हिन्दी गद्य साहित्य: कथा साहित्य PDF
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This document discusses Hindi prose literature, focusing on the genre of narrative literature and the development of Hindi novels. It explores several key themes, including social, regional, biographical, and historical narratives. It examines the evolution of these themes and discusses prominent authors.
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िवषय िह दी प सं. एवं शीषक िह दी ग सािह य : कथा सािह य इकाई सं. एवं शीषक िह दी उप यास लेखन : मुख वृि याँ इकाई टैग MHND_KS_M5 धान िनरी क ो. देवशंकर नवीन इकाई-लेखक डॉ. यो...
िवषय िह दी प सं. एवं शीषक िह दी ग सािह य : कथा सािह य इकाई सं. एवं शीषक िह दी उप यास लेखन : मुख वृि याँ इकाई टैग MHND_KS_M5 धान िनरी क ो. देवशंकर नवीन इकाई-लेखक डॉ. योगे र ितवारी इकाई समी क ो. रामब जाट भाषा स पादक डॉ. िशवम शमा पाठ का ा प 1. पाठ का उ े य 2. तावना 3. सामािजक उप यास 4. आँचिलक उप यास 5. आ मकथा मक और जीवनीपरक उप यास 6. मनोवै ािनक उप यास 7. ऐितहािसक उप यास 8. ितिल मी और जासूसी उप यास 9. राजनीितक उप यास 10. अि मताबोधपरक उप यास 11. िन कष MHND : िह दी िह दी ग सािह य : कथा सािह य िह दी उप यास लेखन : मुख वृि याँ 1. पाठ का उ े य इस पाठ के अ ययन के उपरा त आप— िह दी उप यास क मु य वृि य का प रचय ा करगे। िह दी उप यास म शु से िजन वृि य का िवकास आ, उनके मुख रचनाकार के बारे म जान सकगे। देश म ए अलग-अलग सामािजक-राजनीितक और सािहि यक-सां कृ ितक आ दोलन का िह दी उप यास क वृि य के िवकास म योगदान से प रिचत हो सकगे। सन् 1990 के बाद के दौर म िह दी उप यास म उ भूत नई वृि य के िवकास के बारे म भी जान सकगे। 2. तावना उप यास एक ‘आधुिनक’ सािहि यक िवधा है। इस अथ म यह सीधे-सीधे किवता, कहानी, नाटक आ द से िभ है। उप यास का ज म औ ोगीक करण और म यवग के बनने के बाद आ। प -पि क से उप यास का गहरा नाता है। ेस के अि त व म आ जाने के बाद ही इस िवधा का प िनि त आ। अपनी संरचना म उप यास ब त-कु छ ‘महाका ’ के करीब ठहरता है। इसिलए हीगेल ने उप यास को ‘म यवग का महाका ’ भी कहा है। सािह य शाि य का मानना है क महाका एक म यकालीन और इसिलए साम ती जब क उप यास एक लोकताि क सािहि यक िवधा है। उप यास अपने व प और वभाव म एक-सा नह होता है। अलग-अलग भाषा और सं कृ ितय के कारण उप यास क संरचना म भेद देखने को िमलता है। िह दी म भी उप यास का अपना एक िनजी वभाव है। कई बार एक ही उप यासकार के कई उप यास म काफ िभ ता देखी जा सकती है। िह दी म मनोहर याम जोशी के उप यास इसके अ छे उदाहरण ह। िह दी म उप यास िवधा का आगमन अनुवाद के मा यम से आ। यह अनुवाद मु यतः बां ला और अं ेजी उप यास का भावानुवाद आ करता था। उप यासकार ने अनुवाद के िलए दूसरी भाषा के िजन लेखक को चुना उनम बां ला के बं कमच , रमेशच द , चंडीचरण सेन, शरत् बाबू और रवी नाथ ठाकु र मुख ह। इन अनुवाद का भाव यह पड़ा क िह दी म उप यास लेखन के िलए िविवध वृि य और आदश का एक अ छा- खासा ढाँचा तैयार हो गया। कई बार अनू दत उप यास को िह दी का मौिलक उप यास मान िलया जाता था। भारते दु और उनक सहाियका मि लका देवी ारा बां ला से अनू दत उप यास पूण काश और च भा को भी ल बे समय तक भारते दु का मौिलक उप यास माना जाता रहा। इसम अनुवाद क अपनी मता थी। इस शु आती दौर म ही जासूसी और ितिल मी उप यास का भी िह दी म चलन शु आ। ेमच द के आगमन के बाद सामािजक उप यास क मुखता और चुरता शु ई। यानी िह दी उप यास अपनी शु आत से कई वृि य का वहन कर रहा है। दरअसल, समय-समय पर कसी िवशेष सामािजक, सां कृ ितक और राजनीितक प रि थय के कारण उप यास क कोई न कोई वृित मुख होती जाती है। MHND : िह दी िह दी ग सािह य : कथा सािह य िह दी उप यास लेखन : मुख वृि याँ 3. सामािजक उप यास िह दी उप यास क िविधवत शु आत ेमच द से ई। ेमच द के पहले के उप यासकार ने अिधकतर िश ा और उपदेश को उप यास के मु य िवषय के प म रखने क कोिशश क । भारते दु युग म अनू दत उप यास के चलन से िह दी म भी सामािजक उप यास िलखने क ओर लेखक क वृि बढ़ी। उस दौर म िह दी देश म ी-िश ा, िवधवा िववाह, वे या-वृि , ी िश ा, दहेज- था, राजनीितक चेतना, कसान का सामािजक व आ थक शोषण आ द मुख सामािजक मु े थे। यह अनायास नह था क ेमच द का पहला िह दी उप यास सेवासदन ी-के ि त सम या पर िलखा गया। ेमा म म पहली बार औपिनवेिशक िह दी देश के एक गाँव का िव तृत फलक पर िच ण कया गया। जम दारी व था के मा यम से कस तरह अं ेजी सरकार भारतीय कसान का शोषण कर रही है, इसका िवशद िच ण पहली बार इसी उप यास म आ। ेमच द ने रं गभूिम म नविवकिसत पूँजीवाद और भारतीय पर परा के को अं कत कया। इस उप यास म उ ह ने देश क त कालीन राजनीित पर भी रोशनी डाली। समाज के िविभ वग , जाितय , शहर और गाँव, औ ोगीक करण-शहरीकरण और खेती- कसानी जैसे िविवध सामािजक मु े इस उप यास म जगह बना सके । इस उप यास का नायक सूरदास िह दी उप यास का स भवतः पहला महानायक है जो जाित से दिलत है। गोदान क रचना करके ेमच द ने िह दी उप यास को िव क अ य भाषा के उप यास के समक लाकर खड़ा कर दया। इस उप यास के ायः येक पा िह दी पाठक के मन-िमजाज म बैठ गये। इस उप यास को िह दी आलोचक नामवर संह ने ‘ कसान जीवन का महाका ’ कहा है। ेमच द के साथ ही जयशंकर साद, िशवपूजन सहाय, अयो या संह उपा याय ‘ह र ध’, िव भर नाथ शमा ‘कौिशक’ आ द भी उप यास लेखन कर रहे थे। इन उप यासकार ने समाज के िविवध पहलु का वल त िच ण तुत कया। आजादी के बाद सामािजक उप यास का तेवर बदला। अब देश म िवदेशी सरकार नह , अपनी चुनी ई सरकार थी। उस सरकार से ढेरो उ मीद थ । उन उ मीद के पूरा न होने पर देश के उप यासकार ने अपनी रचना म इनका िच ण शु कया। नई कहानी के दौर म जो उप यास िलखे जा रहे थे उनम देश क नई दशा के वणन का अवसर उ प आ। ऐसे ही दौर म लेखक ने अपने अंचल िवशेष के मा यम से देश और दुिनया क समझ पाठक के भीतर भरनी चाही। इसका प रणाम यह आ क ‘आँचिलकता’ का ब त ही िनखरा आ प िह दी उप यास म देखने को िमलने लगा। 