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This document is a collection of mathematical concepts for class 10, including topics like real numbers, polynomials, and others. It provides definitions, examples, and important facts to aid students in understanding and preparing for exams.

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कक्षा - 10 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) अध्‍याय - 1 वास्‍तविक सख ं ्‍याएँ अवधारणाओ ं पर आधारित महत्‍वपूर्ण तथ्‍य yy प...

कक्षा - 10 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) अध्‍याय - 1 वास्‍तविक सख ं ्‍याएँ अवधारणाओ ं पर आधारित महत्‍वपूर्ण तथ्‍य yy प्रत्‍येक भाज्‍य संख्‍या को एक अद्वितीय रूप से अभाज्‍य संख्‍याओ ं के गणु नफल के रूप में व्‍यक्‍त किया जा सकता है । यही अक ं गणित की आधारभतू प्रमेय हैं । yy किसी भी प्राकृ त संख्‍या को उसके अभाज्‍य गणु नखडं ों के एक गणु नफल के रूप में लिखा जा सकता है । उदाहरणार्थ, 2 = 2, 4 = 2 ´ 2, 253 = 11 ´ 23 yy ‘‘एक प्राकृ त संख्‍या का अभाज्‍य गणु नखडं न उसके गणु नखडं ों के क्रम को छोड़ते हुए अद्वितीय होता है’’ । yy कार्ल फ्रैड्रिक गॉस को ‘गणितज्ञों का राजकुमार’ कहा जाता है । yy ‘‘संख्‍याओ ं में प्रत्‍येक उभयनिष्‍ठ अभाज्‍य गणु नखडं की सबसे छोटी घात का गणु नफल महत्‍तम समापवर्तक (HCF) कहलाता है ।’’ उदाहरणार्थ - 12 , 15 और 21 12 = 2 ´ 2 ´ 3 = 22 ´ 31 15 = 3 ´ 5 = 31 ´ 51 21 = 3 ´ 7 = 31 ´ 71 महत्‍तम समापर्वतक (HCF) = 31 = 3 yy ‘‘सखं ्‍याओ ं में सबं द्ध प्रत्‍येक अभाज्‍य गणु नखडं की सबसे बड़ी घात का गणु नफल लघत्‍त ु म समापवर्त्य (LCM) कहलाता है ।’’ उदाहरणार्थ - 6 = 2 ´ 3 = 2 1 ´ 31 20 = 2 ´ 2 ´ 5 = 22 ´ 51 ु म समापवर्त्य (LCM) = 22 ´ 31 x 51 = 2 ´ 2 ´ 3 ´ 5 = 60 लघत्‍त yy किसी प्राकृ त संख्‍या n के लिए, संख्‍याएँ 4n और 6n संख्‍या अक ं 0 (शन्ू ‍य) पर समाप्‍त नहीं होगी क्‍योंकि 0 (शन्ू ‍य) पर समाप्‍त होने वाली संख्‍याएँ 5 से विभाज्‍य होती हैं और ये संख्‍याएँ 5 से विभाज्‍य नहीं हैं । yy ू ांकों a और b के लिए, HCF (a,b) ´ LCM (a,b) = a ´ b होता है। किन्‍हीं दो घनात्‍मक पर्ण yy दो सखं ्‍याओ ं का गणु नफल, उनके HCF और LCM के गणु नफल के बराबर होता है, परन्‍तु तीन सखं ्‍याओ ं का गणु नफल उनके HCF और LCM के गणु नफल के बराबर नहीं होता है । yy P अपरिमेय सखं ्‍या है, जहाँ P एक अभाज्‍य सखं ्‍या है । 2 , 3 , 5 , 7 , 11, 1 3 , 1 7........ इत्‍यादि अपरिमेय संख्‍याएँ हैं । yy यदि P कोई अभाज्‍य सखं ्‍या है और P, a2 को विभाजित करता है तो P, a को भी विभाजित करे गा, जहाँ a एक घनात्‍मक पर्ण ू ांक है। 1 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) कक्षा - 10 yy एक परिमेय संख्‍या और एक अपरिमेय संख्‍या का योग या अतं र एक अपरिमेय संख्‍या होती है । उदाहरणार्थ - 3 + 4 5 , 2- 5 yy एक शनू ्‍येतर परिमेय संख्‍या और एक अपरिमेय संख्‍या का गणु नफल या भागफल एक अपरिमेय संख्‍या होती है। अध्‍याय - 2 बहुपद अवधारणाओ ं पर अाधारित महत्‍वपूर्ण तथ्‍य yy चर x के बहुपद P (x) में x की उच्‍चतम घात बहुपद की घात कहलाती है । yy बहुपद 4x + 2 चर x में घात 1 का बहुपद है, क्‍योंकि चर x की अधिकतम घात 1 है । yy 2y2-3y+4, चर y में घात 2 का बहुपद है क्‍योंकि चर y की अधिकतम घात 2 है । yy 5x3-4x2+x-3 चर x में घात 3 का बहुपद है क्‍योंकि चर x की उच्‍चतम घात 3 है । yy ऐसे बहुपद जिनकी घात 1 होती है रै खिक बहुपद कहलाते हैं । जैसे 2x - 3, 3z+4, 5x-2 आदि में बहुपद की अधिकतम घात 1 है, अत: ये रे खीय बहुपद हैं । yy P(x) = x2-3x-4 में x = 2 रखने पर P(2) = 22-3´2-4 = -6 प्राप्‍त होता है यह x = 2 पर बहुपद P(x) का मान है । yy यदि बहुपद P(x) में x को किसी वास्‍तविक संख्‍या k से प्रतिस्‍थापित करने पर बहुपद का मान शन्ू ‍य प्राप्‍त होता है , अर्थात P(k) = 0, तो k बहुपद का शन्ू ‍यक कहलाता है । yy बहुपद P(x) = x2 - 3x - 4 का x = -1 पर मान P(-1) = (-1)2 - 3(-1) - 4 = 1+3-4 = 0 P(-1) = 0, अत: x = -1 बहुपद P(x) का शन्ू ‍यक है । yy किसी बहुपद ax + b; a≠0 का शन्ू ‍यक उस बिंदु का x- निर्देशांक होता है, जहाँ y = ax + b का ग्राफ x-अक्ष को प्रतिच्‍छेद करता है । yy किसी n घात के दिए गए बहुपद P(x) के लिए y = P(x) का ग्राफ x-अक्ष को अधिक से अधिक n बिन्‍दुओ ं पर प्रतिच्‍छेद करता है। अत: n घात के किसी बहुपद के अधिक से अधिक n शन्ू ‍यक हो सकते हैं । yy बहुपद P(x) का ग्राफ x-अक्ष को 3 बिंदओ ु ं पर प्रतिच्‍छेद कर रहा है अत: बहुपद P(x) के तीन शन्ू ‍यक होंगे । yy किसी द्विघात बहुपद ax2 + bx + c, a≠0 के संगत समीकरण y = ax2 + bx + c का ग्राफ परवलय होता है। 