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Government Holkar (Model, Autonomous) Science College, Indore
Navin Pal, Ajit Kumar Jain
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This document is a presentation on the foundation course of yoga and meditation, offered at the Government Holkar (Model Autonomous) Science College, Indore (M.P.). It covers the meaning of yoga, types of yoga, and practices, aiming to provide a basic understanding of this ancient Indian tradition.
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Government Holkar (Model Autonomous) Science College, INDORE (M.P.) FOUNDATION COURSE- YOGA & MEDITATION B.Sc/BCA SEM. 1 ( योग परिचय औि यौगिक अभ्यासों का परिचय ) PRESENTED BY :- NAVIN PAL AJIT KUMAR JAIN (M.A. in YOGA)...
Government Holkar (Model Autonomous) Science College, INDORE (M.P.) FOUNDATION COURSE- YOGA & MEDITATION B.Sc/BCA SEM. 1 ( योग परिचय औि यौगिक अभ्यासों का परिचय ) PRESENTED BY :- NAVIN PAL AJIT KUMAR JAIN (M.A. in YOGA) (M.A. in YOGA) MP SET Qualified 3 Times UGC NET Qualified YCB Level 1,2,3 Qualified UNIT-1 MEANING OF YOGA (Common people consider it as only to practice Exercise, Asana, Pranayama, Meditation etc.) The word 'Yoga' ( योग ) is derived from the Sanskrit root 'Yuj' ( यज ु ् ) meaning 'to join‘ { जोड़ना } or 'to unite‘ { एकत्व भाव }. आत्मा परमात्मा वेदों की संहिता में – योगम ् , योगे, योगेन ् , यौगे यजु जर् योगे - जोडना, ममलनना (संयोग) युज ् समाधो - मन को शाांत महर्षि पाणिनि के अिुसार - और एकाग्र करना (समाधि) यजु ् सांयमने - मन पर संयम करना (हियमि) In SANKHYA PHILOSOPHY- seperation of Prakriti (प्रकृतत) & Purusha (परु ु ष) In VISHNU PURAAN :- joining of JEEVATMA (जीवात्मा) & PARMATMA (परमात्मा) मिहषि व्यास के अनुसार- 'योिस्समाग िः' योग को समाधध ततलनाया ै। याज्ञवल्क्य स्मतृ त के अनुसार- “ संयोग योग इत्यु्तो जीवात्मााः परमात्मिो " अर्ाात जीवात्मा और परमात्मा के ममलनने को ैी योग कैते ै। योिवगिष्ठ के अनुसार - "संसारोत्तरे ि युक््तयोग शब्दे ि रुथ्यते " अर्ाात इस सांसार सागर से पार ैोने की मजु तत ैी योग ै। कठोपनिषद के अनुसार - " तां योगममनत मन्यन्ते क्थिराममक्न्ियिारिाम “ अर्ाात ् इांद्रिय, मन और तद् ु धध की जस्र्र धारणा का ैी नाम योग ै। योि का उद्देश्य शारीररक स्वास््य मानमसक स्वास््य सामाजजक स्वास््य आध्याजत्मक स्वास््य योग की भ्रामक धारणाएँ (गलनत अवधारणाएँ) - योग साधु सन्यामसयों के मलनए ै। - योग जाद-ू टोना, चमत्कार ै। - योग केवलन व्यायाम ववद्या ै। - योग ववमशष्ट वगा, धमा के मलनए ै। - योग के मलनए सन्यास, वन गमन आवश्यक ै। - योग में शरीर को मोड़ना (आसन) आवश्यक ै। - यै केवलन परु ु षों के मलनए ै। - यै मात्र धचककत्सा ै। योग की उत्पत्ति और इत्तिहास हहरण्यगर्ि को योग का उत्पविकताा माना जाता ै। इसका शाजददक अर्ा ै। – प्रदीप्त (प्रकाश) गभा या अांडा श्रीमद्र्गवतगीता के अनस ु ार- इमं र्ववथवते योगं प्रो्तवािहमव्ययम ्। र्ववथवान्मिवे प्राह मिरु रक्ष्वाकवेऽब्रवीत ् I4.1I श्रीभगवान ् तोलने- मैंने इस अववनाशी योगको सय ू स ा े कैा र्ा, सय ू न ा े अपने पत्र ु व।