Chapter 7: जीव जनन कैसे करते हैं PDF
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This document details different methods of reproduction in living organisms. It examines various biological processes involved in reproduction and the importance of diversity in reproduction. The text delves into the specifics of reproduction in single-celled and multicellular organisms, and explores themes of DNA replication and cell division.
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अध्याय 7 जीव जनन कै से करते हैं जी वों के जनन की क्रिया-विधि पर चर्चा करने से पर्वू आइए, हम एक मल ू भतू प्रश्न करें –...
अध्याय 7 जीव जनन कै से करते हैं जी वों के जनन की क्रिया-विधि पर चर्चा करने से पर्वू आइए, हम एक मल ू भतू प्रश्न करें – कि जीव जनन क्यों करते हैं? वास्तव में पोषण, श्वसन अथवा उत्सर्जन जैसे आवश्यक जैव-प्रक्रमों की तल ु ना में किसी व्यष्टि (जीव) को जीवित रहने के लिए जनन आवश्यक नहीं है। दसू री ओर, जीव को सतं ति उत्पन्न करने के लिए अत्यधिक ऊर्जा व्यय करनी पड़ती है। फिर जीव उस प्रक्रम में अपनी ऊर्जा व्यर्थ क्यों करे , जो उसके जीवित रहने के लिए आवश्यक नहीं है? कक्षा में इस प्रश्न के सभं ावित उत्तर खोजना अत्यंत रोचक होगा। इस प्रश्न का जो भी उत्तर हो, परंतु यह स्पष्ट है कि हमें विभिन्न जीव इसीलिए दृष्टिगोचर होते हैं, क्योंकि वे जनन करते हैं। यदि वह जीव एकल होता तथा कोई भी जनन द्वारा अपने सदृश व्यष्टि उत्पन्न नहीं करता, तो संभव है कि हमें उनके अस्तित्व का पता भी नहीं चलता। किसी प्रजाति में पाए जाने वाले जीवों की विशाल संख्या ही हमें उसके अस्तित्व का ज्ञान कराती है। हमें कै से पता चलता है कि दो व्यष्टि एक ही प्रजाति के सदस्य हैं? सामान्यतः हम एेसा इसलिए कहते हैं, क्योंकि वे एकसमान दिखाई देते हैं। अतः जनन करने वाले जीव संतति का सृजन करते हैं जो बहुत सीमा तक उनके समान दिखते हैं। 7.1 क्या जीव पूर्णतः अपनी प्रतिकृति का सज ृ न करते हैं? विभिन्न जीवों की अभिकल्प, आकार एवं आकृ ति समान होने के कारण ही वे सदृश प्रतीत होते हैं। शरीर का अभिकल्प समान होने के लिए उनका ब्लूप्रिंट भी समान होना चाहिए। अतः अपने आधारभतू स्तर पर जनन जीव के अभिकल्प का ब्लूप्रिंट तैयार करता है। कक्षा 9 में आप पढ़ चक ु े हैं कि कोशिका के कें द्रक में पाए जाने वाले गणु सत्ू रों के डी.एन.ए.–DNA (डि. आक्सीराइबोन्यूक्लीक अम्ल) के अणओ ु ं में आनवु ंशिक गणु ों का संदश े होता है, जो जनक से संतति पीढ़ी में जाता है। कोशिका के कें द्रक के डी.एन.ए. में प्रोटीन सश्ले ं षण हेतु सचू ना निहित होती है। इस संदश े के भिन्न होने की अवस्था में बनने वाली प्रोटीन भी भिन्न होगी। विभिन्न प्रोटीन के कारण अतं तः शारीरिक अभिकल्प में भी विविधता होगी। अतः जनन की मल ू घटना डी.एन.ए. (DNA) की प्रतिकृ ति बनाना है। डी.एन.ए. की प्रतिकृ ति बनाने के लिए कोशिकाएँ विभिन्न रासायनिक क्रियाओ ं का उपयोग करती हैं। जनन कोशिका में इस प्रकार डी.एन.ए. की दो प्रतिकृ तियाँ बनती हैं तथा उनका एक-दसू रे से अलग होना आवश्यक 2024-25 Chapter 7.indd 125 30-11-2022 12:07:51 है। परंतु डी.एन.ए. की एक प्रतिकृ ति को मल ू कोशिका में रखकर दसू री प्रतिकृ ति को उससे बाहर निकाल देने से काम नहीं चलेगा, क्योंकि दसू री प्रतिकृ ति के पास जैव-प्रक्रमों के अनरु क्षण हेतु संगठित कोशिकीय संरचना तो नहीं होगी। इसलिए डी.एन.ए. की प्रतिकृ ति बनने के साथ-साथ दसू री कोशिकीय सरं चनाओ ं का सृजन भी होता रहता है। इसके बाद डी.एन.ए. की प्रतिकृ तियाँ विलग हो जाती हैं। परिणामतः एक कोशिका विभाजित होकर दो कोशिकाएँ बनाती है। यह दोनों कोशिकाएँ यद्यपि एकसमान हैं, परंतु क्या वे पर्णू रूपेण समरूप हैं? इस प्रश्न का उत्तर इस बात पर निर्भर करता है कि प्रतिकृ ति की प्रक्रियाएँ कितनी यथार्थता से सपं ादित होती हैं। कोई भी जैव-रासायनिक प्रक्रिया पर्णू रूपेण विश्वसनीय नहीं होती। अतः यह अपेक्षित है कि डी.एन.ए. प्रतिकृ ति की प्रक्रिया में कुछ विभिन्नता आएगी। परिणामतः बनने वाली डी.एन.ए. प्रतिकृ तियाँ एकसमान तो होंगी, परंतु मौलिक डी.एन.ए. का समरूप नहीं होंगी। हो सकता है कि कुछ विभिन्नताएँ इतनी उग्र हों कि डी.एन.ए. की नई प्रतिकृ ति अपने कोशिकीय संगठन के साथ समायोजित नहीं हो पाए। इस प्रकार की संतति कोशिका मर जाती है। दसू री ओर डी.एन.ए. प्रतिकृ ति की अनेक विभिन्नताएँ इतनी उग्र नहीं होतीं। अतः संतति कोशिकाएँ समान होते हुए भी किसी न किसी रूप में एक दसू रे से भिन्न होती हैं। जनन में होने वाली यह विभिन्नताएँ जैव-विकास का आधार हैं, जिसकी चर्चा हम अगले अध्याय में करें गे। 