Chapter 5: जैव प्रक्रम PDF

Summary

This chapter details biological processes in living organisms. It explains the differences between living and non-living things, and the various processes that sustain life in an organism.

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अध्याय 5 जैव प्रक्रम ह म जैव (सजीव) तथा अजैव (निर्जीव) में कै से अतं र स्पष्‍ट करते हैं? यदि हम कुत्ते को दौड़ते हुए देखते हैं या गाय को जगु ाली करते हुए अथवा गली म...

अध्याय 5 जैव प्रक्रम ह म जैव (सजीव) तथा अजैव (निर्जीव) में कै से अतं र स्पष्‍ट करते हैं? यदि हम कुत्ते को दौड़ते हुए देखते हैं या गाय को जगु ाली करते हुए अथवा गली में एक इन्सान को जोर से चीखते हुए देखते हैं तो हम समझ जाते हैं कि ये सजीव हैं। यदि कुत्ता, गाय या इन्सान सो रहे हैं तो क्या तब भी हम यही सोचेंगे कि ये सजीव हैं, लेकिन हम यह कै से जानेंगे? हम उन्हें साँस लेते देखते हैं और जान लेते हैं कि वे सजीव हैं। पौधों के बारे में हम कै से जानेंगे कि वे सजीव हैं? हममें से कुछ कहेंगे कि वे हरे दिखते हैं, लेकिन उन पौधों के बारे मेें क्या कहेंगे जिनकी पत्तियाँ हरी न होकर अन्य रंग की होती हैं? वे समय के साथ वृद्धि करते हैं, अतः हम कह सकते हैं कि वे सजीव हैं। दसू रे शब्दों में, हम सजीव के सामान्य प्रमाण के तौर पर कुछ गतियों पर विचार करते हैं। ये गतियाँ वृद्धि संबंधी या अन्य हो सकती हैं, लेकिन वह पौधा भी सजीव है, जिसमें वृद्धि परिलक्षित नहीं होती। कुछ जंतु साँस तो लेते हैं, परंतु जिनमें गति स्पष्‍ट रूप से नहीं दिखाई देती है वे भी सजीव हैं। अतः दिखाई देने वाली गति जीवन के परिभाषित लक्षण के लिए पर्याप्‍त नहीं है। अति सूक्ष्म स्के ल पर होने वाली गतियाँ आँखों से दिखाई नहीं देती हैं, उदाहरण के लिए— अणओ ु ं की गतियाँ। क्या यह अदृश्य आणविक गति जीवन के लिए आवश्यक है? यदि हम यह प्रश्‍न किसी व्यवसायी जीवविज्ञानी से करें तो उसका उत्तर सकारात्मक होगा। वास्तव में विषाणु के अंदर आणविक गति (जब तक वे किसी कोशिका को संक्रमित नहीं करते हैं) नहीं होती है। अतः इसी कारण यह विवाद बना हुआ है कि वे वास्तव में सजीव हैं या नहीं। जीवन के लिए आणविक गतियाँ क्यों आवश्यक हैं? पूर्व कक्षाओ ं में हम यह देख चक ु े हैं कि सजीव की संरचना ससु ंगठित होती है; उनमें ऊतक हो सकते हैं, ऊतकों में कोशिकाएँ होती हैं, कोशिकाओ ं में छोटे घटक होते हैं। सजीव की यह संगठित एवं सुव्यवस्थित संरचना समय के साथ-साथ पर्यावरण के प्रभाव के कारण विघटित होने लगती है। यदि यह व्यवस्था टूटती है तो जीव और अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाएगा। अतः जीवों के शरीर को मरम्मत तथा अनुरक्षण की आवश्यकता होती है, क्योंकि ये सभी संरचनाएँ अणओ ु ं से बनी होती हैं। अतः उन्हें अणओ ु ं को लगातार गतिशील बनाए रखना चाहिए। सजीवों में अनुरक्षण प्रक्रम कौन से हैं? आइए, खोजते हैं। 2024-25 Chapter 5.indd 88 02-02-2023 12:04:21 5.1 जैव प्रक्रम क्या है? जीवों का अनरु क्षण कार्य निरंतर होना चाहिए। यह उस समय भी चलता रहता है, जब वे कोई विशेष कार्य नहीं करते। जब हम सो रहे हों अथवा कक्षा में बैठे हों, उस समय भी यह अनरु क्षण का काम चलता रहना चाहिए। वे सभी प्रक्रम जो सम्मिलित रूप से अनरु क्षण का कार्य करते हैं, जैव प्रक्रम कहलाते हैं। क्योंकि क्षति तथा टूट-फूट रोकने के लिए अनरु क्षण प्रक्रम की आवश्यकता होती है। अतः इसके लिए उन्हें ऊर्जा की आवश्यकता होगी। यह ऊर्जा एकल जीव के शरीर के बाहर से आती है। इसलिए ऊर्जा के स्रोत का बाहर से जीव के शरीर में स्थानांतरण के लिए कोई प्रक्रम होना चाहिए। इस ऊर्जा के स्रोत को हम भोजन तथा शरीर के अदं र लेने के प्रक्रम को पोषण कहते हैं। यदि जीव में शारीरिक वृद्धि होती है तो इसके लिए उसे बाहर से अतिरिक्‍त कच्ची सामग्री की भी आवश्यकता होगी, क्योंकि पृथ्वी पर जीवन कार्बन आधारित अणओ ु ं पर निर्भर है। अतः अधिकांश खाद्य पदार्थ भी कार्बन आधारित हैं। इन कार्बन स्रोतों की जटिलता के अनसु ार विविध जीव भिन्न प्रकार के पोषण प्रक्रम को प्रयक्‍त ु करते हैं। चकि ँू , पर्यावरण किसी एक जीव के नियंत्रण में नहीं है। अतः ऊर्जा के ये बाह्य स्रोत विविध प्रकार के हो सकते हैं। शरीर के अदं र ऊर्जा के इन स्रोतों के विघटन या निर्माण की आवश्यकता होती है, जिससे ये अतं तः ऊर्जा के एकसमान स्रोत में परिवर्तित हो जाने चाहिए। यह विभिन्न आणविक गतियों के लिए एवं विभिन्न जीव शरीर के अनरु क्षण तथा शरीर की वृद्धि के लिए