राजस्थान CET Graduation Level Past Paper PDF
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This document is a set of notes on the Indian National Movement, Rajasthan History, and Culture, designed for the Rajasthan CET (Graduation Level) exam by INFUSION NOTES. The notes provide details about various topics, such as important historical events, social and religious reform movements, and the political awakening of Rajasthan.
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राजस्थान CET Graduation Level राजस्थान कर्मचारी चयन आयोग भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन + राजस्थान का इततहास + संस्कृतत प्रस्तावना प्रिय पाठकों, िस्तुत नोट्स “राजस्थान CET (स्नातक स्तर) को एक प्रिभिन्न अपने अपने प्रिषयों में ननपुण अध्यापकों एिं सहकन...
राजस्थान CET Graduation Level राजस्थान कर्मचारी चयन आयोग भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन + राजस्थान का इततहास + संस्कृतत प्रस्तावना प्रिय पाठकों, िस्तुत नोट्स “राजस्थान CET (स्नातक स्तर) को एक प्रिभिन्न अपने अपने प्रिषयों में ननपुण अध्यापकों एिं सहकनमियों की टीम के द्वारा तैयार प्रकया गया है / ये नोट्स पाठकों को राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्म , जयपुर (RSSB) द्वारा आयोजित करायी िाने िाली परीक्षा “राजस्थान CET (स्नातक स्तर)” की परीक्षा में पूणण संिि मदद करें गें / अंततः सतकम प्रयासों के बावजूद नोट्स र्ें कुछ कमर्यों तथा त्रुटियों के रहने की संभावना हो सकती है / अतः आप सूचच पाठकों का सुझाव सादर आर्ंटत्रत हैं/ प्रकाशक: INFUSION NOTES ियपुर, 302029 (RAJASTHAN) मो : 9887809083 ईमेल : [email protected] िेबसाइट : http://www.infusionnotes.com WhatsApp करें - https://wa.link/29dvxg Online Order करें - https://rb.gy/8kw806 र्ूल्य : ` संस्करण : नवीनतर् क्र. सं. अध्याय पृष्ठ सं. राष्ट्रीय आंदोलन 1. भारतीय इततहास की महत्त्वपूर्ण घटनाएं 1 2. 19 वीं एवं 20 वीं शताब्दी में सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन 32 3. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन – ववर्भन्न अवस्थाएं 39 4. दे श के ववर्भन्न क्षेत्रों के योगदानकताण एवं योगदान 57 5. 1857 की क्रांतत में रािस्थान का योगदान 68 6. रािस्थान में ककसान व िातत आंदोलन 73 7. रािनीततक िनिागरर् 81 8. प्रिामण्डल आंदोलन 86 9. रािस्थान का एकीकरर् 95 10. स्वतंत्रयोत्तर राष्ट्र र्नमाणर् – राष्ट्रीय एकीकरर् 97 11. राज्यों का पुनगणठन 100 12. नेहरू युग में सांस्थार्नक र्नमाणर्, ववज्ञान तकनीकी का ववकास 101 रािस्थान का इततहास 1. प्राचीन सभ्यताएं 103 2. रािस्थान के इततहास की महत्वपूर्ण ऐततहाजसक घटनाएं 108 3. प्रमुख रािवंश 113 4. प्रमुख रािवंशों की प्रशासर्नक व रािस्व व्यवस्था 159 5. सामाजिक – सांस्कृततक आयाम 162 कला एवं संस्कृतत 1. स्थापत्य कला की प्रमुख ववशेषताएं 165 2. कलाएं, चचत्रकलाएं अऊर हस्तजशल्प 199 3. रािस्थानी साहहत्य की महत्वपूर्ण कृततयााँ एवं क्षेत्रीय बोजलयााँ 216 4. मेले एवं त्यौहार 228 5. लोक संगीत एवं लोक नृत्य 239 6. रािस्थानी संस्कृतत, परम्परा एवं ववरासत 260 7. वेशभूषा एवं आभूषर् 265 8. रािस्थान के धार्मिक आंदोलन 268 9. लोक दे ववयााँ एवं लोक दे वता 276 10. महत्वपूर्ण ऐततहाजसक स्थल 286 11. रािस्थान के प्रमुख व्यचिव 292 राष्ट्रीय आंदोलन जो सवतप्रथम 1509 ई. में भारर् आया और उसी समय (1509 ईस्वी) उसिे कोचीि में पुर्तगाललयों के प्रथम - दुगत अध्याय – 1 का निमातण करवाया । भारतीय इततहास की महत्वपूर्ण घटनाएं 1509 ई. में अल्बुककत भारर् में पुर्तगाललयों का गवितर नियुि हआ। यूरोपीय कम्पननयों का आगमन 1510 ई. पुर्तगाललयों िे गोवा के बन्दरगाह पर अनिकार कर ललया, जो उस समय बीजापुर के यूसुफ आडदल शाह सुल्ताि भारत में आने वाली यूरोपीय कम्पननयों का क्रम के अिीि था। पुर्तगाली→डच→ब्रिटिश→डेनिश→फ्ाांसीसी→ स्वीडस 1511 ई. में अल्बुककण ने मलक्का और 1515 ई. में फारस वास्कोडिगामा की खाड़ी में अवस्थस्थत हमुणज बन्दरगाह पर अनिकार कर यूरोपीय शनियों में पुर्ग त ाली कम्पिी िे भारर् में सबसे ललया । पहले प्रवेश टकया 1 भारत में आने के ललए इन्होंने नये अल्बुककत िे अपिे क्षेत्र में सती प्रथा बन्द करवा दी। समुद्री मागण की खोज की 1 पुर्तगाली व्यापारी वास्कोडडगामा अल्बुककण राजा राममोहन राय का पूवण गामी था। िे 17 मई 1498 में भारर् के पश्चिमी र्ि पर अवस्थिर् पुर्तगीजों को भारर्ीय स्थियों से टववाह के ललए अल्बुककत बांदरगाह कालीकि पहुँ चकर की 1 बन्दरगाह पर कथडाबू िे प्रोत्साडहर् टकया । िामक िाि पर पहुँ चा | अल्बुककत िे पुर्तगीज सेिा में भारर्ीयों की भर्ी प्रारम्भ की। वास्कोडडगामा का स्वागर् कालीकि