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1 2 3 4 पा य म अ भक प स म त  डॉ. आर. वी. यास अ य  ो. आर. स यनारायन, वभागा य सद य कुलप त पु तकालय एवं सू चना व ान व...

1 2 3 4 पा य म अ भक प स म त  डॉ. आर. वी. यास अ य  ो. आर. स यनारायन, वभागा य सद य कुलप त पु तकालय एवं सू चना व ान वभाग वधमान महावीर खुला व व व यालय , कोटा इि दरा गांधी रा य मु त व व व यालय नई द ल  ो. पी. बी. मंगला, वभागा य सद य  ो. एन. के. शमा, वभागा य सद य पु तकालय एवं सू चना व ान वभाग पु तकालय एवं सू चना व ान वभाग द ल व व व यालय, द ल कु े व व व यालय कु े (ह रयाणा)  ो. कृ ण कुमार सद य  ो. जी. डी. भागव, पू व वभागा य सद य पु तकालय एवं सू चना व ान वभाग पु तकालय एवं सूचना व ान अ ययनशाला द ल व व व यालय, द ल व म व व व यालय, उ जैन(म..)  डॉ. दनेश कु मार गु ता,सहायक आचाय सद य  ो. आर. जी. पाराशर, वभागा य सद य पु तकालय एवं सू चना व ान वभाग पु तकालय एवं सू चना व ान वभाग वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा डॉ. ह र संह गौड़ व व व यालय  डॉ.एच.बी. न दवाना, वभागा य संयोजक सागर (म..) पु तकालय एवं सू चना व ान वभाग वधमान महावीर खुला व व व यालय , कोटा पा य म नमाण दल  ो. एस. एस. अ वाल, पू व वभागा य  डॉ. एस. पी. सू द, पूव सहआचाय एवं वभागा य पु तकालय एवं सू चना व ान वभाग पु तकालय एवं सू चना व ान वभाग व म व व व यालय, उ जैन राज थान व व व यालय, जयपु र  डॉ. एस. डी. यास, पु तकालया य  डॉ. एच. एन. साद, सहआचाय वन थल व यापीठ, वन थल पु तकालय एवं सू चना व ान वभाग बनारस ह दू व व व यालय, बनारस  डॉ.एच.बी. न दवाना, सहआचाय  डॉ. डी. के. संह, सहायक पु तकालया य पु तकालय एवं सू चना व ान वभाग वन थल व यापीठ, वन थल वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा स पादक  डॉ. एस. डी. यास, पु तकालया य वन थल व यापीठ, वन थल अकाद मक एवं शास नक यव था ो. (डॉ.)नरेश दाधीच ो.(डॉ.) एम. के. घडो लया ो.योगे गोयल कुलप त नदे शक(अकाद मक) भार अ धकार वधमान महावीर खुला व व व यालय , कोटा संकाय वभाग पा य साम ी उ पादन एवं वतरण वभाग पा य म उ पादन योगे गोयल सहायक उ पादन अ धकार वधमान महावीर खुला व व व यालय , कोटा उ पादन - अग त 2011 ISBN No.: 978-81-8496-200-0 इस साम ी के कसी भी अंश को व. म. खु. व. कोटा क ल खत अनु म त के बना कसी भी प म अथवा म मयो ाफ (च मु ण) वारा या अ य पु नः तु त करने क अनु म त नह ं है । व. म. खु. व. कोटा के लए कुलस चव व. म. खु. व. कोटा(राज थान) वारा मु त एवं का शत। 5 बी.एल.आई.एस.—1 पु तकालय एवं समाज वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा इकाई - 1 पु तकालय का उ व, वकास और आधु नक समाज म पु तकालय 9—23 क भू मका इकाई - 2 पु तकालय व ान के पंच सू 24—42 इकाई - 3 संयु त रा य अमर का और यूनाईटे ड कं गडम म बीसवीं शता द म 43—55 पु तकालय वकास इकाई - 4 वत ता उ तरो तर भारत म पु तकालय वकास 56—69 इकाई - 5 रा य पु तकालय : भारत, यूके , यूएसए के रा य पु तकालय 70—87 के काय एवं वणन इकाई - 6 शै णक पु तकालय : भू मका एवं काय 88—101 इकाई - 7 सावज नक पु तकालय – आव यकता, उ े य एवं काय 102—116 इकाई - 8 व श ट पु तकालय एवं सू चना के 117—131 इकाई - 9 पु तकालय वधान : आव यकता, उ े य एवं कारक 132—143 इकाई – 10 सावज नक पु तकालय अ ध नयम का आदश ा प 144—155 इकाई – 11 भारत के रा य म पु तकालय अ ध नयम : उनक वशेषताएँ 156—161 इकाई – 12 त ल या धकर कानून एवं थ ाि त अ ध नयम 162—166 इकाई – 13 पु तकालय संसाधन सहभागीकरण-अ भधारणा, आव यकता और 167—180 व प इकाई – 14 उपयोगकताओं का अ ययन- अवधारणा,आव यकता एवं व प 181—193 इकाई – 15 पु तकालय संघ क भू मका 194—210 इकाई – 16 पु तकालय और सू चना सेवाएँ के उ नयन म संल न संगठन एवं 211—238 सं थाय इकाई – 17 अ तरा य पु तकालय संघ- इफला,एफ़डीआई, पेशल लाइ ेर 239—250 एसो सएशन, एस लब, अमे रकन लाइ रे एसो सएशन(यूके ) 6 इकाई प रचय इकाई 1 : यह इकाई पु तकालय का उ व, वकास और आधु नक समाज म पु तकालय क भू मका से स बि धत है। इकाई 2 : इस इकाई म पु तकालय व ान के पंच सू के मह व उनके संदेश एवं न हताथ क व तार से चचा क गयी है। इकाई 3 : यह इकाई संयु त रा य अमे रका और यूनाईटे ड कं गडम म बीसवीं शता द म पु तकालय वकास क झांक तु त करती है। इकाई 4 : यह इकाई भारत म पु तकालय वकास के अथ , पु तकालय वकास के माग म बाधा एवं पु तकालय वकास से स बि धत मु य घटक क जानकार दे ती है। इकाई 5 : इस इकाई म रा य पु तकालय- भारत, यू के एवं यू एस ए के काय का वणन तु त कया गया है। इकाई 6 : इस इकाई म शै णक पु तकालय- व यालय, महा व यालय एवं व व व यालय क व तार से चचा क गयी है। इकाई 7 : यह इकाई सावज नक पु तकालय क प रभाषा , आव यकता, उ े य एवं काय पर काश डालती है। इकाई 8: यह इकाई व श ट पु तकालय एवं सू चना के से संबि धत है। इसम वश ट पु तकालय का वकास , इ तहास, उ े य, कार एवं इनके वारा द जाने वाल सेवाओं क व तार से चचा क गयी है। इकाई 9 : इस इकाई म पु तकालय वधान क प रभाषा, आव यकता, उ े य एवं स ांत क चचा करते हु ए भारत म पु तकालय वधान क ि थ त एवं पु तकालय वधान के लए पु तकालय संघ क भू मका पर काश डाला गया है। इकाई -10- सावज नक पु तकालय वधान का आदश ा प तु त करती है। इस इकाई के अ तगत पु तकालय वधान क आव यकता, मह व एवं भारत म पु तकालय वधान क ि थ त क चचा क गयी ह। सावज नक पु तकालय वधान का एक आदश ा प भी तुत कया गया ह। इकाई -11- इस इकाई म भारत के रा य म पु तकालय वधान एवं उनक वशेषताओं क जानकार द गयी है। इकाई -12- यह इकाई त ल या धकार कानून एवं थ ाि त वधान से स बि धत है। इकाई -13- यह इकाई पु तकालय संसाधन सहभागीकरण – अवधारणा, आव यकता एवं व प से स बि धत ह। इसम पु तकालय संसाधन सहभागीकरण क अवधारणा , आव यकता, उ े य एवं इसके व भ न व प क व तार से चचा क गयी है। पु तकालय संसाधन सहभागीकरण क रा य एवं अ तरा य योजनाएं एवं इस संग से भारतीय प र य क जानकार द गयी है। इकाई -14- यह इकाई उपयोगकताओं का अ ययन – अवधारणा, आव यकता और व प पर काश डालती ह। इसम उपयोगकता अ ययन क अवधारणा, आव यकता, एवं उपयो गता क व तार से चचा क गयी ह। 