आवश्यक अणओ ु ं के निर्माण में उपयोगी है। इसके लिए शरीर के अदं र रासायनिक क्रियाओ ं की एक ृंखला की आवश्यकता है। उपचयन-अपचयन अभिक्रियाएँ अणओ ु ं के विघटन की कुछ सामान्य रासायनिक यक्‍ति ु याँ हैं। इसके लिए बहुत से जीव शरीर के बाहरी स्रोत से अॉक्सीजन ु करते हैं। शरीर के बाहर से अॉक्सीजन को ग्रहण करना तथा कोशिकीय आवश्यकता के प्रयक्‍त अनसु ार खाद्य स्रोत के विघटन में उसका उपयोग श्‍वसन कहलाता है। एक एक-कोशिकीय जीव की परू ी सतह पर्यावरण के सपर्क ं में रहती है। अतः इन्हें भोजन ग्रहण करने के लिए, गैसों का आदान-प्रदान करने के लिए या वर्ज्य पदार्थ के निष्कासन के लिए किसी विशेष अगं की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन जब जीव के शरीर का आकार बढ़ता है तथा शारीरिक अभिकल्प अधिक जटिल होता जाता है, तब क्या होता है? बहुकोशिकीय जीवों में सभी कोशिकाएँ अपने आस-पास के पर्यावरण के सीधे सपर्क ं में नहीं रह सकतीं। अतः साधारण विसरण सभी कोशिकाओ ं की आवश्यकताओ ं की पर्ति ू नहीं कर सकता। हम पहले भी देख चक ु े हैं कि बहुकोशिकीय जीवों में विभिन्न कार्यों को करने के लिए भिन्न-भिन्न अगं विशिष्‍टीकृ त हो जाते हैं। हम इन विशिष्‍टीकृ त ऊतकों से तथा जीव के शरीर में उनके संगठन से परिचित हैं। अतः इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं है कि भोजन तथा अॉक्सीजन का अतं र्ग्रहण भी विशिष्‍टीकृ त ऊतकों का कार्य है, परंतु इससे एक समस्या पैदा होती है। यद्यपि भोजन एवं अॉक्सीजन का अतं र्ग्रहण कुछ विशिष्‍ट अगं ों द्वारा ही होता है, परंतु शरीर के सभी भागों को इनकी आवश्यकता होती है। इस स्थिति में भोजन एवं अॉक्सीजन को एक स्थान से दसू रे स्थान तक ले जाने के लिए वहन-तंत्र की आवश्यकता होती है। जैव प्रक्रम 89 2024-25 Chapter 5.indd 89 02-02-2023 12:04:22 जब रासायनिक अभिक्रियाओ ं में कार्बन स्रोत तथा अॉक्सीजन का उपयोग ऊर्जा प्राप्‍ति के लिए होता है, तब एेसे उपोत्पाद भी बनते हैं, जो शरीर की कोशिकाओ ं के लिए न के वल अनपु योगी होते हैं, बल्कि वे हानिकारक भी हो सकते हैं। इन अपशिष्‍ट उपोत्पादों को शरीर से बाहर निकालना अति आवश्यक होता है। इस प्रक्रम को हम उत्सर्जन कहते हैं। यदि बहुकोशिकीय जीवों में शरीर अभिकल्पना के मल ू नियमों का पालन किया जाता है तो उत्सर्जन के लिए विशिष्‍ट ऊतक विकसित हो जाएगा। इसका अर्थ है कि परिवहन तंत्र की आवश्यकता अपशिष्‍ट पदार्थों को कोशिका से इस उत्सर्जन ऊतक तक पहुचँ ाने की होगी। आइए, हम जीवन का अनरु क्षण करने वाले आवश्यक प्रक्रमों के बारे में एक-एक करके विचार करते हैं। प्रश्‍न ? 1. हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में अॉक्सीजन की आवश्यकता परू ी करने में विसरण क्यों अपर्याप्‍त है? 2. कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदडं का उपयोग करें गे? 3. किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है? 4. जीवन के अनरु क्षण के लिए आप किन प्रक्रमों को आवश्यक मानेंगे? 5.2 पोषण जब हम टहलते हैं या साइकिल की सवारी करते हैं तो हम ऊर्जा का उपयोग करते हैं। उस स्थिति में भी जब हम कोई आभासी क्रियाकलाप नहीं कर रहे हैं, हमारे शरीर में क्रम की स्थिति के अनुरक्षण करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। वृद्धि, विकास, प्रोटीन संश्‍लेषण आदि में हमें बाहर से भी पदार्थों की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा का स्रोत तथा पदार्थ जो हम खाते हैं वह भोजन है। सजीव अपना भोजन कै से प्राप्‍त करते हैं? सभी जीवों में ऊर्जा तथा पदार्थ की सामान्य आवश्यकता समान है, लेकिन इसकी आपर्ति ू भिन्न विधियों से होती है। कुछ जीव अकार्बनिक स्रोतों से कार्बन डाईअॉक्साइड तथा जल के रूप में सरल पदार्थ प्राप्‍त करते हैं। ये जीव स्वपोषी हैं, जिनमें सभी हरे पौधे तथा कुछ जीवाणु हैं। अन्य जीव जटिल पदार्थों का उपयोग करते हैं। इन जटिल पदार्थों को सरल पदार्थों में खडि ं त करना अनिवार्य है ताकि ये जीव के समारक्षण तथा वृद्धि में प्रयक्‍त ु हो सकें । इसे प्राप्‍त करने के लिए जीव जैव-उत्प्रेरक का उपयोग करते हैं, जिन्हें एज ं ाइम कहते हैं। अतः विषमपोषी उत्तरजीविता के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से स्वपोषी पर आश्रित होते हैं। जंतु तथा कवक इसी प्रकार के विषमपोषी जीवों में सम्मिलित हैं। 