2 कक्षा - 10 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) yy बहुपद P(x) का ग्राफ x -अक्ष को जितने बिंदओ ु ं पर प्रतिच्‍छेद करता है, उस बहुपद P(x) के उतने ही शन्ू ‍यक होते हैं । yy रे खीय बहुपद का व्‍यापक रूप ax + b है, जहाँ a, चर x का गणु ांक एवं b अचर पद है तथा a ≠ 0. yy द्विघात बहुपद का व्‍यापक रूप ax2+bx+c, जहाँ a, b, c वास्‍तविक संख्‍याएँ हैं तथा ‍a ≠ 0. yy P(x) = ax2+bx+c द्विघात बहुपद के शन्ू ‍यक a और b हैं तो - (x का गणु ांक) शन्ू ‍यकों का योगफल = −b x2 का गणु ांक α+β = a और अचर पद शन्ू ‍यकों का गणु नफल = x2 का गणु ांक α. β = ac - (-7) 7 yy बहुपद 2x2 - 7 x -9 में शन्ू ‍यकों का योगफल = = होगा । 2 2 अचर पद -12 yy x2 + x -12 बहुपद में शन्ू ‍यकों का गणु नफल = = = -12 होगा । x2 का गणु ांक 1 yy यदि α, β किसी द्विघात बहुपद के शन्ू ‍यक हैं तो द्विघात बहुपद P(x ) = k [x2 -(α+β) x + αβ] की तरह का होगा जहाँ k कोई वास्‍तविक संख्‍या है । yy बहुपद के शन्ू ‍यकों का योग -3 व गणु नफल 2 है तो बहुपद x2 -(-3) x + 2 = x2 + 3x + 2 होगा । yy त्रिघात बहुपद ax3 +bx2 +cx+d के शन्ू ‍यक α, β, γ हों तो शन्ू ‍यकों तथा गणु ांकों में सबं ंध -b α + β + γ = a c αβ + β γ + γ α = -d a αβ γ = a yy t2 - 15 बहुपद में t2 का गणु ांक a = 1, t का गणु ांक b = 0 तथा अचर पद c = -15 हैं, तब -b -0 α+β = = =0 a 1 और c -15 α, β = = = -15 a 1 3 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) कक्षा - 10 अध्‍याय - 3 दो चर वाले रैखिक समीकरण युग्‍म अवधारणाओ ं पर आधारित महत्‍वपूर्ण तथ्‍य yy दो चर वाले रै खिक समीकरण यग्ु ‍म को प्रदर्शित करने वाला मानक रूप : a1x + b1y + c1 = 0 और a2x + b2y + c2 = 0 हैं, जहाँ x, y चर हैं तथा a1, b1, c1 और a2, b2, c2 गणु ांक हैं । yy दो चर वाले रै खिक समीकरण यग्ु ‍म का हल, एक ऐसा बिदं ु होता है, जो कि यग्ु ‍म की दोनों रेखाओ ं पर स्थित हो । yy रै खिक यग्ु ‍म की रे खाएँ एक बिंदु पर प्रतिच्‍छेद करती हैं, तो इस स्थिति में, समीकरण यग्ु ‍म का एक अद्वितीय हल होता है । yy एक रै खिक समीकरण यग्ु ‍म, जिसका हल होता है, रै खिक समीकरणों का सगं त (consistent) यग्ु ‍म कहलाता है । yy रै खिक यग्ु ‍म की रे खाएँ सपं ाती होती हैं, तो इस स्थिति में, समीकरणों के अपरिमित रूप से अनेक हल होते हैं एवं इस यग्ु ‍म को दो चरों के रै खिक समीकरणों का आश्रित (dependent) यग्ु ‍म कहते हैं । yy रै खिक समीकरणों का आश्रित यग्ु ‍म सदैव संगत (consistent) होता है । yy दो चर वाले रै खिक समीकरण यग्ु ‍म की रे खाएँ समांतर होती हैं, तो इस स्थिति में, समीकरणों का कोई भी हल नहीं होता है । yy रै खिक समीकरण यग्ु ‍म, जिसका कोई हल नहीं होता, रै खिक समीकरणों का असगं त (inconsistent) यग्ु ‍म कहलाता है । yy रै खिक समीकरण यग्ु ‍म : a1 x + b1 y + c1= 0 और a2 x + b2 y + c2= 0 में निम्‍न स्थितियाँ उत्‍पन्‍न हो सकती हैं : b (i) a1 ≠ 1 : इस स्थिति में, रै खिक समीकरण यग्ु ‍म संगत होता है एवं समीकरणों का एक a2 b2 अद्वितीय हल होता है तथा रे खाऍ ं प्रतिच्‍छेदी होती हैं । a1 b1 c1 (ii) = ≠ a2 b2 c2 : इस स्थिति में, रै खिक समीकरण यग्ु ‍म असंगत होता है एवं समीकरणों का कोई भी हल नहीं होता है तथ्‍ाा रे खाएँ समांतर होती हैं । a1 b1 c1 (iii) = = a2 b2 c2 : इस स्थिति में, रै खिक समीकरण यग्ु ‍म आश्रित (संगत) होता है एवं समीकरणों के अनंत हल होते हैं तथा रे खाएँ सपं ाती होती हैं । yy रै खिक समीकरण यग्ु ‍म के ग्राफीय विधि द्वारा हल में दोनों समीकरणों को ग्राफ में प्रदर्शित कर उनके प्रतिच्‍छेद बिंदु के निर्देशांक ज्ञात करते हैं, जो कि समीकरण यग्ु ‍म का हल होता है । 