अध्याय अर्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी - पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ PDF
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Summary
यह दस्तावेज़ अर्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी, पदार्थ, युक्तियाँ और सरल परिपथ पर जानकारी देता है। इसमें अर्धचालक, धातुओं और कुचालकों के वर्गीकरण और उनके ऊर्जा बैंड पर चर्चा की गई है। इस दस्तावेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से संबंधित पाठ्यक्रमों के छात्रों को लाभ होगा।
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## अध्याय अर्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी - पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ ### **# धातुओ, चालको तथा अर्धचालको का वर्गीकरण :-** - चालकता के आधार पर - धातु । चालक - इनकी चालकता बहुत अधिक होती है। - ~ (10<sup>2</sup>-10<sup>8</sup>) Ωm - अर्धचालक - इनकी चालकता धातुओ तथा अच...
## अध्याय अर्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी - पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ ### **# धातुओ, चालको तथा अर्धचालको का वर्गीकरण :-** - चालकता के आधार पर - धातु । चालक - इनकी चालकता बहुत अधिक होती है। - ~ (10<sup>2</sup>-10<sup>8</sup>) Ωm - अर्धचालक - इनकी चालकता धातुओ तथा अचालक के मध्य की होती हैं। - ~ (10<sup>5</sup>-10<sup>6</sup>) Ωm - कुचालक । वि.रोधी - इनकी चालकता बहुत कम होती है। - ~ (10<sup>11</sup>-10<sup>19</sup>) Ωm - प्रतिरोधकता - इनकी प्रतिरोधकता उनकी प्रतिरोधकता धातुओं वू अचालक के मध्य की बहुत अधिक होती है। - Pr (10<sup>2</sup>-10<sup>8</sup>) Ωm - इनकी प्रतिरोधकता बहुत कम होती है। - Pr (10<sup>2</sup>-10<sup>8</sup>) Ωm - इनकी प्रतिरोधकता बहुत अधिक होती है। - Pr (10<sup>11</sup>-10<sup>19</sup>) Ωm - अर्धचालक = - तात्विक अर्धचालक - उदा. जर्मेनियम (Ge), सिलिकन (si) - यौगिक अर्धचालक : - - अकार्बनिक - Ex cds, GaAs, case, Inp - कार्बनिक - - उदा. एन्थ्रॉसीन, मादित (Dopping) थैलोस्थानीस - कार्बनिक बहुलकू - उदा. पौला रनोलीन, पॉलीथायोकीन ### 2. ऊर्जा बैन्ड के आधार पर - - धातु । चालक -चालक वे ठोस पदार्थ होते हैं जिनमें चालन बैण्ड (E) व संयोजी बैण्ड (Ev) का अतिव्यापन होता है। - अर्धचालक - अर्धचालक वे पदार्थ होते है जिनमें वर्जित ऊर्जा अन्तराल का मान कुचालको से कम लेकिन चालको से ज्यादा होता है। - अचालक / कुचालक - कुत्चालक वे पदार्थ होते है जिनमें सयोंजी बैण्ड (Ev) व चालन बैण्ड (E) के मध्य स्थित वर्जित ऊर्जा अन्तराल बहुत ज्यादा होता है। | | चालक | अर्धचालक | अचालक / कुचालक | |-------------|-----------|--------------|-----------------------| | ऊर्जा बन्ड | चालन बैड | | | | | संयोजकता | Eg<3eV | | | | बेंड (Ev) | संयोजकता | Eg>3eV | | | | बेंड (Ev) | | | | | | संयोजकता | | | | | बेंड (Ev) | | | | | | | ऊर्जा अन्तerाल | Eg < 3eV | Eg > 3eV | Eg >3eV | - NOTE: - परम शुन्य ताप पर अर्धचालक कुचालक की तरह व्यवबर करते है। - कुछ ऊष्मीय ऊर्जा पाकर संयोजी इलेक्ट्रॉल, चालन बैण्ड में आ जाते है। जिसमे अर्धचालक, चालको की तरह व्यवहार करते हैं। ### अर्धचालक : - बैंग अर्धचालक यह अर्थचालको का एक शुद्ध रूप हैं। - Ec Ec - Ev Ev - T = ok ताप पर - परम शुन्य ताप पर वि.चालन के लिए मुक्त e-, कुचालक की तरह व्यवहार करते हैं - T > ok ताप पर - इस अर्धचालक के ताप में वृद्धि करने पर कुछ सहसंयोजक ९- सहसंयोजक बंध तोड़कर मुक्त हो जाते है फलस्वरूप यह अर्धचालक चालकता दर्शाते है। - सहसंयोजी बन्ध में से एक e- के बाहर निकल जाने पर रिक्तता उत्पन्न हो जाती है। - इस रिक्तता को Hole / विवर / कोटर कहते है| - यह विवरा एक प्रभावी धनात्मक आवेश की तरह व्यवहार करता है। - नौज अर्धचालको में मुक्त हनों - नों की सस्म) (ne), विवर की संख्या (nm) के बराबर होती हैं। - अथात् - ne = n = ni - ni = nixni - n= nhx ne- - जहाँ ni = नैजवाहक सान्द्रता - NOTE: नैल आवेश वाहक घनत्व ताप एवं अर्धचालक पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है। ### 2. अपद्रव्यी, अर्धचालक - अर्धचालक की चाबूकता में वृद्धि करने के लिए गूँज अर्धचालक में अशुद्धि मिलाने की प्रक्रिया को मादन (doping) / अपमिश्रण कहते है। तथा इस प्रकार मादित (अपद्रवी ) अर्धचालक तथा अशुद्धि परमानु को मादक । अपमिश्रक कहते हैं। - अपमिश्रक पदार्थ की विशेषताएँ - अप्रमिश्रक पदार्थ के जालक को विकृत ना करे। - अपमिश्रक के परमाणु एवं अर्धचालक पदार्थ के परमानु का आकार लगभग समान होना चाहिए। - सिलिकनू अथवा जर्मेनियम जैसे चतुसंयोजी अर्धचालको के मादन के लिए दो प्रकार की अशुद्धि उपयोग की जाती है- - त्रि- संयोजी Ex. - B, Al, Gay In Th - पंच-संयोजी Ex. - P, AS, Sb, Bi - n-प्रकार का अर्धचालक :- शुद्ध अर्धचालक + पंच-संयोजी (Ex. P, AS, sb,Bį) -> n प्रकार का अर्धचालक - Ge P ↓ ↓ ↓ Ec दाता परमानु स्तर Ev - (दाता प्रकार की अशुद्धि) - ज़बू एक चतुसंयोजी नैजू अर्धचालक में पंच का संयोजी तत्व की अशुद्धि मिलाने पर n प्रकार यदि अर्धचालक, प्राप्त होता है। - Ge में फॉस्फोरस परमाणु (अशुद्धि) बहुत कम मात्रा में मिला दी जाये तो इनके चारों तरफ परमाणु के ९- उपलब्ध होते हैं। फॉस्फोरस (१): पाँचू सयोंजकता Geag Ge Ge होते हैं। लेकिन निकट में स्थित परमाणुओं में