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Questions and Answers
मानव संस्कृति के इतिहास में स्थापत्य का क्या महत्व है?
मानव संस्कृति के इतिहास में स्थापत्य का क्या महत्व है?
- यह केवल राजाओं के लिए महल बनाने की कला है।
- यह सदियों की बिखरी कड़ियों को जोड़कर देश और समाज की सांस्कृतिक तस्वीर प्रस्तुत करता है। (correct)
- इसका कोई विशेष महत्व नहीं है।
- यह सिर्फ इमारतों का निर्माण है।
राजस्थान के स्थापत्य को कौन सी भौगोलिक स्थिति सबसे अधिक प्रभावित करती है?
राजस्थान के स्थापत्य को कौन सी भौगोलिक स्थिति सबसे अधिक प्रभावित करती है?
- पहाड़ी इलाका होना।
- मैदानी क्षेत्र होना।
- समुद्र के किनारे होना।
- विशेष भौगोलिक स्थिति। (correct)
हड़प्पा सभ्यता में हनुमानगढ़ के किनारे बस्तियों का विभाजन किस आधार पर किया गया था?
हड़प्पा सभ्यता में हनुमानगढ़ के किनारे बस्तियों का विभाजन किस आधार पर किया गया था?
- धन के आधार पर।
- परिवार के आकार के आधार पर।
- पेशे के अनुसार घाटियों के अनुकूल मोहल्लों में। (correct)
- जाति के आधार पर।
बीकानेर और जैसलमेर के गांवों के नामों के आगे 'सर' शब्द का प्रयोग क्यों किया जाता है?
बीकानेर और जैसलमेर के गांवों के नामों के आगे 'सर' शब्द का प्रयोग क्यों किया जाता है?
निम्नलिखित में से क्या राजस्थान के स्थापत्य की विशेषता नहीं है?
निम्नलिखित में से क्या राजस्थान के स्थापत्य की विशेषता नहीं है?
Flashcards
स्थापत्य क्या है?
स्थापत्य क्या है?
स्थापत्य, सदियों से बिखरी कड़ियों को जोड़कर देश और समाज की सांस्कृतिक तस्वीर दिखाता है।
राजस्थानी स्थापत्य क्यों विशेष है?
राजस्थानी स्थापत्य क्यों विशेष है?
यह राजस्थान की भौगोलिक स्थिति के कारण हुआ है, जहाँ निर्माण में मजबूती और उपयोगिता का ध्यान रखा गया।
हनुमानगढ़ की नगर योजना कैसी थी?
हनुमानगढ़ की नगर योजना कैसी थी?
हनुमानगढ़ में घाटियों के किनारे, व्यवसायों के अनुसार मोहल्लों में विभाजित किया गया था।
गाँवों का स्थापत्य कैसा था?
गाँवों का स्थापत्य कैसा था?
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'सर' शब्द का क्या अर्थ है?
'सर' शब्द का क्या अर्थ है?
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Study Notes
ज़रूर, यहां आपके अध्ययन के लिए नोट्स दिए गए हैं:
स्थापत्य और शिल्प के विविध आयाम
- मानव संस्कृति के इतिहास में स्थापत्य का महत्वपूर्ण स्थान है, जो सदियों से बिखरी हुई कडियों को जोड़कर देश और समाज का सांस्कृतिक चित्र प्रस्तुत करता है।
- राजस्थान की भौगोलिक स्थिति ने यहाँ के स्थापत्य को प्रभावित किया है l
नगर-विन्यास और भवन शिल्प
- हनुमानगढ़ जिले में कालीबंगा और सौंथी की खुदाई से ज्ञात होता है कि सरस्वती और दृषद्वती नदियों के किनारे बसे नगरों की नगर योजना और भवन निर्माण उच्च स्तरीय था।
- दक्षिणी-पश्चिमी राजस्थान में आहड़ और गिलूण्ड संस्कृति के केंद्र थे l
- मौर्य काल में बेड़च नदी के किनारे मध्यमिका (चित्तौड़ के पास नगरी) एक भव्य नगर था।
- गुप्त और गुप्तोत्तर काल में मेनाल, अमझेरा, डबोक और भरतपुर के आस-पास के क्षेत्र में नगरीय वैभव था।
- सातवीं से तेरहवीं शताब्दी तक राजस्थान में स्थापत्य का विशेष महत्व रहा है।
राजपूत काल में नगर नियोजन
- राजपूत काल में राजधानी के नगर नियोजन विशिष्ट रहे, सुरक्षा और सुविधा का ध्यान रखा जाता था। इसी उद्देश्य से भीनमाल, चित्तौड़, मण्डोर, ओसियां, रणथम्भौर, झालरापाटन, राजौरगढ़, आमेर जैसे स्थानों को राजधानी बनाया गया।
- सवाई जयसिंह ने जयपुर शहर को नौ वर्गों के सिद्धांत पर बसाया l
- 12वीं सदी में जैसलमेर का निर्माण जंगल और पानी की सुविधा को ध्यान में रखकर हुआ।
- बूंदी के स्थापत्य में जल की प्रचुरता का बड़ा हाथ रहा है l
- उदयपुर को झील के किनारे घाटियों के अनुकूल पेशे के अनुसार मोहल्लों में बांटा गया था।