4 कक्षा - 10 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) अध्‍याय - 4 द्विघात समीकरण अवधारणाओ ं पर आधारित महत्‍वपूर्ण तथ्‍य yy जब हम द्विघात बहुपद को शन्ू ‍य के तल्ु ‍य कर देते हैं तो हमें द्विघात समीकरण प्राप्‍त हो जाती है । yy यदि p(x), घात दो का एक बहुपद है, तो समीकरण p(x)= 0, एक द्विघात समीकरण कहलाता है। yy ax2 + bx + c = 0 जहाँ a, b, c वास्‍तविक संख्‍याएँ हैं तथा a ≠ 0, िद्वघात स‍मीकरण का मानक रूप है । yy द्विघात समीकरण के कुछ उदाहरण : - (i) x2 - 3x - 10 = 0 (ii) 2x2 + x - 300 = 0 (i) 2x2 - x + 18 = 0 आदि yy द्विघात समीकरण का हल - (i) गणु नखण्‍ड विधि :- ax2 + bx + c, a ≠ 0 को दो रै खिक गणु कों में गणु नखण्‍ड करके प्रत्‍येक गणु क को शन्ू ‍य के बराबर करके हल प्राप्‍त करते हैं, तो द्विघात समीकरण ax2 + bx + c = 0 के मल ू प्राप्‍त होते हैं । उदाहरण :- 2x2 + x - 300 = 0 (x - 12) (2x+25) = 0 − 25 अत: x = 12 या x = 2 (ii) सत्रू विधि :- श्रीधराचार्य (सा. य.ु 1025) द्वारा द्विघात समीकरण ax2 + bx + c = 0, a ≠ 0 को हल करने के लिए सत्रू प्रतिपादित किया जिसे ‘‘द्विघात सत्रू ’’ कहते हैं । − b ± b2 − 4 a c x= 2a उदाहरण :- द्विघात समीकरण x2 - 3x - 10 = 0 को द्विघात सत्रू द्वारा हल करना :- द्विघात समी. की मानक रूप ax2 + bx + c = 0 से तल ु ना करने पर a = 1, b = - 3, c = -10 − ( −3) ± ( −3) 2 − 4 ´ 1 ´ ( −1 0) x= 2 ´1 3 ± 9 + 40 x= 2 3 ± 49 = 2 3 ±7 = 2 5 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) कक्षा - 10 चिह्न लेने पर 3 + 7 10 x= = =5 2 2 चिह्न लेने पर 3 −7 -4 x= = = −2 2 2 अत: x = 5 , − 2 yy द्विघात समीकरण का विि‍वक्‍तकर D = b2 - 4ac होता है, जहाँ a, b, c द्विघात समीकरण ax2 + bx + c = 0, a ≠ 0 के क्रमश: x2 का गणु ांक, x का गणु ांक तथा अचर पद हैं । yy द्विघात समीकरण के मल ू ों की प्रकृ ति द्विघात समीकरण ax2 + bx + c = 0, a ≠ 0 में (i) दो भिन्‍न वास्‍तविक मल ू होते हैं, यदि b2- 4ac > 0 हो (ii) दो वास्‍तविक एवं बराबर मल ू होते हैं यदि b2 - 4ac = 0 हो (iii) कोई वास्‍तविक मल ू नहीं होते हैं यदि b2 - 4ac < 0 हो उदाहरण :- द्विघात समीकरण 2x2 - 3x + 5 = 0 के मल ू ों की प्रकृ ति ज्ञात करना :- दी हुई समीकरण की तल ु ना मानक रूप ax + bx + c = 0 से करने पर a = 2, b = -3, c = 5 2 विि‍वक्‍तकर D = b2 - 4ac = (-3)2 - 4 ´ 2 ´ 5 = 9 - 40 = -31 < 0 अत: द्विघात समी. 2x2 - 3x + 5 = 0 के कोई वास्‍तविक मल ू नहीं होंगे । 6 कक्षा - 10 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) अध्‍याय- 5 समांतर श्रेि‍ढ़याँ अवधारणाओ ं पर आधारित महत्‍वपूर्ण तथ्‍य yy प्रकृ ति मंे अनेक वस्‍तुएँ एक निश्चित प्रतिरूप (pattern) का अनसु रण करती हैं जैसे कि सरू जमख ु ी के फूल की पंखडिु ़याँ, मध-ु कोष (या मधु छत्‍ते) में छिद्र, एक भट्ु टे पर दाने, एक अनन्‍नास और एक पाइन कोन पर सर्पिल इत्‍यादि । दैनिक जीवन में निश्चित प्रतिरूप का उदाहरण - किसी व्‍यक्ति की प्रथम मासिक वेतन `8000 और `500 वार्षिक वेतन वृद्धि होने पर प्रथम, द्वितीय और तृतीय वर्ष इत्‍यादि के लिए वेतन 8000, 8500, 9000..... होगा । अन्‍य प्रतिरूप (i) 100, 150, 200, 250.... (ii) 1, 2, 3, 4...... (iii) -3, -2, -1, 0........ (iv) 3, 3, 3, 3...... (v) -1.0, -1.5, -2.0, -2.5...... उपरोक्‍त सचू ी में उत्‍तरोत्‍तर पदों को इनसे पहले पदों में एक निश्चित संख्‍या जोड़कर प्राप्‍त किया जाता है । सखं ्‍याओ ं की ऐसी सचू ी को समांतर श्रेढी (Arithmetic Progression या A.P.) कहा जाता है । yy एक समांतर श्रेढ़ी सखं ्‍याओ ं की ऐसी सचू ी होती है, जिसमें प्रत्‍येक पद (प्रथम पद के अतिरिक्‍त) अपने से ठीक पहले पद में एक निश्चित संख्‍या d जोड़कर प्राप्‍त होता है । यह निश्चित संख्‍या d इस समांतर श्रेढ़ी का सार्वअतं र कहलाती है। सार्वअन्‍तर धनात्‍मक, ऋणात्‍मक या शन्ू ‍य हो सकता है । yy A.P. के प्रथम पद को a1, दसू रे पद को a2,..... इसी प्रकार n वें पद को an से दर्शाते हैं । A.P. को निम्‍नलिखित रूप में व्‍यक्‍त कर सकते हैं । a1, a2, a3,..............., an समांतर श्रेढ़ी में हर अगले पद में से पिछले पद को घटाकर सार्वन्‍तर प्राप्‍त होता है d = a2- a1 = a3- a2, =.............. = an - an-1 yy समांतर श्रेढ़ी का व्‍यापक रूप (general form) a, a+d, a+2d, a+3d,........ जहाँ a पहला पद और d सार्व अतं र है । yy समांतर श्रेढ़ी में पदों की सखं ्‍या परिमित होने पर श्रेढ़ी को परिमित समांतर श्रेढ़ी कहते हैं । परिमित समांतर श्रेढ़ी में अति ं म पद (last term) होता है । उदाहरण :- 147, 148, 149........., 157 7 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) कक्षा - 10 yy अपरिमित समांतर श्रेढ़ी में पदों की संख्‍या अपरिमित होती है । इसमें अति ं म पद नहीं होता है । उदाहरण : 1, 2, 3, 4....... yy प्रथम पद a और सार्वअन्‍तर d वाली एक समान्‍तर श्रेढ़ी का n वाँ पद निम्‍नलिखित सत्रू से प्राप्‍त होता है - an= a + (n-1) d an को A.P. का व्‍यापक पद (general term) भी कहते हैं । यदि किसी A.P. में m पद है तो am इसके अति ं म पद को निरूपित करता है । अति ं म पद को l द्वारा भी निरूपित किया जाता है । yy A.P. 2, 7, 12,.......... का 7 वाँ पद ज्ञात करना । a = 2 , d = 7-2 = 5 , n = 7 an = a + (n-1) d a7 = 2 + (7-1) ´ 5 a7 = 2 + 6 ´ 5 a7 = 2 + 30 a7 = 32 yy किसी A.P. के प्रथम n पदों का योग sn सत्रू sn = n2 [2a + (n-1)d] से प्राप्‍त होता है । yy यदि एक परिमित A.P. का अति ं म पद (मान लीजिए n वाँ पद) l है, तो इस A.P. के सभी पदों का योग सत्रू sn = n2 (a + l) yy प्रथम n धन पर्ण ू ांकों का योग सत्रू sn = n ( n2+ 1 ) yy यदि a, b, c, समान्‍तर श्रेढ़ी में हैं तब a+c b= 2 यहाँ b, a और c का समांतर माध्‍य कहलाता है । yy प्रथम 25 धन पर्ण ू ांकों का योग ज्ञात करना । 1, 2, 3....., 25 पदों तक a = 1, d = 2-1 = 1, n = 25 n sn = 2 [2a + (n-1)d] 8 कक्षा - 10 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) s25 = 2 5 [2 ´ 1+ (25-1)´1] 2 s25 = 2 5 [2 ´ 1+ (25-1)´1] 2 s25 = 2 5 [2 + 24] 2 s25 = 2 5 ´ 26 2 s25 = 325 अध्‍याय- 6 त्रिभुज अवधारणाओ ं पर आधारित महत्‍वपूर्ण तथ्‍य yy ऐसी आकृ तियाँ जिनके आकार (Shape) समान हों, उनका आमाप (size) समान हो या न हो समरूप आकृ तियाँ कहलाती हैं । yy तीनों वृत्त हैं, इनके आकार समान हैं परन्‍तु इनके आमाप अलग-अलग हैं, अत: यह समरूप आकृ तियाँ हैं । yy उक्‍त दोनों आकृ तियों के माप (क्षेत्रफल) समान हैं परंतु आकार अलग-अलग हैं, अत: वर्ग एवं आयत समरूप आकृ तियाँ नहीं हैं । yy सभी वर्ग समरूप होते हैं । yy सभी आयत समरूप हों, यह आवश्‍यक नहीं है । उक्‍त दोनों आकृ तियाँ समरूप नहीं हैं क्‍योंकि इनके आकार समान नहीं है । yy सभी समबाहु त्रिभजु समरूप होते हैं क्‍योंकि इनका आकार समान होता है । yy सभी सर्वांगसम आकृ तियाँ, समरूप भी होती हैं । 9 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) कक्षा - 10 yy समरूप आकृ तियाँ, सर्वांगसम भी हो यह आवश्‍यक नहीं है । yy ऐसे बहुभजु जिनमें भजु ाओ ं की सखं ्‍या समान हो समरूप होंगे यदि (i) उनके सभी सगं त कोण बराबर हों तथा (ii) उनकी सभी संगत भजु ाओ ं के अनपु ात समान हों (समानपु ाती हों) । yy चतर्भुु ज ABCD व चतर्भुु ज PQRS में ÐA = ÐP, ÐB = ÐQ, ÐC = ÐR, ÐD = ÐS सभी संगत कोण समान हैं AB 1.5 = 1 = PQ 3 2 BC 2.5 = 1 = QR 5 2 CD 2.4 = 1 = RS 4.8 2 DA 2.1 = 1 = SP 4.2 2 यहाँ AB BC = CD = DA = 1 = PQ QR RS SP 2 संगत भजु ाओ ं के अनपु ात भी समान हैं अत : चतर्भुु ज ABCD व चतर्भुु ज PQRS समरूप हैं । 10 कक्षा - 10 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) yy चतर्भुु ज ABCD व चतर्भुु ज PQRS समरूप नहीं हैं क्‍योंकि संगत कोण तो समान हैं परंतु संगत भजु ाओ ं के अनपु ात समान नहीं हैं । yy त्रिभजु ों की समरूपता की शर्तें - (i) उनके सगत कोण बराबर हों । (ii) उनकी सगं त भजु ाओ ं के अनपु ात बराबर हों । yy त्रिभजु ों की समरूपता की कसौटियाँ - दो त्रिभजु ों को समरूप दर्शाने के लिये निम्‍न कसौटियाँ का प्रयोग किया जा सकता है - (i) भजु ा - भजु ा - भजु ा (S S S) यदि दो त्रिभजु ों की संगत तीनों भजु ाओ ं के अनपु ात बराबर हों तो वे त्रिभजु समरूप होंगे । (ii) भजु ा कोण भजु ा (SAS) यदि एक त्रिभजु