ट्रेड यूनियन: सिद्धांत, भारत में आंदोलन का विकास PDF

Summary

यह दस्तावेज़ ट्रेड यूनियन के विभिन्न सिद्धांतों, जैसे वेब का औद्योगिक लोकतंत्र सिद्धांत और मार्क्सवादी सिद्धांत, को शामिल करता है। इसमें भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन के विकास के चरणों और इसकी उत्पत्ति का भी पता लगाया गया है, जो 1918 से पहले से लेकर स्वतंत्रता के बाद तक फैला है।

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Here is the converted text from the images to a structured markdown format: # ट्रेड यूनियन के सिद्धांत ## ट्रेड यूनियन के सिद्धांत 1. वेब का औद्योगिक लोकतंत्र सिद्धांत (गैर-क्रांतिकारी सिद्धांत) - सिडनी और बीट्राइस वेब * पुस्तकें: "द हिस्ट्री ऑफ ट्रेड यूनियनिज्म" (1894) और "इंडस्ट्रियल डे...

Here is the converted text from the images to a structured markdown format: # ट्रेड यूनियन के सिद्धांत ## ट्रेड यूनियन के सिद्धांत 1. वेब का औद्योगिक लोकतंत्र सिद्धांत (गैर-क्रांतिकारी सिद्धांत) - सिडनी और बीट्राइस वेब * पुस्तकें: "द हिस्ट्री ऑफ ट्रेड यूनियनिज्म" (1894) और "इंडस्ट्रियल डेमोक्रेसी" (1897) * मुख्य बिंदुः * ट्रेड यूनियन पूंजीवाद के साथ उभरते हैं। * वे केवल वेतन और कार्य के घंटों को नियंत्रित करने के लिए नहीं, बल्कि काम की शर्तों को विनियमित करने का प्रयास करते हैं। * आपसी बीमा, सामूहिक सौदेबाजी, और कानूनी अधिनियमन का उपयोग करते हैं। * राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन का लक्ष्य रखते हैं। * आलोचना: श्रमिक संगठनों के उद्भव और विकास पर पर्याप्त ध्यान नहीं देता। 2. मार्क्सवादी सिद्धांत (क्रांतिकारी सिद्धांत) - कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स * पुस्तकें: "द पावर्टी ऑफ फिलॉसफी" (1847), "द कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो’ (1848) * मुख्य बिंदु: * ट्रेड यूनियनों का उदय वर्ग संघर्ष से होता है, जो बुर्जुआ और सर्वहारा के बीच होता है। * पूंजीवाद को उखाड़ फेंकने का लक्ष्य। * हड़ताल और राजनीतिक कार्यवाही का उपयोग करते हैं। * आलोचना: श्रम और पूंजी के बीच के गैर-संघर्ष संबंधों को हमेशा ध्यान में नहीं रखता। 3. पर्लमैन का नौकरी चेतना सिद्धांत (दुर्लभता चेतना सिद्धांत) * मुख्य बिंदु: * ट्रेड यूनियनिज्म नौकरी की कमी की जागरूकता से प्रेरित है। * पूंजीवाद के प्रतिरोध, बौद्धिक प्रभुत्व, और ट्रेड यूनियन मानसिकता की परिपक्वता से प्रभावित। * आलोचना: बौद्धिकों के प्रभाव को कम करके आंकता है और ट्रेड यूनियन के प्रेरणाओं को सरल बनाता है। 4. हॉक्सी का सामाजिक-मनोवैज्ञानिक सिद्धांत * पुस्तकें: "ट्रेड यूनियनिज्म इन द यूएस" (1920), "साइंटिफिक मैनेजमेंट एंड लेबर" (1915) * मुख्य बिंदुः * ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं के सामाजिक-मनोवैज्ञानिक वातावरण से उत्पन्न होते हैं। * कार्यात्मक वर्गीकरण: व्यवसायिक, मित्रवत/उत्थानकारी, क्रांतिकारी, शिकार ट्रेड यूनियन। * आलोचना: अत्यधिक बहुलवादी दृष्टिकोण ट्रेड यूनियनिज्म के विशिष्ट कारणों को नजरअंदाज कर सकता है। 