योग - स्वस्थ जीवन जीने का तरीका (उच्च प्राथमिक, PDF)

Summary

यह पुस्तक उच्च प्राथमिक स्तर के छात्रों के लिए योग से संबंधित है। इसमें योग के विभिन्न पहलुओं, आसनों, प्राणायाम, क्रियाओं और ध्यान का परिचय दिया गया है। यह पुस्तक एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा प्रकाशित है।

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य ोग m Ppi z kFk f ed L rj मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्‍छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो-उससे अति शीघ्र फल प्राप्‍ति होगी। यह है यथार्थ आत्‍मोन्‍नति का उपाय। एकाग्रता सीखो, और जिस ओर इच्‍छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तम्ु ‍हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस...

य ोग m Ppi z kFk f ed L rj मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्‍छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो-उससे अति शीघ्र फल प्राप्‍ति होगी। यह है यथार्थ आत्‍मोन्‍नति का उपाय। एकाग्रता सीखो, और जिस ओर इच्‍छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तम्ु ‍हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस्‍त को प्राप्‍त करता है, वह अश ं को भी प्राप्‍त कर सकता है। — स्‍वामी विवेकानंद योग स्‍वस्‍थ जीवन जीने का तरीका उच्‍च प्राथमिक स्‍तर ISBN 978-93-5007-766-5 प्रथम सस्ं ‍करण अप्रैल 2016 चैत्र 1938 सर्वािधकार सरु क्षित  प्रकाशक की परू ्व अनमु ित के िबना इस प्रकाशन के िकसी भाग को छापना तथा पुनर्मुद्रण इलैक्‍ट्रॉिनकी, मशीनी, फोटोप्रतििलपि, िरकॉिर्डंग अथवा िकसी अन्‍य िवधि से पनु : प्रयोग पद्धति द्वारा उसका संग्रहण अथवा प्रचारण वर्जित है। जनू 2018 ज्येष्ठ 1940  इस पस्ु ‍तक की िबक्री इस शर्त के साथ की गई है िक प्रकाशन की पर ू ्व अनमु ित के िबना यह पस्ु ‍तक अपने मल ू आवरण अथवा िजल्‍द के अलावा िकसी अन्‍य PD 5 T RPS प्रकार से व्‍यापार द्वारा उधारी पर, पनु र्विक्रय या िकराए पर न दी जाएगी, न बेची जाएगी।  इस प्रकाशन का सही मल्ू ‍य इस पृष्‍ठ पर मद्ु रित है। रबड़ की महु र अथवा िचपकाई गई पर्ची (िस्‍टकर) या िकसी अन्‍य िवधि द्वारा अिं कत कोई भी संशोिधत मल्ू ‍य © राष्‍ट्रीय शैिक्षक अनुसध ं ान और गलत है तथा मान्‍य नहीं होगा। प्रशिक्षण परिषद्, 2016 एन. सी. ई. आर. टी. के प्रकाशन प्रभाग के कार्यालय एन.सी.ई.आर.टी. कैं पस श्री अरविदं मार्ग नयी िदल्‍ली 100 016 फ़ोन : 011-26562708 108ए 100 फीट रोड हेली एक्‍सटेंशन, होस्‍डेके रे बनाशकं री III इस्‍टेज बेंगलुरु 560 085 फ़ोन : 080-26725740 नवजीवन ट्रस्‍ट भवन डाकघर नवजीवन अहमदाबाद 380 014 फ़ोन : 079-27541446 65.00 सी.डब्‍ल्‍यू.सी. कैं पस िनकट– ध्‍ानकल बस स्‍टॉप पिनहटी कोलकाता 700 114 फ़ोन : 033-25530454 सी.डब्‍ल्‍यू.सी. कॉम्‍प्‍लैक्‍स मालीगाँव गुवाहाटी 781021 फ़ोन : 0361-2676869 प्रकाशन सहयोग अध्यक्ष, प्रकाशन प्रभाग : एम. िसराज अनवर मख्ु ‍य संपादक : श्‍वेता उप्‍पल मख्ु ‍य व्‍यापार प्रबंध्‍ाक : गौतम गांगल ु ी मख्ु ‍य उत्‍पादन अधिकारी : अरुण िचतकारा 80 जी.एस.एम. पेपर पर मद्ु रित। संपादक : रे खा अग्रवाल प्रकाशन प्रभाग में सचिव, राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान उत्‍पादन सहायक : दीपक जैसवाल और प्रशिक्षण परिषद,् श्री अरविंद मार्ग, नयी िदल्‍ली 110 016 द्वारा प्रकाशित तथा xhrk vkWI+kQlsV ¯izVlZ आवरण एवं डिज़ाइन izk- fy-] lh&90] vks[kyk baMfLVª;y ,fj;k] डी. के. सेंडे I+ksQ”k&I] u;h fnYyh 110 020 द्वारा मद्ु रित। प्राक्‍कथन अतं र्राष्ट्रीय योग दिवस, 21 जनू 2015, राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित हुआ । इस अवसर पर राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान और प्रशिक्षण परिषद् द्वारा निर्मित, योग – स्‍वस्‍थ जीवन जीने का तरीका, का विमोचन माननीय मानव ससं ाधन विकास मत्ं री, श्रीमती स्मृति ज़ूबिन इरानी द्वारा किया गया । योग स्‍वास्‍थ्‍य और शारीरिक शिक्षा का एक अभिन्‍न अगं है जो माध्यमिक स्तर तक एक अनिवार्य विषय है । शारीरिक शिक्षा और योग का बच्चों के शारीरिक, सामाजिक, भावात्‍मक और मानसिक विकास में महत्वपर्णू योगदान है। यह पस्त ु क उच्च प्राथमिक स्तर के लिए तैयार की गई है । इस पाठ्यसामग्री का अधिक बल शिक्षार्थियों के मध्य शारीरिक क्षमता, भावात्मक स्थिरता, एकाग्रता और मानसिक विकास को विकसित करना है । इसमें चार इकाइयाँ हैं । पहली इकाई एक परिचयात्मक इकाई है । अन्य तीन इकाइयाँ आसनों, प्राणायामों, क्रियाओ ं और ध्यान का संक्षिप्‍त परिचय देती हैं, जिनके अनसु रण में इन यौगिक अभ्यासों की क्रमिक प्रक्रियाएँ या चरण हैं । भाषा और व्‍याख्‍याएँ सरल तथा चित्रों द्वारा भलीभाँति समर्पित हैं । विद्यार्थी समझ सकते हैं और घर पर ही इसका अभ्यास भी कर सकते हैं । यह सामग्री शिक्षकों, अन्य लोगों के लिए भी उपयोगी है जो स्वस्थ जीवन के लिए कुछ सामान्य और महत्वपर्णू यौगिक अभ्यास सीखना चाहते हैं । इस प्रयास की सफ़लता स्कू ल के प्राचार्यों और शिक्षकों द्वारा उठाए गए कदमों पर निर्भर करे गी जो बच्चों को ये अभ्यास करने और सीखने पर विमर्शित करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं । इस पस्त ु क के िनर्माण में प्रोफ़े सर बी. के. ित्रपाठी, संयक्ु ‍त िनदेशक, एन.सी.ई.आर.टी. की भमू िका भी सराहनीय रही है । मैं, प्रोफे स़ र सरोज यादव, अधिष्‍ठाता (अकादमिक) तथा राष्ट्रीय जनसख्या ं शिक्षा परियोजना (एन.