गर्दभिल्ल वंश PDF
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Amit Shukla
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This document provides an overview of the Gardabhilla dynasty, a historical royal family from ancient India. It discusses their origins, rule, and significance in the context of Madhya Pradesh's past. The document is part of a larger educational resource.
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Amit Shukla इकाई – 2 मध्यप्रदेश के राजवंश |1. गददभिल्ल वंश सामान्य जानकारी - ▪ जैन साहित्य के अनसु ार मौयय व शुंगु के बाद ईसा पवू य की प्रथम सदी म...
Amit Shukla इकाई – 2 मध्यप्रदेश के राजवंश |1. गददभिल्ल वंश सामान्य जानकारी - ▪ जैन साहित्य के अनसु ार मौयय व शुंगु के बाद ईसा पवू य की प्रथम सदी में उज्जैन पर गदयहिल्ल (िील वुंश) वुंश ने मालवा पर राज हकया। राजा गदयहिल्ल अथवा गुंधवयसेन/चन्दरसेन िील जनजाहि से सुंबुंहधि थे, आज िी ओहिशा के पवू ी िाग के क्षेत्र को गदयहिल्ल और िील प्रदेश किा जािा िै। ▪ मत््य परु ाण में सप्त गदयहिल्लों का उल्लेख िै। ▪ जैनाचायय मेरुिगुंु रहचि थेरावहल में उल्लेख हमलिा िै हक गदयहिल्ल वश ुं का राज्य उज्जहयनी में 153 वर्य िक रिा। ▪ गदयहिल्ल वुंश की सचू ी – गुंधवयसेन (गदयहिल्ल), शकों का शासन (4 वर्य), हवक्रमाहदत्य, धमायहदत्य, िाइल्ल, नाइल्ल, नािर ▪ गदयहिल्ल ने 13 वर्य िक शासन हकया। हवक्रमाहदत्य ने 60 वर्य िक शासन हकया। उसके बाद हवक्रमचररत्र उपनाम धमायहदत्य ने 40 वर्य िक, िाइल्ल ने 11 वर्य िक, नाइल्ल ने 14 वर्य िक िथा नािर ने 10 वर्य िक शासन हकया। इस प्रकार कुल हमला कर गदयहिल्ल के चार वुंशजों ने 75 वर्ों िक शासन हकया अथायि् गदयहिल्ल वुंश का उज्जहयनी पर 153 वर्य िक शासन रिा। गददभिल्ल (संस्थापक) - ▪ िहवष्यपरु ाण के अनसु ार गदयहिल्ल (गुंधवयसेन) इस वुंश का सुं्थापक था। ▪ गधुं यवसेन को नाबोिान का पत्रु माना गया िै। ▪ राजा गदयहिल्ल अथवा गुंधवयसेन/चन्दरसेन िील जनजाहि से सुंबुंहधि थे। ▪ गदयहिल्ल ने 13 वर्य िक शासन हकया। ▪ िहवष्यपरु ाण में गदयहिल्ल को गुंधवयसेन किा गया िै एवुं श्वेिाम्बर पुंरपरा में गदयहिल्ल किा गया िै। ▪ जैन ग्रन्दथ हत्रलोक प्रज्ञहप्त के अनसु ार शगुंु ों पर हवक्रमाहदत्य के हपिा गदयहिल्ल ने हवजय प्राप्त की, जो शकों के द्वारा परा्ि िुआ था। ▪ काहलदास कृ ि अहिज्ञान शाकुन्दिलम और जैन साहित्य थेरावली के अनसु ार राजा गदयहिल्ल को जैन महु न कलकाचयाय की बिन सर्विी से प्रेम था, जैन महु न के हखलाफ जाकर