के शासक जमोररि िे ननन्हो िी. कुन्हा (1529-1538) टकया1 पुतग ण ाललयों के भारत आगमन से भारत एवं यूरोप अल्बुककत के बाद दूसरा महत्वपूणत पुर्ग त ाली गवितर निन्हो के मध्य व्यापार के क्षेत्र में एक नये युग का सूत्रपात डी. कुन्हा था। लजसिे 1529 ई. में भारर् में कायत भार ग्रहण हुआ1 टकया । भारर् आिे और जािे में हए यात्रा व्यय के बदले में उसिे कुन्हा ने 1530 ई. में शासन का प्रमुख केन्द्र कोचीन के 60 गुिा अनिक िि कमाया 1 िीरे – िीरे अन्य पुर्ग त ाली स्थान पर गोवा को बनाया। व्यापारी भारर् में आिे लगे भारर् में कालीकि, गोवा, दमि कुन्हा िे दमि, सालसेि, चौल, बम्बई सेन्टिॉमस, मद्रास दीव और हगली के बन्दरगाहों पर पुर्ग त ाललयों िे अपिी और हगली में पुि: अपिे केन्द्र िाटपर् टकये। व्यापाररक कोडियाां िाटपर् की कुन्हा िे हगली और सैिथोमा मद्रास के पास पुर्तगाली नोट :- पेट्रो अब्रेज केब्रोल भारत पहुुँचने वाला दूसरा बस्थस्तयों को िाटपर् टकया 1 पुतणगाली था। भारत में प्रथम पादरी फ्ांलसस्को जेववयर का आगमन 1502 ई. में वास्कोडडगामा पुिः भारर् आया था। पुतणगाली गवनणर मावटिन डिसूजा 1542-1545 के समय पुर्तगाली :- 1503 में पुतणगाललयों ने अपनी पहली फैक्ट्ट्री हुआ 1 कोचीन में स्थापपत की थी। पुर्तगाललयों िे डहन्द महासागर से होिे वाले आयार् नियातर् दूसरी फैक्ट्री की िापिा 1505 ई. में कन्नूर में की गई 1 पर एकानिकार िाटपर् कर ललया 1 फ्ांलसस्को िी. अल्मोड़ा [1505 - 1509] मुग़ल शासक अकबर के दरबार में दो पुर्तगाली इसाई यह भारत में प्रथम पुतणगाली गवनणर / वायसराय बनकर पादररयों मोंसरे ि र्था फादर एकाब्रबवा का आगमि हआ 1 आया था। इसिे 1509 में नमस्र, र्ुकी व गुजरार् की सांयुि भारत में तम्बाकू की खेती, जहाज ननमाणर् एवं तथा सेिा को परालजर् कर दीव पर अनिकार कर ललया1 तप्रविं टिंग प्रेस की शुरुआत पुतणगाललयों के आगमन के इसे पुर्तगाली सरकार िे आदेश डदया था टक यह भारर् में पश्चात् हुई 1 ऐसे दुगत का निमातण करे लजिका उद्दे श्य बस केवल सुरक्षा पुतणगाललयों ने ही सन् 1556 में प्रथम तप्रविं टिंग प्रेस की ि होकर डहन्द महासागर के व्यापार पर पुर्तगाली नियांत्रण स्थापना की 1 िाटपर् करिा भी हो (उसके द्वारा अपनाई नीतत नीले या 1661 ई. में र्त्कालीि ब्रिटिश सम्राि (अांग्रेज) चार्ल्त डिर्ीय शांत जल की नीतत कहलाई ) िे पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीि से टववाह कर ललया और यह पॉललसी हहन्द महासागर के व्यापार पर पुतणगीज पुर्तगाललयों िे चार्ल्त डिर्ीय को मुम्बई िीप दहेज में दे ननयंत्रर् स्थापपत करने के ललए अल्मेिा ने शुरु की थी। डदया। पुर्तगाल की राजिािी –ललसवि महत्त्वपूर्ण तथ्य अल्ांसो िी. अल्बुककण (1509 - 1515) बांगाल के शासक ‘मसूद शाह’ िारा पुर्ग त ाललयों को चिगाुँव भारर् में पुर्ग त ाली शनि की वास्तटवक िींव डालिे वाला और सर्गाुँव में व्यापाररक कम्पनियाुँ खोलिे की अिुमतर् अल्ाांसो डी. अल्बुककत था। दी गई। 'अकबर' की अिुमतर् से हगली में कम्पिी की िापिा की गई । https://www.infusionnotes.com/ 1 शाहजहाुँ िे पुर्तगाललयों के अनिकार से 'हगली' को छीि ‘1690 ई.’ के बाद पुलीकि के बदले िागपट्टिम डचों का ललया था। मुख्य केन्द्र बि गया। िच मुख्यतः मसालों, नील, कच्चे रे शम, वस्त्र, अफीम व काटण ज आमेिा काडफला व्यवस्था :- यह समुद्री व्यापार शोरा का व्यापार करते थे। पर ननयंत्रर् व्यवस्था थी। इसके अन्तगणत कोई भी डचों की व्यापाहरक व्यवस्था सहकाहरता (Cartel) पर भारतीय या अरबी जहाज तबना 'परनमट' ललए अरब आिाहरत थी। सागर में नहीं जा सकता था। ‘1759’ में अांग्रज े ों एवां डचों के मध्य बेदरा का युद्ध हआ, इि जहाजों में काली नमचण व गोला बारूद ले जाना मना लजसमें डच परालजर् हए और उिका भारर् से अन्तिम रुप था। से पर्ि हो गया। पुतणगाललयों के पतन के कारर् बेदरा के युद्ध में अांग्रेजी सेिा का िेर्ृत्व लाडत क्लाइव िे पुर्तगाललयों का भ्रष्ट शासि, दोषपूणत व्यापार प्रणाली, िानमिक टकया। और वैवाडहक िीतर्, योग्य शासकों का अभाव, स्पेि िारा नोट:- ‘मसूली पट्टनम और सूरत से’ िच ‘नील’ का पुर्तगाल का टवलय, डचों का प्रवेश एवां सैन्य चुिौर्ी आडद ननयाणत करते थे । भड़ौच बन्दरगाह से डच कपड़े का नियातर् पुर्तगाललयों के पर्ि के कारण बिें । करर्े थे। पुतणगाललयों की भारत को दे न पुलीकि में डच अपिे स्वणत पैगोडा (लसक्के) डालर्े थे । मध्य अमेहरका से तम्बाकू, मूंगफली, आलू, मक्का, पपीता सूर्ी कपड़ा, रे शम, अफीम र्था शोरा बांगाल से डचों िारा और अमरुद का भारत में प्रवेश पुतणगाललयों ने कराया। नियातर् टकये जार्े थे। बादाम, लीची, सांर्रा, अिािास एवां काजू का प्रवेश अन्य भारर् में अफीम डचों िारा जावा और चीि में नियातर् टकया दे शों से भारर् में पुर्तगाललयों के माध्यम से हआ। जार्ा था। जहाज निमातण र्था टप्रिंटििंग प्रेस (1556 ई.) की िापिा डच फैक्ट्क्ट्रयों के प्रमुखों को फैक्टर कहा जार्ा था। भारर् में पुर्ग त ाललयों िे प्रारम्भ की। डच कम्पिी के निदेशकों को भद्रजि XVII कहा जार्ा था। पुतणगाललयों द्वारा भारत में गोतथक स्थापत्य कला का अंग्रेज आगमन हुआ। भारर् आिे वाला प्रथम अांग्रेज यात्री जॉि नमल्डेि हॉल था िच जो िल मागत से ‘1597’ में आया था। डच पुर्तगाललयों के बाद भारर् आये। भारर् में कैप्टि हॉटकन्स ‘1608 ई.’ में समुद्री मागत से होकर डच िीदरलैण्ड व हॉलैण्ड के निवासी थे। (Red Dragon) िामक व्यापाररक जहाज से सूरर् बन्दरगाह डचों की कम्पिी का िाम यूिाइिे ड ईस्ट इश्चण्डया कम्पिी पर आया। ऑफ िीदरलैण्ड था, की िापिा 1602 में की थी 1 वास्तटवक हॉटकन्स प्रथम अांग्रेज था लजसिे भारर् की भूनम पर समुद्री िाम वेरींगीडे ओस्त इन्डिशे कम्पिी था 1 मागत से प्रवेश टकया था 1 िचों ने भारत में अपनी “प्रथम फैक्ट्ट्री” 1605 ई. में 1599 ई. में लन्दि में व्यापाररयों के एक समूह िे The मसूली पट्टनम में स्थापपत की । Governor and company of merchants of trading into डचों का भारर् में प्रथम दल “कािेललयस डी हाउिमैि के the east Indies िामक कम्पिी की िापिा पूवत के देशों िेर्ृत्व में भारर् आया । वह भारर् आिे वाला प्रथम डच के साथ व्यापार करिे हेर्ु की। िागररक था 1 31 डदसम्बर 1600 ई. में ब्रििे ि की महारािी एलीजाबेथ डचों िें 1602 ई. में गुजरार्, कोरोमण्डल र्ि एवां बांगाल, प्रथम िे एक शाही फरमाि देकर इस कम्पिी को ‘15 वषों’ ब्रबहार एवां उड़ीसा में व्यापाररक फैक्ट्क्ट्रयाुँ िाटपर् की । के ललए पूवत के दे शों के साथ व्यापार करिे की अिुमतर् डचों िे मसूली पट्टिम, पुलीकि, सूरर्, कराइकल, बालासोर, प्रदाि की। िागपट्टिम और कोचीि में कोडियाुँ खोली । ईस्ट इांडडया कम्पिी िे '1608 ई.' में सूरर् में एक व्यापाररक डचों िे बांगाल में पहली फैक्ट्री ‘1627’ में पीपली - (िाई कोिी खोली। कम्पिी) में िाटपर् की। जेम्स प्रथम के एक पत्र के साथ कैप्टि हॉटकन्स को ‘1608’ ‘1653’ में िचों ने हुगली के ननकट चचनसुरा में अपनी में भारर् भेजा। फैक्ट्क्ट्ट्रयाुँ स्थापपत की । ‘1609 ई.’ में कैप्टि हॉटकन्स बादशाह जहाुँगीर से आगरा लचिसुरा (बांगाल) में डचों िे गुस्ताबुस िामक टकले का में नमला था। निमातण टकया। जहाुँगीर ने हॉडकन्स को चार सौ का मनसब तथा एक इसके बाद डचों िे 'कालसमबाजार' और 'पििा' में फैक्ट्री जागीर और ‘खान की उपानि’ दी। िाटपर् की। कैप्टि हॉटकन्स र्ुकी और फारसी भाषा का ज्ञार्ा था। कोचीि और कन्नािोर डचों के प्रमुख व्यापाररक केन्द्र थे। https://www.infusionnotes.com/ 2 मािवराव प्रथम की मृत्यु 18 िवम्बर 1772 ई. को क्षयरोग इस सांनि के िारा आांग्ल-मरािा युद्ध रुका । से हो गई। इस सांनि से अांग्रज े ों िे रघुिाथ राव का साथ छोड़कर मािव ग्रांि टफ के अनुसार, "उसकी मृत्यु मराठों के ललए िारायण राव को पेशवा मािा। पानीपत की पराजय से भी अनिक हाननकारक लसद्ध डद्वतीय आंग्ल- मराठा युद्ध (1803 - 06 ई.) हुई”। 1800 ई. में िािा फड़िवीस की मृत्यु के बाद पूिा दरबार पेशवा मािव राव की मृत्यु के बाद उसका छोिा भाई षड़यांत्रों का केंद्र बि गया था1 लािण वेलेजली का मानना िारायण राव पेशवा बिा। था डक भारत को नेपोललयन से बचाने का एक मात्र रघुिाथ राव िे िारायण राव पेशवा की हत्या कर दी और उपाय सभी भारतीय राज्यों का अनिग्रहर् करना था1 स्वयां पेशवा बिा । 1801 में पेशवा बाजीराव डिर्ीय िे जसवांर् राव होल्कर के मािव नारायर् राव (1774-96 ई.) भाई टवट्ठू जी की हत्या कर दी 1 लजससे क्रोनिर् होल्कर िे यह िारायण राव का पुत्र था | पूिा पर आक्रमण कर पेशवा और लसिंनिया की सेिा को िािा फड़िवीस के िेर्त्व ृ में मरािा राज्य की दे खभाल के परालजर् कर डदया 1 पूिा पर होल्कर का नियांत्रण हो गया ललए ‘बारा भाई कौलसल’ की नियुनि की। बाजीराव िे भागकर बसीि में शरण ली अक्टू बर 1796 ई. में पेशवा मािव िारायण राव िे आत्महत्या 1802 में बाजीराव डद्वतीय और अंग्रेजों के बीच बसीन कर ली। की संनि हुई 1 बाजीराव डद्वतीय (1796-1818 ई.) बसीन की संनि की शते ननम्नललखखत हैं - बाजीराव डिर्ीय राघोबा का पुत्र था। 1. कम्पिी को सूरर् नमल गया माचत 1800 ई. में िािा फड़िवीस की मृत्यु हो गई। 2. पेशवा िे अांग्रज े ी सांरक्षण स्वीकार कर ललया फड़िवीस की मृत्यु के बाद मरािा शनि पेशवा बाजीराव 3. पेशवा िे पूिा में अांग्रेजी सेिा को रखिा स्वीकार टकया 1 डिर्ीय के हाथ में रही । 