पी.ई.पी.) एवं किशोरावस्था शिक्षा कार्यक्रम (ए.ई.पी.) की परियोजना समन्वयक और निर्माण समिति को इस सामग्री के वर्तमान रूप को iv विकसित करने हेतु उनके द्वारा किए गए निरंतर प्रयासों के लिए बहुत धन्यवाद देता हूँ । अपने उत्पादों की गणु वत्ता में क्रमबद्ध सधु ार और निरंतर प्रगति के लिए प्रतिबद्ध संस्था के रूप में एन.सी.ई.आर.टी. टिप्पणियों और सझु ावों का स्वागत करती है जो हमें संशोधन और परिष्करण करने हेतु सक्षम करें गे । आशा है कि विद्यार्थी और शिक्षक इसे उपयोगी पाएँगे । एच. के. सेनापति नयी दिल्ली निदेशक 5 अप्रैल 2016 राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान और प्रशिक्षण परिषद् पुस्‍तक के बारे में राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान और प्रशिक्षण परिषद् (एन.सी.ई.आर.टी.) ने 21 जनू 2015 को मनाए जाने वाले अतं र्राष्‍ट्रीय योग दिवस की परू ्व संध्‍या पर उच्‍च प्राथमिक और सेकंडरी स्‍तरों के विद्यार्थियों के लिए यौगिक गतिविधियों पर पठन सामग्री विकसित की है । यह पठन सामग्री उच्‍च प्राथमिक स्‍तर (कक्षा 6 से 8) के विद्याथियों के लिए है । इसमें इस स्‍तर के विद्यार्थियों द्वारा की जाने वाली विभिन्‍न यौगिक गतिविधियाँ शामिल की गई हैं । ये गतिविधियाँ एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा निर्मित स्‍वास्‍थ्‍य और शारीरिक शिक्षा के पाठ्यक्रमों का अनिवार्य भाग हैं । योग को प्राथमिक स्‍तर से अनौपचारिक ढंग से शरू ु करना ठीक समझा गया है, परंतु यौगिक अभ्‍यासों की औपचारिक शरुु आत कक्षा 6 के बाद ही होनी चाहिए । इस पठन सामग्री में, आसनों और प्राणायाम के अभ्‍यासों को मह व दिया गया है । आसनों और प्राणायाम के अलावा क्रियाओ ं और ध्‍यान को भी शामिल किया गया है । इस पस्ु ‍तक में चार इकाइयाँ हैं । पहली इकाई परिचयात्‍मक है जो योग के उदभ् व तथा इतिहास और यौगिक गतिविधियाें को करने के ि‍लए सामान्‍य दिशानिर्देशों को समझाती है । इस इकाई में यौगिक क्रियाओ ं (आसनों, प्राणायाम, क्रिया और ध्‍यान इत्‍यादि) से संबंधित विशिष्‍ट दिशानिर्देश भी शामिल हैं । दसू री इकाई कक्षा 6 के विद्यार्थियों के लिए है, जबकि तीसरी और चौथी इकाइयाँ क्रमश: कक्षा 7 और 8 के विद्यार्थियों के लिए हैं । दसू री, तीसरी और चौथी इकाइयों में प्रत्‍येक गतिविधि का संक्षिप्‍त वर्णन है, जिसके अनसु रण में अभ्‍यास के चरणों या अवस्‍थाओ ं का वर्णन शामिल किया गया है । प्रत्‍येक यौगिक गतिविधि के वर्णन के साथ उससे होने वाले लाभ भी दिए गए हैं । इन यौगिक अभ्‍यासों को करते समय ध्‍यान में रखने योग्‍य सीमाओ ं सहित कुछ महत्‍वपर्णू ‘क्‍या करें और क्‍या न करें ’ भी दिए गए हैं । इस पठन सामग्री की एक विशेषता यह है कि इसमें समझाने के लिए प्रचरु मात्रा में चित्र दिए गए हैं । vi शिक्षक भी योगासनों में कुछ प्रारंभिक प्रशिक्षण के बाद इसकी मदद से पाठ्यक्रम में दी गई यौगिक गतिविधियाँ सीख सकते हैं । चित्रों ने सामग्री को अधि‍क आकर्षक और उपयोग सल ु भ बना दिया है । यह सामग्री योग विशेषज्ञों और योग व्‍यवसायियों की एक टीम द्वारा विकसित की गई है । इस पठन सामग्री को तैयार करने में इनकी बहुमल्य ू सहायता के लिए हम इन सबके अत्‍यधिक आभारी हैं । आशा है कि विद्यार्थी और शिक्षक इसे उपयोगी पाएँगे । प्रोफे ़सर सरोज यादव अधिष्‍ठाता (अकादमिक) और परियोजना समन्वयक अप्रैल 2016 राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान और प्रशिक्षण परिषद् निर्माण समिति समिि‍त के सदस्य एच.एल.खत्री, व्याख्याता, डाइट, एस.सी.ई.आर.टी., पीतमपरु ा, िदल्ली  बी.इस्लाम, परू ्व राज्‍य प्रशिक्षण आयक्ु ‍त एवं योग शिक्षक, कें द्रीय विद्यालय, ऐड्ं रू ज गंज, नयी दिल्ली भगवती यादव, योग शिक्षक, के.वी.एन.एस.जी., मानेसर, जिला‑गड़ु गाँव, (के.वी.एस.,आर.ओ. गड़ु गाँव) हरियाणा मणिका देबनाथ, प्रोफे ़सर और अध्यक्ष, लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा संस्थान, ग्वालियर, मध्यप्रदेश वासदु वे शर्मा, परियोजना अधिकारी‑योग, शारीरिक शिक्षा शाखा, शिक्षा निदेशालय, दिल्ली साधना आर्य, गेस्ट फै कल्टी, मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान, नयी दिल्ली सी.जी. शिदं ,े कै वल्यधाम, लोनावाला, महाराष्ट्र हिंदी अनुवाद के. के. शर्मा, प्राचार्य (अवकाश प्राप्‍त), 1‑घ‑7, वैशाली नगर, अजमेर, राजस्थान समन्वयक सरोज यादव, अधिष्‍ठाता (शैक्षिक) एवं परियोजना समन्वयक एन.पी.ई.पी., ए.ई.पी., एन.सी.ई.आर.टी, नयी दिल्ली आभार राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान और प्रशिक्षण परिषद् योग–स्‍वस्‍थ जीवन जीने का तरीका पर सामग्री की समीक्षा और अद्यतनीकरण में विशेषज्ञों और शिक्षकों के अमल्य ू योगदान के लिए आभार प्रकट करती है । इस कार्य के लिए निश्‍च‍ित रूप से कई मददगार हाथों की आवश्यकता थी और उनकी मदद के बिना अनबु द्ध समय में यह प्रकाशन सभं व नहीं हो सकता था । हम निम्नलिखित को उनके अमल्य ू सझु ावों के लिए धन्यवाद देते हैं–नीरजा रश्‍मि, विभागाध्‍यक्ष, डी.ई.एस.एस., एन.सी.ई.आर.टी; ईश्‍वर वी. बासवारे ड्डी, निदेशक, मारोरजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान, नयी दिल्ली; अशोक धवन, समन्वयक (योग) शारीरिक शिक्षा, शि‍क्षा निदेशालय, दिल्ली; देवेन्द्र सिहं , असिस्टेंट प्रोफे ़सर, डाइट, दिल्ली; इन्द्रा सागर, शारीरिक शिक्षा शिक्षक,जे.एन.वी. जफ़रपरु , दिल्ली; ईश कुमार, योग शिक्षक और राजकीय ‍बालक सीनियर सेकंडरी स्कू ल, दिल्ली के विद्यार्थी; एच.