4. आँचिलक उप यास िह दी उप यास के इितहास म ‘आँचिलकता’ क िवशद चचा फणी रनाथ ‘रे ण’ु के मैला आँचल के काशन के बाद शु ई। इसका सबसे बड़ा कारण यह था क इस उप यास ने एक िवशेष े क भाषा, रीित-रीवाज, रहन-सहन का ब त ही जीव त िच तुत कया। दूसरा कारण यह रहा क वयं रे णु ने इस उप यास क MHND : िह दी िह दी ग सािह य : कथा सािह य िह दी उप यास लेखन : मुख वृि याँ भूिमका म इसे ‘आँचिलक’ उप यास क सं ा दी। अपने उप यास क अ तव तु क ओर संकेत करते ए उसम शूल और धूल, क चड़ और च दन, सु दरता और कु पता सबको िचि त कया। यानी क इस उप यास म ‘पू णया’ का अंचल अपने पूरे वभाव और िविवधता के साथ आया। यहाँ उप यास का नायक वह अंचल िवशेष है जहाँ क कथा उप यास म कही गई है। यही ‘आँचिलक’ उप यास क मु य िवशेषता होती है। एक अंचल िवशेष के ित लेखक क िन ा ही उसे उस अंचल से रागा मक सू म बाँधती है। यह रागा मकता उ कट प धारण करने पर उस अंचल के ित भावा मक रोमािनयत म भी बदल जाती है। मैला आँचल के चचा म आने के बाद आँचिलक उप यास का इितहास खोजा जाने लगा। लोग पीछे जाते-जाते ँ गए। कु छ आलोचक ने िशवपूजन सहाय के देहाती दुिनया को िह दी का पहला ेमच द के युग म प च आँचिलक उप यास बताया है। यहाँ यह यान देना होगा क रे णु ही ह िज ह ने पहली बार आँचिलकता को यान म रखकर उप यास िलखा। इसिलए रे णु को ही िह दी का पहला आँचिलक उप याकार माना जाना चािहए। रे णु के बाद आंचिलकता को के म रखकर उप यास िलखनेवाले लेखक म िववेक राय और राही मासूम रज़ा मुख है। इन दोन ने ही अपने अंचल को उप यास क कथा का नायक चुना है। िववेक राय का उप यास सोना माटी भी खासा च चत है। राही मासूम रज़ा का उप यास आधा गाँव तो िह दी उप यास के इितहास का मील का प थर माना जाता है। िह दी उप यास के आलोचक मधुरेश का मानना है क रामदरश िम और शैलेश म टयानी को भी आँचिलक उप यासकार माना जाना चािहए। 5. आ मकथा मक और जीवनीपरक उप यास िह दी म आ मकथा मक और जीवनीपरक उप यास क झलक ठाकु र जगमोहन संह के ‘ यामा व ’ म पहले- पहल देखने को िमली। जीवनी नाम से आ मकथा मक उप यास अ ेय का शेखर : एक जीवनी है। इसके काशन के कु छ समय बाद ही आचाय हजारी साद ि वेदी का उप यास बाणभ क आ मकथा का काशन आ। इस उप यास को आलोचक नामवर संह ने ‘िह दी उप यास क आ मकथा’ क सं ा दी है। िह दी म कई जीवनीपरक उप यास िलखे गए। इनम रांगेय राघव ने भ किवय और स त के जीवन को आधार बनाकर कई उप यास िलखे; िजनम र ा क बात, देवक का बेटा औरलिखमा क आँख ब त च चत ह। अमृतलाल नागर के उप यास मानस का हंस औरखंजन नयन मशः तुलसीदास और सूरदास पर िलखे गए उप यास ह।