5. टैनेनबाम का तकनीकी सिद्धांत (मनुष्य बनाम मशीन/विद्रोह सिद्धांत) * पुस्तक: "ए फिलॉसफी ऑफ लेबर" * मुख्य बिंदुः * ट्रेड यूनियन का उदय मशीनीकरण और औद्योगिक अणुकरण से होता है। 6. महात्मा गांधी का सर्वोदय दृष्टिकोण * पुस्तकें: "यंग इंडिया" और "हरिजन", आर.जे. सोमण की "शांतिपूर्ण औद्योगिक संबंध: उनका विज्ञान और तकनीक" (1957), महादेव देसाई की "द राइटिंयस स्ट्रगल" (1951) * मुख्य बिंदुः * सत्य और अहिंसा पर आधारित। * श्रमिकों के नैतिक और बौद्धिक उत्थान पर जोर। * स्वैच्छिक सुलह, मध्यस्थता, ओर वैधानिक हड़तालों की वकालत करते हैं। * ट्रस्टीशिप सिद्धांतः धन धारक स्वामी के बिना संरक्षक के रूप में कार्य करते हैं। * सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं में हड़ताल और सहानुभूति हड़तालों के खिलाफ। * आलोचनाः आदर्शवादी दृष्टिकोण, व्यावहारिक कार्यान्वयन में चुनौतियां। 7. कॉमन का पर्यावरण सिद्धांत * पुस्तकें: "डॉक्यूमेंटरी हिस्ट्री ऑफ अमेरिकन इंडस्ट्रियल सोसाइटी" (1910) * मुख्य बिंदुः * पर्यावरणीय कारक जैसे कि बाजार का विस्तार, प्रतिस्पर्धा, और आव्रजन ट्रेड यूनियनों को प्रभावित करते हैं। * पूंजीवाद के खिलाफ एक प्रतिक्रिया ओर विरोध के रूप में ट्रेड यूनियनिज्म। * सामूहिक सौदेबाजी को वर्ग संघर्ष का एक साधन मानते हैं। * नियोक्ता ओर कर्मचारियों के बीच साझेदारी का प्रस्ताव। * आलोचना: बाहरी कारकों पर अधिक जोर देता है, श्रमिक आंदोलनों के आंतरिक गतिशीलता को नजरअंदाज कर सकता है। 8. जी.डी.एच. कोल का उद्योग नियंत्रण सिद्धांत * पुस्तक: "वर्ल्ड ऑफ लेबर" * मुख्य बिंदुः * पूंजीवाद के तहत वर्ग संघर्ष अपरिहार्य है। * राज्य के साथ साझेदारी में श्रमिकों द्वारा उद्योग के नियंत्रण की वकालत करते हैं। * आलोचना: गिल्ड समाजवाद को लागू करने में व्यावहारिक चुनौतियां। 9. सिमोंस का एकाधिकारवादी, गैर-लोकतांत्रिक ट्रेड यूनियनिज्म सिद्धांत * मुख्य बिंदुः * ट्रेड यूनियनिज्म को एकाधिकारवादी और गैर-लोकतांत्रिक के रूप में देखा गया है। * आलोचना: ट्रेड यूनियनों के सकारात्मक भूमिकाओं को नजरअंदाज करते हुए ट्रेड यूनियनों का सरलीकृत दृष्टिकोण। 10. केर और सहयोगियों का विरोध सिद्धांत * मुख्य बिंदुः * ट्रेड यूनियन औद्योगिकीकरण के खिलाफ विरोध का एक रूप हैं। * औद्योगिक प्रणाली की बीमारियों के खिलाफ संगठित विरोध के रूप में यूनियनिज्म। * आलोचना: विरोध पक्ष को सामान्यीकृत करता है, सभी ट्रेड यूनियनों पर सार्वभौमिक रूप से लागू नही हो सकता। 11. औद्योगिक न्यायशास्त्र सिद्धांत - एस. एच. स्लिचर * मुख्य बिंदुः * औद्योगिक न्यायशास्त्र के माध्यम से श्रमिकों की सुरक्षा के साधन के रूप में ट्रेड यूनियनों को देखा गया है। * आलोचनाः कानूनी सुरक्षा पर केंद्रित, व्यापक सामाजिक ओर आर्थिक कारकों को नजरअंदाज कर सकता है। 