एल.खत्री, व्याख्याता, डाइट, एस.सी.ई.आर.टी, पीतमपरु ा, दिल्ली; नीलम अरोड़ा, योग शिक्षक और एस.के.वी. मॉडल टाउन नंबर 1, दिल्ली के विद्यार्थी; सचि ु तं कौर, कै वल्यधाम, लोनावाला, महाराष्ट्र; सरिता शर्मा योग शिक्षक और राजकीय एस.के.वी. सेक्टर‑ 4, आर.के.परु म, दिल्ली के विद्यार्थी; और विपिन आनंद, योग शिक्षक, के.वी., जे.एन.य.ू नयी दिल्ली । हम सश्ु री सीमा जवीं हुसैन और फजरूद्दीन को पस्त ु क को चित्रों से सजाने के लिए धन्यवाद देते हैं । इस पस्ु ‍तक का ि‍हदं ी में अनवु ाद के.के.शर्मा, (अवकाशप्राप्‍त), प्रधानाचार्य, अजमेर के हम कृ तज्ञ हैं और इस पस्ु ‍तक के हिदं ी अनवु ाद की समीक्षा करने के लिए हम चन्‍द्रा सादायत, प्रोफे ़सर, डी.ई.एल., संपादक (अवकाशप्राप्‍त), एन.सी.ई.आर. टी.; एन. एस. यादव, संपादक, (अवकाशप्राप्‍त) एन.सी.ई.आर.टी.; शशि चड्ढा, सहायक सपं ादक (अवकाशप्राप्‍त), एन.सी.ई.आर.टी.; बीणा चतर्वेद ु ी, अनवु ाद अधिकारी (अवकाशप्राप्‍त) जे.एन.य.ू , नयी दिल्‍ली का आभार प्रकट करते हैं। इस पस्तु क को टाइप और डिज़ाइन करने के लिए रानी शर्मा (पी.ए.), नितिन कुमार गप्‍ता ु , अजीत कुमार, अनीता कुमारी, एवं सरु े न्द्र कुमार डी.टी.पी. आॅपरेटर को विशेष धन्यवाद देते हैं। विषय‑वस्‍तु प्राक्कथन iii पस्ु ‍तक के बारे में v इकाई 1 – परिचय 1–10 सक्षिप्‍त ं विवरण 1 योग क्या है? 1 योग का मह व 2 योग–इसका इतिहास 2 यौगिक अभ्यास के उद्देश्य 3 सामान्य योगाभ्यास 5 यम और नियम 5 आसन 6 प्राणायाम 7 प्रत्याहार 8 बंध और मद्ु रा 8 षट्कर्म/क्रिया (शिु द्धकरण प्रक्रिया) 9 ध्यान 9 इकाई 2 – स्‍वास्‍थ्‍य के लिए योग 11–42 संक्षिप्‍त विवरण 11 सर्य ू नमस्कार आसन 12 ताड़ासन 17 वृक्षासन 18 उत्कटासन 20 वज्रासन 22 स्वास्तिकासन 23 अर्धपदम् ासन 25 x निरालंब भजु ंगासन 27 अर्धशलभासन 28 मकरासन 30 उत्तानपादासन – एक-पाद उत्‍तानासन, िद्वपाद उत्‍तानासन 31 पवनमक्‍ता ु सन 33 शवासन 35 श्‍वसन 36 त्राटक (संकेंिद्रत टकटकी) 38 ध्यान 39 इकाई 3 – शारीरिक दक्षता (Physical Fitness) के लिए योग 43–69 संक्षिप्‍त विवरण 43 लचीलापन क्या है? 43 लचीलेपन के लाभ 44 लचीलापन बढ़ाने के लिए योगाभ्यास 45 सर्य ू नमस्कार 45 आसन 46 ताड़ासन 46 हस्तोत्तानासन 47 त्रिकोणासन 48 कटिचक्रासन 50 पदम् ासन 51 योगमद्ु रासन 53 पश्‍च‍िमोत्तानासन 54 धनरु ासन 56 मकरासन 58 सप्ु ‍त वज्रासन 58 चक्रासन 60 अर्धहलासन 61 शवासन 63 क्रिया 63 xi कपालभाति 63 प्राणायाम 64 अनल ु ोम−विलोम प्राणायाम 64 भस्‍त्र‍िका प्राणायाम 66 ध्यान 67 इकाई 4 – एकाग्रता के लिए योग 70–96 संक्षिप्‍त विवरण 70 योगाभ्‍यास और एकाग्रता 72 आसन 72 गरुड़ासन 73 बद्धपदम् ासन 74 गौमख ु ासन 76 अर्धमत्‍स्‍येन्‍द्रासन 77 भजु ंगासन 79 शलभासन (िटड्डी जैसी मद्ु रा) 80 मकरासन 82 मत्‍स्‍यासन 82 नौकासन 84 सेतबु ंधासन 85 हलासन 87 श‍वासन 89 क्रिया 89 अग्निसार 89 प्राणायाम 91 अनल ु ोम-विलोम प्राणायाम 91 सीत्‍कारी प्राणायाम 91 भ्रामरी प्राणायाम 93 ध्यान 94 आकलन 95 उच्च प्राथमिक स्तर पर योग का पाठ्यक्रम 97 xii इकाई 1 परिचय सक्ं षिप्‍त विवरण योग स्‍वस्‍थ जीवन जीने का एक तरीका है, जिसका उद्‍्भ ाव भारत में हुआ । अब इसे विश्‍वभर में विज्ञान की एक शैली के रूप में स्वीकार कर लिया गया है । पाश्‍चात्‍य संस्कृति भी इसे वैज्ञानिक व्यायाम की एक स्वस्थ शैली के रूप में स्वीकार कर रही है । यद्यपि योग की उत्पत्ति कै से हुई, यह स्‍पष्‍ट नहीं है, परंतु यह लंबे समय से चली आ रही परंपरा है । एक सामान्य जन के लिए योग में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्‍याहार, क्रिया और ध्यान के अभ्यास हैं, जो व्यक्‍त‍ि को शारीरिक रूप से स्वस्थ, मानसिक रूप से चस्त ु और भावात्मक रूप से संतलि ु त रखते हैं । यह अतं त: व्यक्‍त‍ि के आध्यात्मिक विकास के लिए आधार तैयार करता है । विद्यालयी बच्चों के लिए योग पाठ्यचर्या का उदद्् श्े ‍य उनकी शारीरिक दक्षता, मानसिक विकास और भावात्मक स्थिरता पर मखु ्य रूप से ज़ोर देना है । आसन, इस पाठ्यचर्या के महत्वपरू ्ण आधार हैं । अत: इन्हें अधिक मह व दिया गया है, यद्यपि इस पाठ्यचर्या में योग की अन्‍य क्रियाओ ं को भी शामिल किया गया है । योग क्या है? ‘योग’ शब्द संस्कृत भाषा की ‘यजु ’् धातु से बना है जिसका अर्थ ‘मिलाना’ या ‘जोड़ना’ होता है । इसे शरीर, मस्तिष्क और आत्मा के संयोजन के रूप में देखा जा सकता है और साहित्य में इसका प्रयोग लक्ष्य के साथ-साथ साधन के रूप में भी किया जाता है । लक्ष्य के रूप में योग उच्चतम स्तर पर ‘‍व्‍यक्‍त‍ित्‍व के एकीकरण’ को दर्शाता है । साधन के रूप में, योग में विभिन्न प्रक्रियाएँ और तकनीकें शामिल होती हैं, जो इस प्रकार के विकास की प्राप्‍त‍ि के लिए काम में लाई जाती हैं । ये प्रक्रियाएँ और तकनीक यौगिक साहित्य के साधन हैं और ये मिलकर ‘योग’ के रूप में जाने जाते हैं । 