90 विज्ञान 2024-25 Chapter 5.indd 90 02-02-2023 12:04:22 5.2.1 स्वपोषी पोषण मध्यशिरा पर्ण पटल स्वपोषी जीव की कार्बन तथा ऊर्जा की आवश्यकताएँ प्रकाश शिरा संश्‍लेषण द्वारा पूरी होती हैं। यह वह प्रक्रम है, जिसमें स्वपोषी बाहर से लिए पदार्थों को ऊर्जा संचित रूप में परिवर्तित कर मोमी देता है। ये पदार्थ कार्बन डाइअॉक्साइड तथा जल के रूप में फलोएम जाइलम क्यूटिकल संवहन बंडल लिए जाते हैं, जो सूर्य के प्रकाश तथा क्लोरोफिल की उपस्थिति ऊपरी बाह्य में कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित कर दिए जाते हैं। कार्बोहाइड्रेट त्वचा पौधों को ऊर्जा प्रदान करने मेंे प्रयुक्‍त होते हैं। अगले अनुभाग हरित लवक में हम अध्ययन करें गे कि यह कै से होता है। जो कार्बोहाइड्रेट तुरंत प्रयुक्‍त नहीं होते हैं, उन्हें मंड के रूप में संचित कर लिया वायु कोश जाता है। यह रक्षित आंतरिक ऊर्जा की तरह कार्य करे गा तथा द्वार कोशिका पौधे द्वारा आवश्यकतानुसार प्रयुक्‍त कर लिया जाता है। कुछ निचली बाह्य इसी तरह की स्थिति हमारे अंदर भी देखी जाती है। हमारे द्वारा त्वचा खाए गए भोजन से व्युत्पन्न ऊर्जा का कुछ भाग हमारे शरीर में चित्र 5.1 एक पत्ती की अनप्रु स्थ काट ग्लाइकोजन के रूप में संचित हो जाता है। अब हम देखते हैं कि प्रकाश संश्‍लेषण प्रक्रम में वास्तव में क्या होता है? इस प्रक्रम के दौरान निम्नलिखित घटनाएँ होती हैं— (i) क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करना। (ii) प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करना तथा जल अणओ ु ं का हाइड्रोजन तथा अॉक्सीजन में अपघटन। (iii) कार्बन डाइअॉक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन। यह आवश्यक नहीं है कि ये चरण तत्काल एक के बाद दसू रा हो, उदाहरण के लिए— मरुद्भिद पौधे रात्रि में कार्बन डाइअॉक्साइड लेते हैं और एक मध्यस्थ उत्पाद बनाते हैं। दिन में क्लोरोफिल ऊर्जा अवशोषित करके अति ं म उत्पाद बनाता है। आइए, हम देखें कि उपरोक्‍त अभिक्रिया का प्रत्येक घटक प्रकाश संश्‍लेषण के लिए किस प्रकार आवश्यक है। यदि आप ध्यानपूर्वक एक पत्ती की अनुप्रस्थ काट का सूक्ष्मदर्शी द्वारा अवलोकन करें गे (चित्र 5.1) तो आप नोट करें गे कि कुछ कोशिकाओ ं में हरे रंग के बिंदु दिखाई देते हैं। ये हरे बिंदु कोशिकांग हैं, जिन्हें क्लोरोप्लास्ट कहते हैं, इनमें क्लोरोफिल होता है। आइए, हम एक क्रियाकलाप करते हैं, जो दर्शाता है कि प्रकाश संश्‍लेषण के लिए क्लोरोफिल आवश्यक है। जैव प्रक्रम 91 2024-25 Chapter 5.indd 91 30-11-2022 12:04:43 क्रियाकलाप 5.1 „„ गमले में लगा एक शबलित पत्ती (उदाहरण केे लिए— मनीप्लांट या क्रोटन का पौधा) वाला पौधा लीजिए। „„ पौधे को तीन दिन अँधरे े कमरे में रखिए ताकि उसका संपर्णू मडं प्रयक्‍त ु हो जाए। „„ अब पौधे को लगभग छः घटं े के लिए सर्यू के प्रकाश में रखिए। „„ पौधे से एक पत्ती तोड़ लीजिए। इसमें हरे भाग को अकि ं त करिए तथा उन्हें एक कागज पर ट्रेस कर लीजिए। „„ कुछ मिनट के लिए इस पत्ती को उबलते पानी में डाल दीजिए। (a) (b) „„ इसके बाद इसे एल्कोहल से भरे बीकर में डुबा दीजिए। „„ इस बीकर को सावधानी से जल ऊष्मक में रखकर तब तक गर्म करिए, जब तक एल्कोहल चित्र 5.2 शबलित पत्ती (a) मडं परीक्षण उबलने न लगे। से पहले (b) मडं परीक्षण के बाद „„ पत्ती के रंग का क्या होता है? विलयन का रंग कै सा हो जाता है? „„ अब कुछ मिनट के लिए इस पत्ती को आयोडीन के तनु विलयन में डाल दीजिए। „„ पत्ती को बाहर निकालकर उसके आयोडीन को धो डालिए। „„ पत्ती के रंग (चित्र 5.2) का अवलोकन कीजिए और प्रारंभ में पत्ती का जो ट्रेस किया था उससे इसकी तल ु ना कीजिए। „„ पत्ती के विभिन्न भागों में मडं की उपस्थिति के बारे में आप क्या निष्कर्ष निकालते हैं? द्वार कोशिकाएँ अब हम अध्ययन करते हैं कि पौधे कार्बन रंध्र छिद्र डाइअॉक्साइड कै से प्राप्‍त करते हैं। कक्षा 9 में हमने रंध्र (चित्र 5.3) की चर्चा की थी, जो पत्ती की सतह पर सक्ू ष्म छिद्र होते हैं। प्रकाश सशं ्‍लेषण हरित लवक के लिए गैसों का अधिकाश ं आदान-प्रदान इन्हीं छिद्रों के द्वारा होता है, लेकिन यहाँ यह जानना (a) (b) भी आवश्यक है कि गैसों का आदान-प्रदान तने, चित्र 5.3 (a) खल ु ा तथा (b) बंद रंध्र जड़ और पत्तियों की सतह से भी होता है। इन रंध्रों से पर्याप्‍त मात्रा में जल की भी हानि होती हैा अतः जब प्रकाश सशं ्‍लेषण के लिए कार्बन डाइअॉक्साइड की आवश्यकता नहीं होती तब पौधा इन छिद्रों को बंद कर लेता है। छिद्रों का बेलजार खल ु ना और बंद होना द्वार कोशिकाओ ं का एक पोटैशियम हाइड्रोक्साइड कार्य है। द्वार कोशिकाओ ं में जब जल अदं र वाच ग्लास में जाता है तो वे फूल जाती हैं और रंध्र का छिद्र (a) (b) खल ु जाता है। इसी तरह जब द्वार कोशिकाएँ चित्र 5.4 प्रायोगिक व्यवस्था (a) पोटैशियम हाइड्रोक्साइड के साथ सिकुड़ती हैं तो छिद्र बंद हो जाता है। (b) पोटैशियम हाइड्रोक्साइड के बिना 92 विज्ञान 2024-25 Chapter 5.indd 92 30-11-2022 12:04:46 क्रियाकलाप 5.2 „„ लगभग समान आकार के गमले में लगे दो पौधे लीजिए। „„ तीन दिन तक उन्हें अँधरे े कमरे में रखिए। „„ अब प्रत्येक पौधे को अलग-अलग काँच-पट्टिका पर रखिए। एक पौधे के पास वाच ग्लास में पोटैशियम हाइड्रोक्साइड रखिए। पोटैशियम हाइड्रोक्साइड का उपयोग कार्बन डाइअॉक्साइड को अवशोषित करने के लिए किया जाता है। „„ चित्र 5.4 के अनसु ार दोनों पौधों को अलग-अलग बेलजार से ढक दीजिए। „„ जार के तले को सील करने के लिए काँच-पट्टिका पर वैसलीन लगा देते हैं, इससे प्रयोग वायरु ोधी हो जाता है। „„ लगभग दो घटं ों के लिए पौधों को सर्यू के प्रकाश में रखिए। „„ प्रत्येक पौधे से एक पत्ती तोड़िए तथा उपरोक्‍त क्रियाकलाप की तरह उसमें मडं की उपस्थिति की जाँच कीजिए। „„ क्या दोनों पत्तियाँ समान मात्रा में मडं की उपस्थिति दर्शाती हैं? „„ इस क्रियाकलाप से आप क्या निष्कर्ष निकालते हो? उपरोक्‍त दो क्रियाकलापों के आधार पर क्या हम एेसा प्रयोग कर सकते हैं, जिससे प्रदर्शित हो सके कि प्रकाश संश्‍लेषण के लिए सर्यू के प्रकाश की आवश्यकता होती है? अब तक हम यह चर्चा कर चक ु े हैं कि स्वपोषी अपनी ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति कै से करते हैं, लेकिन उन्हें भी अपने शरीर के निर्माण के लिए अन्य कच्ची सामग्री की आवश्यकता होती है। स्थलीय पौधे प्रकाश संश्‍लेषण के लिए आवश्यक जल की पूर्ति जड़ों द्वारा मिट्टी में उपस्थित जल के अवशोषण से करते हैं। नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, लोहा तथा मैग्नीशियम सरीखे अन्य पदार्थ भी मिट्टी से लिए जाते हैं। नाइट्रोजन एक आवश्यक तत्व है, जिसका उपयोग प्रोटीन तथा अन्य यौगिकों के संश्‍लेषण में किया जाता है। इसे अकार्बनिक नाइट्रेट का नाइट्राइट के रूप में लिया जाता है। इन्हें उन कार्बनिक पदार्थों के रूप में लिया जाता है, जिन्हें जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन से बनाते हैं। 5.2.2 विषमपोषी पोषण प्रत्येक जीव अपने पर्यावरण के लिए अनक ु ू लित है। भोजन के स्वरूप एवं उपलब्धता के आधार पर पोषण की विधि विभिन्न प्रकार की हो सकती है। इसके अतिरिक्‍त यह जीव के भोजन ग्रहण करने के ढंग पर भी निर्भर करती है, उदाहरण के लिए— यदि भोजन स्रोत अचल (जैसे कि घास) है या गतिशील जैसे कि हिरण है। दोनों प्रकार के भोजन का अभिगम का तरीका भिन्न-भिन्न है तथा गाय व शेर किस पोषक उपकरण का उपयोग करते हैं। जीवों द्वारा भोजन ग्रहण करने और उसके उपयोग की अनेक यक्‍तिय ु ाँ हैं। कुछ जीव भोज्य पदार्थों का विघटन शरीर के बाहर ही कर देते हैं और तब उसका अवशोषण करते हैं। फफँू दी, यीस्ट तथा मशरूम आदि कवक इसके उदाहरण हैं। अन्य जीव संपर्णू भोज्य पदार्थ का अतं र्ग्रहण करते हैं तथा उनका पाचन शरीर के अदं र होता है। जैव प्रक्रम 93 2024-25 Chapter 5.indd 93 31-01-2023 16:42:53 कें द्रक जीव द्वारा किस भोजन का अंतर्ग्रहण किया जाए तथा उसके पाचन की विधि खाद्य कण उसके शरीर की अभिकल्पना तथा कार्यशैली पर निर्भर करती है। घास, फल, (a) कीट, मछली या मृत खरगोश खाने वाले जंतुओ ं के अंतर के बारे में आप क्या सोचते हैं? कुछ अन्य जीव, पौधों और जंतुओ ं को बिना मारे उनसे पोषण प्राप्‍त पादाभ अथवा कूटपाद करते हैं। यह पोषण युक्‍ति अमरबेल, किलनी, जँू, लीच और फीताकृ मि सरीखे (b) बहुत से जीवों द्वारा प्रयुक्‍त होती है। खाद्य रिक्‍तिका 5.2.3 जीव अपना पोषण कै से करते हैं? खाद्य कण (c) क्योंकि भोजन और उसके अंतर्ग्रहण की विधि भिन्न है। अतः विभिन्न जीवों में पाचन तंत्र भी भिन्न है। एककोशिकीय जीवों में भोजन संपूर्ण सतह से लिया (d) जा सकता है, ले किन जीव की जटिलता बढ़ने के साथ-साथ विभिन्न कार्य करने वाले अंग विशिष्‍ट हो जाते हैं, उदाहरण के लिए— अमीबा कोशिकीय चित्र 5.5 अमीबा में पोषण सतह से अँगुली जैसे अस्थायी प्रवर्ध की मदद से भोजन ग्रहण करता है। यह प्रवर्ध भोजन के कणों को घेर लेते हैं तथा संगलित होकर खाद्य रिक्‍तिका (चित्र 5.5) बनाते हैं। खाद्य रिक्‍तिका के अंदर जटिल पदार्थों का विघटन सरल पदार्थों में किया जाता है और वे कोशिकाद्रव्य में विसरित हो जाते हैं। बचा हुआ अपच पदार्थ कोशिका की सतह की ओर गति करता है तथा शरीर से बाहर निष्कासित कर दिया जाता है। पैरामीशियम भी एककोशिकीय जीव है, इसकी कोशिका का एक निश्‍च‍ित आकार होता है तथा भोजन एक विशिष्‍ट स्थान से ही ग्रहण किया जाता है। भोजन इस स्थान तक पक्ष्याभ की गति द्वारा पहुँचता है, जो कोशिका की पूरी सतह को ढके होते हैं। 