BPI - G 502 PDF Document
Document Details
Tags
Summary
This document appears to be about Indian philosophy, especially related to the concepts of Dharma and ethical principles. Text on topics such as societal structures, moral principles, and different schools of thought is included. It discusses the relationship between the soul (Atman), the supreme being (Paramatman), and nature (Prakriti).
Full Transcript
मनु और धम: मनु ृ ित म धम को उन िनयमों, कत ों और आचरणों के प म प रभािषत िकया गया है, जो ानमीमां सा: ानमीमां सा दशनशा की वह शाखा है, जो ान के भाव, ोत, माण और उसकी स ता का 2. त- ता – गीता : और समाज के क ाण, सु र...
मनु और धम: मनु ृ ित म धम को उन िनयमों, कत ों और आचरणों के प म प रभािषत िकया गया है, जो ानमीमां सा: ानमीमां सा दशनशा की वह शाखा है, जो ान के भाव, ोत, माण और उसकी स ता का 2. त- ता – गीता : और समाज के क ाण, सु र ा और व ा के िलए आव क ह। मनु ने धम को चार मुख पों म बाँ टा है: अ यन करती है । इसका उ े यह समझना है िक हम ान कैसे ा होता है, उसका प ा है, और उसकी ‘ त- ता’ का अथ है वह जो र बु वाला और आ -संयमी हो। वै धता कैसे िनधा रत की जाती है । 1. सामािजक धम: समाज की सं रचना और संतुलन बनाए रखने के िलए वण और आ म व ा। ‘भगवद् गीता’ के अनुसार, त- सुख-दु ः ख, लाभ-हािन, मान-अपमान जैसी ितयों म समभाव रखता है । 1. मा: मा का अथ है *स और सटीक ान*, जो वा िवकता के अनु प और ुिटयों से मु होता है । मा ऐसा 2. नै ितक धम: स , अिहं सा, शौच, इं ि य-िन ह, और तप का पालन। ान है िजसे माणों ारा िस िकया जा सके। यह यथाथ को दशाने वाला और म या िम ा से मु होता है । - उसके िलए कम का उ े फल की कामना नहीं होता, ब कम योग का पालन करना होता है। 3. गत धम: का अपने वण, आ म, और कत ों के अनुसार अपने धम का पालन। 2. माण: माण वह साधन या मा म है, िजससे स और सटीक ान ( मा) की ा होती है । भारतीय दशन म - त- का आचरण र और शां त होता है , और वह आ ा के ान म र रहता है। उसकी बु मोह, 4. िवधान धम: राजा और ाय व ा से सं बंिधत िनयम, जो समाज म अनुशासन और ाय ािपत करते ह। माणों का िवशे ष मह है, ोंिक इनसे ही स ता और अस ता का भे द होता है । भय, और ोध से मु होती है । मनु के अनुसार, धम का पालन जीवन की सं पूणता और स ाव को बनाए रखने के िलए आव क है, िजससे 3. माणों के कार: िविभ भारतीय दशनों म माणों की सं ा और प रभाषा िभ -िभ हो सकती है । सामा प 3. ि र - जै न: और समाज दोनों का िवकास हो। से िन िल खत माण मुख ह: ‘ि र ’(तीन र ) जै न धम की नैितकता और मो की ा के तीन मु िस ां त ह: 1. : इ यों या मन के मा म से सीधे अनु भव से ा ान। जै से, आँ खों से िकसी व ु को दे खना या कानों से 1. स क् दशन (सही ि ): स और वा िवकता को समझना और उसके अनु सार जीवन जीना। िन सु नना। आ ा, परमा ा एवं कृित: भारतीय दशन म “आ ा”, “परमा ा”, और “ कृित” के बीच संबंध को गहराई से 2. स क् ान (सही ान): आ ा और ांड के वा िवक प का ान। समझाया गया है । ये तीनों त सृ ि , जीवन, और अ के मूल िस ां तों का ितिनिध करते ह: 2. अनु मान: तक और कारण के आधार पर िन ष िनकालकर ा ान। जै से, धु एं को दे खकर आग का अनुमान लगाना। 