Arbitration and Conciliation Act, 1996 PDF
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1996
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This document is the Arbitration and Conciliation Act, 1996 (Act No. 26 of 1996) from India. It deals with domestic, international commercial, and foreign arbitrations, and also defines and details conciliation. This document is about legal procedures, so a good keyword is 'commercial law'.
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माध्यस्थम् और सुलह अिधिनयम, 1996 (1996 का अिधिनयम संख्यांक 26) [16 अगस्त, 1996] देशी माध्यस्थम्, अंतरराष्...
माध्यस्थम् और सुलह अिधिनयम, 1996 (1996 का अिधिनयम संख्यांक 26) [16 अगस्त, 1996] देशी माध्यस्थम्, अंतरराष्टर्ीय वािणिज्यक माध्यस्थम् और िवदेशी माध्यस्थम् पंचाट के पर्वतर्न से संबिं धत िविध को समेिकत और संशोिधत करने के िलए तथा सुलह से संबिं धत िविध को भी पिरभािषत करने के िलए और उनसे संबिं धत या उनके आनुषिं गक िवषय के िलए अिधिनयम उ ेिशका—संयुक्त राष्टर् अंतरराष्टर्ीय ापार िविध आयोग ने 1985 म अंतरराष्टर्ीय वािणिज्यक माध्यस्थम् िवषयक सं० रा० अं० ा० िव० आ० आदशर् िविध को अंगीकार िकया है ; और संयुक्त राष्टर् की महासभा ने िसफािरश की है िक सभी देश, माध्यस्थम् पर्िकर्या संबंधी िविध की एकरूपता की वांछनीयता और अंतरराष्टर्ीय वािणिज्यक माध्यस्थम् प ित की िविनिदष्ट आवश्यकता को ध्यान म रखते हुए उक्त आदशर् िविध पर सम्यक् रूप से िवचार कर ; और संयुक्त राष्टर् अंतरराष्टर्ीय ापार िविध आयोग ने 1980 म सं० रा० अं० ा० िव० आ० सुलह िनयम को अंगीकार िकया है ; और संयुक्त राष्टर् की महासभा ने उन दशा म जहां अंतरराष्टर्ीय वािणिज्यक संबंध के संदभर् म कोई िववाद उद्भूत होता है और पक्षकार सुलह के माध्यम से उस िववाद का सौहादर्र्पूणर् िनपटारा चाहते ह, उक्त िनयम के उपयोग की िसफािरश की है ; और उक्त आदशर् िविध और िनयम ने अंतरराष्टर्ीय वािणिज्यक संबंध से उद्भूत होने वाले िववाद के उिचत और दक्ष िनपटारे के िलए एकीकृ त िविधक संरचना की स्थापना के िलए महत्वपूणर् योगदान िकया है ; और यह समीचीन है िक पूव क्त आदशर् िविध और िनयम को ध्यान म रखते हुए माध्यस्थम् और सुलह के संबंध म िविध बनाई जाए ; भारत गणराज्य के सतालीसव वषर् म संसद् ारा िनम्निलिखत रूप म यह अिधिनयिमत हो :— पर्ारं िभक 1. संिक्षप्त नाम, िवस्तार और पर्ारम्भ—(1) इस अिधिनयम का संिक्षप्त नाम माध्यस्थम् और सुलह अिधिनयम, 1996 है । (2) इसका िवस्तार संपूणर् भारत पर है : परं तु यह िक भाग 1, भाग 3 और भाग 4 का िवस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य पर के वल वहां तक होगा जहां तक वे, यथािस्थित, अंतरराष्टर्ीय वािणिज्यक माध्यस्थम् या अंतरराष्टर्ीय वािणिज्यक सुलह को लागू होते ह । स्पष्टीकरण—इस उपधारा म “अंतरराष्टर्ीय वािणिज्यक सुलह” पद का वही अथर् है जो धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (च) म “अंतरराष्टर्ीय वािणिज्यक माध्यस्थम्” पद का इस उपांतरण के अधीन रहते हुए है िक उसम आने वाले “माध्यस्थम्” शब्द के स्थान पर “सुलह” शब्द रखा जाएगा । (3) यह उस तारीख को पर्वृ होगा, जो के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, िनयत करे । भाग 1 माध्यस्थम् अध्याय 1 साधारण उपबंध 2. पिरभाषाएं—(1) इस भाग म, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,— (क) “माध्यस्थम्” से कोई माध्यस्थम् अिभपर्ेत है चाहे जो स्थायी माध्यस्थम् संस्था ारा िकया गया हो या न िकया गया हो ; (ख) “माध्यस्थम् करार” से धारा 7 म िनिदष्ट कोई करार अिभपर्ेत है ; 2 (ग) “माध्यस्थम् पंचाट” के अंतगर्त कोई अंतिरम पंचाट भी है ; (घ) “माध्यस्थम् अिधकरण” से एक मातर् मध्यस्थ या मध्यस्थ का कोई पैनल अिभपर्ेत है ; (ङ) “न्यायालय” से िकसी िजले म आरं िभक अिधकािरता वाला पर्धान िसिवल न्यायालय अिभपर्ेत है और इसके अन्तगर्त अपनी मामूली आरं िभक िसिवल अिधकािरता का पर्योग करने वाला उच्च न्यायालय भी है, जो माध्यस्थम् की िवषय-वस्तु होने वाले पर्श्न का, यिद वे वाद की िवषय-वस्तु होते तो, िविनश्चय करने की अिधकािरता रखता, िकन्तु ऐसे पर्धान िसिवल न्यायालय से अवर शर्ेणी का कोई िसिवल न्यायालय या कोई लघुवाद न्यायालय इसके अन्तगर्त नह आता है ; (च) “अंतरराष्टर्ीय वािणिज्यक माध्यस्थम्” से ऐसे िववाद से संबंिधत कोई माध्यस्थम् अिभपर्ेत है जो ऐसे िविधक संबंध से, चाहे वे संिवदात्मक ह या न ह जो भारत म पर्वृ िविध के अधीन वािणिज्यक समझे गए ह , उद्भूत ह और जहां पक्षकार म से कम से कम एक— (i) ऐसा कोई िष्ट है जो भारत से िभन्न िकसी देश का रािष्टर्क है या उसका अभ्यासतः िनवासी है ; या (ii) ऐसा एक िनगिमत िनकाय है, जो भारत से िभन्न िकसी देश म िनगिमत है ; या (iii) ऐसी कोई कं पनी या संगम या िष्ट िनकाय है िजसका के न्दर्ीय पर्बंध और िनयंतर्ण भारत से िभन्न िकसी देश से िकया जाता है ; या (iv) कोई िवदेश की सरकार है ; (छ) “िविधक पर्ितिनिध” से वह िक्त अिभपर्ेत है जो िकसी मृत िक्त की सम्पदा का िविध की दृिष्ट म पर्ितिनिधत्व करता है, और ऐसा कोई िक्त, जो मृतक की सम्पदा म दखलन्दाजी करता है, और, जहां कोई पक्षकार पर्ितिनिध की हैिसयत म कायर् करता है वहां वह िक्त िजसे इस पर्कार कायर् करने वाले पक्षकार की मृत्यु हो जाने पर सम्पदा न्यायगत होती है, भी इसके अंतगर्त आता है ; (ज) “पक्षकार” से माध्यस्थम् करार का कोई पक्षकार अिभपर्ेत है । (2) पिरिध—यह भाग वहां लागू होगा जहां माध्यस्थम् का स्थान भारत म है । (3) यह भाग तत्समय पर्वृ ऐसी िकसी अन्य िविध पर पर्भाव नह डालेगा, िजसके आधार