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# 32 अवधान व रुचि ## ATTENTION AND INTEREST "Attention is always accompanied by interest." -Drummond and Mellone (p. 131) मानव जीवन की प्रत्येक क्रिया उसकी रुचि और अवधान पर ही निर्भर करती है। अवधान व रुचि के बिना शिक्षा का कार्यक्रम भी नहीं चल सकता है क्योंकि जब बालक को उसमें रुचि नहीं होगी तो वह...

# 32 अवधान व रुचि ## ATTENTION AND INTEREST "Attention is always accompanied by interest." -Drummond and Mellone (p. 131) मानव जीवन की प्रत्येक क्रिया उसकी रुचि और अवधान पर ही निर्भर करती है। अवधान व रुचि के बिना शिक्षा का कार्यक्रम भी नहीं चल सकता है क्योंकि जब बालक को उसमें रुचि नहीं होगी तो वह उस विषय पर ध्यान नहीं देगा और वह अपने उद्देश्य में भी सफल नहीं हो पायेगा। अतः शिक्षा के क्षेत्र में अवधान एवं रुचि की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। इस अध्याय के अंतर्गत हम अवधान और रुचि के महत्त्व, उनकी परिभाषाओं, विशेषताओं एवं प्रकारों पर विस्तारपूर्वक उल्लेख करेंगे। ## 'अवधान' क्या है ? किसी उत्तेजना के प्रति चेतना व चित्तवृत्तियों के केन्द्रीकरण को हम अवधान की संज्ञा दे सकते हैं। व्यक्ति के सम्मुख निरन्तर विभिन्न प्रकार की उत्तेजनाएँ उपस्थित होती रहती हैं। वह प्रत्येक के प्रति समान रूप से चेतन नहीं रहता। वह केवल कुछ ही उत्तेजनाओं को या एक वस्तु से सम्बद्ध उत्तेजना को ही ध्यान केन्द्र में लाता है। उत्तेजनाओं का यह चयन उसकी रुचि पर निर्भर है। उदाहरणार्थ-सड़क पर चलते हुये हम सभी वस्तुओं के प्रति समान' चेतना नहीं प्रदर्शित करते हैं केवल उन्हीं वस्तुओं पर ध्यान देते हैं जो हमारी रुचि का विषय होती हैं। इसके अतिरिक्त ध्यान को दिशा निर्धारित करने में, ध्यान की दशाओं की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। ## अवधान का अर्थ व परिभाषा ### (MEANING AND DEFINITION OF ATTENTION) हम जीवन में अनेक प्रकार की वस्तुएँ देखते हैं। कुछ के विषय में सुनते हैं। हम कुछ की ओर आकर्षित होते हैं तथा कुछ की ओर हमारा ध्यान अनायास ही चला जाता है। ये सभी व्यवहार अवधान कहलाते हैं। 'चेतना' व्यक्ति का स्वाभाविक गुण है। चेतना के ही कारण उसे विभिन्न वस्तुओं का ज्ञान होता है। यदि वह कमरे में बैठा हुआ पुस्तक पढ़ रहा है, तो उसे वहाँ की सब वस्तुओं की कुछ-न-कुछ चेतना अवश्य होती है; जैसे-मेज, कुर्सी, अलमारी आदि। पर उसकी चेतना का केन्द्र वह पुस्तक है, जिसे वह पढ़ रहा है। चेतना के किसी वस्तु पर इस प्रकार के केन्द्रित होने को 'अवधान कहते हैं। दूसरे शब्दों में, किसी वस्तु पर चेतना को केन्द्रित करने की मानसिक प्रक्रिया को 'अवधान' या ध्यान कहते हैं। # अवधान की विशेषताएँ ### (CHARACTERISTICS OF ATTENTION) (i) मानसिक सक्रियता (Conation) - किसी वस्तु पर ध्यान देने के लिये मानसिक सक्रियता का होना आवश्यक है। जैसे हम गुलाब के फूल पर ध्यान दें तो मन उसकी विशेषताओं की ओर खिंच जाता है और सक्रिय हो जाता है। ध्यान मानसिक सक्रियता