2 योग – स्‍वस्‍थ जीवन जीने का तरीका – उच्‍च प्राथमिक स्‍तर योग का मह व अच्छा स्‍वास्‍थ्‍य प्रत्येक मनष्य ु का अधिकार है । परंतु यह अधिकार व्यक्‍त‍िगत, सामाजिक और पर्यावरणीय कारकों पर निर्भर करता है । मखु ्य रूप से पर्यावरणीय या सामाजिक कारकों के साथ-साथ हम एक बेहतर रोग प्रतिरक्षा तंत्र और अपनी बेहतर समझ विकसित कर सकते हैं जिससे कि अन्य परिस्थितियाँ हम पर बहुत अधिक प्रतिकूल प्रभाव न डाल पाएँ और हम अच्छा स्‍वास्‍थ्‍य प्राप्‍त कर सकें । स्‍वास्‍थ्‍य एक सकारात्मक अवधारणा है । सकारात्‍मक स्‍वास्‍थ्‍य के वल बीमारियों से मक्‍त ु होना ही नहीं है, बल्कि इसमें विशिष्‍ट कारकों के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता तथा रोगों के लिए सामान्‍य प्रतिरक्षा की समचि ु त मात्रा के विकास के साथ‑साथ स्‍वस्‍थ होने की ऊर्जावान अनभु ति ू भी शामिल है । इसके िलए योग एक महत्वपरू ्ण भिू मका िनभा सकता है क्योंिक इसमें िवशाल क्षमता है । योग, उपचार के सर्वाधि‍क शक्‍त‍िशाली औषधरहित तंत्रों में से एक है । स्‍वस्‍थता की इसकी अपनी एक अवधारणा है जिसे बहुत‑से लोगों ने वैज्ञानिक रूप से समझा है और प्रस्तुत किया है । योग को अपने शारीरिक और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देने के लिए जीवनशैली के रूप में अपनाया जा सकता है । यदि योग को विद्यालय स्‍तर पर प्रारंभ कर दिया जाए तो यह अच्छा स्‍वास्‍थ्‍य प्राप्‍त करने हेतु स्‍वस्‍थ आदतें और स्‍वस्‍थ जीवनशैली स्थापित करने में मदद करे गा । शारीरिक स्तर पर योग बल, सहन-शक्‍त‍ि, क्षमता और उच्च ऊर्जा के विकास में मदद करता है । यह व्यक्‍त‍ि को मानसिक स्तर पर उन्नत एकाग्रता, शांति और सतं ोष के साथ सशक्‍त भी बनाता है, जो आतं रिक और बाह््य सामजं स्य प्रदान करता है । इस प्रकार विद्यालयी स्तर पर योग का लक्ष्य बच्चों के शारीरिक, मानसिक और भावात्मक स्‍वास्‍थ्‍य के लिए एक सकारात्मक और स्‍वस्‍थ जीवनशैली को प्रोत्साहित करना है । योग — इसका इतिहास भारत में योग का उदभ्् व हज़ारों वर्ष पर्वू हुआ । इसकी उत्पत्ति सख ु प्राप्‍त करने और दख ु ों से छुटकारा पाने की विश्‍वव्‍यापी इच्छा के कारण हुई । यौगिक जनश्रुति के अनसु ार, शिव परिचय 3 को योग का संस्थापक माना गया है । 2700 ईसा पर्वू , परु ानी सिंधु घाटी सभ्यता की बहुत सी मद्ु राएँ और जीवों के अवशेष संकेत देते हैं कि प्राचीन भारत में योग प्रचलन में था । परंतु योग का व्यवस्थित उल्लेख पतंजलि के योगदर्शन में मिलता है । महर्षि पतंजलि ने योग के अभ्‍यासों को सवु ्यवस्थित किया । पतंजलि के बाद बहुत‑से योगियों ने इसके विकास में अपना योगदान दिया और इसके परिणामस्वरूप योग अब परू े विश्‍व में फै ल चक ु ा है । इसी क्रम में 11 दिसंबर 2014 को संयक्‍तु राष्ट्र महासभा (य.ू एन.जी.ए.) ने 193 सदस्यों की सहमति से ‘21 जनू ’ को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में मनाने का प्रस्‍ताव पारित किया । यौगिक अभ्यास के उद्देश्य यौगिक अभ्यास की समझ विकसित करना और इस समझ को अपने जीवन और रहन-सहन के अनसु ार प्रयोग में लाना । बच्चों में स्‍वस्‍थ आदतें और जीवनशैली विकसित करना । बच्चों में मानवीय मल्य ू विकसित करना । यौगिक अभ्यास द्वारा शारीरिक, भावात्मक और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य विकसित करना । यौगिक अभ्यास के लिए सामान्य दिशानिर्देश अनौपचारिक रूप में योग प्राथमिक स्तर की कक्षाओ ं से शरू ु किया जा सकता है, परंतु यौगिक अभ्यासों का औपचारिक प्रारंभ कक्षा 6 से ही किया जाना चाहिए । योग पाठ्यक्रम के विषय में बच्‍चों को परिचित कराना अत्‍यंत आवश्‍यक है और उनके लिए कुछ संकेत होने चाहिए कि जो कुछ कक्षा में पढ़ाया जा रहा है, उसके अतिरिक्‍त ‍वे स्वयं इस विषय का अध्ययन कर सकते हैं । विशेष आवश्यकताओ ं वाले बच्चों सहित सभी बच्चोंे द्वारा योगाभ्‍यास किया जा सकता है । फिर भी विशेष आवश्‍यकताओ ं वाले बच्चों को अपनी क्षमता के अनसु ार योग्य विशेषज्ञों/योग शिक्षकों से परामर्श करके योगाभ्‍यास करना चाहिए। यौगिक अभ्यास का प्रारंभ शांत चित (मडू ) के साथ होना चाहिए, जो एक छोटी प्रार्थना बोलकर प्राप्‍त किया जा सकता है । 4 योग – स्‍वस्‍थ जीवन जीने का तरीका – उच्‍च प्राथमिक स्‍तर यह आवश्यक है कि शरीर को सक्ष्‍म ू यौगिक क्रियाओ;ं जैसे — टखने मोड़ना, घटु ने मोड़ना, अँगलि ु यों के संचलन, हाथ बाँधना, कलाई मोड़ना, कलाई घमु ाना, कोहनी मोड़ना, कंधे घमु ाना और आँखों का सचं लन द्वारा तैयार किया जाना चाहिए । इसके बाद सर्यू नमस्कार का अभ्यास किया जा सकता है । योग के शारीरिक और मानसिक, दोनों दृ‍ष्‍ट‍िकोणों से अभ्यास में नियमितता आवश्यक है । योग के लिए धैर्य एक महत्‍वपरू ्ण आवश्य‍कता है । निराश न हों यदि आप आज किसी आसन को करने या कार्य-सचं ालन के सही नियम के पालन में सफ़ल नहीं होते हैं । आपको प्रयासों में दृढ़ रहने की आवश्यकता है । समय के साथ सफ़लता अवश्य मिलेगी । प्रतिस्पर्धा न करें , बल्कि सहयोग करें । प्रतिस्पर्धा की भावना योग के मार्ग में निश्‍च‍ित रूप से एक बाधा होती है । प्रति‍स्पर्धाएँ हमारे अहम् को पोषि‍त करती हैं जबकि योग हमें अपने अहम् से ऊपर उठने में मदद करता है । यौगिक अभ्यास को अनभु वी शिक्षक के मार्गदर्शन में ही सीखना चाहिए । अधिकांश आसन, प्राणायाम और क्रियाएँ खाली पेट या बहुत कम भरे पेट में की जानी चाहिए । इन अभ्यासों को शरू ु करने से पर्वू मत्राू शय और आँतें खाली कर देने चाहिए । योगाभ्यास के लिए सबु ह का समय सबसे अच्छा होता है परंतु इसे दोपहर के खाने के तीन घटं े बाद शाम को खाली पेट के साथ भी किया जा सकता है । योग को जल्दबाज़ी में या फिर जब आप थके हों, नहीं करना चाहिए । यौगिक अभ्यास के लिए एक अच्छा हवादार, साफ़, विघ्नरहित स्थान चनु ें । योगाभ्‍यास कठोर सतह पर नहीं करना चाहिए । इस काम के लिए दरी, चटाई या कंबल का उपयोग किया जा सकता है । अभ्यास से पर्वू नहा लेना ठीक रहता है । व्‍यक्‍त‍ि, मौसम की आवश्यकतानसु ार ठंडा या गरम पानी, काम में ले सकता है । परिचय 5 योगाभ्‍यास करते समय