राजनीति के उदारवादी दृष्टिकोण PDF
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यह दस्तावेज़ राजनीति के उदारवादी दृष्टिकोण पर एक अध्ययन है। इसमें 17वीं सदी से उदारवाद की उत्पत्ति और उसके विकास पर प्रकाश डाला गया है। बाजार समाज-व्यवस्था और राजनीतिक सत्ता के प्रयोग के बारे में चर्चा की गई है।
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# राजनीति के उदारवादी दृष्टिकोण ## उदारवाद का उदय - उदारवाद का आरंभ यूरोप में 17वीं सदी के आस-पास हुआ। - जब आँचा वैज्ञानिक आविष्कारो के कारण उत्पादन की औद्योगिक प्रणाली की शुरुआत हो रही थी। - धर्म के क्षेत्र में पोप की सत्ता को चुनौति दी जा रही थी। - नये देशो की खोज के कारण वाणिज्य-व्यापार ब...
# राजनीति के उदारवादी दृष्टिकोण ## उदारवाद का उदय - उदारवाद का आरंभ यूरोप में 17वीं सदी के आस-पास हुआ। - जब आँचा वैज्ञानिक आविष्कारो के कारण उत्पादन की औद्योगिक प्रणाली की शुरुआत हो रही थी। - धर्म के क्षेत्र में पोप की सत्ता को चुनौति दी जा रही थी। - नये देशो की खोज के कारण वाणिज्य-व्यापार बढ़ता जा रहा था और सामन्त्र वाडी यवस्था टूटने लगी थी। - उदारवाद का ध्येय सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में उन विचारो को बढ़ावा देना था जो पूँजीवाद की स्थापना में सहायक सिद्ध हो। - आरंभिक उदारवाद में 'व्यक्ति' को सम्पूर्ण सामाजिक जीवन का केन्द्र मान कर 'व्यक्तिवाद' को बढ़ावा दिया गया। - इसमे जॉन लॉक, एडम स्मिथ, जरमी बंथम, जॉन मिल इत्यादि का विशेष योगदान रहा है। - समकालिन उदारवाद में मिल भिन्न समूहों को सामाजिक जीवन का केन्द्र माना जाता है। - इस प्रकार अब व्यक्तिवाद की जगह बहुलवाद' को महत्व दिया जाने लगा। ## उदारवाद का मुख्य लक्ष्य - उदारवाद मुख्य रूप से बाजार समाज-व्यवस्था (Market Society System) को मनुष्यो के सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक सम्बंधो का आदर्श मानता है। - पुराने उदारवाद के अन्तर्गत बाजार की 'मुक्त प्रतिस्पर्दा ' (Free-tompetition Competition) पर बल दिया जाता था। - परन्तु समकालीन उदारवाद मुख्यतः निमंत्रित बाजार व्यवस्था, (Regulated Market System) के आदर्भ को स्वीकार करता है। - अत: वह कल्याणकारी राज्य का समर्थक बन गया है। ## राजनीति के उदारवादी दृष्टिकोण की प्रमुख मान्यताएँ 1. **राजनीति समूह मुह की की गतिविधि है** (Politics is a Group activity) - उदारवादी दृष्टिकोण समाज के बहुलवादी दृष्टिकोण का समर्थन करता है। - इसके अनुसार विभिन्न व्यक्ति विभिन्न समूहों के ससने के रूप में अपने अपने हितो की देख रेख करते हैं। - अतः समान में बहुत सारे समुह बन जाते हैं। जो कुछ न कुछ संगठित होते हैं। - ये समुह अपने प्रतिस्पर्दी समुदो के हितों के विरुद्ध अपने अपने सदस्यो के हितो को बढ़ावा देने की कोशिय करते हैं। - इन्हे हित समुह कहा जाता है। - इन परस्पर विरोधी हितो के तकराव से ही आगे चलकर राजनीति का जन्म होता है। 2. **राजनीति में आधिकारिक सत्ता का प्रयोग होता है- (Politics involves use of Authority)** - राजनीति में विभिन्न समुहो की परस्पर विरोधी मांगो का समाधान ढूँढ़ने के लिए ऐसी नीतियाँ, कानून बनाए जाते है, जो उन समूहों को मान्य हो या कम से कम वे उनका पालन करने को तैयार हो। - यह सच है कि उनके माँगे पुरी नहीं हो जाती, परन्तुः - जन साधारण को यह विश्वास होना चाहिए कि ये कानून उचित अधिकारियो के द्वारा उचित रीति से बनाये गये है। - और अमे सबके हितो का ध्यान रखा गया है। - ऐसा विश्वास होने पर लोग अपने मन से कानून का पालन करेंगे। - फिर भी इन कानूनो को पूरी तरह लागू करने के लिए सरकार के पास शक्ति का होना जरूरी है। - उदाहरण के लिए, यातायात की सुविधा के लिए नियम बनाये जाते है, संकेत लगाये जाते है। - साधारणतः लोग अपने आप नियमो और संकेतो का उलम्बन करने वाले को पकड़कर दंड दिलवाने के लिए यातायात पुलिस की व्यवस्था की जाती है। - इस तरह आधिकारिक सत्ता के प्रयोग से ही राजनीतिका कार्य सार्थक होता है। 3. **राजनीति परस्पर विरोधी हितों में सामंजस्य की साधन (Politics is an intrument of conciliating the conflicting interest)** - उदारवादी दृष्टिकोण के अनुसार आधिकारिक सत्ता का द्वारा बेल प्रयोग किसी वर्ग पर दूसरे की इच्छा को थोपने के लिए नहीं किया जाता, बाली यह ऐसी इच्छा को समन्वयित करने का साधन है. - यानि राजनीति विभिन्न समूहों की विरोधी बातो में सामंजस्य स्थापित करने का काम करती है।