मानस का हंस जीवनीपरक उप यास म े माना गया है। संजीव ने भोजपुरी के लोक गायक-नाटककार-रचनाकार िभखारी ठाकु र के जीवन पर के ि त उप यास सू धार िलखा है। इस उप यास म िभखारी ठाकु र और उनका समय जीव त हो उठा है। इसी तरह िग रराज कशोर ने गाँधीजी के जीवन को आधार बनाकर पहला िगरिम टया उप यास िलखा है। MHND : िह दी िह दी ग सािह य : कथा सािह य िह दी उप यास लेखन : मुख वृि याँ 6. मनोवै ािनक उप यास “िह दी उप यास म ेमच द ने उप यास क अवधारणा म एक आधारभूत प रवतन का ताव कया था—जब उ ह ने उप यास म मानव च र के अ ययन पर बल दया था (िह दी उप यास का िवकास-मधुरेश)।” मानव च र म मानव मन भी शािमल होता है। मानव च र से ेमच द का आशय समाज म मानव क ि थित से था। शायद इसीिलए उ ह ने ि -के ि त उप यास क रचना नह क । ि के ि त उप यास के साथ िह दी म पहले-पहल जैने कु मार का ही आगमन आ। जैने के साथ ही इलाच जोशी ने भी मनोवै ािनक उप यास िलखे। जैने कु मार ने अपने पहले ही उप यास परख (1929) से मानव-मन को के म रखना शु कर दया था। इस उप यास म उ ह ने एक युवती के वैव य को के म रखकर उसके जीवन म घ टत और तनाव का जबरद त िच ण पेश कया है। इस म म जैने कु मार का सबसे च चत उप यास सुनीता है। इस उप यास म सुनीता के मा यम से जैने कु मार ने एक ी के घर से बाहर जाने और न जाने के को उठाया है। अपने मन और शरीर को लेकर जो सुनीता म चलता है वह इस उप यास क आ मा है। इलाच जोशी को िह दी उप यास आलोचक ने ायडवादी लेखक के प म िचि नत कया है। हालां क इलाच जोशी का मानना है क “म ायडवाद का समथक नह ।ँ...मेरे आलोचक ने मेरी रचना को ायडवादी बनाकर बदनाम कर रखा है (िह दी उप यास का िवकास)।” इलाच जोशी ायडवादी ह या नह यह िनणय क ठन है। यह ज र है क उनके उप यास के लगभग सभी नायक ज टल मानिसक बुनावट और ‘कु ठा ’ का वहन करते ए ही देखे जाते ह। मनोवै ािनक उप यासकार के म म ही अ ेय को भी रखा जाता है। अ ेय ने शेखर : एक जीवनी को घनीभूत वेदना क के वल एक रात म देखे गए ‘िवजन’ को अं कत करने का य कहा है। शेखर : एक जीवनी के मा यम से अ ेय ने वयःसि ध क मनःि थितय और भावा मक िवकास को ब त ही वाभािवकता से िचि त कया है। कृ ित और जगत के स ब ध म मानिसक के प म शेखर के िच तन से ही यह उप यास िवकिसत आ है। शेखर के मन म समाज और मनु य से स बि धत जो उठते ह वह कई दूसरे कशोर हो रहे ब के मन म भी उठते रहते ह। ले कन शेखर इन को िजस तरह अपनी बहन सर वती से साझा करता है, वह सामा य ब ा नह कर पाता है। इस अथ म शेखर को ‘यूनीक कै रे टर’ क ेणी म रखा जा सकता है। शेखर और शिश का आपसी स ब ध भी िह दी उप यास म अपनी तरह का अनोखा है। ‘नदी के ीप’ म रे खा, भुवन, गौरा और च माधव के मा यम से अ ेय ने मानव क चार अलग-अलग ‘संवेदना का अ ययन’ तुत करने क कोिशश क है। दरअसल, अ ेय िह दी म आधुिवक भावबोध को िति त करनेवाले लेखक के प म जाने जाते ह। उनके “सािह य म आधुिनकता, पर परा, भारतीयता और MHND : िह दी िह दी ग सािह य : कथा सािह य िह दी उप यास लेखन : मुख वृि याँ ि वात य क अवधारणाएँ मुखता पाती रही ह (िह दी उप यास का िवकास)।” आधुिनकता और पर परा के साथ ही उ ह ने पूरब-पि म के को भी अपनी रचना म बड़ी बारीक से िचि त कया है। अ ेय ने अपने यि गत जीवन और रचना कम के दौरान इन प रि थय को खुद भी झेला है। इसिलए इनका िच ण उनके उप यास म ब त सहजता से होता है। उप यास आलोचक मधुरेश का मानना है क ‘िह दी म...