Political Theory Concepts and Debates (Edited) PDF

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This document, Political Theory Concepts and Debates (Edited), explores fundamental concepts in political theory like liberty, equality, and justice. It delves into various perspectives, providing insights into the nuances of these ideas, along with discussion points and critical analyses of different viewpoints.

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1 राजनीतिक तिद्ाांि - अवधारणाएँ एवां तवचार इकाई-I: स्विांत्रिा क) स्वतंत्र ता: नकारात्मक और सकारात्मक ख) स्वतं त्रता, मुक्ति, स्वराज विचार: स्वतंत्र भाषण, अवभव्यक्ति और असहमवत इकाई - II: िमानिा क)...

1 राजनीतिक तिद्ाांि - अवधारणाएँ एवां तवचार इकाई-I: स्विांत्रिा क) स्वतंत्र ता: नकारात्मक और सकारात्मक ख) स्वतं त्रता, मुक्ति, स्वराज विचार: स्वतंत्र भाषण, अवभव्यक्ति और असहमवत इकाई - II: िमानिा क) अिसर की समानता और पररणाम की समानता बी) समतािाद: पृष्ठभूवम असमानताएं और विभेदक व्यिहार विचार: सकारात्मक कारर िाई इकाई - III: न्याय क) न्याय: प्रवियात्मक और मूल b) रॉल्स और उनके आलोचक विचार: न्याय का दायरा - राष्ट्रीय बनाम िै विक इकाई-IV: अतधकार क) अविकार: प्राकृवतक, नैवतक और कानूनी बी) अविकार और दावयत्व विचार: मानिाविकार - सािरभौवमकता या सां स्कृवतक सापेक्ष िाद इकाई - V: लोकिांत्र क) लोकतंत्र: विचार और व्यिहार ख) उदार लोकतंत्र और उसके आलोचक ग) बहुसंस्कृवतिाद और सवहष्णु ता विचार: प्रवतवनवित्व बनाम भागीदारी All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 2 प्रश्न 1 - िकारात्मक और नकारात्मक स्विांत्रिा के बीच अांिर कीतजए । यशायाह बतलिन स्विांत्रिा की तकि अवधारणा को वरीयिा दे िे हैं ? अथवा यशायाह बतलिन ने िकारात्मक और नकारात्मक स्विांत्रिा में भेद तकया है। क्या आप इििे िहमि हैं ? अपने उत्तर की पुति करने के तलए िकि दीतजए । उत्तर - पररचय 20िी ं सदी के राजनीवतक दार्रवनक यशायाह बतलिन (1909-97) ने अपने वनबं ि 'टू कॉन्से प्ट् ि ऑफ तलबटी' (1958) में दो प्रकार की स्वतंत्रता को प्रवतवष्ठत वकया। वजसे उन्ोंने नकारात्मक स्वतंत्रता और सकारात्मक स्वतंत्रता कहा। यशायाह बतलिन: स्विांत्रिा की अवधारणाएँ बवलरन के वलए, स्वतं त्रता एक सरल या सीिी अििारणा नही ं थी, बक्ति एक जविल और बहुआयामी अििारणा थी वजस पर अक्सर वििाद होता था और वजसे पररभावषत करना मुक्त िल था। िकारात्मक स्विांत्रिा: सकारात्मक स्वतंत्र ता की अििारणा में यह बुवनयादी विचार र्ावमल है वक हर व्यक्ति के आत्म का दो भाग होता है -उच्चतर आत्म और वनम्नतर आत्म। व्यक्ति का उच्चतर आत्म उसका तावकरक आत्म होता है और व्यक्ति के मुि वनम्नतर आत्म पर इसका प्रभुत्व होना चावहए। ऐसा होने पर ही कोई व्यक्ति सकारात्मक स्वतंत्र ता के अथर में या स्वतंत्र हो सकता है। बवलरन ने इस संबंि में वलखा है वक 'स्विांत्रिा शब्द का िकारात्मक अथि तकिी व्यक्ति की खुद अपना मातलक होने की इच्छा िे उत्पन्न होिा है। सकारात्मक स्वतंत्र ता का अथर यह नही ं है वक इसमें वकसी तरह की दखलंदाजी न हो। दरअसल, इसमें यह बात भी र्ावमल है वक व्यक्ति अपना मावलक हो और उसके उच्चतर आत्म का उसके वनम्नतर आत्म पर प्रभुत्व हो। All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 3 नकारात्मक स्विांत्रिा: यशायाह बतलिन नकारात्मक स्विांत्रिा की अवधारणा को वरीयिा दे िे हैं , इिमें उनके द्वारा शातमल तवचार कु छ इि प्रकार हैं : नकारात्मक स्वतंत्रता में 'नकारात्मक' र्ब्द इस बात का संकेत करता है वक यह व्यक्ति की आजादी को सीवमत करने िाले हर काम को नकारता है। आमतौर पर, इसे हस्तक्षेप या दखलंदाजी से आजादी के रूप में समझा जाता है। नकारात्मक स्विांत्रिा का दायरा इि िवाल के जवाब िे िय होिा है वक 'मैं वकस क्षेत्र का मावलक हूँ। बवलरन आगे कहते हैं वक 'यवद दू सरे मु झे िह काम करने से रोकते हैं , जो मैं उनके द्वारा न रोके जाने पर कर सकता था, तो मैं उस सीमा तक गैर आजाद हूँ। यवद इस क्षेत्र में दू सरे आदवमयों का एक न्यूनतम सीमा से ज़्यादा दख़ल हो गया है , तो यह कहा जा सकता है वक मे रा दमन हो रहा है या यह भी कहा जा सकता है वक मुझे दास बना वलया गया है। बहरहाल, बतलि न यह स्पि करिे हैं तक यवद कोई व्यक्ति वकसी लक्ष्य को हावसल करने में असमथर है , तो इसका अथर यह नही ं है वक िह आजाद नही ं है । उन्ोंने वलखा है वक 'केिल दू सरे लोगों द्वारा थोपी जाने िाली पाबंवदयाूँ ही मेरी आजादी को प्रभावित करती हैं । ' नकारात्मक स्विांत्रिा दो मुख्य पू विमान्यिाओां पर आधाररि है - (i) हर व्यक्ति सबसे बेहतर तरीके से अपना वहत जानता है। यह सूत्र इस मान्यता पर आिाररत है वक व्यक्ति तकर कर सकते हैं। इसवलए उनमें विचार-विमर्र करने और जानकाररयों के आिार पर सही विकल्प को चुनने की क्षमता होती है। (ii) राज्य की भूवमका बहुत ही सीवमत है। दरअसल, यह वपछले सूत्र का ही विस्तार है। चूूँवक व्यक्ति को तावकरक कर्त्ार माना गया है , इसवलए राज्य व्यक्ति के लक्ष्यों और उद्दे श्ों के बारे में फैसला नही ं कर सकता है। यशायाह बतलिन ने नकारात्मक स्विांत्रिा की अवधारणा को प्राथतमकिा दी। उन्ोंने तकर वदया वक प्राथवमक वचंता सरकारी हस्तक्षेप के माध्यम से सकारात्मक स्वतंत्रता को बढािा दे ने के प्रयास के बजाय व्यक्तियों को बाहरी हस्तक्षेप और जबरदस्ती से बचाने की होनी चावहए। All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 4 अपने वनबंि "टू कॉन्से प्ट्ि ऑफ तलबटी" में , बवलरन ने नकारात्मक और िकारात्मक स्विांत्रिा के बीच स्पि अांिर वकया और सर्त्ा के संभावित दु रुपयोग के क्तखलाफ सुरक्षा के रूप में नकारात्मक स्वतंत्रता के वलए अपनी प्राथवमकता व्यि की। नकारात्मक और िकारात्मक स्विांत्रिा के बीच अांिर : हाूँ , यर्ायाह बवलरन ने सकारात्मक और नकारात्मक स्वतंत्रता में भेद वकया है जो की इस प्रकार है : िकारात्मक स्विांत्रिा नकारात्मक स्विांत्रिा 1. स्वतंत्र ता की सकारात्मक अििारणा का अथर बंि नों 1. स्वतंत्र ता की नकारात्मक अििारणा का अथर हैं का आभाि नही ं हैं। बंिनों का न होना। अथार त् व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार कायर करने की छूि। 