वस्वत मनु से कैा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कैा ॥ श्रीकृष्ि सय ू /ि र्ववथवाि ् मिु इक्ष्वाकु राजर्षि नार् परां परा या हठयोग के अनुसार- आहदिाि मशव को योग का जनक कैा ै। अभ्यास कतााओां द्वारा पालनन ककये जाने वालने तनयम TYPES OF YOGA ( योग के र्वमर्न्ि प्रकार ) RAJA YOGA (राज योग) HATH YOGA (ैठ योग) MANTRA YOGA (मांत्र योग) LAYA YOGA (लनय योग) IN SHRI BHAGWAT GITA JNANA YOGA (ज्ञान योग) KARMA YOGA (कमा योग) BHAKTI YOGA (भजतत योग) हठ योि Right Left षट्कमि धौततताजस्तस्तर्ा नेततस्त्राटकां नौमलनकां तर्ा कपालनभाततश्च।तातन षट्कमााणण प्रचक्षते 2.22 ( ैठयोग प्रदीवपका ) 1. िौनत, 2. वक्थत, 3. िेनत, 4. त्राटक, 5. िौमि व 6. कपािर्ानत षटकमों के अभ्यास से साधक के शरीर की स्र्ूलनता दरू ैो जाती ै। तर्ा तीस प्रकार के कफ दोष, दवू षत वात, श्लनेष्मा, वपि आद्रद मलन दरू ैो जाते ैैं जजससे प्राणायाम आद्रद करने में शीघ्र सफलनता ममलनती ै। 1. िौनत चतरु ङ्गलनु ववस्तारां ैस्तपञ्चदशायतम ् गुरूपद्रदष्टमागेण मसततां " वस्त्रां शन।ग्रस ा ेत ्" पन ु ः प्रत्याैरे च्च।तदद्रु दतां धौततकमा तत ्" 2.24 ( ैठयोग प्रदीवपका ) चार अांगुलन चौड़ा, पन्िै ैार् लनम्ता कपड़ा, जलन में मभगो कर गरु ु के तनदे श के अनस ु ार धीरे -धीरे तनगलनना चाद्रैये पन ु ः इसे धीरे -धीरे ताैर तनकालनना चाद्रैये, इसे धौतत-किया कैते ैैं लनाभ- धौतत-किया के फलनस्वरूप खाँसी, दमा, कुष्ठ तर्ा अन्य तीसों प्रकार के कफ-सम्तन्धी रोग तनस्सन्दे ै नष्ट ैो जाते ैैं 2. वक्थत (आिुनिक 'एनिमा’) नामभदघ्नजलने पायन् ु यस्तनालनोत्कटासनः आधाराकुञ्चनां कुयाात ् क्षालननां तजस्तकमा तत ् 2.27 ( ैठयोग प्रदीवपका ) नामभपयान्त जलन में जस्र्त ैो गद ु ा में एक नलनी डालनकर उत्कटासन करते ैुए साधक गुदा (Anus) का सांकोचन (contraction) करे और (अन्दर के भाग को) धोये इसे तजस्त किया कैते ैैं लनाभ- तजस्त किया के अभ्यास के फलनस्वरूप वायुगोलना, ततल्लनी (Spleen), जलनोदर (Ascites- fluid in abdomen) तर्ा वात-वपि-कफ जन्य सभी दोष नष्ट ैो जाते ैैं जठराजनन प्रदीप्त ैोती ैैं तर्ा यै शरीर में काजन्त लनाता ै। 3. िेनत सूत्रां ववतजस्त सुजस्ननधां नासानालने प्रवेशयेत ् मखु ाजन्नगामयेच्च।षा नेततः मसद्ध।तनागद्यते 2.30 ( ैठयोग प्रदीवपका ) सत्र ू नेतत जलन नेतत धचकनी और लनगभग 9 इन्च लनम्ती (ववशेष रूप से त।यार ककये गये) सत्र ू को नामसका में डालनकर उसे मुख से ताैर तनकालने इसे ैी योधगजन नेतत कैते ैैं लनाभ- यै नेतत किया कपालनप्रदे श (मजस्तष्क) को शद्ु ध करती ै।, द्रदव्य (सूक्ष्म) दृजष्ट प्रदान करती ै। और स्कन्धप्रदे श से ऊपर ैोने वालने रोगसमै ू ों को शीघ्र नष्ट करती ै। इसे E.N.T. भी कैते ैैं 4. त्राटक मोचनां" नेत्ररोगाणाां तन्िादीनाां कपाटकम ् यत्नतस्त्राटकां" गोप्यां यर्ा ैाटकपेटकम ् 2.33 ॥ ( ैठयोग प्रदीवपका ) त्राटक का सामान्य अर्ा ै। 'ककसी ववशेष दृष्य को टकटकी लनगाकर दे खना' लनाभ- त्राटक नेत्र-रोगों को दरू करता ै। तर्ा तन्िा आद्रद (योगमागा में ताधक तत्त्व) को नैीां आने दे ता अतः इस त्राटक को सोने की पेटी के समान मैत्त्व दे कर इसकी रक्षा करनी चाद्रैये 5. िौमि अमन्दावतावेगेन तन् ु दां र सव्यापसव्यतः नताांसो भ्रामयेदेषा नौमलनः मसद्ध।