प्रत्येक के पास चार हा ही होते है। अत: पंचसंयोजी में स्थित परमाणुओं से सहसंयोजी आबन्ध बना लेता है लेकिन इसका पाँचवा - मुक्त रहता हैं। - यह पाँचवा e- अन्य चार e-नों की तुलना में फॉस्फोरस से बहुत ही दुर्बल बंध दुगरा होता हैं। - इस प्रक्रिया में प्रत्येक अशुद्धि परमाणु अर्धचालको को e- दान करता है। इसलिए इस प्रकार की अशुहियों को दात्ता परमाणु एवं इस प्रकार की अशुहियों को दात्ता कहते हैं। - इस प्रकार पंच सयोजी तत्व की अशुद्धि मिलाने पूंच सयोजी तत्व की अशुद्धि मिलाने से नैज अर्धचालक में - बहुसंख्यक आवेश वाहक जबकि विवर | Hole अल्पसंख्यक की तरह कार्य करते हैं। - n प्रकार के अर्धचालक के लिए - +ne->>>nnt→ अल्पसंख्यक बहुसंख्यक - p प्रकार, का अधचालक :- शुद्ध । नैन अर्धचालक + त्रि - संयोजी (चतु सयोजी) + (Ex.→ B, Al, Ga, In) -> प्रकार का अर्धचालक - Cre Al ↑ ↑ Ec गारी e स्तर Ev अशुद्धि परमाणु - Hole - जबू एक चतुसंयोजी नेज अर्धचालक में नि- समोजी तत्व की अशुद्धि मिलायी जाती है तब P प्रकार का अर्धचालक प्राप्त होता है। - इस प्रकार के अर्धचालक (१ प्रकार), में मुक्त हॉलो की सख्या बहुत अधिक होती हैं। अत: इसमे मुक्त -नों की संख्या से हॉल बहुसंख्यक आवेश वाहक जबकि ९- अल्पसंख्यक की तरह कार्य करते है। - P प्रकार के अर्धचालक के लिए-- >>>ne-t बहुसंख्यक अल्पसंख्यक ### # P-N सन्धि (P-N Junction) - जांभ प्रकार के अर्धचालक N प्रकार के अर्धचालक से इस प्रकार जोड़ दिया जाए कि इनकी सम्पर्क सतह पर क्रिस्टल की संरचना सतत् बनी रहे तो P-N सधि तथा इस प्रकार प्रकार की युक्ति P-N सान्ही डायोड कहलाती है। - जब P-N संधि में अर्धचालकों को एक दूसरे के सम्पर्क मे लाते है जिसके कारण P-N सान्ही पर एक उदासीन परत बन या घासी क्षेत्र (Depletion region) कहते हैं। इसके कारण सन्धि तल पर एक अनाकारिकटत. वि. क्षेत्र का निर्माण होता हैं जिसकी दिशा P प्रकार के अर्धचालक से N प्रकार के अर्धचालक की ओर होती हैं। - रोधिका विभवः - P-N संधि में क्षेत्र से P- क्षेत्र की e- और हनों की गति को रोकने का प्रयास करता है। - हॉल विसरन - इस आन्तरिक वि. क्षेत्र के सम्पर्क कारण जो विभव उत्पन्न होता है, उसे विभव कहते हैं। - इसका मान Vi = Eixd - वहाँ d अवक्षय परत की मोटाई ### P-N संधि का निर्माण विसरख विधि दुवारा किया जाता है। - P-N संधि डायोड का प्रतीक चिन्ह - - हैतीर का चिन्ह P से त की और ### P-N सन्धि निर्माण में प्रक्रियाएँ - - विसरण (ⅰ) - अपवाह (11) ### अवक्षय परत का निर्माण:- - चूँकि N प्रकार के अर्धचालको में e- बहुसंख्यक जबकि P प्रकार के अर्धचालक में हॉल बहुसंख्यक होते हैं। अतः P तथा N परमाणु की सांद्रता के कारण P फलक से e- हॉल N से विसूरित