7 इकाई -15- यह इकाई पु तकालय संघ क भू मका से स बि धत है। इसम पु तकालय संघ के उ े य, काय एवं कार क व तार से जानकार तु त क गयी है। मुख पु तकालय संघ क चचा क गयी ह। इकाई -16- यह इकाई पु तकालय एवं सूचना सेवाओं के उ नयन म संल न संगठन एवं सं थाओं क व तार से जानकार तु त करती ह। इकाई -17- अ तरा य पु तकालय संघ-इफला, एफ आई डी, पेशल लाइ ेर एसो सयेशन, एस लब, अमे रकन लाइ रे एसो सयेशन, तथा लाइ रे एसो सयेशन (यू के ) के संबध ं म काश डालता ह। 8 इकाई- 1 : पु तकालय का उ व, वकास और आधु नक समाज म पु तकालय क भू मका (Development of Libraries and the Role of Library in Modern Society) उ े य इस इकाई के न न ल खत उ े य है - 1. पु तकालय के उ व और वकास से प र चत होना, 2. पु तकालय के काय और मह व से प र चत होना, 3. आधु नक समाज म पु तकालय क भू मका को जानना। संरचना 1. वषय वेश 2. पु तकालय : मह व और उपयो गता 3. पु तकालय का उ व और वकास 4. आधु नक पु तकालय क अवधारणा 5. पु तकालय का उ व और व यमान होने के लये पूव अपे त दशाय 6. पु तकालय के वकास के लये अनुकूल दशाय 7. पु तकालय के वकास के माग म बाधाय 8. पु तकालय के वकास के कारक 9. पु तकालय के कार 10. पु तकालय के काय और समाज म उनक भू मका 11. सारांश 12. अ यासाथ न 13. पा रभा षक श दावल 14. व तृत अ ययनाथ थ-सू ची 1. वषय वेश पु तकालय एक सामािजक सं था है। आपको पु तकालय श ाथ के प म पु तकालय के उ व, वकास और आधु नक समाज म पु तकालय क भू मका से प र चत होना चा हये अ यथा आप अपने यवसाय और काय के मह व और उपयो गता का सह -सह आकलन नह ं कर सकगे और जन साधारण को भी पु तकालय के मह व और भू मका से अवगत नह ं करवा सकगे। 9 2. पु तकालय : मह व और उपयो गता मानव स यता क कहानी से पता चलता है क पु तकालय स य समाज के आव यक अंग के प म सदै व व यमान रहे ह। इनका उ व समाज क आव यकताओं क पू त हे तु हु आ है और इनका व प, उ े य, काय और सेवाऐं, समाज क आव यकताओं दारा नण त होती ह। पु तकालय ने समाज के सामािजक, राजनै तक, आ थक और सां कृ तक वकास म महती भू मका अदा क है। सं कृ त के संर ण और ग त, औपचा रक और अनौपचा रक व श ा, मनोरं जन आ द म पु तकालय का योगदान मह वपूण रहा है। समय क ग त के साथ ान के संचरण के मह व म सतत वृ हो रह है। पु तकालय ान के प रसंचरण से स बि धत है। पु तकालय को इस संग म मह वपूण भू मका अदा करना है य क ान अ धक ज टल होता चला जा रहा है और ान संचरण के साधन भी अ धक ज टलता ा त कर रहे ह। पु तकालय एक सामािजक जन सं था है जो नर तर समाज क याण म रहते हु ए ानी और अ ानी को समान प से ान वत रत करती है। यह ान के सारण, व वता क गत और श ा तथा अनुसध ं ान क वृ क सं था है। भारतवष म व या दान क बड़ी म हमा है। हमारे पूवज ने इसको सब दान से े ठ दान माना है। पु तकालय वा तव म व या के भ डार ह। जन पु तकालय को 'लोक व व व यालय ' क सं ा द जाती है िजसके वार येक यि त के लये सदै व खु ले रहते ह और उसक ान पपासा शांत करते ह। यह जन साधारण को आजीवन वश ा ा त करने म सहायक स होते है। कोई भी यि त कसी व यालय, महा व यालय अथवा व व व यालय म श ा ा त नह ं कर सकता, क तु वह पु तकालय का सद य बनकर जीवन पय त अपना ान संव न अव य कर सकता है। कसी व यालय, महा व यालय अथवा व व व यालय म एक सी मत सं या म व याथ होते ह जो कुछ सी मत समय तक वहाँ श ा ा त कर सकते ह। पर तु एक पु तकालय म न तो सी मत उपयोगकता होते ह और न अ ययन क कोई सी मत अव ध होती है। एक जन पु तकालय म ब चे, ि याँ और यहाँ तक क वृ यि त भी व श ा के लये वेश कर सकते ह। पु तकालय म, एक शै णक सं था के समान श क क भी आव यकता नह ं होती है। पु तकालय वारा जन साधारण को अपने अवकाश के समय का सदुपयोग और व थ मनोरं जन ा त होता है। इनके वारा सभी को न प प से सभी वषय पर आधु नकतम सू चना और पा य साम ी ा त होती है। जनतं म पु तकालय जन साधारण को अपने अ धकार और कत य के त जाग क और सचेत रखते हू ँ। पु तकालय म सं हत पा यसाम ी का उपयोग करके कोई भी यि त अपने काय म द ता ा त करके यि तगत उ न त के साथ-साथ रा य ग त म भागीदार कर सकता है। पु तकालय वारा रा य एकता, अ तरा य शां त, सहयोग तथा स ावना म वृ होती है। पु तकालय मानवता क सा हि यक तथा सां कृ तक उपलि धय को आगामी पी ढ़य के उपयोगाथ सदै व सवदा तक सु र त रखते ह। समाज के व भ न वग के यि तय क शै णक आव यकताओं क पू त के लये पु तकालय क भू मका अ यंत मह वपूण है। पु तकालय एक प व एवं कायशील सं था ह। महान भारतीय व ध नमाता मनु ने कहा है: 10 'अ ा नय के वार तक नःशु क ान को ले जाना, उनको स य पथ पर। अ सत करना - इस कार के दान के समान कु छ भी नह ं है। यहाँ तक क स पूण व व भी दे दे ना इसक समता नह ं कर सकता।' कसी दे श, रा और समाज क सं कृ त, स यता, बौ क उपलि धय और सम ग त क जानकार उसके पु तकालय के मा यम से ा त होती है। पु तकालय के मह व को यून नह ं कया जा सकता। पु तकालय को दे श क आ थक, औ यो गक, वै ा नक और शै णक संरचना म अपना योगदान तु त करने का अवसर दे ना चा हये। 