प्रेरणा व सीखना (MOTIVATION & LEARNING) PDF
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Kolhan University Chaibasa
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यह दस्तावेज़ प्रेरणा की विभिन्न परिभाषाओं और प्रकारों पर केंद्रित है, और यह शिक्षा के संदर्भ में इसके महत्व पर प्रकाश डालता है। दस्तावेज़ में प्रेरणा के विभिन्न सिद्धांतों पर भी चर्चा की गई है।
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## प्रेरणा व सीखना (MOTIVATION & LEARNING) "Efficient learning depends on effective motivation." -Frandsen (p. 205) ### प्रेरणा का अर्थ व परिभाषा (MEANING & DEFINITION OF MOTIVATION) 'प्रेरणा' के शाब्दिक और मनोवैज्ञानिक अर्थों में अंतर है। 'प्रेरणा' के शाब्दिक अर्थ में हमें 'किसी कार्य को करने' क...
## प्रेरणा व सीखना (MOTIVATION & LEARNING) "Efficient learning depends on effective motivation." -Frandsen (p. 205) ### प्रेरणा का अर्थ व परिभाषा (MEANING & DEFINITION OF MOTIVATION) 'प्रेरणा' के शाब्दिक और मनोवैज्ञानिक अर्थों में अंतर है। 'प्रेरणा' के शाब्दिक अर्थ में हमें 'किसी कार्य को करने' का बोध होता है। इस अर्थ में हम किसी भी उत्तेजना (Stimulus) को प्रेरणा कह सकते हैं क्योंकि उत्तेजना के अभाव में किसी प्रकार की प्रतिक्रिया सम्भव नहीं है। हमारी हर-एक प्रतिक्रिया या व्यवहार का कारण कोई-न-कोई उत्तेजना अवश्य होती है। यह उत्तेजना आन्तरिक भी हो सकती है और बाह्य भी। अंग्रेजी के 'मोटीवेशन' (Motivation) शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा की मोटम (Motum) धातु से हुई है, जिसका अर्थ है- मूव मोटर (Move Motor) और मोशन (Motion). मनोवैज्ञानिक अर्थ में 'प्रेरणा' से हमारा अभिप्राय केवल आन्तरिक उत्तेजनाओं से होता है, जिन पर हमारा व्यवहार आधारित होता है। इन अर्थ में बाह्य उत्तेजनाओं को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है। दूसरे शब्दों में, प्रेरणा एक आन्तरिक शक्ति है, जो व्यक्ति कौ कार्य करने के लिये प्रेरित कर सकती है। यह एक अदृश्य शक्ति है, जिसको देखा नहीं जा सकता है। इस पर आधारित व्यवहार को देखकर केवल इसका अनुमान लगाया जा सकता है। क्रैच एवं क्रचफील्ड (Krech & Crutchfield, p. 29) ने लिखा है-"प्रेरणा का प्रश्न, 'क्यों' का प्रश्न है ?" ("The question of motivation is the question of 'Why' ?") हम खाना क्यों खाते हैं, प्रेम क्यों करते हैं, धन क्यों चाहते हैं, काम क्यों करते हैं ? इस प्रकार के सभी प्रश्नों का सम्बन्ध 'प्रेरणा' से है। यथा- 1. गुड-"प्रेरणा, कार्य को आरम्भ करने, जारी रखने और नियमित करने की प्रक्रिया है।" "Motivation is the process of arousing, sustaining regulating activity."-Good (p. 354) 2. ब्लेयर, जोन्स व सिम्पसन-"प्रेरणा एक प्रक्रिया है, जिसमें सीखने वाले की आन्तरिक शक्तियाँ या आवश्यकताएँ उसके वातावरण में विभिन्न लक्ष्यों की ओर निर्देशित होती हैं।" "Motivation is process in which the learner's internal energies or needs are directed towards various goal objects in his environment."-Blair, Jones & Simpson (p. 151) 3. ऐवरिल - "प्रेरणा का अर्थ है-सजीव प्रयास। यह कल्पना को क्रियाशील बनाती है, यह मानसिक शक्ति गुप्त और अज्ञात स्रोतों को जाग्रत और प्रयुक्त करती है, यह हृदय को स्पन्दित करती है, यह निश्चय, अभिलाषा और अभिप्राय को पूर्णतया मुक्त करती है, यह बालक में कार्य करने, सफल होने और विजय पाने की इच्छा को प्रोत्साहित करती है।" "Motivation means vitalized effort. It fires the imagination, it arouses and taps hidden and undreamed of sources of intellectual energy, it impassions the heart, it releases the flood-gates of determination, ambition and purpose, it inspires in the child the will to do, to achieve, to overcome."