का ही रूप है। (ii) चंचलता/गतिशीलता (Mobility) - अवधान की स्थिरता न के बराबर होती है। यह बहुत ही चंचल होता है। किसी वस्तु पर यह 10-12 सैकेण्ड से ज्यादा नहीं ठहर पाता। इस चंचलता के कारण ही व्यक्ति सदैव नवीन वस्तुओं को खोज निकालने में रुचि लेता है। (iii) चयनात्मकता (Selectiveness) - जिस वस्तु की ओर हमारी रुचि अधिक होगी, अवधान का झुकाव भी उधर ज्यादा होगा और ध्यान की स्थिरता उस वस्तु पर और वस्तुओं की अपेक्षा ज्यादा हो जायेगी। रुचिकर वस्तुओं पर हमारा ध्यान जल्दी पहुँचता है। (iv) संकुचितपन (Narrowness) - ध्यान का विस्तार बहुत ही संकुचित होता है। एक समय में हम तमाम वस्तुओं पर एक साथ ध्यान नहीं दे सकते हैं क्योंकि ध्यान चयनात्मक एवं संकुचित होता है। यह रुचिकर वस्तु पर शीघ्रता से आकर्षित होता है। (v) प्रयोजनता (Purposiveness) - जब हम किसी सुन्दर वस्तु को देखते हैं तो हमारा ध्यान उधर खिंच जाता है। चूँकि हमें सौंदर्य की एक आकर्षक अनुभूति हुई और इसलिये हमारा ध्यान उधर खिंच गया। कहने का तात्पर्य यह है कि ध्यान किसी न किसी प्रयोजन को साथ लिये होता है। जहाँ पर प्रयोजन पूर्ति की जितनी ज्यादा संभावना होगी वहाँ पर अवधान की स्थिरता उतनी ही ज्यादा हो जायेगी। (vi) तत्परता (Readiness) - वुडवर्थ के शब्दों में, "प्रारम्भिक तत्परता या तैयारी अवधान में आवश्यक प्रतिक्रिया है।" अर्थात् किसी वस्तु पर ध्यान देने 'के लिये व्यक्ति को तत्पर होना आवश्यक है। (vii) गतियों का समायोजन (Motor Adjustment)- किसी विशेष वस्तु में समायोजन का होना आवश्यक है जबकि उस पर ध्यान दिया जाता है। जैसे देखने के लिये नेत्रों की गतियों का समायोजन दृश्यों से होता है। (viii) सक्रिय केन्द्र (Active Centre)- हम जिन वस्तुओं पर ध्यान देते हैं वे हमारे मन में सक्रिय रूप से स्पष्ट हो जाती हैं। ठीक इसके विपरीत हम जिन वस्तुओं के प्रति ध्यान नहीं देते हैं उनका हमारे मन में कोई असर नहीं पड़ता। (ix) अन्वेषणात्मक, विश्लेषणात्मक एवं संश्लेषणात्मक प्रवृत्ति (Exploratory; Analytic and Synthetic Attitude)- बुडवर्थ के शब्दों में, "अवधान चंचल होता है क्योंकि वह अन्वेषणात्मक है, यह निरन्तर छानबीन के लिये कोई ताजी चीज खोज्ता रहता है।" हेमारा ध्यान प्रायः नयी वस्तुओं की ओर केन्द्रित होता है और नयी चीज मिलने पर व्यक्ति उसके ढाँचे एवं उसके रंग-रूप पर विश्लेषण एवं संश्लेषण करने लगता है। यही मानव की प्रवृत्ति है। (x) अवधान की अवस्थायें (Stages of Attention) - इसकी दो अवस्थायें होती हैं- (i) भावात्मक अवस्था (ii) अभावात्मक अवस्था जब हमारा अवधान एक पहलू की ओर जाता है तो दूसरे पहलू की ओर से अवधान स्वतः ही हट जाता है। पहली अवस्था भावात्मक तथा दूसरी अवस्था अभावात्मक अवस्था कहलाती है। # अवधान के प्रकार ### (KINDS OF ATTENTION) मनोवैज्ञानिक जे. एस. रॉस ने अवधान को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया है- - **अवधान** - **ऐच्छिक अवधान** - अविचारित - विचारित - **अनैच्छिक अवधान** - सहज - बाध्य उपर्युक्त तालिका का हम निम्न प्रकार