2. सकारात्मक स्वतंत्रता के अनुसार कानून ि स्वतंत्र ता 2. नकारात्मक स्वतंत्र ता के अनुसार कानून ि परस्पर सहयोगी हैं। कानून स्वतंत्रता की रक्षा करते स्वतंत्र ता परस्पर विरोिी हैं। कानू न स्वतंत्र ता की हैं। रक्षा नही ं अवपतु उसे नष्ट् ही करते हैं। 3. सकारात्मक स्वतंत्रता के अनुसार व्यक्ति के वहत 3. नकारात्मक स्वतंत्रता के अनुसार व्यक्तिगत वहत और समाज के वहतों में कोई विरोि नही ं होता । और सामावजक वहत दोनों अलग- अलग होते हैं। 4. सकारात्मक स्वतं त्रता के तकर कुछ करने की 4. नकारात्मक स्वतंत्रता का तकर यह स्पष्ट् करता है स्वंतत्रता' के विचार की व्याख्या से जुडे हैं। वक व्यक्ति क्या करने से मुि हैं । 5. सकारात्मक स्वतंत्रता के पक्षिरों का मानना है वक 5. नकारात्मक स्वतंत्रता का सरोकार अहस्तक्षेप के व्यक्ति केिल समाज में ही | स्वतंत्र हो सकता है , अनुलंघनीय क्षेत्र से है , इस क्षेत्र से बाहर समाज समाज से बाहर नही ं और इसीवलए िह इस समाज की क्तथथवतयों से नही।ं को ऐसा बनाने का प्रयास करते हैं , जो व्यक्ति के विकास का रास्ता साफ करे । All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 5 तनष्कर्ि यर्ायाह बवलरन की नकारात्मक स्वतंत्र ता को प्राथवमकता अविक उदारिादी पररप्रेक्ष्य के साथ सं रेक्तखत होती है जो बाहरी बािाओं की अनुपक्तथथवत को महत्व दे ती है और व्यक्तिगत स्वायर्त्ता और गैर-हस्तक्षेप पर जोर दे ती है। उनका मानना था वक नकारात्मक स्वतंत्रता को प्राथवमकता दे ने से व्यक्तिगत अविकारों और स्वतंत्र ता की रक्षा करने में मदद वमलती है , जबवक सकारात्मक स्वतं त्रता के वलए अत्यविक हस्तक्षेपिादी दृवष्ट्कोण से जुडे संभावित खतरों से साििान रहना पडता है , वजससे व्यक्तिगत स्वतंत्र ता का उल्लंघन हो सकता है । All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 6 प्रश्न 2 - नफरि भार्ण क्या है ? 'अतभव्यक्ति की स्विांत्रिा' के तवचार िे िांबां तधि तवतवध वाद-तववाद का आलोचनात्मक परीक्षण कीतजए । अथवा क्या एक उदारवादी-लोकिाां तत्रक िमाज को रािरीय मीतिया में जातिवादी तवचारोां के प्रिारण की अनुमति दे नी चातहए ? अतभव्यक्ति की स्विांत्रिा और िेन्सरतशप के बीच वाद-तववाद के िांदभि में अपने उत्तर की व्याख्या कीतजए । उत्तर - पररचय नफरि भार्ण : "नफरत भाषण" एक प्रकार का भाषण है जो जावत, िमर , जातीयता, राष्ट्रीयता, वलंग, यौन जैसी विर्ेषताओं के आिार पर वकसी विर्ेष व्यक्ति या समूह को बढािा दे ता है , या भेदभाि करता है। भारत के विवि आयोग की 267िी ं ररपोिर में , नफरत फैलाने िाले भाषण को मु ख्य रूप से नस्ल, जातीयता, वलंग, यौन अवभविन्यास, िावमरक वििास और इसी तरह के आिार पर पररभावषत व्यक्तियों के एक समूह के क्तखलाफ नफरत को उकसाने िाला बताया गया है। 'अतभव्यक्ति की स्विांत्रिा' के तवचार िे िांबांतधि तवतवध वाद-तववाद की आलोचना: 'अवभव्यक्ति की स्वतंत्र ता' की अििारणा लोकतां वत्रक समाजों का एक मौवलक और आिश्क तत्व है , यहां अवभव्यक्ति की स्वतं त्रता के विचार से संबंवित कुछ प्रमुख बहसों की आलोचनात्मक जां च की गई है: 1. स्विांत्र भार्ण और नुक िान के बीच िांिुलन : सबसे महत्वपू णर बहसों में से एक स्वतं त्र अवभव्यक्ति की अनु मवत दे ने और नु कसान को रोकने के बीच सही संतुलन खोजने के इदर -वगदर घू मती है। आलोचकों का तकर है वक अवभव्यक्ति की वनरं कुर् स्वतं त्रता से नफरत फैलाने िाले भाषण, वहंस ा भडकाने या गलत सूचना का प्रसार हो सकता है। स्वतंत्र भाषण के समथर क खुले संिाद के महत्व पर जोर दे ते हैं और तकर दे ते हैं वक भाषण पर सीमाएं सेंसरवर्प को जन्म दे सकती हैं और असहमवत की आिाजों को दबा सकती हैं। सही संतुलन बनाना चु नौतीपूणर है और यह वनरं तर बहस का विषय है। 2. ऑनलाइन भार्ण और िोशल मीतिया : इं िरनेि और सोर्ल मीविया प्लेिफामों के उदय ने अवभव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में नई बहस छे ड दी है। ये प्लेिफॉमर व्यक्तियों को खुद को अवभव्यि करने के वलए एक र्क्तिर्ाली माध्यम प्रदान करते हैं , लेवकन उन्ें उत्पीडन, साइबरबुवलंग और गलत All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 7 सूचना के प्रसार जैसे मु द्दों का भी सामना करना पडता है । सोर्ल मीविया कंपवनयों द्वारा सामग्री को वनयंवत्रत करने के वनणरयों से भाषण को विवनयवमत करने में वनजी संथथाओं के प्रभाि और वजम्मेदारी के बारे में चचार हुई है । 3. प्रेि की स्विांत्रिा : प्रेस की स्वतंत्रता स्वतंत्र अवभव्यक्ति का एक महत्वपू णर घिक है । सरकारी वनयंत्र ण और मीविया स्वावमत्व को लेकर अक्सर बहसें उठती रहती हैं। वचंताओं में कुछ लोगों के हाथों में मीविया का संकेंद्रण र्ावमल है , वजससे विविि दृवष्ट्कोणों और संभावित पू िार ग्रहों की कमी हो सकती है। दू सरी ओर, सरकारी सेंसरवर्प पत्रकाररता की स्वतं त्रता और आलोचनात्मक ररपोवििं ग को बावित कर सकती है। 