-Averill (pp. 26-27) 4. लावेल-"अभिप्रेरणा एक मनोवैज्ञानिक या आन्तरिक प्रेरणा है जो किसी आवश्यकता की उपस्थिति में उत्पन्न होती है। यह ऐसी क्रिया की ओर गतिशील होती है जो उस आवश्यकता को संतुष्ट करेगी।" "Motivation may be defined more formally as a psychological or internal process initiated for some need which leads to any activity which will satisfy that need."-Lawell 5. ब्लेयर, जोन्स एवं सिम्पसन - "प्रेरणा एक प्रक्रिया है जिसमें सीखने वाले की आन्तरिक शक्तियाँ या आवश्यकतायें उसके वातावरण में विभिन्न लक्ष्यों की ओर निर्देशित होती हैं।" "Motivation is a process in which the learner energies or needs are directed towards various good objects in his environment.”—Blair, Jones and Simpson 6. वुडवर्थ-നിष्പत्ति (Achievement) = योग्यता (Ability) + अभिप्रेरणा (Motivation) अर्थात् योग्यता + अभिप्रेरणा से निष्पत्ति प्राप्त होती है। प्रेरणा से व्यक्ति की योग्यता का विकास होता है। योग्यता तथा प्रेरणा से ही निष्पत्ति सम्भव है। 7. पी. टी. यंग- "प्रेरणा, व्यवहार को जागृत करके क्रिया के विकास का पोषण करने तथा उसकी विधियों को नियमित करने की प्रक्रिया है।" "Motivation is the process of arousing action sustaining the activities in progress and regulating the pattern of activity." इनकी परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर ये तथ्य उभरते हैं- 1. प्रेरणा मनोव्यावहारिक क्रिया है। 2. यह किसी आवश्यकता से उत्पन्न है। 3. इससे किसी विशेष क्रिया करने का संकेत मिलता है। 4. प्रेरणा द्वारा प्रसूत क्रिया लक्ष्य प्रगति तक रहती है। ### प्रेरणा के प्रकार (KINDS OF MOTIVATION) प्रेरणा दो प्रकार की होती है- (1) सकारात्मक, और (2) नकारात्मक । 1. सकारात्मक प्रेरणा (Positive Motivation) - इस प्रेरणा में बालक किसी कार्य को अपनी स्वयं की इच्छा से करता है। इस कार्य को करने से उसे सुख और सन्तोष प्राप्त होता है। शिक्षक विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन और स्थितियों का निर्माण करके बालक को सकारात्मक प्रेरणा प्रदान करता है। इस प्रेरणा को आन्तरिक प्रेरणा (Intrinsic Motivation) भी कहते हैं। 2. नकारात्मक प्रेरणा (Negative Motivation) - इस प्रेरणा में बालक किसी कार्य को अपनी स्वयं की इच्छा से न करके, किसी दूसरे की इच्छा या बाह्य प्रभाव के कारण करता है। इस कार्य को करने से उसे किसी वांछनीय या निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति होती है। शिक्षक-प्रशंसा, निन्दा, पुरस्कार, प्रतिद्वन्द्विता आदि का प्रयोग करके बालक को नकारात्मक प्रेरणा प्रदान करता है। इस प्रेरणा को बाह्य प्रेरणा (Extrinsic Motivation) भी कहते हैं। बालकों को प्रेरित करने के लिए सकारात्मक या आन्तरिक प्रेरणा का प्रयोग अधिक उत्तम समझा जाता है। इसका कारण यह है कि नकारात्मक या बाह्य प्रेरणा बालक की कार्य में अरुचि उत्पन्न कर सकती है। फलस्वरूप, यह कार्य को पूर्ण करने के लिए किसी अनुचित विधि का प्रयोग कर सकता है। यदि आन्तरिक प्रेरणा प्रदान करके सफलता नहीं मिलती है, तो बाह्य प्रेरणा का प्रयोग करने के बजाय और कोई विकल्प नहीं रह जाता है। फिर भी शिक्षक का प्रयास यही होना चाहिए कि वह आन्तरिक प्रेरणा का प्रयोग करके बालक को कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करे। इसका कारण बताते हुए प्रेसी, राबिन्सन व हॉरक्स ने लिखा है- "अधिगम-विधि के रूप में बाह्य प्रेरणा आन्तरिक प्रेरणा से निम्नतर है।" "Extrinsic Motivation is inferior to intrinsic motivation as a learning device."