पर कितपय िववाद माध्यस्थम् के िलए िनवेिदत न िकए जा सकगे । (4) यह भाग धारा 40 की उपधारा (1), धारा 41 और धारा 43 को छोड़कर तत्समय पर्वृ िकसी अन्य अिधिनयिमित के अधीन पर्त्येक माध्यस्थम् को इस पर्कार लागू होगा मानो िक वह माध्यस्थम् िकसी माध्यस्थम् करार के अनुसरण म था और मानो िक उक्त अन्य अिधिनयिमित कोई माध्यस्थम् करार थी, िसवाय इसके िक जहां तक इस भाग के उपबंध उस अन्य अिधिनयिमित या उसके अधीन बनाए गए िकन्ह िनयम से असंगत है । (5) उपधारा (4) के उपबंध के अधीन रहते हुए और जहां तक तत्समय पर्वृ िकसी िविध ारा या भारत और िकसी अन्य देश या देश के बीच िकसी करार म अन्यथा उपबंिधत है, उसके िसवाय, यह भाग सभी माध्यस्थम को और उनसे संबंिधत सभी कायर्वािहय को लागू होगा । (6) िनदश का अथार्न्वयन—जहां इस भाग म, धारा 28 को छोड़कर, पक्षकार कितपय िववा क को अवधािरत करने के िलए स्वतन्तर् है वहां उस स्वतंतर्ता म पक्षकार का उस िववाद को अवधािरत करने के िलए िकसी िक्त को िजनके अंतगर्त कोई संस्था भी है, पर्ािधकृ त करने का अिधकार सिम्मिलत होगा । (7) इस भाग के अधीन िकया गया माध्यस्थम् पंचाट, देशी पंचाट समझा जाएगा । (8) जहां इस भाग म— (क) इस तथ्य का िनदश िकया गया है िक पक्षकार म करार पाया गया है अथवा यह िक वे करार कर सकते ह ; या (ख) िकसी अन्य पर्कार से पक्षकार के िकसी करार का िनदश िकया गया है , वहां उस करार के अन्तगर्त उस करार म िनिदष्ट कोई माध्यस्थम् िनयम भी ह गे । (9) जहां इस भाग म, धारा 25 के खंड (क) या धारा 32 की उपधारा (2) के खंड (क) से िभन्न, िकसी दावे के पर्ित िनदश िकया गया है, वहां यह िकसी पर्ितदावे को भी लागू होगा और जहां यह िकसी पर्ितरक्षा के पर्ित िनदश करता है, वहां यह उस पर्ितदावे के िकसी पर्ितरक्षा को भी लागू होगा । 3. िलिखत संसच ू ना की पर्ािप्त—(1) जब तक िक पक्षकार ारा अन्यथा करार न िकया गया हो,— (क) कोई िलिखत संसूचना पर्ाप्त की गई समझी जाएगी यिद वह पर्ेिषती को िक्तगत रूप से या उसके कारबार के स्थान, आभ्यािसक िनवास या डाक के पते पर, पिरद की जाती है ; और 3 (ख) यिद खंड (क) म िनिदष्ट स्थान म से कोई भी युिक्तयुक्त जांच करने के पश्चात् नह पाया जाता है तो कोई िलिखत संसूचना पर्ाप्त की गई समझी जाएगी यिद पर्ेिषती के अंितम ज्ञात कारबार के स्थान, आभ्यािसक िनवास या डाक के पते पर रिजस्टर्ीकृ त पतर् ारा या ऐसे िकसी अन्य साधन ारा, जो उसे पिरद िकए जाने का पर्यास करने के अिभलेख की वस्था करता है, भेजी जाती है । (2) संसूचना उस िदन पर्ाप्त की गई समझी जाएगी िजस िदन वह इस पर्कार पिरद की जाती है । (3) यह धारा िकसी न्याियक पर्ािधकारी की कायर्वािहय के संबंध म िलिखत संसच ू ना को लागू नह होती है । 4. आपि करने के अिधकार का अिधत्यजन—कोई पक्षकार, जो यह जानता है िक— (क) इस भाग के ऐसे िकसी उपबंध का, िजसे पक्षकार अल्पीकृ त कर सकते ह, या (ख) माध्यस्थम् करार के अधीन िकसी अपेक्षा का, अनुपालन नह िकया गया है और िफर भी असम्यक् िवलंब के िबना या यिद आपि का कथन करने के िलए िकसी कालाविध का उपबंध िकया गया है तो उस कालाविध के भीतर ऐसे अननुपालन के िलए अपनी आपि का कथन िकए िबना माध्यस्थम् के िलए अगर्सर होता है, उसके बारे म यह समझा जाएगा िक उसने इस पर्कार आपि करने के अपने अिधकार का अिधत्यजन कर िदया है । 5. न्याियक मध्यक्षेप का िवस्तार—तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध म िकसी बात के होते हुए भी, इस भाग ारा शािसत मामल म, कोई न्याियक पर्ािधकारी उस दशा के िसवाय मध्यक्षेप नह करे गा, िजसके िलए इस भाग म ऐसा उपबंध िकया गया हो । 6. पर्शासिनक सहायता—माध्यस्थम् कायर्वािहय का संचालन सुकर बनाने की दृिष्ट से पक्षकार या पक्षकार की सम्मित से माध्यस्थम् अिधकरण, िकसी उपयुक्त संस्था या िक्त ारा पर्शासिनक सहायता के िलए वस्था कर सके गा । अध्याय 2 माध्यस्थम् करार 7. माध्यस्थम् करार—(1) इस भाग म “माध्यस्थम् करार” से पक्षकार ारा ऐसे सभी या कितपय िववाद माध्यस्थम् के िलए िनवेिदत करने के िलए िकया गया करार अिभपर्ेत है जो पिरिनिश्चत िविधक संबधं , चाहे संिवदात्मक हो या न हो, की बाबत उनके बीच उद्भूत हुए ह या हो सकते ह । (2) माध्यस्थम् करार, िकसी संिवदा म माध्यस्थम् खंड के रूप म या िकसी पृथक् करार के रूप म हो सकता है । (3) माध्यस्थम् करार िलिखत रूप म होगा । (4) माध्यस्थम् करार िलिखत रूप म है यिद वह,— (क) पक्षकार ारा हस्ताक्षिरत िकसी दस्तावेज म ; (ख) पतर् के आदान-पर्दान, टेलेक्स, तार या दूरसंचार के ऐसे अन्य साधन म, जो करार के अिभलेख की वस्था करते ह, या (ग) दावे और पर्ितरक्षा के कथन के आदान-पर्दान म, िजनम करार की िव मानता का एक पक्षकार ारा अिभकथन िकया गया है और दूसरे पक्षकार ारा उससे इं कार नह िकया गया है , अंतिवष्ट है । (5) माध्यस्थम् खंड वाले िकसी दस्तावेज के पर्ित िकसी संिवदा म िनदश, माध्यस्थम् करार का गठन करे गा यिद संिवदा िलिखत रूप म है और िनदश ऐसा है जो उस माध्यस्थम् खंड को संिवदा का भाग बनाता है । 8. जहां माध्यस्थम् करार हो वहां माध्यस्थम् के िलए पक्षकार को िनिदष्ट करने की शिक्त—(1) कोई न्याियक पर्ािधकारी, िजसके समक्ष िकसी ऐसे मामले म ऐसा अनुयोग लाया जाता है, जो िकसी माध्यस्थम् करार का िवषय है, यिद कोई पक्षकार ऐसा आवेदन करता है जो उसके पश्चात् नह है जब वह िववाद के सार पर अपना पर्थम कथन पर्स्तुत करता है, तो वह पक्षकार को माध्यस्थम् के िलए िनिदष्ट कर सकता है । (2) उपधारा (1) म िनिदष्ट आवेदन को तब तक गर्हण नह िकया जाएगा जब तक िक उसके साथ मूल माध्यस्थम् करार या उसकी सम्यक् रूप से पर्मािणत पर्ित न हो । (3) इस बात के होते हुए भी िक उपधारा (1) के अधीन कोई आवेदन िकया गया है और यह िक िववाद न्याियक पर्ािधकारी के समक्ष लंिबत है, माध्यस्थम् पर्ारम्भ िकया जा सकता है या चालू रखा जा सकता है और कोई माध्यस्थम् पंचाट िदया जा सकता है । 