4. पेशवा िे अपिे टवदेशी मामले कम्पिी के अिीि कर ललए1 बाजीराव डिर्ीय को अांग्रज े ों िे 8 लाख रु. पेंशि दे कर टविु 5. पेशवा िे कम्पिी के टकसी भी यूरोपीय शत्रु को िहीं रखिा क्षेत्र डदया । स्वीकार टकया 1 उसका उत्तरानिकारी उसका दत्तक पुत्र नानासाहब (िोंिू यह युद्ध दो मुख्य केन्द्रों में शुरू हुआ। पंत) हुआ, लजसने 1857 के ववद्रोह में महत्वपूर्ण भूनमका [i] दक्कि : वेलेजली के अिीि अांग्रज े ी सेिा एवां लसिंनिया व ननभाई। भोसले की सांयुि सेिा के बीच यह युद्ध हआ लजसमें वेलेजली टवजयी हआ। आंग्ल-मराठा युद्ध [ii] जिरल लेक के अिीि अांग्रेजी सेिा एवां लसिंनिया के बीच सूरत की संनि उत्तर भारर् में यह युद्ध हआ लजसमें अांग्रेजी सेिा टवजयी 7 माचण 1775 ई. को बम्बई की अंग्रेजी सरकार एवं हई। रघुनाथ राव के मध्य ‘सूरत की संनि’ हुई। दे वगाुँव की सांनि (1803 ई.) : यह सांनि 17 अिूबर 1803 इस संनि में तय हुआ डक अंग्रेज रघुनाथ राव को पेशवा ई. की रघुजी भौंसले एवां अांग्रजे ों के बीच हई। बनाने के ललए 2500 सैननकों की सहायता दें गे। सुरजी अजति गाुँव की सांनि (1803 ई.) : लसिंनिया एवां मरािे , बांगाल, किातिक पर आक्रमण करिा बन्द कर दें ग।े अांग्रेजों के मध्य 30 डदसम्बर 1803 ई. को यह सांनि हई । यडद रघुिाथ राव िे पूिा दरबार से कोई सांनि की र्ो उसमें अांग्रेजों िे होल्कर को युद्ध में परास्त करिे के बाद 1805 में अांग्रेजों को सस्थम्मललर् टकया जायेगा | राजपुरघाि की सांनि की प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध (1775-82 ई.) तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध (1817-1818 ई.) 18 मई 1775 ई. में 'आरस के मैदाि’ में अांग्रेजों और मरािों यह युद्ध पेशवा एवां अांग्रेजों के मध्य हआ, लजसमें अांग्रज े ों की के मध्य अनिणातयक युद्ध हआ। लजसमें मरािों की हार हई। जीर् हई। [i] पुरन्दर की संनि (1776 ई.) : अंग्रेज सरकार और पूना 13 जून 1817 ई. में पेशवा एवं अंग्रेजों के मध्य पूना की दरबार के प्रततनननि नाना फड़नवीस के मध्य I माचत 1776 संनि हुई । संनि के तहत पेशवा को मराठा संघ की ई. को पुरन्दर की सांनि हई । अध्यक्षता त्यागनी पड़ी । [iiJ वड़गाुँव की संनि (1779 ई.) : पुणे दरबार एवां अांग्रज े ों के 5 िवम्बर 1817 ई. में दौलर् राव लसिंनिया एवां अांग्रेजों के बीच यह सांनि हई। मध्य “ग्वाललयर की सांनि”हई। वारे ि हेन्तस्टिंग्स िे इस सांनि को माििे से इन्कार कर डदया| 27 मई 1816 ई. में िागपुर के भोसले एवां अांग्रेजों के मध्य [iii] सालबाई की संनि (1782 ई.) :- महादजी लसिंनिया की ‘सहायक सांनि’ हई। मध्यिर्ा से पूिा दरबार एवां अांग्रेजों के बीच यह सांनि 17 6 जिवरी 1818 ई. में होल्कर एवां अांग्रज े ों के मध्य ‘मन्दसौर मई 1782 ई. में हई। की सांनि’ हई । https://www.infusionnotes.com/ 12 अांग्रेजों एवां पेशवा के मध्य और दो बार सांघषत हआ। लजसमें सर जॉन शोर (1793 - 98 ):- –कोरे गाुँव जिवरी 1818 ई. लजसमें पेशवा की हार हई। o िायी बांदोबस्त (1993) को शुरू करिे में इन्होंिे 'राजस्व दूसरा सांघषत अण्टी में फरवरी 1818 ई. में हआ इसमें भी बोडत अध्यक्ष के रुप में महत्वपूणत योगदाि डदया। लेटकि पेशवा की हार हई। उिके गवितर जिरल काल में कोई महत्त्वपूणत घििा िहीं 3 जूि 1818 ई. में पेशवा बाजीराव डिर्ीय िे आत्म समपतण हई। जाि मेल्कम के सामिे कर डदया | लॉिण वेलेजली (1798-1805) :- लॉडत वेलेजली 1798 से 1805 र्क बांगाल का गवितर जिरल गवनणर, गवनणर जनरल & वायसराय रहा। उसके कायतकाल में अांतर्म मैसूर युद्ध लड़ा गया। गवनणर जनरल: इस युद्ध के बाद मैसूर तब्रवटश ईस्ट इं डिया कम्पनी के ब्रिटिश भारर् में 1773 ई. से 1857 ई. के बीच र्ेरह गवितर अिीन आ गया। जिरल आए। इिके शासिकाल में निम्नाटकर् मुख्य घििाएां लॉडत वेलेजली के काल में डद्वतीय मराठा युद्ध लड़ा गया एवां टवकास हए-: था लजसमें अांग्रज े ों की टवजय हई। यह कम्पिी राज के सबसे महत्वपूणत युद्धों में से एक था। वारे न हेब्धस्टग िं (1772 - 1785 ) पहले एां ग्लो-मरािा युद्ध में मरािों की टवजय हई थी और दोहरी शासन प्रर्ाली ]Dual Government System दूसरे मरािा युद्ध में मरािों की पराजय हई लजसका कारण (की समाप्तप्त) जो बंगाल के गवनणर (राबटण क्लाइव द्वारा मरािों के पास कोई अिुभवी और योग्य शासक ि होिा शुरू डकया गया था)। था। प्रथम गवनणर जनरल बंगाल का वारे न हेब्धस्टग्स िं था 1 दूसरा मरािा युद्ध 1803 से 1805 र्क लड़ा गया लजसके 1773 ई. रे ग्यूलटै ििंग एक्ट । बाद मरािों का राज्य महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, किातिक, 1774 ई. में रोडहल्ला युद्ध एवां अवि के िवाब िारा रूहेलखण्ड गुजरार्, छत्तीसगढ़ के कुछ डहस्सों में ही रह गया। पर अनिकार। औरां गाबाद, ग्वाललयर, किक, बालासोर, जयपुर, जोिपुर, 1781 ई. का एक्ट (इसके िारा गवितर जिरल पररषद एवां गोहाद, अहमदिगर, भरोच, अजिा, अलीगढ़, मथुरा, डदल्ली कलकत्ता सुप्रीम कोित न्यानयक अनिकार क्षेत्र का नििातरण ये सब अांग्रेजों के अनिकार में चले गए। टकया गया। लसिंनिया और भोसले िे अांग्रज े ों की अिीिर्ा स्वीकार कर 1782 में सालबाई की सांनि एवां (1775-82) में प्रथम ली। मरािा युद्ध। उसने सहायक संनि की शुरुआत की लजसके र्हर् भारर् 1784 ई. का पपट्स इं डिया एक्ट। के राजा