ः प्रचक्ष्यते 2.34 ( ैठयोग प्रदीवपका ) कन्धे को र्ोड़ा आगे की और झक ु ाकर तीव्र गततवालने भँवर के समान उदर को दाद्रैने से तायें और तायें से दाद्रैने ओर घुमाना चाद्रैये मसद्धों के द्वारा इसे ैी नौमलन कैा जाता ै। लनाभ- सदा-सवादा आनन्द को लनानेवालनी यै नौमलन-किया मन्द जठराजनन को प्रदीप्त कर पाचन-किया आद्रद को तेज करती ै। , ववववध दोषों तर्ा रोगों को नष्ट करती ै। इसमलनये यै ैठकियाओां में श्रेष्ठ ै। घेरण्ड सांद्रैता में िौमि क्रिया को लनौमलनकी भी कैा जाता ै। 6. कपािर्ानत भस्त्रावल्लनोैकारस्य“ रे चपूरी ससांभ्रमो कपालनभाततववाख्याता कफदोषववशोषणी 2.36 ( ैठयोग प्रदीवपका ) लनै ु ार की धौंकनी के समान शीघ्रता से रे चक परू क करने से कपालनभातत ैोती ैैं लनाभ- यै कफ रोगों को नष्ट करनेवालनी ै। सय ू ि िमथकार सूया नमस्कार योगासनों में सवाश्रेष्ठ ै। I यै अकेलना अभ्यास ैी साधक को सम्पूणा योग व्यायाम का लनाभ पैुांचाने में समर्ा ै। I Total – 8 Asanas 4 Asanas Repeats Thus, Total steps = 12 सय ू न ा मस्कार के लनाभ : सूयन ा मस्कार एक पूणा व्यायाम ै। जो सांपूणा शरीर को पूणा आरोनयता प्रदान करता ै। यै शरीर के सभी अांगों, प्रत्यांगों को तमलनष्ठ व तनरोगी तनाता ै। मेरुदण्ड व कमर को लनचीलना तनाता ै। और वैाां आए ववकारों को दरू करता ै। यै उदर, आांत्र (Intestine) , आमाश्य, अनन्याश्य (Pancreas), हृदय और फेफड़ों को स्वस्र् करता ै। समस्त शरीर में रतत का सांचार, सच ु ारू रूप से करता ै। और रतत की अशद् ु धधयों को दरू कर चमा रोगों का ववनाश करता ै। शरीर के सभी अांगों की माांसपेमशयाां पष्ु ट एवां सांद ु र ैोती ैैं सय ू न ा मस्कार तलन व तेज की वद् ृ धध करता ै। , मानमसक शाजन्त प्राप्त ैोती ै। योगिक गिगिलीकरण (िवासन) र्वधि सवाप्रर्म पीठ के तलन लनेट जाना चाद्रैए ैार्ों और प।रों को आरामदायक जस्र्तत में फ।लनाकर रखें आांखें तांद ैोनी चाद्रैए पूरे शरीर को अचेतन अवस्र्ा में मशधर्लन छोड़ दें न।सधगाक श्वास-प्रश्वास प्रकिया पर ध्यान केंद्रित करें इस अवस्र्ा में तत तक रैें , जत तक कक पण ू ा ववश्राजन्त एवां धचत शान्त न ैो जाए िार् सभी प्रकार के तनावों से मत ु त करता ै। शरीर तर्ा मजस्तष्क दोनों को आराम प्रदान करता ै। पूरे मन तर्ा शरीर तांत्र को ववश्राम प्रदान करता ै। ( अष्ांग योग ) यमगनयमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्िागन ॥2.29॥ Abhyasa & Vairagya “ अभ्यास-वैराग्यभ्यम ्- तं-निरोिाः “ क।वल्य अभ्यास ASHTANGA YOGA वैराग्य सांसार 1. यम 1. अहहंसा - अद्रैांसा 2. सत्य - यर्ार्ा ज्ञान 3. अथतेय - अस्तेय(चोरी का अभाव) 4. ब्रह्मचयि - ब्रह्मचया (और) 5. अपररग्रहा: - अपररग्रै(सांग्रै का अभाव) - 2. गियम 1. शौच - ताह्य एवां अांत:स्वच्छता 2. संतोष - सांतुजष्ट 3. तपाः - तप 4. थवाध्याय - स्वाध्याय (और) 5. ईश्वर-प्रणििािानि - ईश्वर-शरणागतत 3. आसन “ क्थिर-सख ु म ् आसिम ् “ {2.46} आसन के मसद्ध ैो जाने पर साधक को सदी- गमी, भख ू - प्यास, लनाभ- ैातन आद्रद द्वन्द्व आघात अर्ाात कष्ट उत्पन्न नैीां करते ैैं 4. प्राणायाम “ तक्थमि ् सनत