3. पु तकालय का उ व और वकास पु तकालय , मानव स यता के वकास के आर भ से ह कसी न कसी प म पाये जाते ह। पहले इनको थ के भ डारगृह के प म मा यता ा त थी और इनका मु य काय थ को प रर ण करना था। थालयी को थ का संर क माना जाता था और वह थ के उपयोग करने को ो सा हत नह ं करता आ। वह उपयोगकताओं से अलग- अलग रहता था। पु तकालय अ भलेखागार क भां त हु आ करते थे। म य युग म ऑ सफोड इंि लश ड शनर वारा ' थ ं ालय' श द क या या उस थान के प म क गई ''जहाँ पु तक वाचन, अ ययन और संदभ के लये रखी जाती ह।'' उ नीसवीं शता द तक भी पु तकालय को 'एक भवन, अथवा क के समू ह के प म जाना जाता था। जहाँ जन साधारण अथवा उसके एक अंश अथवा समाज के सद य के उपयोगाथ, पु तक का सं ह कया जाता था। यह एक जन सं था अथवा सं थापन था िजसका काय पु तक का सं ह और संर ण करना था।' इन प रभाषाओं म पु तक के सं हण और संर ण पर बल दया गया है और मानवीय प क भू मका क जो उसके उपयोग को ो सा हत करे , क अवहेलना क गई है। अब पु तकालय और पु तकालय सेवा क अवधारणा म आमू ल-चू ल प रवतन हो गया है। अब पु तकालय म रखी पा य साम ी के उपयोग पर बल दया जाने लगा ह। आधु नक पु तकालय को एक जनसेवा क सं था माना जाता है। आधु नक थालयी का कत य पु तकालय के ोत और सेवाओं का अ धकतम भावशाल और स म उपयोग करवाना है। पु तकालय और सू चना व ान के े म पछल कु छ दशाि दय म अ य धक वकास हु आ है। भारत म पु तकालय आ दोलन के जनक रं गनाथन के अनुसार पु तकालय ''एक जन सं था अथवा सं थापन है िजसको पु तक क सु र ा और सं हण का काय स पा गया है, उसका कत य उनको, उन यि तय को सु लभ करना है जो उनका उपयोग करना चाहते ह और उसका काय अपने पड़ोस म रहने वाले येक यि त को पु तकालय आने का अ य त और पु तक के अ येता के प म प रव तत करना है।''1 अत: पु तकालय एक जनसं था है िजससे येक संभा वत पाठक को वा त वक पाठक म प रव तत करने क अपे ा क जाती है। व तु त: यह एक आधु नक पु तकालय क अवधारणा है। 11 4. आधु नक पु तकालय क अवधारणा एक आधु नक पु तकालय को सेवा-सं थान माना जाता है। इसका उ े य पु तकालय ोत और सेवाओं का उपयोगकताओं वारा सवा धक भावशाल उपयोग करवाना है। यहाँ पा य साम ी 'संर ण' का प 'गौण' गया है और 'उपयोग' का प बल हो गया है। आज हम सू चना-युग म रह रहे ह। सू चना आज के ज टल आ थक, राजनै तक और सामािजक पयावरण म मह वपूण भू मका अदा करती है। ान क ग त म इसका मा णक योगदान है। शोध वारा सम याओं का नराकरण खोजा जाता है। सम याओं के नराकरण के लये सूचना क आव यकता होती है। रा य वकास का कोई भी काय म उपयु त सू चना के अभाव म पूण प से सफल नह ं हो सकता है। ' ान' को 'शि त' माना जाता है। अब 'सूचना' को 'शि त' मानना अ तशयोि त पूण नह ं होगा। पु तकालय केवल भू त, वतमान, भावी ान के भ डारण ह नह ं ह अ पतु सू चना- न द ट हो गये ह। अब ये अ धक से अ धक सूचना सेवा के हो रहे ह िजससे समाज क आव यकताओं क पू त कर सक। एक शोधकता को वयं को अ यतन रखने के लये और अपने व श ट करण के े म भल भां त सू चत होने के लये 'सू चना' क आव यकता पड़ती है। एक यावसा यक त ठान के बंधक को उ चत नणय लेने के लये पया त सू चना क आव यकता पड़ती है। इसी कार एक नयोजक को रा य, े ीय और थानीय योजनाओं का नमाण करने के लये सू चना क आव यकता है। पर परागत पु तकालय म पा य-साम ी के प म पा डु ल पयाँ, पु तक और आव धक काशन (प -प काओं) का सं ह कया जाता था। आधु नक पु तकालय इस कार क साम ी के अ त र त लाई स, च , ऑ डयो-कैसे स, वी डयो- कैसे स, मान च , ामोफोन रकाडस, टे प रकाडस सीडी रोम और अणु- व प साम ी का भी अजन और सं हण करते ह। अत: 'पु तक ' का थान ' थ' अथवा ' लेख' एवं सू चना ने ले लया है। 5. पु तकालय के उ व और व यमान होने के लये पू व अपे त दशाय पु तकालय के व यमान होने के लये कु छ पूव अपे त दशाय ह जो न नानुसार ह: (1) सा ह य का अ भले खत व प म व यमान होना और अ भले खत होना; (2) व यमान अ भले खत सा ह य उस गुणव ता का होना चा हये िजसको संर त कया जा सके; (3) जन साधारण का सा र होना; (4) अ भले खत सा ह य को यि तगत अ भधारण से परे जाने के वचार क वीकृ त; और (5) पु तकालय क थापना और अनुर ण करके अपने ोत को समुदाय वारा उपयोग करने क सहम त। 12 इसम से अि तम सवा धक मह वपूण है। सरल श द म कहा जा सकता है क कसी भी दे श अथवा समाज म पु तकालय के वकास के लये न नां कत दो नता त आव यक पूव अपे त अ नवायताय ह: 1. सब कार क उ तम ेणी क स ती पु तक का त ु ग त से काशन; और 2. ान म जात के त सामािजक जागृ त का वकास। 6. पु तकालय के वकास के लये अनु कूल दशाय व तु त: पु तकालय के उ व और वकास क कहानी, समाज क सामािजक, सां कृ तक, आ थक और शै णक आव यकताओं को तउ त रत करती है। पु तकालय ने समाज क आव यकताओं को तउ त रत कया है। अनुभव दशाता है क अनेक दशाय जो हमारे समाज के वकास को भा वत करती ह, पु तकालय के वकास को भी भा वत करती ह। कु छ ऐसी दशाय है जो पु तकालय के अनुकू ल ह। इन दशाओं के अ तगत पु तकालय प ल वत होते ह। जे. के. गे स के अनुसार ये दशाय न नानुसार है: 1. RANGANATHAN (SR) : Reference Services and Bibliography. VI. P25 1. ऐसे राजनै तक और सामािजक प रप वतापूण समाज म जो ान के नकाय को संर त, प रसंच रत और व तृतीकरण क आव यकता को मा यता दान करते ह, पु तकालय प ल वत होते है। 2. सापे , शाि त और स ावना क अव ध िजसम सां कृ तक और बौ क या-कलाप के नयोजन का समय ा त होता है। 3. जब यि तय के पास अवकाश का समय और 'ल लत कलाओं को उगाने और अपने ान के सामा य भ डार को सु धारने' दोन के साधन ह । 4. बौ क सृजना मक और पाि डयतापूण या-कलाप क समयाव धय म जब वशाल और व भ नतापूण पा य- साम ी के सं ह क आव यकता, अ ययन और अनुसंधान के लये पड़ती है। 5. जब आ मो न त और भल भां त सू चत नाग रक व पर वृहद सामािजक बल दया जाता हो। 