-Pressey, Robinson & Horrocks (p. 212) ### प्रेरणा के स्रोत (SOURCES OF MOTIVATION) प्रेरणा के निम्नांकित 4 स्रोत हैं- 1. आवश्यकतायें (Needs) 2. चालक (Drives) 3. उद्दीपन (Incentives) 4. प्रेरक (Motives) हम इनका संक्षिप्त परिचय दे रहे हैं, यथा- #### 1. आवश्यकताएँ (Needs) प्रत्येक प्राणी की कुछ आधारभूत आवश्यकताएँ होती हैं, जिनके अभाव में उसका अस्तित्व असम्भव है, जैसे-जल, वायु, भोजन आदि। यदि उसकी कोई आवश्यकता पूर्ण नहीं होती है, तो उसके शरीर में तनाव (Tension) और असंतुलन उत्पन्न हो जाता है, जिसके फलस्वरूप उसका क्रियाशील होना अनिवार्य हो जाता है, उदाहरणार्थ, जब प्राणी को भूख लगती है, तब उसमें तनाव उत्पन्न हो जाता है, जिसके फलस्वरूप वह भोजन की खोज करने के लिए क्रियाशील हो जाता है। जब उसे भोजन मिल जाता है, तब उसकी क्रियाशीलता और उसके साथ ही उसके शारीरिक तनाव का अन्त हो जाता है। अतः हम बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वील्ड (Boring, Langfeld & Weld p. 114) के शब्दों में कह सकते हैं-"आवश्यकता, शरीर की कोई जरूरत या अभाव है, जिसके कारण शारीरिक असन्तुलन या तनाव उत्पन्न हो जाता है, इस तनाव में ऐसा व्यवहार उत्पन्न करने की प्रवृत्ति होती है जिससे आवश्यकता के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाला असन्तुलन समाप्त हो जाता है।" इसी बात को वे और अधिक स्पष्ट करते हैं- आवश्यकतायें प्राणियों के भीतर का तनाव है जो कुछ उद्दीपनों (प्रोत्साहनों) या लक्ष्यों के सम्बन्ध में प्राणी के क्षेत्र को व्यवस्थित करने में प्रस्तुत करती है जो लक्ष्य प्राप्ति हेतु निर्देशित क्रिया को उत्तेजित करता है। A need is tension within an organism which tends to organise the field or organism with respect to certain incentives of goals as to incite activity directed towards. #### 2. चालक (Drives) प्राणी की आवश्यकताएँ उनसे सम्बन्धित चालकों को जन्म देती हैं। उदाहरणार्थ, भोजन प्राणी की आवश्यकता है। यह आवश्यकता उसमें 'भूख-चालक' (Hunger-Drive) को जन्म देती है। इसी प्रकार पानी की आवश्यकता, 'प्यास चालक' की उत्पत्ति का कारण होती है। 'चालक', प्राणी को एक निश्चित प्रकार की क्रिया या व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है, उदाहरणार्थ, भूख चालक उसे भोजन करने के लिए प्रेरित करता हैं। अतः हम बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वील्ड (Boring, Langfeld & Weld, p. 114) के शब्दों में कह सकते हैं- "चालक, शरीर की एक आन्तरिक क्रिया या दशा है, जो एक विशेष प्रकार के व्यवहार के लिए प्रेरणा प्रदान करती है।" प्रेरकों को अन्तर्नोद अथवा चालक भी कहते हैं। प्रेरक क्रिया करने की शक्ति या ऊर्जा है। डेशियल के अनुसार-"प्रेरक आदि शक्ति का मूल स्रोत्र है जो मानव को क्रियाशील बनाता है।" "Drive is an original source of energy, that activates the human organism."