श्वासप्रश्वासयोगिनतर्वच्छे दाः प्रािायामाः ” {2.49} आसन की मसद्धध ैो जाने पर प्राणवायु को अन्दर लनेने (परू क) व प्राणवायु को ताैर छोड़ने की (रे चक) की सैज गतत को अपने साम्या अनरू ु प रोक दे ना या जस्र्र कर दे ना ैी प्राणायाम कैलनाता ै। प्राि (प्राणवाय)ु + आयाम (तनयांत्रण या ववस्तार) = प्रािायाम अतः प्राणवायु पर तनयांत्रण करना ैी प्राणायाम ै। l 5. प्रत्याहार “थवर्वषयासंप्रयोगे धचत्तथवरूपािक ु ार इवेक्न्ियािां प्रत्याहाराः ” {2.54) प्रत्याैार के मसद्ध ैोने से योगी साधक का इजन्ियों पर पूरी तरै से तनयांत्रण ैो जाता ै। 6. ारणा “ दे शबन्िक्श्चत्तथय िारिा ” {3.1) अपने धचि को ककसी भी एक स्र्ान पर (नामभ, हृदय या मार्े पर) ताँधना, लनगाना, ठैराना, या केजन्ित करना धारणा कैलनाती ै। 7. ध्यान “ तत्र प्रत्ययैकतािता ध्यािम ् ” {3.2} जैाँ जजस स्र्ान पर भी धारणा का अभ्यास ककया गया ै। , वैाँ पर उस ज्ञान या धचि की ववृ ि की एकरूपता या उसका एक समान तने रैना ैी ध्यान कैलनाता ै। 8. समागध ” तदे वाििमात्रनिर्ािसं थवरूपशन् ू यममव समाधिाः ” {3.3) जत योगी स्वयां के स्वरूप को भलन ू कर केवलन ध्येय (जजसका ध्यान कर रैा ै। ) में ैी लनीन ैो जाता ै। , तत योगस्र् साधक की वै अवस्र्ा-ववशेष समाधध कैलनाती ै। UNIT -2 (श्वास अभ्यास औि प्राणायाम) अिर्ु वर्ागीय श्वसि (steps breathing) 1. ABDOMINAL BREATHING - also known as diaphragmatic breathing or belly breathing, is a technique that involves using the diaphragm, a large muscle located between the chest and the abdomen, for breathing. 2. THORACIC BREATHING- also known as chest breathing, is a breathing pattern that primarily involves the expansion and contraction of the chest and ribcage. INHALE EXHALE 3. CLAVICULAR BREATHING - also known as upper chest breathing or clavicle breathing, is a shallow breathing pattern in which a person primarily uses the upper part of their chest and shoulders to breathe. This involves the lifting of the shoulders and the expansion of the chest during inhalation, without significant engagement of the diaphragm. INHALE EXHALE यौगिक श्वसि यौधगक श्वसन में पवू ा की तीनों श्वसन ववधधयों का योग ैोता ै। अधधकतम मात्रा में श्वास लनेने और छोड़ने के मलनए इस ववधध का उपयोग ककया जाता ै। इसका उद्दे श्य ै। श्वास पर तनयन्त्रण, त्रद्रु टपण ू ा श्वसन-ववधध में सुधार और ऑतसीजन-आपूतता में वद् ृ धध पूरक, रे चक और कुम्भक की अव ारणा ये तीनों शदद प्राणायाम के सांतांध में ैैं पूरक (Puraka): यै प्राणायाम की पैलनी चरण ै। , जजसमें धीरे - धीरे फेफड़ों में वायु को भरा जाता ै। इससे शरीर को अधधक ऑतसीजन प्राप्त ैोती ै। (INHALE) रे चक (Rechaka): इस चरण में व्यजतत अपनी श्वास को धीरे - धीरे छोड़ता ै। प्राण वायु को नामसका तछिों से ताैर फेंकने को योग की भाषा में रे चक कैते ैैं (EXHALE) कुम्र्क (Kumbhaka): जत श्वास प्रश्वास के समय ैमारी श्वास जैाँ पर ैी ैोती ै। ( या तो ताैर ैोगी या भीतर) उसे वैीीँ के वैीीँ रोक दे ने की प्रकिया को कुम्भक कैते ैैं (TO HOLD) बं और मद्रु ा की अव ारणा बंि (Bandha): तांध, योग और प्राणायाम में एक मैत्वपण ू ा अांग ै। जो शजतत को तचाए रखने और प्राण को तनयांत्रत्रत करने में मदद करता ै। यै शरीर के ववमभन्न भागों को तांद्रदश तनाने का काया करता ै। ये तांध सामान्यत:1.