स्पष्टीकरण कर सकते हैं- (1) ऐच्छिक अवधान-ऐच्छिक अवधान अर्जित अभिरुचि (Volitional Attention) या रुचि पर आधारित होता है। यह दो प्रकार का होता है- (अ) अविचारित अवधान (Implicit Attention) - यह अवधान ऐसा होता है जिसमें व्यक्ति को अपनी चेतना केन्द्रित करने के लिये किसी सोच-विचार की आवश्यकता नहीं पड़ती। (आ) विचारित अवधान (Explicit Attention)- यह उस प्रकार का अवधान है जिसमें चेतना को किसी वस्तु पर खूब सोच-विचारकर केन्द्रित किया जाता है'। (2) अनैच्छिक अवधान (Non-Volitional Attention)- जब व्यक्ति बिना किसी इच्छा के ही किसी वस्तु पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है तो उसे अनैच्छिक अवधान कहा जाता है। यह निम्न • दो प्रकार का होता है- (अ) सहज अवधान (Spontaneous Attention)- इस तरह के अवधान मूल प्रवृत्तियों की प्रेरणा से किसी वस्तु पर स्वाभाविक रूप से केन्द्रित हो जाते हैं। (आ) बाध्य अवधान (Enforced Attention)- जब हम किसी कारण से बाध्य होकर किसी वस्तु पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं तो वह बाध्य अवधान कहलाता है। यह अवधान किसी उद्दीपन के कारण होता है। # अवधान में शारीरिक दशा ## (PHYSICAL CONDITIONS DURING ATTENTION) जिस समय हम किसी वस्तु की ओर ध्यान देते हैं, उस समय हमारे शरीर में भी कुछ परिवर्तन आ जाते हैं। यद्यपि ध्यान एक मानसिक क्रिया है तथापि उसका शरीर पर भी प्रभाव पड़ता है। ध्यानावस्था (अवधान) में रीढ़ की हड्डी सीधी हो जाती है। मुँह एक ओर को हो जाता है। ध्यान के कुछ पूर्व शरीर उत्तेजित हो जाता है। मांसपेशियाँ सिकुड़ जाती हैं और ज्ञान तन्तुओं तथा कर्म तन्तुओं में तनाव आ जाता है। जब आदमी आलस्य में रहता है तो ये स्नायु सोई-सी दिखाई पड़ती हैं। किसी पुस्तक को पढ़ते समय हम पुस्तक को अभीष्ट दूरी पर रखते हैं और सिर को इधर-उधर कर लेते हैं। किसी मध्यम स्वर को सुनने के लिये भी हम अपने चेहरे को झटककर सिर को इस प्रकार टेढ़ा कर लेते हैं जिससे कि वह ध्वनि हमें सुनाई पड़ जाये। किसी वस्तु का स्वाद लेने के लिये हम उस पदार्थ को जीभ पर चारों ओर घुमाते हैं। किसी गंध को सूँघने के लिये हम जोर से सांस' लेते हैं। प्रयोगों द्वारा यह भी देखा गया है कि ध्यान की अवस्था में श्वास हल्की व तीव्र हो जाती है। कभी-कभी किसी ध्वनि को सुनने के लिये हम एक दो सैकण्ड तक श्वास को रोक लेते हैं। कुछ लोगों को बिस्तर पर लेटकर अथवा टेढ़े- बैठकर पढ़ने की आदत होती है। इस प्रकार के व्यक्ति यदि उसी आसन में न बैठें तो उनका ध्यान पढ़ने में नहीं लग सकता। व्यक्ति का विशिष्ट व्यवहार जो किसी कार्य को करते समय पाया जाता है, ध्यान की क्रिया में सहायक होता है। चश्मे को आँख से उतारना और फिर आँख में पहनना, भौंहें सिकोड़ना, दाँत कुरेदना, सिर खुजलाना, बटन छूते रहना आदि ऐसी ही क्रियायें हैं जिन्हें व्यक्ति कोई काम करते हुए भी करता रहता है। # अवधान और रुचि में सम्बन्ध ### (RELATION BETWEEN ATTENTION AND INTEREST) रुचि का मूलाधार मूल-प्रवृत्तियाँ होती हैं। किसी वस्तु की ओर नैसर्गिक रूप से