-Dashiel शेफर तथा अन्य के शब्दों में-"प्रेरक एक सुदृढ़ तथा अचल उत्तेजक है जो किसी समायोजक की अनुक्रिया की माँग करता है।" "A drive is a strong persistent stimulus that demands an adjustive suspense." Shafer हिलगार्ड के अनुसार- "उपयुक्त उद्दीपन की प्राप्ति से अन्तर्नोद की तीव्रता कम हो जाती है और व्यक्ति का मानसिक तनाव दूर हो जाता है।" "In general an appropriate incentive is one that can reduce the incentive of a drive." -Hillgard #### 3. उद्दीपन (Incentives) प्रोत्साहक किसी वस्तु की आवश्यकता उत्पन्न होने पर उसको पूर्ण करने के लिए 'चालक' उत्पन्न होता है। जिस वस्तु से यह आवश्यकता पूर्ण होती है, उसे 'उद्दीपन' कहते हैं, उदाहरणार्थ, भूख एक चालक है, और 'भूख-चालक' को भोजन सन्तुष्ट करता है। अतः 'भूख-चालक' के लिए भोजन 'उद्दीपन' है. इसी प्रकार, 'काम-चालक' (Sex-Drive) का उद्दीपन है - दूसरे लिंग का व्यक्ति, क्योंकि उसी से यह चालक सन्तुष्ट होता है, अतः हम बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वील्ड (Boring, Langfeld & Weld, p. 123) के शब्दों में कह सकते हैं- "उद्दीपन की परिभाषा उस वस्तु, स्थिति या क्रिया के रूप में की जा सकती है, जो व्यवहार को उद्दीप्त, उत्साहित और निर्देशित करता है।" "An incentive may be defined as an object, a situation or an activity which excites, maintains and directs behaviour."—Boring and Others #### आवश्यकता, चालक व उद्दीपन का सम्बन्ध (RELATION OF NEED, DRIVE & INCENTIVE) हमने आवश्यकता, चालक और उद्दीपन के बारे में जो कुछ लिखा है, उससे सिद्ध हो जाता है कि इन तीनों का एक-दूसरे से सम्बन्ध है। इस सम्बन्ध को 'आवश्यकता चालक-उद्दीपक' (Need-Drive Incentive) सूत्र से व्यक्त करते हुए हिलगार्ड ने लिखा है- "आवश्यकता, चालक को जन्म देती है। चालक बढ़े हुए तनाव की दशा है, जो कार्य और प्रारम्भिक व्यवहार की ओर अग्रसर करता है। उद्दीपन बाह्य वातावरण की कोई वस्तु होती है, जो आवश्यकता की सन्तुष्टि करती है और इस प्रकार क्रिया के द्वारा चालक को कम कर देती है।" "Need gives rise to drive. Drive is a state of heightened tension leading to activity and preparatory behaviour. The incentive is something in the external environment that satisfies the need and thus reduces the drive through consummatory activity."-Hilgard (p. 231) #### 4. प्रेरक (Motives) 'प्रेरक' अति व्यापक शब्द है। इसके अन्तर्गत 'उद्दीपन' (Incentive) के अतिरिक्त चालक, तनाव, आवश्यकता-सभी आ जाते हैं। गेट्स व अन्य के अनुसार- "प्रेरकों के विभिन्न स्वरूप हैं और इनको विभिन्न नामों से पुकारा जाता है, जैसे-आवश्यकताएँ, इच्छाएँ, तनाव, स्वाभाविक स्थितियाँ, निर्धारित प्रवृत्तियाँ, अभिवृत्तियाँ, रुचियाँ, स्थायी उद्दीपक और इसी प्रकार के अन्य नाम।" "Motive take a variety of forms and are disignated by many different terms, such as needs, desires, tensions, sets, determining tendencies, attitudes, interests, persisting stimuli and so on." Gates & Others (p. 301) 'प्रेरक' क्या हैं ? इस सम्बन्ध में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं। कुछ इनको जन्मजात या अर्जित शक्तियाँ मानते हैं, कुछ इनको व्यक्ति की शारीरिक या मनोवैज्ञानिक दशाएँ मानते हैं और कुछ इनको निश्चित दिशाओं में कार्य करने की प्रवृत्तियाँ मानते हैं। पर सभी विद्वान इस बात से सहमत हैं कि 'प्रेरक' व्यक्ति को विशेष प्रकार की क्रियाओं या व्यवहार करने के लिए उत्तेजित करते हैं, यथा- 1. ब्लेयर, जोन्स व सिम्पसन-"प्रेरक हमारी आधारभूत आवश्यकताओं से उत्पन्न होने वाली वे शक्तियाँ हैं जो व्यवहार को दिशा और उद्देश्य प्रदान करती हैं।" "Arising from our needs, motives are the energies which give direction and purpose to behaviour."