होते हैं। अतः P फलक से e- की ओर विसूरित होने के कारण ऋणात्मक आवेश वाहको की प्रवणता का गति की ओर विसरित होते हैं। - इस प्रकार आवेश वालको के वितरण से अविश के फलक पर जबकि P फलके पर धनात्मक आवेशु की परत लग जाती है। - इन दोनो फलको पर निर्मित इस परत को अवक्षय परत कहते हैं। - आंतरिक विः क्षेत्र के कारण आवेश वाहको की गति को अपवाह तथा प्राप्त धारा को अपवाह धारा कहते हैं। - अपवाह धारा की दिशा विसरण धारा के विपरीत होती है। - प्रारम्भ में वि. क्षेत्र का मान कम होने के कारण अपवाह धारा का मान, विसरण धारा से कम होता है! लेकिन जैसे आन्तरिक वि. क्षेत्र में वृद्धि होती है अपवाह धारा का मान विसरण धारा से अधिक हो जाता हैं। - अग्रदिशिक बायस में P-N सांध, डायोड (Forward biasing )→ - जब P-N सन्धि का P सिरा बाहय बैटरी (कोल्टता) धनात्मक सिरे एवं ~ सिरा बैटरी के ऋणात्मक सिरे से जोड़ा जाए तो इस स्थिति को अग्रदिशिक बायसित कहते हैं। + P N वोल्टमीटर (MA) मिली अमीटर स्विच - इस स्थिति में संधि का P सिरा ~ सिरे की तुलना में निम्न विभव पर होता है। - इस प्रकार के बायसीकरण में आन्तरिक वि. क्षेत्र दोनो एक ही दिशा में होते है। - अवक्षय परत की चौड़ाई बढ़ जाती है। - इस स्थिति में संधि तल कुचालक की तरह कार्य करता है। - P-N संधि जुयोड के इस प्रकार के बायसीकरण में पश्च धारा (उत्क्रमित धारा) का मान बहुत कम होने के कारण माइक्रो- अमीटर का प्रयोग किया जाता है। - P-N संधि डायोड का पश्चदिशिक बायस मे V-I अभिलाक्षणिक वक्र :- - वोल्टमीटर I (MA) - A 'नो विभव' (0) "कट इन विभव' V - B→ अग्र अभिलाक्षणिक वक्र P-N संध डायोड़ का - ग्राफ में विभव के कम मान प्रोधिका भी कम होती है। लेकिन एक नियत विभव पर अग्र धारा का मान तेजी से बढ़ता है। या जी विभव कहलाता है। - पश्चदिशिक बायस (उत्क्रम अभिनति) में P-N सान्ही डायोड {Reverse biasing } → - जब P-N संधि का P सिरा बाध्य बैटरी के सहणात्मक सिरे एवं ~सिरे से धनात्मक बैटरी के ऋणात्मक सिरे से जोड़ा जाए तो इस स्थिति को पश्चदिशिक बायसित कहते है। - वोल्टमीटर V + P N (HA) माइक्रो अमीटर + स्विच - इस स्थिति में संधि का P सिरा ~ सिरे की तुलना में निम्न विभव पर होता है। - इस प्रकार के बायसीकरण में आन्तरिक वि. क्षेत्र दोनो एक ही दिशा में होते है। - अवक्षय परत की चौड़ाई बढ़ जाती है। - इस स्थिति में संधि तल कुचालक की तरह कार्य करता है। - P-N संधि जुयोड के इस प्रकार के बायसीकरण में पश्च धारा (उत्क्रमित धारा) का मान बहुत कम होने के कारण माइक्रो- अमीटर का प्रयोग किया जाता है। - P-N संधि डायोड का पश्चदिशिक बायस मे V-I अभिलाक्षणिक वक्र :- - भंजन विभव V<sub>r</sub> I (MA) - देहली वोल्टता । कट हुन वोल्टता : रंग वीरता के वाढ डायोड की बायस में थोड़ी सी ही वृद्धि करने से डायोड धोरा तर घोताक के रूप से बढे, देहली वोल्टता कहलाती है। - NOTE:- कट इन वोल्टता - Сле 0.2volt - Si 0.7volt - वह विभव जिसके अत्यल्प मानू मे वृद्धि से उत्क्रमित धारा का मान तेजी से बढने लगती है , भजन विभव (Break down) कहलाता है। - NOTE: - P-N संधि डायोड एकदिशिक युक्ति हैं। - यह सुक्ति ओम के नियम का पालन नहीं करती है। अत: यह एक अरेखीय युक्ति हैं। - V-I वक्र का ढाल प्रतिरोध को दर्शाता है। - डायोड प्रतिरोध : - अग्र बायस Vr पश्च बायस - अग्र गतिक प्रतिरोध - - RE = ΔV<sub>E</sub> /ΔI<sub>E</sub> = अग्र विभव में अल्प परिवर्तन अग्र धारा में संगत परिवर्तन - अगू स्थैतिक प्रतिरोध- - (किसी क्षण विशेष पर) - R<sub>e</sub> = V<sub>E</sub> / I<sub>F</sub> - पश्च गतिक प्रतिरोध - R<sub>e</sub> = ΔV<sub>c</sub> /ΔI<sub>c</sub> - पश्च स्थैतिक प्रतिरोध- (किसी क्षण विशेष पर) - R<sub>o</sub> = Vr / Ir ### * सन्धि डायोड का दिष्कारी के रूप में उपयोग । अनुप्रयोग किया जाता है। ### # दिष्वरण :- प्रत्यावर्ती मान को दिए मान में परिवर्तित करने वाली प्रक्रिया को दिष्टकरण कहते हैं। - यह प्रक्रिया जिस सुक्ति द्वारा प्रवासू किया जाता है, उसे दिष्टकारी कहते है। - दिष्टकरण AC मान युक्ति DC मान - दिष्टकारी के प्रकार - अर्द्धतरंग दिष्टकारी (HWR) - पूर्णतरंग दिष्टकारी (FWR) ### 1. अर्थातरंग दिष्टकारी (HWR):- ऐसा दिष्टकारी जो प्रत्यावूर्ती मानू के आधे भाग को DC में परिवर्तित करता है, अर्द्धतरंग दिष्टकारी कहलाता है। - IP A स्त्रोत ○→T/2=+ C E-T/2T= A RA RL - FB- ○丁/2= T/2T= D ### AC स्त्रोत से ट्रान्सफार्मर जुड़ा है जिसमें डायोड व लोड प्रतिरोध (RL) जुड़ा है। - I/P (निवेशी) TA Diode RB O/P (निर्गत) T ### कार्यविधि :- AC माल के प्रथम धनात्मक अद्ध चक्र में A व B बिंदु पर क्रमश: धनात्मक व ऋणात्मक ध्रुवता है जिससे डायोड का P टर्मिनल धनात्मक न टर्मिनल ऋणात्मक से जुड़ा होता है। सुत: यह ड्याड अग्रवायसिन (FB) हो जाता है। - गयोड अग्रबायसितू होने के कारणू चालन अवस्था मे आओ जाता है जिससे C से D लोड प्रतिरोध RL में धारा ओर प्रवाहित होती हैं। तथा RL पर विभवान्तर हात उत्पन्न हो जाता है। - प्रथम प्रहणात्मक अर्द्धचक्र में A व B पर क्रमश: ऋणात्सूक वे धनात्मक ध्रुवता आ जाती हैं। जिससे जयो का P टर्मिनलू तथा N टर्मिनल धनात्मक से ऋणात्मकू जुड़ा होता है। अत: यह डायोड पश्चबायसिन (RB) हो जाता हैं। - पश्च बायसित में प्रतिरोध बहुत अधिक होने के कारणू डायोड अन्चालन अवस्था मे आ जाता हैं। - इस प्रकार की लौडओ गतराम प्रवाहित होल है। है। तथा AC मान के आधे भारत की प्ट मान के रूप में परिवर्तित किया जाता है ### 2. पूर्ण तरंग दिष्टकारी:- [FWRJ ऐसा दिएरकारी जो प्रत्यावर्ती मान के पूर्ण भाग / मानको दिष्ट मान में परिवर्तिद करता है।