9. न्यायालय ारा अंतिरम उपाय, आिद—कोई पक्षकार, माध्यस्थम् कायर्वािहय के पूवर् या उनके दौरान या माध्यस्थम् पंचाट िकए जाने के पश्चात् िकसी समय िकतु इससे पूवर् िक वह धारा 36 के अनुसार पर्वृ िकया जाता है िकसी न्यायालय को— 4 (i) माध्यस्थम् कायर्वािहय के पर्योजन के िलए िकसी अपर्ाप्तवय या िवकृ तिच िक्त के िलए संरक्षक की िनयुिक्त के िलए ; या (ii) िनम्निलिखत िवषय म से िकसी के संबंध म संरक्षण के िकसी अंतिरम अध्युपाय के िलए, अथार्त् :— (क) िकसी माल का, जो माध्यस्थम् करार की िवषय-वस्तु है, पिररक्षण, अंतिरम अिभरक्षा या िवकर्य ; (ख) माध्यस्थम् म िववादगर्स्त रकम सुरिक्षत करने ; (ग) िकसी संपि या वस्तु का, जो माध्यस्थम् म िवषय-वस्तु या िववाद है या िजसके बारे म कोई पर्श्न उसम उद्भूत हो सकता है, िनरोध, पिररक्षण या िनरीक्षण और पूव क्त पर्योजन म से िकसी के िलए िकसी पक्षकार के कब्जे म िकसी भूिम पर या भवन म िकसी िक्त को पर्वेश करने देने के िलए पर्ािधकृ त करने, या कोई ऐसा नमूना लेने के िलए या कोई ऐसा संपर्ेक्षण या पर्योग कराए जाने के िलए जो पूणर् जानकारी या सा य पर्ाप्त करने के पर्योजन के िलए आवश्यक या समीचीन हो, पर्ािधकृ त करने ; (घ) अंतिरम ादेश या िकसी िरसीवर की िनयुिक्त करने ; (ङ) संरक्षण का ऐसा अन्य अंतिरम उपाय करने के िलए जो न्यायालय को न्यायोिचत और सुिवधाजनक पर्तीत हो, आवेदन कर सके गा, और न्यायालय को आदेश करने की वही शिक्तयां ह गी जो अपने समक्ष िकसी कायर्वाही के पर्योजन के िलए और उसके संबंध म उसे ह । अध्याय 3 माध्यस्थम् अिधकरण की संरचना 10. मध्यस्थ की संख्या—(1) पक्षकार मध्यस्थ की संख्या अवधािरत करने के िलए स्वतंतर् ह परन्तु ऐसी संख्या, कोई सम संख्या नह होगी । (2) उपधारा (1) म िनिदष्ट अवधारण करने म असफल रहने पर माध्यस्थम् अिधकरण एकमातर् मध्यस्थ से िमलकर बनेगा । 11. मध्यस्थ की िनयुिक्त—(1) िकसी भी रािष्टर्कता को कोई िक्त, जब तक िक पक्षकार ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, मध्यस्थ हो सकता है । (2) उपधारा (6) के अधीन रहते हुए, पक्षकार मध्यस्थ या मध्यस्थ को िनयुक्त करने के िलए िकसी पर्िकर्या पर करार करने के िलए स्वतंतर् ह । (3) उपधारा (2) म िनिदष्ट िकसी करार के न होने पर, तीन मध्यस्थ वाले िकसी मध्यस्थ म, पर्त्येक पक्षकार एक मध्यस्थ िनयुक्त करे गा और दो िनयुक्त मध्यस्थ ऐसे तीसरे मध्यस्थ को िनयुक्त करगे, जो पीठासीन मध्यस्थ के रूप म कायर् करे गा । (4) यिद उपधारा (3) की िनयुिक्त की पर्िकर्या लागू होती है और— (क) कोई पक्षकार िकसी मध्यस्थ को िनयुक्त करने म, दूसरे पक्षकार से ऐसा करने के िकसी अनुरोध की पर्ािप्त से तीस िदन के भीतर, असफल रहता है, या (ख) दो िनयुक्त मध्यस्थ अपनी िनयुिक्त की तारीख से तीस िदन के भीतर तीसरे मध्यस्थ पर सहमत होने म असफल रहते ह, तो िनयुिक्त, िकसी पक्षकार के अनुरोध पर, मुख्य न्यायमूित ारा या उसके ारा पदािभिहत िकसी िक्त या संस्था ारा की जाएगी । (5) उपधारा (2) म िनिदष्ट िकसी करार के न होने पर, एकमातर् मध्यस्थ वाले िकसी मध्यस्थ म, यिद पक्षकार िकसी मध्यस्थ पर, एक पक्षकार ारा दूसरे पक्षकार से िकए गए िकसी अनुरोध की पर्ािप्त से तीस िदन के भीतर इस पर्कार सहमत होने म असफल रहते ह, तो िनयुिक्त, िकसी पक्षकार के अनुरोध पर मुख्य न्यायमूित या उसके ारा पदािभिहत िकसी िक्त या संस्था ारा की जाएगी । (6) जहां पक्षकार ारा करार पाई गई िकसी िनयुिक्त की पर्िकर्या के अधीन,— (क) कोई पक्षकार उस पर्िकर्या के अधीन अपेिक्षत रूप म कायर् करने म असफल रहता है, या (ख) पक्षकार अथवा दो िनयुक्त मध्यस्थ, उस पर्िकर्या के अधीन उनसे अपेिक्षत िकसी करार पर पहुंचने म असफल रहते ह, या (ग) कोई व्यिक्त, िजसके अन्तगर्त कोई संस्था है, उस पर्िकर्या के अधीन उसे स पे गए िकसी कृ त्य का िनष्पादन करने म असफल रहता है, 5 वहां कोई पक्षकार, मुख्य न्यायमूित या उसके ारा पदािभिहत िकसी िक्त या संस्था से, जब तक िक िनयुिक्त पर्िकर्या के िकसी करार म िनयुिक्त सुिनिश्चत कराने के अन्य साधन के िलए उपबंध न िकया गया हो, आवश्यक उपाय करने के िलए अनुरोध कर सकता है । (7) उपधारा (4) या उपधारा (5) या उपधारा (6) के अनुसार मुख्य न्यायमूित या उसके ारा पदािभिहत िक्त या संस्था को स पे गए िकसी िवषय पर कोई िविनश्चय अंितम होगा । (8) िकसी मध्यस्थ की िनयुिक्त करने म मुख्य न्यायमूित या उसके ारा पदािभिहत िक्त या संस्था, िनम्निलिखत का सम्यक् रूप से ध्यान रखेगी— (क) पक्षकार के करार ारा अपेिक्षत मध्यस्थ की कोई अहर्ता, और (ख) अन्य बात, िजनसे िकसी स्वतंतर् और िनष्पक्ष मध्यस्थ की िनयुिक्त सुिनिश्चत िकए जाने की संभावना है । (9) िकसी अन्तरराष्टर्ीय वािणिज्यक माध्यस्थम् म एकमातर् या तीसरे मध्यस्थ की िनयुिक्त की दशा म, जहां पक्षकार िविभन्न राष्टर्ीयता के ह वहां भारत का मुख्य न्यायमूित या उसके ारा पदािभिहत िक्त या संस्था, पक्षकार की राष्टर्ीयता से िभन्न िकसी राष्टर्ीयता वाला कोई मध्यस्थ िनयुक्त कर सके गी । (10) मुख्य न्यायमूित, कोई ऐसी स्कीम बना सके गा जो वह उपधारा (4) या उपधारा (5) या उपधारा (6) ारा उसे स पे गए िवषय के िनपटारे के िलए समुिचत समझे । (11) जहां िविभन्न उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूितय या उनके पदािभिहत से उपधारा (4) या उपधारा (5) या उपधारा (6) के अधीन एक से अिधक बार अनुरोध िकया गया है, वहां के वल वही मुख्य न्यायमूित या उसका पदािभिहत ही, िजससे सुसंगत उपधारा के अधीन पर्थम बार अनुरोध िकया गया है, ऐसे