-Blair, Jones & Simpson (p. 151) 2. एलिस क्रो-"प्रेरकों को ऐसी आंतरिक दशाएँ या शक्तियाँ माना जा सकता है, जो व्यक्ति को निश्चित लक्ष्यों की ओर प्रेरित करती हैं।" "Motives can be regarded as those internal conditions or forces that tend to impel an individual towards certain goals."-Alice Crow (p. 99) 3. गेट्स व अन्य-"प्रेरक, प्राणी के भीतर की वे शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दशाएँ हैं, जो उसे निश्चित विधियों के अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं।" "Motives are conditions-physiological and psychology-within the organism that dispose it to act in certain ways."-Gates & Others (p. 201) प्रेरक, व्यापक शब्द है। इसके विभिन्न रूप हैं। प्रेरकों को आवश्यकता, इच्छा, तनाव, स्वाभाविक स्थितियाँ, निर्धारित प्रवृत्तियाँ, रुचि, स्थायी उद्दीपक आदि नामों से भी पुकारा जाता है। प्रेरक वास्तव में उद्देश्यों की प्राप्ति की ओर व्यक्ति को ले जाते हैं। ### प्रेरकों का वर्गीकरण (CLASSIFICATION OF MOTIVES) प्रेरकों का वर्गीकरण अनके विद्वानों के द्वारा किया गया है, जिनमें निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण हैं- 1. मैसलो (Maslow) के अनुसार- (1) जन्मजात व (2) अर्जित । 2. थामसन (Thomson) के अनुसार- (1) स्वाभाविक व (2) कृत्रिम । 3. गैरेट (Garrett) के अनुसार - (1) जैविक, (2) मनोवैज्ञानिक व (3) सामाजिक । * **1. जन्मजात प्रेरक (Innate Motives)** ये प्रेरक, व्यक्ति में जन्म से ही पाये जाते हैं। इनको जैविक या शारीरिक प्रेरक (Physiological Motives) भी कहते हैं, जैसे-भूख, प्यास, काम, निद्रा, विश्राम आदि । * **2. अर्जित प्रेरक (Acquired Motives)** ये प्रेरक अर्जित किये या सीखे जाते हैं, जैसे-रुचि, आदत, सामुदायिकता आदि। * **3. मनोवैज्ञानिक प्रेरक (Psychological Motives)** ये प्रेरक प्रबल मनोवैज्ञानिक दशाओं के कारण उत्पन्न होते हैं। गैरेट (Garrett) ने इनके अन्तर्गत संवेगों को स्थान दिया है, जैसे-क्रोध, भय, प्रेम, दुःख, आनन्द आदि। * **4. सामाजिक प्रेरक (Social Motives)** ये प्रेरक सामाजिक आदर्शों, स्थितियों, सम्बन्धों आदि के कारण उत्पन्न होते हैं और व्यक्ति के व्यवहार पर बहुत प्रभाव डालते हैं, जैसे- आत्म-सुरक्षा, आत्म-प्रदर्शन, जिज्ञासা, रचनात्मकता आदि. * **5. स्वाभाविक प्रेरक (Natural Motives)** ये प्रेरक, व्यक्ति में स्वभाव से ही पाये जाते हैं, जैसे-खेल, अनुकरण, सुझाव, प्रतिष्ठा, सुख-प्राप्ति आदि। * **6. कृत्रिम प्रेरक (Artificial Motives)** ये प्रेरक स्वाभाविक प्रेरकों के पूरक के रूप में कार्य करते हैं और व्यक्ति के कार्य या व्यवहार को नियन्त्रित और प्रोत्साहित करते हैं, जैसे- दण्ड, प्रशंसा, पुरस्कार, सहयोग, व्यक्तिगत और सामूहिक कार्य की प्रेरणा आदि. ### सीखने में प्रेरणा का स्थान (PLACE OF MOTIVATION IN LEARNING) क्लासमियर व गुडविन ने लिखा है- "सीखने के लिए प्रेरणा का महत्त्व निस्संदेह रूप से साधारणतः स्वीकार किया जाता है। "The significance of motivation for learning is usually assumed without question," -Klausmeier & Goodwin (p. 445) यह उद्धरण इस विचार का समर्थन करता है कि सीखने की प्रक्रिया में प्रेरणा के महत्त्वपूर्ण स्थान के सम्बन्ध में मत-विभिन्नता नहीं हो सकती है। प्रेरणा, सीखने का महत्त्वपूर्ण अंग है। प्रेरणाहीन क्रिया के सीखने में व्यक्ति रुचि नहीं लेता। सीखने में प्रेरणा का महत्त्व इस प्रकार है- 1. बाल-व्यवहार में परिवर्तन-शिक्षक प्रशंसा, निन्दा, पुरस्कार, भर्त्सना आदि कृत्रिम प्रेरकों का बुद्धिमानी से प्रयोग करके बालकों के व्यवहार को निर्देशित और परिवर्तित कर सकता है। 