6. व वता क पुनजागृ त के दौरान जो ा फक साम ी के एक ीकरण और उन तक पहु ँ च के चार ओर केि त और आ त होती है। 7. जब सं थागत था य व और अव ध क सु र ा, था य व और स ता दान करती है। 8. जनसं या एक ीकरण के े और वशेष प से नगर य पयावरण म जो नेत ृ व , पु तकालय को आ थक साधन और उनके उपयोग के लये सां कृ तक और बौ क च के लये ो साहन दान कर सके। 9. जब आ थक स प नता, पया त यि तगत और समि टगत स पदा दान करती है और जन हत के लये दान क वृ त ो सा हत होती है। 13 10. उन अव धय म जब, जैसा कुछ पछल दशाि दय म हु आ है, आ थक वकास, रा य शि त और तर को उपयो गतावाद मू य के सू चना और ान के व तृत सारण पर आ त माना जाता है।'' 2 उपरो त सू ची म व णत दशाय भारत म कसी सीमा तक व यमान नह ं है। अत: कहा जा सकता है क पु तकालय के वकास के लये अनुकू ल दशाय उपल ध नह ं ह। 7. भारत म पु तकालय के वकास के माग म बाधाय व तु त: भारत म पु तकालय के वकास म अनेक बाधाय ह िजनम से मु ख न नानुसार ह : 1. नर रता: नर रता उ मूलन क दशा म राजक य तर पर स य एवं सतत यास कये जा रहे ह क तु जन पु तकालय को अपे त मह व दान नह ं कया जा रहा है। इस स दभ म यहाँ यह कहना अनुपयु त नह ं होगा क जन पु तकालय के अभाव म आज सा र बनाये गये यि त कल पुन : नर रता के अंधकार पी गत म डू ब जायगे। इस लये सा रता काय म म सावज नक पु तकालय क भू मका को नकारा नह जाना चा हये। 2. सी मत आ थक साधन: भारत एक नधन दे श है। धन के अभाव म वां छत पु तकालय सेवा था पत करना क ठन है। सरकार का यान भी जनसाधारण क तीन ाथ मक आव यकताय - रोट , कपड़ा और मकान पर केि त रहता है। 3. पु तक , वशेष प से वै ा नक तथा तकनीक सा ह य का अभाव: भारतीय भाषाओं म पु तक का नता त अभाव है। यह अभाव वशेष प से वै ा नक और तकनीक सा ह य के े म ि टगोचर होता है। वैसे अब यह ि थ त बदल रह है। 4. जनसं या का बखराव: भारत क 70 तशत जनता सु द ूर ामीण े म छोटे -छोटे ाम और पुरब म नवास करती है। इन छोटे -छोटे ाम और पुरब म संतोषजनक पु तकालय सेवा केवल चल पु तकालय वारा दान क जा सकती है जो काफ ययसा य काय है। 5. लखने पढ़ने क पर परागत ढ़वाद व ध: पढ़ने लखने के त जनतं ा मक भावना का वकास नह ं हो सका है। ' थ और ान सवाथ ह' इस भावना का वकास नह ं हो सका है। जनसाधारण इसके त उदासीन है। 6. ि य क सामािजक ि थ त: भारत म म हलाओं का काय े घर क चार-द वार माना जाता है। अत: यह माना जाता है क उनको पढ़ने लखने क कोई आव यकता नह ं है। ऐसी ि थ त म लगभग आधी जनता के लये थ और पु तकालय क कोई आव यकता ह नह ं है। य य प अब इस वचारधारा म भी प रवतन हो रहा है। 2. GATES (Jean Key): Introduction to Librarianship. p.92-93 7. अ भ ेरणा का अभाव: कसी भी जन-क याण के काय के त लोग म कोई वशेष च नह ं है। अत: पु तकालय वकास को भी कोई बल ा त नह ं हो सका है। 14 8. पु तकालय चेतना का अभाव: हमारे दे श म नई-नई पु तक को पढ़ने के चाव का नता त अभाव है। अत: जनता पु तकालय अभाव को अनुभव नह ं करती और उनक थापना के लये कोई स य यास भी नह ं करती है। 9. सरकार पहल तथा सावज नक पु तकालय अ ध नयम का अभाव: हमार रा य सरकार इस े म कसी भी कार क पहल के त उ सु क नह ं ह। वतं ता के 50 वष के प चात भी केवल कु छ ह रा य म सावज नक पु तकालय अ ध नयम पा रत हो सके है और वह भी संतोषजनक नह ं है। अब प रि थ तयाँ बदल रह ह। य य प भारत म पु तकालय का वकास मंद ग त से हु आ है। भारत म राजनै तक ि ट से पु तकालय के वकास को न न ाथ मकता द गई है। इसका कारण यह है क भारत एक नधन दे श है और बेरोजगार और मु ा- फ त आ द सम याओं से सत है। ऐसी ि थ त म कोई भी सरकार इन सम याओं को हल करने को ह सव च ाथ मकता दे ती है। भारत म श ा क यव था करना रा य सरकार का दा य व है। अत: पु तकालय भी इसी प र ध म आते ह। भारत के कई रा य म जन पु तकालय अ ध नयम पा रत हो चु के है जहाँ पु तकालय वकास ती ग त से हो रहा है। जन पु तकालय वकास के लये पु तकालय अ ध नयम आव यक है। भारत म जन पु तकालय के लये धन दान करने वाले यि तय का भी अभाव ह रहा है। संयु त रा य अमे रका म इस ि ट से ए यू कॉरनेगी का नाम सव थम आता है। भारत को भी एक कॉरनेगी जैसे पु तकालय ेमी लोकोपकार यि त क पु तकालय वकास के लये ती आव यकता है। स भवत: भारतीय पु तकालय यवसाय ने समाज के नेताओं, उ योगप तय और जन हतै षय का समथन ा त करने के लये पया त और स य यास भी नह ं कये ह। अत: थाल यय और पु तकालय े मय को इसके लये आगे आना होगा। उनको 'पु तकालय - म ' का सु ढ़ समू ह न मत करना होगा जो पु तकालय क थापना के लये अनुकूल जनमत तैयार कर सक। यह काय पु तकालय संघ वारा रा य और े ीय तर पर करना होगा। 8. पु तकालय के वकास के कारक उपरो त वणन से प ट है क पु तकालय वकास के न नां कत कारक ह: 1. समाज क राजनै तक और सामािजक ि थरता; 2. उ च जीवन तर; 3. सा रता क उ च दर; 4. भल - भां त सं था पत पु तक यवसाय; 5. नगर य जनता का बड़े समू ह म नवास; 6. थानीय और रा य पर पराय; 7. ति ठत नाग रक का भाव; तथा 8. रा य, ादे शक और थानीय सरकार से ो साहन। 15 पु तकालय के वकास म राजनै तक, सामािजक और आ थक दशाय मह वपूण भू मका का नवहन करती है। भारत जैसे दे श म जनता सभी काय को करने के लये सरकार क ओर से पहल और समथन क अ भलाषी रहती है। 9. पु तकालय के कार आधु नक समाज म पु तकालय कई कार के होते ह। उनके मु य कार न नानुसार है: 1. जन पु तकालय 2. शै णक पु तकालय ( व यालयीन, महा व यालयीन और व व व यालयीन पु तकालय) 3. व श ट और शोध पु तकालय 4. रा य और रा य के य पु तकालय 9.1. जन पु तकालय (Public Libraries) जन पु तकालय जनोपयोग क सं था है। वैसे तो इनका अि त व पु तकालय के अि त व से ह जु ड़ा है। पर तु जन पु तकालय अवधारणा का वा त वक वकास जनतं के साथ हु आ और ' थ और सवाथ' क संक पना के साथ ानाजन म भी जनतं का युग आर भ हु आ। जन पु तकालय क प रभाषा बी. एस. रसल ने इस कार क , ''जन पु तकालय वा तव म जन साधारण के लये, जन साधारण वारा, जन सं थाय ह। यह सम त नाग रक के लये नःशु क सं थाय ह।" एल.