4. कलात्मक अतभव्यक्ति और िें िरतशप : अवभव्यक्ति की कलात्मक स्वतं त्रता कभी-कभी सामावजक मानदं िों और मूल्ों से िकराती है। वजस कला को उर्त्ेज क या आपवर्त्जनक माना जाता है , िह सेंसरवर्प और कलात्मक अवभव्यक्ति की सीमाओं के बारे में बहस का कारण बन सकती है। अतभव्यक्ति की स्विांत्रिा और िेंिरतशप : अतभव्यक्ति की स्विांत्रिा (freedom of expression): इसका तात्पयर है वक प्रत्येक नागररक को अपने विचारों, वििासों, को मुूँह, र्ब्द, लेखन, मुद्रण, वचत्र या वकसी अन्य तरीके से स्वतंत्र रूप से व्यि करने का अविकार है। इस स्वतं त्रता को लोकतां वत्रक प्रिचन, विचारों के आदान-प्रदान और एक विविि और जीिंत समाज के विकास के वलए महत्वपू णर माना जाता है। िेंिरतशप (Censorship): सरवर्प में अवभव्यक्ति के कुछ रूपों पर प्रवतबंि या दमन र्ावमल है। सरकारें , संथथान या यहां तक वक वनजी संथ थाएं नु कसान को रोकने , सािरजवनक व्यिथथा बनाए रखने , या व्यक्तियों के अविकारों और भलाई की रक्षा के वलए सेंसरवर्प अक्सर सर्त्ा के संभावित दु रुपयोग और अवभव्यक्ति की स्वतंत्र ता के उल्लंघन के बारे में वचंता पैदा करती है। “एक उदारवादी-लोकिाां तत्रक िमाज को रािरीय मीतिया में जातिवादी तवचारोां के प्रिारण की अनुमति ‘नही’ दे नी चातहए।“ All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 8 अतभव्यक्ति की स्विांत्रिा और िेन्सरतशप के बीच वाद-तववाद के िां दभि में कथन की व्याख्या: 1. व्यक्तियोां और िमूहोां को नुक िान : नस्लिादी विचार व्यक्तियों और समुदायों को िास्तविक नुकसान पहुंचा सकते हैं , खासकर उन लोगों को जो पहले से ही हावर्ए पर हैं। नफरत फैलाने िाले भाषण और नस्लिादी प्रचार से वहंसा, भेदभाि और सामावजक अर्ां वत भडक सकती है। ऐसे भाषण को सीवमत करने का एक मजबूत तकर है जो सीिे तौर पर नु कसान पहुंचाता है । 2. िामातजक एकजुटिा को कमजोर करना : राष्ट्रीय मीविया में नस्लिादी विचारों को बढािा दे ने की अनुमवत दे ना सामावजक एकजुिता को कमजोर कर सकता है और समाज के भीतर विभाजन पैदा कर सकता है । यह अल्पसंख्य कों के वलए र्त्रु तापूणर माहौल में योगदान दे सकता है , वजससे हावर्ए पर रहने िाले समूहों के वलए लोकतां वत्रक प्रविया में पूरी तरह से भाग लेना अविक कवठन हो जाएगा। 3. नफरि को िामान्य बनाना : राष्ट्रीय मीविया में नस्लिादी विचारों को अनु मवत दे ने से नस्लिाद सामान्य हो सकता है या िैि हो सकता है । जब इन विचारों को पयार प्त आलोचना या प्रवतिाद के वबना एक मं च वदया जाता है , तो यह उनमें िैि ता की भािना व्यि कर सकता है। इस तरह का सामान्यीकरण िीरे - िीरे होता है , इन विचारों के नु कसान और आिामकता के प्रवत असं िेदनर्ीलता एक िास्तविक वचंता बन जाती है। 4. िमान अतधकारोां का उल्लांघन: कुछ लोगों का तकर है वक नस्लिादी विचार सभी व्यक्तियों के समान अविकारों और गररमा का उल्लं घन करते हैं , जो एक उदार-लोकतां वत्रक समाज के वसद्ां तों के विपरीत है। नस्लिादी विचार व्यक्तियों को उनकी नस्ल या जातीयता के आिार पर अमानिीय और अिमू ल्न करते हैं , वजससे प्रत्येक व्यक्ति के अंतवनरवहत मूल् और गररमा में वििास कम हो जाता है। तनष्कर्ि राष्ट्रीय मीविया में नस्लिादी विचारों के प्रसारण की अनु मवत दे ने का वनणरय विवर्ष्ट् पररक्तथथवतयों, इसमें र्ावमल संभावित नु कसान और उदार लोकतं त्र को रे खां वकत करने िाले स्वतंत्र अवभव्यक्ति के वसद्ां तों पर साििानीपूिरक विचार करने के बाद वकया जाना चावहए। यह एक जविल मुद्दा है वजसके वलए सूक्ष्म और संदभर -विवर्ष्ट् दृवष्ट्कोण की आिश्कता है। All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 9 प्रश्न 3 - अविर की िमानिा िे क्या अतभप्राय है ? पररणाम की िमानिा के िाथ इि अवधारणा की िुलना कीतजए । उत्तर – पररचय अिसर की समानता और पररणाम की समानता वनष्पक्षता प्राप्त करने और सामावजक असमानताओं को संबोवित करने के दो अलग-अलग दृवष्ट्कोण हैं । िे सामावजक न्याय के बारे में सोचने और प्रयास करने के विवभन्न तरीकों का प्रवतवनवित्व करते हैं। िमानिा: समानता र्ब्द की उत्पवर्त् प्राचीन फ्रेंच एिं लैविन र्ब्द एकु लीि (Aequalis), एकू ि (Aequus) और एकुतलिि (Aequalitas) से हुई है। सामान्य र्ब्दों में , समानता का अथर समान व्यिहार और प्रवतफल से है। यह आिश्कता प्राकृवतक समानता के रूप में है। इस विचार का यह मानना है वक व्यक्ति प्राकृवतक एिं स्वतंत्र जन्म लेता है। परं तु व्यक्ति न तो र्ारीररक रचना और न ही अपनी मानवसक क्षमताओं के संबंि में समान है । हेरोल्ड लास्की के अनु िार यह क्तथथवतयाूँ समानता को वनिार ररत करती है -सामावजक पररप्रेक्ष्य में विर्ेषाविकारों का अं त,सभी को अपने व्यक्तित्व के विकास के वलए पयार प्त अिसर,पाररिाररक क्तथथवत, िन एिं अनुिां वर्कता इत्यावद जैसे वकसी भी आिार पर कोई प्रवतबंि नही ,ं सामावजक और आवथरक र्ोषण की अनुपक्तथथवत। अविर की िमानिा िे अतभप्राय : अविर की िमानिा वह तिद्ाांि है तजिमे सभी व्यक्तियों को उनकी पृष्ठभूवम, पररक्तथथवतयों या विर्ेषताओं की परिाह वकए वबना, जीिन में सफल होने या अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने का समान मौका वमलना चावहए। यह, यह सुवनवित करने पर ध्यान केंवद्रत करता है वक िभी के पाि िमान शु रु आिी तबां दु और िमान अविरोां िक पहांच हो, और यह नस्ल, वलंग, सामावजक-आवथर क क्तथथवत या विकलां गता जैसे कारकों के पररणामस्वरूप होने िाले अनुव चत लाभ या नुकसान को खत्म करना चाहता है। अिसरों की समानता मुख्यतः औपचाररक समानता के विचार के अनुसरण पर आिाररत है। प्लेट ो के लेखन कायों में भी इिका पिा चलिा है। वजसमें िह एक ऐसी र्ैक्षवणक प्रणाली का प्रस्ताि करते हैं , जो सभी बच्चों को अपनी योग्यता को विकवसत ि प्रदवर्रत करने का समान अिसर प्रदान करती है । अिसरों की All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 10 समानता की प्रारं वभक र्तें यह नही ं है