ब्रिटिश सेिा और अनिकारी को अपिे राज्य में डद्वतीय मैसूर युद्ध (1780-84) स्वीकार करें ग,े टकसी भी टववाद में राजा ब्रिटिश सरकार को सुरक्षा प्रकोष्ठ या घेरे की िीतर् का सांबांि (वारे ि हेन्तस्टिंग्स स्वीकार करे गा, वो ब्रिटिश के अलावा अन्य यूरोटपयों को एवां वेलेजली) अपिे यहाुँ िौकरी पर िहीं रख सकर्ा, इसके अलावा इस 1785 ई. इांग्लैंड वापसी के बाद हाउस ऑफ लॉडतस में सांनि में यह भी था टक राजा भारर् में ईस्ट इांडडया कम्पिी का प्रभुत्व स्वीकार करें गे । महाभभयोग का मुकदमा चलाया गया। लॉडत वेलेजली की सहायक सांनि को सवतप्रथम मैसूर के राजा 1784 ई. में सर टवललयम जोंस एवां हेन्तस्टिंग्स िारा (1799), र्ांजौर के राजा (1799), अवि के िवाब (1801), एलशयाटिक सोसाइिी ऑफ बांगाली िापिा करिा। पेशवा (1801), बरार के राजा (1803), लसिंनिया (1804), लॉिण कानणवाललस -: 1786 - 1793 (1805 ) जोिपुर, जयपुर, बूांदी और भरर्पुर के राजा थे। o 1790 - 92 ई.में तृतीय मैसर ू युद्ध । उसिे 10 जुलाई 1800 को फोित टवललयम कॉलेज की o 1792 ई. में श्रीरां गपििम की सांनि िापिा की। o 1793 ई. में बंगाल एवं तबहार में स्थायी कर व्यवस्था उसिे 1799 में सेंसरलशप एक्ट पाररर् टकए लजसका उद्दे श्य जमींदारी प्रथा की शुरुआत। फ़्ाांस की मीडडया पर नियांत्रण करिा था। o 1793 ई. में न्यानयक सुिार 1 नोट: o ववनभन्न स्तरों के कोटण की स्थापना 1 सहायक सांनि को स्वीकार करिे वाला पहला शासक - o कर प्रशासन को न्यानयक प्रशासन से अलग करना। अवि का िवाब (1765) o लसववल सवविस की शुरूआत। वेलेजली की सहायक सांनि को स्वीकार करिे वाला प्रथम o प्रशासि र्था शुनद्धकरण के ललए सुिार। शासक - हैदराबाद निजाम (1798) o िायी बांदोबस्त प्रणाली को इस्तमरारी, जमींदारी, माल लॉिण नमन्टो प्रथम (1807-13):- गुजारी एवां बीसवेदारी आडद िाम से भी जािा जार्ा है । o नमन्टो के पहले सर जाजत बालो वषत ( 1805-07) के ललए गवितर जिरल बिा । https://www.infusionnotes.com/ 13 डकट्टूर ववद्रोह कोया ववद्रोह (1879) टकट्टूर के िािीय शासक की टविवा रािी चेन्नमा िे टकया कोया टवद्रोह दो चरणों में हआ पहले चरण का िेर्ृत्व िे म्पा क्योंटक अांग्रज े ों िे राजा के दत्तक पुत्र को मान्यर्ा िहीं दी सोरा िे टकया और डिर्ीय चरण में राजि अिांर् शैय्यार यद्यटप ब्रिटिश सरकार िे दमिात्मक कायतवाही िारा इस िेर्ृत्व टकया 1 टवद्रोह को दबा डदया यह टवद्रोह 1824 से 1829 ईस्वी र्क कोया आांदोलि गोदावरी के पूवी क्षेत्र में रम्पा प्रदे श में शुरू चला हआ 1 इस टवद्रोह का मुख्य कारण आडदवालसयों के जांगल सांबांिी प्राकृतर्क अनिकारों को अांग्रेजों िारा खेल ललया गया कच्छ ववद्रोह (1819) र्था कोया लोगों पर र्ाड़ी के घरे लू उत्पादि पर कर लगा कच्छ के राजा भारमल को अंग्रेजों द्वारा शासन से दे िा मुख्य कारण था। बेदखल करना कच्छ ववद्रोह का मुख्य कारर् था1 राजू रम्पा में कोया टवद्रोह का कुछ समय र्क िेर्त्व ृ टकया अांग्रेजों िे कच्छ के अल्प वयस्क पुत्र को वहाां का शासक डिर्ीय चरण में कोया टवद्रोह का िेर्ृत्व अिांर् शैय्यार िे बिा डदया और भू-कर में वृनद्ध कर दी इसके टवरोि स्वरूप टकया अांग्रज े ों िे किोर सैन्य कायतवाही िारा कोया टवद्रोह भारमल और उसके समथतकों िे 1819 में यह टवद्रोह शुरू कर को समाप्त कर डदया। डदया ताना भगत आंदोलन भारत के अन्य प्रमुख ववद्रोह र्ािा भगर् आांदोलि की शुरुआर् वषत 1914 ई. में ब्रबहार पॉलीगार ववद्रोह 1801 में हई थी। यह आंदोलन लगान की ऊुँची दर तथा र्नमलिाडु में िई भूनम व्यविा लागू करिे के बाद ब्रिटिश चौकीदारी कर के ववरुद्ध डकया गया था। सरकार के ष्टखलाफ सि 1801 ईस्वी में वहाां के िािीय इस आांदोलि के प्रवर्तक 'जर्रा भगर्' थे, लजसे कभी ब्रबरसा पॉली वालों िे वीपी कट्टा बामन्नाि के िेर्ृत्व में टवद्रोह टकया मुण्डा, कभी जमी र्ो कभी केसर बाबा के समर्ुल्य होिे की गया और यह टवद्रोह 1856 ईस्वी र्क चला 1 बार् कही गयी है। आांदोलि की शुरुआर् 'मुण्डा आांदोलि' की समाश्चप्त के पाइक ववद्रोह (1817) करीब 13 वषत बाद 'र्ािा भगर् आांदोलि ' शुरू हआ। यह मध्य उड़ीसा में पाइक जिजातर् िारा सि् 1817 ईस्वी से ऐसा िानमिक आंदोलन था, लजसके राजनीततक लक्ष्य 1825 ईस्वी र्क यह टवद्रोह टकया इस टवद्रोह के िेर्ृत्व कर्ात थे। बख्शीजग बांिु िे टकया यह आडदवासी जिर्ा को सांगडिर् करिे के ललए िये 'पांथ' सूरत का नमक ववद्रोह (1817) के निमातण का आांदोलि था। र्ािा भगर् आांदोलि में अांग्रेजों िारा नमक के कर में 50 पैसे की वृचद्ध करिे पर अडहिंसा को सांघषत के अमोघ अि के रूप में स्वीकार टकया इसका टवरोि करिे के ललए 1844 ईस्वी में सूरर् के िािीय गया। लोगों िे यह टवद्रोह टकया इस ववद्रोह के पहरर्ाम स्वरूप ब्रबरसा आांदोलि के र्हर् झारखांड में ब्रिटिश हकूमर् के अंग्रेजों ने बढ़ाए नमक करों को वापस ले ललया 1 ष्टखलाफ सांघषत का