- नगरों का स्थापत्य गाँवों से भिन्न था, पहाड़ी इलाके में गाँव पहाड़ी ढलान पर बसे थे और रेगिस्तानी गाँव में पानी की सुविधा का ध्यान रखा जाता था।
दुर्ग-शिल्प
- राजस्थान में छोटी-बड़ी दुर्ग बहुतायत में हैं l
- शुक्रनीति के अनुसार दुर्ग राज्य के सात अंगों में से एक है।
- यहाँ राजाओं और सामंतों ने निवास, सुरक्षा, सामग्री संग्रहण और आपदा में प्रजा की सुरक्षा के लिए दुर्ग बनवाए थे।
- राजस्थान में दुर्गों के स्थापत्य का प्रथम उदाहरण कालीबंगा की खुदाई में मिलता है।
राजपूत काल में दुर्ग
- राजपूत काल में भाटियों का सोनारगढ़, अजयराज चौहान का गढ़बीठली तारागढ़ (अजमेर), कुंभा का कुंभलगढ़ आदि महत्वपूर्ण थे।
- तराईन के दूसरे युद्ध के बाद दिल्ली में तुर्क-अफगान शासन की स्थापना हुई और राजस्थान के दुर्ग स्थापत्य पर इसका प्रभाव पड़ा।
- महाराणा कुंभा ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग का पुनर्निर्माण करवाया था।
- मुगलों से मधुर सम्बन्ध होने पर राजपूत शासकों ने पहाड़ियों से नीचे आकर समतल मैदान में नगर दुर्गों का निर्माण किया।
- राजस्थान के 6 दुर्ग– आमेर महल, गागरोण, कुंभलगढ़, जैसलमेर, रणथंभौर और चित्तौड़गढ़ को जून 2013 में यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में शामिल किया गया।
दुर्गों के प्रकार
- औदुक दुर्ग - विशाल जल राशि से घिरा हुआ, जैसे गागरोण दुर्ग।
- गिरि दुर्ग - ऊँचे पर्वत पर स्थित, राजस्थान के अधिकांश दुर्ग इसी श्रेणी में आते हैं।
- धान्वन दुर्ग - मरूभूमि में बना हुआ, जैसे जैसलमेर का दुर्ग।
- वन दुर्ग - सघन बीहड़ वन में बना हुआ, जैसे सिवाना का दुर्ग।
- एरण दुर्ग - जिनके मार्ग खाई, काँटों व पत्थरों से दुर्गम हों, जैसे चित्तौड़ व जालौर के दुर्ग।
- पारिख दुर्ग - जिसके चारों ओर गहरी खाई हो, जैसे भरतपुर दुर्ग।
- पारिध दुर्ग - जिनके चारों ओर बड़ी-बड़ी दीवारों का परकोटा हो, जैसे चित्तौड़, जैसलमेर।
राजस्थान के प्रमुख दुर्ग
- चित्तौड़गढ़ का किला सबसे प्राचीन और प्रमुख है और इसका सामरिक महत्त्व है।
- मेवाड़ के वीरविनोद के अनुसार मौर्य राजा चित्रांग (चित्रांगद) ने यह किला बनवाया था और बप्पा रावल ने आठवीं शताब्दी में इस पर अधिकार कर लिया।
- अलाउद्दीन खिलजी ने इस दुर्ग पर अधिकार कर इसका नाम खिज्राबाद रख दिया।
- यह दुर्ग मेसा के पठार पर है और कहा जाता है - "गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढैयाँ"।
- चित्तौड़ के किले में तीन साके हुए - 1303 ई., 1535 ई. और 1568 ई।
कुंभलगढ़ दुर्ग
- महाराणा कुंभा द्वारा निर्मित कुंभलगढ़ गिरि दुर्ग का अच्छा उदाहरण है।
- कुंभलगढ़ दुर्ग 36 किलोमीटर लम्बे परकोटे से घिरा हुआ है।
- इसमें झालीबाव बावड़ी, कुम्भस्वामी विष्णु मंदिर, झालीरानी का मालिया और उड़ना राजकुमार की छतरी आदि प्रसिद्ध स्मारक हैं।
रणथम्भौर दुर्ग
- रणथम्भौर दुर्ग का निर्माण आठवीं शताब्दी में अजमेर के चौहान शासकों ने करवाया था।
- अलाउद्दीन ने 1301 में इस पर आक्रमण किया l
- दुर्ग में हम्मीर महल, रानी महल और 32 खम्भों की छतरी स्थित हैं।
सिवाणा दुर्ग
- सिवाणा दुर्ग बाड़मेर में छप्पन की पहाड़ी पर स्थित है।
- इसकी स्थापना 954 ई. में परमार वंशीय वीरनारायण ने की थी और इसे 'अणखलों सिवाणों' दुर्ग भी कहते हैं।
तारागढ़ का किला (बूंदी)
- बूंदी का तारागढ़ का किला पर्वत की चोटी पर स्थित है।
- इसका निर्माण 14वीं शताब्दी में राव बरसिंह ने करवाया था।
नाहरगढ़ का किला (जयपुर)
- सवाई जयसिंह ने नाहरगढ़ के किले का निर्माण मराठा आक्रमणों रक्षा के लिए करवाया था।
- इसे सुदर्शनगढ़ कहते हैं।
- माधोसिंह ने अपनी नौ पासवानों के लिए एक जैसे नौ महलों का निर्माण करवाया।
तारागढ़ (अजमेर)
- यह अजमेर जिला मुख्यालय पर स्थित अरावली की पहाड़ियों पर अब खण्डित दशा में है।