अनुरोध की बाबत िविनश्चय करने के िलए सक्षम होगा । (12) (क) जहां उपधारा (4), उपधारा (5), उपधारा (6), उपधारा (7), उपधारा (8) और उपधारा (10) म िनिदष्ट िवषय िकसी अन्तरराष्टर्ीय वािणिज्यक माध्यस्थम् म उद्भूत होते ह वहां उन उपधारा म “मुख्य न्यायमूित” के पर्ित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह “भारत के मुख्य न्यायमूित” के पर्ित िनदश है । (ख) जहां उपधारा (4), उपधारा (5), उपधारा (6), उपधारा (7), उपधारा (8) और उपधारा (10) म िनिदष्ट िवषय िकसी अन्य माध्यस्थम् म उद्भूत होते ह वहां उन उपधारा म “मुख्य न्यायमूित” के पर्ित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह ऐसे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूित के पर्ित िनदश है िजसकी स्थानीय पिरसीमा के भीतर धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (ङ) म िनिदष्ट पर्धान िसिवल न्यायालय िस्थत है और, जहां स्वयं उच्च न्यायालय ही उस खंड म िनिदष्ट न्यायालय है, वहां उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूित के पर्ित िनदश है । 12. आक्षेप के िलए आधार—(1) जहां िकसी िक्त से िकसी मध्यस्थ के रूप म उसकी संभािवत िनयुिक्त के संबंध म पर्स्ताव िकया जाता है वहां वह िकसी ऐसी पिरिस्थित को िलिखत रूप म पर्कट करे गा िजससे उसकी स्वतंतर्ता या िनष्पक्षता के बारे म उिचत शंकाएं उठने की संभावना हो । (2) कोई मध्यस्थ, अपनी िनयुिक्त के समय से और संपूणर् माध्यस्थम् कायर्वािहय के दौरान, िवलम्ब के िबना पक्षकार को उपधारा (1) म िनिदष्ट िकन्ह पिरिस्थितय को िलिखत रूप म तब पर्कट करे गा जब िक उसके ारा उनके बारे म पहले ही सूिचत न कर िदया गया हो । (3) िकसी मध्यस्थ पर के वल तभी आक्षेप िकया जा सके गा, यिद— (क) ऐसी पिरिस्थितयां िव मान ह जो उसकी स्वतंतर्ता या िनष्पक्षता के बारे म उिचत शंका को उत्पन्न करती ह , या (ख) उसके पास पक्षकार ारा तय पाई गई अहर्ताएं न ह । (4) कोई पक्षकार, ऐसे िकसी मध्यस्थ पर, जो उसके ारा िनयुक्त हो या िजसकी िनयुिक्त म उसने भाग िलया हो, के वल उन कारण से िजनसे वह िनयुिक्त िकए जाने के पश्चात् अवगत होता है, आक्षेप कर सके गा । 13. आक्षेप करने की पर्िकर्या—(1) उपधारा (4) के अधीन रहते हुए पक्षकार, िकसी मध्यस्थ पर आक्षेप करने के िलए िकसी पर्िकर्या पर करार करने के िलए स्वतंतर् ह । (2) उपधारा (1) म िनिदष्ट िकसी करार के न होने पर, कोई पक्षकार, जो िकसी मध्यस्थ पर आक्षेप करने का आशय रखता है, माध्यस्थम् अिधकरण के गठन से अवगत होने के पश्चात् या धारा 12 की उपधारा (3) म िनिदष्ट िकन्ह पिरिस्थितय से अवगत होने के पश्चात् पन्दर्ह िदन के भीतर माध्यस्थम् अिधकरण पर आक्षेप करने के कारण का िलिखत कथन भेजेगा । (3) जब तक िक वह मध्यस्थ, िजस पर उपधारा (2) के अधीन आक्षेप िकया गया है, अपने पद से हट नह जाता है या अन्य पक्षकार आक्षेप से सहमत नह हो जाता है, माध्यस्थम् अिधकरण, आक्षेप पर िविनश्चय करे गा । 6 (4) यिद पक्षकार ारा करार पाई गई िकसी पर्िकर्या के अधीन या उपधारा (2) के अधीन पर्िकर्या के अधीन कोई आक्षेप सफल नह होता है तो माध्यस्थम् अिधकरण, माध्यस्थम् कायर्वािहय को चालू रखेगा और माध्यस्थम् पंचाट देगा । (5) जहां उपधारा (4) के अधीन कोई माध्यस्थम् पंचाट िदया जाता है वहां मध्यस्थ पर आक्षेप करने वाला पक्षकार, धारा 34 के अनुसार ऐसा माध्यस्थम् पंचाट अपास्त करने के िलए आवेदन कर सके गा । (6) जहां कोई माध्यस्थम् पंचाट उपधारा (5) के अधीन िकए गए आवेदन पर अपास्त िकया जाता है वहां न्यायालय यह िविनश्चय कर सके गा िक क्या वह मध्यस्थ, िजस पर आक्षेप िकया गया है, िकसी फीस का हकदार है । 14. कायर् करने म असफलता या असंभवता—(1) िकसी मध्यस्थ का आदेश पयर्विसत हो जाएगा, यिद वह— (क) िविधतः या वस्तुतः अपने कृ त्य का पालन करने म असफल हो जाता है या अन्य कारण से असम्यक् िवलम्ब के िबना कायर् करने म असफल रहता है, और (ख) अपने पद से हट जाता है या पक्षकार उसके आदेश की समािप्त के िलए करार कर लेते ह । (2) यिद उपधारा (1) के खंड (क) म िनिदष्ट आधार म से िकसी से संबंिधत कोई िववाद शेष रहता है तो कोई पक्षकार, जब तक िक पक्षकार ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, न्यायालय को आदेश की समािप्त पर िविनश्चय करने के िलए आवेदन कर सके गा । (3) यिद इस धारा या धारा 13 की उपधारा (3) के अधीन कोई मध्यस्थ अपने पद से हट जाता है या कोई पक्षकार िकसी मध्यस्थ के आदेश की समािप्त के िलए सहमत हो जाता है तो उसम इस धारा या धारा 12 की उपधारा (3) म िनिदष्ट िकसी आधार की िविधमान्यता की स्वीकृ ित अंतिहत नह होगी । 15. आदेश की समािप्त और मध्यस्थ का पर्ितस्थापन—(1) धारा 13 या धारा 14 म िनिदष्ट पिरिस्थितय के साथ-साथ िकसी मध्यस्थ का आदेश— (क) जहां वह िकसी कारण से अपने पद से हट जाता है, या (ख) पक्षकार के करार ारा या उसके अनुसरण म, समाप्त हो जाएगा । (2) जहां िकसी मध्यस्थ का आदेश समाप्त हो जाता है वहां पर्ितस्थानी मध्यस्थ, उन िनयम के अनुसार, जो पर्ितस्थािपत होने वाले मध्यस्थ की िनयुिक्त को लागू थे, िनयुक्त िकया जाएगा । (3) जब तक िक पक्षकार ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, जहां कोई मध्यस्थ उपधारा (2) के अधीन पर्ितस्थािपत िकया जाता है वहां पहले की गई कोई सुनवाई माध्यस्थम् अिधकरण के िववेकानुसार पुनः की जा सके गी । (4) जब तक िक पक्षकार ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, इस धारा के अधीन िकसी मध्यस्थ के पर्ितस्थापन के पूवर् माध्यस्थम् अिधकरण ारा िकया गया कोई आदेश या िविनणर्य के वल इस कारण अिविधमान्य नह होगा िक माध्यस्थम् अिधकरण की संरचना म कोई पिरवतर्न हुआ है । अध्याय 