2. चरित्र-निर्माण में सहायता शिक्षक, बालकों को उत्तम गुणों और आदर्शों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित कर सकता है। इस प्रकार, वह उनके चरित्र-निर्माण में सहायता दे सकता है. 3. ध्यान केन्द्रित करने में सहायता-क्रो एवं क्रो (Crow & Crow) के अनुसार-शिक्षक, बालकों को प्रेरित करके उन्हें अपने ध्यान को पाठ्य-विषय पर केन्द्रित करने में सहायता दे सकता है. 4. मानसिक विकास-क्रो व क्रो (Crow & Crow, p. 253) के शब्दों में-"प्रेरक, छात्र को अपनी सीखने की क्रियाओं में प्रोत्साहन देते हैं।" अतः शिक्षक, प्रेरकों का प्रयोग करके छात्रों को ज्ञान का अर्जन करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। इस प्रकार, वह उनके मानसिक विकास में अपूर्व योग दे सकता है. 5. रुचि का विकास-थामसन (Thomson) ने लिखा है- "प्रेरणा, छात्र में रुचि उत्पन्न करने की कला है।" ("Motivation is the art of stimulating interest in the pupil.") अतः शिक्षक, प्रेरणा का प्रयोग करके बालकों में कार्य या अध्ययन के प्रति रुचि का विकास कर सकता है। इस प्रकार, वह उनके लिए ज्ञान प्राप्त करने का कार्य सरल बना सकता है. 6. अनुशासन की भावना का विकास-शिक्षक, बालकों को अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित कर सकता है। इस प्रकार, वह उनमें अनुशासन की भावना का विकास करके अनुशासनहीनता की समस्या का समाधान कर सकता है. 7. सामाजिक गुणों का विकास-शिक्षक, बालकों को सामुदायिक कार्यों में भाग लेने के लिए प्रेरित करके उनमें सामुदायिक भावना और सामाजिक गुणों का विकास कर सकता है। इस प्रकार, वह उनको समाज के अच्छे और उपयोगी सदस्य बनने का प्रशिक्षण दे सकता है. 8. अधिक ज्ञान का अर्जन - "क्रो एवं क्रो (Crow & Crow) के अनुसार-शिक्षक, बालकों में प्रतियोगिता की भावना का विकास करके, उन्हें अधिक ज्ञान का अर्जन करने के लिए प्रेरणा प्रदान कर सकता है. 9. तीव्र गति से ज्ञान का अर्जन - शिक्षक उत्तम शिक्षण-विधियों का प्रयोग करके बालकों को तीव्र गति से ज्ञान का अर्जन करने के लिए प्रेरित कर सकता है. 10. व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार प्रगति-क्रो एवं क्रो (Crow & Crow p. 253) का मत है-“प्रेरक, व्यक्ति को उस क्रिया को चुनने में सहायता देते हैं, जिसे करने की उस्की इच्छा होती है।" अतः शिक्षक उचित प्रेरकों का प्रयोग करके, बालकों को अपनी इच्छानुसार कार्य या विषय का चुनाव करने में योग दे सकता है। इस प्रकार, वह उनको अपनी व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार प्रगति करने का अवसर दे सकता है. प्रेरणा, शिक्षा-प्रक्रिया को मुख्य आधार और सीखने का ऐसा शक्तिशाली साधन है, जिसका प्रयोग करके शिक्षक, बालकों को उनके साध्य तक पहुँचा सकता है, उनकी क्रियाओं को किसी भी दिशा में मोड़ सकता है और उनके व्यवहार में वांछनीय परिवर्तन कर सकता है। इसीलिए, कुप्पूस्वामी ने लिखा है-"हमारे विद्यालय में सीखने के लिए वास्तविक और स्थायी प्रेरकों को प्रदान किए जाने के प्रयास की आवश्यकता है।" "Effort are needed to provide real lasting motives for learning in our schools." -Kuppuswamy (p. 132) ### प्रेरणा की विधियाँ (METHODS OF MOTIVATION) मरसेल ने लिखा है-"प्रेरणा यह निश्चय करती है