12. मिशेल का आर्थिक सुरक्षा सिद्धांत * मुख्य बिंदुः * ट्रेड यूनियन श्रमिकों के लिए आर्थिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। * आलोचनाः आर्थिक सुरक्षा से परे ट्रेड यूनियनों की व्यापक भूमिकाओं को पूरी तरह से संबोधित नहीं कर सकता। 13. हेरोल्ड जोसेफ लास्की * मुख्य बिंदुः * नियोजित अर्थव्यवस्था और सामाजिक कल्याण के लिए वकालत। * समाज के पुनर्निर्माण के दीर्घकालिक लक्ष्य पर जोर। * आलोचना: आदर्शों को व्यावहारिक रूप से हासिल करने में चुनौतियां। 1. अशोक मेहता का गैर-उपभोग सिद्धांत * पुस्तकें:‘‘अंडरडेवलप्ड देशों में ट्रेड यूनियनों की भूमिका’’ (1957), अंडरडेवलप्ड देशों में ट्रेड यूनियनों की मध्यस्थ भूमिका’’ * मुख्य बिंदुः * ट्रेड यूनियनों को विकासशील देशों में समग्र उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। * आलोचना: श्रमिकों की तात्कालिक जरूरतों को संबोधित नहीं कर सकता। 2. रॉबर्ट ओवेन का ट्रेड यूनियन सिद्धांत * पुस्तक: "ए न्यू व्यू ऑफ द सोसाइटी" * मुख्य बिंदुः * मशीन सिस्टम पर सामाजिक नियंत्रण पर जोर। * मशीनरी पर श्रमिक संवेदनशीलता ओर नियंत्रण की वकालत। * आलोचना: आदर्शवादी दृष्टिकोण, आधुनिक औद्योगिक संदर्भों में चुनौतियां। ## भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन का विकास: श्रमिक संघों के विभिन्न चरण 1. 1918 से पहले: भारत में श्रमिक आंदोलन की उत्पत्ति * यह चरण आधुनिक बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण का परिणाम था, जिसमें भारत में मजदूरों के संगठन बनने शुरू हुए। उस समय के श्रमिकों की दुर्दशा को देखते हुए, समाज सुधारकों और प्रारंभिक संगठनों ने मजदूरों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई। 2. 1918-1924: प्रारंभिक ट्रेड यूनियन चरण * इस अवधि में औपचारिक ट्रेड यूनियनें बननी शुरू हुईं। 1918 में एम.के. गांधी ने अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन की स्थापना की। धीरे-धीरे, श्रमिक अधिकारों और बेहतर कामकाजी परिस्थितियों की मांग के लिए आंदोलन तेज हुए। 3. 1925-1934: वामपंथी ट्रेड यूनियनवाद का दौर * यह समय वामपंथी विचारधारा के उदय का था, जिसमें ट्रेड यूनियनें अधिक संगठित और मुखर हुईं। भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) जैसी संगठनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 4. 1935-1938: कांग्रेस का अंतराल * इस चरण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस है श्रमिक संघों को संगठित करने और उनकी हितों की रक्षा करने के प्रयास किए। इस दौरान श्रमिकों के मुद्दों पर कांग्रेस का प्रभाव बढ़ा। 5. 1939-1946: श्रमिक सक्रियता का दौर * द्वितीय विश्व युद्ध ऑर स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान श्रमिक संघों की सक्रियता बढ़ी। हड़तालें और आंदोलन अधिक आम हो गए, जिससे ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध का एक महत्वपूर्ण साधन बने। 6. 