5.2.4 मनुष्य में पोषण आहार नाल मल ू रूप से महँु से गदु ा तक विस्तरित एक लंबी नली है। चित्र 5.6 में हम इस नली के विभिन्न भागों को देख सकते हैं। जो भोजन हमारे शरीर में एक बार प्रविष्‍ट हो जाता है, उसका क्या होता है? हम यहाँ इस प्रक्रम की चर्चा करते हैं। क्रियाकलाप 5.2 „„ 1 mL मडं का घोल (1%) दो परखनलियों ‘A’ तथा ‘B’ में लीजिए। „„ परखनली ‘A’ में 1 mL लार डालिए तथा दोनों परखनलियों को 20–30 मिनट तक शांत छोड़ दीजिए। „„ अब प्रत्येक परखनली में कुछ बँदू तनु आयोडीन घोल की डालिए। „„ किस परखनली में आपको रंग में परिवर्तन दिखाई दे रहा है? „„ दोनों परखनलियों में मडं की उपस्थिति के बारे में यह क्या इगि ं त करता है? „„ यह लार की मडं पर क्रिया के बारे में क्या दर्शाता है? 94 विज्ञान 2024-25 Chapter 5.indd 94 30-11-2022 12:04:46 हम तरह-तरह के भोजन खाते हैं, जिन्हें उसी भोजन नली से गजु रना होता है। प्राकृ तिक रूप से भोजन को एक प्रक्रम से गजु रना होता है, जिससे वह जिह्वा महँु (मखु गहु ा) उसी प्रकार के छोटे-छोटे कणों में बदल जाता है। इसे ग्रसिका हम दाँतों से चबाकर परू ा कर लेते हैं, क्योंकि आहार का आस्तर बहुत कोमल होता है। अतः भोजन को गीला किया जाता है ताकि इसका मार्ग आसान हो डायाफ्राम जाए। जब हम अपनी पसदं का कोई पदार्थ खाते हैं तो पित्ताशय (पित्त का हमारे महँु में पानी आ जाता है। यह वास्तव में के वल भडं ारण करता है) आमाशय जल नहीं है, यह लाला ग्रंथि से निकलने वाला एक रस पित्त नली है, जिसे लालारस या लार कहते हैं। जिस भोजन को यकृ त क्दषु ्रांत्र अग्न्याशय हम खाते हैं, उसका दसू रा पहल,ू उसकी जटिल रचना है। यदि इसका अवशोषण आहार नाल द्वारा करना है बृहद्रांत्र (कोलॉन) तो इसे छोटे अणओ ु ं में खडं ित करना होगा। यह काम परिशेषिका गदु ा द्वार जैव-उत्प्रेरक द्वारा किया जाता है, जिन्हें हम एज ं ाइम कहते हैं। लार में भी एक एजं ाइम होता है, जिसे लार चित्र 5.6 मानव पाचन तंत्र एमिलेस कहते हैं। यह मडं जटिल अणु को सरल शर्क रा में खडं ित कर देता है। भोजन को चबाने के दौरान पेशीय जिह्वा भोजन को लार के साथ परू ी तरह मिला देती है। आहार नली के हर भाग में भोजन की नियमित रूप से गति उसके सही ढंग से प्रक्रमित होने के लिए आवश्यक है। यह क्रमाकंु चक गति परू ी भोजन नली में होती है। महँु से आमाशय तक भोजन ग्रसिका या इसोफे गस द्वारा ले जाया जाता है। आमाशय एक बृहत अगं है, जो भोजन के आने पर फै ल जाता है। आमाशय की पेशीय भित्ति भोजन को अन्य पाचक रसों के साथ मिश्रित करने में सहायक होती है। ये पाचन कार्य आमाशय की भित्ति में उपस्थित जठर ग्रंथियों के द्वारा सपं न्न होते हैं। ये हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, एक प्रोटीन पाचक एंजाइम पेप्सिन तथा श्‍लेष्मा का स्रावण करते हैं। हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एक अम्लीय माध्यम तैयार करता है, जो पेप्सिन एजं ाइम की क्रिया में सहायक होता है। आपके विचार में अम्ल और कौन सा कार्य करता है? सामान्य परिस्थितियों में श्‍लेष्मा आमाशय के आतं रिक आस्तर की अम्ल से रक्षा करता है। हमने बहुधा वयस्कों को ‘एसिडिटी अथवा अम्लता’ की शिकायत करते सनु ा है। क्या इसका सबं धं उपरोक्‍त वर्णित विषय से तो नहीं है? आमाशय से भोजन अब क्दषु ्रांत्र में प्रवेश करता है। यह अवरोधिनी पेशी द्वारा नियंत्रित होता है। क्षुद्रांत्र आहारनाल का सबसे लंबा भाग है, अत्यधिक कंु डलित होने के कारण यह संहत स्थान में अवस्थित होती है। विभिन्न जंतुओ ं में क्दषु ्रांत्र की लंबाई उनके भोजन के प्रकार के अनुसार अलग-अलग होती है। घास खाने वाले शाकाहारी का सेल्युलोज़ पचाने के लिए लंबी क्दषु ्रांत्र की आवश्यकता होती है। मांस का पाचन सरल है। अतः बाघ जैसे मांसाहारी की क्षुद्रांत्र छोटी होती है। जैव प्रक्रम 95 2024-25 Chapter 5.indd 95 04-03-2024 13:43:22 क्षुद्रांत्र कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा के पर्णू पाचन का स्थल है। इस कार्य के लिए यह यकृ त तथा अग्न्याशय से स्रावण प्राप्‍त करती है। आमाशय से आने वाला भोजन अम्लीय है और अग्न्याशयिक एजं ाइमों की क्रिया के लिए उसे क्षारीय बनाया जाता है। यकृ त से स्रावित पित्तरस इस कार्य को करता है, यह कार्य वसा पर क्रिया करने के अतिरिक्‍त है। क्षुद्रांत्र में