मनोवै ािनक उप यास के प म िजस धारा का िवकास आ उसने अपनी रचना- कृ ित के मूल त व भले ही यूरोप से िलए ह ले कन उसे... अं ेजी के मनोवै ािनक उप यास के समक नह रखा जा सकता है।’ यानी मनोवै ािनकता िह दी उप यास म अपनी प रि थय क सहज उपज है। यह कह से उधार ली ई नह है। शायद यही कारण है क िह दी उप यास म मनोवै ािनकता का शु िच ण ेमच द युग के अि तम दौर से ही शु हो सका। 7. ऐितहािसक उप यास आचाय रामच शु ल ने अपने सािह य के इितहास म यह िच ता क थी क “ऐितहािसक उप यास ब त कम देखने म आ रहे ह (िह दी सािह य का इितहास)।” इसका कारण शु लजी ने यह बताया क जब तक भारतीय अपने इितहास को ठीक से न समझ जाएँ तक तक उ ह ऐितहािसक उप यास नह िलखने चािहए। बां ला के इितहासिवद् राखालदास ब ोपा याय ने इितहास को के म रखकर कु छ उप यास िलखे। शु ल जी को उनके उप यास पस द थे। आचाय शु ल ने अपने इितहास म ट पणी करते ए िलखा—“ऐितहािसक उप यास कस ढंग से िलखना चािहए, यह िस पुरात विवद राखालदास ब ोपा याय ने अपने ‘क णा’, ‘शशांक’ और ‘धमपाल’ नामक उप यास ारा अ छी तरह दखा दया है।” िह दी म भी इस तरह के उप यास िलखे जाने चािहए— यह शु लजी का मानना था। इसिलए िह दी के िस सािह यकार और अपने िम — िजनको इितहास का गहरा ान था—जयशंकर साद से उ ह ने ऐितहािसक उप यास िलखने का अनुरोध कया था। जयशंकर साद ने इरावती नाम से एक ऐितहािसक उप यास िलखना शु भी कया था; अक मात िनधन हो गया, वह पूरा न हो सका। िह दी म ऐितहािसक उप यास क कमी को पूरा कया वृ दावन लाल वमा ने। वृ दावन लाल वमा “सा ा यवादी और उपिनवेशवादी इितहास-दृि के िवरोध म... वत इितहास-िववेक का उपयोग करने वाले लेखक ह (िह दी उप यास का िवकास-मधुरेश)।” उ ह ने अपने उप यास म मुसलमान क भूिमका को एक साझे संघष के प म दखाया है। िह दी आलोचक रामिवलास शमा क थापना है क सन् 1857 के वाधीनता सं ाम म िह दू और मुसलमान दोन ने ही िमलकर लड़ाई लड़ी थी। इस अथ म वृ दावन लाल वमा रामिवलास शमा के सन् 1857 के वाधीनता सं ाम से जुड़ी थापना के करीब ठहरते ह। यह अनायास नह है वृ दावन लाल वमा रामिवलास शमा के ि य उप याकार म से एक ह। दरअसल, वृ दावन लाल वमा के िलए इितहास के वल अतीत मा नह है। दूसरी तरफ वृ दावन लाल वमा वतमान पर इितहास का फू हड़ आरोपण नह करते MHND : िह दी िह दी ग सािह य : कथा सािह य िह दी उप यास लेखन : मुख वृि याँ ह। वे एक वाधीन शि शाली रा क संक पना के ित सम पत लेखक ह। इसिलए अपने ऐितहािसक उप यास म उ ह ने लोकशि के मह व को ग भीरता से रे खां कत कया है। ऐितहािसक उप यासकार म आचाय हजारी साद ि वेदी का भी नाम िलया जाता है। ले कन वे ठीक-ठीक ऐिसहािसक उप यासकार नह ह। उनके उप यास अपनी पुरानी सं कृ ित और लोक शि का अ भुत मेल है। इस मेल को वे एक ग प के ढाँचे म ढाल कर आधुिनक समय से जोड़ देते ह। आचाय चतुरसेन शा ी, िशव साद िम ‘ ’ और िशव साद संह को भी ऐितहािसक उप याकार कहा जा सकता है। िशव साद संह ने काशी के इितहास को अधार बनाकर कई उप यास िलखे ह। 