7.1.1 विभिन्नता का महत्व अपनी जनन क्षमता का उपयोग कर जीवों की समष्टि पारितंत्र में स्थान अथवा निके त ग्रहण करते हैं। जनन के दौरान डी.एन.ए. प्रतिकृ ति का अविरोध जीव की शारीरिक संरचना एवं डिज़ाइन के लिए अत्यंत महत्वपर्णू है, जो उसे विशिष्ट निके त के योग्य बनाती है। अतः किसी प्रजाति (स्पीशीज़) की समष्टि के स्थायित्व का संबंध जनन से है। परंत,ु निके त में अनेक परिवर्तन आ सकते हैं, जो जीवों के नियंत्रण से बाहर हैं। पृथ्वी का ताप कम या अधिक हो सकता है, जल स्तर में परिवर्तन अथवा किसी उल्का पिंड का टकराना इसके कुछ उदाहरण हैं। यदि एक समष्टि अपने निके त के अनक ु ू ल है तथा निके त में कुछ उग्र परिर्वतन आते हैं तो एेसी अवस्था में समष्टि का समल ू विनाश भी संभव है, परंतु यदि समष्टि के जीवों में कुछ विभिन्नता होगी तो उनके जीवित रहने की कुछ संभावना है।ै अतः यदि शीेतोष्ण जल में पाए जाने वाले जीवाणओ ु ं की कोई समष्टि है तथा वैश्विक ऊष्मीकरण (global warming) के कारण जल का ताप बढ़ जाता है तो अधिकतर जीवाणु व्यष्टि मर जाएँगे, परंतु उष्ण प्रतिरोधी क्षमता वाले कुछ परिवर्त ही जीवित रहते हैं तथा वृद्धि करते हैं। अतः विभिन्नताएँ स्पीशीज की उत्तरजीविता बनाए रखने में उपयोगी हैं। प्रश्न ? 1. डी.एन.ए. प्रतिकृ ति का प्रजनन में क्या महत्त्व है? 2. जीवों में विभिन्नता स्पीशीज़ के लिए तो लाभदायक है, परंतु व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं है, क्यों? 126 विज्ञान 2024-25 Chapter 7.indd 126 30-11-2022 12:07:52 7.2 एकल जीवों में प्रजनन की विधि क्रियाकलाप 7.1 100 mL जल में लगभग 10 g चीनी को घोलिए। एक परखनली में इस विलयन का 20 mL लेकर उसमें एक चटु की यीस्ट पाउडर डालिए। परखनली के मख ु को रुई से ढक कर किसी गर्म स्थान पर रखिए। 1 या 2 घंटे पश्चात, परखनली से यीस्ट-संवर्ध की एक बँूद स्लाइड पर लेकर उस पर कवर-स्लिप रखिए। सक्ू ष्मदर्शी की सहायता से स्लाइड का प्रेक्षण कीजिए। क्रियाकलाप 7.2 डबल रोटी के एक टुकड़े को जल में भिगोकर ठंडे, नम तथा अँधरे े स्थान पर रखिए। आवर्धक लेंस की सहायता से स्लाइस की सतह का निरीक्षण कीजिए। अपने एक सप्ताह के प्रेक्षण कॉपी में रिकॉर्ड कीजिए। यीस्ट की वृद्धि एवं दसू रे क्रियाकलाप में कवक की वृद्धि के तरीके की तल ु ना कीजिए तथा ज्ञात कीजिए कि इनमें क्या अतं र है। इस चर्चा के बाद कि जनन किस प्रकार कार्य करता है? आइए, हम जानें कि विभिन्न जीव वास्तव में किस प्रकार जनन करते हैं। विभिन्न जीवों के जनन की विधि उनके शारीरिक अभिकल्प पर निर्भर करती है। 7.2.1 विखंडन एककोशिक जीवों में कोशिका विभाजन अथवा विखडं न द्वारा नए जीवों की उत्पत्ति होती है। विखडं न के अनेक तरीके प्रेक्षित किए गए। अनेक जीवाणु तथा प्रोटोजोआ की कोशिका विभाजन द्वारा सामान्यतः दो बराबर भागों में विभक्त हो जाती है। अमीबा जैसे जीवों में कोशिका विभाजन किसी भी तल से हो सकता है। क्रियाकलाप 7.3 अमीबा की स्थायी स्लाइड का सक्ू ष्मदर्शी की सहायता से प्रेक्षण कीजिए। इसी प्रकार अमीबा के द्विखडं न की स्थायी स्लाइड का प्रेक्षण कीजिए। अब दोनों स्लाइडाें की तलु ना कीजिए। परंतु कुछ एककोशिक जीवों में शारीरिक संरचना अधिक संगठित होती है। उदाहरणतः कालाज़ार के रोगाण,ु लेस्मानिया में कोशिका के एक सिरे पर कोड़े के समान सक्ू ष्म संरचना होती है। एेसे जीवों में द्विखडं न एक निर्धारित तल से होता है। मलेरिया परजीवी, प्लैज्मोडियम जीव जनन कै से करते हैं 127 2024-25 Chapter 7.indd 127 30-11-2022 12:07:52 जैसे अन्य एककोशिक जीव एक साथ अनेक सतं ति कोशिकाओ ं में विभाजित हो जाते हैं, जिसे बहुखडं न कहते हैं। दसू री ओर यीस्ट कोशिका से छोटे मक ु ु ल उभर कर कोशिका से अलग हो जाते हैं तथा स्वतंत्र रूप से वृद्धि करते हैं जैसा कि हम क्रियाकलाप 7.1 में चित्र 7.1 (a) अमीबा में द्विखडं न देख चक ु े हैं। (a) (b) (c) (d) (e) (f) चित्र 7.2 चित्र 7.1 (b) लेस्मानिया में द्विखडं न प्लैज़्मोडियम में बहुखडं न 7.2.2 खंडन क्रियाकलाप 7.4 किसी झील अथवा तालाब जिसका जल गहरा हरा दिखाई देता हो और जिसमें तंतु के समान संरचनाएँ हों, उससे कुछ जल एकत्र कीजिए। एक स्लाइड पर एक अथवा दो तंतु रखिए। इन तंतओ ु ं पर ग्लिसरीन की एक बँदू डालकर कवर-स्लिप से ढक दीजिए। सक्ू ष्मदर्शी के नीचे स्लाइड का प्रेक्षण कीजिए। क्या आप स्पाइरोगाइरा तंतओ ु ं में विभिन्न ऊतक पहचान सकते हैं? सरल सरं चना वाले बहुकोशिक जीवों में जनन की सरल विधि कार्य करती है। उदाहरणतः स्पाइरोगाइरा सामान्यतः विकसित होकर छोटे-छोटे टुकड़ों में खडि ं त हो जाता है। यह टुकड़े अथवा खडं वृद्धि कर नए