आकर्षित होना ही रुचि कहलाता है। ध्यान दी जाने वाली वस्तुओं का हमारे द्वारा चुनाव होता है। यह चुनाव हमारी रुचि के कारण ही होता है। जब हम तमाम वस्तुओं को देखते हैं तो जिस वस्तु में हमारी रुचि होती है, हमारा ध्यान उधर ही प्रबलता से आकर्षित होता है। ध्यान और रुचि का बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है। रुचि एक ऐसी दशा है जिसमें हमारा मस्तिष्क सहनशील हो उठता है। ध्यान और रुचि साथ-साथ चलती हैं। हम जिस वस्तु की ओर ध्यान देते हैं उस वस्तु में प्रायः हमारी रुचि रहती है। ध्यान रुचि को जानने का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण है। रुचि हमारे स्वभाव का एक अंग हो जाती है। हमारी रुचि जितनी प्रबल होगी. हमारा ध्यान भी उतना ही प्रबल होगा। यदि किसी छात्र की रुचि हिन्दी में है तो वह हिन्दी के पठन-पाठन की ओर विशेष ध्यान देगा। जिस वस्तु की ओर हमारी रुचि नहीं होती उसकी ओर हम उपेक्षा की दृष्टि रखते हैं। जिस छात्र की रुचि संस्कृत में नहीं होती वह संस्कृत की ओर ध्यान भी नहीं देता है. इस प्रकार अवधान (ध्यान) व रुचि में बहुत ही गहरा संम्बन्ध होता है। # अवधान की दशाएँ ### (CONDITIONS OF ATTENTION) हम अनेक वस्तुओं को देखते हुए भी केवल एक की ही ओर ध्यान क्यों देते हैं ? इसका कारण यह है कि अवधान को केन्द्रित करने में अनेक दशाएँ सहायता देती है। हम इनको दो भागों में रख सकते हैं : (1) बाह्य या वस्तुगत (2) आन्तरिक या व्यक्तित्वगत ## (1) अवधान को केन्द्रित करने की बाह्य दशाएँ ### (EXTERNAL CONDITIONS ATTRACTING ATTENTION) 1. गति (Movement)- स्थिर वस्तु के बजाय चलती हुई वस्तु की ओर हमारा ध्यान जल्दी आकर्षित होता है। बैठे या खड़े हुए मनुष्य के बजाय भागते हुए मनुष्य की ओर हमारा ध्यान शीघ्र जाता है। 2. अवधि (Duration) - हमें जिस वस्तु को देखने का जितना अधिक समय मिलता है, उस पर हमारा ध्यान उतना ही केन्द्रित होता है। इसीलिए, शिक्षक पाठ की मुख्य-मुख्य बातों को श्यामपट पर लिखते हैं। 3. स्थिति (State)- हम प्रतिदिन के मार्ग पर चलते हुए बहुत-से मकानों के पास से गुजरते हैं, पर हमारा ध्यान उनकी ओर आकर्षित नहीं होता है। यदि किसी दिन हम उनमें से किसी मकान को गिरी हुई दशा या स्थिति में पाते हैं, तो हमारा ध्यान स्वयं ही उसकी ओर चला जाता है। 4. तीव्रता (Intensity) - जो वस्तु जितनी अधिक उत्तेजना उत्पन्न करती है उतना ही अधिक हमारा ध्यान उसकी ओर खिंचता है। धीमी आवाज की तुलना में तेज आवाज हमारा ध्यान अधिक आकर्षित करती है। 5. विषमता (Contrast) - यदि, हम सुन्दर व्यक्तियों के परिवार में किसी कुरूप व्यक्ति कौ देखते हैं, तो उसकी विषमता के कारण हमारा ध्यान उसकी ओर अवश्य जाता है। 6. नवीनता (Novelty) - हमारा ध्यान नवीन, विचित्र या अपरिचित वस्तु की ओर अवश्य आकर्षित होता है। वर्दी पहने हुए सिपाही को नदी में नहाते देखकर हमारें नेत्र उस पर जम जाते हैं। 7. आकार (Size) - हमारा ध्यान छोटी वस्तुओं की अपेक्षा बड़े आकार की वस्तुओं की ओर जल्दी जाता है। चौराहों पर बड़े-बड़े विज्ञापनों के लगाये जाने का कारण, उनकी ओर हमारे ध्यान को शीघ्र आकर्षित करना है। 