का एक कोण दसू रे त्रिभजु के एक कोण के बराबर हो तथा इन कोणों को अन्‍तर्गत करने वाली भजु ाएँ एक ही अनपु ात में हों तो दोनों त्रिभजु समरूप होते हैं । (iii) कोण कोण कोण (A A A) यदि दो त्रिभजु ों के सभी (तीनों) संगत कोणों की माप बराबर हो तो त्रिभजु समरूप होंगे । (iv) कोण-कोण (A A) यदि दो त्रिभजु ों में एक त्रिभजु के दो कोण क्रमश: दसू रे त्रिभजु के दो कोणों के बराबर हों, तो दोनों त्रिभजु समरूप होते हैं । yy आधारभतू अनपु ातिकता (थेल्‍स) प्रमेय कथन :- ‘‘त्रिभजु की एक भजु ा के समांतर खींची गई रे खा अन्‍य दो भजु ाओ ं को समान अनपु ात में विभािजत करती है।’’ त्रिभजु ABC में भजु ा BC के समांतर खींची गई रे खा DE, अन्‍य दोनों भजु ाओ ं AB व AC को समानपु ात में विभाजित करे गी, अर्थात AD AE = DB EC 11 गणित (महत्‍वपर्णू तथ्‍य) कक्षा - 10 yy थेल्‍स प्रमेय का विलोम :- किसी त्रिभजु में किन्‍हीं भजु ाओ ं को समानपु ात में विभाजित करने वाली रे खा, तीसरी भजु ा के समांतर होती है । DABC में यदि रे खा DE, भज ु ा AB व AC को समानपु ात में विभाजित करती है AD AE अर्थात DB = EC हो तो DE II BC होगी । yy DABC में DE II BC है तो थेल्‍स प्रमेय से AD AE = DB EC 2 x = 3 6 3´x=2´6 12 x = 3 = 4 cm. yy DABC में PS 1.5 = 1 = SQ 3 2 PT 3 = 1 = TR 6 2 PS PT  = SQ T R ST रे खा भजु ाओ ं PQ व PR को समान अनपु ात में विभाजित करती है । अत: ST II QR (थेल्‍स प्रमेय के विलोम से ) yy प्रसिद्ध यनू ानी गणितज्ञ थेल्‍स का समय काल सा.य.ु प.ू 640 - 546 yy यदि दो त्रिभजु सर्वांगसम हैं तो वे समरूप भी होंगे ।दो त्रिभजु यदि समरूप हैं तो वह सर्वांगसम हो भी सकते हैं और नहीं भी । yy दो समान कोणिक त्रिभजु ों की संगत भजु ाए समानुपातिक होती है । या दो समान कोणिक त्रिभजु ों में उनकी सगं त भजु ाअों का अनपु ात सदैव समान होता है । 12 कक्षा - 10 गणित (महत्‍वपर्णू तथ्‍य) अध्‍याय- 7 निर्देशांक ज्‍यामिति ‍अवधारणाओ ं पर आधारित महत्‍वपूर्ण तथ्‍य yy किसी बिन्‍दु की y-अक्ष से दरू ी, उस बिन्‍दु का x-निर्देशांक (भजु ) होता है। उदाहरण्‍ा : बिन्‍दु P (2,3) की y-अक्ष से दरू ी 2 है । yy किसी बिन्‍दु की x-अक्ष से दरू ी, उस बिन्‍दु का y-निर्देशांक (कोटि) होता है । उदाहरण्‍ा : बिन्‍दु Q (4,5) की x-अक्ष से दरू ी 5 है । yy x-अक्ष पर स्थित किसी बिन्‍दु के निर्देशांक (x, 0) के रूप में होते हैं तथा y-अक्ष पर स्थित किसी बिन्‍दु के निर्देशांक (0, y) के रूप के होते हैं । yy बिन्‍दुओ ं P (x1, y1) और Q (x2, y2) के बीच की दरू ी PQ = ( x2 − x1 ) 2 + ( y2 − y1 ) 2 उदाहरण : बिन्‍दुओ ं P(4,6) और Q (6,8) के बीच की दरू ी ज्ञात करना । यहाँ पर x1= 4, y1 = 6, x2= 6, y2 = 8, अत: दोनों बिन्‍दुओ ं के बीच की दरू ी PQ = (6 − 4) 2 + (8 − 6) 2 = 22 + 22 = 4+4 PQ = 8 = 4 ´ 2 = 2 2 मात्रक yy बिन्‍दु P (x,y) की मल ू बिन्‍दु O (0,0) से दरू ी OP = x2 + y 2 होती है । उदाहरण : बिन्‍दु P(7, 1) और मल ू बिन्‍दु O (0,0) से दरू ी OP = 7 2 + 12 = 4 9 + 1 = 5 0 = 5 2 yy दो बिंदओ ु ं A (x1, y1) और B (x2, y2) को जोड़ने वाले रे खाखडं AB को m1: m2 के अनपु ात में आतं रिक रूप से विभाजित करने वाले बिन्‍दु P(x, y) के निर्देशांक हैं -  m1 x2 + m2 x1 m1 y2 + m2 y1   ,   m1 + m2 m1 + m2  13 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) कक्षा - 10 yy बिन्‍दुओ ं P (x1, y1) और Q (x2, y2) को जोड़ने वाले रे खाखडं PQ के मध्‍य बिन्‍दु के निर्देशांक  x1 + x2 y1 + y2    2 , 2   होते हैं उदाहरण : बिन्‍दुओ ं (a,b) और (-a, -b) का मध्‍य बिन्‍दु ज्ञात करना । हल : यदि मध्‍य बिन्‍दु (x,y) हैं, तो a + ( − a) a − a 0 x= = = =0 2 2 2 b + ( −b) b − b 0 y= = = =0 2 2 2 अत: मध्‍य बिन्‍दु के निर्देशांक (0,0) हैं । अध्‍याय- 8 त्रिकोणमिति का परिचय अवधारणाओ ं पर आधारित महत्‍वपूर्ण तथ्‍य yy समकोण त्रिभजु ABC के कोण A के त्रिकोणमितीय अनपु ात निम्‍न प्रकार से परिभाषित किये जाते हैं कोण A की सम्‍मुख भजु ा BC (i) sin A = = कर्ण AC कोण A की संलग्‍न भजु ा AB (ii) cos A = = कर्ण AC कोण A की सम्‍मुख भजु ा BC (iii) tan A = = कोण A की संलग्‍न भजु ा AB 1 कर्ण AC (iv) cosecA = = = BC sinA कोण A की सम्‍मुख भजु ा 1 कर्ण AC (v) secA = = = cosA कोण A की संलग्‍न भजु ा AB 14 कक्षा - 10 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) 1 कोण A की सल ं ग्‍न भजु ा AB (vi) cotA = = = BC tanA कोण A की सम्‍मुख भजु ा 1 yy cosec A व्‍युत्‍क्रम है sin A का अर्थात cosec A = sin A 1 1 इसी प्रकार sec A = तथा cot A = cos A tan A sin A 1 yy tan A = तथा cot A = cos A tan A yy ु धा के लिए (sin A)2 के स्‍थान पर हम sin2A लिख सकते हैं । परंतु (sin A)-1 ≠ sin-1A सवि yy समकोण त्रिभजु का कर्ण, त्रिभजु की सबसे लंबी भजु ा होती है, इसलिये sin A या cos A का मान सदा ही 1 से कम होता है । (या विशेष स्थिति में 1 के बराबर होता है) sin 900 = 1 = cos00 yy इसी प्रकार sec A और cosec A का मान सदैव 1 से अधिक या 1 के बराबर होता है । cosec 900 = 1 = sec 00 yy समकोण त्रिभजु के किसी न्‍नयू कोण A में वृद्धि होने के साथ sin A के मान में भी वृद्धि होती है । yy sin2 A + cos2 A = 1 एक त्रिकोणमितीय सर्वसमिका है, जहाँ A किसी समकोण त्रिभजु का एक न्‍नयू कोण है । yy उपरोक्‍त सर्वसमिका से दो अन्‍य सर्वसमिकाएँ sin2 A = 1 - cos2A तथा cos2 A = 1 - sin2 A प्राप्‍त होती है । yy अन्‍य त्रिकोणमितीय सर्वसमिकाएँ हैं , i) 1 + tan2A = sec2A, जहाँ 00 ≤ A < 900 ii) tan2A = sec2A - 1, जहाँ 00 ≤ A < 900 iii) sec2A - tan2A = 1, जहाँ 00 ≤ A < 900 iv) cot2A + 1 = cosec2A, जहाँ 00 < A ≤ 900 v) cot2A = cosec2A - 1, जहाँ 00 < A ≤ 900 vi) cosec2A - cot2A = 1, जहाँ 00 < A ≤ 900 yy sin (A+B) ≠ sin A + sin B 15 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) कक्षा - 10 yy 00, 300, 450, 600 और 900 के सभी त्रिकोणमितीय अनपु ात :- ÐA 00 300 450 600 900 sin A 0 1 1 3 1 2 2 2 cos A 1 3 1 1 0 2 2 2 tan A 0 1 1 3 अपरिभाषित 3 cosec A अपरिभाषित 2 2 2 1 3 sec A 1 2 2 2 अपरिभाषित 3 cot A अपरिभाषित 3 1 1 0 3 अध्‍याय- 9 त्रिकोणमिति के कुछ अनुप्रयोग अवधारणाओ ं पर आधारित महत्‍वपूर्ण तथ्‍य yy वह रे खा जो हमारी आँख से सीधे भमि ू के समान्‍तर जाती है, क्षैतिज रे खा कहलाती है । yy हमारी आँख (प्रेक्षण बिंद)ु से उस वस्‍तु को जिसे हम देख रहे हैं, जोड़ने वाली रे खा उस वस्‍तु की दृष्टि रे खा कहलाती है । yy उन्‍नयन कोण उस स्थिति में बनता है जबकि वस्‍तु को देखने के लिये हमें अपने सिर को ऊपर उठाना होता है, अर्थात नीचे से ऊपर की ओर देखने पर । yy देखी गई वस्‍तु का उन्‍नयन कोण दृष्टि-रे खा और क्षैतिज रे खा से बना कोण होता है जबकि यह वस्‍तु क्षैतिज स्‍तर से ऊपर होती है । 16 कक्षा - 10 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) yy देखी गई वस्‍तु का अवनमन कोण दृष्टि-रे खा और क्षैतिज रे खा से बना कोण होता है, जबकि यह वस्‍तु क्षैतिज स्‍तर से नीचे होती है । yy किसी निम्‍नस्‍थ बिंदु A से किसी उच्‍चस्‍थ बिंदु B का उन्‍नयन कोण q हो, तो उस उच्‍चस्‍थ बिंदु B से निम्‍नस्‍थ बिंदु A का अवनमन कोण भी q होगा । अर्थात ÐPAB = ÐQBA yy किसी मीनार की छाया की लंबाई बढ़ने के साथ-साथ सर्यू का उन्‍नयन कोण घटता जाता है । yy जब वस्‍तु की ऊँचाई एवं उसकी छाया बराबर होती है, तो उस समय सर्यू का उन्‍नयन कोण 450 होता है । या जब सर्यू का उन्‍नयन कोण 450 होता है तो वस्‍तु ऊँचाई एवं उसकी छाया बराबर होती है । अध्‍याय- 10 वत्त ृ अवधारणाओ ं पर आधारित महत्‍वपूर्ण तथ्‍य yy परिभाषा :- तल में बिन्‍दु (केन्‍द्र) से अचर दरू ी (त्रिज्‍या) पर स्थित सभी बिन्‍दुओ ं के समहू को वृत्त कहते हैं । yy वृत्त और एक रे खा :- एक वृत्त और एक रे खा की तीन स्थितियाँ हो सकती है :- 17 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) कक्षा - 10 (i) यदि रे खा वृत्त को प्रतिच्‍छेद न करें तो, रे खा अप्रतिच्‍छेदी रे खा कहलाती है । (ii) यदि रे खा वृत्त को एक और के वल एक बिन्‍दु पर प्रतिच्‍छेद करती है, तो रे खा, स्‍पर्श रे खा कहलाती है और वृत्त एवं रे खा के उभयनिष्‍ठ बिन्‍दु को स्‍पर्श बिन्‍दु कहते हैं । (iii) यदि रे खा वृत्त को दो भिन्‍न बिन्‍दुओ ं पर प्रतिच्‍छेद करती है तो रे खा को वृत्त की छे दक रे खा कहते हैं । yy वृत्त के एक बिन्‍दु से एक अद्वितीय स्‍पर्श रे खा खींची जा सकती है । yy वृत्त के बाहर के किसी एक बिन्‍दु से वृत्त पर दो स्‍पर्श रे खाएँ खींची जा सकती है ये दोनों स्‍पर्श रे खाएँ बराबर होती हैं । yy एक वृत्त की अनन्‍त स्‍पर्श रे खाएँ खींची जा सकती हैं । yy वृत्त तथा उसकी स्‍पर्श रे खा के उभयनिष्‍ठ बिन्‍दु को स्‍पर्श बिन्‍दु कहते हैं । yy वृत्त के किसी बिन्‍दु पर स्‍पर्श रे खा, स्‍पर्श बिन्‍दु से जाने वाले त्रिज्‍या पर लम्‍ब होती है । yy वृत्त के किसी व्‍यास के सिरों पर खींची गई स्‍पर्श रे खाएँ समान्‍तर होती है। 