आर.मकॉि वन ने अपनी सु स पु तक "Chance to read" म जन पु तकालय के पाँच आधारभू त स ांत को न नानुसार अं कत कया है: 1. जन पु तकालय सेवा दान करने के ावधान का उ तरदा य व उपयु त जम शासक य ा धकरण का है न क क ह ं नजी तथा वग य समूह का; 2. इनको इ ह ं ा धकरण वारा शा सत और व त दान कया जाना चा हये; 3. इन पु तकालय क सेवाय उ त समाज के सभी सद य को नःशु क ा त होनी चा हये; 4. जहाँ तक संभव हो सके उ त पु तकालय को उ त समाज के सभी सद य क आव यकताओं और चय क पू त करना चा हये; 5. यह पु तकालय केवल आ थक ि ट से ह नह ं अ पतु बौ क ि ट से भी वत होने चा हये अथात इनको न प होना चा हये और इनको सभी को पूण , नबाध और बना कसी भेद भाव के पा य-साम ी के उपयोग का समान अवसर दान करना चा हये।4 एक जन पु तकालय सम त जनता को बना कसी भेद-भाव के ( लंग, धम, रं ग एवं जा त) नःशु क श ा, सू चना, मनोरंजन और ेरणा दान करता है। भारतवष म वैसे तो नाम के अनेक जन पु तकालय ह पर तु वे वा तव म जन पु तकालय नह ं ह य क उनम उपरो त भेद वशेषताओं का सवथा अभाव है। हमारे दे श के अ धकांश जन पु तकालय अ भदान (च दा) पु तकालय ह। वे केवल इसी अथ म जन पु तकालय ह क जन साधारण उनका 16 उपयोग कर सकते ह पर तु शु क दे कर। हमारे दे श के जन पु तकालय संसार के अ य ग तशील दे श जैसे संयु त रा य अमर का तथा ेट टे न आ द से अभी लगभग एक शता द पीछे ह। य द हम अपने दे श क सवतो मुखी तभा को वक सत करना है तो शै णक, सां कृ तक, औ यो गक तथा राजनै तक जागरण के इस युग म जन पु तकालय के गठन तथा संचालन के लये स य यास करना अ य त आव यक है। कहने क आव यकता नह ं है क स चे अथ म जन पु तकालय तथा पु तकालय त (Library System) क थापना केवल सावज नक पु तकालय अ ध नयम पा रत करके ह क जा सकती है। एक जन पु तकालय म जन साधारण, छा , श क, शोधकता, यापार , मक, गृह णयाँ , अवकाश- ा त यि त और नवसा र आ द सभी आते ह और उसको उन सबक अ ययन आव यकताओं क पू त करने का यास करना चा हये। 9.2. शै णक पु तकालय (Academic Libraries) व यालयीन पु तकालय: छा और श क क अ ययन आव यकताओं क पू त करता है। व यालय एक े ठ श ा का आधार त भ है। इसी कार व यालयीन पु तकालय स पूण शै णक पु तकालय तं का आधार त भ है। एक व यालयीन पु तकालय म पर परागत पा य-साम ी पु तक और प -प काओं के अ त र त टे प रकाडस, मान च , चा स, ामोफोन रकाडस, फ स आ द का भी संकलन होना चा हये। श ण काय म यु त व- य साम ी व यालयीन पु तकालय का अंतरं ग भाग होना चा हये। हमारे दे श म व यालयीन पु तकालय क दशा संतोषजनक नह ं है और वह सवथा उपे त है। महा व यालयीन पु तकालय: महा व यालयीन पु तकालय भी मु यत: छा और श क क अ ययन आव यकताओं क पू त करते ह और महा व यालय के श ण काय म म स य भू मका अदा करत ह। भारत म वतं ता के उपरा त महा व यालयीन पु तकालय का वकास व व व यालय अनुदान आयोग के उदार अनुदान से हु आ है। फर भी अभी काफ कु छ करने को शेष है। व व व यालयीन पु तकालय: शै णक पु तकालय के शीष पर व व व यालयीन पु तकालय होते ह। यह व व व यालय- यव था का एक आव यक अंग है और इसको व वान ने ' व व व यालय के दय' के सं ा द है। महा व यालयीन और व व व यालयीन पु तकालय म आकार के अ त र त एक मु य अंतर उसका शोध काय पर बल दे ना है। 9.3. व श ट और शोध पु तकालय (Special and Research Library) एक व श ट पु तकालय कसी एक वषय या वषय के समू ह म व श ट करण ा त करता है। के.जी.बी. ने इसक प रभाषा करते हु ए लखा है, ''एक ऐसा पु तकालय जो कसी समूह वशेष को सेवा दान करता है जैसे कसी त ठान के कमचार , कसी शासक य वभाग के कमचार अथवा कसी यावसा यक या अनुसंधान के कमचार और सद य। 3. RUSSELL (BS): Libraries in the life of Nation.1943 4. Mc COLVIN(LR):Chance to Read: Public Libraries o f the world.1966 17 ऐसा पु तकालय आव यक प से सू चना से स बि धत होता है। एक सामा य और व श ट पु तकालय म मु य-मु य अ तर न नानुसार ह: 1. एक सामा य पु तकालय म मु यत: पु तक तथा साम यक काशन (Periodical Publications) का सं ह कया जाता है जब क व श ट पु तकालय म पा य-साम ी के प म मु यत: साम यक काशन, शोध तवेदन, मानक (Standards), पेटे स (Patents), व नदश (Specifications), सारांश (Abstracts) तथा अ य इसी कार क साम ी सं हत क जाती है। ऐसे पु तकालय म शै णक पु तकालय क अपे ाकृ त थ ं क सं या कम होती है। 2. सामा य तथा व श ट पु तकालय मे दत सेवा क कृ त मे अ तर होता है। सामा य पु तकालय मे थ अथात पा य-साम ी दान क जाती है जब क व श ट पु तकालय म 'सू चना' दान क जाती है। 3. उपरो त दो आधारभू त भ नताओं के कारण सामा य तथा व श ट पु तकालय म थ तथा साम यक काशन का यव थापन थाधार (Racks) पर कया जाता है जब क व श ट पु तकालय म सू चना के यव थापन के लये वशेष कार के ऊ वाकार केबीनेट (Vertical File cabinets), नि तय (Files) तथा स दूक आ द क आव यकता पड़ती है। सू चना को वग कृ त करने के लये वशेष कार के सू म वग करण (Depth Classification) क आव यकता पड़ती है। सू चीकरण का थान अनु मणीकरण (indexing) वारा ले लया जाता है। स दभ सेवा के थान पर पाठक को अनेक कार क अ य सेवाय जैसे साम यक अ भ यता सेवा (Current Awareness service=CAS),सू चना का चयना मक सारण (Selecting dissemination of information=SDI) आ द दान करनी पड़ती है। पाठक क सहायताथ अनुवाद सेवा तथा सारांशीकरण सेवा (Abstracting services) आ द को भी अपनाना पड़ता है। 