जीव (व्यष्टि) में विकसित हो जाते हैं। क्रियाकलाप 7.4 के प्रेक्षण के आधार पर क्या हम इसका कारण खोज सकते हैं? परंतु यह सभी बहुकोशिक जीवों के लिए सत्य नहीं है। वे सरल रूप से कोशिका- दर-कोशिका विभाजित नहीं होते। एेसा क्यों है? इसका कारण है कि अधिकतर बहुकोशिक जीव विभिन्न कोशिकाओ ं का समहू मात्र ही नहीं हैं। विशेष कार्य हेतु विशिष्ट कोशिकाएँ सगं ठित होकर ऊतक का निर्माण करती हैं तथा ऊतक संगठित होकर अगं बनाते हैं, शरीर में इनकी स्थिति भी निश्चित होती है। एेसी सजग व्यवस्थित परिस्थिति में कोशिका-दर-कोशिका विभाजन अव्यावहारिक है। अतः बहुकोशिक जीवों को जनन के लिए अपेक्षाकृत अधिक जटिल विधि की आवश्यकता होती है। 128 विज्ञान 2024-25 Chapter 7.indd 128 30-11-2022 12:07:54 बहुकोशिक जीवों द्वारा प्रयक्त ु एक सामान्य यक्ु ति यह है कि विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ विशिष्ट कार्य के लिए दक्ष होती हैं। इस सामान्य व्यवस्था का परिपालन करते हुए इस प्रकार के जीवों में जनन के लिए विशिष्ट प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं। क्या जीव अनेक प्रकार की कोशिकाओ ं का बना होता है? इसका उत्तर है कि जीव में कुछ एेसी कोशिकाएँ होनी चाहिए, जिनमें वृद्धि, क्रम, प्रसरण तथा उचित परिस्थिति में विशेष प्रकार की कोशिका बनाने की क्षमता हो। 7.2.3 पुनरुद्भवन (पुनर्जनन) पर्णू रूपेण विभेदित जीवों में अपने कायिक भाग से नए जीव के निर्माण की क्षमता होती है। अर्थात यदि किसी कारणवश जीव क्षत-विक्षत हो जाता है अथवा कुछ टुकड़ों में टूट जाता है तो इसके अनेक टुकड़े वृद्धि कर नए जीव में विकसित हो जाते हैं। उदाहरणतः हाइड्रा तथा प्लेनेरिया जैसे सरल प्राणियों को यदि कई टुकड़ों में काट दिया जाए तो प्रत्येक टुकड़ा विकसित होकर पर्णू जीव का निर्माण कर देता है। यह पनु रुद्भवन (चित्र 7.3) कहलाता है। पनु रुद्भवन (पनु र्जनन) विशिष्ट कोशिकाओ ं द्वारा सपं ादित होता है। इन कोशिकाओ ं के क्रमप्रसरण से अनेक कोशिकाएँ बन जाती हैं। कोशिकाओ ं के इस समहू से परिवर्तन के दौरान विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ एवं ऊतक बनते हैं। यह परिवर्तन बहुत व्यवस्थित रूप एवं क्रम से होता है, जिसे परिवर्धन कहते हैं। परंतु पनु रुद्भवन जनन के समान नहीं है, इसका मखु ्य कारण यह है कि प्रत्येक जीव के किसी भी भाग को काटकर चित्र 7.3 प्लेनेरिया में पनु रुद्भवन सामान्यतः नया जीव उत्पन्न नहीं होता। 7.2.4 मुकुलन हाइड्रा जैसे कुछ प्राणी पनु र्जनन की क्षमता वाली कोशिकाओ ं का उपयोग मक ु ु लन के लिए करते हैं। हाइड्रा में कोशिकाओ ं के नियमित विभाजन के कारण एक स्थान पर उभार विकसित हो जाता है। यह उभार (मक ु ु ल) वृद्धि करता हुआ नन्हे जीव में बदल जाता है तथा पर्णू विकसित होकर जनक से अलग होकर स्वतंत्र जीव बन जाता है। स्पर्शक मक ु ुल चित्र 7.4 हाइड्रा में मक ु ु लन जीव जनन कै से करते हैं 129 2024-25 Chapter 7.indd 129 30-11-2022 12:08:02 7.2.5 कायिक प्रवर्धन एेसे बहुत से पौधे हैं, जिनमें कुछ भाग जैसे जड़, तना तथा पत्तियाँ उपयक्त ु परिस्थितियों में विकसित होकर नया पौधा उत्पन्न करते हैं। अधिकतर जंतओ ु ं के विपरीत, एकल पौधे इस क्षमता का उपयोग जनन की विधि के रूप में करते हैं। परतन, कलम अथवा रोपण जैसी कायिक प्रवर्धन की तकनीक का उपयोग कृ षि में भी किया जाता है। गन्ना, गल ु ाब अथवा अगं रू इसके कुछ उदाहरण हैं। कायिक प्रवर्धन द्वारा उगाए गए पौधों में बीज द्वारा उगाए पौधों की अपेक्षा पष्पु एवं फल कम समय में लगने लगते हैं। यह पद्धति के ला, संतरा, गल ु ाब एवं चमेली जैसे उन पौधों को उगाने के लिए उपयोगी है, जो बीज उत्पन्न करने की क्षमता खो चक ु े हैं। कायिक प्रवर्धन का दसू रा लाभ यह भी है कि इस प्रकार उत्पन्न सभी पौधे आनवु ांशिक रूप से जनक पौधे के समान होते हैं। क्रियाकलाप 7.5 एक आलू लेकर उसकी सतह का निरीक्षण कीजिए। क्या इसमें कुछ गर्त दिखाई देते हैं? आलू को छोटे-छोटे टुकड़ों में इस प्रकार काटिए कि कुछ में तो यह गर्त हों और कुछ में नहीं। एक ट्रे में रुई की पतली पर्त बिछा कर उसे गीला कीजिए। कलिका (गर्त) वाले कलिका टुकड़ों को एक ओर तथा बिना गर्त वाले टुकड़ों को दसू री ओर रख दीजिए। अगले कुछ दिनाें तक इन टुकड़ों में होने वाले परिवर्तनों का प्रेक्षण कीजिए। ध्यान रखिए कि रुई में नमी बनी रहे। वे कौन से टुकड़े हैं, जिनसे हरे प्ररोह तथा जड़ विकसित हो रहे हैं? चित्र 7.5 कलिकाओ ं के साथ इसी प्रकार ब्रायोफिलम की पत्तियों की कोर पर कुछ कलिकाएँ विकसित होकर मृदा में गिर ब्रायोफिलम की पत्ती जाती हैं तथा नए पौधे (चित्र 7.5) में विकसित हो जाती हैं। क्रियाकलाप 7.6 एक मनीप्लांट लीजिए। इसे कुछ टुकड़ों में इस प्रकार काटिए कि प्रत्येक में कम से कम एक पत्ती अवश्य हो। दो पत्तियों के मध्य वाले भाग के कुछ टुकड़े काटिए। सभी टुकड़ों के एक सिरे को जल में डुबोकर रखिए तथा अगले कुछ दिनों तक उनका अवलोकन कीजिए। कौन से टुकड़ों में वृद्धि होती है तथा नई पत्तियाँ निकली हैं। आप अपने प्रेक्षणों से क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं। 