- इसे 'गढ़ बीठली' तथा 'अजयमेरु' भी कहते हैं।
- कर्नल टॉड के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण चौहान शासक अजयपाल ने करवाया।
- तारागढ़ की प्राचीर में 14 विशाल बुर्जे हैं।
- तारागढ़ दुर्ग को सन् 1832 में भारत के गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक ने देखा तो उनके मुँह से निकल पड़ा- "ओह दुनिया का दूसरा जिब्राल्टर।”
मेहरानगढ़
- राव जोधा द्वारा निर्मित यह दुर्ग जोधपुर नगर की उत्तरी पहाड़ी चिड़ियाटूंक पर बना हुआ है।
- यह गिरि दुर्ग की श्रेणी में आता है और इसे मयूरध्वजगढ़, गढ़चिंतामणी भी कहा जाता है।
अन्य दुर्ग:
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चूरू का किला
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1739 में ठाकुर कुशाल सिंह ने बनवाया था।
- सेठ-साहूकारों और जनसामान्य ने अपने घरों से चाँदी लाकर ठाकुर को दी।
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अकबर का दुर्ग (अजमेर)
- अकबर ने 1571-72 ई. में बनवाया था।
- यह राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है जो मुस्लिम दुर्ग स्थापत्य पद्धति से बनवाया गया है।
- ब्रिटिश राजदूत सर टामस रो को 1576ईस्वी में जहाँगीर ने अपना परिचय पत्र सौंपा।
- अकबर ने 1571-72 ई. में बनवाया था।
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जूनागढ़ दुर्ग (बीकानेर) - महाराजा रायसिंह ने 1589 ई. में इस दुर्ग की नींव रखी थी। - यह लाल पत्थरों से हुआ है इसलिए इसे लालगढ़ भी कहा जाता है। - हाथी पर सवार मूर्तियाँ स्थापित हैं।
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भैंसरोड़गढ़ का किला (चित्तौड़गढ़) - चंबल और बामनी नदियों के संगम स्थल पर स्थित यह जलदुर्ग की श्रेणी में आता है। - कर्नल टॉड के अनुसार इस किले का निर्माण भैंसाशाह नामक व्यापारी द्वारा पर्वतीय लुटेरों से अपने व्यापारिक काफिले की रक्षा हेतु करवाया था। - इसे राजस्थान का वेल्लोर कहा जाता है।
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गागरोण का किला (झालावाड़) - कालीसिंध व आहू नदी के संगम स्थल पर स्थित यह जलदुर्ग की श्रेणी में आता है। - इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में डोड परमारों द्वारा करवाया गया था।
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जयगढ़ (आमेर) - भारत की प्रमुख सैनिक इमारतों में से एक जयगढ़ दुर्ग अपनी तोपों के कारखाने के लिए जाना जाता है।
मंदिर शिल्प
- मंदिरों के निर्माण द्वारा भी कला प्रदर्शित हुई है। भारत में मानसिक और राजनीतिक परिवर्तन के साथ कला में प्रगति होती रही।
- राजस्थान में सातवीं सदी से पूर्व बने मंदिरों के अवशेष मिलते हैं।
- गुर्जर-प्रतिहार शैली जिसे महामारू भी कहा गया है, आठवीं सदी में विकसित हुई।
- राजस्थान के सर्वश्रेष्ठ मंदिर 11वीं से 13वीं सदी के बीच बने हैं, जिन्हें सोलंकी या मारु गुर्जर शैली के अंतर्गत रखा जा सकता है।
राजप्रासाद और महल स्थापत्य
- राजपूतों के राज्य स्थापित होने के साथ राजभवनों का भी निर्माण हुआ।
- इन महलों के स्थापत्य पर मुगल शैली का प्रभाव दिखाई देता है।
हवेली स्थापत्य
- राजस्थान के नगरों में सामंत और सेठों ने भव्य हवेलियां बनवाई हैं।
- शेखावाटी के धनिकों ने अपने गाँव में विशाल हवेलियां बनवाई।
छतरियाँ, मकबरे और दरगाह
- ये स्मारक स्थापत्य कला और भवन निर्माण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
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Description
राजस्थान के स्थापत्य का मानव संस्कृति में बहुत महत्व है। भौगोलिक स्थिति, बस्तियों का विभाजन और गांवों के नामों में 'सर' शब्द का प्रयोग इसकी अनूठी विशेषताओं को दर्शाता है। यह क्षेत्र की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को उजागर करता है।