वसा बड़ी गोलिकाओ ं के रूप में होता है, जिससे उस पर एजं ाइम का कार्य करना मश्कि ु ल हो जाता है। पित्त लवण उन्हें छोटी गोलिकाओ ं में खडि ं त कर देता है, जिससे एजं ाइम की क्रियाशीलता बढ़ जाती है। यह साबनु का मैल पर इमल्सीकरण की तरह ही है, जिसके विषय में हम अध्याय 4 में पढ़ चक ु े हैं। अग्न्याशय अग्न्याशयिक रस का स्रावण करता है जिसमें प्रोटीन के पाचन के लिए ट्रिप्सिन एजं ाइम होता है तथा इमल्सीकृ त वसा का पाचन करने के लिए लाइपेज एजं ाइम होता है। क्षुद्रांत्र की भित्ति में ग्रंथि होती है, जो आत्रं रस स्रावित करती है। इसमें उपस्थित एजं ाइम अतं में प्रोटीन को अमीनो अम्ल, जटिल कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज़ में तथा वसा को वसा अम्ल तथा ग्लिसरॉल में परिवर्तित कर देते हैं। पाचित भोजन को आत्रं की भित्ति अवशोषित कर लेती है। क्षुद्रांत्र के आतं रिक आस्तर पर अनेक अँगल ु ी जैसे प्रवर्ध होते हैं, जिन्हें दीर्घरोम कहते हैं। ये अवशोषण का सतही क्षेत्रफल बढ़ा देते हैं। दीर्घरोम में रुधिर वाहिकाओ ं की बहुतायत होती है, जो भोजन को अवशोषित करके शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुचँ ाते हैं। यहाँ इसका उपयोग ऊर्जा प्राप्‍त करने, नए ऊतकों के निर्माण और परु ाने ऊतकों की मरम्मत में होता है। बिना पचा भोजन बृहदांत्र में भेज दिया जाता है, जहाँ दीर्घरोम इस पदार्थ में से जल का अवशोषण कर लेते हैं। अन्य पदार्थ गदु ा द्वारा शरीर के बाहर कर दिया जाता है। इस वर्ज्य पदार्थ का बहिःक्षेपण गदु ा अवरोधिनी द्वारा नियंत्रित किया जाता है। दतं क्षरण क्या आप जानते हैं? दतं क्षरण या दतं क्षय इनैमल तथा डैंटीन के शनैः-शनैः मृदक ु रण के कारण होता है। इसका प्रारंभ होता है, जब जीवाणु शर्क रा पर क्रिया करके अम्ल बनाते हैं। तब इनैमल मृदु या बिखनिजीकृ त हो जाता है। अनेक जीवाणु कोशिका खाद्यकणों के साथ मिलकर दाँतों पर चिपक कर दतं प्लाक बना देते हैं, प्लाक दाँत को ढक लेता है। इसलिए, लार अम्ल को उदासीन करने के लिए दतं सतह तक नहीं पहुचँ पाती है। इससे पहले कि जीवाणु अम्ल पैदा करे भोजनोपरांत दाँतों में ब्रश करने से प्लाक हट सकता है। यदि अनपु चारित रहता है तो सक्ू ष्मजीव मज्जा में प्रवेश कर सकते हैं तथा जलन व संक्रमण कर सकते हैं। प्रश्‍न ? 1. स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में क्या अतं र है? 2. प्रकाश संश्‍लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधा कहाँ से प्राप्‍त करता है? 3. हमारे आमाशय में अम्ल की भमि ू का क्या है? 4. पाचक एजं ाइमों का क्या कार्य है? 5. पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र को कै से अभिकल्पित किया गया है? 96 विज्ञान 2024-25 Chapter 5.indd 96 30-11-2022 12:04:46 5.3 श्‍वसन क्रियाकलाप 5.4 पिचकारी „„ एक परखनली में ताज़ा तैयार किया हुआ चनू े का पानी लीजिए। „„ इस चनू े के पानी में निःश्‍वास द्वारा निकली वायु प्रवाहित नलिका रबर नलिका कीजिए। [चित्र 5.7 (a)] „„ नोट कीजिए कि चनू े के पानी को दधू िया होने में कितना परखनली में चनू े समय लगता है। का पानी चनू े का „„ एक सिरिंज या पिचकारी द्वारा दसू री परखनली में ताज़ा पानी चनू े का पानी लेकर वायु प्रवाहित करते हैं [चित्र 5.7 (b)]। „„ नोट कीजिए कि इस बार चनू े के पानी को दधू िया होने में चित्र 5.7 कितना समय लगता है। (a) चनू े के पानी में निःश्‍वास द्वारा वायु प्रवाहित हो रही है। „„ निःश्‍वास द्वारा निकली वायु में कार्बन डाइअॉक्साइड की (b) चनू े के पानी में पिचकारी/सिरिंज द्वारा वायु प्रवाहित की जा मात्रा के बारे में यह हमें क्या दर्शाता है? रही है। क्रियाकलाप 5.5 „„ किसी फल का रस या चीनी का घोल लेकर उसमें कुछ यीस्ट डालिए। एक छिद्र वाली कॉर्क लगी परखनली में इस मिश्रण को ले जाइए। „„ कॉर्क में मड़ु ी हुई काँच की नली लगाइए। काँच की नली के स्वतंत्र सिरे को ताजा तैयार चनू े के पानी वाली परखनली में ले जाइए। „„ चनू े के पानी में होने वाले परिवर्तन को तथा इस परिवर्तन में लगने वाले समय के अवलोकन को नोट कीजिए। „„ किण्वन के उत्पाद के बारे में यह हमें क्या दर्शाता है? पिछले अनुभाग में हम जीवों में पोषण पर चर्चा कर चक ु े हैं। जिन खाद्य पदार्थों का अंतर्ग्रहण पोषण प्रक्रम के लिए होता है कोशिकाएँ उनका उपयोग विभिन्न जैव प्रक्रम के लिए ऊर्जा प्रदान करने के लिए करती हैं। विविध जीव इसे भिन्न विधियों द्वारा करते हैं— कुछ जीव अॉक्सीजन का उपभोग, ग्लूकोज़ को पूर्णतः कार्बन डाइअॉक्साइड तथा जल