, पूर्ण तरंग दिष्टकारी कहलाता है। - FWR परिपथ = ODPB D T/T DIA RB DFB C DFB E RL F D2FB B D Θεσ/160 D₂ D2RB T/2→TD2+FB DAPB D₂→ FB 2 T 3T/9 1 10/9 - P1 के कारण D₂ के कारण 1 D1 के कारण T/21 T 37/2 Dz के कारण T - AC स्त्रोत की मध्यनिकासी हान्सफार्मर से है जिसके A व B सिरे दोनो डायोड के P टर्मिनिल से जोड़ दिया जाता है। जबकि N सिरे लौड़ प्रतिरोध (RL) से बिन्दु B पर जुड़े रहते हैं। - लोड सिर प्रतिरोध के E सिरे को मध्वनिकासी हान्सफार्मर के ~ सिरे से मध्वनिकासी जोड़ दिया जाता है। - कार्यविधि :- AC स्त्रोत के प्रथम धनात्मक चक्र में से सुज व डायोड मू का P टर्मिनल Dive ~ सिरा मध्य सिरे E से विभव होता है। जिससे डायोड D1 अग्रबायसित हो जाता है। जिस पर शुन्य धारा प्रवाहित हो जाती है। जिससे डायोड D1 अग्रबायसित हो जाता है। कारण धाराक लोड प्रतिरोध E सिरे की ओर प्रवाहित होती है। - प्रथम धनात्मक अर्द्धचक्र में ज्योड रुका P. टर्मिनल ऋणात्मक जबकि Pr टर्मिनल पर होने के कारण डायोड D₂ शुन्य विभव इस समयान्तराल (07/2) में अचालन अवस्था में रहता हैं। तथा पश्चबायासत अवस्था कारण धारा प्रवाह नही होता है। - प्रथन ऋणात्मक अर्धचक्र में डायोड D1 पश्चबायसित (RB) तथा डायोड D₂ अंग्रेबायसित - डायोड है। जिससे डायोड D₂ असंचालन व झुयोड Da चालन अवस्था रहते हैं। - डायोड D2 अग्र बायश्चित होने के कारण F प्रतिगंध में धारा लोड E सिर की ओर प्रवाहित होती है। - छूड्स तयप्रकार यह प्रक्रिया चलती रहती । तथा प्रत्येक स्थिति में लीड E सिर की ओर प्रवाहित होती है। - प्रत्येक स्थिति में लीड प्रतिगंध में द्वारा प्रवाह की दिशा एक अत? समान बनी रहती हैं। - प्रत्यावतील मानला के पूर्ण भाग को दिष्ट दिष्ट इमान मान में परिवर्तित कर लिया जाता है। - प्रतिप्रसंतृप्ति धारा :- पश्चदिष्शिक बायसू में परिवर्तन के साथ बायस बोल्टता में धारा लगभग श्चिर बनी रहती हैं. यह धारा प्रतीपसंतृप्ति धारा कहलाती हैं। - फिल्टर :- पूर्ण तरंग दिष्टकारी से प्राप्त धारा या विभव एकदिशिक प्रकृति का तरंग रूप नियत होता है। लेकिन इसका उर्मिकाएँ प्रकृति का नियत नहीं रहता हैं। अर्थात युक्त परिणाम प्राप्त होती हैं। - वे परिपन जिनकी सहायता से प्रत्यावर्ती घटको को दिष्ट विभव से पृथक कर शुद्ध दिष्ट विभव प्राप्त किया जाता है, फिल्टर कहलाता है। - I/P दिष्टकारी ०/९ एकदिशिक शुद्धात्मान उर्मिकाएं युक्त (ripple) एकदिशिक मान-नियत जुब जब पौरवर्तित - फिल्टर परिपथ :- - I/P AC दिष्कारी शुद्ध DC मान ER C फिल्टर ==End of OCR for page 23==