मलन ू तांध, 2.उड्डीयानतांध, 3.जालनांधर बंि ैोते ैैं इन तांधों का अभ्यास करने से प्राण शजतत को सैे जा जा सकता ै। तीनो तांधों का एक सार् अभ्यास करने को महाबंि कैते ै। मिू ािार बंि: इसमें मि ू ािार चि क्षेत्र को तांधधत ककया जाता ै। , जजससे प्राणशजतत को ऊपर उठाने में मदद ममलनती ै। उड़ियाि बंि: इसमें िामर् क्षेत्र को तांधधत ककया जाता ै। , जजससे प्राणशजतत को ऊपर की ओर तनदे मशत ककया जा सकता ै। जािंिर बंि: इसमें गिे की जािंिर क्षेत्र को तांधधत ककया जाता ै। , जजससे प्राणशजतत को मजस्तष्क की ओर तनदे मशत ककया जा सकता ै। मद्रु ा घेरण्ड सांद्रैता के अनस ु ार धचि के ववशेष भाव को मि ु ा कैते ै। मुिा का अभ्यास ैमारे प्रािमय और मिोमय कोष को प्रभाववत करता ै। अतः मि की क्थिरता के मलनए मैवषा घेरण्ड ने राजा चण्डकपालनी को इसकी मशक्षा प्रदान की िाड़ी िो ि / अिल ु ोम-गवलोम पद्मासन में त।ठकर साधक को चन्िनाड़ी Left Nostril(तायें नर्न ु े) से श्वास अन्दर लनेना चाद्रैये और अपनी शजतत के अनस ु ार श्वास को रोककर सय ू न ा ाडी Right nostril (दायें नर्ुने) से श्वास छोड़ना चाद्रैये. Then vice versa प्रिव मि ु ा ि़ीतल़ी प्राणायाम जीभ (को दोनों ओर से मोड़कर, परनालने (TUBE) की तरै ववशेष जस्र्तत में लनाकर, कफर उस) के द्वारा वायु अन्दर खीांचकर पैलने के तरै कुम्भक का अभ्यास करना चाद्रैये पश्चात ् साधक को धीरे -धीरे Right Nostril द्वारा वायु का रे चन करना चाद्रैये शीतलनी प्राणायाम दे ै को शीतलनता प्रदान करता ै।. स़ीत्काऱी प्राणायाम मखु से सीत्कार (सी-सी की आवाज) करते ैुए परू क करना चाद्रैये और रे चक केवलन नामसका से ैी करनी चाद्रैये इस प्रकार से अभ्यास करते ैुए (साधक) कभी भी भख ू - प्यास, तनिा या सस्ु ती का अनुभव नैीां करता भ्रामऱी प्राणायाम वेग से भ्रमर-गज ंु ार के समान आवाज करते ैुए परू क करना चाद्रैये पश्चात ् भ्रमरी के गज ंु ि के समान आवाज करते ैुए धीरे -धीरे रे चक करना चाद्रैये इस प्रकार अभ्यास करने से उिम साधकों के धचि में एक अपूवा आनांद-लनीलना की उत्पवि ैोती ै। UNIT - 3 (श्वास अभ्यास औि प्राणायाम) ू ु भवः स्वः तत्सगवतभवुरेण्यं भिो देवस्य धीमगह गधयो यो नः प्रचोदयात् | ॐ भभ ॐ ध्यान ॐ ध्याि का अभ्यास करिे के गलए व्यगि को एकांत स्थाि अथवा गकस़ी कमरे में गकस़ी ध्याि मद्रु ा में बैठिा चागहए। िऱीर को स़ी ा रखते हुए , आंखों को बंद रखते हुए हाथों को ज्ञाि मद्रु ा में घटु िो पर रखकर , ॐ का उच्च स्वर में उच्चारण करिा चागहए। ॐ िब्द का बार - बार उच्चारण गकया जािा चागहए। ध्वगि तरं िें िऱीर से साथ - साथ वातावरण को भ़ी प्रभागवत करिा चागहए। इस प्रकार केवल मख ु ह़ी िहीं ,वगकक सम्पूणण िऱीर उसकी पि ु रावगृ त कर रहा है। यह प्रगिया अन्िमय और प्राणमय दोिों कोषों को सामाि रूप से प्रवागभत करत़ी है। इसके अभ्यास में य ै ण और ऊजाण की आवश्यकता होत़ी है। प्रसन्िगचत के साथ अभ्यास करिा चागहए। अंतर मौि अपनी आँखें बंद करके स्थिर बैठें और उन ध्वस्नयों के प्रस्ि जागरूक रहें स्जन्हें आप सुन सकिे