4 माध्यस्थम् अिधकरण की अिधकािरता 16. माध्यस्थम् अिधकरण की अपनी अिधकािरता के बारे म िविनणर्य करने की सक्षमता—(1) माध्यस्थम् अिधकरण, अपनी अिधकािरता के बारे म स्वयं िविनणर्य कर सके गा, िजसके अंतगर्त माध्यस्थम् करार की िव मानता या िविधमान्यता की बाबत िकसी आक्षेप पर िविनणर्य भी है और उस पर्योजन के िलए,— (क) कोई माध्यस्थम् खंड, जो िकसी संिवदा का भागरूप है, संिवदा के अन्य िनबंधन से स्वतंतर् िकसी करार के रूप म माना जाएगा, और (ख) माध्यस्थम् अिधकरण का ऐसा कोई िविनश्चय िक संिवदा अकृ त और शून्य है, माध्यस्थम् खंड को िविधतः अिविधमान्य नह करे गा । (2) यह अिभवाक् िक माध्यस्थम् अिधकरण को अिधकािरता नह है, पर्ितरक्षा का कथन पर्स्तुत िकए जाने के पश्चात् नह िकया जाएगा; तथािप, कोई पक्षकार, के वल इस कारण यह अिभवाक् करने से िनवािरत नह िकया जाएगा िक उसने िकसी मध्यस्थ को िनयुक्त िकया है या उसकी िनयुिक्त म भाग िलया है । (3) यह अिभवाक् िक माध्यस्थम् अिधकरण अपने पर्ािधकरण की पिरिध का अितकर्मण कर रहा है, यथाशीघर् जैसे ही मामला, उसके पर्ािधकार की पिरिध से परे अिधकिथत िकया जाता है, माध्यस्थम् कायर्वािहय के दौरान िकया जाएगा । 7 (4) माध्यस्थम् अिधकरण उपधारा (2) या उपधारा (3) म िनिदष्ट मामल म से िकसी म भी परवत अिभवाक् को, यिद वह िवलम्ब को न्यायोिचत समझता है तो, गर्हण कर सकता है । (5) माध्यस्थम् अिधकरण, उपधारा (2) या उपधारा (3) म िनिदष्ट िकसी अिभवाक् पर िविनश्चय करे गा और जहां माध्यस्थम् अिधकरण, अिभवाक् को नामंजूर करने का िविनश्चय करता है वहां वह माध्यस्थम् कायर्वािहय को जारी रखेगा और माध्यस्थम् पंचाट देगा । (6) ऐसे िकसी माध्यस्थम् पंचाट से िथत कोई पक्षकार ऐसे िकसी माध्यस्थम् पंचाट को अपास्त करने के िलए धारा 34 के अनुसार आवेदन कर सके गा । 17. माध्यस्थम् अिधकरण ारा आिदष्ट अंतिरम उपाय—(1) जब तक िक पक्षकार ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, माध्यस्थम् अिधकरण, िकसी पक्षकार के अनुरोध पर, िकसी पक्षकार को संरक्षण का कोई ऐसा अंतिरम उपाय करने के िलए जैसा माध्यस्थम् अिधकरण िववाद की िवषय-वस्तु के संबंध म आवश्यक समझे, आदेश दे सके गा । (2) माध्यस्थम् अिधकरण, िकसी पक्षकार से उपधारा (1) के अधीन आिदष्ट उपाय के संबंध म समुिचत सुरक्षा का उपबंध करने की अपेक्षा कर सके गा । अध्याय 5 माध्यस्थम् कायर्वािहय का संचालन 18. पक्षकार से समान बतार्व—पक्षकार से समानता का बतार्व िकया जाएगा और पर्त्येक पक्षकार को अपना मामला पर्स्तुत करने का पूणर् अवसर िदया जाएगा । 19. पर्िकर्या के िनयम का अवधारण—(1) माध्यस्थम् अिधकरण, िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) या भारतीय सा य अिधिनयम, 1872 (1872 का 1) से आब नह होगा । (2) इस भाग के अधीन रहते हुए, पक्षकार, माध्यस्थम् अिधकरण ारा अपनी कायर्वािहय के संचालन म अपनाई जाने वाली पर्िकर्या पर करार करने के िलए स्वतंतर् ह । (3) उपधारा (2) म िनिदष्ट िकसी करार के न होने पर माध्यस्थम् अिधकरण, इस भाग के अधीन रहते हुए ऐसी रीित से, जो वह समुिचत समझे, कायर्वािहय का संचालन कर सके गा । (4) उपधारा (3) के अधीन माध्यस्थम् अिधकरण की शिक्त म िकसी सा य की गर्ा ता, सुसंगता, ताित्वकता और महत्व का अवधारण करने की शिक्त भी सिम्मिलत है । 20. माध्यस्थम् का स्थान—(1) पक्षकार, माध्यस्थम् के स्थान के िलए करार करने के िलए स्वतंतर् ह । (2) उपधारा (1) म िनिदष्ट िकसी करार के न होने पर माध्यस्थम् के स्थान का अवधारण, मामले की पिरिस्थितय का ध्यान रखते हुए, िजनके अन्तगर्त पक्षकार की सुिवधा भी है, माध्यस्थम् अिधकरण ारा िकया जाएगा । (3) उपधारा (1) या उपधारा (2) म िकसी बात के होते हुए भी, माध्यस्थम् अिधकरण, जब तक िक पक्षकार ारा अन्यथा करार नह िकया गया हो, िकसी ऐसे स्थान पर, जो वह अपने सदस्य के बीच परामशर् के िलए, सािक्षय , िवशेषज्ञ या पक्षकार को सुनने के िलए या दस्तावेज , माल या अन्य सम्पि के िनरीक्षण के िलए समुिचत समझता है, बैठक कर सके गा । 21. माध्यस्थम् कायर्वािहय का पर्ारम्भ—जब तक िक पक्षकार ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, िकसी िविशष्ट िववाद के संबंध म माध्यस्थम् कायर्वािहयां उस तारीख को पर्ारम्भ ह गी, िजसको उस िववाद को माध्यस्थम् को िनदिशत करने के िलए अनुरोध पर्त्यथ ारा पर्ाप्त िकया जाता है । 22. भाषा—(1) पक्षकार माध्यस्थम् कायर्वािहय म पर्योग की जाने वाली भाषा या भाषा पर करार करने के िलए स्वतंतर् ह । (2) उपधारा (1) म िनिदष्ट िकसी करार के न होने पर, माध्यस्थम् अिधकरण, माध्यस्थम् कायर्वािहय म पर्योग की जाने वाली भाषा या भाषा का अवधारण करे गा । (3) करार या अवधारण, जब तक िक अन्यथा िविनिदष्ट न हो, िकसी पक्षकार ारा िकए गए िकसी िलिखत कथन, माध्यस्थम् अिधकरण ारा िकसी सुनवाई और िकसी माध्यस्थम् पंचाट, िविनश्चय या अन्य संसूचना को लागू होगा । (4) माध्यस्थम् अिधकरण यह आदेश कर सके गा िक िकसी दस्तावेजी सा य के साथ उसका उस भाषा या उन भाषा म, जो पक्षकार ारा करार की गई ह या माध्यस्थम् अिधकरण ारा अवधािरत की गई ह, अनुवाद होगा । 23. दावा और पर्ितरक्षा के कथन—(1) पक्षकार ारा करार पाई गई या माध्यस्थम् अिधकरण ारा अवधािरत की गई कालाविध के भीतर, दावेदार, अपने दावे का समथर्न करने वाले तथ्य , िववा क मु और मांगे गए अनुतोष या उपचार का कथन 8 करे गा और पर्त्यथ , इन िविशिष्टय के संबंध म अपनी पर्ितरक्षा का कथन करे गा जब तक िक पक्षकार ने उन कथन के अपेिक्षत तत्व के बारे म अन्यथा करार न िकया हो । (2) पक्षकार अपने कथन के साथ ऐसे सभी दस्तावेज को, िजन्ह वे सुसंगत समझ, पर्स्तुत कर सकगे या उन दस्तावेज अथवा अन्य सा य का जो वे पर्स्तुत करगे, कोई संदभर् दे सकगे । (3) जब तक िक पक्षकार ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, कोई भी पक्षकार, माध्यस्थम् कायर्वािहय के दौरान अपने दावे या पर्ितरक्षा को संशोिधत या अनुपूिरत कर सके गा जब तक िक माध्यस्थम् अिधकरण उसे करने म िवलंब को ध्यान म रखते हुए संशोधन या अनुपूित को अनुज्ञात करना उिचत न समझे । 