वक सभी व्यक्ति को समान अिसर वदया जाएगा। परं तु इसमें उस व्यक्ति के साथ कुछ विर्ेष प्राििान वकया जाएगा जो सबसे कमजोर है। तावक पररणामों की असमानता को स्वीकार वकया जा सके। यह अििारणा उस बािाओं को दू र करने का प्रयास करती है जो व्यक्ति के विकास में बािक है । जॉन राल्स के अनुिार अिसरों की औपचाररक समानता पयार प्त नही ं है , बक्ति उनका मानना है वक वितरण के मापदं िों में बुक्तद् के समािेर् ि सामावजक क्तथथवत को सक्तम्मवलत करना चावहए। अविरोां की िमानिा की धारणा उन कारकोां की क्षतिपूतिि नही ां करिी है जो नै तिक दृति िे अिमान होिे हैं। व्यक्ति की व्यक्तिगत प्रवतभा, सामावजक आवथर क क्तथथवत असमान हो सकती है । जॉन रॉल्स का वद्वतीय वसद्ां त सामावजक-आवथरक असमानताओं को मान्यता तब दे ता है , जब समाज के सबसे वनम्न श्रेणी के मनु ष्य को सबसे बडा भाग वितरणात्मक व्यिथथा के तहत प्रदान वकया जाता है। पररणाम की िमानिा और अविर की िमानिा की िुलना : अविर की िमानिा पररणाम की िमानिा अिसर की समानता का संबंि सभी को जीिन में पररणाम की समानता यह सुवनवित करने पर केंवद्रत सफल होने का समान अिसर प्रदान करने से है , है वक सभी व्यक्ति या समूह अपने र्ुरुआती वबंदु या भले ही उनकी पृष्ठभूवम या प्रारं वभक पररक्तथथवतयाूँ पररक्तथथवतयों की परिाह वकए वबना समान या समान कुछ भी हों। पररणाम प्राप्त करें । यह एक समान अिसर बनाने पर ध्यान केंवद्रत यह समाज में िन और आय के अंतर को कम करने करता है , वजससे यह सुवनवित होता है वक व्यक्तियों के वलए पुनविरतरण नीवतयों की आिश्कता पर को वर्क्षा, स्वास्थ्य दे खभाल और अन्य आिश्क जोर दे ता है। इसमें प्रगवतर्ील करािान, कल्ाण सेिाओं तक पहुं च प्राप्त हो। इसका उद्दे श् उन कायरिम और िन पु नविरतरण र्ावमल हो सकता है बािाओं को दू र करना है जो लोगों को उनकी क्षमता तावक यह सुवनवित वकया जा सके वक सभी को तक पहुं चने से रोकती हैं। न्यूनतम जीिन स्तर तक पहुंच प्राप्त हो। All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 11 अिसर की समानता को बढािा दे ने िाली नीवतयों में लक्ष्य अविक समतापूणर समाज प्राप्त करने के वलए सकारात्मक कारर िाई, भेदभाि-विरोिी कानून और आय, िन, वर्क्षा और अन्य पररणामों में वर्क्षा और नौकरी प्रवर्क्षण में वनिेर् र्ावमल हो असमानताओं को कम करना है। सकते हैं । आलोचकों का तकर है वक केिल अिसर की आलोचकों का तकर है वक पररणाम की सख्त समानता गहरी जडें जमा चु की असमानताओं को समानता व्यक्तिगत प्रे रणा, उद्यवमता और आवथरक दू र करने के वलए पयार प्त नही ं हो सकती है क्योंवक विकास को रोक सकती है , क्योंवक यह लोगों को यह ऐवतहावसक नुकसानों को संबोवित नही ं करती कडी मेहनत करने या जोक्तखम लेने से हतोत्सावहत है और प्रणालीगत पूिार ग्रह के प्रभािों को पू री तरह कर सकती है यवद उन्ें पता है वक उनके पुरस्कारों से समाप्त नही ं कर सकती है। को भारी रूप से पुनविरतररत वकया जाएगा। तनष्कर्ि अिसर समानता वबना वकसी भेदभाि के सभी को उनकी योग्येता के आिार पर नोकाररयो ि सरकारी पद में समान अिसर प्रदान करना हैं जबवक पररणाम की समानता विभेद कारी नीवत के आिार पर समानता थथावपत करने की स्वकृवत दे ता हैं । All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 12 प्रश्न 4 - जतटल िमानिा की अवधारणा की व्याख्या कीतजए। यह िांिाधन िमिावाद के तवमशि िे कैिे अलग है ? अथवा रोनाल्ड िोरतकन द्वारा तदए गए तवचारोां के तवशेर् िांदभि में 'िांिाधनोां की िमानिा' की अवधारणा पर चचाि करें । उत्तर - पररचय "जतटल िमानिा" जॉन रॉल्स के राजनीवतक दर्रन से जुडी एक अििारणा है , जो वितरणात्मक न्याय और सामावजक अनुबंि वसद्ां त पर अपने काम के वलए जाने जाते हैं। जविल समानता न्याय का एक वसद्ां त है वजसे माइकल वाल्ज़र ने अपने 1983 के तकिाब स्फेयिि ऑफ जक्तिि में रे खां वकत वकया है । इसकी तुलना अक्सर "िां िाधन िमिावाद" से की जाती है , जो वितरणात्मक न्याय को संबोवित करने का एक और दृवष्ट्कोण है । जतटल िमानिा की अवधारणा (Complex Equality) जविल समानता न्याय का एक वसद्ां त है वजसे माइकल िाल्ज़र ने अपने 1983 के वकताब “स्फेयिि ऑफ जक्तिि” में रे खां वकत वकया है । वितरण की व्यापक अििारणा पर जोर दे ने के कारण इसे अवभनि माना जाता है , वजसमें न केिल मूतर िस्तुएं बक्ति अविकार जैसे अमूतर सामान भी र्ावमल हैं। यह वसद्ां त सािारण समानता से अलग है क्योंवक यह सामावजक िस्तुओं में कुछ असमानताओं की अनु मवत दे ता है। मान्यिाएँ :  सभी सां स्कृवतक समुदायों/समाजों के वितरण के अलग-अलग क्षेत्र होते हैं ।  वितरणात्मक न्याय के विवभन्न क्षेत्र स्वतंत्र एिं स्वायर्त् हैं।  सामावजक िस्तुओं का अथर और मूल् उस सं स्कृवत के वलए विवर्ष्ट् हैं।  वितरणात्मक न्याय के वलए कोई पू णर सािरभौवमक मानदं ि नही ं हैं।  न्याय के वलए आिश्क है वक प्रत्येक िस्तु को उसके अपने क्षेत्र -विवर्ष्ट् वसद्ां तों के अनुसार वितररत वकया जाए, जो उसके सामावजक अथर की व्याख्या से तय होते हैं । All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 13 माइकल वाल्ज़र ने जविल समानता का विचार प्रस्तुत वकया है , िह एक समतािादी तथा समुदायिादी हैं लेवकन इनका मानना है वक समानता को कल्ाण संसािन या कैपेवबवलिी जैसी विर्ेषता पर ही ध्यान नही ं दे ना चावहए। िाल्ज़र के अनुसार वकसी भी वितरण को न्याय पूणर या अन्याय पूणर होना उन िस्तुओं के सामावजक अथर पर से जु डा होता है वजन का वितरण वकया जा रहा है। स्फेयिि ऑफ जक्ति ि (1983): माइकल िाल्जर ने अपने कायर थफेयसर ऑफ जक्तिस (Sphere of justice)1983 में जविल समानता के विचार को जोडते हुए उससे उसे सािारण समानता से अंतर वकया है । जविल समानता विवभन्न