कि लोग कितनी अच्छी तरह से सीख सकते हैं और कितनी देर तक सीखते रहते हैं।" "Motivation determines how well people learn and how long they keep on learning." -Mursell (p. 116) उक्त शब्द इस बात के साक्षी हैं कि बालक, प्रेरणा प्राप्त करके ही अपने सीखने के कार्य में पूर्ण रूप से सफल हो सकते हैं। अतः उनको प्रेरणा प्रदान की जानी आवश्यक है। ऐसा अग्रांकित विधियों का प्रयोग करके किया जा सकता है- 1. रुचि (Interest)- प्रेरणा प्रदान करने की पहली विधि है- बालकों की पाठ में रुचि उत्पन्न करना। अतः अध्यापक को पढ़ाये जाने वाले पाठ को बालक की रुचियों से सम्बन्धित करना चाहिए। प्रेसी, रॉबिन्सन व हॉरक्स का कथन है- रुचि, छात्रों का ध्यान आकर्षित करने का प्रथम उपाय है।" "Interest provides an initial means of attracting the attention of pupils."-Pressey, Robinson & Horrocks (p. 214) 2. सफलता (Success) - प्रेरणा प्रदान करने की दूसरी विधि है-बालकों को अपने कर्ज में सफल बनाना। अतः अध्यापक को सदैव यह प्रयास करना चाहिए कि उनको सीखने वाले कार्य में सफलता प्राप्त हो। फ्रैंडसन (Frandsen, p. 222) का मत है- "सीखने के सफल अनुभव अधिक सीखने की प्रेरणा देते हैं।" 3. प्रतिद्वन्द्विता (Competition) - प्रेरणा प्रदान करने की तीसरी विधि है- बालकों में प्रतिद्वन्द्विता की भावना का विकास करना। अतः शिक्षक को बालकों में स्वस्थ प्रतिद्वन्द्विता का विकास करना चाहिए। वॉगन व डिसेरेन के अनुसार – “शिक्षाशास्त्र के सम्पूर्ण इतिहास में प्रतिद्वन्द्विता को प्रेरणा प्रदान करने के लिए प्रयोग किया गया है।" "Competition has been used as a motivating influence during the entire history of pedagogy."-Vaughn & Diseren : The Experimental Psychology of Competition p. 81) 4. सामूहिक कार्य (Group Work)-प्रेरणा प्रदान करने की चौथी विधि है- बालकों को सामूहिक कार्यों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना। इस प्रकार के कार्यों में बालकों को विशेष आनन्द आता है। अतः शिक्षक को सामूहिक कार्यों की व्यवस्था करनी चाहिए। प्रोजक्ट मेथड में सामूहिक कार्य पर ही बल दिया जाता है। 5. प्रशंसा (Praise) - प्रेरणा प्रदान करने की पाँचवीं विधि है- अच्छे कार्यों के लिये बालकों की प्रशंसा करना। अतः शिक्षक को उचित अवसरों पर बालकों के अच्छे कार्यों की प्रशंसा करनी चाहिए। फ्रैंडसन (Frandsen p. 222) के शब्दों में- "उचित समय और स्थान पर प्रयोग किये जाने पर प्रशंसा, प्रेरणा का एक महत्त्वपूर्ण कारक है।" 6. आवश्यकता का ज्ञान (Knowledge of Needs) - प्रेरणा प्रदान करने की छठी विधि है-बालकों को सीखे जाने वाले कार्य की आवश्यकता का ज्ञान कराना। अतः किसी कार्य को करवाने से पूर्व शिक्षक को बालकों को यह बता देना चाहिए कि वह कार्य उनकी किन आवश्यकताओं को पूर्ण करेगा। हरलॉक के शब्दों में-"बालकों की मुख्य आवश्यकताएँ उसकें सीखने में उद्दीपनों का कार्य करती हैं।" "The prime needs of the child act as incentives to his learning."-Hurlock (p. 184) 7. परिणाम का ज्ञान (Knowledge of Result) - प्रेरणा प्रदान करने की सातवीं विधि है-बालकों को पाठ्य-विषय के परिणाम से परिचित कराना। अतः उसका शिक्षण करने से पूर्व अध्यापक को बालकों को यह बता देना चाहिए कि उसको पढ़ने से वे किस प्रकार लाभान्वित होंगे। वुडवर्थ ने लिखा है-"प्रेरणा, परिणामों के तात्कालिक ज्ञान से प्राप्त होती है।" "Motivation comes from the immediate knowledge of result."