कपड़े ढीले और आरामदेह होने चाहिए । श्‍वसन यथासभं व सामान्य होना चाहिए । इसमें तब तक परिवर्तन नहीं किया जाता जब तक कि ऐसा करने के लिए विशेष रूप से न कहा जाए । योगाभ्‍यास की सीमाएँ होती हैं । यदि आप किसी समस्या या परु ाने रोग से पी‍ड़ि‍त हैं तो इस बारे में योगाभ्‍यास शरू ु करने से पर्वू अपने शिक्षक को अवश्य सचि ू त कर दें । योगाभ्‍यास को बढ़त के सिद्धांत के आधार पर किया जाना चाहिए । प्रारंभिक अवस्था में, आसान क्रियाओ ं को लिया जाना चाहिए । बाद में अधिक कठिन को किया जा सकता है । अत: सरल यौगिक क्रियाओ ं के साथ शरू ु करें और फिर धीर-धीरे उन्नत क्रियाओ ं की ओर बढ़ें । एक ही सत्र में यौगिक अभ्यास को अन्य शारीरिक गतिविधियों के साथ जोड़ कर न करें । ये दो अलग प्रकार की गतिविधियाँ हैं और इन्हें अलग-अलग किया जा सकता है । यौगिक क्रियाओ ं को एक बार विद्यालय में ठीक से सीखने के बाद घर पर स्वयं किया जा सकता है । योग का एक व्यापक अर्थ है । अत: आसन और प्राणायाम के अलावा व्‍यक्‍त‍ि काे जीवन में, नैतिक और नीतिपरक मल्य ू ों को व्यवहार में लाना चाहिए । सामान्य योगाभ्यास योग बहुत‑से अभ्यास; जैसे — यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, षटकर्म, मद्ु रा, बंध, धारणा, ध्यान प्रस्तुत करता है । यहाँ हम उन अभ्यासों पर चर्चा करें गे जो सामान्यत: उपयोग में लाए जाते हैं । यम और नियम ये नियमों की प्रारंभिक नियमावली है जो हमारे व्‍यक्‍त‍िगत सामाजिक जीवन में हमारे व्यवहार से सरोकार रखती है । ये नैतिकता और मल्य ू ों से भी संबंधित हैं । 6 योग – स्‍वस्‍थ जीवन जीने का तरीका – उच्‍च प्राथमिक स्‍तर आसन आसन का अर्थ है एक विशिष्‍ट मद्ु रा में बैठना, जो आरामदेह हो और जिसे लंबे समय तक स्थिर रखा जा सके । आसन शारीरिक और मानसिक दोनों स्तरों पर स्थाियत्व और आराम देते हैं । आसनों का अभ्यास करने के लिए दिशानिर्देश आसन सामान्यत: खड़े होकर, बैठकर, पेट के बल व कमर के बल लेटने के अनक्र ु म में अभ्‍यास में लाए जाते हैं । यद्यपि अन्यत्र इसका क्रम भिन्न भी हो सकता है । आसनों को शरीर और श्‍वास की जानकारी के साथ करना चाहिए । श्‍वास और शरीर के अगं ों की गति के मध्‍य समन्‍वयन होना चाहिए । सामान्य नियम के रूप में, शरीर के किसी भाग को ऊपर उठाते समय श्‍वास अदं र भरें और नीचे लाते समय श्‍वास बाहर छोड़ें । अभ्यास करने वाले को सभी निर्देशों का पालन ईमानदारी से करना चाहिए और उन्हें परू े ध्यान के साथ अभ्यास करना चाहिए । अति ं म स्थिति चरणबद्ध तरीके से प्राप्‍त करनी चाहिए और शरीर के भीतर आतं रिक सजगता से उसे बंद आँखों के साथ बनाए रखना चाहिए । आसनों की अति ं म अवस्था को जब तक आरामदेह हो, बनाए रखना चाहिए । किसी को भी आसन की सही स्थिति अपनी सीमाओ ं के अनसु ार बनाए रखनी चाहिए और अपनी क्षमता के बाहर नहीं जाना चाहिए । आसन बनाए रखने की स्थिति में, आदर्श रूप में वहाँ किसी भी प्रकार की कंपन या असवि ु धा नहीं होनी चाहिए । आसन बनाए रखने के समय में वृद्धि करने हेतु बहुत अधिक ध्यान रखें तथा क्षमतानसु ार बढ़ाएँ । परिचय 7 नियमित अभ्यास आवश्यक है । काफी समय तक नियमित और अथक प्रयास वाले प्रशिक्षण के बाद ही आपका शरीर आपका आदेश सनु ना प्रारंभ करता है । यदि किन्हीं कारणों से नियमितता में बाधा आती है, तो जितना जल्द हो सके अभ्यास पनु : शरू ु कर देना चाहिए । प्रारंभिक अवस्‍था में योगाभ्‍यास अनक ु ू लन और पनु : अनक ु ू लन प्रक्रमों को शामिल करते हैं । अत: आरंभ में व्‍यक्‍त‍ि अभ्यास के बाद कुछ थकान अनभु व कर सकता है, परंतु कुछ दिनों के अभ्यास के बाद शरीर और मस्तिष्क समायोजित हो जाते हैं और व्‍यक्‍त‍ि स्‍वस्‍थता और सख ु का अनभु व करने लगता है । प्राणायाम प्राणायाम में श्‍वसन की तकनीक है, जो श्‍वास या श्‍वसन प्रक्रिया के नियंत्रण से संबंधित है । प्राणायाम प्रचलित रूप में यौगिक श्‍वसन कहलाता है जिसमें हमारे श्‍वसन प्रतिरूप का ऐच्छिक नियंत्रण है । प्राणायाम श्‍वसन तंत्र के स्‍वास्‍थ्‍य को प्रभावित करता है, जो व्‍यक्‍त‍ि द्वारा श्‍वास के माध्यम से ली गई वायु की गणवत्ताु और मात्रा पर निर्भर करता है । यह श्‍वसन की लय और परू त्ण ा पर भी निर्भर करता है । प्राणायाम द्वारा अभ्यासकर्ता के श्‍वसन, हृदयवाहिका और तंत्रिका तंत्र लाभकारी ढंग से कार्य करते हैं, जिससे उसे भावात्‍मक स्थिरता और मा‍नसिक शांति प्राप्‍त होती है । प्राणायाम के तीन पहलू होते हैं जिन्हें परू क, रे चक और कंु भक कहते हैं । परू क नियंत्रित अतं : श्‍वसन है; रे चक नियंत्रित उच्‍छ्वसन है और कंु भक श्‍वसन का नियंत्रित धारण (रोकना) है । 8 योग – स्‍वस्‍थ जीवन जीने का तरीका – उच्‍च प्राथमिक स्‍तर प्राणायाम करने हेतु दिशानिर्देश प्राणायाम यथासभं व आसन करने के बाद करना चाहिए । शीतली और शीतकारी के सिवाय प्राणायाम में श्‍वसन नाक द्वारा ही करना चाहिए । प्राणायाम करते समय चेहरे की मांसपेशियों, आँखों, कानों, गर्दन, कंधों या शरीर के किसी अन्य भाग में तनाव नहीं होना चाहिए । प्राणायाम करते समय आँखें बंद रहनी चाहिए । प्रारंभ में, व्‍यक्‍त‍ि को श्‍वसन के सामान्‍य प्रवाह के बारे में सजग रहना चाहिए । श्‍वसन और उच्छ्वसन को धीरे -धीरे लंबा करें । श्‍वसन पर ध्यान देते समय अपने पेट की स्थिति को देखें जो श्‍वास अदं र भरते समय फूलता है और श्‍वास छोड़ते समय अदं र जाता है । प्रारंभिक अवस्था में व्‍यक्‍त‍ि को 1:2 का श्‍वसन अनपु ात बनाए रखना धीरे -धीरे सीखना चाहिए, जिसका अर्थ है उच्छवसन का समय अतं : श्‍वसन के समय से दोगनु ा होना चाहिए । परंतु प्राणायाम करते समय ऊपर वर्णित आदर्श अनपु ात पाने की जल्दी न करें । प्रत्याहार योग के अभ्‍यास में मस्तिष्‍क पर नियंत्रण करने हेतु प्रत्‍याहार का अभिप्राय इद्रि ं यों के संयम से है । प्रत्‍याहार में ध्‍यान को बाह््य वातावरण के विषयों से हटा कर अदं र की ओर लाया जाता है । आत्‍मनिरीक्षण, अच्छी पस्त ु कों का अध्ययन, कुछ ऐसे अभ्यास हैं जो प्रत्याहार में मदद कर सकते हैं । बंध और मुद्रा बंध और मद्ु रा ऐसे अभ्या‍स हैं जिनमें शरीर की कुछ अर्ध-स्वैच्छिक और अनैच्छिक मांसपेशियों का नियंत्रण शामिल होता है । ये अभ्यास स्वै‍च्छिक नियंत्रण बढ़ाते हैं और आतं रिक अगं ों को स्‍वस्‍थ बनाते हैं । परिचय 9 षट्कर्म/क्रिया (शुद्धिकरण अभ्यास) षट्कर्म का अर्थ है छ: प्रकार के कर्म या क्रियाएँ । यहाँ क्रिया का अर्थ कुछ विशिष्‍ट कार्यों से है। षट्कर्म में शद्धि ु करण प्रक्रिया है जो शरीर के विशेष अगं ों से विजातीय तत्‍वों को बाहर निकाल कर शद्धु करती है । शद्धि ु करण शरीर और मस्तिष्क को स्‍वस्‍थ रखने में मदद करता है । हठ योग की पठन सामग्री में छ: शद्धि ु करण प्रक्रियाएँ वर्णित हैं । ये हैं — नेति, धौति, बस्ति, त्राटक, नौली और कपालभा‍ती । जल, वायु या शरीर के कुछ अगं ों के जोड़तोड़ से इनका लाभकारी उपयोग आतं रिक अगं ों या तंत्रों को साफ़ करने हेतु किया जाता है । क्रियाओ ं के अभ्यास के लिए दिशानिर्देश क्रियाएँ खाली पेट करनी चाहिए । अत: बेहतर है कि इन्हें प्रात:काल किया जाए । क्रियाएँ किसी विशेषज्ञ की देखरे ख में की जानी चाहिए । प्रत्येक क्रिया करने का एक विशिष्‍ट तरीका होता है उसे सनिश्‍च‍ि ु त रूप से ठीक उसी प्रकार करना चाहिए । विभिन्न वस्तुएँ; जैसे — जल, नमक, वाय,ु प्रत्येक क्रिया में उपयोग में लिए जाते हैं । ध्यान ध्यान एक अभ्यास है जो शरीर तथा मन को एकाग्रचित करने में सहायता करता है । ध्या‍न में, एक वस्‍तु; जैसे — नाक का अग्रभाग, भमू ध्‍य पर अधिक समय तक ध्‍यान कें द्रित किया जाता है। यह व्‍यक्‍त‍ि में स्‍वस्‍थ होने की भावना विकसित करती है तथा स्‍मरणशक्‍त‍ि एवं निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाती है । ध्यान के अभ्यास के लिए दिशानिर्देश आसनों और प्राणायाम का अभ्यास ध्यान में काफ़ी लंबे समय तक एक ही अवस्था में बैठने की क्षमता विकसित करने में मदद करते हैं । ध्यान का अभ्यास करने के लिए शांत स्थान का चयन करें । 10 योग – स्‍वस्‍थ जीवन जीने का तरीका – उच्‍च प्राथमिक स्‍तर आतं रिक सजगता में प्रवेश करने के लिए आँखें सरलता से बंद कर लें । ध्‍यान के अभ्‍यास के दौरान बहुत‑से विचार, स्‍मृति एवं संवेग उत्‍पन्‍न होते हैं जो दिमाग में आते हैं। उनके प्रति कोई प्रतिक्रिया नहीं करें । प्रारंभ में सामान्यत: श्‍वसन पर ध्यान कें द्रित करना कठिन होता है । यदि मन इधर- उधर भटकता है तो अपने को दोषी न समझें । धीरे -धीरे दृढ़ अभ्‍यास से आपका ध्यान आपके श्‍वास पर कें द्रित हो जाएगा । जब आप इस प्रक्रिया में कुछ समय सल ं ग्न रहते हैं, तो आपको परू ्ण शरीर की एक अमर्तू और अविशिष्‍ट अनभु ति ू होती है । अब सपं रू ्ण शरीर की सजगता के साथ ध्यान जारी रखें । किसी कठिनाई में श्‍वसन की सजगता में लौट जाएँ । इकाई 2 स्‍वास्‍थ्‍य के लिए योग सक्ं षिप्‍त विवरण योग के वल हमारे देश में ही नहीं, बल्कि विश्‍व के बहुत‑से अन्य भागों में भी लोकप्रिय हो गया है । योगाभ्‍यासों से संपरू ्ण स्‍वास्‍थ्‍य का विकास होता है । जैसा परिचय में कहा गया है, योग का विशेष रूप से अर्थ शरीर और मन का जड़ु ाव है । यह स्‍वस्‍थ शरीर और स्वस्थ मन के उन्नयन और रख-रखाव में योगदान करता है । हम योगाभ्‍यास द्वारा स्‍फ़ूर्ति, सतं ल ु न, समन्वयन, सामथ्‍यर् जैसी क्षमताएँ विकसित कर सकते हैं । ये शारीरिक, मानसिक और भावात्मक स्‍वास्‍थ्‍य को भी सधु ारते हैं । यह शरीर के सभी तंत्रों के बेहतर ढंग से कार्य करने में भी सहायक होता है । इस प्रकार योग व्‍यक्‍त‍ि के संपरू ्ण कल्याण के लिए सहायक है । आपने भिन्न आय‑ु वर्ग के लोगों को विविध योगाभ्‍यास जैसे आसन और प्राणायाम करते देखा है । योगाभ्‍यास बच्चों सहित सभी आयु वर्गों के लोगों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए लाभकारी होते हैं । इस सदर्भ के रूप में आपको निम्नलिखित महत्वपरू ्ण बातों की जानकारी होना आवश्यक है । याद रखने वाली बातें जैसा कि परिचय में बताया गया है, अभ्यासों में नियमितता होनी आवश्यक है । हमें अभ्यास ईमानदारी और निष्‍ठा के साथ करने चाहिए । योग मखु ्यत: रोधात्मक उपाय के रूप में उपयोग में लाया जाता है । इसे शारीरिक और मानसिक रोगों के बेहतर इलाज के लिए भी काम में लाया जाता है । हमें चमत्कारों की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए और धैर्य रखना चाहिए । 12 योग – स्‍वस्‍थ जीवन जीने का तरीका – उच्‍च प्राथमिक स्‍तर यदि किसी कारणवश अभ्यास बंद हो जाए, तो हम प्रारंभिक अभ्यासों से पनु : शरू ु कर सकते हैं और धीरे -धीरे आगे बढ़ सकते हैं । योगाभ्‍यास की समयावधि आप पर निर्भर है । योगाभ्‍यास के साथ पोषक तथा स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक आहार लेना महत्वपरू ्ण है । हमें कम से कम आठ घटं े की गहरी नींद सोना चाहिए । शरीर में अधिक लचीलापन लाने के लिए सरू ्य नमस्का‍र का अभ्यास िनरंतर करना चाहिए । सरू ्य नमस्कार सरू ्य नमस्कार मखु ्य रूप से (विशिष्‍ट शारीरिक आकृ तियों) के माध्यम से सर्यू का अभिवादन करना है । सरू ्य नमस्कार 12 शारीरिक स्थितियों की ृंखला है । ये स्थितियाँ विभिन्न पेशियों और मेरुदडं को खींचती हैं और परू े शरीर को लचीला बनाती हैं । आइए, नीचे दिए गए चरणों का अनुसरण करते हुए सरू ्य नमस्कार करें — 1. पैरों को एक‑दसू रे के साथ मिलाते हुए सीधे खड़े हो जाएँ । हथेलियों को छाती के सामने नमस्कार स्थिति में एक‑दसू रे से मिलाएँ । इस स्थिति में कुछ सेकंड रहें । 