18 कक्षा - 10 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) yy दो संकेन्‍द्रीय वृत्तों में, बड़े वृत्त की जीवा, जो छोटे वृत्त को स्‍पर्श करती है, स्‍पर्श बिन्‍दु पर समद्विभाजित होती है । AP = PB yy किसी बाह्य बिन्‍दु से वृत्त पर खींची गई दो स्‍पर्श रे खाओ ं के बीच का कोण, स्‍पर्श बिन्‍दुओ ं को केन्‍द्र पर मिलाने वाले रे खा खण्‍डों (स्‍पर्श बिन्‍दु से जाने वाली त्रिज्‍याओ)ं द्वारा केन्‍द्र पर अन्‍तरित कोण का सपं रू क होता है । अध्‍याय- 11 वत् ृ तों से सबं ंधित क्षेत्रफल अवधारणाओ ं पर आधारित महत्‍वपूर्ण तथ्‍य yy एक वृत्तीय क्षेत्र का वह भाग जो दो त्रिज्‍याओ ं और सगं त चाप से घिरा (परिबद्ध) हो, उस वृत्त का एक त्रिज्‍यखडं कहलाता है । yy वृत्तीय क्षेत्र का वह भाग जो एक जीवा और सगं त चाप के बीच में परिबद्ध हो एक वृत्तखडं कहलाता है । q ं ीय कोण q वाले त्रिज्‍यखडं का क्षेत्रफल = 360 ´ pr , जहाँ r वृत्त की त्रिज्या है । yy अश 2 yy अशं ीय कोण q वाले त्रिज्‍यखडं के सगं त चाप की लंबाई q = 360 ´ 2pr , जहाँ r वृत्त की त्रिज्या है । 19 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) कक्षा - 10 q yy दीर्घ त्रिज्‍यखडं OAQB का क्षेत्रफल = pr2 - 360 ´ pr 2 yy वृत्तखडं का क्षेत्रफल = संगत त्रिज्‍यखडं का क्षेत्रफल - संगत D का क्षेत्रफल q = 360 ´ pr 2 - क्षेत्रफल (DOAB) yy दीर्घ वृत्तखडं AQB का क्षेत्रफल = क्षेत्रफल pr2 - लघवु त्तृ खडं APB का क्षेत्रफल yy त्रिज्‍या r वाले वृत्त का क्षेत्रफल = pr2 1 yy त्रिज्‍या r वाले वृत्त के एक चतरु ्थांश का क्षेत्रफल = 4 ´ pr 2 yy त्रिज्‍या r वाले वृत्त की परिधि = 2pr 20 कक्षा - 10 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) अध्‍याय- 12 पषृ ्‍ठीय क्षेत्रफल और आयतन अवधारणाओ ं पर आधारित महत्‍वपूर्ण तथ्‍य yy ठोस आकृ तियों के चित्र : yy ठोसों के संयोजन का पृष्‍ठीय क्षेत्रफल : ठोस का संपर्णू पृष्‍ठीय क्षेत्रफल (TSA) = एक अर्द्धगोले का वक्र पृष्‍ठीय क्षेत्रफल + बेलन का वक्र पृष्‍ठीय क्षेत्रफल + दसू रे अर्द्धगोले का वक्र पृष्‍ठीय क्षेत्रफल क्षेत्रफल ठोस का संपर्णू पृष्‍ठीय क्षेत्रफल = 2 p r2 + 2 p r h + 2 p r2 yy ठोस आकृ ति का संपर्णू पृष्‍ठीय क्षेत्रफल = अर्द्धगोले का वक्र पृष्‍ठीय क्षेत्रफल + शक ं ु का वक्र पृष्‍ठीय क्षेत्रफल = 2 p r2 + p r l 21 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) कक्षा - 10 yy ब्‍लॉक का पृष्‍ठीय क्षेत्रफल = घन का कुल पृष्‍ठीय क्षेत्रफल - अर्द्धगोले के आधार का क्षे. + अर्द्धगोले का वक्र पृष्‍ठीय क्षेत्रफल ब्‍लॉक का पृष्‍ठीय क्षेत्रफल = 6a2 — pr2 + 2 pr2 yy ठोसों के सयं ोजन का आयतन : उदा. अर्द्धबेलन और घनाभ के संयोजन से बनी आकृ ति 1 वांछित आयतन = घनाभ का आयतन + 2 ´ बेलन का आयतन 1 = lbh + 2 ´ pr2h yy ठोस आकृति का नाम वक्र/पार्श्व पषृ ्‍ठीय क्षेत्रफल कुल पषृ ्‍ठीय क्षेत्रफल आयतन घनाभ पार्श्व पृष्‍ठीय क्षेत्रफल 2 (lb + bh + hl ) lbh = 2h (l+b) घन पार्श्व पृष्‍ठीय क्षेत्रफल 6a2 a3 = 4 a2 बेलन वक्र पृष्‍ठीय क्षेत्रफल 2pr (r+h) pr2h = 2prh शक ं ु वक्र पृष्‍ठीय क्षेत्रफल pr (r+l) 1 pr2h = prl 3 गोला - 4pr2 4 3 pr3 अर्द्धगोला वक्र पृष्‍ठीय क्षेत्रफल 3pr2 2 pr3 = 2pr2 3 22 कक्षा - 10 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) yy शक ं ु की तिर्यक ऊँचाई का सत्रू l = h2 + r 2 जहाँ l = तिर्यक ऊँचाई h = शक ं ु की ऊँचाई r = शक ं ु की त्रिज्‍या अध्‍याय- 13 सांख्यिकी अवधारणाओ ं पर आधारित महत्‍वपूर्ण तथ्‍य :- yy दिए हुए प्रेक्षणों का माध्‍य (या औसत) सभी