-Woodworth (p. 328) 8. खेल-विधि का प्रयोग (Use of Play-way Method) - प्रेरणा प्रदान करने की आठवीं विधि है-बालकों को शिक्षा देने के लिए खेल-विधि का प्रयोग करना। अतः शिक्षक को खेल-विधि का प्रयोग करके बालकों को शिक्षा देनी चाहिए। यह विधि छोटे बच्चों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है। 9. सामाजिक कार्यों में भाग (Participation in Social Work) - प्रेरणा प्रदान करने की नीं विधि है-बालकों को सामाजिक कार्यों में भाग लेने का अवसर देना। ये अवसर उनको आत्म-सम्मान और सामाजिक प्रतिष्ठा पाप्त करने में सहायता देते हैं। फलस्वरूप, वे अपने कार्य को अधिक उत्साह से करते हैं। अतः शिक्षक को बालकों को अधिक से अधिक सामाजिक कार्यों में भाग लेने के अवसर देने चाहिए। फ्रैंडसन (Frandsen, p. 233) के अनुसार - "बालकों और युवकों को प्रेरणा देने की साधारणतया सबसे प्रभावशाली विधि है- उनको उन अर्थपूर्ण सामाजिक कार्यक्रमों में रचनात्मक कार्य करने के अवसर देना, जिनको व्यक्ति और समाज-दोनों महत्त्वपूर्ण समझते हैं। 10. कक्षा का वातावरण (Classroom Climate) - प्रेरणा प्रदान करने की अन्तिम महत्त्वूपर्ण विधि है-कक्षा के वातावरण को शिक्षण के अनुकूल बनाना। इतिहास का सफल शिक्षण इतिहास-कक्ष में हो सकता है न कि विज्ञान-कक्ष में। अतः शिक्षक को कक्षा का वातावरण अपने शिक्षण के विषय के अनुकूल बनाना चाहिए। फ्रैंडसन ने ठीक ही लिखा है- "अच्छा शिक्षक प्रभावशाली प्रेरणा के लिए शिक्षण-सामग्री से सम्पन्न, अर्थपूर्ण और निरन्तर परिवर्तनशील कक्षा-कक्ष के वातावरण पर निर्भर रहता है।" "A first grade teacher relies for effective motivation on a rich, meaningful and continually changing classroom environment.”—Frandsen (p. 208) वास्तव में प्रेरणा, व्यक्ति को लक्ष्य तक पहुँचाने वाली शक्ति का नाम है। कैली ने इसीलिए कहा है-अभिप्रेरणा, अधिगम प्रक्रिया के उचित व्यवस्थापन में केन्द्रीय कारक होता है। किसी प्रकार की भी अभिप्रेरणा सभी अधिगम में अवश्य उपस्थित रहनी चाहिए। थाम्पसन के शब्दों में, प्रेरणा छात्र में रुचि उत्पन्न करने की कला है। अतः शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में - प्रेरणा का विशेष महत्त्व है। ### 'परीक्षा-सम्बन्धी प्रश्न 1. आपने छात्राध्यापक के रूप में जिन बालकों को पढ़ाया, उनको अभिप्रेरित करने के लिए आपने किन उपायों का प्रयोग किया ? कारण सहित उत्तर दीजिए। What methods did you adopt to motivate the children, whom you taught as a pupil-teacher? Support your answer with reason. 2. "अभिप्रेरणा, अधिगम के लिए अनिवार्य है।" इस कथन की विवेचना कीजिए और विद्यालय में सीखने की प्रक्रिया को अभिप्रेरित करने के लिए कुछ विधियों का सुझाव दीजिए। "Motivation is essential for learning." Discuss and suggest some ways to motivate the learning process in the school. 3. अधिगम में प्रेरणा का क्या स्थान है? आप एक शर्मीले पर बुद्धिमान बालक को अच्छा वक्त्ता बनने के लिए किस प्रकार अभिप्रेरित करेंगे ? What is the place of motivation in learning? How will you motivate a shy but intelligent child to become a good speaker? 4. प्रेरणा प्रदान करने वाली शक्तियों के रूप में प्रशंसा और निन्दा के प्रयोग का मूल्यांकन कीजिए। Evaluate the use of praise and reproof as motivating forces in education. 5. अभिप्रेरणा किसी विद्यार्थी को सीखने की प्रक्रिया में किस प्रकार सहायक होती है ? छात्राध्यापक के नाते पढ़ाते हुए आपने अपने छात्रों को किस प्रकार अभिप्रेरित किया ? Scanned with OKEN Scanner