130 विज्ञान 2024-25 Chapter 7.indd 130 30-11-2022 12:08:03 ऊतक सवं र्धन इसे भी जानिए! ऊतक संवर्धन तकनीक में पौधे के ऊतक अथवा उसकी कोशिकाओ ं को पौधे के शीर्ष के वर्धमान भाग से पृथक कर नए पौधे उगाए जाते हैं। इन कोशिकाओ ं को कृ त्रिम पोषक माध्यम में रखा जाता है, जिससे कोशिकाएँ विभाजित होकर अनेक कोशिकाओ ं का छोटा समहू बनाती हैं, जिसे कै लस कहते हैं। कै लस को वृद्धि एवं विभेदन के हार्मोन यक्त ु एक अन्य माध्यम में स्थानांतरित करते हैं। पौधे को फिर मिट्टी में रोप देते हैं, जिससे कि वे वृद्धि कर विकसित पौधे बन जाते हैं। ऊतक संवर्धन तकनीक द्वारा किसी एकल पौधे से अनेक पौधे सक्र ं मण-मक्त ु परिस्थितियों में उत्पन्न किए जा सकते हैं। इस तकनीक का उपयोग सामान्यतः सजावटी पौधों के संवर्धन में किया जाता है। 7.2.6 बीजाणु समासघं अनेक सरल बहुकोशिक जीवों में भी विशिष्ट जनन संरचनाएँ पाई जाती हैं। क्रियाकलाप बीजाणु 7.2 में ब्रेड पर धागे के समान कुछ सरं चनाएँ विकसित हुई थीं। यह राइजोपस का कवक जाल है। ये जनन के भाग नहीं हैं, परंतु ऊर्ध्व तंतओ ु ं पर सक्ू ष्म गचु ्छ (गोल) संरचनाएँ जनन में भाग लेती हैं। ये गचु ्छ बीजाणधु ानी हैं, जिनमें विशेष कोशिकाएँ अथवा बीजाणु पाए जाते (चित्र 7.6) हैं। यह बीजाणु वृद्धि करके राइजोपस के नए जीव उत्पन्न करते हैं। बीजाणु के चारों ओर एक मोटी भित्ति होती है, जो प्रतिकूल परिस्थितियों में उसकी रक्षा करती है, नम सतह के संपर्क में आने पर वह वृद्धि करने लगते हैं। अब तक जनन की जिन विधियों की हमने चर्चा की उन सभी में नई पीढ़ी का सृजन चित्र 7.6 राइजोपस में बीजाणु समासंघ के वल एकल जीव द्वारा होता है। इसे अलैंगिक जनन कहते हैं। प्रश्न ? 1. द्विखडं न, बहुखडं न से किस प्रकार भिन्न है? 2. बीजाणु द्वारा जनन से जीव किस प्रकार लाभान्वित होता है? 3. क्या आप कुछ कारण सोच सकते हैं, जिससे पता चलता हो कि जटिल संरचना वाले जीव पनु रुद्भवन द्वारा नई संतति उत्पन्न नहीं कर सकते? 4. कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है? 5. डी.एन.ए. की प्रतिकृ ति बनाना जनन के लिए आवश्यक क्यों है? 7.3 लैंगिक जनन हम जनन की उस विधि से भी परिचित हैं, जिसमें नई संतति उत्पन्न करने हेतु दो व्यष्टि (एकल जीवों) की भागीदारी होती है। न तो एकल बैल संतति बछड़ा पैदा कर सकता है, और न ही एकल मर्गी ु से नए चजू े उत्पन्न हो सकते हैं। एेसे जीवों में नवीन संतति उत्पन्न करने हेतु नर एवं मादा दोनों लिंगों की आवश्यकता होती है। इस लैंगिक जनन की सार्थकता क्या है? क्या अलैंगिक जनन की कुछ सीमाएँ हैं, जिनकी चर्चा हम ऊपर कर चक ु े हैं? जीव जनन कै से करते हैं 131 2024-25 Chapter 7.indd 131 30-11-2022 12:08:04 7.3.1 लैंगिक जनन प्रणाली क्यों? एकल (पैत्रक) कोशिका से दो संतति कोशिकाओ ं के बनने में डी.एन.ए. की प्रतिकृ ति बनना एवं कोशिकीय संगठन दोनों ही आवश्यक हैं। जैसा कि हम जान चक ु े हैं कि डी.एन.ए. प्रतिकृ ति की तकनीक पर्णू तः यथार्थ नहीं है, परिणामी त्रुटियाँ जीव की समष्टि में विभिन्नता का स्रोेत हैं। जीव की प्रत्येक व्यष्टि विभिन्नताओ ं द्वारा संरक्षित नहीं हो सकती, परंतु स्पीशीज़ की समष्टि में पाई जाने वाली विभिन्नता उस स्पीशीज़ के अस्तित्व को बनाए रखने में सहायक है। अतः जीवों में जनन की कोई एेसी विधि अधिक सार्थक होगी, जिसमें अधिक विभिन्नता उत्पन्न हो सके । यद्यपि डी.एन.ए. प्रतिकृ ति की प्रणाली पर्णू रूपेण यथार्थ नहीं है। वह इतनी परिशद्धु अवश्य है, जिसमें विभिन्नता अत्यंत धीमी गति से उत्पन्न होती है। यदि डी.एन.ए. प्रतिकृ ति की क्रियाविधि कम परिशद्ध ु होती, तो बनने वाली डी.एन.ए. प्रतिकृ तियाँ कोशिकीय संरचना के साथ सामजं स्य नहीं रख पातीं। परिणामतः कोशिका की मृत्यु हो जाती। अतः परिवर्त उत्पन्न करने के प्रक्रम को किस प्रकार गति दी जा सकती है? प्रत्येक डी.एन.ए. प्रतिकृ ति में नई विभिन्नता के साथ-साथ पर्वू पीढ़ियों की विभिन्नताएँ भी संग्रहित होती रहती हैं। अतः समष्टि के दो जीवों में संग्रहित विभिन्नताओ ं के पैटर्न भी काफी भिन्न होंगे, क्योंकि यह सभी विभिन्नताएँ जीवित व्यष्टि में पाई जा रही हैं, अतः यह सनिश्चि ु त ही है कि यह विभिन्नताएँ हानिकारक नहीं हैं। दो अथवा अधिक एकल जीवों की विभिन्नताओ ं के संयोजन से विभिन्नताओ ं के नए संयोजन उत्पन्न होंगे, क्योंकि इस प्रक्रम में दो विभिन्न जीव भाग लेते हैं। अतः प्रत्येक संयोजन अपने आप में अनोखा होगा। लैंगिक जनन में दो भिन्न जीवों से प्राप्त डी.