उन्दिोंने सर्विी का अपिरण कर हलया, इस अपमान से आिि उस साधु ने हसुंध प्राुंि से शकों को बल ु ाकर उनकी सिायिा ली थी और शकों ने गदयहिल्ल को िराकर उज्जैन पर अहधकार कर हलया था। ▪ गदयहिल्ल के छोटे पत्रु हवक्रम ने गदयहिल्ल के पराहजि िोने की घटना के 17 वर्य बाद, अपने मािृकुल के िीलों की सिायिा से शकों को पराहजि कर, पनु ः अपना राज्य प्राप्त कर हलया। गददभिल्ल वश ं को जानने के प्रमख ु साधन - 1. मि्य परु ाण, वायु परु ाण िथा हवष्णु परु ाण 2. जैन आचायय मेरूिुंग का ग्रुंथ थेरवाली 3. हजनसेन का ग्रथुं िररवश ुं परु ाण 4. अलबरूनी की प्ु िक हकिाब-उल-हिन्दद 5. सोमदेव की रचना कथासररिसागर 6. राजा िाल की रचना गाथा सप्िशहि एवुं 7. काहलदास का ग्रुंथ ज्योहिहविंदािरणम आहद िै। t.me/amitshuklanotes Contact - 7400525010 Amit Shukla इकाई – 2 मध्यप्रदेश के राजवंश |2 िर्दतहरर – ▪ राजा ििृयिरर सुं्कृ ि के हवद्वान कहव और नीहिकार थे। वे सम्राट हवक्रमाहदत्य के बडे िाई थे। ▪ ििृयिरर की शिकत्रय/हत्रशिक के नाम से प्रमख ु रचनाएुं िै – नीहिशिक, श्ृगुं ारशिक, वैराग्यशिक। ▪ माना जािा िै हक नाथपुंथ के वैराग्य नामक उपपुंथ के प्रवियक ििृयिरर थे। ▪ ििृयिरर का जन्दम उज्जैन में िुआ िथा इनकी समाहध सरर्का उत्िर प्रदेश में िै। ▪ ििृयिरर की गफ ु ा उज्जैन में ह्थि िै। ▪ इनके गरू ु का नाम गोरखनाथ था। ▪ अन्दय प्रमख ु रचनाएुं - वाक्यपदीय, मिािाष्य दीहपका, वेदाुंिसत्रू वृहि, िट्टीकाव्य, शब्दधािु समीक्षा, मीमाुंसासत्रू वृहि आहद। ▪ हवक्रम के बडे िाई ििृयिरर ने अवुंिी पर शासन हकया। ििृयिरर को उनकी पत्नी हपुंगला/अनुंगसेना के चररत्र पर सुंदिे िोने से वे राजपाट छोडकर नाथपुंथी साधु िो गए। उन्दिोंने (ििृयिरर) िारि के अनेक ्थानों पर जाकर िप्या की थी। उनमें से कुछ ्थानों के नाम इस प्रकार िैं- 1. उज्जैन - ििृयिरर गफ ु ा (मध्य प्रदेश) 2. राजोरगढ़ - अलवर के समीप राज्थान में। यिााँ अनेक वर्ों से एक अखुंि दीपक (ििृयिरर की जोि) जल रिी िै। 3. चनु ार - हजला हमजायपरु (उिर प्रदेश) यिााँ राजा हवक्रम का बनवाया िुआ ििृयिरर मुंहदर िै। भवक्रमाभदत्य – ▪ 58 ई. पवू य हवक्रमाहदत्य उज्जैन नगर के गौरवशाली राजा थे। हवक्रमाहदत्य से सुंबुंहधि आख्यानों में उनके शौयय, नीहिज्ञिा, मानवीयिा और चाियु य के दृष्ाुंि िरे पडे िैं। बेिाल पच्चीसी और हसुंिासन बिीसी इसके अनपु म उदािरण िै। ▪ हवक्रमाहदत्य के सम्बन्दध में सोमदेव िट्ट द्वारा रहचि कथासररत्सागर में हलखा िै हक - हवक्रमाहदत्य उज्जैन के राजा थे। उनके हपिा का नाम गन्दधयवसेन (मिेन्दराहदत्य) और मािा का नाम