ऐसा स्वरूप टवकलसर् हआ, लजसको क्षेत्रीयर्ा की सीमा में बाांिा िहीं जा सकर्ा था। नागा ववद्रोह (1931) इस आंदोलन ने संगठन का ढांचा और मूल रर्नीतत में िागा टवद्रोह रोगमइ जदोिाांग के िेर्ृत्व में भारर् के पूवी क्षेत्रीयता से मुक्त रहकर ऐसा आकार ग्रहर् डकया डक राज्य िागालैंड में हआ 1 िाग आांदोलि का मुख्य उद्देश्य वह महात्मा गाुँिी के नेतृत्व में जारी आजादी के 'भारतीय िागा राज्य की िापिा करके प्राचीि िमत को िाटपर् राष्ट्रीय आंदोलन ' का अववभाज्य अंग बन गया। करिा था 1 पहाडड़याुँ ववद्रोह अांग्रेजों िे िेर्ा जदोिाांग को नगरफ्तार करके 29 अगस्त 1770 के टवद्रोह के दसक में राजमहल के पहाड़ी क्षेत्रों वर्तमाि 1931 को फाांसी पर लिका डदया 1 झारखांड में ब्रिटिश भू- राजस्व व्यविा के टवरोि में पहाडड़या इसके बाद में इस आंदोलन की बागिोर एक नागा महहला टवद्रोह हआ 1 गौडिनल्यू ने अपने हाथों में ले ली इन्होंने नागा आंदोलन आडदवालसयों के छापामार सघंर्ण से परे शान अंग्रेजी को गाुँिीजी के सववनय अवज्ञा आंदोलन से जोड़कर इस सरकार ने सन् 1778 में इनसे समझौता कर इनके क्षेत्र आंदोलन को ववस्ताहरत डकया 1 को दानमनी कोह क्षेत्र घोपर्त कर डदया 1 गौडडिल्यू िे पूवत िेर्ा जदोिाांग के टवचारों से प्रेररर् होकर एक होकात पांथ की िापिा की 1 1857 ई. का ववद्रोह पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् कारर् एवं पहरर्ाम इस महहला को रानी की उपानि से सम्माननत डकया और ववद्रोह के ललए उत्तरदायी कारर् रािी गौडडिल्यू को कारावास से मुि करके स्वर्ांत्र करवाया1 गवनणर जनरल लािण कैनन िंग के शासनकाल की एक महत्वपूर्ण घटना 1857 का ववद्रोह थी । https://www.infusionnotes.com/ 21 राजनीततक कारर् (4) नाना साहब और रानी लक्ष्मी बाई का असन्तोर्:- अांग्रेज भारर् में व्यापारी के रूप में आये थे, परिु िीरे -िीरे झाांसी की रािी लक्ष्मी बाई र्था पेशवा बाजीराव डिर्ीय के उन्होंिे राज्य िापिा र्था उसके टवस्तार का कायत आरम्भ दत्तक पुत्र िािा साहब अांग्रेजों के व्यवहार से बहर् िाराज टकया । िीरे -िीरे भारतीयों की राजनीततक स्वतंत्रता का थे। अपहरर् होता गया और वे अपने राजनीततक तथा उनसे अंग्रेजों ने झांसी के राजा-गंगािर राव के दत्तक पुत्र उत्पन्न अनिकारों से वंचचत होते गये | दामोदर राव को उत्तरानिकार से वंचचत करके झांसी लजसके फलस्वरूप उिमें बड़ा असांर्ोष फैला, लजसका राज्य को कथनी के राज्य में शानमल कर ललया था । टवस्फोि 1857 ई. के टवद्रोह के रूप में हआ। इस क्राांतर् के इस अत्याचार को रािी लक्ष्मीबाई सहि ि कर सकी और राजिीतर्क कारण निम्नललष्टखर् थे- क्रान्ति के समय उसिे टवद्रोडहयों का साथ डदया । (5) अवि का ववलय और नवाब के साथ अत्याचार:- (1) िलहौजी की साम्राज्यवादी नीतत:- अांग्रेजों िे बलपूवतक लखिऊ पर अनिकार करके िबाव 1857 की क्राांतर् के ललए डलहौजी की साम्राज्यवादी िीतर् वालजद अली शाह को निवातलसर् कर डदया था और काफी हद र्क उत्तरदायी थी। उसने ववजय तथा पुत्र गोद निलतज्जर्ापूवतक महलों को लूिा था | लेने कई ननर्ेि नीततयों द्वारा दे शी राज्यों के अपहरर् का बेगमों के साथ बहर् अपमािजिक व्यवहार टकया गया था। एक कुचक्र चलाया 1 लजसिे समपूणत भारर् के दे शी िरे शों इससे अवि के सभी वगत के लोगों में बड़ा असिोष फैला को आर्ांटकर् कर डदया और उिके हृदय में अस्थिरर्ा र्था और अवि क्राांतर्काररयों का केन्द्र बि गया। आशांका का बीजारोपण कर डदया । लॉिण िलहौजी ने व्यपगत लसद्धान्त या हड़प-नीतत को (6) प्राचीन राजनीततक व्यवस्था का ववध्वंस :- कठोरता पूवणक अपनाकर दे शी हरयासतों के ननःसन्तान अांग्रेजों की टवजय के फलस्वरूप प्राचीि राजिीतर्क व्यविा पूणत रूप से ध्वस्त हो गई थी। राजाओ ं को उत्तरानिकार के ललए दत्तक-पुत्र लेने की तब्रवटश शासन से पहले भारतवासी राज्य की नीतत को आज्ञा नहीं दी और सर्ारा (1848), िागपुर (1853), पूरी तरह प्राभाववत करते थे परन्तु अब वे इससे वंचचत झाांसी (1854), बरार (1854), सांभलपुर, जैर्पुर, बघाि, हो गये । अब केवल अांग्रेज ही भारर्ीयों के भाग्य के निमातर्ा अदपुर आडद ररयासर्ों को कथिी के ब्रिटिश-साम्राज्य में हो गये । नमला ललया । उसिे 1856 ई. में अांग्रज े ों के प्रतर् वफादार अदद ररयासर् को कुशासि के आिार पर ब्रिटिश साम्राज्य (7) अंग्रेजों के प्रतत ववदे शी भावना :- में नमला ललया। भारर्ीय जिर्ा अांग्रेजों से इसललए भी असिुष्ट थी क्योंटक उसिे अवि के िवाब वालजद अली शाह को गद्दी से उर्र वे समझर्े थे टक उिके शासक उिसे हजारों मील दूर रहर्े डदया 1 उसिे र्ांजौर और किातिक के िवाबों की राजकीय हैं । र्ुकत, अफगाि और मुग़ल भी भारर् में टवदे शी थे उपानियाां छीि ली 1 लेटकि वे भारर् में ही बस गये थे और इस दे श को उन्होंिे मुग़ल बादशाह को िजरािा देिे के ललए अपमानिर् करिा1 अपिा दे श बिा ललया था। जबटक अांग्रेजों िे ऐसा कोई