3. स क् च र (सही आचरण): अिहं सा, स , अ े य, चय, और अप र ह का पालन करना। 1. आ ा: 3. उपमान: ात व ु ओं की तुलना से अ ात व ु का ान। जै से, गाय की तुलना से गौर (जं गली बै ल) का ान। - इन तीनों र ों का पालन कर मो ा कर सकता है और संसार के बंधनों से मु हो सकता है। आ ा को जीवन का सार, चेतन त , और का आधार माना जाता है । यह शरीर से िभ , अिवनाशी, और शा त (अनािद और अनंत) है । आ ा ज -मरण के च म बं धी होती है, लेिकन यह यं प रवतनशील नहीं होती। 4. श : िव सनीय वचनों या शा ों से ा ान। जै से, वे द, शा , गु या िकसी ामािणक के वचन से ा जानकारी। आ ा का उ े मो ा करना है , िजससे ज -मरण के बं धनों से मु पाई जा सके। 4. पंचशील - बौ : 5. अथापि : जब या अनुमान से कोई बात िस न हो सके, तो िकसी अ िवरोधाभास को दू र करने के िलए 2. परमा ा: पंचशील बौ धम की नै ितक आचार-संिहता है, जो नै ितक आचरण के पाँ च िनयमों (शील) पर आधा रत है: अनु मान ारा िन ष िनकालना। जै से, "जो िदन म खाता है, वह रात म नही ं खाता" — यह अथापि से ात होता है । परमा ा को सव स ा, सवश मान, सव , और सव ापी माना जाता है। यह स ूण सृ ि का ा, पालनकता 1.अिहंसा: जीिवत ािणयों की ह ा न करना। 6.अनु पल : िकसी व ु की अनु प ित से ा ान। जैसे, "यहाँ मेज नहीं है " — यह अनुपल से ा ान है । और संहारकता है । 2. अ ेय: चोरी न करना। नै ितक दशन: परमा ा को (वेदां त), ई र (सां और योग), िशव (शै व) या िव ु (वै व) के प म माना जाता है । 3.अप र ह: अनाव कव ुओं का सं ह न करना। नै ितक दशन (Ethics) जीवन के उिचत और अनुिचत, नै ितक और अनै ितक आचरण को समझने का यास करता है । आ ा और परमा ा के बीच सं बंध को िविभ दशनों म िभ -िभ पों म दे खा गया है—कहीं उ एक (अ ै त) माना भारतीय दशन म नै ितकता का मह ब त अिधक है, और इसे िविभ आचार-संिहताओं, िस ां तों और जीवन-शै िलयों 4.स : अस भाषण न करना। गया है तो कहीं पृथक ( ै त)। के पम ु त िकया गया है । यहाँ कुछ मुख नै ितक िस ां तों का सं ि िववरण िदया गया है : 5. चय: इ य सं यम का पालन करना। 3. कृित: 1. धम - मनु: ‘मनु ृित’ भारतीय नै ितक, सामािजक, और धािमक आचार-सं िहता का ाचीन ं थ है, िजसम 'धम' की - पंचशील का पालन कर मानिसक और शारी रक शु ता ा कर सकता है और बु की ओर अ सर हो कृित जड़ (अचे तन) त है, जो भौितक जगत का िनमाण करती है । इसम पां च महाभूत (पृ ी, जल, अि , वायु, िव ृ त ा ा की गई है । सकता है। आकाश), मन, बु , और अहं कार जै से त शािमल ह। - धम का अथ है कत ों का पालन, समाज के िनयमों और शा ों के अनु सार उिचत आचरण। सां दशन के अनु सार, कृित 24 त ों से बनी है और यह सृ ि की आधारभू त श है, जो यं म गितशील और - मनु ने धम को चार मु े िणयों म बाँ टा है: प रवतनशील है । राजधम (राजा/शासक के कत ) - कृित के साथ आ ा का सं पक ही सं सार (ज -मरण का च ) का कारण बनता है । जब आ ा कृित के बं धनों से मु हो जाती है , तो उसे मो की ा होती है । वणधम (वण-आधा रत कत ) आ मधम (आयु और जीवन के चरणों के अनुसार कत ) सामा धम (सभी के िलए समान नैितक आचरण जैसे अिहं सा, स , दया, सं यम आिद)