24. सुनवाई और िलिखत कायर्वािहयां—(1) जब तक िक पक्षकार ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, माध्यस्थम् अिधकरण, यह िविनश्चय करे गा िक क्या सा य की पर्स्तुित के िलए मौिखक सुनवाई की जाए या मौिखक बहस की जाए या क्या कायर्वािहयां दस्तावेज और अन्य सामगर्ी के आधार पर संचािलत की जाएंगी : परं तु माध्यस्थम् अिधकरण, िकसी पक्षकार ारा अनुरोध िकए जाने पर कायर्वािहय के उिचत पर्कर्म पर मौिखक सुनवाई करे गा जब तक िक पक्षकार ारा यह करार न िकया गया हो िक कोई मौिखक सुनवाई नह की जाएगी । (2) पक्षकार को िकसी सुनवाई की या दस्तावेज , माल या अन्य संपि के िनरीक्षण के पर्योजन के िलए माध्यस्थम् अिधकरण की िकसी बैठक की पयार्प्त अिगर्म सूचना दी जाएगी । (3) िकसी एक पक्षकार ारा माध्यस्थम् अिधकरण को िदए गए सभी कथन, दस्तावेज या अन्य जानकारी को अथवा िकए गए आवेदन को दूसरे पक्षकार को संसूिचत िकया जाएगा और कोई िवशेषज्ञ िरपोटर् या साि यक दस्तावेज, िजस पर माध्यस्थम् अिधकरण अपना िविनश्चय करने म िनभर्र रह सकता है, पक्षकार को संसूिचत िकया जाएगा । 25. िकसी पक्षकार का ितकर्म—जब तक िक पक्षकार ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, जहां पयार्प्त हेतक ु दिशत िकए िबना,— (क) दावेदार धारा 23 की उपधारा (1) के अनुसार दावे का अपना कथन संसूिचत करने म असफल रहता है, वहां, माध्यस्थम् अिधकरण, कायर्वािहय को समाप्त कर देगा ; (ख) पर्त्यथ धारा 23 की उपधारा (1) के अनुसार पर्ितरक्षा का अपना कथन संसूिचत करने म असफल रहता है, वहां माध्यस्थम् अिधकरण, उस असफलता को दावेदार ारा िकए गए अिभकथन को स्वयं म स्वीकृ ित के रूप म माने िबना कायर्वािहय को चालू रखेगा ; (ग) यिद कोई पक्षकार मौिखक सुनवाई पर उपसंजात होने म या दस्तावेजी सा य पर्स्तुत करने म असफल रहता है तो माध्यस्थम् अिधकरण कायर्वािहय को जारी रख सके गा और उसके समक्ष उपलब्ध सा य पर माध्यस्थम् पंचाट दे सके गा । 26. माध्यस्थम् अिधकरण ारा िनयुक्त िवशेषज्ञ—(1) जब तक िक पक्षकार ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, माध्यस्थम् अिधकरण— (क) माध्यस्थम् अिधकरण ारा अवधािरत िकए जाने वाले िविनिदष्ट िववा क पर उसे िरपोटर् करने के िलए एक या अिधक िवशेषज्ञ िनयुक्त कर सके गा ; और (ख) िकसी पक्षकार से िवशेषज्ञ को कोई सुसंगत जानकारी देने या िकसी सुसंगत दस्तावेज, माल या अन्य संपि को उसके िनरीक्षण के िलए पर्स्तुत करने या उसकी उस तक पहुंच की वस्था करने की अपेक्षा कर सके गा । (2) जब तक िक पक्षकार ारा अन्यथा करार न िकया गया हो यिद कोई पक्षकार ऐसा अनुरोध करता है या यिद माध्यस्थम् अिधकरण यह आवश्यक समझता है तो िवशेषज्ञ, अपनी िलिखत या मौिखक िरपोटर् के पिरदान के पश्चात् िकसी मौिखक सुनवाई म भाग ले सके गा जहां पक्षकार को, उससे पर्श्न पूछने और िववा क पर्श्न पर सा य देने के िलए िवशेषज्ञ सािक्षय को पर्स्तुत करने का अवसर पर्ाप्त होगा । (3) जब तक िक पक्षकार ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, िवशेषज्ञ, िकसी पक्षकार के अनुरोध पर, उस पक्षकार को परीक्षा के िलए िवशेषज्ञ के कब्जे म के सभी दस्तावेज, माल या सम्पि को, उपलब्ध कराएगा िजसे उसको अपनी िरपोटर् तैयार करने के िलए उपलब्ध कराया गया था । 27. सा य लेने म न्यायालय की सहायता—(1) माध्यस्थम् अिधकरण या माध्यस्थम् अिधकरण के अनुमोदन से कोई पक्षकार, सा य लेने म सहायता के िलए न्यायालय को आवेदन कर सके गा । (2) आवेदन म िनम्निलिखत िविनिदष्ट होगा— (क) पक्षकार और मध्यस्थ के नाम और पते ; (ख) दावे की साधारण पर्कृ ित और मांगा गया अनुतोष ; 9 (ग) अिभपर्ाप्त िकया जाने वाला सा य, िविशष्टत :— (i) साक्षी या िवशेषज्ञ साक्षी के रूप म सुने जाने वाले िकसी िक्त का नाम और पता और अपेिक्षत पिरसा य की िवषय-वस्तु का कथन ; (ii) पर्स्तुत िकए जाने वाले िकसी दस्तावेज और िनरीक्षण की जाने वाली संपि का वणर्न । (3) न्यायालय, अपनी सक्षमता के भीतर और सा य लेने संबध ं ी अपने िनयम के अनुसार, यह आदेश देकर अनुरोध का िनष्पादन कर सके गा िक सा य सीधे माध्यस्थम् अिधकरण को दी जाए । (4) न्यायालय, उपधारा (3) के अधीन कोई आदेश करते समय, सािक्षय को वैसी ही आदेिशकाएं जारी कर सके गा जो वह अपने समक्ष िवचारण िकए जाने वाले वाद म जारी कर सकता है । (5) ऐसी आदेिशका के अनुसार हािजर होने म असफल रहने वाले, या कोई अन्य ितकर्म करने वाले या अपना सा य देने से इन्कार करने वाले वाले या माध्यस्थम् कायर्वािहय के संचालन के दौरान माध्यस्थम् अिधकरण के िकसी अवमान के दोषी िक्त, माध्यस्थम् अिधकरण के पदेशन पर न्यायालय के आदेश ारा वैसे ही अलाभ , शािस्तय और दण्ड के अधीन ह गे जैसे वे न्यायालय के समक्ष िवचारण िकए गए वाद म वैसे ही अपराध के िलए उपगत करते । (6) इस धारा म “आदेिशका” पद के अन्तगर्त सािक्षय की परीक्षा िकए जाने के िलए समन और कमीशन और दस्तावेज पेश करने के िलए समन भी है । अध्याय 6 माध्यस्थम् पंचाट का िदया जाना और कायर्वािहय का समापन 28. िववाद के सार को लागू िनयम—(1) जहां माध्यस्थम् का स्थान भारत म िस्थत है,— (क) िकसी अन्तरराष्टर्ीय वािणिज्यक माध्यस्थम् से िभन्न माध्यस्थम् म, माध्यस्थम् अिधकरण, माध्यस्थम् के िलए स पे गए िववाद का िविनश्चय, भारत म तत्समय पर्वृ मूल िविध के अनुसार करे गा ; (ख) अन्तरराष्टर्ीय