2. श्‍वास भरते हुए दोनों भजु ाएँ सिर के ऊपर ले जाएँ और धड़ को थोड़ा पीछे की ओर मोड़ें । इस स्थिति में कुछ सेकंड रहें । स्‍वास्‍थ्‍य के लिए योग 13 3. श्‍वास छोड़ते हुए, भजु ाओ ं को कानांे की बगल में रखते हुए कमर से आगे की ओर झक ु ें । दोनों हथेलियाँ पाँवों के दोनों तरफ़ फ़र्श को छुएँ और माथा घटु नों के साथ लगा होना चाहिए । इस स्थिति में कुछ सेकंड रहें । 4. श्‍वास भरते हुए दाहिने पैर को जहाँ तक हो सके पीछे की ओर ले जाएँ । बाएँ घटु ने को मोड़ें और बाएँ पैर को ज़मीन पर हथेलियों के बीच रखें । इस स्थिति में कुछ सेकंड रहें । 5. श्‍वास छोड़ते हुए दाएँ पैर को वापस बाएँ पैर के साथ मिलाने के लिए ले आएँ । साथ-साथ, नितंब को ऊपर उठाएँ और सिर को नीचे भजु ाओ ं के मध्य ले जाएँ ताकि शरीर फ़र्श के साथ एक त्रिकोण बना ले । भमि ू पर एड़ि‍यों को समतल रखने का प्रयास करें । इस स्थिति में कुछ सेकंड रहें । 14 योग – स्‍वस्‍थ जीवन जीने का तरीका – उच्‍च प्राथमिक स्‍तर 6. सामान्य श्‍वसन के साथ धीरे -धीरे घटु ने, छाती और ठोड़ी फ़र्श को छूनी चाहिए । पैर के अँगठू े , घटु ने, छाती, हाथ, ठोड़ी फ़र्श को छूनी चाहिए और नितंब ऊपर की ओर उठे रहते हैं । इस स्थिति में कुछ सेकंड रहें । 7. छाती को आगे ले जाते हुए नितंबों को नीचे करें , गरदन को ऊपर की ओर उठाएँ जब तक कि मेरुदडं परू ्ण रूप से गोलाई प्राप्‍त न कर ले और सिर पीछे करके ऊपर देखने लगें । टाँगें और पेट का निचला भाग फ़र्श पर रहते हैं । धड़ को ऊपर उठाते समय श्‍वास अदं र भरें । इस स्थिति में कुछ सेकंड रहें । 8. श्‍वास छोड़ते हुए, हथेलि‍यों को समतल रखते हुए धड़ को नीचे ले जाएँ । फ़र्श पर दोनों पैर समतल रखें । नितंब ऊपर उठाएँ और सिर को भजु ाओ ं के मध्य नीचे ले जाएँ । इस स्थिति में कुछ सेकंड रहें । स्‍वास्‍थ्‍य के लिए योग 15 9. श्‍वास अदं र भरते हुए, बाएँ पैर को जहाँ तक हो सके पीछे की ओर ले जाएँ । दाहिने घटु ने को मोड़ें और दाहिने पैर को ज़मीन पर हथेलियों के बीच रखें । इस स्थिति में कुछ सेकंड रहें । 10. श्‍वास छोड़ते हुए पीछे वाले बाएँ पैर काे आगे लाएँ । दोनों पैरों को मिला लें, घटु ने सीधे करें और आगे झक ु जाएँ । सिर को घटु नों के पास ले आएँ । हथेलियाँ पैरों के दोनों ओर फ़र्श पर होनी चाहिए । इस स्थिति में कुछ सेकंड रहें । 11. श्‍वास भरते हुए, दोनों हाथों और धड़ को धीरे से ऊपर उठाएँ । तनी हुई भजु ाओ ं के साथ धड़ को पीछे की ओर मोड़ें । इस स्थिति में कुछ सेकंड रहें । 16 योग – स्‍वस्‍थ जीवन जीने का तरीका – उच्‍च प्राथमिक स्‍तर 12. श्‍वास छोड़ते हुए सीधी अवस्था में आ जाएँ । हाथों को छाती के सामने लाएँ और हथेलियों को नमस्कार स्थिति में परस्पर जोड़ लें । इस अवस्था में श्‍वसन को सामान्य रखें । इस स्थिति में कुछ सेकंड रहें । निम्नलिखित बिंदुओ ं को याद रखें — क्‍या करें क्‍या न करें शरीर की गतियों के साथ श्‍वसन अपनी क्षमता से परे अभ्यास न को समक्रमिक करें । करें । ऊपर की ओर झक ु ते समय श्‍वास भीतर लें और आगे की ओर झक ु ते समय श्‍वास छोड़ें । लाभ यह शक्‍त‍ि, सामर्थ्य और लचक को बढ़ाने में मदद करता है । यह एकाग्रता में सधु ार करता है । यह वसा की अधिक मात्रा को कम करता है । यह शरीर को ऊर्जा देता है । यह बढ़ते बच्चों की लंबाई बढ़ाने में मदद करता है और उनके शरीर को चसु ्त बनाता है । यह शरीर को वार्म-अप करता है । यह परू े शरीर में रक्‍त संचार को बेहतर बनाता है । यह परू े शरीर को लचीला बनाता है । सीमाएँ जिन्हें रीढ़ की हड्डी में चोट लगी हो, उन्हें सरू ्य नमस्कार का अभ्यास नहीं करना चाहिए । स्‍वास्‍थ्‍य के लिए योग 17 आइए, स्‍वास्‍थ्‍य के लिए निम्नलिखित आसन करें — ताड़ासन ससं ्कृ त शब्द ताड़ का अभिप्राय ताड़ के पेड़ से है । यह पेड़ अपनी लंबाई और सीधी ऊर्ध्व आकृ ति के लिए जाना जाता है। यह ताड़ासन इसलिए कहलाता है, क्योंकि इसमें शरीर ताड़ के पेड़ जैसा दिखता है । अत: इसके अनरू ु प आसन का नाम ताड़ासन दिया गया है । आइए, नीचे दिए गए चरणों का अनुसरण करते हुए ताड़ासन करें — प्रारंभिक स्थिति — सीधे खड़े हों, पैर जड़ु े हुए, हाथ जाँघों की बगल में । पीठ सीधी रखें और सामने लगातार देखें । 1. भजु ाओ ं को सिर के ऊपर एक दसू रे के समांतर हथेलियाँ एक दसू रे की ओर रखते हुए तानें । 2. एड़‍ियों ‍कोे धीरे -धीरे उठाएँ और पजं ों पर खड़े हो जाएँ । एड़‍ियों को जितना ऊपर उठा सकें , उठाएँ । शरीर को जितना ऊपर की ओर खींच सकते हैं, खींचें । इस अति ं म स्थिति में कुछ सेकंड रहें । परू ्व स्थिति में आना — 3. पर्वाू वस्था में लौटने के लिए पहले एड़‍ियों को ज़मीन पर लाएँ । 4. धीरे से हाथों को जाँघों की बगल में नीचे लाएँ और विश्राम करें । 