4. व श ट पु तकालय म: (क) सं था पत वचार से कह ं अ धक नवजात वचार (Nascent thought) पर; (ख) वृहद (Macro) थ से कह ं अ धक अणु (Micro) थ पर; तथा (ग) सामा य (Generalist) पाठक से कह ं अ धक व श ट (Specialist) पाठक पर बल दया जाता है। एक व श ट पु तकालय अपने पतृ नकाय क सेवाथ अि त व म आता है। इसका उ े य अपने पतृ नकाय के या कलाप म सहयोगी बनना है और उनको ग त दान करना है। 9.4. रा य और रा य के य पु तकालय (National and State Central Library) एक रा य पु तकालय कसी रा का वशालतम पु तकालय होता है और रा य पु तकालय त के शीष पर ि थत होता है। कसी दे श का रा य पु तकालय उस दे श म उ पा दत सम त पु तक को भावी पी ढ़य के लाभाथ सं हत तथा सु र त रखने के लये तब रहता है। जी. चे डलर के अनुसार , ''जहाँ जन पु तकालय सम त थानीय समु दाय क 18 सेवा करते ह और शै णक पु तकालय श क और व या थय के उपयोग के लये सं था पत कये जाते ह, रा य पु तकालय का ावधान समू चे रा क चय को संतु ट करने के लये कया जाता है। भारत एक वशाल दे श है जो अनेक रा य म बंटा हु आ है। कसी सीमा तक जो ि थ त रा य पु तकालय क कसी रा म होती है, वह ि थ त कसी रा य म वहाँ के रा य के य पु तकालय क होती है। 10. पु तकालय के काय और आधु नक समाज म उनक भू मका सामा यत: पु तकालय के काय न नानुसार ह: (i) मानवता क सा हि यक और बो क उपलि धय को भावी पी ढ़य के उपयोगाथ सदै व सवदा को सु र त रखना। (ii) औपचा रक और अनौपचा रक श ा म स य भू मका। (iii) यि त व का सवागीण वकास करना। (iv) अवकाश के समय का सदुपयोग और व थ मनोरंजन दान करना। (v) आजीवन व श ा के सश त मा यम के प म काय करना। (vi) जात क सफलता और रा य, अ तरा य सहयोग, स ावना तथा एकता म वृ करने के लये काय करना। (vii) सामािजक प रवतन लाने का यास करना। 5. BAKEWELL(KGB): Special Library(in manual of library economy) 6. CHANDLER(G): Library of the modern world. 1965 (viii) न:शु क पु तकालय सेवा दान करना बना कसी भेदभाव के। (ix) इसका उपयोग जोर जबरद ती से नह ं वे छा से ह। (i) सा हि यक और बौ क उपलि धय का संर ण: आधु नक समय म मु यतः: रा य पु तकालय , रा य के य पु तकालय और अ य वशाल पु तकालय इस काय को स प न करते ह। पु तकालय, सं कृ त धरोहर के संर ण का काय करते ह। समाज को पु तकालय के इस काय समझना और मा यता दान करनी चा हये िजससे कसी भी ि ट से पु तकालय का मह व यून न हो सके। (ii) औपचा रक और अनौपचा रक श ा म स य भू मका: शै णक पु तकालय का आधारभू त काय औपचा रक श ा म स य भागीदार करना है। व यालयीन, महा व यालयीन और व व व यालयीन पु तकालय पा य- थ और सहायक थ का वशाल सं ह न मत करके औपचा रक श ा को ग त दान करते ह। कसी सीमा तक जन पु तकालय भी इस काय को स प न करते ह। भारत सरकार वारा सन ् 1988 म नई श ा नी त क घोषणा क गई िजसके उ े य न नानुसार ह: 19 1. कम सु वधा ा त वग को भी अ धक सु वधा ा त वग के साथ खड़ा कया जाये। इसके लये येक िजले के ामीण े म व यालय के प म नवोदय व यालय था पत कये जा रहे है। 2. सं थाओं को अ धक एक पता दान क जाये िजससे नौकरशाह का े सी मत हो सके और पार प रक भारतीय मू य को सु ढ़ता ा त हो सके। इसके लये रा य आधारभूत पा यचया का वकास कया जा रहा है। इसम समकाल न भारतीय राजनै तक, सामािजक और आ थक दशाओं से स बि धत पाठ को सि म लत कया जायेगा। 3. श ा म गुणा मक प रवतन लाया जा सके िजससे येक छा को वचारशील नाग रक बनाया जा सके। इस उ े य को ा त करने के लये 'बालक- न द ट' श ण का ताव है िजससे उसको सीखने के लये अ भ े रत कया जा सके। पर ा णाल म भी सु धार का ताव है। 4. ाथ मक श ा का सावभौमीकरण कया जा सके। इस उ े य को ा त करने के लये ाथ मक श ा शत तशत हो सके, इसके लये सव च ाथ मकता द जा रह है और इस शता द के अ त तक 15-35 वष क आयु समू ह म शत तशत सा रता का ल य नधा रत कया गया है। यहाँ कहने क आव यकता नह ं है क जब तक पु तकालय यव था को सु ढ़ नह ं बनाया जायेगा तब तक इस कार क नी त पूण प से सफल नह ं हो सकेगी। पु तकालय अनौपचा रक श ा म महती स य भू मका अदा करते ह। कोई भी यि त चाहे कतना भी साधन स प न य न हो आजीवन कसी श ण सं था म श ा ा त नह ं कर सकता है। जब क श ा एक सतत और आजीवन या है। दूसरे श द म येक यि त को अनौपचा रक श ा क आव यकता है िजसका एकमा सश त मा यम पु तकालय है। (iii) यि त व का सवागीण वकास: पु तकालय म सं हत पा य-साम ी का अ ययन करके कोई भी यि त अपने काय म द ता ा त करके यि तगत उ न त के साथ-साथ रा य ग त म सहायक स हो सकता है। (iv) अवकाश के समय का सदुपयोग: पु तकालय वारा जन साधारण को अपने अवकाश के समय का सदुपयोग और व थ मनोरं जन ा त होता है। इनके वारा सभी को न प प से सभी वषय पर आधु नकतम सू चना और पा य- साम ी ा त होती है। पि चम के दे श म 18वीं शता द के अ त म ऐसे अनेक पु तकालय था पत कये गये जो अ प शु क लेकर जनता को ह का-फु का सा ह य उपल ध कराते थे। भारत म भी अनेक ऐसे पु तकालय था पत कये गये और आज भी कायरत ह। आधु नक जन पु तकालय का भी एक मह वपूण काय जन साधारण को व थ मनोरं जन दान करना माना जाता है। (v) आजीवन व श ा का सश त मा यम: पु तकालय जन साधारण को आजीवन वश ा ा त करने म सहायक ह। संयु त रा य अमे रका म बे जा मन क लन वारा 18वीं शता द शता द के आर भ म 'समाज थालय' था पत करने का आ दोलन चलाया गया जो कसी यि त को वश ा ा त करने म सहायक स होते थे। य द समाज का कोई सद य 20 आ मो न त के लये व श ा का अ भलाषी है तो उसके लये पु तकालय ह एकमा ऐसी सं था है। (vi) जातं क सफलता और रा य, अ तरा य सहयोग, स ावना तथा एकता म वृ : जातं क सफलता एक बड़ी सीमा तक भल कार सू चत नाग रक व पर नभर करती है। जन पु तकालय