वािणिज्यक माध्यस्थम् म,— (i) माध्यस्थम् अिधकरण, िववाद का िविनश्चय िववाद के सार को लागू, पक्षकार ारा अिभिहत िविध के िनयम के अनुसार करे गा ; (ii) पक्षकार ारा िकसी देश िवशेष की िविध या िविधक पर्णाली के िकसी अिभ ान का, जब तक िक अन्यथा अिभ क्त न हो, यह अथर् लगाया जाएगा िक वह पर्त्यक्षतः उस देश की मौिलक िविध के पर्ित न िक उसके िविध-संघषर् िनयम के पर्ित िनदश है ; (iii) पक्षकार ारा खंड (क) के अधीन िविध का कोई अिभधान न करने पर माध्यस्थम् अिधकरण, उस िविध के िनयम को लागू करे गा िजसे वह िववाद की सभी िव मान पिरवत पिरिस्थितय म समुिचत समझे । (2) माध्यस्थम् अिधकरण, उसके अनुसार जो न्यायसंगत और ठीक हो, के अनुसार या सुलहकतार् के रूप म के वल तभी िविनश्चय करे गा जब पक्षकार ने उसे इस पर्कार करने के िलए अिभ क्त रूप से पर्ािधकृ त िकया हो । (3) सभी मामल म, माध्यस्थम् अिधकरण, संिवदा के िनबंधन के अनुसार िविनश्चय करे गा और सं वहार को लागू ापार की पर्था को ध्यान म रखेगा । 29. मध्यस्थ के पैनल ारा िविनश्चय िकया जाना—(1) जब तक पक्षकार ने अन्यथा करार न िकया हो, उन माध्यस्थम् कायर्वािहय म िजनम एक से अिधक मध्यस्थ ह , माध्यस्थम् अिधकरण का कोई भी िविनश्चय उसके सभी सदस्य के बहुमत से िकया जाएगा । (2) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी, यिद पक्षकार ारा या माध्यस्थम् अिधकरण के सभी सदस्य ारा पर्ािधकृ त िकया जाए, तो पर्िकर्या संबंधी पर्श्न, पीठासीन मध्यस्थ ारा िविनिश्चत िकए जा सकगे । 30. समझौता—(1) माध्यस्थम् अिधकरण के िलए, िववाद के समझौते को पर्ोत्सािहत करना, माध्यस्थम् करार से बेमेल नह है और पक्षकार की सहमित से, माध्यस्थम् अिधकरण, समझौता पर्ोत्सािहत करने के िलए माध्यस्थम् कायर्वािहय के दौरान, िकसी समय मध्यस्थता, सुलह या अन्य पर्िकर्या का पर्योग कर सकता है । (2) यिद माध्यस्थम् कायर्वािहय के दौरान, पक्षकार िववाद तय करते ह तो माध्यस्थम् अिधकरण, कायर्वािहय का समापन करे गा और यिद, पक्षकार ारा अनुरोध िकया जाए और माध्यस्थम् अिधकरण उसके िलए आक्षेप न करे , तो करार पाए गए िनबंधन पर समझौते को माध्यस्थम् पंचाट के रूप म अिभिलिखत करे गा । 10 (3) करार पाए गए िनबंधन पर माध्यस्थम् पंचाट धारा 31 के अनुसार िदया जाएगा और उसम यह अिभकिथत होगा िक वह माध्यस्थम् पंचाट है । (4) करार पाए गए िनबंधन पर माध्यस्थम् पंचाट की वही पर्ािस्थित होगी और उसका वही पर्भाव होगा, जो िववाद के सार पर िकसी अन्य माध्यस्थम् पंचाट का होता है । 31. माध्यस्थम् पंचाट का पर्रूप और उसकी िवषय-वस्तु—(1) माध्यस्थम् पंचाट िलिखत म िदया जाएगा और माध्यस्थम् अिधकरण के सदस्य ारा उस पर हस्ताक्षर िकए जाएंगे । (2) उपधारा (1) के पर्योजन के िलए, ऐसी माध्यस्थम् कायर्वािहय म िजनम एक से अिधक मध्यस्थ ह, माध्यस्थम् अिधकरण के सभी सदस्य म से बहुमत के हस्ताक्षर पयार्प्त ह गे यह तब जब िक िकसी लोप िकए गए हस्ताक्षर के िलए कारण अिभकिथत िकए गए ह । (3) माध्यस्थम् पंचाट म वे कारण अिभकिथत ह गे िजन पर वह आधािरत ह, जब तक िक— (क) पक्षकार ने यह करार न िकया हो िक कोई कारण नह िदए जाने ह, या (ख) पंचाट, धारा 30 के अधीन करार पाए गए िनबंधन पर माध्यस्थम् पंचाट है । (4) माध्यस्थम् पंचाट म, धारा 20 के अनुसार अवधािरत उसकी तारीख और माध्यस्थम् का स्थान अिभकिथत होगा और पंचाट उस स्थान पर िदया गया समझा जाएगा । (5) माध्यस्थम् पंचाट िदए जाने के पश्चात्, पर्त्येक पक्षकार को उसकी एक हस्ताक्षिरत पर्ित दी जाएगी । (6) माध्यस्थम् अिधकरण, माध्यस्थम् कायर्वािहय के दौरान िकसी भी समय, ऐसे िकसी िवषय पर िजस पर िक वह अंितम माध्यस्थम् पंचाट दे सकता है, अंतिरम पंचाट दे सके गा । (7) (क) जब तक िक पक्षकार ारा अन्यथा करार न पाया जाए, जहां और जहां तक िक कोई माध्यस्थम् पंचाट धन के संदाय के िलए है, माध्यस्थम् अिधकरण, उस रािश म, िजसके िलए पंचाट िदया गया है, संपूणर् धन पर या उसके िकसी भाग पर, वह तारीख िजसको पंचाट िदया गया है, के बीच की संपूणर् अविध या उसके िकसी भाग के िलए ऐसी दर से जो वह ठीक समझे, ब्याज सिम्मिलत कर सके गा । (ख) उस रािश पर, िजसका संदाय िकए जाने का माध्यस्थम् पंचाट ारा िनदेश िकया गया है, जब तक िक पंचाट म अन्यथा िनदेश न िकया गया हो, पंचाट की तारीख से संदाय िकए जाने की तारीख तक, अठारह पर्ितशत वािषक की दर से ब्याज संदय े होगा । (8) जब तक िक पक्षकार ारा अन्यथा करार न पाया गया हो— (क) माध्यस्थम् का खचर् माध्यस्थम् अिधकरण ारा िनयत िकया जाएगा ; (ख) माध्यस्थम् अिधकरण िनम्निलिखत िविनिदष्ट करे गा,— (i) खच का हकदार पक्षकार, (ii) वह पक्षकार, जो खचर् का संदाय करे गा, (iii) खचर् की रकम या उक्त रकम अवधािरत करने की प ित, और (iv) वह रीित, िजससे खच का संदाय िकया जाएगा । स्पष्टीकरण—खंड (क) के पर्योजन के िलए, “खचर्” से िनम्निलिखत से संबंिधत उिचत खचर् अिभपर्ेत ह— (i) मध्यस्थ और सािक्षय की फीस और य, (ii) िविधक फीस और य, (iii) माध्यस्थम् का पयर्वेक्षण करने वाली संस्था की पर्शासन-फीस, और (iv) माध्यस्थम् कायर्वािहय और माध्यस्थम् पंचाट के संबंध म उपगत कोई अन्य य। 32. कायर्वािहय का समापन—(1) माध्यस्थम् कायर्वािहय का समापन, अंितम माध्यस्थम् पंचाट ारा या उपधारा (2) के अधीन माध्यस्थम् अिधकरण के आदेश ारा होगा । (2) माध्यस्थम् अिधकरण, माध्यस्थम् कायर्वािहय के समापन का वहां आदेश देगा, जहां— (क) दावेदार अपने दावे को, जब तक िक पर्त्यथ आदेश पर आक्षेप नह करता है और िववाद का अंितम पिरिनधार्रण अिभपर्ाप्त करने म, माध्यस्थम् अिधकरण उसके िविधसम्मत िहत को मान्यता नह देता है, पर्त्याहृत कर लेता है ; 11 (ख) पक्षकार कायर्वािहय के समापन के िलए सहमत हो जाते ह ; या (ग) माध्यस्थम् अिधकरण का यह िनष्कषर् है िक कायर्वािहय का जारी रखना, अन्य िकसी कारण से अनावश्यक या असंभव हो गया है । (3) धारा 33 और धारा 34 की उपधारा (4) के अधीन रहते हुए, माध्यस्थम् अिधकरण की समाज्ञा का, माध्यस्थम् कायर्वािहय के समापन के साथ, अंत हो जाएगा । 