काम िहीं टकया था। अर्: लसक्कों पर िाम गुदवािे जैसी परम्परा को डलहौजी िारा भारर्ीयों के हृदय और मस्थस्तष्क से अांग्रज े ों के प्रतर् टवदे शी समाप्त करिा 1 आडद घििाओां िे 1857 के टवद्रोह को हवा की भाविा िहीं निकल सकी थी । दी 1 (8) उच्च वगण में असंतोर्:- दे शी राज्यों के िष्ट हो जािे (2) मुग़ल सम्राट के साथ दुव्यणवहार :- से ि केवल उिके िरे शों का टविाश हआ जबटक उच्च वगत अांग्रेजों िे भारर्ीय शासकों के साथ दुव्यतवहार भी टकया । के लोगों की स्थितर् पर भी बड़ा घार्क प्रहार हआ | उन्होंिे मुग़ल सम्राि को िजरािा दे िा व सम्माि प्रदलशिर् करिा बन्द कर डदया इर्िा ही िहीं लॉिण िलहौजी ने प्रशासननक कारर्– मुग़ल सम्राट की उपानि को समाप्त करने का ननश्चय (1) नवीन शासन-पद्धतत को समझने में कडठनाई होना :- भारर्ीय लजस शासि को सडदयों से दे खर्े आ रहे थे, वह डकया 1 समाप्त कर डदया गया था । िई शासि-पद्धतर् को समझिे उसिे बहादुरशाह के सबसे बड़े पुत्र नमजात जवाबख्त को में उन्हें कडििाई आ रही थी र्था, उसे वे शांका की दृष्टष्ट से युवराज स्वीकार करिे से इन्कार कर डदया और बहादुरशाह दे खर्े थे । से अपने पैतृक ननवास स्थान लाल डकले को खाली कर (2) भारतीयों को प्रशासननक सेवाओ ं से अलग रखने की कुतुब में रहने के ललए कहा । नीतत :- (3) तब्रवटश पदानिकाहरयों के वक्तव्य-: डलहौजी की अांग्रेजों िे शुरू से ही भारर्ीयों को प्रशासनिक सेवाओां में साम्राज्यदी िीतर् के साथ-साथ कुछ अांग्रेज अनिकाररयों िे शानमल ि कर भेद-भाव पूणत िीतर् अपिाई । लॉडत ऐसे विव्य डदये लजससे दे शी िरे श बहर् आर्ांटकर् हो गये काितवाललस का भारर्ीयों की कायत कुशलर्ा और ईमािदारी और अपिे भावी अस्थस्तत्व के सम्बि मे पूणत रूप से निराश पर टवश्वास िहीं था । अर्: उसिे उच्च पदों पर भारतीयों हो उिे | के स्थान पर अंग्रेजों को ननयुक्त कर डदया । https://www.infusionnotes.com/ 22 पररणामर्: भारर्ीयों के ललए उच्च पदों के िार बन्द हो गये। यह वगत भारर्ीयों से नमलिा पसन्द िहीं करर्ा था और हर यद्यटप 1833 ई. के कम्पिी के चाित र एक्ट में यह आवश्वासि प्रकार से उन्हें अपमानिर् करर्ा था । अांग्रज े ों के इस प्रजातर् डदया गया था टक िमत, वांश, जन्म, रां ग या अन्य टकसी भेदभाव की िीतर् से भारर्ीय क्रूद्ध हो उिे और उिका यह आिार पर सावतजनिक सेवाओां में भर्ी के ललए कोई भेदभाव क्रोि 1857 ई. के टवद्रोह के रूप में व्यि हआ। िहीं बरर्ा जाएगा, परिु अांग्रज े ों िे इस लसद्धाि का पालि (6) लशक्षक्षत भारतीयों में तब्रवटश शासन से िहीं टकया । असंतोर्:- सैननक और असैननक सभी सावणजननक सेवाओ ं में उच्च लशक्षक्षर् भारर्ीयों को यह आशा थी टक लशक्षा के प्रसार के पद यूरोपपयन व्यचक्तयों के ललए ही सुरक्षक्षत रखे गये थे| साथ-साथ उन्हें राजिीतर्क प्रशासनिक अनिकार प्राप्त हो सेिा में एक भारर्ीय का सबसे बड़ा पद सूबेदार का होर्ा जायेंगे | था लजसे 60 या 70 रूपये प्रतर् माह वेर्ि नमलर्ा था | लेटकि अांग्रज े ों की ऐसी कोई इच्छा िहीं थी । लशक्षक्षर् असैनिक सेवाओां में एक भारर्ीय को नमल सकिे वाला भारर्ीयों को प्रशासि में कहीं शानमल िहीं टकया गया था1 सबसे बड़ा पद सदर अमीि का था लजसे 500/ - रूपये प्रतर् माह वेर्ि नमलर्ा था । उच्च पद दे िा अांग्रज े अपिा आतथिक कारर् एकानिकार समझर्े थे। भारर् में अांग्रेजी शासि का मूल आिार भारर् का आतथिक शोषण था । अांग्रेजों िे भारर्ीयों का लजर्िा राजिीतर्क (3) तब्रवटश न्याय व्यवस्था से भारतीयों में असंतोर् :- शोषण टकया, उससे भी बढ़कर उन्होंिे आतथिक शोषण ब्रिटिश न्याय प्रशासि एक भभन्न प्रशासनिक व्यविा का प्रर्ीक था | टवनि प्रणाली और सम्पलत्त अनिकार पूरी र्रह टकया। चूांटक अांग्रेज भारर् में व्यापारी के रूप में आए थे । से िये थे। न्याय प्रणाली में अत्यनिक िि र्था समय िष्ट अर्: शुरू से ही उिका लक्ष्य िि कमािा था। अपिे इस होर्ा था और डफर भी निणतय अनिश्चिर् था | लक्ष्य को पूरा करिे के ललए उन्होंिे िैतर्क और अिैतर्क भारर्ीय इस न्याय व्यविा को पसन्द िहीं करर्े थे । अगर सभी प्रकार के साििों का प्रयोग टकया । 1857 ई. के टवद्रोह एक छोिा सा टकसाि भी टकसी जमींदार की लशकायर् के आतथिक कारण निम्नललष्टखर् थे– करर्ा था र्ो जमींदार को न्यायालय में जािा पड़र्ा था । (1) िन का ववदे श गमन :- इस प्रकार सम्मानिर् व्यनि अांग्रेजी न्यायालयों से असांर्ुष्ट अांग्रेजों के पूवत लजि लोगों िे भारर् पर आक्रमण टकया था, थे । और यहाुँ अपिा राज्य िाटपर् टकया था 1 उन्होंिे भारर् (4) दोर्पूर्ण भू-राजस्व प्रर्ाली :- को ही अपिा िायी निवास बिा ललया था । भू-राजस्व प्रर्ाली को ननयनमत करने के नाम पर अंग्रेजों अर्एव भारर् की सम्पलत्त भारर् में ही रह जार्ी थी, लेटकि ने अनेक जमींदारों के पट्टों की छानबीन की । लजन लोगों अांग्रेजों िे कभी भी भारर् को अपिा िायी घर िहीं बिाया। के