इस दशा म मह वपूण भू मका अदा करते ह और जन साधारण को भल -भां त सू चत रखते ह िजससे वह अपने अ धकार और कत य का ठ क कार से नवहन कर सक। पु तकालय वारा पार प रक सहयोग तथा स ावना, रा य एकता, अ तरा य शाि त, स ावना और सहयोग क वृ होती है। यूने को ने कहा है बना सावज नक पु तकालय के सहयोग के कोई भी सह जात समाज म सफल नह ं हो सकता है और न ह बना शार रक एवं मान सक वत ता के। (vii) सामािजक प रवतन: भारतीय सं वधान म भारत के सम त नाग रक को याय, वतं ता और समानता दान करने और जन साधारण क अ भलाषाओं को पूण करना उ े य बनाया गया है। अत: इसका उ े य एक नई सामािजक यव था था पत करना है जहाँ सभी को याय, वतं ता और समानता ा त हो सके। पु तकालय इस सामािजक बदलाव क या म जन साधारण क अ भलाषाओं क पू त म सहायक स हो सकता है। एक जन पु तकालय बना कसी भेदभाव के सबको नःशु क थ और सू चना दान करता है। अत: एक जन पु तकालय उपयु त थ और सूचना दान करके क ह ं समू ह वशेष के भेद-भावपूण यवहार का तरोध करने के लये जन साधारण के ि टकोण को भा वत कर सकता है। एक जन पु तकालय श ा क समानता दान कर समाज क सम याओं का नराकरण तु त करने म सहायक स हो सकता है। उसके वारा राजनै तक और सामािजक चेतना ा त क जा सकती है। इस कार पु तकालय सामािजक प रवतन लाने म सहायक स होता है। 11. सारांश पु तकालय एक सामािजक जन सं था है। वह कसी भी शै णक काय म का अंतरं ग अंग ह। एक जन पु तकालय नर तर समाज-क याण म रत रहते हु ए बना कसी भेद-भाव के सभी को न: शु क ान वत रत करता है और मानवता क सा हि यक और बौ क उपलि धय को आगामी पी ढ़य के उपयोगाथ हे तु सदै व सवदा को सुर त रखता है। प हले पु तकालय का मु य काय थ का प रर ण माना जाता था। अब उनके प रर ण के साथ उपयोग को अ धका धक ग त दे ना माना जाता है। पु तकालय के उ व और व यमान होने के लये कु छ पूव अपे त और अनुकू ल दशाय ह। भारत म शनै:-शनै: उन दशाओं का नमाण हो रहा है। इस पुनीत काय म सरकार और जनता को बढ़ कर आगे आना चा हये। पु तकालय कई कार के होते ह जैसे -जन पु तकालय, शै णक पु तकालय, व श ट तथा शोध पु तकालय और रा य एवं रा य के य पु तकालय आ द। समाज नमाण म इनक अपनी महती भू मका है। आधु नक पु तकालय एक ज टल सं था है और उसका काय तथा भू मका समाज को नता त उपयोगी ह। 21 12. अ यासाथ न 1. 'पु तकालय एक सामािजक जन सं था है।' इस कथन क समी ा करते हु ए बताइये क पु तकालय कस कार समाज क बौ क मांग को पूरा करते ह। 2. आधु नक पु तकालय क अवधारणा को प ट क िजये और पु तकालय का उ व और व यमान होने के लये पूव अपे त दशाओं का वणन क िजये। 3. भारत म पु तकालय वकास के माग म या बाधाय ह? पु तकालय वकास के कारक का वणन क िजये। 4. पु तकालय के व भ न कार का वणन करते हु ए, उनके काय और समाज म उनक भू मका का वणन किजये। 13. पा रभा षक श दावल 1. अनौपचा रक श ा (Informal Education): ऐसी श ा से ता पय है जो कसी श ण सं था म श क के मा यम से ा त न क जाकर वयं अ य कसी सावज नक मा यम से ा त क जाती है। 2. अणु थ (Micro documents): ऐसे लेख जो आकार म छोटे होते ह जैसे प - प काओं म लेख, पेटे स, मानक (standard), शोध तवेदन आ द। 3. औपचा रक श ा (Formal Education): वह श ा जो कसी यि त दारा श क के मा यम से कसी श ण सं था से ा त क जाती है। 4. पु तकालय त (Library System): एक ऐसी यव था को कहते ह िजसम व भ न पु तकालय अलग-अलग न होकर पर पर स ब होते ह। 5. पा डु ल पयाँ (Manuscripts): ह त ल खत थ। 6. व श ट पाठक (Specialist Reader): ऐसा पाठक जो कसी वश ट वषय का वशेष होता है और अपने वषय पर सम पा य-साम ी का अ भलाषी होता है। 7. वृहद थ (Macro Document): वशाल थ जैसे पु तक आ द। 8. सामा य पाठक (Generalist Reader): जो कसी एक व श ट वषय का वशेष नह ं होता और कई वषय पर सामा य पा य-साम ी का अ भलाषी होता है। 14. व तृत अ ययनाथ थसू ची 1. अ वाल, यामसु दर, पु तकालय और समाज, जयपुर, आर.बी.एस.ए. पि लशस, 1994 2. Carnovsky, L and Martin, L, Ed: Library in the Community. 3. Gerard, D:Libraries in Society. 4. Krishan kumar : Library Organisation. 5. McColvin, L.R. : Chance to Read: Public Libraries of the World. 6. Ranganathan, S.R. : Library manual. 22 7. शमा, पा डेय सू रतकांत, पु तकालय और समाज, नई द ल , थ अकादमी, 1995. 8. White, C: Base of Mordern Librarianship. 23 इकाई- 2: पु तकालय व ान के पंच सू (Five Laws of Library Science) उ े य इस इकाई के न न ल खत उ े य ह - 1. पु तकालय व ान के पंच सू के मह व से प र चत होना, 2. पु तकालय के पंच सू को जानना और उनके संदेश एवं न हताथ को समझना, 3. पु तकालय सेवा के नयोजन, संचालन एवं ब धन म इन सू क भू मका को समझना, 4. आव यकता पड़ने पर इन पंच सू को ायो य करके सम याओं का समाधान करना। संरचना 1. वषय वेश 2. पंच सू (Five Laws) 2.1. थम सू : थ उपयोगाथ ह (Book are for use) 2.2 वतीय सू : थ सवाथ ह/ येक पाठक को उसका अभी ट थ ा त हो (Book are for all/Every Reader his/her book) 2.3 तृतीय सू : येक थ को उसको उपयु त पाठक ा त हो (Every Book its Reader) 2.4 चतुथ सू : पाठक का समय बचाओ (Save the time of Reader) 2.5 पंचम सू : पु तकालय एक वकासशील सं था है (Library is a Growing Organisation) 3. सारांश 4. अ यासाथ न 5. व तृत अ ययनाथ थ-सू ची 1. वषय वेश पु तकालय व ान के सू म पंच सं त आधारभूत कथन समा व ट ह। इनम न हत वचारो क प टता और दं भगता वा तव म उ लेखनीय है। वैसे यह कथन अ यंत सरल ि टगोचर होते ह। पर तु वा तव म अ यंत ज टल ह। ये- पु तकालय तथा सू चना व ान के श ण के लये मागदशन दान करते ह। ये पु तकालय के आधारभू त सू ह जो पु तकालय व ान के सै ाि तक प को एक कृ त करने के लये युि तपूवक कथन दान करते ह। इनक सहायता से हम वयं स स ा त (Postulates), उपसू (Canons) और स ा त क न पि त कर सकते ह जो पु तकालय तथा सू चना व ान के व भ न े म ायो य होते ह। ये सू पु तकालय व ान क व भ न शाखाओं के श ण के लये भी उपयोगी स हु ए ह 24 और पु तकालय तथा सू चना व ान के या वयन म भी मागदशन दान करते ह। इस कार सै ाि तक और या मक प के वकास म भी इनका भाव रहा है। ये सू भ व य म भी ेरणा और मागदशन के ोत रहगे। पु तकालय व ान के येक श क, छा और थालयी को इनके न हताथ पर वचार करना चा हये। 