सौम्यदशयना था। ▪ इनकी बिन का नाम मैनावहि एवुं िाई का नाम ििृयिरर था। ▪ इनकी पाुंच पहत्नया थी - मलयाविी, मदनलेखा, पहिनी, चेल्ल और हचल्लमिादेवी। ▪ इनके दो पत्रु थे – हवक्रमचररि और हवनयपाल ▪ पत्रु ी का नाम – हप्रयगुं मु जुं री (हवद्योत्िमा) और वसुं धु रा। ▪ हवक्रमाहदत्य द्वारा शकों का उन्दमल ू न कर हवक्रम सुंवि् की ्थापना की पहु ष् प्रबन्दधकोर् एवुं धनेश्वर सरू र रहचि - "शत्रजुंु यमिात्म्य" से िी िोिी िै। ▪ सुंिविः हवक्रमाहदत्य का मल ू नाम हिल्ल-इल्ल जैसा कुछ रिा िोगा। शकों पर हवजय पाने के बाद उन्दिोंने अपने नाम के आगे हवक्रमाहदत्य की उपाहध लगा ली िोगी और कालक्रम से मल ू नाम लप्तु िोकर प्रचहलि हवक्रमाहदत्य नाम िी प्रहसद्ध िो गया िोगा. ▪ आचायय िजारी प्रसाद हद्ववेदी हवक्रमाहदत्य को सर्विी पत्रु मानिे िैं। विीं पौराहणक साहित्यकार उन्दिें मिारानी सौम्यदशयना का पत्रु । िील वृिाुंि उन्दिें िील राजकुमारी अिोहलया का पत्रु कििे िैं। ऐसे में सुंिव यिी िै हक हवक्रमाहदत्य िील रानी अिोहलया के िी पत्रु रिे िों। 'बृित्कल्प िाष्य' नामक जैन ग्रन्दथ की गाथाओ ुं में िी गदयहिल्ल के साथ रानी अिोहलया का िी उल्लेख हमलिा िै। ▪ प्राचीन जैन ग्रुंथों और परु ाणों, अहिज्ञान शाकुन्दिल, हवक्रमोवयशीय आहद में िी हवक्रमाहदत्य को गदयहिल्लराज का िी पत्रु बिाया गया िै। t.me/amitshuklanotes Contact - 7400525010 Amit Shukla इकाई – 2 मध्यप्रदेश के राजवंश |3 ▪ हवक्रमाहदत्य की राज्यसिा में नवरत्न थे - हजनमें धन्दवन्दिरर, क्षपणक, अमर हसुंि, शुंकु, वेिालिट्ट, घटखपयर, काहलदास, वरािहमहिर, वररुहच शाहमल थे। o Note - ▪ सौम्यदशयना को वीरमहि और मदनरे खा िी कििे थे। ▪ 'हवक्रमाहदत्य ऑफ उज्जहयनी’ नामक कृ हि राजबली पाण्िेय द्वारा हलखी गई िै। भवक्रमाभदत्य के अभस्र्त्व को भसद्ध करने के साधन - ▪ हवक्रमाहदत्य के अह्ित्व को हसद्ध करने का सबसे सबल आधार उनके द्वारा चलाया गया हवक्रम सुंवि िै, हजससे प्रथम शिी ई्वी पवू य में हवक्रमाहदत्य के राजा िोने की बाि हसद्ध िोिी िै। हसुंिासन बिीसी, कथासररत्सागर, गाथा सप्तशिी, मेरूिुंगु रहचि थेरावली आहद अनेक ऐसे ग्रथुं िै जो इसी िथ्य को प्रमाहणि करिे िैं। ▪ प्रहिष्ठान के राजा िाल द्वारा रहचि "गाथासप्तशिी" में उल्लेख िै- "हवक्रमाहदत्य नामी उदार एवुं प्रिापी राजा ने िृत्यों को लाखों का उपिार हदया। " िार्ा के आधार पर यि रचना 200 ई. से 450 ई. की मालूम िोिी िै। इस ग्रुंथ में हवक्रमाहदत्य का उल्लेख िोना इस बाि का सुंकेि िै हक ई.प.