1947-वर्तमान: स्वतंत्रता के बाद का ट्रेड यूनियनबाद * स्वतंत्रा के बाद भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन ने एक नया मोड़ लिया। श्रमिक अधिकारों के रक्षा के लिए विभिन्न कानून और अधिनियम पारित किए गए, और ट्रेड यूनियनें औपचारिक रूप से मान्यता प्रात संगठनों के रूप में उभरीं। * अधिकांश देशों में ट्रेड यूनियन के तीन मुख्य चरण: 1. पूर्ण दमन (Outright Suppression): प्रारंभिक और में ट्रेड यूनियन को दमन और प्रतिबंधों और सामना करना पड़ा। 2. सीमित सहनशीलता (Limited Tolerance): जैसे-जैसे श्रमिक आंदोलन बढ़ता गया, सरकारों ने ट्रेड यूनियन को आंशिक रूप से मान्यता दी और कुछ हद तक उन्हें सहन किया। 3. सामान्य मान्यता (General Recognition): अंततः श्रमिक संघों को व्यापक मान्यता मिली और वे श्रमिकों के अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण संस्थान बने। ## भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन का विकासः श्रमिक संघों के चरण 1. 1918 से पहले: भारत में श्रमिक आंदोलन की उत्पत्ति * प्रारंभिक प्रयासः * भारत में ट्रेड यूनियन का गठन आधुनिक बड़े पैमाने औद्योगिकीकरण और परिणाम था और यह समाज में किसी मौजूदा संस्था से नहीं उभरा * 19वीं सदी की शुरुआत में बाम्बे, मद्रास और कलकत्ता प्रसिडेंसी शहरों में कपड़ा और मिल उद्योगों की स्थापना भारत और औद्योगिक श्रमिक संघों और गठन को प्रेरणा मिली। * बाम्बे में 1851 और पहला कपास मिल और 1855 में बंगाल में पहला जूट मिल स्थापित किया गया। * भारत में श्रमिक आंदोलन का नाभिकः * 1855 में, समाज सुधारक सोराबजी शाहपुरजी बंगाली ने बाम्बे और कारखानों में श्रमिकों की दुर्दशा के खिलाफ विधायी उपायों और एक आंदोलन का नेतृत्व किया। इसे श्रमिकों का आंदोलन का नाभिक माना जाता है। * भारत में पहली श्रमिक आंदोलन, 1875: * मार्च 1862 में हावड़ा स्टेशन और 1200 और रेलवे श्रमिकों ने आठ घंटे और कार्य सप्ताह की मांग करते हुए भारत का पहला श्रमिक आंदोलन किया। * ससिपद बनर्जी ने 1870 में वर्किंग मेन्स क्लब की स्थापना की और भारत शाम जीविका पत्रिका का प्रकाशन किया। * भारत और पहला श्रमिक विरोध 1875 में बॉम्बे में हुआ * 1875 में एस. एस बंगाली इस आयोजन और प्रभारी रहे और वह मुख्य रूप से श्रमिकों, विशेष रूप से और महिला और बच्चों की स्थिति के बारे में चिंतित थे। * श्री शशिपद बनर्जी ने जूट मिलों में श्रमिकों के शिक्षा एवं कल्याण के लिए बड़ा बाजार संगठन की स्थापना की। * Factory Commission , 1875: * फैक्ट्रीज कमीशन, 1875 और पहली कमीशन टी, जिसे कारखाना और स्थिति की ठीक से जांच के लिए स्थापित किया गया था। इस कमीशन ने यह निष्कर्ष निकाला कि कुछ प्रकार के कानूनी सीमाएं आवश्यक थी, और इसके परिणामस्वरूप फैक्ट्रीज एक्ट 1881। * एम्प्रेस मिल, नागपुर हड़ताल, 1877: * श्रमिकों और बीच पहले असंतोष और से 1877 में देखा गया था जब मजदूरी में अचानक कमी के कारण एम्प्रेस मिल, नागपुर के श्रमिकों ने हड़ताल का आयोजन किया। * फैक्ट्रीज कमीशन, 1885 * 1885 और दूसरा कमीशन स्थापित किया गया और और जांच के आधार पर 18 से 91 और दूसरा फैक्ट्रीज एक्ट पारित किया