में, विखंडित करने के लिए करते हैं, जबकि कुछ अन्य जीव दसू रे पथ (चित्र 5.8) का उपयोग करते हैं, जिसमें अॉक्सीजन प्रयुक्‍त नहीं होती है। इन सभी अवस्थाओ ं में पहला चरण ग्लूकोज़, एक छः कार्बन वाले अणु का तीन कार्बन वाले अणु पायरुवेट में विखंडन है। यह प्रक्रम कोशिकाद्रव्य में होता है। इसके पश्‍चात पायरुवेट इथेनॉल तथा कार्बन डाइअॉक्साइड में परिवर्तित हो सकता है। यह प्रक्रम किण्वन के समय यीस्ट में होता है, क्योंकि यह प्रक्रम वायु (अॉक्सीजन) की अनुपस्थिति में होता है, इसे अवायवीय श्वसन कहते हैं। पायरुवेट का विखंडन अॉक्सीजन का उपयोग करके माइटोकॉन्ड्रिया में होता है। यह प्रक्रम तीन कार्बन वाले पायरुवेट के अणु को विखंडित करके तीन कार्बन डाइअॉक्साइड के अणु देता है। दसू रा उत्पाद जल है, क्योंकि यह प्रक्रम वायु (अॉक्सीजन) जैव प्रक्रम 97 2024-25 Chapter 5.indd 97 31-01-2023 16:52:12 की उपस्थिति में होता है, यह वायवीय श्वसन कहलाता है। वायवीय श्वसन में ऊर्जा का मोचन अवायवीय श्वसन की अपेक्षा बहुत अधिक होता है। कभी-कभी जब हमारी पेशी कोशिकाओ ं में अॉक्सीजन का अभाव हो जाता है, पायरुवेट के विखंडन के लिए दसू रा पथ अपनाया जाता है, यहाँ पायरुवेट एक अन्य तीन कार्बन वाले अणु लैक्टिक अम्ल में परिवर्तित हो जाता है। अचानक किसी क्रिया के होने से हमारी पेशियों में लैक्टिक अम्ल का निर्माण होना क्रै म्प का कारण हो सकता है। अॉक्सीजन की अनपु स्थिति इथेनॉल + कार्बन डाइअॉक्साइड + (यीस्ट मे)ं ऊर्जा (2 कार्बन अण)ु कोशिका अॉक्सीजन द्रव्य में पायरुवेट का अभाव ग्लूकोज़ (3-वायु में अणु लैक्टिक अम्ल + ऊर्जा (3 कार्बन अण)ु (6-कार्बन अण)ु + ऊर्जा) (हमारी पेशी कोशिका में) अॉक्सीजन की उपस्थिति कार्बन डाइअॉक्साइड + जल + ऊर्जा माइटोकॉन्ड्रिया में) चित्र 5.8 भिन्न पथों द्वारा ग्क लू ोज़ का विखडं न कोशिकीय श्‍वसन द्वारा मोचित ऊर्जा तत्काल ही ए.टी.पी. (ATP) नामक अणु के संश्‍लेषण में प्रयक्‍त ु हो जाती है जो कोशिका की अन्य क्रियाओ ं के लिए ईधन ं की तरह प्रयक्‍त ु होता है। ए.टी. पी. के विखडं न से एक निश्‍च‍ित मात्रा में ऊर्जा मोचित होती है जो कोशिका के अदं र होने वाली आतं रोष्मि (endothermic) क्रियाओ ं का परिचालन करती है। ए.टी.पी. अधिकांश कोशिकीय प्रक्रमों के लिए ए.टी.पी ऊर्जा मद्रा ु है। श्‍वसन प्रक्रम में मोचित ऊर्जा का उपयोग ए.डी.पी. (ADP) तथा अकार्बनिक फॉस्फे ट से ए.टी.पी. अणु बनाने में किया जाता है। यह भी जानिए! आतं रोष्मि प्रक्रम कोशिका के अदं र तब इसी ए.टी.पी. का उपयोग क्रियाओ ं के परिचालन में करते हैं। जल का उपयोग करने के बाद ए.टी.पी. में जब अतं स्थ फॉस्फे ट सहलग्नता खडिं त होती है तो 30.5 kJ/mol के तलु ्य ऊर्जा मोचित होती है। सोचिए कै से एक बैटरी विभिन्न प्रकार के उपयोग के लिए ऊर्जा प्रदान करती है। यह यांत्रिक ऊर्जा, प्रकाश ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा और इसी प्रकार अन्य के लिए उपयोग में लाई जाती है। इसी तरह कोशिका में ए.टी.पी. का उपयोग पेशियों के सिकुड़ने, प्रोटीन संश्‍लेषण, तंत्रिका आवेग का संचरण आदि अनेक क्रियाओ ं के लिए किया जा सकता है। 98 विज्ञान 2024-25 Chapter 5.indd 98 31-01-2023 16:52:12 क्योंकि वायवीय श्‍वसन पथ अॉक्सीजन पर निर्भर करता है, अतः वायवीय जीवों को यह सनिश्‍च‍ि ु त करने की आवश्यकता है कि पर्याप्‍त मात्रा में अॉक्सीजन ग्रहण की जा रही है। हम देख चक ुे हैं कि पौधे गैसों का आदान-प्रदान रंध्र के द्वारा करते हैं और अतं र्कोशिकीय अवकाश यह सनिश्‍च‍ि ु त करते हैं कि सभी कोशिकाएँ वायु के सपं र्क में हैं। यहाँ कार्बन डाइअॉक्साइड तथा अॉक्सीजन का आदान-प्रदान विसरण द्वारा होता है। ये कोशिकाओ ं में या उससे दरू बाहर वायु में जा सकती हैं। विसरण की दिशा पर्यावरणीय अवस्थाओ ं तथा पौधे की आवश्यकता पर निर्भर करती है। रात्रि में, जब कोई प्रकाश संश्‍लेषण की क्रिया नहीं हो रही है, कार्बन डाइअॉक्साइड का निष्कासन ही मखु ्य आदान-प्रदान क्रिया है। दिन में, श्‍वसन के दौरान निकली CO2 प्रकाश सशं ्‍लेषण में प्रयक्‍त ु हो जाती है अतः कोई CO2 नहीं निकलती है। इस समय अॉक्सीजन का निकलना मखु ्य घटना है। जतं ओ ु ं में पर्यावरण से अॉक्सीजन लेने और उत्पादित कार्बन डाइअॉक्साइड से छुटकारा पाने के लिए भिन्न प्रकार के अगं ों का विकास हुआ। स्थलीय जंतु वायमु डं लीय अॉक्सीजन लेते हैं, परंतु जो जतं ु जल में रहते हैं, उन्हें जल में विलेय अॉक्सीजन ही उपयोग करने की आवश्यकता है। क्रियाकलाप 5.6 „„ एक जलशाला में मछली का अवलोकन