ू पिली शिाब्दी में हवक्रमाहदत्य राजा थे। ▪ इस सम्बन्दध में अलबरूनी ने अपने ग्रुंथ "अलबरूनी का िारि" में हलखा िै हक शक सुंवि् का प्रारम्ि हवक्रम सुंवि् के 135 वर्य बाद से सुंवि् प्रारम्ि िुआ। भवक्रमाभदत्य की ऐभर्हाभसकर्ा – ▪ हवक्रमाहदत्य की ऐहििाहसकिा ्थाहपि करने के हलए कुछ शिों का परू ा करना आवश्यक िै हजनमें (1) मालव प्रदेश और उज्जहयनी का राजधानी िोना (2) शकारर िोना (3) 57 ई. पवू य में सवुं ि् का प्रवियक िोना (4) काहलदास का आश्यदािा िोना। ▪ इन सिी शिों की पहू िय में हवक्रमाहदत्य को एक ्वर में िॉ. काले, शारदा रुंजनराय, के चट्टोपाध्याय, राजबली पाण्िेय, नहलन हवलोचन शमाय, उज्जहयनी के आचायय सयू य नारायण व्यास, पुं. के शव िाई ध्रुव जैसे अनेक िारिीय मनीहर्यों एवुं सर हवहलयम जोन्दस, पीटरसन, एच. एच. हवल्सन जैसे पाश्चात्य हवद्वानों ने ्वीकार हकया िै। भवक्रम संवर् - ▪ उज्जहयनी से शकों को हनष्काहसि करने के िथा इसके बाद देने के उपलक्ष्य में हवक्रमाहदत्य ने 58 ई.पू में में एक नवीन सवुं ि् की ्थापना की जो कृ ि, मालव एवुं हवक्रम सुंवि् नाम से अलग-अलग कालों में पक ु ारा जािा रिा और आज िी यि परम्परा जीहवि िै। ▪ हवक्रमाहदत्य द्वारा शकों का उन्दमल ू न कर हवक्रम सुंवि् की ्थापना की पहु ष् प्रबन्दधकोर् एवुं धनेश्वर सरू र रहचि-- "शत्रजुंु यमिात्म्य" से िी िोिी िै। ▪ प्राचीन काल में राजाओ ुं द्वारा अपने नाम से सुंवि चलाया जािा था। सुंवि चलाने से पवू य राजा के सामने यि शिय िोिी थी हक उसे अपनी प्रजा को ऋण मक्त ु करना िै। हजस राजा द्वारा अपने राज्य में मौजदू िर शख्स का ऋण चक ु ा हदया जािा था वो अपने नाम से सुंवि् चला सकिा था। राजा हवक्रमाहदत्य के बारे में किा जािा िै हक उन्दिोंने िी इस परुंपरा का पालन हकया था और अपने नाम से सवुं ि चलाने से पिले प्रजा को ऋण मक्त ु हकया था। ▪ जैन ग्रन्दथ मेरूिुंगु ाचाय रहचि पट्टावली में हलखा िै हक 24वें िीथिंकर िगवान वधयमान मिावीर के हनवायण के 470 वर्य पश्चाि अथायि 57 ईसा पवू य में हवक्रम सवुं ि का प्रवयिन िुआ। t.me/amitshuklanotes Contact - 7400525010 Amit Shukla इकाई – 2 मध्यप्रदेश के राजवंश |4 ▪ हवक्रमाहदत्य द्वारा शकों का उन्दमल ू न एवुं ‘हवक्रम सुंवि’् की ्थापना की पहु ष्, प्रबन्दधकोर् एवुं धनेश्वरसरू र रहचि 'शत्रुंजु य मिात्म्य' से िी िोिी िै। अलबेरुनी ने अपने ग्रुंथ में िी इस बाि का उल्लेख हकया िै। o नोट - राजनीहि में शत्रवु ध के हलए 'कृ त्या' शब्द का प्रयोग प्राचीन धमयग्रन्दथों में िुआ िै। उसी का रूप 'कृ त्य' या कृ ि िै। भवक्रमाभदत्य का राज्य भवस्र्ार एवं प्रमुख युद्ध – ▪ शक क्षत्रप निपान के आक्रमण से