मन की शक्तियाँ तथा जीवनगठन की साधनायें PDF

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1949

स्वामी विवेकानंद

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mind power spiritual development self-improvement philosophy

Summary

This book, Man.Ki.Shakti.Tara.Jivanagatha.Ki.Sadhana by Swami Vivekananda, explores the power of the mind and spiritual development. The text focuses on mental faculties and practices for self-improvement.

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# मन की शक्तियाँ तथा जीवनगठन की साधनायें ## स्वामी विवेकानंद ## वक्तव्य मनुष्य यदि जीवन के चरम लक्ष्य अर्थात् पूर्णत्व को प्राप्त है तो उसके लिए यह आवश्यक है कि वह अपने मन के भाँति परख ले । मनकी शक्तियाँ सचमुच बड़ी ही आश्चर्य विवेकानन्दजी ने इस पुस्तक में इन शक्तियों की बड़ी विवेचना की है तथा उन...

# मन की शक्तियाँ तथा जीवनगठन की साधनायें ## स्वामी विवेकानंद ## वक्तव्य मनुष्य यदि जीवन के चरम लक्ष्य अर्थात् पूर्णत्व को प्राप्त है तो उसके लिए यह आवश्यक है कि वह अपने मन के भाँति परख ले । मनकी शक्तियाँ सचमुच बड़ी ही आश्चर्य विवेकानन्दजी ने इस पुस्तक में इन शक्तियों की बड़ी विवेचना की है तथा उन्हें प्राप्त करने के साधन भी बढ़ाए है। एक सिद्ध महात्मा थे; उन्हें उन साधनाओं का पूर्ण ज्ञान था। साधक चरम उद्देश्य अर्थात् आत्मानुभूति प्राप्त कर सकता है। ये साधनाएँ भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के स्वभाव तथा उनकी अलग अलग हो सकती हैं। और इस पुस्तक में स्वामीजी ने को व्यवहार में लाने के लिए वे उपदेश तथा सुझाव दे दिऐ, ये लिए वास्तव में बड़े उपयोगी सिद्ध होंगे । श्री पं. राजदेवजी तिवारी, एम. ए., साहित्यरत के प्रति हम कृतज्ञ है। **श्री पं. विद्याभास्करजी शुक्ल, एम. एस-सी., कालेज आफ साइन्स, नागपुर, को भी हम धन्यवाद जिन्होंने इस पुस्तक के प्रूफ-संशोधन में हमें बहुमूल्य सहायता दी है।** हमें विश्वास है कि इम पुस्तक से पाठकों का ही हित होगा। **नागपुर** **१-११-१९४९** **प्रकाशक** ## अनुक्रमणिका * शक्तियाँ * न की साधनायें # १. मन की शक्तियाँ (लास एंजिल्स, कैलिफोर्निया में स्वामी विवेकानन्दजी द्वारा दिया गया भाषण, जनवरी सन् १९०० ) सम्पूर्ण जगत में सर्वदा से ही किसी अलौकिक शक्ति में विश्वास चळता आ रहा है। हममें से भी सभी ने अलौकिक घटनाओं के विषय में सुना होगा और बहुतों ने तो ऐसी चमत्कारपूर्ण अलौकिक घटनाओं का व्यक्तिगत रूप से अनुभव भी किया होगा । अपनी आँखों देखी कुछ ऐसी है। घटनाओं का वर्णन करता हुआ मैं इस बिषय का प्रारम्भ करना चाहता हूँ। एक बार मैंने एक व्यक्ति के विषय में सुना कि वह किसी के भी मन के गुप्त प्रश्नों का उत्तर तत्काल दे देता है। यही नहीं, मुझसे बताया गया कि वह भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं को भी पहिले ही से बता देता है। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ और कुछ साथियों को लेकर उस व्यक्ति के पास पहुँच गया। हम सभी ने अपने अपने मन में अपने अपने प्रश्न निश्चित कर लिये थे और भूल बचाने के लिये कागज पर लिख कर उन्हें अपनी जेबों में रख लिये थे। उस व्यक्ति ने ज्यों ही हममें से एक को देखा हमारे सारे गुप्त प्रश्नों को दुद्दरा ही नहीं दिया वरन् उनके उत्तर भी दे दिये । तत्पश्चात् उसने कागज पर कुछ लिखा और उसे मोड कर उस पर मुझसे हस्ताक्षर करने को कहा। ऐसा करने के बाद उसके कथनानुसार मैंने उस कागज की पुडिया को बिना देखे ही तब तक के लिये अपनी जेब में रख लिया जब तक वह स्वयं उसे दिखलाने के लिये म कहे । मेरे सब साथियों के साथ भी ऐसा ही किया गया। तत्पश्चात् भविष्य में घटने वाली कुछ घटनाओं पर प्रकाश डालते हुए उसने हमसे कहा कि हम किसी भी भाषा के किसी भी शब्द या वाक्य को अपने मन में सोच लें। वह संस्कृत बिल्कुल नहीं जानता ऐसा समझ कर मैंने संस्कृत भाषा के एक लम्बे वाक्य को मन में रख लिया । पर उसकी आज्ञा-नुसार जब मैंने जेब में से निकाल कर कागज के उस टुकड़े को देखा तो महान आश्वर्य हुआ कि वह संस्कृत का बडा वाक्य ज्यों का त्यों वहाँ लिखा हुआ है ! एक घंटा पहिले उस कागज पर उस वाक्य को लिखते समय अपनी बात की पुष्टि के लिये उसने यह भी सूचित कर दिया था कि यह व्यक्ति इसी वाक्य को अपने मन में निश्चित करेगा और यह सत्य निकला। मेरे दूसरे साथी से भी -जिनकी जेब में भी भी वैसा ही कागज़ का टुकड़ा रखा हुआ था-अपने मन में कोई वाक्य सोच लेने के लिये कहा गया। उन्होंने अरबी भाषा का एक वाक्य निश्चित किया जो कुरान से लिया गया था। पर वह अरबी वाक्य भी उनकी जेब में रखे हुये कागज के टुकड़े पर ज्यों का त्यों लिखा हुआ मिला। मेरे साथियों में से एक डाक्टर थे । उन्होंने जर्मन भाषा में लिखी गई एक वैद्यक की पुस्तक से एक वाक्य अपने मन में रख लिया, पर वह जर्मन भाषा का वाक्य भी उनकी जेब वाले कागज़ के टुकड़े पर लिखा हुआ मिला। यह सोच कर कि शायद उसने पहिली बार मुझे किसी प्रकार धोखा दे दिया हो, कुछ दिन पश्चात् फिर कुछ दूसरे साथियों को लेकर फिर मैं उस व्यक्ति के पास गया, पर इस बार भी वह अपने चमत्कार प्रदर्शन में आश्चर्य जनक रूप में सफल रहा। एक बार जब मैं हैदराबाद में था, मुझसे कुछ लोगों ने एक ऐसे ब्राह्मण के विषय में चर्चा की जो इच्छित वस्तुओं को अज्ञात स्थान से अज्ञात रूप में मँगा दिया करते थे। ये महाशय एक प्रतिष्ठित व्यापारी थे। उनसे मैंने अपना चनत्कार दिखाने को कहा । संयोगवश उन्हें एक दिन उवर हो आया। भारतवर्ष में साधारणतः यह विश्वास किया जाता है कि यदि कोई पत्रित्रात्मा किसी अस्वस्थ मनुष्य के सिर पर हाथ रख दे तो वह शीघ्र ही स्वस्थ हो जाता है। अतएव ब्राह्मण देवता मेरे पास आकर अपने सिर पर हाथ रखने का आग्रह करने लगे । मैंने स्वीकार लिया और उनसे अपना चमत्कार दिखलाने का वचन भी ले लिया। स्वस्थ होने के बाद अपना वचन पूरा करने के लिये एक दिन वे आ पहुँचे । केवल एक लंगोटी छोड़कर

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