हैं। सभी स्दशाओ ं से सभी ध्वस्न कंपन प्राप्त करें । स्कसी स्वशेष पर ध्यान केंस्िि स्कए स्बना उन पर ध्यान दें। ध्वस्नयों के प्रस्ि इस समग्र जागरूकिा को बनाए रखें। धीमी आवाजें हो सकिी हैं; िेज़ आवाज़ें हो सकिी हैं. शायद बहुि सारी ध्वस्नयाँ, शायद कुछ। उन सभी ध्वस्नयों पर ध्यान दें जो आप सुनिे हैं, न अस्धक, न कम। ध्वस्न पररदृश्य में उपस्थिि रहें. यस्द आप जहां हैं वहां शांस्ि है िो यह भी ठीक है। स्िर उस सन्नाटे को और उस सन्नाटे को िोड़ने वाली कुछ आवाज़ों को सुनो। यस्द आप बहुि शांि थिान पर हैं, िो हो सकिा है स्क आप अपनी अन्य इं स्ियों को लाना चाहें और हवा को अपनी त्वचा, कपड़े, हवा के िापमान और यहां िक स्क गंध के स्वरुद्ध महसूस करना चाहें। ध्वस्नयों के अपने अनुभव में सभी इं स्िय छापों को शास्मल करें । स्कसी स्वस्शष्ट ध्वस्न में िंसे स्बना ध्वस्न पररदृश्य के साि बने रहें। समग्र जागरूकिा रखें. ध्वस्नयाँ ऐसे सुनें जैसे आप संगीि सुनग ें ।े अपना ध्यान गनयंगित गकए गिना, अपने मन में उठने वाली हर चीज़ पर ध्यान दें । या उस मामले के गलए कोई िाहरी प्रभाव। िस एक िांत साक्षी के रूप में अपनी जािरूकता के क्षेि में आने वाली गकसी भी चीज़ का गनरीक्षण करें । अपने गवचारों को जैसा चाहें वैसा चलने दें । जैसे आप अपनी सांसों को स्वतंि रूप से िहने देते हैं, वैसे ही अपने गदमाि को भी ऐसा करने दें । मानगसक और भावनात्मक िगतगवगध के प्रवाह, मन के प्रवाह का गनरीक्षण करें । आप आज पहले जो कर रहे िे उसकी प्रगतध्वगन आपको अनभभव हो सकती है। आप ऐसे गवचार सोच सकते हैं जो ध्यान से, आप क्या कर रहे हैं या स्वयं से संिंगधत हों। सभी गवचार इस अनभभव का गहस्सा हैं। सभी गवचारों को उठने दें. गिना गकसी गनणु य के अपने मन का गनरीक्षण करें । सिका स्वाित है. यहां तक गक गजन गवचारों को आप आमतौर पर परे िान करने वाला या अगप्रय मानते हैं, उनका भी स्वाित है। िांगत खोजने और असभगवधा को दूर धकेलने के जाल में न पडें । तटस्ि रहो, मकू साक्षी रहो। श्वास ध्याि – एक िहरी सांस लें- इससे हम तनाव और गनरािा को दूर करते है िहरी सांस लेना ध्यान का एक रूप है, एक अभ्यास जो िोधकताु ओ ं का कहना है गक कई हजार साल पहले का है। िोध से पता चलता है गक ध्यान गचंता को कम कर सकता है, याददाश्त तेज कर सकता है, अवसाद के लक्षणों का इलाज कर सकता है, अगधक आरामदायक नींद को िढावा दे सकता है और यहां तक गक हृदय स्वास््य में भी सभधार कर सकता है। 'प्रत्येक परं परा का ध्यान अभ्यासों के गलए एक अलि उद्दे श्य होता है, इसगलए प्रत्येक साधक के पास सांस के साि काम करने के गलए तकनीकों की पेिकि करने के तरीके अलि होंिे।' ध्यानपण ू ु श्वास तकनीकें हैं और वे आपको मन की िांगत प्राप्त करने में कैसे मदद कर सकती है ध्याि गक गवग (डायाफ्राम श्वास) जीवन िगि जो रीढ की हड्डी के आधार पर गनवास करती है' ' ध्यान के अभ्यास में, श्वास को गनयंगित श्वास तकनीकों के माध्यम से िरीर के भीतर िगतमान ऊजाु के आसपास केंगित गकया जाता है, जैसे गक डायाफ्रागमक श्वास। यह ज्ञात है गक डायाफ्राम सांस लेने की सिसे कभिल मांसपेिी है। यह आपके फेफडों के नीचे गस्ित होता है। डायफ्राम से सांस लेना आपको इसका सही इस्तेमाल करना गसखाता है और इसे मजित ू िनाने