सामग्री या िस्तुओं को विवभन्न लोगों के वितरण से जुडी हुई है । यहां विवभन्न प्रकार के स्फेयर /परािी होती है ( उदाहरण स्वरूप बाजार, राजनीवत, पररिार इत्यावद ) वजसमें विवभन्न प्रकार की सामवग्रयां आिंवित होती हैं तथा सभी स्वतंत्र योग्यता के आिार पर आिंवित होते हैं। दू सरे र्ब्दों में वििर ीब्यूर्न ऑफ ररिॉिर ज आिुवनक समाज में आय और िन के साथ संलग्न है। इसके साथ-साथ बहुवप्रय कायों जैसे िन, सामावजक प्रवतष्ठा, राजनीवतक ऑवफस, प्यार और सद्भािना प्रमुख हैं । िमिावाद के तवमशि िे तभन्निा : जतटल िमानिा की अवधारणा के तवपरीि, "िां िाधन िमिावाद" एक अतधक िीधा दृतिकोण है जो संख्यात्मक समानता प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ संसािनों या आय को यथासंभि समान रूप से वितररत करने पर केंवद्रत है। संसािन समतािाद आिश्क रूप से व्यक्तिगत पररक्तथथवतयों या आिश्कताओं की जविलताओं पर जविल समानता के समान विचार नही ं करता है । दोनोां अवधारणाओां के बीच मुख्य अांिर असमानता को संबोवित करने के उनके दृवष्ट्कोण में वनवहत है । जविल समानता का उद्दे श् व्यापक सामावजक संदभर को ध्यान में रखते हुए उन अंतवनरवहत कारकों को संबोवित करना है जो असमानता का कारण बनते हैं , जबवक संसािन समतािाद संस ािनों के समान वितरण को सुवनवित करने से अविक वचंवतत है , अक्सर व्यक्तियों की विवर्ष्ट् आिश्कताओं और पररक्तथथवतयों को ध्यान में रखे वबना। All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 14 रोनाल्ड िोरतकन - 'िांिाधनोां की िमानिा' की अवधारणा : िांिाधनोां की िमानिा: समानता के संसािनों के समथर क रोनाल्ड िोरतकन हैं , इनका मानना है वक संसािनों का असमान वितरण तभी उवचत माना जा सकता है जब उन्ी ं के वनणरयों का पररणाम होते हैं जो इनसे प्रभावित होते हैं। इस संदभर में िोरवकन एक काल्पवनक नीलामी की बात करता है वजसमें प्रत्येक व्यक्ति समान कीमत के सािनों के माध्यम से संसािनों इकट्ठा कर सकता है तावक कोई भी व्यक्ति दू सरे के संसािनो से ईष्यार न करे । वकसी भी व्यक्ति के जीिन में आिंवित वकये जाने िाले संसािनों के महत्त्व को इस बात से पररभावषत वकया जायेगा वक उन संसािनों की अन्य लोगों के बीच मुि बाजार में वकतनी मां ग है। इि प्रकार उिका तविरण व्यक्ति की महत्त्वाकाांक्षा पर तनभिर करे गा। इस वितरण से यदी कोई असमानता उत्पन्न होती है तो िह उवचत होगी क्योंवक प्रत्ये क व्यक्ति को अपनी इस 'खुली लािरी' की व्यक्तिगत वजम्मेदारी तो लेनी ही होगी। िोरवकन के अनुसार, प्राकृवतक लािरी को संतुवलत करने का यही एक तरीका है तावक इस प्रकार के पु नः वितरण द्वारा योग्य 'लोगों की दासता से मुक्ति पाई जा सके। तनष्कर्ि जविल समानता, व्यक्तिगत क्तथथवतयों की जविलताओं पर विचार करते हुए और गहरे स्तर पर असमानताओं को संबोवित करते हुए, सामावजक न्याय और समानता प्राप्त करने के वलए एक अविक व्यापक और सूक्ष्म दृवष्ट्कोण है , जबवक संसािन समतािाद एक सरल, अविक सं ख्यात्मक दृवष्ट्कोण है जो संसािनों के समान वितरण पर केंवद्रत है। All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 15 प्रश्न 5 - जॉन रॉल्स के न्याय के तिद्ाांि पर एक आलोचनात्मक तनबांध तलक्तखए । अथवा प्रतियात्मक न्याय और िाक्तिक न्याय में अांिर स्पि कीतजए। उत्तर - पररचय जॉन रॉल्स (1921-2002) का न्याय वसद्ां त, समकालीन राजनीवतक दर्रन में न्याय के सबसे प्रभािर्ाली और व्यापक रूप से चवचर त वसद्ां तों में से एक है । 1971 में इनकी प्रथम पुस्तक ए थ्योरी ऑफ जक्तिि प्रकावर्त हुई। इस पु स्तक में ही रॉल्स ने न्याय के वसद्ां त की व्याख्या की हैं । जहां एक न्यायसंगत और वनष्पक्ष समाज की थथापना के प्रयास के वलए रॉल्स के काम की सराहना की गई है , िही ं इसे महत्वपूणर आलोचना का भी सामना करना पडा है। जॉन रॉल्स का न्याय का तिद्ाांि ( ए थ्योरी ऑफ जक्ति ि )  जॉन रॉल्स ने अपनी तकिाब “ए थ्योरी ऑफ जक्तिि” में न्याय के अपने वसद्ां त में प्रवियात्मक न्याय के बुवनयादी कारकों का बहुत मजबूती से समथर न वकया है। यानी उन्ोंने भी इस विचार को आगे बढाया है वक न्याय के वलए कुछ वनवित वनयमों का साििानी से पालन करना जरूरी है।  रॉल्स अपने वसद्ां त के वनमार ण के वलए एक ऐसी क्तथथवत की कल्पना करते हैं , वजसमें व्यक्ति अपनी सामावजक और आवथरक पृष्ठभूवम के बारे में नही ं जानते हैं। रॉल्स इसे 'अज्ञान का पदाि ' (veil of ignorance) कहते हैं। अज्ञान के पदे के पीछे रहने िाला व्यक्ति यह नही ं जानता है वक िह कौन है और उसकी रुवचयाूँ , दक्षताएूँ , जरूरतें आवद क्या हैं।  रॉल्स का न्याय-तिद्ाांि 'िमाज के तवतभन्न वगों, व्यक्तियोां और िमूह के बीच विवभन्न िस्तुओं, सेिाओं, अिसरों, लाभों आवद को आिंवित करने का नैवतक ि न्यायसंगत आिारों पर आिाररत हैं। इस समस्या को हल करने के वलए कई वचंतकों ने अपने -अपने ढं ग से विचारों का प्रवतपादन वकया हैं। उन्ी ं विचारकों ि वचंतकों में से एक जॉन रॉल्स भी हैं। रॉबिर एमिू र ने कहा है वक रॉल्स का उद्दे श् ऐसे वसद्ां त विकवसत करना है जो हमें समाज के मू ल ढां चे को समझने में मदद करें । All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 16  रॉल्स ने अपने न्याय-वसद्ां त को प्रस्तुत करते हुए सबसे पहले उपयोतगिावादी तवचारोां का खां िन तकया और अपने न्याय-वसद्ां त को प्रकायार त्मक आिार प्रदान वकए। रॉल्स ने न्यास को उवचतता के रूप में पररभावषत करके न्याय-वसद्ां त की परं परागत समझौतािादी अििारणा को उच्च स्तर पर मू तर रूप प्रदान वकये। रॉल्स ने न्याि की िमस्या का ध्यान में रखिे हए, पाया तक प्राथतमक वस्तुओ ां और िेवाओां के न्यायपू णि व उतचि तविरण की िमस्या हैं। ये प्राथवमक िस्तुएूँ-अविकार और स्वतंत्र