हवक्रमाहदत्य के हपिा गधुं वयसेन की मृत्यु िुई थी, इस घटना के 20 वर्य उपरािुं हवक्रम ने शकों को उज्जैन से खदेड हदया था। ▪ इस प्रकार शकों का मालवा से हनष्कासन सबसे मित्त्वपणू य कायय था। इस अवसर पर उसने हवक्रम सुंवि् चलाया था। ▪ नेपाली राजवुंशावली के अनुसार नेपाल के राजा अुंशु वमयन के समय हवक्रमाहदत्य ने नेपाल की यात्रा की थी आर अुंशु वमयन को अधीन्थ बनाया था। ▪ राजिरुंहगणी के लेखक कल्िण के अनसु ार लगिग 14 ई. में काश्मीर के अुंधक यहु द्धहष्ठर वुंश के शासक हिरण्य की हनसुंिान मृत्यु िोने पर विाुं की मुंत्री पररर्द में हवक्रम को अपना शासक चनु ा था पर हवक्रम ने अपने प्रहिहनहध के रुप में मात्र गप्तु को शासन करने िेजा था। ▪ िारि को हवदेशी शहक्तयों से मक्त ु करने के हलए इसने हवशाल सैन्दय सुंगठन हकया था। उसने सैन्दय सुंगठन कर सैहनकों की सुंख्या 30 हमहलयन कर ली थी, उसके पास 2 लाख 50 िजार िाथी थे और 400 से अहधक जिाज थे। ▪ िहवष्य िथा ्कुंदपरु ाण के अनसु ार हवक्रम ने अरब िक अपना राज्य हव्िृि हकया था। ▪ िक ु ी िार्ा के कहव जरिाम हकनिोई ने अपनी प्ु िक सायर- उल - ओकुल में इसकी अरब हवजय का उल्लेख हकया िै। उसने हवक्रम को उदार, दयाल,ु कियव्यहनष्ठ िथा हशक्षा का प्रचार-प्रसार करने वाला किा िै। हवक्रम ने हिब्बि, चीन, फारस और टकी के कई क्षेत्रों पर शासन हकया था। उसका राज्य उिर में हिमालय से दहक्षण में हसुंिल द्वीप िक हव्िृि था । उसने अपने नए जीिे गए क्षेत्रों में लगिग 1700 मील लुंबी हवश्व की पिली लुंबी सडक का हनमायण कराया था, जो एक व्यापाररक मागय बना। ▪ हवक्रमाहदत्य का सबसे प्रमुख कायय उज्जहयनी से शकों का हनष्कासन था। अपनी इस सफलिा को हचर्थायी बिाने के हलए उसने 58-57 ई. पवू य में एक नवीन सवुं ि् की ्थापना की जो कृ ि, मालव एवुं हवक्रम सवुं ि् नाम से अलग-अलग कालों में पक ु ारा जािा रिा और आज िी यि परम्परा जीहवि िै। सोम्यदशदना – ▪ सोमदेव िट्ट द्वारा रहचि कथासररत्सागर में हलखा िै हक हवक्रमाहदत्य की मािा का नाम सौम्यदशयना था। गदयहिल्ल की पराजय के बाद अज्ञािवास के दौरान मिारानी सौम्यदशयना ने ्वयुं का नाम बदलकर सोमविी और दोनों पत्रु ों का नाम शील (ििृयिरर) और हवर्मशील (हवक्रमाहदत्य) रखा। अडोभलया - ▪ िीलों के राजा की कन्दया अिोहलया से गदयहिल्ल का हववाि िुआ था। 