गया। * 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कांग्रेस का गठन के उन हम की अध्यक्षता में हुआ। उसके नेताओं ने श्रमिक वर्ग के हितों का समर्थन किया। * रॉयल कमीशन ऑन लेबर, 1892: * इस कमीशन ने कारखानों में काम के घंटे और सीमाएं लगाने का मार्ग प्रशस्त किया है। * भारतीय श्रमिक आंदोलन की शुरुआत (1890): * प्रारंभिक बिंदु: * 1890 और भारतीय श्रमिक आंदोलन की औपचारिक शुरुआत मानी जाती है। इसी वर्ष, भारत में पहला श्रमिक संगठन बॉम्बे मिल्स हैंड्स एसोसिएशन की स्थापना की गई थी। * बॉम्बे मिल्स hands Association: * संस्थापक:एन एम लोखंडे और जिन्हें भारतीय श्रमिक आंदोलन और पिता कहा। * प्रेरणा: एन एम लोखंडे को महाराष्ट्र और महात्मा ज्योतिबा फुले से प्रेरणा मिली। उन्होंने फैक्ट्री और व्याप्त कठिन परिस्थितियों है के खिलाफ प्रदूषण आयोजित करने की पहल की। * उद्देश्य: * सरकार और जनता और छान कार्य मजदूरों की समस्याओं और आकर्षित करना| * कारखाना अधिनियम 1881 को संशोधन संशोधन की मांग करना। * प्रकाशन ॐ * एन एम लोखंडे श्रमिकों और अधिकारों के प्रति आवाज बुलंद करने और देवबंध नामक पत्रिका प्रकाशित किया। * इंडियन वार का नामक एक और पत्र भी कटता से प्रकाशित हुआ * एन एम लोखंडे: * वह एक परोपकारी समाज सुधारक थे जिन्होंने श्रमिक कानून और श्रमिक और हित और रक्षा के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया * बंबई Mills hands एसोसिएशन की स्थापना के साथ भारतीय श्रमिक आंदोलन और इस बीच बोया गया, जो आगे चलकर देश में श्रमिकों और अधिकारों की रक्षा और उन सामाजिक आर्थिक सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण आंदोलन बना 3. 1897: अमलगमेटेड सोसायटी आफ रेलवे सर्वेंटस ऑफ इंडिया एंड वर्मा * सदस्यता:ए स सोसाइटी की सदस्यता केवल एंग्लो इंडियन और यूरोपीय रेलवे कर्मचारी सीमित * स्वभाव यह सोसायटी ट्रेड यूनियन की तुलना अधिक एक मित्रता पूर्ण सोसायटी आपसी लाभ सोसाइटी के रूप में कार्य करते थे 4. 1905: प्रिंटर्स यूनियन, कलकत्ता * स्पा ताना 1905 और कोलकाता है प्रिंटर यूनियन की स्थापना की गई थी, जो अपने समय की 5. 1907: बॉम्बे पोस्टर, यूनियन, कलकत्ता, मद्रास * स्थापना 1907 और मुंबई पोस्टल यूनियन का गठन किया गया जो बाद कोलकाता और मद्रास तक विस्तारित हुआ 6. 1908: भारतीय श्रमिक वर्ग की राजनीतिक चेतना की शुरूआत * हड़तालें की श्रृंखला 1908 में श्रमिक आंदोलनों एक बहुत महत्वपूर्ण बदलाव बाल गंगाधर तिलक अच्छा वर्ष का कारावास दिन भर का हड़ताल रखी गई * स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलनो के लिए श्रमिकों का राजनीतिकरण बढ़ गया और विदेशी को बंद करो * बंगाल पार्टिसिपेशन के लिए श्रमिकों का राष्ट्रीय कांग्रेसी भी बढ़ गया 7. 1909: कामगार हितवर्धक सभा * इसको एम के पहले मुंबई मे। * से लेकर इंडस्ट्री के लिए मजदूरों और परिवार के लिए प्रोग्राम। * पत्रिका: कामगर समचार 8. 