (1951) अधिनियमित किया गया है।
- कुछ राज्यों में गायों, बछड़ों और बैलों के वध पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून बनाए गए हैं।
- भारत अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए गुटनिरपेक्ष और पंचशील की नीति का पालन करता रहा है।
भाग IV के बाहर के निर्देश
- भाग IV में शामिल निर्देशों के अलावा, संविधान के अन्य भागों में भी कुछ अन्य निर्देश हैं.
- ये हैं:
- सेवाओं के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के दावे: भाग XVI में अनुच्छेद 335
- मातृभाषा में निर्देश - भाग XVII में अनुच्छेद 350-A
- हिंदी भाषा का विकास - भाग XVII में अनुच्छेद 351
- उपरोक्त निर्देश भी प्रकृति में गैर-न्यायिक हैं।
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की सूची
-
- राज्य की परिभाषा
-
- इस भाग में निहित तत्वों का अनुप्रयोग
-
- लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए एक सामाजिक व्यवस्था को सुरक्षित करने के लिए राज्य
-
- राज्य द्वारा पालन किए जाने वाले नीति के कुछ तत्व
- 39ए. समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता
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- ग्राम पंचायतों का संगठन
-
- कुछ स्थितियों में कार्य, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता का अधिकार
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- कार्य की न्यायिक और मानवीय परिस्थितियों और मातृत्व राहत का प्रावधान
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- श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी आदि
- 43A. उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी
- 43B. सहकारी समितियों का संगठन
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- नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता
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- छह वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा का प्रावधान
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- अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देना
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- पोषण के स्तर और जीवन स्तर को ऊपर उठाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए राज्य का कर्तव्य
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- कृषि और पशुपालन का संगठन
- 48A. पर्यावरण का संरक्षण और सुधार और वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा
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- राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों और स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण
-
- न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करना
-
- अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना
मौलिक कर्तव्य
- मूल संविधान में केवल मौलिक अधिकार थे, मौलिक कर्तव्य नहीं।
- बाद में 1976 में नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा गया।
- 2002 में, एक और मौलिक कर्तव्य जोड़ा गया।
- भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्य सोवियत संघ के संविधान से प्रेरित हैं।
- संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया आदि जैसे प्रमुख लोकतांत्रिक देशों के किसी भी संविधान में विशेष रूप से नागरिकों के कर्तव्यों की सूची नहीं है।
- जापानी संविधान, शायद, दुनिया का एकमात्र लोकतांत्रिक संविधान है जिसमें नागरिकों के कर्तव्यों की एक सूची है।
स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशें
- 1976 में, कांग्रेस पार्टी ने मौलिक कर्तव्यों के बारे में सिफारिशें करने के लिए सरदार स्वर्ण सिंह समिति का गठन किया।
- समिति ने संविधान में मौलिक कर्तव्यों पर एक अलग अध्याय शामिल करने की सिफारिश की।
- केंद्र की कांग्रेस सरकार ने इन सिफारिशों को स्वीकार कर लिया और 1976 में 42वां संविधान संशोधन अधिनियम बनाया।
- इस संशोधन ने संविधान में एक नया भाग, अर्थात भाग IVA जोड़ा।
- इस नए भाग में केवल एक ही अनुच्छेद है, जो अनुच्छेद 51A है जिसमें पहली बार नागरिकों के दस मौलिक कर्तव्यों का एक सूची निर्दिष्ट किया गया है।
- समिति की कुछ सिफारिशों को कांग्रेस पार्टी द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था जैसे सावधानी जमा के रूप में करों का भुगतान करने के लिए शुल्क को शामिल करना।
मौलिक कर्तव्यों की सूची
- संतवधान का पालन करना और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना
- संतवधान की संघीय विशेषता
- देश की एकता और अखंडता
- देश की रक्षा करना और राष्ट्रीय सेवा के लिए तैयार रहना