में मदद करता है। इस तकनीक से आप अगधक हवा लेने और ऑक्सीजन की मांि को कम करने में सक्षम होंिे। पद्मासन य सभखासन में िैठते समय या अपनी पीठ के िल लेटते समय, एक हाि अपनी ऊपरी छाती पर और दूसरा अपने पेट पर अपने पसली के गपंजरे के नीचे रखें। अपनी नाक से धीरे -धीरे सांस लें और महसस ू करें गक आपका पेट आपके हाि के नीचे से िाहर गनकल रहा है। गजतना हो सके अपनी छाती पर हाि रखने का अभ्यास करें । िहरी सांसों पर ध्यान केंगित करें जो केवल छाती को भरने वाली उिली सांसों के िजाय फेफडों को भरती हैं। 5 से 10 गमनट के गलए गदन में तीन या चार िार डायाफ्रागमक श्वास का अभ्यास हमे ध्यान गक चरम गसमा पर ले जाता आनन्द गह आनन्द है। गवपश्यिा (श्वास) ध्याि गवपश्यना ध्यान, ध्यान का एक प्राचीन भारतीय रूप है गजसका अिु है चीजों को वैसे ही देखना जैसे वे वास्तव में हैं। यह 2,500 साल से भी पहले भारत में गसखाया जा रहा है गवपश्यना ध्यान का लक्ष्य आत्म- गनरीक्षण के माध्यम से आत्म-पररवतु न है। यह मन और िरीर के िीच एक िहरा संिंध स्िागपत करने के गलए, िरीर में िारीररक संवेदनाओं पर अनभिागसत ध्यान के माध्यम से प्राप्त गकया जाता है। अभ्यास के गिक्षकों का दावा है गक गनरं तर अंतसं िंध का पररणाम प्रेम और करुणा से भरे संतभगलत मन में होता है। गवपश्यना साधक, इस परं परा में, आमतौर पर 10 गदवसीय पाठ्यक्रम के दौरान गसख जाते है, जो गक श्वास ध्यान का ही पयाु य है । मन्रों का पाठ , मंिलाचरण और प्राथणिा प्राथणिा एक उच्च िगि के साथ संचार का एक रूप है, जो अक्सर मण या आध्यागत्मकता से जुडा होता है। यह व्यगियों के गलए अपिे गवचारों, भाविाओ ं और इच्छाओ ं को गकस़ी गदव्य प्राण़ी या िगि के समक्ष व्यि करिे का एक तऱीका है। प्राथणिा कई रूप ले सकत़ी है, गजसमें बोले िए िब्द, गलगखत िब्द या मौि ध्याि िागमल हैं। प्राथणिा का उपयोि अक्सर कगठि समय के दौराि मािणदिणि, आराम या िगि प्राप्त करिे के तऱीके के रूप में गकया जाता है। इसका उपयोि कृतज्ञता व्यि करिे, प्रिंसा करिे या स्वयं या दूसरों के गलए अिरु ो करिे के तऱीके के रूप में भ़ी गकया जा सकता है। प्रािु ना और मंिलाचरण दो िब्द हैं गजनका उपयोि अक्सर एक दूसरे के स्िान पर गकया जाता है, लेगकन उनके अलि-अलि अिु और अिु होते हैं। तो, दोनों में से कौन सा उगचत िब्द है? उत्तर यह है गक यह संदभु पर गनभु र करता है। सामान्य तौर पर, प्रािु ना का अिु है ईश्वर या गकसी अन्य दे वता को संिोगधत मदद या धन्यवाद की अगभव्यगि के गलए एक िंभीर अनभरोध। दूसरी ओर, मंिलाचरण, सहायता या प्रेरणा के गलए गकसी दे वता या आत्मा को िभलाने के कायु को संदगभु त करता है। मंत्र ध्याि. इस प्रकार के ध्यान में , आप ध्यान भटकाने वालने ववचारों को रोकने के मलनए चपु चाप एक शाांत शदद, ववचार या वातयाांश दोैराते ैैं माइंडफुििेस मेडडटे शि. इस प्रकार का ध्यान सचेत रैने, या वतामान क्षण में जीने की तढी ैुई जागरूकता और स्वीकृतत पर आधाररत ै। माइांडफुलननेस मेडडटे शन में , आप अपनी सचेत जागरूकता का ववस्तार करते ैैं आप ध्यान के दौरान जो अनभ ु व करते ैैं उस पर ध्यान केंद्रित करते ैैं, ज।