'अिोहलया' रूप और शील में िो अनपु म थी िी, रणक्षेत्र में िी अिोल िी रििी थी। उसकी वीरिा को देखकर िी हिल्लराज ने उसका नाम 'अिोहलया’ रखा था। अिोहलया के कोई सन्दिान निीं िुई। t.me/amitshuklanotes Contact - 7400525010 Amit Shukla इकाई – 2 मध्यप्रदेश के राजवंश |5 भवक्रमाभदत्य के नवरत्न – वररुभि धन्वन्र्रर वराहभमभहर क्षपणक घटखपदर भवक्रमाभदत्य के नवरत्न अमर भसहं शंकु काभलदास वेर्ालिट्ट 1. वररुभि - वररुहच कात्यायन पाणीहनय सत्रू ों के प्रहसद्ध वाहियककार थे। वररुहच ने पत्रकौमदु ी' नामक काव्य की रचना की। वररुहच ने 'हवद्यासुंदु र' नामक एक अन्दय काव्य िी हलखा था। 'प्रबुंधहचुंिामहण' में वररुहच को हवक्रमाहदत्य की पत्रु ी का गरुु किा गया िै। 'कथासररत्सागर' के अनसु ार वररुहच का दसू रा नाम 'कात्यायन' था। इनका जन्दम कौशाम्बी के ब्राह्मण कुल में िुआ था। 'सदहु क्तकणायमिृ ', 'सिु ाहर्िावहल' िथा 'शाधर सुंहििा', इनकी रचनाओ ुं में हगनी जािी िैं। 2. वराहभमभहर – कायथा (उज्जैन) में जन्दमें वरािहमहिर ईसा के 5वी - 6 छठी शिाब्दी के िारिीय गहणिज्ञ और खगोलशास्त्री थे। वरािहमहिर ने िी अपने 'पञ्चहसद्धाुंहिका में सबसे पिले बिाया हक अयनाुंश (सयू य की गहि का हवशेर् िाग) का मान 50.32 सेकेण्ि के बराबर िै। वरािहमहिर ने ज्योहिर् हवर्यक अनेक ग्रुंथों का प्रणयन हकया। वे ग्रुंथ िैं- 'वृित्सुंहििा', 'वृिज्जािक', 'समाससुंहििा’, 'लघजु ािक', 'पञ्चहसद्धाुंहिका', 'हववाि - पटल', 'योगयात्रा', 'वृित्यात्रा', 'लघयु ात्रा। उन्दिोंने यवन ज्योहिहर्यों के नामों का िी उल्लेख हकया िै। 3. घटखपदर - किा जािा िै हक काहलदास के साथ में रिने से ये कहव बन गए थे। इनकी यि प्रहिज्ञा थी हक जो कहव मझु े 'यमक' और 'अनप्रु ास' रचना में पराहजि कर देगा, उसके घर वे फूटे घडे से पानी िरें गें। बस ििी से इनका नाम 'घटखपयर प्रहसद्ध िो गया और वा्िहवक नाम लप्तु िो गया। इनके रहचि दो लघक ु ाव्य उपलब्ध िैं। इनमें से एक पद्यों का सदुंु र काव्य िै। यि काव्य 'घटखपयर काव्य के नाम से प्रहसद्ध िै। यि दिू - काव्य िै। इसमें मेघ के द्वारा सुंदश े िेजा गया िै। घटखपयर रहचि दसू रा काव्य 'नीहिसार' माना जािा िै। इसमें 21 श्लोकों में नीहि का सुंदु र हववेचन हकया गया िै। 4. शंकु - शुंकु राजा हवक्रमाहदत्य के नवरत्नों में शुंकु का नाम उल्लेखनीय िै। शुंकु का परू ा नाम 'शङ्कुक' था। शङ्कुक को सुं्कृ ि का हवद्वान, ज्योहिर् शास्त्री माना जािा था। प्रकीणय पद्यों में शुंकु का उल्लेख शबर ्वामी के पत्रु के रूप में िुआ िै। इनका एक िी काव्य-ग्रन्दथ 'िवु नाभ्यदु यम'् बिुि प्रहसद्ध रिा िै। 