- देश के लिए सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करना और हिंसा से बचना
- कल्याणकारी राज्य (सामाजिक-आर्थिक न्याय)
- न्यायिक समीक्षा
- व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा
- संसदीय प्रणाली
- कानून का शासन
- मौलिक अधिकारों और निर्देशक तत्वों के बीच सामंजस्य और संतुलन
- समानता का कर्तव्य
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता
- भारतीय संविधान में संशोधन करने के लिए संसद की सीमित शक्ति
- न्याय तक प्रभावी पहुंच
- मौलिक अधिकारों, निहित तत्व (या सार)
- अनुच्छेद 32, 136, 141 और 142 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ
- अनुच्छेद 226 और 227 के अंतर्गत उच्च न्यायालयों की शक्तियां
राज्य के नीति निर्देशक तत्व
- राज्य के नीति निर्देशक तत्व (डीपीएसपी) संविधान के भाग IV में अनुच्छेद 36 से 51 तक वर्णित हैं।
- डीपीएसपी का विचार 1937 के आयरिश संविधान से लिया गया, जिसने इसे स्पेनिश संविधान से लिया था।
- डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने इन तत्वों को भारतीय संविधान की नई विशेषताओं के रूप में वर्णित किया था।
- मूल अधिकारों के साथ निर्देशक तत्वों में संविधान का संतुलन है और यह संविधान की आत्मा है।
डीपीएसपी की विशेषताएं
- ये विचार हैं जिन्हें राज्य को नीतियां बनाने और कानून बनाने के समय ध्यान में रखना चाहिए।
- ये विधायी, कार्यकारी और प्रशासनिक मामलों में राज्य को संवैधानिक निर्देश या सिफारिशें हैं।
- निर्देशक तत्व 1935 के भारत सरकार अधिनियम में उल्लिखित 'निर्देश के साधन' से निकटता से जुड़े हैं।
- निर्देशक तत्व एक आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य के लिए एक व्यापक आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक कार्यक्रम का गठन करते हैं।
- ये 'कल्याणकारी राज्य' की अवधारणा को मूर्त रूप देते हैं।
- वे देश में आर्थिक और सामाजिक न्याय स्थापित करना चाहते हैं।
- निर्देशक तत्व प्रकृति में गैर-न्यायिक हैं।
- निर्देशक तत्व, हालांकि प्रकृति में गैर-न्यायिक हैं, कानून की संवैधानिक वैधता की जांच और निर्धारण में अदालतों की मदद करते हैं।
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का वर्गीकरण
- संविधान में निर्देशक तत्वों का कोई वर्गीकरण नहीं है।
- हालांकि उनकी सामग्री और दिशा के आधार पर, उन्हें तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- राज्य की परिभाषा
- सामाजिक न्याय और आर्थिक विकास
- अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा
मौलिक कर्तव्य
- मूल रूप से संविधान में केवल मूल अधिकार थे, मौलिक कर्तव्य नहीं थे।
- बाद में 1976 में नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा गया।
- 2002 में, एक और मौलिक कर्तव्य जोड़ा गया।
- भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्य सोवियत संघ के संविधान से प्रेरित हैं।
- प्रमुख लोकतांत्रिक देशों, जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया आदि ने अपने संविधानों में नागरिकों के कर्तव्यों की सूची विशेष रूप से शामिल नहीं की है।
- जापानी संविधान, शायद, दुनिया का एकमात्र लोकतांत्रिक संविधान है जिसमें नागरिकों के कर्तव्यों की एक सूची है।
स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशें
- 1976 में, कांग्रेस पार्टी ने मौलिक कर्तव्यों के बारे में सिफारिशें करने के लिए सरदार स्वर्ण सिंह समिति का गठन किया।
- समिति ने संविधान में मौलिक कर्तव्यों पर एक अलग अध्याय शामिल करने की सिफारिश की।
- केंद्र की कांग्रेस सरकार ने इन सिफारिशों को स्वीकार कर लिया और 1976 में 42वां संविधान संशोधन अधिनियम बनाया।
- इस संशोधन ने संविधान में एक नया भाग, अर्थात् भाग IVA जोड़ा।
- इस नए भाग में केवल एक ही अनुच्छेद है, जो कि अनुच्छेद 51A है जहाँ नागरिकों के दस मौलिक कर्तव्यों की एक सूची पहली बार निर्दिष्ट की गई।
- समिति की कुछ सिफारिशों को कांग्रेस पार्टी द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था जैसे सावधानीपूर्वक जमा के रूप में करों का भुगतान करने के लिए शुल्क को शामिल करना।
मौलिक कर्तव्यों की सूची
- छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच के अपने बच्चे या प्रतिपाल्य को शिक्षा के अवसर प्रदान करना। यह कर्तव्य 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया था।
मौलिक कर्तव्यों की विशेषताएं
- कुछ मूल अधिकारों के विपरीत, जो सभी व्यक्तियों, चाहे नागरिक हों या विदेशी, के लिए हैं, मौलिक कर्तव्य केवल नागरिकों तक सीमित हैं और विदेशियों के लिए नहीं हैं।
- निर्देशक तत्वों की तरह, मौलिक कर्तव्य भी गैर-न्यायिक हैं।
वर्मा समिति के विचार
- नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों पर वर्मा समिति (1999) ने कुछ मौलिक कर्तव्यों के कार्यान्वयन के लिए कानूनी प्रावधानों के अस्तित्व की पहचान की।
- वह हैं:
- राष्ट्र गौरव अपमान निवारण अधिनियम (1971) भारत के संविधान, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान के अनादर को रोका है।
- जाति और धर्म से संबंधित अपराधों के लिए दंड का प्रावधान करता है जो दंड का प्रावधान करता है।
- विध्वंसक क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 सांप्रदायिक संगठन को एक गैरकानूनी संघ के रूप में घोषित करने का प्रावधान करता है।
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों के व्यापार पर प्रतिबंध लगा ता है।
- वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 अव्यवस्थित वनों की कटाई और गैर-वन उद्देश्यों के लिए वन भूमि के दुरुपयोग को रोकता है।
सर्वोच्च न्यायालय और संविधान की मूल संरचना
- केशवानन्द भारती मामले (1973) में, सर्वोच्च न्यायालय ने गोलाखनाथ मामले (1967) में अपने निर्णय को खारिज कर दिया।
- इसने 24वें संशोधन अधिनियम (1971) की वैधता को बरकरार रखा और कहा कि संसद को किसी भी मौलिक अधिकार को कम करने या छीनने का अधिकार है।
- साथ ही, इसने संविधान की 'मूल संरचना' (या 'मूल विशेषताएं') का एक नया सिद्धांत स्थापित किया।
- इसने फैसला सुनाया कि अनुच्छेद 368 के तहत संसद की संशोधन शक्ति इसे संविधान के 'मूल संरचना' को बदलने में सक्षम नहीं बनाती है।
- इसका अर्थ यह है कि संसद उस मूल अधिकार को कम या खत्म नहीं कर सकती है जो संविधान के 'मूल संरचना' का हिस्सा है।
42वाँ संशोधन अधिनियम
- सरकार ने 42वें संशोधन अधिनियम (1976) को अधिनियमित करके 'मूल संरचना' के न्यायिक रूप से नवोन्मेषी सिद्धांत पर प्रतिक्रिया व्यक्त की।
- इस अधिनियम ने अनुच्छेद 368 में संशोधन किया और घोषित किया कि संसद की संशोधन शक्ति पर कोई सीमा नहीं है और किसी भी मामले में किसी भी संशोधन पर, किसी भी मूल अधिकारों के उल्लंघन सहित, कोई वादी नहीं उठाया जा सकता है।
- तमिलनाडु केस (1980) में सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को अमान्य कर दिया क्योंकि इसने न्यायिक समीक्षा को समाप्त कर दिया जो कि संविधान की 'मूल विशेषता' है।
- वामन राव मामले (1981) में सर्वोच्च न्यायालय ने 'मूल संरचना' के सिद्धांत का पालन किया और आगे स्पष्ट किया कि यह 24 अप्रैल, 1973 (यानी केशवानन्द भारती मामले में निर्णय की तारीख) के बाद अधिनियमित संवैधानिक संशोधनों पर लागू होगा।
मूल संरचना के तत्व
- वर्तमान स्थिति यह है कि अनुच्छेद 368 के तहत संसद मूल अधिकारों सहित संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है, लेकिन संविधान के 'मूल संरचना' को प्रभावित नहीं कर सकती।
- हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने अभी तक यह परिभाषित या स्पष्ट नहीं किया है कि संविधान की 'मूल संरचना' क्या है।
- विभिन्न निर्णयों से, निम्नलिखित संविधान की 'मूल विशेषताओं' या संविधान की 'मूल संरचना' के तत्वों के रूप में उभरे हैं:
- संविधान की सर्वोच्चता
- भारतीय राज्य व्यवस्था की स्वरूपित, लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक प्रकृति
- संविधान की धर्मनिरपेक्ष विशेषता
- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का पृथक्करण
- संविधान की संघीय विशेषता
- देश की एकता और अखंडता
- कल्याणकारी राज्य (सामाजिक-आर्थिक न्याय)
- न्यायिक समीक्षा
- व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा
- संसदीय प्रणाली
- कानून का शासन
- मूल अधिकारों और निर्देशक तत्वों के बीच सामंजस्य और संतुलन
- समानता का सिद्धांत
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता
- संविधान में संशोधन करने के लिए संसद की सीमित शक्ति
- न्याय की प्रभावी पहुंच
- मूल अधिकार अंतर्निहित तत्व (या सार)
- अनुच्छेद 32, 136, 141 और 142 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ
- अनुच्छेद 226 और 227 के अंतर्गत उच्च न्यायालयों की शक्तियाँ
राज्य के नीति निर्देशक तत्व
- राज्य के नीति निर्देशक तत्व (डीपीएसपी) भारत के संविधान के भाग IV में अनुच्छेद 36 से 51 तक शामिल हैं।
- डीपीएसपी का विचार 1937 के आयरिश संविधान से लिया गया है, जिसने इसे स्पैनिश संविधान से लिया था।
- डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने इन तत्वों को भारतीय संविधान की नई विशेषताओं के रूप में वर्णित किया।
- मौलिक अधिकारों के साथ निर्देशक तत्वों में संविधान का समन्वय नहीं है, लेकिन यह संविधान की आत्मा है।
डीपीएसपी की विशेषताएँ
- ये विचार हैं जिन्हें राज्य को नीतियाँ बनाने और कानून बनाने के समय ध्यान में रखना चाहिए।
- ये विधायी, कार्यकारी और प्रशासनिक मामलों में राज्य को संवैधानिक निर्देश या सिफारिशें हैं।