8. ितिल मी और जासूसी उप यास ितिल मी और जासूसी उप यास का चलन िह दी म ेमच द युग के पहले ही हो चुका था। देवक न दन ख ी ने च का ता, भूतनाथ और च का ता स तित के मा यम से िह दी के उप यास पाठक क सं या बढ़ाई। उ ह ने अपने ितिल मी और ऐ यारी उप यास के मा यम से दूसरी भाषा के पाठक को भी िह दी सीखने पर िववश कर दया। इनके उप यास क लोकि यता पर आचाय रामच शु ल जैसे कठोर- दय आलोचक को भी कहना पड़ा क “िह दी सािह य के इितहास म बाबू देवक न दन का मरण इस बात के िलए सदा बना रहेगा क िजतने पाठक उ ह ने उ प कये उतने और कसी थकार ने नह (िह दी सािह य का इितहास)।” आचाय शु ल ने अपने सािह य के इितहास म ख ी जी के उप यास को शु सािह य क को ट म नह रखा। इसका प रणाम यह आ क बाद के दौर म जो ितिल मी उप यास िलखे गये उ ह ‘लु दी’ या ‘लोकि य’ सािह य क ेणी म रखकर िह दी उप यास के इितहास से बाहर कर दया गया। लगभग यही वहार जासूसी उप यास के साथ भी आ। जासूसी उप यासकार म मु यतः गोपालराम गहमरी का नाम िलया जाता है। देवक न दन ख ी के समय म ही गोपालराम गहमरी ने लोकरं जक उप यास के े म जासूसी उप यास क एक नई धारा का सू पात कया। गहमरी अपने उप यास जासूस नामक मािसक प म धारावािहक प म छपवाते थे। जासूस के मािलक वे खुद ही थे। इनके उप यास और प क लोकि यता से ेरणा लेकर कशोरीलाल गो वामी ने भी गु चर नाम से एक जासूसी उप यास का मािसक प िनकालना आर भ कया, क तु उसे चला नह पाए। 9. राजनीितक उप यास िह दी म राजनीितक उप यास क अलग से कोई वृि नह रही है। फर भी यशपाल के झूठा सच को एक राजनीितक उप यास कहा जा सकता है। यशपाल को भारतीय राजनीित क गहरी समझ थी। वह एक राजनीितक कायकता भी थे। यशपाल से पहले रा ल सांकृ यायन ने राजनीितक िवचारधारा से े रत उप यास िलखे। ीलाल शु ल के राग दरबारी के ँ गया।राग दरबारी एक काशन से राजनीितक उप यास अपने उ कष पर प च छोटी-सी जगह के मा यम से पूरी दुिनया क राजनीित क कथा कहता है। इस अथ म राग दरबारी को एक MHND : िह दी िह दी ग सािह य : कथा सािह य िह दी उप यास लेखन : मुख वृि याँ पक के प म पढ़ा जा सकता है। यह अनायास नह है क कई िव िव ालय के राजनीितक िवभाग म राग दरबारी पर गोि याँ होती रहती ह। राजनीित-िव ानी इस उप यास म गहरी िच रखते ह और समय-समय पर इसका अलग-अलग तरीके से िव ेषण करते रहते ह। इसी म म म ू भ डारी के उप यासमहाभोज को भी देखा जा सकता है। महाभोज एक ी लेखक ारा िलखा गया िह दी का स भवतः पहला राजनीितक उप यास है। इससे पहले यह मा यता थी क ी को राजनीित क समझ नह होती है। म ू भ डारी ने अपने इस उप यास के मा यम से इस िमथ को