एन.ए. को समाहित किया जाता है। परंतु इससे एक और समस्या पैदा हो सकती है। यदि संतति पीढ़ी में जनक जीवों के डी.एन.ए. का यगु ्मन होता रहे, तो प्रत्येक पीढ़ी में डी.एन.ए. की मात्रा पर्वू पीढ़ी की अपेक्षा दोगनु ी होती जाएगी। इससे डी.एन.ए. द्वारा कोशिकी संगठन पर नियंत्रण टूटने की अत्यधिक संभावना है। इस समस्या के समाधान के लिए हम कितने तरीके सोच सकते हैं? हम पहले ही जान चक ु े हैं कि जैसे-जैसे जीवों की जटिलता बढ़ती जाती है वैसे-वैसे ऊतकों की विशिष्टता बढ़ती जाती है। उपरोक्त समस्या का समाधान जीवों ने इस प्रकार खोजा जिसमें विशिष्ट अगं ों में कुछ विशेष प्रकार की कोशिकाओ ं की परत होती है, जिनमें जीव की कायिक कोशिकाओ ं की अपेक्षा गणु सत्ू रों की सखं ्या आधी होती है तथा डी.एन.ए. की मात्रा भी आधी होती है। यह कोशिका विभाजन की प्रक्रिया जिसे अर्द्धसत्ू री विभाजन कहते हैं, के द्वारा प्राप्त किया जाता है। अतः दो भिन्न जीवों की यह यगु ्मक कोशिकाएँ लैंगिक जनन में यगु ्मन द्वारा यगु ्मनज (जायगोट) बनाती हैं तो संतति में गणु सत्ू रों की संख्या एवं डी.एन.ए. की मात्रा पनु र्स्थापित हो जाती है। यदि यगु ्मनज वृद्धि एवं परिवर्धन द्वारा नए जीव में विकसित होता है तो इसमें ऊर्जा का भडं ार भी पर्याप्त होना चाहिए। अति सरल संरचना वाले जीवों में प्रायः दो जनन कोशिकाओ ं (यगु ्मकों) की आकृ ति एवं आकार में विशेष अतं र नहीं होता अथवा वे समाकृ ति भी हो सकते हैं। परंतु जैसे ही शारीरिक डिज़ाइन अधिक जटिल होता है, जनन कोशिकाएँ भी विशिष्ट हो जाती हैं। एक जनन-कोशिका अपेक्षाकृ त बड़ी होती है एवं उसमें भोजन का पर्याप्त भडं ार भी होता है, जबकि दसू री अपेक्षाकृ त छोटी एवं अधिक गतिशील होती है। गतिशील जनन-कोशिका को नर युग्मक 132 विज्ञान 2024-25 Chapter 7.indd 132 30-11-2022 12:08:04 तथा जिस जनन कोशिका में भोजन का भडं ार सचं ित होता है, उसे मादा युग्मक कहते हैं। अगले कुछ अनभु ागों में हम देखगें े कि इन दो प्रकार के यगु ्मकों के सृजन की आवश्यकता ने नर एवं मादा व्यष्टियों (जनकों) में विभेद उत्पन्न किए हैं तथा कुछ जीवों में नर एवं मादा में शारीरिक अतं र भी स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं। 7.3.2 पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन वर्तिकाग्र परागकोश ु े सर पंक तंतु आवृतबीजी (एजं ियोस्पर्म) के जननागं पषु ्प में अवस्थित वर्तिका होते हैं। आप पषु ्प के विभिन्न भागों के विषय में पहले स्त्रीकेसर दल (पंखड़ु ी) ही पढ़ चक ु े हैं– बाह्यदल, दल (पंखड़ु ी), पंक ु े सर एवं स्त्रीकेसर (चित्र 7.7)। पक ंु े सर एवं स्त्रीकेसर पषु ्प के जनन अडं ाशय बाह्य दल भाग हैं, जिनमें जनन-कोशिकाएँ होती हैं। पंखड़ु ी एवं बाह्यदल के क्या कार्य हो सकते हैं? जब पषु ्प में पक ंु े सर अथवा स्त्रीकेसर में से कोई एक चित्र 7.7 पषु ्प की अनदु रै ्घ्य काट जननांग उपस्थित होता है तो पषु ्प एकलिंगी (पपीता, तरबजू ) कहलाते हैं। जब पषु ्प में पक ंु े सर एवं स्त्रीकेसर दोनों उपस्थित होते हैं, (गड़ु हल, सरसों) तो उन्हें उभयलिंगी पषु ्प कहते हैं। पंक ु े सर नर जननांग है, जो परागकण बनाते हैं। परागकण सामान्यतः पीले हो सकते हैं। आपने देखा होगा कि जब आप किसी पषु ्प के पक ंु े सर को छूते हैं तब हाथ में एक पीला पाउडर लग जाता है। स्त्रीकेसर पषु ्प के कें द्र में अवस्थित होता है तथा यह पषु ्प का मादा जननांग है। यह तीन भागों से बना होता है। आधार पर उभरा-फूला भाग अडं ाशय है, मध्य में लंबा भाग वर्तिका है तथा शीर्ष भाग वर्तिकाग्र है, जो प्रायः चिपचिपा होता है। अडं ाशय में बीजांड होते हैं तथा प्रत्येक बीजांड में एक अडं -कोशिका होती है। परागकण द्वारा उत्पादित नर यगु ्मक अडं ाशय की अडं कोशिका (मादा यगु ्मक) से सल ं यित हो जाता है। जनन कोशिकाओ ं के इस यगु ्मन अथवा निषेचन से यगु ्मनज बनता है, जिसमें नए पौधे में विकसित होने की क्षमता होती है। अतः परागकणों को पंक ु े सर से वर्तिकाग्र तक स्थानांतरण की आवश्यकता होती है। यदि परागकणों का यह स्थानांतरण उसी पषु ्प के वर्तिकाग्र पर होता है तो यह स्वपरागण कहलाता है। परंतु एक पषु ्प के परागकण दसू रे पषु ्प पर स्थानांतरित होते हैं, तो उसे परपरागण कहते हैं। एक पषु ्प से दसू रे पषु ्प तक परागकणों का यह स्थानांतरण वाय,ु जल अथवा प्राणी जैसे वाहक द्वारा संपन्न होता है। परागकणों के