2. पंच सू (Five Laws) पु तकालय व ान के पंच सू का तपादन भारत म पु तकालय आ दोलन के जनक शयाल रामामृत रं गनाथन ने कया। रं गनाथन एक सव कृ ट पु तकालय वै ा नक थे। आपने पु तकालय व ान के व भ न े म वै ा नक व ध को ायो य कया और इस उ े य के लये उ होन आदशक स ा त का तपादन कया िजनको सू (Laws), उपसू (Canons) और स ा त (Principles) का नाम दया है। आपने सू , उपसू और स ा त नामक श द का उपयोग एक वशेष स दभ म कया है: (i) सू (laws): मु य वग के स दभ म जैसे अथशा , भौ तक , रसायन और पु तकालय व ान आ द। (ii) उपसू (Canons): मु य वग के वभाजन के थम म म जैसे वग करण, सू चीकरण आद (iii) स ा त (Principles): मु य वग के वभाजन के वतीय म तथा बाद के म म जैसे वग करण म मु ख अनु म (Facet Sequence) रं गनाथन ने सन ् 1924 म ह पु तकालय व ान के पंच सू क पकड़ कर ल थी। पर तु उनका अ भ यि तकरण 1928 म हो सका। सन ् 1931 म "Five Laws of Library Science" के नाम से उनका काशन हु आ। यह एक वरे य थ (classic) है जो पंच सू और उनके न हताथ को व तार से व णत करता है। यह सू पु तकालय व ान को वै ा नक अ भगम दान करते ह। काला तर म रं गनाथन ने इन सू को अपनी सम त रचनाओं म ायो य कया और यह पु तकालय व ान पी वशाल भवन के पाँच त भ बन गये िजन पर वह था पत है। ये पंच सू पु तकालय व ान क आधार शला ह और पु तकालय व ान, पु तकालय सेवा और पु तकालय यवसाय क कसी भी सम या के नराकरण हे तु ायो य ह। सं ेप म हम कह सकते ह क इनम भूत , वतमान और भ व य के सम त पु तकालय यवहार सि न हत ह। नवागत यवहार के लये भी यह सदै व ायो य ह। ये सू न नानुसार है: 1. थ उपयोगाथ ह (Book are for use) 2. थ सवाथ ह/अथवा येक पाठक को उसका अभी ट थ ा त हो (Books are for all/or Every Reader his/her book) 3. येक थ को उसको उपयु त पाठक ा त हो (Every Book its Reader) 4. पाठक का समय बचाओ (Save the time of the Reader) 25 5. पु तकालय एक वकासशील सं था है (Library is a Growing Organisation) ट पणी : वतमान संग म अं ेजी के श द "book" के थान पर ''document" श द का उपयोग अ धक समीचीन होगा य क यह व तृत भाव का योतक है। पॉ लन ए. अथटन ने इन पंच सू का समालोचा मक पर ण अपने सु व यात थ "Putting Knowledge to Work" म कया है। 2.1. थम सू : थ उपयोगाथ ह (Books are for Use) पु तकालय व ान का थम सू एक अ यंत सरल कथन है जो व प ट है और सभी लोग इससे सहमत ह गे। गु दे व रवी नाथ टै गोर क राय म भी '' कसी पु तकालय का मह व पा य-साम ी के उपयोग व तार से न क थ क ा मक (Staggering) सं या से नण त होता है।'' 1 यवहार म इस सू क ाचीन काल म और म यकाल म पूणत: उपे ा होती रह थी, पु तकालय को थ का भ डार गृह माना जाता था और थालयी का मु ख काय थ का 'प रर ण' होता था। वह थ का उपयोग करने के लये जनसाधारण को त नक भी ो सा हत नह ं करता था। दूसरे श द म थ के 'उपयोग' का प 'गौण' और 'सु र ा' का प ' बल' होता था। इसका मु य कारण थ का मू यवान, अल य (rare) तथा अ ा य होना था। मु ण के आ व कार से उपरो त ि थ त समा त हो गई और थ मू यवान, अल य और अ ा य नह ं रहे । अब अनेक ग तशील और वक सत दे श म पु तकालय स ब धी ि टकोण म ाि तकार प रवतन हो गया है। पर तु कह -ं कह ं अभी भी पुराने ि टकोण म प रवतन नह ं हु आ है जो दुभा यपूण है। आज नःशु क जन पु तकालय सेवा दान करना रा य और सरकार का आव यक काय माना जाता है। आधु नक पु तकालय थ का अजन, तु तीकरण (Processing) आ द उनके उपयोगाथ हे तु तु त करते ह। पु तकालय म अबाध वे य णाल (Open Access System) अपनायी जाने लगी है। थ पाठक के घर भेजे जाते ह। चल पु तकालय सेवा संचा लत क जाती है। आधु नक पु तकालय का दा य व येक स भा य पाठक को वा त वक पाठक और पु तकालय आने का अ य त जान है। थम सू ने पु तकालय से स बि धत न नां कत बात को मु ख प से भा वत कया है और उनम आमू ल-चू ल प रवतन कर दया है: 1. पु तकालय भवन का थान नधारण (Location) और नमाण; 2. पु तकालय कायकाल (Library Hours) 3. पु तकालय उप कर और साज-स जा (Furniture and Equipments) 1. TAGORE (RN): Function of a Library (Address as Chairman, Reception Committee, All India Library held at Calcutta in 1938). 4. पु तकालय के नयम- व नयम (Rules-regulation) 5. पु तकालय कमचार गण (Staff) 6. थ चयन (Book Selection) 26 7. नधानी यव थापन (Shelf Arrangement) और उ च वार णाल (Open Access System) 8. संदभ सेवा (Reference Service) 9. अनुर ण काय (Maintenance Work) 1. पु तकालय भवन का थान नधारण (Location) और नमाण सामा यत: यह मा यता है क पु तकालय भवन का नमाण शा त तथा नरापद थान पर होना च हये। इससे पु तकालय म शा त वातावरण क थापना होगी, केवल अ ययनशील, व यानुरागी यि त ह पु तकालय म आयगे और पा य-साम ी सु र त रहे गी। पर तु थम सू अथात थ के उपयोग क ि ट से यह वचार ामक तथा ु टपूण है। य द थ का अ धका धक उपयोग वां छत है तो जन पु तकालय भवन नमाण ऐसे थान पर होना चा हये जहाँ जनसाधारण सु वधापूवक पहु ँ च सके अथवा ?

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