ताएूँ , र्क्तियां ि अिसर, आय और संपवर्त् तथा आत्म सम्मान के सािन हैं । रॉल्स ने इन्ें र्ुद् प्रवियात्मक न्याय का नाम वदया हैं। रॉल्स का मानना है वक जब तक िस्तु ओं और सेिाओं आवद प्राथवमक िस्तुओं का न्यायपूणर वितरण नही ं होगा तब तक सामावजक न्याय की कल्पना करना व्यथर हैं । न्याय के दो तिद्ाांि: (क) िमान बुतनयादी स्विांत्रिा का तिद्ाांि: रॉल्स का तकर है वक मूल क्तथथवत में , व्यक्ति स्वतंत्रता के एक बुवनयादी सेि के वलए सहमत होंगे जो सभी के वलए उपलब्ध है । इन स्वतंत्रताओं में भाषण, सभा, विचार और व्यक्तिगत संपवर्त् के अविकार की स्वतंत्रता र्ावमल है। (ख) भे दमूलक तिद्ाांि और अविर की उक्तिि िमानिा: रॉल्स का प्रस्ताि है वक िन और संसािनों में असमानताएं तभी स्वीकायर हैं जब िे समाज के सबसे कम सुवििा प्राप्त सदस्यों को लाभ पहुंचाती हैं। यह वसद्ां त यह सुवनवित करके आवथर क और सामावजक असमानताओं को संबोवित करना चाहता है वक िे उन लोगों के लाभ के वलए काम करें जो सबसे खराब क्तथथवत में हैं। आलोचानाएँ : िमुदायवातदयोां के तवचार: समुदायिावदयों (Communitarians) द्वारा रॉल्स वक व्यक्ति की संकल्पना को अतावकरक एिं अव्यािहाररक माना गया है। इनका का मत है वक न्याय की कोई एक मात्र और सिरमान्य पररभाषा नही ं हो सकती बक्ति विवभन्न समूह एिं विवभन्न समुदायों के वलए न्याय की वभन्न-वभन्न िारणाएूँ आिश्क है। नारीवातदयोां के तवचार: सुसेन मोलर ओवकन जैसी नारीिादी लेक्तखका इस बात पर ध्यान केंवद्रत करती है वक रॉल्स का न्याय का वसद्ां त पररिार में मौजूदा असमानताओं और अन्याय के बारे में खामोर् है। उनका All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 17 मत है वक न्याय के संदभर में हुए अविकां र् महत्त्वपू णर र्ोि-कायों में पररिार की आं तररक क्तथथवत एिं भूवमका पर र्ायद ही कोई विचार वकया गया है। अमर्त्ि िेन के तवचार: अमत्यर से न ने अपनी रचना 'द आइतिया ऑफ जक्ति ि' (2010) में जॉन रॉल्स के न्याय के वसद्ां तों की आलोचनात्मक मूल्ां कन करते हुए न्याय के संबंि में एक विर्ेष विचार, ‘क्षमता या सामर्थ्र ' को प्रवतपावदत वकया है । सेन मत है वक रॉल्स द्वारा िवणरत मूल संसािन स्वतंत्र ता प्राप्त करने का सािन मात्र है , िे स्वतंत्रता की मात्रा तथा गु णिर्त्ा तय नही ं कर सकते । स्वेच्छािांत्रवातदयोां के तवचार: स्वेच्छातंत्र िावदयों (Libertarians) के अनुसार रॉल्स का यह तकर पूणरता अस्वीकायर है वक व्यक्तिगत योग्यताएूँ एिं क्षमताएूँ समाज की सािरजवनक संपवर्त् है तथा उनको सामावजक न्याय के आिार पर पुनविर तररत वकया जाना चावहए। नॉवजक ने रॉल्स के ‘भेदमूल क वसद्ां त’ की आलोचना करते हैं । यह विचारक तकर दे ते हैं वक रॉल्स ने समानता पर अत्याविक महत्त्व दे ते हुए मनु ष्य की स्वतंत्रता की बवल दे दी है। मार्क्िवातदयोां के तवचार: माक्सरिावदयों (Marxists) के मतानुसार आवथर क एिं सामावजक तर्थ्ों की जानकारी के अभाि में न्याय के वसद्ां त को वनिार ररत करना युक्तिसंगत नही ं है । रॉल्स न्याय के वनयमों को ज्ञात करने हे तु मनु ष्य को एक काल्पवनक ‘मूल- क्तथथवत' में रखा जहाूँ उन्ें सामावजक-आवथरक तर्थ्ों का बोि नही ं होता एिं िे इस संदभर में 'अज्ञान के पदे के पीछे समझौता करता है । प्रतियात्मक न्याय और िाक्तिक न्याय में अांिर : प्रतियात्मक न्याय िाक्तिक न्याय प्रवियात्मक न्याय प्रवियाओं में वनष्पक्षता का विचार ताक्तत्वक न्याय यह है वक यह एक उवचत व्यिहार या है जो वििादों को हल करता है और संसािनों का उपचार है जो वनष्पक्ष और उवचत है। आिंिन करता है। वकसी वनणरय या समािान तक पहुंचने के वलए उपयोग अंवतम पररणाम या वनणरय या सं कल्प की सामग्री पर वकए जाने िाले सािनों या तरीकों पर जोर दे ता है। जोर दे ता है। All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 18 यह मूल्ां कन करता है वक वनणरय लेने की प्रविया यह मूल्ां कन करता है वक पररणाम या वनणरय स्वयं वनष्पक्ष और सुसंगत थी या नही।ं वनष्पक्ष और न्यायसंगत है या नही।ं इस न्याय व्यिथथा के समथर क यह मानते हैं वक, तत्वात्मक न्याय के समथर कों की मान्यता है वक सेिाओं, पदों एिं िस्तुओं इत्यावद के वितरण की उपरोि सेिाओं, पदों एिं िस्तुओं इत्यावद का प्रविया या विवि न्यायपूणर होनी चावहए। वितरण न्यायपू णर होना चावहए। प्रवियात्मक न्याय में जहाूँ क्षमता पर बल वदया जाता तत्वात्मक न्याय व्यक्ति की मूलभूत आवथर क है , आिश्कता पर नही।ं आिश्कताओं की पूवतर का प्रयत्न करते हुए अिसर की समानता पर बल वदया जाता है। प्रवियात्मक न्याय के वचं तकों में हबरिर स्पेंसर , एफ. ए. तत्वात्मक न्याय के वचंतकों में जॉन रॉल्स (1921- हेयक, वमल्टन फ्रीिमैन तथा रॉबिर नॉवजक के नाम 2002) सबसे ज्यादा प्रवसद्द हैं । उल्लेख नीय हैं। यह विचार बाजारिादी अथरव्यिथथा एिं पूूँजीिादी तत्वात्मक न्याय या सामावजक न्याय का विचार अथरव्यिथथा को महत्त्वपू णर मानते हुए इस मान्यता पर माक्सरिाद एिं समाजिाद के साथ वनकिता से जुडा वििास करता है वक सबके वलए समान वनयम बना दे ने हुआ है। यह एक ऐसे साम्यिादी समाज की कल्पना से समाज के सभी सदस्य अपने परस्पर संबंिों को करते हैं , वजसमें उत्पादनों के सािनों पर पूरे समाज न्याय पूणर विवि से समायोवजत कर लेंगे। का वनयंत्रण है । तनष्कर्ि जॉन रॉल्स के न्याय के वसद्ां त की न्याय को यथासंभि वनकितम तरीकों में से एक में पररभावषत करने में एक गहरी भूवमका रही है। हालां वक उनके द्वारा सवचत्र काल्पवनक क्तथथवत का समथर न करने िाली िास्तविक जीिन की पररक्तथथवतयों का सामना करना लगभग असंभि है , रॉल्स न्याय की अििारणा को काफी हद तक वनष्पक्षता के रूप में स्पष्ट् करने में सफल रहे हैं। सबसे महत्वपू णर बात, उनका