उपयक्त ु , वर्तिकाग्र पर पहुचँ ने के पश्चात नर यगु ्मक को अडं ाशय में स्थित मादा-यगु ्मक तक पहुचँ ना होता है। इसके लिए परागकण से एक नलिका विकसित होती है तथा वर्तिका से होती हुई बीजांड तक पहुचँ ती है (चित्र 7.8)। निषेचन के पश्चात, यगु ्मनज में अनेक विभाजन होते हैं तथा बीजांड में भ्णरू विकसित होता है। बीजांड से एक कठोर आवरण विकसित होता है तथा यह बीज में परिवर्तित हो जाता है। अडं ाशय तीव्रता से वृद्धि करता है तथा परिपक्व होकर फल बनाता है। इस अतं राल में बाह्यदल, पंखड़ु ी, पकंु े सर, वर्तिका एवं वर्तिकाग्र प्रायः मरु झाकर गिर जाते हैं। क्या आपने कभी पषु ्प के किसी भाग जीव जनन कै से करते हैं 133 2024-25 Chapter 7.indd 133 04-03-2024 14:33:27 परागकण को फल के साथ स्थायी रूप से जड़ु े हुए देखा है? सोचिए, बीजों के बनने से पौधे को क्या वर्तिकाग्र लाभ है। बीज में भावी पौधा अथवा भ्णरू होता है, जो उपयक्त ु परिस्थितियों में नवोद्भिद में नर यगु ्मक विकसित हो जाता है। इस प्रक्रम को अक ं ु रण कहते हैं (चित्र 7.8)। पराग नली क्रियाकलाप 7.7 चने के कुछ बीजों को एक रात तक जल में भिगो दीजिए। अधिक जल को फें क दीजिए तथा भीगे हुए बीजों को गीले कपड़े से ढककर एक दिन के अडं ाशय लिए रख दीजिए। ध्यान रहे कि बीज सख ू ें नहीं। मादायगु ्मक बीजों को सावधानी से खोलकर उसके विभिन्न भागों का प्रेक्षण कीजिए। अपने प्रेक्षण की तल ु ना चित्र 7.9 से कीजिए, क्या आप सभी भागों को पहचान सकते हैं? चित्र 7.8 वर्तिकाग्र पर परागकणों का अक ं ु रण 7.3.3 मानव में लैंगिक जनन अब तक हम विभिन्न स्पीशीज़ में जनन की विभिन्न प्रणालियों की चर्चा करते रहे हैं। आइए, अब हम उस स्पीशीज़ के विषय में जानें जिसमें हमारी सर्वाधिक रुचि है, वह है मनषु ्य। मानव में लैंगिक जनन होता है। यह प्रक्रम प्रांकुर किस प्रकार कार्य करता है? (भावीप्ररोह) बीजपत्र मलू ांकुर आइए, अब स्थूल रूप से एक असबं द्ध बिंदु से प्रारंभ करते हैं। हम (खाद्य संग्रह) (भावी जड़) सभी जानते हैं कि आयु के साथ-साथ हमारे शरीर में कुछ परिवर्तन आते चित्र 7.9 अक ं ु रण हैं। आपने पहले भी कक्षा 8 में शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में सीखा। कक्षा 1 से 10 तक पहुचँ ते-पहुचँ ते हमारी लंबाई एवं भार बढ़ जाता है। हमारे दाँत जो गिर जाते हैं, दधू के दाँत कहलाते हैं तथा नए दाँत निकल आते हैं। इन सभी परिवर्तनों को एक सामान्य प्रक्रम वृद्धि में समहू बद्ध कर सकते हैं, जिसमें शारीरिक वृद्धि होती है। परंतु किशोरावस्था के प्रारंभिक वर्षों में, कुछ एेसे परिवर्तन होते हैं, जिन्हें मात्र शारीरिक वृद्धि नहीं कहा जा सकता। जबकि शारीरिक सौष्ठव ही बदल जाता है। शारीरिक अनपु ात बदलता है, नए लक्षण आते हैं तथा सवं ेदना में भी परिवर्तन आते हैं। इनमें से कुछ परिवर्तन तो लड़के एवं लड़कियों में एकसमान होते हैं। हम देखते हैं कि शरीर के कुछ नए भागों जैसे कि काँख एवं जाँघों के मध्य जननांगी क्षेत्र में बाल-गचु ्छ निकल आते हैं तथा उनका रंग भी गहरा हो जाता है। पैर, हाथ एवं चेहरे पर भी महीन रोम आ जाते हैं। त्वचा अक्सर तैलीय हो जाती है तथा कभी-कभी महँु ासे भी निकल आते हैं। हम अपने और दसू रों के प्रति अधिक सजग हो जाते हैं। दसू री ओर, कुछ एेसे भी परिवर्तन हैं, जो लड़कों एवं लड़कियों में भिन्न होते हैं। लड़कियों में स्तन के आकार में वृद्धि होने लगती है तथा स्तनाग्र की त्वचा का रंग भी गहरा होने लगता है। इस समय लड़कियों में रजोधर्म होने लगता है। लड़कों के चेहरे पर दाढ़ी-मछ ँू निकल आती है तथा 134 विज्ञान 2024-25 Chapter 7.indd 134 04-03-2024 14:35:05 उनकी आवाज़ फटने लगती है। साथ ही दिवास्वप्न अथवा रात्रि में शिश्न भी अक्सर विवर्धन के कारण ऊर्ध्व हो जाता है। ये सभी परिवर्तन महीनों एवं वर्षों की अवधि में मदं गति से होते हैं। ये परिवर्तन सभी व्यक्तियों में एक ही समय अथवा एक निश्चित आयु में नहीं होते। कुछ व्यक्तियों में ये परिवर्तन कम आयु में एवं तीव्रता से होते हैं, जबकि अन्य में मदं गति से होते हैं। प्रत्येक परिवर्तन तीव्रता से पर्णू भी नहीं होता। उदाहरणतः लड़कों के चेहरे पर पहले छितराए हुए से कुछ मोटे बाल परिलक्षित होते हैं, तथा धीरे -धीरे यह वृद्धि एक जैसी हो जाती है। फिर भी इन सभी परिवर्तनों में विभिन्न व्यक्तियों के बीच विविधता परिलक्षित होती है। जैसे कि हमारे नाक-नक्श अलग-अलग हैं, उसी प्रकार इन बालों की वृद्धि का पैटर्न, स्तन अथवा शिश्न की आकृ ति एवं आकार भी भिन्न होते हैं। यह सभी परिवर्तन शरीर की लैंगिक परिपक्वता के पहलू हैं। इस आयु में शरीर में लैंगिक परिपक्वता क्यों परिलक्षित होती है? हम बहुकोशिक जीवों