8. स्वरूप (Form)-हमारा ध्यान अच्छे स्वरूप की वस्तुओं की ओर अपने-आप जाता है। जो वस्तु सुडौल, सुन्दर और अच्छी बनावट की होती है, उसे देखने की हमारी इच्छा स्वयं होती है। 9. परिवर्तन (Change) - विद्यालय में शोर होना साधारण बात है। पर यदि उसके किसी भाग में लगातार जोर का शोर होने के कारण वातावरण में परिवर्तन हो जाता है, तो हमारा ध्यान शोर की ओर अवश्य जाता है और हम उसका कारण भी जानना चाहते हैं। 10. प्रकृति (Nature)- अवधान का केन्द्रीयकरण, वस्तु की प्रकृति पर निर्भर रहता है। छोटे बच्चों का ध्यान रंग-बिरंगी वस्तुओं के प्रति बहुत सरलता से आकर्षित होता है। 11. पुनरावृत्ति (Repetition) - जो बात बार-बार दोहराई जाती है, उसकी ओर हमारा ध्यान जाना स्वाभाविक है। छात्रों के ध्यान को केन्द्रित रखने के लिए शिक्षक मुख्य-मुख्य बातों को दोहराता जाता है। 12. रहस्य (Secrecy) - अवधान का केन्द्रीयकरण किसी बात के रहस्य पर आधारित रहता है। यदि दो मनुष्य सामान्य रूप से बातचीत करते हैं, तो हमारा ध्यान उनकी ओर नहीं जाता है। पर यदि वे कोई गुप्त या रहस्यपूर्ण बात करने लगते हैं, तो हम कान लगाकर उनकी बात सुनने का प्रयास करते हैं। ## (2) अवधान को केन्द्रित करने की आन्तरिक दशाएँ ### (INTERNAL CONDITIONS ATTRACTING ATTENTION) 1. रुचि (Interest)- अवधान के केन्द्रीयकरण का सबसे मुख्य आधार हमारी रुचि है। इस सम्बन्ध में भाटिया (Bhatia, p. 120) ने लिखा है- "व्यक्तिगत दशाओं को एक शब्द, 'रुचि' में व्यक्त किया जा सकता है। हम उन्हीं वस्तुओं की ओर ध्यान देते हैं, जिनमें हमें रुचि होती है। जिनमें हमको रुचि नहीं होती है, उनकी ओर हम ध्यान नहीं देते हैं।" 2. ज्ञान (Understanding)- जिस व्यक्ति को जिस विषय का ज्ञान होता है, उस पर ध्यान सरलता से केन्द्रित होता है। कलाकार को कला की वस्तुओं पर ध्यान केन्द्रित करने में कोई कठिनाई नहीं होती है। 3. लक्ष्य (Goal)- व्यक्ति जिस कार्य के लक्ष्य को जानता है, उस पर उसका ध्यान स्वतः केन्द्रित हो जाता है। परीक्षा के दिनों में छात्रों का ध्यान अध्ययन पर केन्द्रित रहता है, क्योंकि इससे वे परीक्षा में उत्तीर्ण होने के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। 4. आदत (Habit)-अवधान के केन्द्रीयकरण का एक आधार-व्यक्ति की आदत है। जिस व्यक्ति को चार बजे टेनिस खेलने जाने की आदत है, उसका ध्यान तीन बजे से ही उस पर केन्द्रित हो जाता है और वह खेलने जाने की तैयारी करने लगता है। 5. जिज्ञासा (Curiosity)-व्यक्ति की जिस बात में जिज्ञासा होती है, उसमें वह ध्यान अवश्य देता है। जिस व्यक्ति को टैस्ट मैचों के प्रति जिज्ञासा होती है, वह उनकी कमेंट्री अवश्य सुनता है। 6. प्रशिक्षण (Training)- रायबर्न (Ryburn, p. 118) के अनुसार-अवधान के केन्द्रीयकरण का एक आधार-व्यक्ति का प्रशिक्षण है। व्यक्ति का ध्यान उसी बात पर केन्द्रित होता है, जिसका प्रशिक्षण उसे प्राप्त होता है। पहाड़ पर साथ-साथ यात्रा करते समय चित्रकार का ध्यान सुन्दर स्थानों की ओर एवं पर्वतारोही का ध्यान पहाड़ की ऊँचाई की ओर जाता है। 