19 Questions
कबीर जी के अनुसार, किस विषय का ज्ञान वास्तविक ज्ञानी बना सकता है?
मोह -माया
कबीर जी के अनुसार, किसे पंडित कहा जा सकता है?
जो ईश्वर प्रेम को समझता है
कबीर जी के अनुसार, किसे 'पंडित' बनने के लिए कहा गया है?
मोह -माया को हरने वाले
'ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ' का मतलब है:
प्रेम के साथ शिक्षा प्राप्ति करना
'हम घर जाल्या आपणाँ , लिया मुराड़ा हाथि' में 'मुराड़ा हाथि' का क्या मतलब है?
लकड़ी की मशाल
'हम घर जाल्या आपणाँ , लिया मुराड़ा हाथि' में 'घर' का प्रतीक है:
'मोह - माया'
कबीरदास जी कहते हैं कि हमें किस तरह की बाँणी बोलनी चाहिए?
मन का अहंकार त्याग कर
कबीरदास जी का किस पंक्ति में मतलब है 'मनुष्य को ईश्वर को स्वयं में ढूंढना चाहिए'?
मृग ढूँढै बन माँहि
क्या है कबीरदास जी के अनुसार मुख्य संदेश?
मन का सुख सुनिश्चित करने से पहले दूसरों का सुख सुनिश्चित करें
क्या 'कस्तूरी' कुंडली में 'मृग' को 'मान' प्रतीत होता है?
हाँ
'कस्तूरी' कुंडली में 'मृग' (हिरण) को ढूंढते हुए मनुष्य ________ में ईश्वर को खोजता है।
तीर्थों
'कस्तूरी' कुंडली में 'मृग' (हिरण) ________ में प्रतिष्ठित होता है, परंतु हमें इसका सही पता नहीं चलता है।
'माँहि'
कबीरदास जी के अनुसार, जब उनके हृदय में 'मैं' था तो क्या था?
अहंकार
किस बात का विनाश होता है, जब परमेश्वर के दर्शन होते हैं?
अज्ञान रूपी अहंकार
'सुखिया सब संसार है' - किस बात को कहने का संकेत है?
संसार में सुख-संतोष
किस शब्द में मनुष्य के मन में अपनों के बिछड़ने का गम प्रकट होता है?
राम
'निंदक नेड़ा राखिये' - इसमें किसे घर परिभाषित किया गया है?
'निंदक' (निन्दा करने वाले)
'मैं' का हृदय खोने पर, क्या होता है?
'हम' से 'मैं' की पहुंच
'राम' से 'प्रेम' (प्रीति) की प्रेरिति किसको मिलती है?
'मैं'
Study Notes
अच्छा व्यवहार
- अच्छा व्यवहार तब आता है जब हम अपने मन का अहंकार त्याग कर देते हैं।
- ऐसा व्यवहार करना चाहिए जिससे हमारा अपना तन-मन स्वस्थ रहे और दूसरों को भी सुख प्राप्त हो।
- हमें अपने भाषा का प्रयोग ऐसे करना चाहिए जिससे दूसरों को कोई कष्ट न हो।
ईश्वर की खोज
- जिस प्रकार एक हिरण कस्तूरी की खुशबु को जंगल में ढूंढ़ता है जबकि वह सुगंध उसी की नाभि में विद्यमान है।
- उसी प्रकार संसार के कण-कण में ईश्वर विद्यमान है परन्तु हम इसके बारे में बेखबर हैं।
- ईश्वर को ढूंढ़ना ही है तो अपने मन में ढूंढो।
अहंकार और ईश्वर
- जब मैं था तब हरि नहीं अर्थात जब इससे हृदय में 'मैं' था तब इसमें परमेश्वर का वास नहीं था।
- अब इस हृदय में 'मैं' नहीं है तो इसमें प्रभु का वास है।
- जब परमेश्वर नमक दीपक के दर्शन हुए तो अज्ञान रूपी अहंकार का विनाश हो गया।
संसार की हालत
- संसार के लोग अज्ञान रूपी अंधकार में डूबे हुए हैं।
- वे अपनी मृत्यु आदि से भी अनजान सोये हुये हैं।
- कबीर जी दुखी हैं और वे रो रहे हैं।
वियोग का दर्द
- जब मनुष्य के मन में अपनों के बिछड़ने का गम सांप बन कर लोटने लगता है।
- उस पर न कोई मन्त्र असर करता है और न ही कोई दवा असर करती है।
- राम अर्थात ईश्वर के वियोग में मनुष्य जीवित नहीं रह सकता और यदि वह जीवित रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है।
निंदा और सुधार
- हमें हमेशा निंदा करने वाले व्यक्तिओं को अपने निकट रखना चाहिए।
- हम उनके द्वारा बताई गई हमारी गलतिओं को सुधर सकें।
- इससे हमारा स्वभाव बिना साबुन और पानी की मदद के ही साफ़ हो जायेगा।
ज्ञान की महत्ता
- मोटी - मोटी पुस्तकें (किताबें ) पढ़ कर कई मनुष्य मर गए परन्तु कोई भी मनुष्य पंडित (ज्ञानी ) नहीं बन सका।
- यदि किसी व्यक्ति ने ईश्वर प्रेम का एक भी अक्षर पढ़ लिया होता तो वह पंडित बन जाता अर्थात ईश्वर प्रेम ही एक सच है।
- इसे जानने वाला ही वास्तविक ज्ञानी है।
मोह-माया से मुक्ति
- कबीर जी ने अपने हाथों से अपना घर जला दिया है अर्थात उन्होंने मोह -माया रूपी घर को जला कर ज्ञान प्राप्त कर लिया है।
- अब उनके हाथों में जलती हुई मशाल (लकड़ी ) है यानि ज्ञान है।
- अब वे उसका घर जलाएंगे जो उनके साथ चलना चाहता है अर्थात उसे भी मोह - माया से मुक्त होना होगा जो ज्ञान प्राप्त करना चाहता है।
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