में विशिष्ट कार्यों के सपं ादन हेतु विशिष्ट प्रकार की कोशिकाओ ं की आवश्यकता की बात कर चक ुे हैं। लैंगिक जनन में भाग लेने के लिए जनन कोशिकाओ ं का उत्पादन इसी प्रकार का एक विशिष्ट कार्य है तथा हम देख चक ु े हैं कि पौधों में भी इस हेतु विशेष प्रकार की कोशिकाएँ एवं ऊतक विकसित होते हैं। प्राणियों, जैसे कि मानव भी इस कार्य हेतु विशिष्ट ऊतक विकसित करता है। यद्यपि किसी व्यक्ति के शरीर में यवु ावस्था के आकार हेतु वृद्धि होती है, परंतु शरीर के ससं ाधन मखु ्यतः इस वृद्धि की प्राप्ति की ओर लगे रहते हैं। इस प्रक्रम के चलते जनन ऊतक की परिपक्वता मखु ्य प्राथमिकता नहीं होती। अतः जैसे-जैसे शरीर की सामान्य वृद्धि दर धीमी होनी शरू ु होती है, जनन-ऊतक परिपक्व होना प्रारंभ करते हैं। किशोरावस्था की इस अवधि को यौवनारंभ (puberty) कहा जाता है। अतः वे सभी परिवर्तन जिनकी हमने चर्चा की जनन-प्रक्रम से किस प्रकार संबद्ध हैं? हमें याद रखना चाहिए कि लैंगिक जनन प्रणाली का अर्थ है कि दो भिन्न व्यक्तियों की जनन कोशिकाओ ं का परस्पर संलयन। यह जनन कोशिकाओ ं के बाह्य-मोचन द्वारा हो सकता है जैसे कि पष्पी ु पौधों में होता है। अथवा दो जीवों के परस्पर सबं ंध द्वारा जनन कोशिकाओ ं के आतं रिक स्थानांतरण द्वारा भी हो सकता है, जैसे कि अनेक प्राणियों में होता है। यदि जंतओ ु ं को संगम के इस प्रक्रम में भाग लेना हो, तो यह आवश्यक है कि दसू रे जीव उनकी लैंगिक परिपक्वता की पहचान कर सकें । यौवनारंभ की अवधि में अनेक परिवर्तन जैसे कि बालों का नवीन पैटर्न इस बात का संकेत है कि लैंगिक परिपक्वता आ रही है। दसू री ओर, दो व्यक्तियों के बीच जनन कोशिकाओ ं के वास्तविक स्थानांतरण हेतु विशिष्ट अगं अथवा सरं चना की आवश्यकता होती है; उदाहरण के लिए— शिश्न के ऊर्ध्व होने की क्षमता। स्तनधारियों जैसे कि मानव में शिशु माँ के शरीर में लंबी अवधि तक गर्भस्थ रहता है तथा जन्मोपरांत स्तनपान करता है। इन सभी स्थितियों के लिए मादा के जननांगों एवं स्तन का परिपक्व होना आवश्यक है। आइए, जनन तंत्र के विषय में जानें। जीव जनन कै से करते हैं 135 2024-25 Chapter 7.indd 135 30-11-2022 12:08:10 शक्रा ु शय 7.3.3 (a) नर जनन तंत्र मत्रू जनन कोशिका उत्पादित करने वाले अगं एवं जनन कोशिकाओ ं नलिका मत्ू राशय को निषेचन के स्थान तक पहुचँ ाने वाले अगं , संयक्त ु रूप से, नर जनन तंत्र (चित्र 7.10) बनाते हैं। प्रोस्ट्रेट ग्रंथि नर जनन-कोशिका अथवा शक्रा ु णु का निर्माण वृषण में शिश्न होता है। यह उदर गहु ा के बाहर वृषण कोष में स्थित होते हैं। मत्रू मार्ग इसका कारण यह है कि शक्रा ु णु उत्पादन के लिए आवश्यक ताप शक्रव ु ाहिनी शरीर के ताप से कम होता है। टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन के उत्पादन एवं स्रवण में वृषण की भमि ू का की चर्चा हम पिछले अध्याय में कर चकु े हैं। शक्रा ु णु उत्पादन के नियंत्रण के अतिरिक्त टेस्टोस्टेरॉन वृषण लड़कों में यौवनावस्था के लक्षणों का भी नियंत्रण करता है। वृषण कोश उत्पादित शक्रा ु णओु ं का मोचन शक्रव ु ाहिकाओ ं द्वारा होता चित्र 7.10 है। ये शक्रवु ाहिकाएँ मत्ू राशय से आने वाली नली से जड़ु कर एक संयक्त ु नली बनाती है। अतः मानव का नर जनन तंत्र मत्रू मार्ग (urethra) शक्राु णओ ु ं एवं मत्रू दोनों के प्रवाह के उभय मार्ग है। प्रोस्ट्रेट तथा शक्रा ु शय अपने स्राव शक्रवु ाहिका में डालते हैं, जिससे शक्रा ु णु एक तरल माध्यम में आ जाते हैं। इसके कारण इनका स्थानांतरण सरलता से होता है साथ ही यह स्राव उन्हें पोषण भी प्रदान करता है। शक्रा ु णु सक्ू ष्म सरंचनाएँ हैं, जिसमें मखु ्यतः आनवु ंशिक पदार्थ होते हैं तथा एक लंबी पँछू होती है, जो उन्हें मादा जनन-कोशिका की ओर तैरने में सहायता करती है। 7.3.3 (b) मादा जनन तंत्र मादा जनन-कोशिकाओ ं अथवा अडं -कोशिका का निर्माण अडं ाशय में होता है। वे कुछ हार्मोन भी उत्पादित करती हैं। चित्र 7.11 को ध्यानपर्वू क देखिए तथा मादा जनन तंत्र के विभिन्न अगं ों को पहचानिए। लड़की के जन्म के समय ही अडं ाशय में हज़ारों अपरिपक्व अडं होते हैं। यौवनारंभ में इनमें से कुछ परिपक्व होने लगते हैं। दो में से एक अडं ाशय द्वारा अडं वाहिका प्रत्येक माह एक अडं परिपक्व होता है। महीन अडं वाहिका (फे लोपियन ट्यबू ) अथवा फे लोपियन ट्यबू द्वारा यह अडं कोशिका गर्भाशय तक अडं ाशय ले जाए जाते हैं। दोनों अडं वाहिकाएँ सयं क्त ु होकर एक लचीली गर्भाशय थैलेनमु ा संरचना का निर्माण करती हैं, जिसे गर्भाशय कहते हैं। गर्भाशय, ग्रीवा द्वारा योनि में खल ु ता है। ग्रीवा मैथनु के समय शक्रा ु णु योनि मार्ग में स्थापित होते हैं, जहाँ से ऊपर की ओर यात्रा करके वे अडं