तोड़ा। महाभोज के ‘दा साहब’ िह दी उप यास के सबसे च चत पा म से एक ह। भी म साहनी ने सा दाियकता क राजनीित परतमस िलख कर िह दी उप यास म एक मह वपूण अ याय जोड़ा। तमस क लोकि यता का इसी से अ दाजा लगाया जा सकता है क तमस और भी म साहनी लगभग एक- दूसरे के पयाय के प म देखे जाते ह। मनोहर याम जोशी के उप यास याप को भी एक राजनीितक उप यास कहा जा सकता है। आकार म छोटा होते ए भी यह उप यास भारत म अि मतावादी राजनीितक प रदृ य को ब त ही गहराई और संवेदनशीलता के साथ रे खां कत करता है। इस उप यास का नायक एक दिलत है। इस नायक को के म रखकर मनोहर याम जोशी ने उदारीकरण के बाद उभरी भारतीय राजनीित का ब त ही ामािणक िच तुत कया है। 10. अि मताबोधपरक उप यास िह दी उप यास के इितहास म कृ णा सोबती, म ू भ डारी और उषा ि य वदा के आगमन के साथ ही ी लेखक ारा िलिखत उप यास का युग शु आ। हालां क ये तीन ही अपने आप को अि मतामूलक सािह य से अलग बताती ह। सन् 1980 के बाद के दौर म ी उप याकार क सं या बढ़ी। ममता कािलया, भा खेतान, मृदल ु ा गग, नािसरा शमा आ द ने इसी दौर म या थोड़ा पीछे अपने लेखन क शु आत क । सन् 1990 के उदारीकरण के बाद म देश म अि मतामूलक राजनीित के उभार के साथ ही िह दी उप यास म भी प रवतन देखने को िमला। मै ेयी पु पा, गीतांजिल ी, िच ा मु ल आ द ने अपने नारीवादी उप यास के मा यम से िह दी उप यास को समृ कया। आ दवासी िवमश के अ तगत संजीव, रणे , म आ माझी आ द ने मह वपूण उप यास िलखे। संजीव का जंगल जहाँ शु होता है, रणे का लोबल गाँव के देवता, म आ माझी का मरं ग गोड़ा नीलक ठ आ आ द ने आ दवािसय क जल-जंगल-जमीन क लड़ाई को सािहि यक जगत म मह वपूण ह त ेप क तरह पेश कया। दिलत िवमश के अ तगत भी कु छ उप यास िलखे गए। ले कन दिलत रचनाकार का यान आ मकथा िलखने पर यादा रहा, इसिलए वे उप यास के े म मह वपूण योगदान न दे सके । MHND : िह दी िह दी ग सािह य : कथा सािह य िह दी उप यास लेखन : मुख वृि याँ पयावरण को के म रखकर भी िह दी म कु छ अ छे उप यास िलखे गये ह। इन उप यास म वीरे जैन का डू ब, िवनोद कु मार शु ल के दीवार म एक िखड़क रहती थी एवं एक चु पी जगह और राजू शमा के हलफनामे को रखा जा सकता है। 11. िन कष िह दी उप यास अपनी शु आत से ही कई वृि य को िवकिसत करता चल रहा है। समय, राजनीितक- सामािजक और सं कृ ितक प रि थय के कारण कु छ वृि याँ सीधे-सीधे दखने लग तो कु छ का िवकास ब त बाद म आ। कु छ उप यासकार ने ऐितहािसक पा को उप यास का च र बनाया तो कु छ ने िमथक य च र को भी उप यास का पा बनाने से परहेज नह कया। काशीनाथ संह ने कृ ण के जीवन को आधार बनाकर उपसंहार नाम से एक उप यास िलखा है। इस उप यास का शीषक अपने आप म ज ं ना मक है। शायद यह वह समय है जब िह दी उप यास अपने िश प को पूरी तरह से बदल चुका है। इसिलए यह उपसंहार िसफ कृ ण के जीवन का ही नह है, िह दी उप यास का भी है। MHND : िह दी िह दी ग सािह य : कथा सािह य िह दी उप यास लेखन : मुख वृि याँ