प्रेक्षणों के मानों के योग को प्रेक्षणों की कुल सखं ्‍या से भाग देकर प्राप्‍त किया जाता है सभी प्रेक्षणों का योग माध्‍य (औसत) = प्रेक्षणों की कल सख्‍या ु ं यदि x1, x2, x3,.... xn प्रेक्षणों की बारंबारताएँ क्रमश: f1, f2, f3... fn हो तो अर्थात् x1, f1 बार x2, f2 बार आता है तो n प्रेक्षणों का योग = f1 x1 + f2 x2 + f3 x3 +... + fn xn = ∑ f x i =1 i i n प्रेक्षणों की संख्‍या = f1 + f2 + f3 +... + fn = ∑ f i =1 i n ∑ fi xi = i =1 समांतर माध्‍य n ∑i =1 fi yy कल्पित माध्‍य द्वारा माध्‍य ज्ञात करना यदि सभी प्रेक्षणों में से मध्‍य के ि‍कसी प्रेक्षण को कल्पित माध्‍य a मान लें तथा a से प्रत्‍येक प्रेक्षण का विचलन d = xi - a लें तो माध्‍य n ∑ fi di =a+ i =1 माध्‍य = ∑ n fi i =1 yy पद विचलन विधि - यदि h वर्ग अतं राल है तो माध्‍य  n   ∑ f i ui  माध्‍य =a+ h ´  i =1n     ∑ fi   i =1  xi − a जहाँ, a कल्पित माध्‍य है तथा ui = h जहाँ, h वर्ग अतं राल है । 23 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) कक्षा - 10 yy वर्ग अतं राल के उच्‍च सीमा और निम्‍न सीमा का मध्‍यबिंदु वर्ग चिह्न कहलाता है : उच्‍च सीमा + निम्‍न सीमा वर्ग चिह्न = 2 yy वर्गीकृ त आक ं ड़ों का बहुलक ज्ञात करने के लिये सर्वाधिक (सबसे अधिक बारम्‍बारता) बारम्‍बारता वाले वर्ग को बहुलक वर्ग चनु ते हैं । बहुलक ज्ञात करने हेतु सत्रू बहुलक = l +  2 f f− −f f− f  ´ h 1 1 0 0 2 l = बहुलक वर्ग की निम्‍न सीमा h = वर्ग अन्‍तराल की माप f1 = बहुलक वर्ग की बारम्‍बारता fo = बहुलक वर्ग से ठीक पहले वर्ग की बारम्‍बारता f2 = बहुलक वर्ग के ठीक बाद वाले वर्ग की बारम्‍बारता yy वर्गीकृ त आक ं ड़ों का माध्‍यक ज्ञात करने के लिये संचयी बारम्‍बारता स्‍तंभ तैयार करते हैं और सारणी से कुल पदों की प्रकृ ति सम या विषम के आधार पर माध्‍यक ज्ञात करते हैं । वर्गीकृ त आक ं ड़ों का माध्‍यक ज्ञात करने के लिये सत्रू n   − c f माध्‍यक = l +  2 f  ´h जहाँ, l = माध्‍यक वर्ग की निम्‍न सीमा n = प्रेक्षणों की सखं ्‍या cf = माध्‍यक वर्ग के ठीक पहले वाले वर्ग की सचं यी आवृत्ति (बारंबारता) f = माध्‍यक वर्ग की बारम्‍बारता h = वर्ग माप (यह मानते हुए कि वर्ग माप बराबर है।) yy माध्‍य, माध्‍यक और बहुलक में सम्‍बन्‍ध 3 माध्‍यक = बहुलक + 2 माध्‍य yy माध्‍य, माध्‍यक और बहुलक के न्‍द्रीय प्रवृत्ति की माप कहलाती है । yy बारम्‍बारता और सचं यी बारम्‍बारता के न्‍द्रीय प्रवृत्ति की माप नहीं है । 24 कक्षा - 10 गणित (महत्‍वपरू ्ण तथ्‍य) अध्‍याय- 14 प्रायिकता अवधारणाओ ं पर आधारित महत्‍वपूर्ण तथ्‍य yy किसी घटना E की सैद्धांतिक प्रायिकता या परम्‍परागत प्रायिकता P(E) निम्‍न रूप में परिभाषित की जाती है - E के अनक ु ू ल परिणामों की संख्‍या n (E) P(E) = प्रयोग के सभी संभव परिणामों की संख्‍या n(s) जहाँ प्रयोग के सभी परिणाम समप्रायिक हैं । प्रायिकता की उपरोक्‍त परिभाषा 1795 में पियरे - साइमन लाप्‍लास ने दी थी । yy किसी प्रयोग की वह घटना जिसका के वल एक ही परिणाम हो प्रारंभिक घटना कहलाती है । yy किसी प्रयोग की सभी प्रारंभिक घटनाओ ं की प्रायिकताओ ं का योग 1 है । yy P (E) + P (E नहीं) = 1 अर्थात् P (E) + P ( E ) = 1 है, जिससे P ( E ) =1 - P (E) प्राप्‍त होता है । yy घटना 'E' नहीं को निरूपित करने वाली घटना E घटना E की परू क घटना कहलाती है । E और E परस्‍पर परू क घटनाएँ हैं । yy उस घटना, जिसका घटित होना असंभव है, की प्रायिकता 0 (शन्ू ‍य) होती है। ऐसी घटना को एक असंभव घटना कहते हैं । yy उस घटना, जिसका घटित होना निश्चित है, की प्रायिकता 1 होती है । ऐसी घटना को एक निश्चित या निर्धारित घटना कहते हैं । yy प्रायिकता P (E) की परिभाषा से, अश ं (घटना E के अनक ु ू ल परिणामों की संख्‍या) सदैव हर (सभी संभव परिणामों की सखं ्‍या) से छोटा होता है या उसके बराबर होता है। अत: 0 ≤ P( E ) ≤ 1 yy किसी घटना की प्रायिकता 0 (शन्ू ‍य) से बड़ी या उसके बराबर होती है तथा 1 (एक) से छोटी या उसके बराबर होती है। yy प्रायिकता कभी भी ऋणात्‍मक नहीं हो सकती है । yy प्रायिकता कभी भी 1 से अधिक नहीं हो सकती है । 25

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