कीजिए। वे अपना महँु खोलती और बंद करती रहती हैं। साथ ही आँखों के पीछे क्लोमछिद्र (या क्लोमछिद्र को ढकने वाला प्रच्छद) भी खल ु ता और बंद होता रहता है। क्या महँु और क्लोमछिद्र के खलु ने और बंद होने के समय में किसी प्रकार का समन्वय है? „„ गिनती करो कि मछली एक मिनट में कितनी बार महँु खोलती और बंद करती है। „„ इसकी तल ु ना आप अपनी श्‍वास को एक मिनट में अदं र और बाहर करने से कीजिए। जो जीव जल में रहते हैं, वे जल में विलेय अॉक्सीजन का उपयोग करते हैं, क्योंकि जल में विलेय अॉक्सीजन की मात्रा वायु में अॉक्सीजन की मात्रा की तल ु ना में बहुत कम है, इसलिए जलीय जीवों की श्‍वास दर स्थलीय जीवों की और अधिक जानें अपेक्षा द्रुत होती है। मछली अपने महँु के द्वारा जल लेती है तथा बलपर्वू क इसे तंबाकू का सीधे उपयोग या सिगार, क्लोम तक पहुचँ ाती है, जहाँ विलेय अॉक्सीजन रुधिर ले लेता है। सिगरे ट, बीड़ी, हुक्का, गटु का आदि के रूप स्थलीय जीव श्‍वसन के लिए वायमु डं ल की अॉक्सीजन का उपयोग करते में किसी भी उत्पाद का उपयोग हानिकारक हैं। विभिन्न जीवों में यह अॉक्सीजन भिन्न-भिन्न अगं ों द्वारा अवशोषित की जाती है। तंबाकू का उपयोग आमतौर पर जीभ, है। इन सभी अगं ों में एक रचना होती है, जो उस सतही क्षेत्रफल को बढ़ाती है, फे फड़ों, दिल और यकृ त को प्रभावित करता जो अॉक्सीजन बाहुल्य वायमु डं ल के संपर्क में रहता है। है। धआु ँ रहित तबं ाकू भी दिल के दौरे , स्ट्रोक, क्योंकि अॉक्सीजन व कार्बन डाइअॉक्साइड का विनिमय इस सतह के फुफ्फु सीय बीमारियों और कैं सर के कई अन्य आर-पार होता है, अतः यह सतह बहुत पतली तथा मल ु ायम होती है। इस रूपों के लिए एक प्रमख ु कारक है। भारत में सतह की रक्षा के उद्देश्य से यह शरीर के अदं र अवस्थित होती है। अतः इस गटु का सेवन से मख ु के कैं सर की घटनाएँ क्षेत्र में वायु आने के लिए कोई रास्ता होना चाहिए। इसके अतिरिक्‍त जहाँ बढ़ रही हैं। स्वस्थ रहें और तंबाकू से बने अॉक्सीजन अवशोषित होती है, उस क्षेत्र में वायु अदं र और बाहर होने के लिए उत्पादों को न कहें! एक क्रियाविधि होती है। जैव प्रक्रम 99 2024-25 Chapter 5.indd 99 31-01-2023 16:52:12 मनष्य ु में (चित्र 5.9), वायु शरीर के अदं र नासाद्वार द्वारा जाती है। नासाद्वार द्वारा जाने वाली वायु मार्ग में उपस्थित महीन बालों द्वारा निस्पंदित हो जाती है, जिससे शरीर में जाने वाली वायु ू तथा दसू री अशद्ु धियाँ रहित होती है। इस मार्ग में श्‍लेष्मा की परत होती है, जो इस प्रक्रम में धल सहायक होती है। यहाँ से वायु कंठ द्वारा फुफ्फु स में प्रवाहित होती है। कंठ में उपास्थि के वलय उपस्थित होते हैं। यह सनु िश्‍च‍ित करता है कि वायु मार्ग निपतित न हो। नासाद्वार मख ु गहु ा श्‍वासनली ग्रसनी कंठ उपास्थि वलय कूपिका श्‍वसन श्वसनिकाएँ फुफ्फु स श्‍वसनी पसलियाँ श्‍वसनिका डायाफ्राम कूपिका कोश चित्र 5.9 मानव श्‍वसन तंत्र धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए फुफ्फु स के अदं र मार्ग छोटी और छोटी नलिकाओ ं में विभाजित हो जाता हानिकारक है है, जो अतं में गबु ्बारे जैसी रचना में अतं कृ त हो जाता है, जिसे कूपिका कहते फे फड़े का कैं सर दनु िया में मौत के सामान्य हैं। कूपिका एक सतह उपलब्ध कराती है, जिससे गैसों का विनिमय हो सकता कारणों में से एक है। श्‍वासनली के ऊपरी हिस्से है। कूपिकाओ ं की भित्ति में रुधिर वाहिकाओ ं का विस्तीर्ण जाल होता है। जैसा में छोटी-छोटी बालों जैसी सरं चनाएँ होती हैं, हम प्रारंभिक वर्षों में देख चकु े हैं, जब हम श्‍वास अदं र लेते हैं, हमारी पसलियाँ जिन्हें सिलिया कहते हैं। ये सिलिया साँस लेते ऊपर उठती हैं और हमारा डायाफ्राम चपटा हो जाता है, इसके परिणामस्वरूप वक्‍त अंदर ली जाने वाली वायु से रोगाण,ु वक्षगहिु का बड़ी हो जाती है। इस कारण वायु फुफ्फु स के अदं र चसू ली धल ू और अन्य हानिकारक कणों को हटाने में जाती है और विस्तृत कूपिकाओ ं को भर लेती है। रुधिर शेष शरीर से कार्बन मदद करती हैं। धम्रू पान करने से ये बालों जैसी डाइअॉक्साइड कूपिकाओ ं में छोड़ने के लिए लाता है। कूपिका रुधिर वाहिका सरं चनाएँ नष्‍ट हो जाती हैं, जिससे रोगाण,ु धल ू , का रुधिर कूपिका वायु से अॉक्सीजन लेकर शरीर की सभी कोशिकाओ ं तक धआ ु ँ और अन्य हानिकारक रसायन फे फड़ों में पहुचँ ाता है। श्‍वास चक्र के समय जब वायु अदं र और बाहर होती है, फुफ्फु स प्रवेश कर जाते हैं, जो सक्र ं मण, खाँसी और यहाँ सदैव वायु का अवशिष्‍ट आयतन रखते है?

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