वाहिका तक पहुचँ योनि जाते हैं, जहाँ अडं कोशिका से मिल सकते हैं। निषेचित अडं ा विभाजित होकर कोशिकाओ ं की गेंद जैसी संरचना या भ्णरू चित्र 7.11 मानव का मादा जनन तंत्र बनाता है। भ्णरू गर्भाशय में स्थापित हो जाता है, जहाँ यह 136 विज्ञान 2024-25 Chapter 7.indd 136 30-11-2022 12:08:10 लगातार विभाजित होकर वृद्धि करता है तथा अगं ों का विकास करता है। हम पहले पढ़ चक ु े हैं कि माँ का शरीर गर्भधारण एवं उसके विकास के लिए विशेष रूप से अनक ु ू लित होता है। अतः गर्भाशय प्रत्येक माह भ्णरू को ग्रहण करने एवं उसके पोषण हेतु तैयारी करता है। इसकी आतं रिक पर्त मोटी होती जाती है तथा भ्णरू के पोषण हेतु रुधिर प्रवाह भी बढ़ जाता है। भ्णरू को माँ के रुधिर से ही पोषण मिलता है, इसके लिए एक विशेष संरचना होती है जिसे प्लैसेंटा कहते हैं। यह एक तश्तरीनमु ा सरं चना है, जो गर्भाशय की भित्ति में धँसी होती है। इसमें भ्णरू की ओर के ऊतक में प्रवर्ध होते हैं। माँ के ऊतकों में रक्तस्थान होते हैं, जो प्रवर्ध को आच्छादित करते हैं। यह माँ से भ्णरू को ग्लूकोज, अॉक्सीजन एवं अन्य पदार्थों के स्थानांतरण हेतु एक बृहद क्षेत्र प्रदान करते हैं। विकासशील भ्णरू द्वारा अपशिष्ट पदार्थ उत्पन्न होते हैं, जिनका निपटान उन्हें प्लैसेंटा के माध्यम से माँ के रुधिर में स्थानांतरण द्वारा होता है। माँ के शरीर में गर्भ को विकसित होने में लगभग 9 मास का समय लगता है। गर्भाशय की पेशियों के लयबद्ध संकुचन से शिशु का जन्म होता है। 7.3.3 (c) क्या होता है जब अंड का निषेचन नहीं होता? यदि अडं कोशिका का निषेचन नहीं हो तो यह लगभग एक दिन तक जीवित रहती है, क्योंकि अडं ाशय प्रत्येक माह एक अडं का मोचन करता है। अतः निषेचित अडं की प्राप्ति हेतु गर्भाशय भी प्रति माह तैयारी करता है। अतः इसकी अतं ःभित्ति मांसल एवं स्पोंजी हो जाती है। यह अडं के निषेचन होने की अवस्था में उसके पोषण के लिए आवश्यक है, परंतु निषेचन न होने की अवस्था में इस पर्त की भी आवश्यकता नहीं रहती। अतः यह पर्त धीरे -धीरे टूटकर योनि मार्ग से रुधिर एवं म्यूकस के रूप में निष्कासित होती है। इस चक्र में लगभग एक मास का समय लगता है तथा इसे ऋतुस्राव अथवा रजोधर्म कहते हैं। इसकी अवधि लगभग 2 से 8 दिनों की होती है। 7.3.3 (d) जनन स्वास्थ्य जैसा कि हम देख चक ु े हैं, लैंगिक परिपक्वता एक क्रमिक प्रक्रम है तथा यह उस समय होता है जब शारीरिक वृद्धि भी होती रहती है। अतः किसी सीमा (आशि ं क रूप से) तक लैंगिक परिपक्वता का अर्थ यह नहीं है कि शरीर अथवा मस्तिष्क जनन क्रिया अथवा गर्भधारण योग्य हो गए हैं। हम यह निर्णय किस प्रकार ले सकते हैं कि शरीर एवं मस्तिष्क इस मखु ्य उत्तरदायित्व के योग्य हो गया है? इस विषय पर हम सभी पर किसी न किसी प्रकार का दबाव है। इस क्रिया के लिए हमारे मित्रों का दबाव भी हो सकता है, भले ही हम चाहें या न चाहें। विवाह एवं संतानोत्पत्ति के लिए पारिवारिक दबाव भी हो सकता है। संतानोत्पत्ति से बचकर रहने का, सरकारी तंत्र की ओर से भी दबाव हो सकता है। एेसी अवस्था में कोई निर्णय लेना काफ़ी मश्कि ु ल हो सकता है। यौन क्रियाओ ं के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के विषय में भी हमें सोचना चाहिए। हम कक्षा 9 में पढ़ चक ु े हैं कि एक व्यक्ति से दसू रे व्यक्ति को रोगों का संचरण अनेक प्रकार से हो सकता है, क्योंकि यौनक्रिया में प्रगाढ़ शारीरिक संबंध स्थापित होते हैं। अतः इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है कि अनेक रोगों का लैंगिक संचरण भी हो सकता है। इसमें जीवाणु जनित, जैसे– गोनेरिया तथा सिफलिस एवं वाइरस सक्र ं मण जैसे कि मस्सा (Wart) तथा HIV-AIDS शामिल हैं। लैंगिक जीव जनन कै से करते हैं 137 2024-25 Chapter 7.indd 137 30-11-2022 12:08:10 क्रियाओ ं के दौरान क्या इन रोगों के संचरण का निरोध संभव है? शिश्न के लिए आवरण अथवा कंडोम के प्रयोग से इनमें से अनेक रोगों के सचं रण का कुछ सीमा तक निरोध सभं व है। यौन (लैंगिक) क्रिया द्वारा गर्भधारण की सभं ावना सदा ही बनी रहती है। गर्भधारण की अवस्था में स्त्री के शरीर एवं भावनाओ ं की माँग एवं आपर्ति ू बढ़ जाती है एवं यदि वह इसके लिए तैयार नहीं है तो इसका उसके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अतः गर्भधारण रोकने के अनेक तरीके खोजे गए हैं। यह गर्भरोधी तरीके अनेक प्रकार के हो सकते हैं। एक तरीका यांत्रिक अवरोध का है, जिससे शक्रा ु णु अडं कोशिका तक न पहुचँ सके । शिश्न को ढकने वाले कंडोम अथवा योनि में रखने वाली अनेक यक्ु तियों का उपयोग किया जा सकता है। दसू रा तरीका शरीर में हार्मोन संतल ु न के परिवर्तन का है, जिससे अडं का मोचन ही