7. मनोवृत्ति (Mood) - रैक्स एवं नाईट (Rex and Knight, p. 113) के अनुसार-अवधान के केन्द्रीयकरण का एक आधार-व्यक्ति की मनोवृत्ति है। यदि मालिक अपने नौकर से किसी कारण से रुष्ट हो जाता है, तो उसका ध्यान नौकर के छोटे-छोटे दोषों की ओर भी जाता है; जैसे- वह देर से क्यों आया है ? वह मैले कपड़े क्यों पहने हुए है ? 8. वंशानुक्रम (Heredity)-रायबर्न (Ryburn, p. 117) के अनुसार-अवधान के केन्द्रीयकरण का एक आधार-व्यक्ति को वंशानुक्रम से प्राप्त गुणों पर निर्भर रहता है। शिकारी परिवार के व्यक्ति का ध्यान शिकार के जानवरों की ओर एवं धार्मिक परिवार के व्यक्ति का ध्यान मन्दिरों की ओर स्वाभाविक रूप से आकर्षित होता है। 9. आवश्यकता (Need) - जो वस्तु, व्यक्ति की आवश्यकता को पूर्ण करती है, उसकी ओर उसका ध्यान जाना स्वाभाविक है। भूखे व्यक्ति का भोजन की ओर ध्यान जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। 10. मूलप्रवृत्तियाँ (Instincts) - रैक्स व नाईट (Rex and Knight, p. 112) के अनुसार-अवधान के केन्द्रीयकरण का एक मुख्य आधार-व्यक्ति की मूल प्रवृत्तियाँ हैं। यही कारण है कि विज्ञापनों के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए काम-प्रवृत्ति का सहारा लिया जाता है। इसीलिए विज्ञापनों में, साधारणतः सुन्दर युवतियों के चित्र होते हैं। 11. पूर्व-अनुभव (Previous Experience) - यदि व्यक्ति को किसी कार्य को करने का पूर्व-अनुभव होता है, तो उस पर उसका ध्यान सरलता से केन्द्रित हो जाता है। जिस बालक को पर्वत का मॉडल बनाने का कोई अनुभव नहीं है, उस पर वह अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाता है। 12. मस्तिष्क का विचार (Idea in Mind)- रायबर्न (Ryburn, p. 120) के अनुसार-हमारे अस्तिष्क में जिस समय जो विचार सर्वप्रथम होता है, उस समय हम उसी से सम्बन्धित बातों की ओर ध्यान देते हैं। यदि हमारे मस्तिष्क में अपने किसी रोग का विचार है तो समाचार पत्र पढ़ते समय हमारा ध्यान औषधियों के विज्ञापनों की ओर अवश्य जाता है। # अवधान का सीमा विस्तार ### (RANGE OF ATTENTION) ध्यान के सम्बन्ध में एक स्वाभाविक प्रश्न उठता है, "एक बार में हम कितनी वस्तुओं पर ध्यान दे सकते हैं ?" इस प्रश्न का सम्बन्ध ध्यान के सीमा-विस्तार से है। कुछ समय पूर्व लोगों की यह धारणा थी कि एक बार में हम कई वस्तुओं पर ध्यान जमा सकते हैं, किन्तु यह बात अब भ्रामक सिद्ध हो चुकी है। एक बार में हम एक ही वस्तु पर ध्यान दे सकते हैं। यदि एक ओर हारमोनियम बज रहा हो और दूसरी ओर कोई व्यक्ति आपसे बात करना चाह रहा हो तो आप एक ही ओर ध्यान दे सकते हैं, दोनों ओर नहीं। हमारे कान दो अवश्य हैं किन्तु सुनने वाला मन एक ही है। कुछ लोग कह सकते हैं कि पढ़ते समय एक बार में एक से अधिक शब्दों व अक्षरों पर ध्यान जाता है, किन्तु ऐसा न होकर वे सभी अक्षर व शब्द एक ही स्थिति के अंग हो जाते हैं। यदि कोई क्रियायें एक ही बड़ी क्रिया के अंग हों तो उन पर ध्यान देना कठिन नहीं है। अब प्रश्न उठता है कि हम एक ही बार में एक ही वस्तु की ओर ध्यान तो देते हैं किन्तु एक ही दृष्टिपात में कितनी इकाइयों पर ध्यान दे सकते हैं ? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिये कई मनोवैज्ञानिक प्रयोग किये गये हैं। प्रयोगों द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया है कि यदि इकाइयाँ अव्यवस्थित हैं तो एक बार में चार या पाँच भिन्न-भिन्न इकाइयों को ध्यान की सीमा में ला सकते हैं। अक्षरों के लिये भी यही नियम लागू होता है। # अवधान की अवधि ### (DURATION OF ATTENTION) एक वस्तु के किसी भाग पर हमारा ध्यान साधारणतः पाँच या छः सैकण्ड़ तक रहता है. इसके बाद ध्यान विचलित हो जाता है। शंका हो सकती है कि कभी-कभी हम किसी वस्तु पर कई मिनट तक ध्यान लगाये रहते हैं, किन्तु उस समय ध्यान वस्तु के एक भाग से दूसरे भाग पर जाता रहता है और संपूर्ण वस्तु की दृष्टि से कहते हैं कि ध्यान उसी वस्तु पर है। कलम पर ध्यान देते समय कभी निब पर, कभी कलम के रंग पर, कभी उसकी बनावट पर, कभी लंबाई पर तथा कभी उसकी कीमत पर ध्यान जाता रहता है। ध्यान की अवधि को हम अभ्यास से बढ़ा सकते हैं। जिस विषय में रुचि होती है, उस विषय में हमारा ध्यांन अधिक देर तक रह सकता है। कम से कम 1/10 सैकण्ड तक हमारा ध्यान किसी वस्तु पर अवश्य रहता है। यदि हम चाहें कि इससे भी कम समय में हम एक वस्तु से दूसरी वस्तु पर ध्यान हटा दें तो यह हमारे लिये संभव नहीं है। इसी सिद्धान्त पर सिनेमा के चित्रों की गति आधारित है। एक चित्र के बाद दूसरा चित्र इतना शीघ्र आ जाता है कि 1/10 सैकण्ड नहीं बीतता और हमारे ध्यान में पहली वस्तु ही रहती है कि दूसरी वस्तु तुरन्त ही आ जाती है और हमें निर्बाधता का भ्रम हो जाता है। सिनेमा के चित्र स्थिर होते हैं, चलते नहीं हैं। वर्षा की बूँदें भी सब अलग-अलग होती हैं, किन्तु कभी-कभी हमें एक धारा के रूप में दिखाई पड़ती हैं, इसके कारण भी अवधान की अवधि ही है। # बालकों का अवधान केन्द्रित करने के उपाय ### (METHODS OF SECURING CHILDREN'S ATTENTION) बी. एन. झा का कथन है- "विद्यालय-कार्य की एक मुख्य समस्या सदैव अवधान की समस्या रही है। इसीलिए, नये शिक्षक को प्रारम्भ में यह आदेश दिया जाता है- 'कक्षा के अवधान को केन्द्रित रखिए'।" "The problem of attention has been one of the foremost problems of school work, 'Get the attention of the class' is therefore the preliminary instruction for the new teacher." -B. N. Jha (p. 252) कक्षा या बालकों के अवधान को केन्द्रित करने या रखने के लिए निम्नलिखित उपायों को प्रयोग में लाया जा सकता है- 1. शान्त वातावरण (Calm Environment)- कोलाहल, बालकों के ध्यान को विचलित करता है। अतः उनके ध्यान को केन्द्रित रखने के लिए शिक्षक को कक्षा का वातावरण शान्त रखना चाहिए। 2. पाठ की तैयारी (Preparation of Lesson)- पाठ को पढ़ाते समय कभी-कभी ऐसा अवसर आ जाता है, जब शिक्षक किसी बात को भली प्रकार से नहीं समझा पाता है। ऐसी दशा में वह बालकों के ध्यान को आकर्षित नहीं कर पाता है। अतः शिक्षक को प्रत्येक पाठ को पढ़ाने से पूर्व उसे अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए। 