1911: सोशल सर्विस लीग * इसको बनाया एन इम्म जोसि। * टेड एजूकेशन, गरीबों को हेल्प ओर सामाजिक तत्वों का खोज। * पहले फैक्ट्री कानून। ## ट्रेड यूनियन के सिद्धांत * 1918 से पूर्व के चरण में श्रमिक आंदोलन की प्रमुख विशेषताएँ 1. सामाजिक सुधारकों और परोपकारियों द्वारा नेतृत्व: इस अवधि में श्रमिक आंदोलन में नेतृत्व मुख्यतः सामाजिक सुधारकों और परोपकारी व्यक्तियों के लिए था, यह आंदोलन स्वयं श्रमिकों द्वारा नाथी बलि, बल्कि उन केलिए चलाया गया था 2. वास्तविक ट्रेड यूनियन का आभाव इष्टमय में वात्सव मैं कोई टाइम यूनियन अस्तित्व में नहीं थी श्रमिकों और संगठन होने का भावना और विकाश अभी प्रारंभिक अवस्था में तथा और इसलिए यह आंदोलन वास्तविक ट्रेड यूनियन के रूप में नाथी देखा जा सकता है 3. श्रमिकों के लिए आंदोलन यह आंदोलन श्रमिकों के लिए जाना है की श्रमिकों सामाजिक सुधार और अन्य जनता में श्रमिकों के अधिकारों को और उनकी स्थिति सुधारने के लिए संघर्ष कर रहा हे 4. बाल श्रम और महिला श्रमिको की स्तिथि पर ध्यान: इस चरण और श्रमिक आंदोलन और मुख्य से बाली श्रम और महिला श्रमिकों और दुर्दशा के खिलाफ विरोध सीमित थाना, यह आंदोलन उन स्थितियों खिलाफ ता जिन्हें बच्चे और महिलाऐं विभिन्न उद्योमो में करते रहे थे। 1. 1918-1942: पारंपरिक ट्रेड यूनियन चरण आधुनिक ट्रेड यूनियन बाग का युग * इस चरण और भारतीय श्रमिक और अधिकारियों अधिकृत और संगठन रूप से श्रमिकों और अधिकारियों मुख्य मुद्दो आवाज उठा ने लागी * 1918: मद्रास लेबर यूनियन * स्तापना मैट्रेस लेबर यूनियन की स्थापना साल 1918 में हुई, यह मुख्य तौर योरपीय स्वामित्व वाले बगलिया * बगिंघम और कनेक्टिंग मिल्स कपड़ा श्रमिकों संगठन का संधा और लेकिन दूसरे अधिकारी अधिक शामिल थी। * सनसक वाडीय और कल्याण सोदारमन मॉडलिया। * मैड्रिड लाबर भारत की पहली मॉडर्न और रजिस्टर्ड ट्रेड यूनियन * लेबर कार्ड में रेगुलर सदस्यता और आराम। * 1919: अंतर आस्टिया सरमा संगठन की स्थापना * 1919 में आईएलओ की स्थापना में तीन पार्टी सरकारें ## ट्रेड यूनियन के सिद्धांत 1. 1918 श्रम की हालत खराब थी गरीब लोगों की * महत्त्वपूर्ण सम्मेलन * वहां था एक महत्पूर्ण सम्लेमन था जिस में सम्लेमन के लिए ट्रेड में के लिए सरकार के नुमायन के लिए एम ज से भी नामित किया गया था पर उनहो ने इस में भाग नहीं लिया * 1971 के दशक में बगावत टैक्सील सेबर और कांग्रेसन के नता को मर दिया था। * युनियन 24 सालों से चरल रहि आनि से अघटित है।। * जस्ट ए कास। * कुछ और का * पहले अध्यक्ष और अब सजीव रेड्डी * 947 से 1. हिंदु मतदुर सबर 4 में समाज वाडी के पहले ए आई टी यू सी में काम कर रहे हे उन्हों अलग रास्थि सध एंदु मज़दूरी पीनकेइट स्थापित किया भारतीय संघ के लीवन लींडिया के बाद इंडियन फांडर स मजदुर पैचायेटि क साथ मेलेन होता हे और नई संधान के मजनुन सबर 1948 से स्थापित हुआ 1. एइर स राओकार। * आरोयि ने आर इस स के * भारतीय और मौजूदा संधान से संसक र। 1918: संकट के समय में और बगावत के समय यूनियनों का लीडर कौन थे. अशोक गर्। 1965: काओयि लिदी।

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