वसद्ां त अल्पसंख्य कों के अविकारों और स्वतंत्र ता पर प्रकार् िालता है , जो उपयोवगतािाद करने में विफल रहा है। All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 19 प्रश्न 6 - प्राकृ तिक अतधकार तकिे कहिे हैं ? प्राकृतिक अतधकारोां की आलोचना क्योां की जािी हैं ? अथवा मानव अतधकार के िावि भौतमक एवां िाांस्कृतिक िापेक्षवाद पर िां तक्षप बहि कीतजए । उत्तर - पररचय प्राकृवतक अविकारों की पररकल्पना अविकारों के विवभन्न वसद्ान्ों में सबसे पहली और सबसे प्राचीन है। जॉन लॉक ने 1690 में प्रकावर्त अपने लेख “िेकें ि टर ीटीज ऑन तितवल गवनिमेंट” में प्राकृवतक अविकारों पर सबसे प्रभािी ििव्य वदया था। लेवकन उससे पहले प्राकृवतक अविकारों के वसद्ां त का प्रस्तुवतकरण थॉमस हॉब्स के द्वारा वकया जा चुका था। प्राकृवतक अविकारों का अथर व्यिक्तथथत राजनीवतक संथथा और सरकार की अनुपक्तथथवत में मानि जीिन की अिथथा से है। हॉब्स ने प्राकृवतक अविकार को 'जि नैचुरतलि' कहा है।  हॉब्स ने , केिल जीिन के अविकार को ही प्राकृवतक अविकार मानते हैं ।  लॉक ने , जीिन, स्वतंत्र ता और संपवर्त् के तीन अविकारों को प्राकृवतक अविकारों की श्रेणी में रखा है। प्राकृतिक अतधकार : प्राकृवतक अविकारों के प्रमुख समथर क जॉन लॉक ने घोषणा की वक 'व्यक्ति कुछ जन्मजात अविकारों के साथ पैदा होता है। ये अविकार व्यक्ति में अंतवनरवहत होते हैं । अथार त, ये समाज अथिा राज्य पर वनभरर नही ं होते। वकसी भी राज्य द्वारा प्रदान वकये जाने िाले अविकार िास्ति में व्यक्ति के अपने प्राकृवतक अविकार ही है और िह जहाूँ भी रहे , अविकारों से उसे कोई िंवचत नही ं कर सकता क्योंवक ये वकसी सं थथा या समूह की दे न नही ं हैं। प्राकृवतक अविकारों का स्रोत प्राकृतिक कानून को माना जाता है । प्राकृवतक अविकार िे है वजनके वलए व्यक्ति राज्य पर वनभरर नही ं है , बक्ति राज्य का वनमार ण इन अविकारों की रक्षा के वलए हुआ है। िबिे प्रतिद् प्राकृ तिक अतधकार िूत्रीकरण जॉन लोके का है , वजन्ोंने तकर वदया वक प्राकृवतक अविकारों में पू णर समानता और स्वतंत्रता, और जीिन और सं पवर्त् को संरवक्षत करने का अविकार र्ावमल है। जो तक इि प्रकार हैं : All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 20 1. जीवन का अतधकार : मनु ष्य को जीिन का अविकार प्राकृवतक कानू न से प्राप्त होता है । लॉक की िारणा है वक आत्मरक्षा व्यक्ति की सिोर्त्म प्रिृवर्त् है और प्रत्ये क व्यक्ति अपने जीिन को सुरवक्षत रखने का वनरं तर प्रयास करता है । आत्मरक्षा को हॉब्स मानि की सिोर्त्म प्रे रणा मानता है , उसी प्रकार लॉक का मानना है वक जीिन का अविकार जन्मवसद् अविकार है और प्राकृवतक कानूनों के अनुसार उनका विर्ेषाविकार है । व्यक्ति न तो अपने जीिन का स्वयं अन् कर सकता है और न ही िह अन्य वकसी व्यक्ति को इसकी अनु मवत दे सकता है। 2. स्विन्त्रिा का अतधकार : लॉक के अनुसार क्योंवक सभी मनु ष्य एक ही सृवष्ट् की रचना हैं , इसवलए िे सब समान और स्वतन्त्र हैं। यह स्वतंत्रता प्राकृवतक कानून की सीमा के भीतर है । स्वािीनता के अथर प्राकृवतक वनयम को छोडकर सभी बंिनों से मुक्ति है जो मनुष्य की स्वतं त्रता का सािन है। "इस कानून के अनुसार िह वकसी अन्य व्यक्ति के अिीन नही ं होते तथा स्वतन्त्रतापू िरक स्वेच्छा से कायर करते हैं।" व्यक्ति की यह स्वतन्त्रता प्राकृवतक कानून की सीमाओं के अन्दर होती है। अतः मनमानी स्वतन्त्रता नही ं है। 3. िम्पतत्त का अतधकार : लॉक ने सम्पवर्त् के अविकार को एक महत्त्वपू णर अविकार माना है। लॉक के अनुसार सम्पवर्त् की सुरक्षा का विचार ही मनुष्यों को यह प्रे रणा दे ता है वक िे प्राकृवतक दर्ा का त्याग करके समाज की थथापना करें । लॉक ने सम्पवर्त् के अविकार को प्राकृवतक अविकार माना है। अपनी रचना 'तद्विीय तनबन्ध' में लॉक ने इस अविकार की व्याख्या की है। उन्ोंने इस अविकार को जीिन तथा स्वतन्त्रता के अविकार से भी महत्त्वपूणर माना है। संकुवचत अथर में लॉक ने केिल वनजी सम्पवर्त् के अविकार की ही व्याख्या की है। व्यापक अथर में लॉक ने जीिन तथा स्वतन्त्रता के अविकारों को भी सम्पवर्त् के अविकार में र्ावमल वकया है। प्राकृतिक अतधकारोां की आलोचना : प्राकृवतक अविकारों के वसद्ान् की विवभन्न विचारकों द्वारा आलोचना की गई। बैंथम ने ऐसे सभी अविकारों की आलोचना की जो राज्य से पहले है या उसके विरुद् है। प्राकृवतक अविकारों की वनम्न आिार पर भी आलोचना की जाती है।  यवद व्यक्ति के अविकार असीवमत और वनरं कुर् हैं तो हम व्यक्ति और समाज के विरोिाभास को हल नही ं कर सकते। उदाहरण के वलए वकसी अकाल अथिा महामारी की क्तथथवत में , यवद एक व्यक्ति अनाज इकट्ठा कर लेता है और माूँ गने पर भी दू सरों को नही ं दे ता है तो इसकी िजह से दू सरे के जीिन के अविकार का हनन हो सकता है। और यवद लोग जबरदस्ती छीनते हैं तो उसका संपवर्त् का अविकार All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 21 खतरे में आ जाता है। अथार त् यवद दो प्राकृवतक अविकार आपस में िकरा जायें तो उनके समािान का कोई वनयम नही ं है।  विवभन्न विचारकों में प्राकृवतक का अथर से ले कर भी आलोचना की है। इनका कहना है वक कोई भी व्यक्ति प्रकृवत का कुछ भी अथर लगा सकता है जैसे , प्राकृवतक 'ब्रह्ां ि के अथर में , इस संसार के गैर-मानिीय भाग के रूप में इत्यावद। पररणामस्वरूप प्राकृवतक अविकारों की िारणा विवभन्न रूपों में अस्पष्ट् सी रही है।  कोई भी अविकार वबना वकसी कानून के नही ं हो सकते । अविकार कुछ कर्त्रव्यों की अपेक्षा भी करते हैं। ये कुछ मानिीय संबंिों का वनमार ण भी करते हैं वजन पर कर्त्रव्य विके रहते हैं। ग्रीन वलखते हैं वक, प्रत्येक अविकार को अपना औवचत्य समाज के कुछ ऐसे लक्ष्यों के संदभर में वसद् करना होता है वजनके वबना अविकारों को प्राप्त नही ं वकया जा सकता।  