3. विषय में परिवर्तन (Change of Subject) - ध्यान चंचल होता है और बहुत समय तक एक विषयं पर केन्द्रित नहीं रहता है। अतः शिक्षक को दो घण्टों में एक विषय लगातार न पढ़ाकर भिन्न-भिन्न विषय पढ़ाने चाहिए। 4. सहायक सामग्री का प्रयोग (Use of Material Aids) - सहायक सामग्री बालकों के ध्यान को केन्द्रित करने में सहायता देती है। अतः शिक्षक को पाठ से सम्बन्धित सहायक सामग्री का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। 5. शिक्षण की विभिन्न विधियों का प्रयोग (Use of Various Methods of Teaching)-बालकों को खेल, कार्य, प्रयोग और निरीक्षण में विशेष आनन्द आता है। अतः शिक्षक को बालकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए आवश्यकतानुसार अग्रलिखित विधियों का प्रयोग करना चाहिए-खेल-विधि, क्रिया-विधि, प्रयोगात्मक-विधि और निरीक्षण-विधि । 6. बालकों की रुचियों के प्रति ध्यान (Attention towards Interests)- जो अध्यापक, शिक्षण के समय बालकों की रुचियों का ध्यान रखता है, वह उनके ध्यान को केन्द्रित रखने में भी सफल होता है। अतः डम्विल (Dumville, p. 353) का सुझाव है-"पाठ का प्रारम्भ बालकों की स्वाभाविक रुचियों से कीजिए। फिर धीरे-धीरे अन्य विधियों में उनकी रुचि उत्पन्न कीजिए।" 7. बालकों के प्रति उचित व्यवहार (Proper Behaviour) - यदि बालकों के प्रति शिक्षक का व्यवहार कठोर होता है और वह उनको छोटी-छोटी बातों पर डाँटता है, तो वह उनके ध्यान को आकर्षित नहीं कर पाता है। अतः उसे बालकों के प्रति प्रेम, शिष्टता और सहानुभूति का व्यवहार करना चाहिए। 8. बालकों के पूर्व ज्ञान का नये ज्ञान से सम्बन्ध (Relationship between New and Previous Knowledge) - बालकों के ध्यान को केन्द्रित रखने के लिए शिक्षक को नए विषय को पुराने विषय से सम्बन्धित करना चाहिए। इसका कारण बताते हुए जेम्स (James, p. 296) ने लिखा है- "बालक पुराने विषय पर अपना ध्यान केन्द्रित कर चुके हैं। अतः जब नये विषय को उससे सम्बन्धित कर दिया जाता है, तब उस पर उन्हें अपना ध्यान केन्द्रित करने में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होती है।" 9. बालक की प्रवृत्तियों का ज्ञान- डम्विल (Dumville, p. 362) के अनुसार - बालकों के ध्यान को केन्द्रित करने के लिए शिक्षक को उनकी सब प्रवृत्तियों (Tendencies) का ज्ञान होना चाहिए। यदि वह इन प्रवृत्तियों को ध्यान में रखकर अपने शिक्षण का आयोजन करता है, तो वह बालकों के अवधान को केन्द्रित रखता है। 10. बालकों के प्रयास को प्रोत्साहन-यदि अध्यापक, बालकों को निष्क्रिय श्रोता बना देता है, तो वह अपने शिक्षण के प्रति उनके ध्यान को आकर्षित करने में असफल होता है। अतः जॅम्स (James, p. 149) का परामर्श है- "बालकों के प्रयास की इच्छा को जीवित रखिए।" उनकी इस इच्छा को जीवित रखकर या उनको प्रयास के लिए प्रोत्साहित करके शिक्षक उनके ध्यान को सदैव प्राप्त कर सकता है।

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