18 योग – स्‍वस्‍थ जीवन जीने का तरीका – उच्‍च प्राथमिक स्‍तर निम्नलिखित बिंदुओ ं को याद रखें — क्‍या करें क्‍या न करें भीतरी भजु ा से अपनी ओर के कानों को आगे या पीछे न झक ु ें । क्रमश: स्पर्श करें और हाथ एक‑दसू रे के समांतर होने चाहिए । भजु ाओ ं और अँगलु ियों को परू ा खीचें । सिर, गरदन और शरीर को एक लाइन में रखें । लाभ यह परू े शरीर की पेशियों को ऊर्ध्व ि‍खचं ाव देता है । यह जाँघों, घटु नों और टखनों को मज़बतू करता है । यह बढ़ते बच्चोंे की लंबाई बढ़ाने में मदद करता है । यह आलस्य और ससु ्ती दरू करने में मदद करता है । सीमाएँ जिनको चक्कर आने की शिकायत हो उन्हें यह अभ्यास नहीं करना चाहिए । यदि घटु ने के जोड़ों और टखने के जोड़ों में दर्द और कड़ापन हो तो यह आसन न करें । वक् ृ षासन यह सतं ल ु न करने का एक आसन है । इसकी स्थिति वृक्ष के समान होती है । वृक्ष की तरह कल्‍पना करें तो पैर जड़ समान लगता है, टाँग तना है, भजु ाएँ शाखाओ ं और पत्तियों की तरह हैं, सिर वृक्ष के सिरे जैसा है, ये सब स्थिति को वृक्ष का आकार देते हैं । इस आसन के अभ्यास से शरीर की िस्थति वृक्ष के सामान हो जाती है । इसलिए इसे वृक्षासन कहते हैं । स्‍वास्‍थ्‍य के लिए योग 19 आइए, नीचे दिए गए चरणों का अनुसरण करते हुए वक् ृ षासन करें — प्रारंभिक स्थिति — पैर मिलाकर खड़े हों । भजु ाएँ दोनों ओर बगल में हों और सामने देखें । 1. दाहिनी टाँग को घटु ने से मोड़ें । दाहिने पैर का तलवा जितना ऊँचा सभं व हो सके बाँयीं जाँघ के अदं र की ओर रखें (एड़ी ऊपर की ओर एवं पजं ा नीचे की ओर) । 2. बाएँ पैर पर सतं ल ु न रखते हुए, दोनों भजु ाओ ं को सिर के ऊपर उठाएँ और दोनों हथेलियों को एक‑दसू रे के साथ मिलाते हुए या हाथ जोड़ते हुए दोनों भजु ाओ ं को छाती केे सामने ला सकते हैं (नमस्कार स्थिति) । इस स्थिति में 10-15 सेकंड रहें । परू ्व स्थिति में आना — 3. शरीर के बगल में दोनों भजु ाओ ं को नीचे ले आएँ । 4. दाहिना पैर फ़र्श पर नीचे ले आएँ और सीधे खड़े हो जाएँ । 5. इस सारी प्रक्रिया को बाएँ पैर के साथ दोहराएँ । निम्‍नलिखित बिंदुओ ं को याद रखें — क्‍या करें क्‍या न करें सामने किसी निश्‍च‍ित बिंदु पर ध्‍यान अति ं म स्थिति में शरीर को न मोड़ें । कें द्रित करना चाहिए । एक टाँग पर शरीर का संतलु न रखने का प्रयास करें । लाभ इस स्थिति का नियमित अभ्यास, विद्यार्थियों में एकाग्रता विकसित करने में सहायक होगा । वृक्षासन का नियमित अभ्यास शरीर का संतल ु न और समन्वयन सधु ारता है । यह रक्‍त परिसंचरण भी सधु ारता है । यह टाँगों की पेशियों काे चसु ्त बनाता है । 20 योग – स्‍वस्‍थ जीवन जीने का तरीका – उच्‍च प्राथमिक स्‍तर सीमाएँ जिस व्‍य‍क्‍त‍ि को चक्कर आते हों उसे इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए । उत्कटासन संस्कृ त के शब्द उत् का अर्थ ‘उठा हुआ’ और कट का अर्थ ‘कूल्हा’ होता है । यह स्थिति उत्कटासन इसलिए कहलाती है क्योंकि इस आसन में कूल्हे ऊपर उठे हुए होते हैं । यह आसन संतल ु न की एक स्थिति भी है । आइए, नीचे दिए गए चरणों का अनुसरण करते हुए उत्कटासन करें — प्रारंभिक स्थिति — दोनों पाँव फ़र्श पर जमा कर सीधे खड़े हो जाएँ । 1. पैरों के मध्य एक सवि ु धाजनक दरू ी, लगभग 8-12 इचं रखें । 2. दोनाें भजु ाएँ सामने की ओर कंधों की लंबाई तक ऊपर उठाएँ और हथेलियाँ नीचे की ओर होनी चाहिए । 3. एड़ि‍यों को ऊपर उठाते हुए पंजों पर खड़े हों और धीरे से पंजों पर बैठ जाएँ । 4. हाथों को सामने घटु नों पर रखें । इस स्थिति को 5-10 सेकंड तक बनाए रखें । परू ्व स्थिति में आना — 5. शरीर को सतं लु ित रखते हुए, हाथों को फ़र्श पर रखें । 6. संतल ु न बनाते हुए, धीरे से पंजों पर सीधे खड़े हो जाएँ और दोनों भजु ाओ ं को सीधा कंधों तक ऊपर उठाएँ । स्‍वास्‍थ्‍य के लिए योग 21 7. एड़ि‍यों को ज़मीन पर टिकाएँ । हाथों को जाँघों की बगल में और पैरों काे एक‑दसू रे से जोड़ दें । 8. फ़र्श पर दृढ़ता से पैर जमाते हुए सीधे खड़े रहें । निम्नलिखित बिंदुओ ं को याद रखें — क्‍या करें क्‍या न करें अति ं म स्थिति बनाते समय और उसे एड़ि‍यों पर शरीर का भार न पड़ने दें । छोड़ते समय संतल ु न बनाए रखे । आगे की ओर न झक ु ें । अति ं म स्थिति में शरीर का ऊपरी भाग सीधा रहना चाहिए । अ‍ति ं म स्थिति में भार घटु नों के पीछे वाली पेशियों पर पड़ना चाहिए । लाभ यह आसन घटु ने के जोड़ों, टखने के जोड़ों और नितंब के जोड़ों की गतिशीलता को बढ़ाता है । यह टाँगों (घटु ने के पीछे और पिंडली), भजु ाओ,ं द्विशिर पेशी (बाइसेप्स), कंधों, श्रोणि (पेल्विस) और पीठ के निचले हिस्से को मज़बतू करता है । यह कमर और कूल्हे के जोड़ से वसा को कम करता है और शरीर की आकृ ति को अच्छा बनाता है । यह आत्‍मविश्‍वास को बढ़ाने में सहायक होता है । यह पाचन तंत्र की क्रिया में सधु ार करता है । सीमाएँ जिनको चक्‍कर आने की शिकायत हो वे लोग यह आसन न करें । यदि घटु नों के जोड़ों और टखने के जोड़ों में अधिक दर्द और कड़ापन हो तो यह आसन न करें । 22 योग – स्‍वस्‍थ जीवन जीने का तरीका – उच्‍च प्राथमिक स्‍तर वज्रासन यह एक ध्यान लगाने वाली स्थिति है । यह एकमात्र ऐसा आसन है जिसका अभ्यास भोजन लेने के तरु ं त बाद किया जा सकता है । आइए, नीचे दिए गए चरणों का अनुसरण करते हुए वज्रासन करें — प्रारंभिक स्थि‍ि‍त — टाँगे सामने सीधे फै लाकर बैठ जाएँ, हाथ शरीर के बगल में फ़र्श पर रखें । 1. घटु ने पर से बायीं टाँग को मोड़ें और पैर को बाएँ नितंब के नीचे रखें । 2. इसी प्रकार दाहिनी टाँग मोड़ें और पैर को दाहिने नितंब के नीचे रखें । 3. दोनों एड़ि‍यों को इस प्रकार रखें कि पजं े एक दसू रे को ढक लें । 4. एड़‍ियों के बीच के स्थान पर नितंब को स्थित कर दें । 5. हाथों को सामने घटु नों पर रखें । 6. मेरुदडं को सीधा रखें, सामने दृ?

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