से कक आपकी साांसों का प्रवाै आप अपने ववचारों और भावनाओां का तनरीक्षण कर सकते ैैं लनेककन उन्ैें त्रतना तनणाय के पाररत ैोने दें एक मंत्र दोहराएँ. आप अपना खद ु का मांत्र तना सकते ैैं, चाैे वै धाममाक ैो या धमातनरपेक्ष धाममाक मांत्रों के उदाैरणों में ईसाई परां परा में यीशु प्रार्ाना, यैूदी धमा में भगवान का पववत्र नाम, या द्रैांद ू धमा, तौद्ध धमा और अन्य पव ू ी धमों का ओम मांत्र शाममलन ैैं ध्याि के लाभ ध्यान आपको िांगत, िांगत और संतभलन की भावना दे सकता है जो आपके भावनात्मक कल्याण और आपके समग्र स्वास््य दोनों को लाभ पहंचा सकता है। आप अपना ध्यान गकसी िांत करने वाली चीज़ पर केंगित करके आराम करने और तनाव से गनपटने के गलए भी इसका उपयोि कर सकते हैं। ध्यान आपको केंगित रहना और आंतररक िांगत िनाए रखना सीखने में मदद कर सकता है। और ये लाभ ति समाप्त नहीं होते जि आपका ध्यान सि समाप्त होता है। ध्यान आपको अपना परू ा गदन अगधक िांगत से गिताने में मदद कर सकता है। और ध्यान आपको कभछ गचगकत्सीय गस्िगतयों के लक्षणों को प्रिंगधत करने में मदद कर सकता है। ध्याि और भाविात्मक और िाऱीररक ककयाण जत आप ध्यान करते ैैं, तो आप उस सच ू ना अधधभार को दरू कर सकते ैैं जो ैर द्रदन तढती ै। और आपके तनाव में योगदान करती ै। ध्यान के भावनात्मक और शारीररक लनाभों में शाममलन ैो सकते ैैं: तनावपण ू ा जस्र्ततयों पर एक नया दृजष्टकोण प्राप्त करना अपने तनाव को प्रतांधधत करने के मलनए कौशलन का तनमााण करें आत्म-जागरूकता तढाना वतामान पर ध्यान केंद्रित करना नकारात्मक भावनाओां को कम करना तढती कल्पनाशीलनता और रचनात्मकता ध।या और सैनशीलनता में वद् ृ धध आराम द्रदलन की दर को कम करना आराम करने वालने रततचाप को कम करना नीांद की गणु विा में सध ु ार ध्याि और ब़ीमाऱी यद्रद आपकी कोई धचककत्सीय जस्र्तत ै। , ववशेष रूप से वै जस्र्तत जो तनाव के कारण त्रतगड़ सकती ै। , तो ध्यान भी उपयोगी ैो सकता ै। जतकक व।ज्ञातनक अनुसांधान का तढता समूै ध्यान के स्वास््य लनाभों का समर्ान करता ै। , कुछ शोधकतााओां का मानना ै। कक ध्यान के सांभाववत लनाभों के तारे में तनष्कषा तनकालनना अभी सांभव नैीां ै। इसे ध्यान में रखते ैुए, कुछ शोध तताते ैैं कक ध्यान लनोगों को तनम्न जस्र्ततयों के लनक्षणों को प्रतांधधत करने में मदद कर सकता ै। : धचांता दमा कैं सर परु ाने ददा अवसाद द्रदलन की तीमारी उच्च रततचाप सांवेदनशीलन आांत की तीमारी नीांद की समस्या तनाव मसरददा मंिलाचरण ु कायण के पहले मंिल कामिा से पढा या कहा जाता है, उसे मङ्िलाचरण कहते हैं| वह श्लोक अथवा पद्य जो िभ योिेि गचत्तस्य पदेि वाचां, मलं िऱीरस्य च वैद्यकेि I योपाकरोत्तं प्रवरं मि ु ़ीिां ,पतञ्जगलं प्राञ्जगलराितोऽगस्म ll योिेन गचत्तस्य पदेन वाचा अिु : ~ मैं ऋगि पतंजगल की प्रिंसा करता हं गजन्होंने हमें अपने मन और चेतना को िभद्ध करने के गलए योि का गवज्ञान गदया। और गजसने हमें िब्दों का उपयोि करने और खभद को पण ू ु ता के साि व्यि करने के गलए व्याकरण और िब्दावली दी। मलाम् िरीररस्य च वैद्य केन अिु :~ उन्होंने हमें औिगध यानी आयभवेद का उपहार गदया तागक हम िरीर की अिभगद्धयों को दरू कर सकें। योपकारोत्तम प्रवरं मभगननाम अिु :~ गप्रय भिवान, मभझे उस ऋगि के करीि रहने दो गजसने हमें ये सभी उपहार गदए। पतंजगलम प्रांजगल रणतोगस्म अिु :~ मैं भिवान पतंजगल के प्रगत श्रद्धापवू ु क हाि जोडकर नतमस्तक हं। THANKS