33. पंचाट का सुधार और िनवर्चन, अितिरक्त पंचाट—(1) जब तक िक पक्षकार अन्य समयािविध के िलए सहमत न हुए ह , माध्यस्थम् पंचाट की पर्ािप्त से तीस िदन के भीतर,— (क) कोई पक्षकार, दूसरे पक्षकार को सूचना देकर, माध्यस्थम् पंचाट म हुई िकसी संगणना की गलती, िकसी िलिपकीय या टंकण संबंधी या उसी पर्कृ ित की िकसी अन्य गलती का सुधार करने के िलए माध्यस्थम् अिधकरण से अनुरोध कर सके गा, और (ख) यिद पक्षकार इसके िलए सहमत ह तो कोई पक्षकार, दूसरे पक्षकार को सूचना देकर, पंचाट की िकसी िविनिदष्ट बात या भाग का िनवर्चन करने के िलए, माध्यस्थम् अिधकरण से अनुरोध कर सके गा । (2) यिद माध्यस्थम् अिधकरण, उपधारा (1) के अधीन िकए गए अनुरोध को न्यायसंगत समझता है तो वह, अनुरोध की पर्ािप्त से तीस िदन के भीतर सुधार करे गा या िनवर्चन करे गा और ऐसा िनवर्चन माध्यस्थम् पंचाट का भाग होगा । (3) माध्यस्थम् अिधकरण, स्वपर्ेरणा पर, उपधारा (1) के खंड (क) म िनिदष्ट पर्कार की िकसी गलती को, माध्यस्थम् पंचाट की तारीख से तीस िदन के भीतर सुधार सके गा । (4) जब तक िक पक्षकार ने अन्यथा करार न िकया हो, एक पक्षकार, दूसरे पक्षकार को सूचना देकर, माध्यस्थम् पंचाट की पर्ािप्त से तीस िदन के भीतर माध्यस्थम् कायर्वािहय म पर्स्तुत िकए गए उन दाव की बाबत िजन पर माध्यस्थम् पंचाट म लोप हो गया है, एक अितिरक्त माध्यस्थम् पंचाट देने के िलए माध्यस्थम् अिधकरण से अनुरोध कर सके गा । (5) यिद माध्यस्थम् अिधकरण, उपधारा (4) के अधीन िकए गए िकसी अनुरोध को न्यायसंगत समझता है, तो वह ऐसे अनुरोध की पर्ािप्त से साठ िदन के भीतर, अितिरक्त माध्यस्थम् पंचाट देगा । (6) माध्यस्थम् अिधकरण, यिद आवश्यक हो तो, उस समयाविध को बढ़ा सके गा िजसके भीतर वह उपधारा (2) या उपधारा (5) के अधीन सुधार करे गा, िनवर्चन करे गा या अितिरक्त पंचाट देगा । (7) धारा 31, इस धारा के अधीन िकए गए माध्यस्थम् पंचाट के सुधार या िनवर्चन या अितिरक्त माध्यस्थम् पंचाट को, लागू होगी । अध्याय 7 माध्यस्थम् पंचाट के िवरु उपाय 34. माध्यस्थम् पंचाट अपास्त करने के िलए आवेदन—(1) माध्यस्थम् पंचाट के िवरु , न्यायालय का आशर्य के वल उपधारा (2) या उपधारा (3) के अनुसार, ऐसे पंचाट को अपास्त करने के िलए आवेदन करके ही िलया जा सके गा । (2) कोई माध्यस्थम् पंचाट न्यायालय ारा तभी अपास्त िकया जा सके गा, यिद— (क) आवेदन करने वाला पक्षकार यह सबूत देता है िक— (i) कोई पक्षकार िकसी असमथर्ता से गर्स्त था, या (ii) माध्यस्थम् करार उस िविध के , िजसके अधीन पक्षकार ने उसे िकया है या इस बारे म कोई संकेत न होने पर, तत्समय पर्वृ िकसी िविध के अधीन िविधमान्य नह है ; या (iii) आवेदन करने वाले पक्षकार को, मध्यस्थ की िनयुिक्त की या माध्यस्थम् कायर्वािहय की उिचत सूचना नह दी गई थी, या वह अपना मामला पर्स्तुत करने म अन्यथा असमथर् था ; या (iv) माध्यस्थम् पंचाट ऐसे िववाद से संबंिधत है जो अनुध्यात नह िकया गया है या माध्यस्थम् के िलए िनवेदन करने के िलए रख गए िनबंधन के भीतर नह आता है या उसम ऐसी बात के बारे म िविनश्चय है जो माध्यस्थम् के िलए िनवेिदत िवषयक्षेतर् से बाहर है : परन्तु यिद, माध्यस्थम् के िलए िनवेिदत िकए गए िवषय पर िविनश्चय को उन िवषय के बारे म िकए गए िविनश्चय से पृथक् िकया जा सकता है, िजन्ह िनवेिदत नह िकया गया है, तो माध्यस्थम् पंचाट के के वल उस भाग को, िजसम माध्यस्थम् के िलए िनवेिदत न िकए गए िवषय पर िविनश्चय है, अपास्त िकया जा सके गा ; या 12 (v) माध्यस्थम् अिधकरण की संरचना या माध्यस्थम् पर्िकर्या, पक्षकार के करार के अनुसार नह थी, जब तक िक ऐसा करार इस भाग के उपबंध के िवरोध म न हो और िजससे पक्षकार नह हट सकते थे, या ऐसे करार के अभाव म, इस भाग के अनुसार नह थी ; या (ख) न्यायालय का यह िनष्कषर् है िक— (i) िववाद की िवषय-वस्तु, तत्समय पर्वृ िविध के अधीन माध्यस्थम् ारा िनपटाए जाने योग्य नह ह ; या (ii) माध्यस्थम् पंचाट भारत की लोक नीित के िवरु है । स्पष्टीकरण—उपखंड (ii) की ापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, िकसी शंका को दूर करने के िलए यह घोिषत िकया जाता है िक कोई पंचाट भारत की लोक नीित के िवरु है यिद पंचाट का िदया जाना कपट या भर्ष्ट आचरण ारा उत्पर्ेिरत या पर्भािवत िकया गया था या धारा 75 अथवा धारा 81 के अितकर्मण म था । (3) अपास्त करने के िलए कोई आवेदन, उस तारीख से, िजसको आवेदन करने वाले पक्षकार ने माध्यस्थम् पंचाट पर्ाप्त िकया था, या यिद अनुरोध धारा 33 के अधीन िकया गया है तो उस तारीख से, िजसको माध्यस्थम् अिधकरण ारा अनुरोध का िनपटारा िकया गया था, तीन मास के अवसान के पश्चात् नह िकया जाएगा : परन्तु यह िक जहां न्यायालय का यह समाधान हो जाता है िक आवेदक उक्त तीन मास की अविध के भीतर आवेदन करने से पयार्प्त कारण से िनवािरत िकया गया था तो वह तीस िदन की अितिरक्त अविध म आवेदन गर्हण कर सके गा िकन्तु इसके पश्चात् नह । (4) उपधारा (1) के अधीन आवेदन पर्ाप्त होने पर, जहां यह समुिचत हो और इसके िलए िकसी पक्षकार ारा अनुरोध िकया जाए, वहां न्यायालय, माध्यस्थम् अिधकरण को इस बात का अवसर देने के िलए िक वह माध्यस्थम् कायर्वािहय को चालू रख सके या ऐसी कोई अन्य कारर् वाई कर सके िजससे माध्यस्थम् अिधकरण की राय म माध्यस्थम् पंचाट के अपास्त करने के िलए आधार समाप्त हो जाएं, कायर्वािहय को उतनी अविध के िलए स्थिगत कर सके गा जो उसके ारा अवधािरत की जाएं ।