व्यक्ति और समाज को अलग करके प्राकृवतक अविकारों का वसद्ान् उन सभी आिारों को ही पृथक् कर दे ता है , वजन पर इनका औवचत्य है। प्राकृवतक अविकारों का वसद्ान् मान कर चलता है वक अविकार और कर्त्रव्य समाज से स्वतंत्र है। परन्ु यह गलत िारणा है क्योंवक अविकार का सिाल केिल समाज और सामावजक संदभों में ही पैदा होती है। मानव अतधकार के िावि भौतमक एवां िाांस्कृतिक िापेक्षवाद : सािरभौवमकता और सां स्कृवतक सापेक्षिाद मानिाविकारों पर दो विपरीत दृवष्ट्कोण हैं। िावि भौमवाद का िकि है वक मानिाविकार सभी व्यक्तियों में अंतवनरवहत हैं , चाहे उनकी सां स्कृवतक या सामावजक पृष्ठभूवम कुछ भी हो। इन अविकारों को मौवलक, अविभाज्य माना जाता है और इन्ें सां स्कृवतक या क्षेत्रीय मतभेदों के बािजूद हर जगह बरकरार रखा जाना चावहए। सािरभौवमकतािादी िैविक मानकों के एक सेि में वििास करते हैं जो सभी समाजों के पालन के वलए एक सामान्य नैवतक और कानूनी ढां चा प्रदान करते हैं। उनका तकर है वक कुछ अविकार, जैसे जीिन का अविकार और यातना से मुक्ति , पर समझौता नही ं वकया जा सकता है और सां स्कृवतक या थथानीय रीवत-ररिाजों की परिाह वकए वबना, उनका कभी भी उल्लं घन नही ं वकया जाना चावहए। िाांस्कृतिक िापेक्षवाद का िकि है वक मानिाविकार सां स्कृवतक रूप से वनिार ररत होते हैं और इन अविकारों की पररभाषा और अनु प्रयोग एक संस्कृवत से दू सरी संस्कृवत में वभन्न हो सकते हैं। इसका तकर है वक विवभन्न All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 22 संस्कृवतयों के अपने मूल्, मानदं ि और परं पराएं हैं , वजनका सम्मान वकया जाना चावहए। इस पररप्रेक्ष्य के अनुसार, वजसे एक सं स्कृवत में "अविकार" माना जाता है िह दू सरी सं स्कृवत में लागू या िां छनीय भी नही ं हो सकता है । सां स्कृवतक सापेक्षिादी सां स्कृवतक विवििता के संरक्षण के महत्व पर जोर दे ते हैं और गैर -पविमी समाजों पर अविकारों की पविमी िारणाओं को थोपने के क्तखलाफ तकर दे ते हैं। इन दो दृतिकोणोां के बीच बहि मानि अविकारों की सािरभौवमकता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के साथ सां स्कृवतक विवििता के सम्मान को संतुवलत करने की आिश्कता के बारे में महत्वपू णर प्रश्न उठाती है । अं तरराष्ट्रीय मानिाविकार समझौतों में उक्तल्लक्तखत, सािरभौवमक रूप से लागू होने िाले कुछ प्रमुख मानिाविकारों को कायम रखते हुए सां स्कृवतक मतभेदों का सम्मान करने िाला एक मध्य मागर खोजना आिश्क है। यह दृवष्ट्कोण स्वीकार करता है वक सां स्कृवतक विवििता का सम्मान वकया जाना चावहए, लेवकन कुछ ऐसे वसद्ां त हैं जो सां स्कृवतक सीमाओं से परे हैं और सभी व्यक्ति यों की गररमा और भलाई सुवनवित करने के वलए उन्ें बरकरार रखा जाना चावहए। तनष्कर्ि मानिाविकारों के सािरभौवमक और सां स्कृवतक सापेक्ष िाद के बीच बहस में , प्राकृवतक अविकारों की आलोचना अक्सर सािरभौवमकता के क्तखलाफ तकर से जुडी होती है। सािरभौवमकता के समथरक प्राकृवतक अविकारों के महत्व पर जोर दे ते हैं , उनका तकर है वक िे मानिीय गररमा की रक्षा करने और सरकारों को जिाबदे ह बनाने के वलए एक मजबूत आिार प्रदान करते हैं। दू सरी ओर, आलोचक सां स्कृवतक संदभर पर विचार करने की िकालत करते हैं और तकर दे ते हैं वक सािरभौवमक अविकारों पर जोर दे ने से सां स्कृवतक असंिेदनर्ीलता और थथानीय मूल्ों और रीवत-ररिाजों की उपेक्षा हो सकती है। All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672 23 प्रश्न 7 - उदारवादी लोकिांत्र के तवचार एवां व्यवहार के तवकाि का आलोचनात्मक वणिन कीतजए । उत्तर - पररचय उदार लोकतंत्र के विचार और व्यिहार का विकास एक जविल और बहुआयामी यात्रा है जो सवदयों तक फैली हुई है। उदार लोकिांत्र एक राजनीतिक प्रणाली है जो व्यक्तिगि स्विांत्रिा, िमानिा और लोकतप्रय िां प्रभुिा के तिद्ाांिोां को जोड़िी है , और इसके विकास को कई प्रमुख ऐवतहावसक और दार्रवनक मील के पत्थर के माध्यम से पता लगाया जा सकता है। उदारवाद (Liberalism) : िह विचारिारा है वजसके अंतगरत मनुष्य को वििेकर्ील प्राणी मानते हुए सामावजक संथथाओं को मनु ष्यों की सू झबूझ और सामूवहक प्रयास का पररणाम समझा जाता है। उदारिाद की उत्पवत को 17िी र्ताब्दी के प्रारं भ से दे खा जा सकता हैं। जॉन लॉक को उदारिाद का जनक माना जाता है। लोकिांत्र (Democracy) : यह एक ऐसी र्ासन प्रणाली है , वजसमें जनता अपनी इच्छा से वकसी भी दल को अपना प्रवतवनवि चुन सकती है और सरकार बना सकती है । उदारवादी लोकिांत्र के तवचार एवां व्यवहार का तवकाि : लोकतंत्र का यह विर्ेष प्रवतमान वजसे हम उदार लोकिांत्र कहते हैं , अविकां र् लोगों के वदमाग तथा सोच पर हािी हो गया है , विर्ेष रूप से , पविम में , िे विचार करते हैं वक केिल, उदार लोकतंत्र एक व्यािहाररक अथिा अथरपूणर तथा साथर क लोकतं त्र है। कई विचारक, विर्े ष रूप से , जब उदारिादी लोकतंत्र को, रूस में साम्यिाद के पतन के बहुत समय बाद समाजिाद या माक्सरिादी आदर्ों द्वारा चुनौती दी गई थी, एक अमेररकी नि-दवक्षणपंथी वसद्ां तकार, फ्ाांतिि फुकुयामा (दी एां ि ऑफ दी तहिर ी 1992) ने इवतहास अंत के बारे में तकर वदया। इवतहास के अंत से , उनका मतलब था, कोई प्रवतस्पिी विचार नही ं है , क्योंवक केिल एक विचार है जो जीतता है तथा इसे उदार लोकतंत्र कहा जाता है। प्रबोधन तवचारक (17वी ां और 18वी ां शिाब्दी) उदार लोकतंत्र की उत्पवर्त् का पता जॉन लॉक, जीन-जैक्स रूसो और मोंिेथक्यू जैसे प्रबुद् विचारकों से लगाया जा सकता है। लॉक की "टू टर ीटीज ऑफ गवनिमेंट" ने प्राकृवतक अव?

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