पास जमीन के पट्टे नहीं नमले, उनकी जमीनें छीन ली इस प्रकार भारर् में अिेक र्रीकों से िि कमाकर के अि गई । में वे अपिे देश ले जार्े थे । अपिे देश से िि का यह बम्बई के प्रलसद्ध इमाम आयोग िे लगभग बीस हजार गमि भारर्ीयों को सहि िहीं था | जागीरें जप्त कर ली थी । लॉडत बैन्टन्टक िे र्ो माफी की (2) भारतीय व्यापार एवं उद्योगों का ववध्वंस :- भूनम भी छीि ली । इस प्रकार कुलीि वगत को अपिी सम्पलत्त 19 वीं शताब्दी में इं ग्लैंि में औद्योतगक क्रांतत हो चुकी थी व आय से हाथ िोिा पड़ा। इसललए इं ग्लैंि को भारत से कच्चा माल ले जाने और भूनम अपहरर् की नीतत के कारर् तालुकेदारों में बड़ा अपने कारखानों में तैयार माल को बेचने के ललए असंतोर् फैला और क्रांतत में इन लोगों ने सडक्रय भाग भारतीय बाजार की आवश्यकता थी । ललया । इन दोनों जरूरतों को पूरा करने के ललए इं ग्लैंि ने टकसािों के कल्याण एवां लाभ के िाम पर िाई बन्दोबस्त, भारतीय उद्योग ििों को नष्ट कर डदया | एक ग्रामीण रै यर्वाड़ी व महलवाड़ी प्रणाली लागू की गई थी और हर बार उद्योग के बाद दूसरा -ग्रामीण उद्योग िष्ट होर्ा गया और टकसािों से पहले की अपेक्षा अनिक लगाि वसूल टकया भारर् ब्रििे ि का आतथिक उपकरण बि गया । गया, लजसके कारण टकसाि लगार्ार नििति होकर सािारण चूांटक अांग्रज े ों िे भारर्ीय व्यापार, वाभणज्य और कुिीर उद्योग मजदूर बिर्ा गया । पर अपिा नियांत्रण िाटपर् कर ललया था । अर्: भारर्ीयों अांग्रेजों की लगाि-िीतर् के टवरूद्ध इर्िा प्रबल टवरोि था में गरीबी र्ेजी से बढ़िे लगी। टक अिेक िािों पर ब्रबिा सेिा की सहायर्ा से लगाि जमा िहीं टकया जा सकर्ा था। (3) डकसानों की दशा दयनीय होना :- अंग्रेजों ने डकसानों की दशा सुिारने के नाम पर स्थायी (5) शचक्तशाली तब्रवटश अनिकारी वगण का ववकास :- बन्दोबस्त रै यतवाड़ी व महलवाड़ी प्रर्ाली लागू की भारत में कम्पनी शासन की सवोच्चता स्थापपत होने के लेडकन इन सब में डकसानों से बहुत ज्यादा भूनमकर साथ ही प्रशासन में एक शचक्तशाली तब्रवटश अनिकारी वसूल डकया गया जो डकसान समय पर भूनम कर नहीं वगण का उदय हुआ । चुका पाते थे | https://www.infusionnotes.com/ 23 जुलाई 1857 में हैवलाक िे कािपुर पर आक्रमण कर डदया सम्पूर्ण भारत के ववद्रोह में कुंवरलस िंह ही एक ऐसे वीर थे और घोर सांघषत के बाद कािपुर पर अनिकार कर ललया। लजन्होंने अंग्रेजों को अनेक बार हराया | नवम्बर 1857 में ग्वाललयर के 20,000 क्रांततकारी सैननकों राजपूताना ने तात्या टोपे के नेतृत्व में कानपुर पर आक्रमर् कर राजपूताना में 28 मई 1857 को नसीराबाद छावनी में डदया और वहाुँ पर सेिापतर् टवड़हम को परालजर् करके 28 तथा 3 जून 1857 को नीमच में ववद्रोह हुआ लेडकन ववद्रोह िवम्बर को कािपुर पर पुि: प्रभुत्व िाटपर् कर ललया । का मुख्य केन्द्र कोटा और आउवा थे । दुभातग्यश डदसम्बर 1857 को कैम्पवेल िे क्राांतर्काररयों को कोिा में टवद्रोह का िेर्ृत्व मेहराब खाां और लाला जयदयाल बुरी र्रह परालजर् टकया और कािपुर पुि : अांग्रेजों के हाथ िे टकया । कोटा में क्रांतत का महत्व अपेक्षाकृत ज्यादा में आ गया | िािा साहब वहाां से िेपाल चले गये । माना जाता है 1 क्योंडक लगभग छ: महीनों तक कोटा पर झांसी क्रांततकाहरयों का अनिकार रहा । झांसी में ववद्रोह का प्रारम्भ 5 जून 1857 को हुआ। रानी समस्त जिर्ा क्राांतर् की समथतक बि गई थी । टवद्रोडहयों लक्ष्मीबाई के नेतत्व ृ में क्रांततकाहरयों ने बुन्देलखण्ड तथा का लक्ष्य मुख्यर्: सरकारी सम्पलत्त और सरकारी बांगले को उसके ननकटवती प्रदे श पर अपना अनिकार कर ललया | िुकसाि पहुँ चािा था । बुन्देलखण्ड में ववद्रोह के दमन का कायण ह्यूरोज नामक मेहराब खाुँ और जयदयाल के िेर्ृत्व में छ: महीिे र्क फौज सेनापतत को सौंपा गया था | उसिे 23 माचत 1857 को िे इच्छािुसार शासि चलाया | अांग्रेजों के अिेक समथतकों झाांसी का घेरा डाल डदया । को र्ोपों के मुांह पर बाांिकर उड़ा डदया गया । एक सप्ताह र्क युद्ध चलर्ा रहा लक्ष्मीबाई के मोचात अंग्रेजों को इस ववद्रोह को कुचलने के ललए ववशेर् सेना सांभालिे वालों में लसफत िाह्मण एवां क्षब्रत्रय ही िहीं थे कोली, भेजनी पड़ी | महाराव की स्वामी भक्त सेना करौली की काछी और र्ेली भी थे ये महाराष्ट्रीय और बुन्देलखण्डी थे सेना, गोटे पुर की फौज ने भी इस तब्रवटश सेना का ये पिाि र्था अन्य मुसलमाि थे । सहयोग डकया। पुरूषों के साथ हर मोचे पर मडहलाएां भी थी । झाांसी की लम्बे सांघषत के बाद 30 माचत 1858 को कोिा पर पुि: सुरक्षा असांभव समझकर लक्ष्मीबाई 4 अप्रैल 1858 को अांग्रेजों का अनिकार हो गया| मेहराव खाां और लाला अपिे दत्तक पुत्र दामोदर को पीि से बाांिकर एक रक्षक दल जयदयाल पर मुकदमा चलािे का डदखावा कर उन्हें फाांसी के साथ शत्रु सेिा को चीरर्ी हई कालपी पहुँ ची 1 पर लिका डदया गया । र्ात्या िोपे, बाांदा के िबाव बाणपुर र्था शाहगढ़ के राजा