- निर्देशक तत्व 1935 के भारत सरकार अधिनियम में उल्लिखित 'निर्देश के साधन' से निकट रूप से जुड़े हैं।
- निर्देशक तत्व एक आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य के लिए व्यापक आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक कार्यक्रम का गठन करते हैं।
- ये 'कल्याणकारी राज्य' की अवधारणा को मूर्त रूप देते हैं।
डीपीएसपी का वर्गीकरण
- संविधान में निर्देशक तत्वों का कोई वर्गीकरण नहीं है।
- हालांकि, उनकी सामग्री और दिशा के आधार पर, उन्हें तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- सामाजिक न्याय (अनुच्छेद 38-40, 41-43, 46, 47, 49)
- आर्थिक नीति (अनुच्छेद 39, 43, 43A, 43B, 48)
- सांस्कृतिक और शैक्षिक नीति (अनुच्छेद 44, 45, 46, 48A, 50, 51A)
डीपीएसपी द्वारा निभाई गई भूमिकाएँ
- ये सत्ता में पार्टी के परिवर्तनों के बावजूद राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में घरेलू और विदेशी नीतियों में स्थिरता और निरंतरता प्रदान करते हैं।
- वे नागरिकों के मौलिक अधिकारों के पूरक हैं। उनका उद्देश्य भाग III में रिक्त स्थान को भरना है, सामाजिक और आर्थिक अधिकार प्रदान करके।
- उनका कार्यान्वयन नागरिकों द्वारा मौलिक अधिकारों के पूर्ण और उच्च आनंद के लिए अनुकूल वातावरण बनाना है।
- ये विपक्ष को सरकार के संचालन पर प्रभाव और नियंत्रण करने में सक्षम बनाते हैं।
- ये सरकार के प्रदर्शन के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा के रूप में कार्य करते हैं।
- ये आम राजनीतिक घोषणा पत्र के रूप में काम करते हैं।
निर्देशक तत्वों का कार्यान्वयन
- योजना आयोग की स्थापना 1950 में देश के विकास को योजनाबद्ध तरीके से करने के लिए की गई थी।
- कृषि समाज में बदलाव लाने और ग्रामीण जनता की स्थिति में सुधार लाने के लिए लगभग सभी राज्यों ने भूमि सुधार कानून पारित किए हैं।
- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम (1948), मजदूरी संदाय अधिनियम (1936), बोनस संदाय अधिनियम (1965), ठेका श्रम विनियमन और उत्पादन अधिनियम (1970), महिला श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए प्रसूति सुविधा अधिनियम (1961) और समान पारिश्रमिक अधिनियम (1976) बनाया गया है।
- आम वस्तुओं को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय संसाधनों के उपयोग के लिए कई उपाय किए गए हैं, जिनमें जीवन बीमा का राष्ट्रीयकरण (1956), चौदह प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण (1969), सामान्य बीमा का राष्ट्रीयकरण (1971) शामिल हैं।
- कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम (1987) ने गरीबों को मुफ्त और सक्षम कानूनी सहायता प्रदान करने और समान न्याय को बढ़ावा देने के लिए लोक अदालतों का आयोजन करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी नेटवर्क की स्थापना की है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों के विकास के लिए खादी एवं ग्राम उद्योग बोर्ड, खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग, लघु उद्योग बोर्ड आदि का गठन किया गया है।
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 और वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980, क्रमशः वन्यजीवों और वनों की सुरक्षा के लिए अधिनियमित किए गए हैं।
- तीन स्तरीय पंचायती राज प्रणाली (गांव, ब्लॉक और जिला स्तर पर) गांधीजी के हर गांव के स्वशासन के सपने को हकीकत में बदलने के लिए पेश की गई है।
- शैक्षिक संस्थानों, सरकारी सेवाओं और प्रतिनिधि निकायों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य कमजोर वर्गों के लिए सीटें आरक्षित हैं।
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता (1973) ने राज्य की सार्वजनिक सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग कर दिया।
- राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं की सुरक्षा के लिए प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक तथा पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम (1951) अधिनियमित किया गया है।
- कुछ राज्यों में गायों, बछड़ों और बैलों के वध पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून बनाए गए हैं।
- भारत अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए गुटनिरपेक्ष और पंचशील की नीति का पालन कर रहा है।
भाग IV के बाहर के निर्देश
- भाग IV में शामिल निर्देशों के अलावा, संविधान के अन्य भागों में कुछ अन्य निर्देश भी हैं, जैसे:
- सेवाओं के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के दावे: भाग XVI में अनुच्छेद 335
- मातृभाषा में निर्देश - भाग XVII में अनुच्छेद 350-A
- हिंदी भाषा का विकास - भाग XVII में अनुच्छेद 351