5. वेर्ालिट्ट - प्राचीनकाल में िट्ट अथवा िट्टारक, उपाहध पुंहििों की िोिी थी। वेिालिट्ट से िात्पयय िै ििू -प्रेि-हपशाच साधना में प्रवीण व्यहक्त। वेिालिट्ट उज्जहयनी के श्मशान और हवक्रमाहदत्य के सािहसक कृ त्यों से पररहचि थे। सुंिवि: इसहलए उन्दिोंने 'वेिाल पञ्चहवुंशहिका' नामक कथा ग्रुंथ की रचना की िोगी। वेिाल िट्ट साहिहत्यक िोिे िुए िी ििू -प्रेि- t.me/amitshuklanotes Contact - 7400525010 Amit Shukla इकाई – 2 मध्यप्रदेश के राजवंश |6 हपशाचाहद की साधना में प्रवीण िथा िुंत्र शास्त्र के ज्ञािा थे। हवक्रमाहदत्य ने वेिाल की सिायिा से असरु ों, राक्षसों और दरु ाचाररयों को नष् हकया था। 6. काभलदास - किा जािा िै हक उनको देवी 'काली' की कृ पा से हवद्या प्राप्त िुई थी । इसीहलए इनका नाम ‘काहलदास' पड गया। उनके चार काव्य और िीन नाटक प्रहसद्ध िै। इन्दिें िारि का शेक्सपीयर किा जािा िै। ▪ काहलदास की प्रमख ु रचनाएुं नाटक - अहिज्ञान शाकुन्दिलम,् हवक्रमोवशीययम् और मालहवकाहग्नहमत्रम।् मिाकाव्य: रघवु ुंशम् और कुमारसुंिवम् खण्िकाव्य: मेघदिू म् और ऋिसु ुंिार ▪ नाटक काहलदास के प्रमख ु नाटक िैं- मालहवकाहग्नहमत्रम् (मालहवका और अहग्नहमत्र), हवक्रमोवयशीयम् (हवक्रम और उवयशी), और अहिज्ञान शाकुन्दिलम् (शकुंु िला की पिचान)। 7 अमर भसंह - अमरहसुंि प्रकाुंि हवद्वान थे। बोध गया के वियमान बद्ध ु - महन्ददर से प्राप्य एक हशलालेख के आधार पर इनको उस महन्ददर का हनमायिा किा जािा िै। राजशेखर द्वरा हलहखि 'काव्यमीमाुंसा' के अनसु ार अमरहसुंि ने उज्जहयनी में काव्यकार परीक्षा उिीणय की थी । सुं्कृ ि का सवयप्रथम कोश अमरहसुंि का 'नामहलुंगानुशासन िै, जो अब िी उपलब्ध िै िथा 'अमरकोश' के नाम से प्रहसद्ध िै। उनके अनेक ग्रन्दथों में एक मात्र 'अमरकोश' ग्रन्दथ ऐसा िै हक उसके आधार पर उनका यश अखण्ि िै। ज्योहिहवयदािरण के 22वें अध्याय के 8वें श्लोक में अमर को कहव किा गया िै। 8 क्षपणक - इनके नाम से िी प्रिीि िोिा िै हक ये बौद्ध सन्दयासी थे। इन्दिोंने कुछ ग्रुंथ हलखे हजनमें ‘हिक्षाटन' और 'नानाथयकोश' िी उपलब्ध बिाये जािे िैं। हवशाखदि ने अपने स्ुं कृ ि नाटक 'मरु ाराक्षस' में िी क्षपणक के वेश में गप्तु चरों की ह्थहि का उल्लेख हमलिा िै। 9 धन्वन्र्रर - इनके रहचि नौ ग्रथुं पाये जािे िैं। वे सिी आयवु ेद हचहकत्सा शास्त्र से सम्बहन्दधि िैं। धन्दवुंिरर शल्य हचहकत्सक थे। उनका कायय सेना में घायल िुए सैहनकों को ठीक करना था। धन्दविुं रर द्वारा हलहखि ग्रथुं ों के ये नाम िैं- 'रोग हनदान, 'वैद्य हचुंिामहण, ‘हवद्याप्रकाश हचहकत्सा, धन्दवुंिरर हनघण्टु वैद्यक िा्करोदय' िथा 'हचहकत्सा सार सुंग्रि। हिन्ददू धाहमयक मान्दयिाओ ुं के अनसु ार ये िगवान हवष्णु के अविार समझे जािे िैं। इनका पृथ्वी लोक में अविरण समरु मथुं न के समय िुआ था। t.me/amitshuklanotes Contact - 7400525010