- उपरोक्त निर्देश भी प्रकृति में गैर-न्यायिक हैं।
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की सूची
-
- राज्य की परिभाषा
-
- इस भाग में निहित तत्वों का अनुप्रयोग
-
- लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए एक सामाजिक व्यवस्था को सुरक्षित करने के लिए राज्य
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- राज्य द्वारा पालन किए जाने वाले नीति के कुछ तत्व
- 39ए. समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता
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- ग्राम पंचायतों का संगठन
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- कुछ स्थितियों में कार्य, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता का अधिकार
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- कार्य की न्यायिक और मानवीय परिस्थितियाँ और मातृत्व राहत का प्रावधान
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- श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी आदि
- 43A. उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी
- 43B. सहकारी समितियों का संवर्धन
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- नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता
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- छह वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा का प्रावधान
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- अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देना
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- पोषण के स्तर और जीवन स्तर को ऊपर उठाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए राज्य का कर्तव्य
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- कृषि और पशुपालन का संगठन
- 48A. संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों और संस्थानों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना; स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित करने वाले महान आदर्शों को संजोना और उनका पालन करना; भारत की स्वतंत्रता, एकता और अखंडता को बनाए रखने और उसकी रक्षा करने के लिए; देश की रक्षा करने के लिए और ऐसा करने के लिए बुलाए जाने पर राष्ट्रीय सेवा प्रदान करना; भारत के सभी लोगों के बीच धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय या अनुभागीय विविधताओं से परे सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना और महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करना; देश की समृद्ध संस्कृति की विरासत को महत्व देना और संरक्षित करना; वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना और जीवित प्राणियों के लिए सहानुभूति रखना; वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद और जांच और सुधार की भावना विकसित करना; सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा से दूर रहना; व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की दिशा में प्रयास करना ताकि राष्ट्र निरंतर प्रयास और उच्च स्तर के प्रदर्शन तक पहुंचे.
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- राज्य द्वारा प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों और स्थलों की सुरक्षा और संरक्षण करना।
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- राज्य के कार्यपालिका का न्यायपालिका से अलग होना चाहिए।
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- राज्य द्वारा अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना।
महत्वपूर्ण संवैधानिक बिंदु
- संविधान की संघीय विशेषता
- देश की एकता और अखंडता
- कल्याणकारी राज्य (सामाजिक-आर्थिक न्याय)
- न्यायिक समीक्षा
- व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा
- संसदीय प्रणाली
- कानून का शासन
- मौलिक अधिकारों और निर्देशक तत्वों के बीच सामंजस्य और संतुलन
- समानता का तत्व
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता
- संविधान में संशोधन करने के लिए संसद की सीमित शक्ति
- न्याय तक प्रभावी पहुंच
- मौलिक अधिकारों में निहित तत्व (या सार)
- अनुच्छेद 32, 136, 141 और 142 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय की शक्तियां
- अनुच्छेद 226 और 227 के अंतर्गत उच्च न्यायालयों की शक्तियां
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Description
इस क्विज़ में राज्य के नीति निदेशक तत्व (डीपीएसपी) के बारे में जानें। जानिए डीपीएसपी के महत्व, विशेषताएँ और भारतीय संविधान में उनकी भूमिका। यह क्विज़ संविधान के उस भाग की अवधारणा को समझाने में मदद करेगा।