6. एक लेख और एक पत्र, 7. ओ सदानीरा PDF

Summary

This document contains excerpts from a historical study of figures like Bhagat Singh, and political movements and thoughts in India. It also highlights a specific historical figure or historical event along with associated political ideas, and includes discussions on speeches given during the events. The emphasis is on historical and political context, and education.

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पाठ - 7. एक लेख और एक पत्र लेखक - भगत सिंह जन्म - 28 सितम्बर 1907 ई० जन्म स्थान - बंगा चक्क नम्बर 105 , वर्तमान लायलपुर (पाकिस्तान ) पैतक ृ गांव - खटकड़कलां ,पंजाब । माता - विद्यावती पिता - सरदार किशन सिंह परिवार - सम्पूर्ण परिवार स्वतंत्रता सेनानी । शिक्षा - डी...

पाठ - 7. एक लेख और एक पत्र लेखक - भगत सिंह जन्म - 28 सितम्बर 1907 ई० जन्म स्थान - बंगा चक्क नम्बर 105 , वर्तमान लायलपुर (पाकिस्तान ) पैतक ृ गांव - खटकड़कलां ,पंजाब । माता - विद्यावती पिता - सरदार किशन सिंह परिवार - सम्पूर्ण परिवार स्वतंत्रता सेनानी । शिक्षा - डी ०ए ०वी० स्कूल लाहौर से नौ तक की पढ़ाई की साथ ही नेशनल कॉलेज लाहौर से बी ०ए ० के दौरान पढ़ाई छोड़ दी । प्रभाव - बचपन में करतार सिंह सराभा और 1914 के गदर पार्टी के आंदोलन के प्रति तीव्र आकर्षण । गतिविधियां - 12 वर्ष की उम्र में जलियांवाला बाग की मिट्टी लेकर क्रांतिकारी गतिविधियों की शुरुआत। प्रमुख रचनाए ँ - पंजाब की भाषा तथा लिपि की समस्या , विश्वप्रेम, युवक,मैं नास्तिक क्यों हू ँ ,छूत समस्या ,विद्यार्थी और राजनीति आदि। शहादत - 23 मार्च 1931 ( शाम 7:33 मिनट पर लाहौर षड्य ं त्र केस में फाँसी ) । विशेष :- ❖ 1922 में चौराचौरी कांड के बाद 15 वर्ष की उम्र में कांग्रेस और महात्मा गांधी से मोह भंग । ❖ 1923 में पढ़ाई और घर छोड़कर कानपरु ,गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र प्रताप में सेवाएं दी । ❖ 1926 में अपने नेतत्ृ व में पंजाब में नौजवान भारत सभा का गठन किया । ❖ 1928 से 31 तक चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर हिंदस् ु तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघर्ष का गठन किया और क्रांतिकारी आंदोलन सघन रूप से छे ड़ दिया । ❖ 8 अप्रैल 1929 को व कुटे श्वर दत्त और राजगरु ु के साथ केंद्रीय असेंबली में बम फेंका और गिरफ्तार हुए। ❖ पहली गिरफ्तारी अक्टूबर 1926 दशहरा मेले में , दस ू री गिरफ्तारी बम विस्फोट के कारण मई 1927 में हुई । पाठ का सारांश :- विद्यार्थी और राजनीति लेख में भगत सिंह ने विद्यार्थियों को यह दिशा निर्देश दे ना चाहा है कि विद्यार्थी का मख् ु य कार्य है पढ़ना लिखना अपने पढ़ाई को बिना किसी बाधा के जारी रखना ।लेकिन जब दे श में समस्याएं मह ंु बाए खड़ी हो चाहे वह आर्थिक ,राजनीतिक, धार्मिक समस्या हो उस समय मौन नहीं रह कर मख ु र हो आगे आना चाहिए ।उस में भाग लेना चाहिए यह हर विद्यार्थी का कर्तव्य है । जब इंग्लैंड पर समस्या आयी वहाँ के सारे विद्यार्थी कालेज छोड़कर जर्मनी के खिलाफ लड़ाई में खड़े हो गए और जर्मनी के साथ यद् ु ध किया ।लेकिन भारत दे श में जो आज स्थिति है । वह समझ से परे है क्योंकि भारतीय विद्वान कहते हैं कि विद्यार्थियों को राजनीति में भाग नहीं लेना चाहिए उनका काम है । सिर्फ पढ़ना पंजाब में तो हद हो गई है । विद्यार्थियों से कालेज में दाखिल होने के समय ही शर्त पर हस्ताक्षर करवाए जाते हैं कि वे राजनीति में भाग नहीं लेंगे ।कुछ दिन पहले जब लाहौर में विद्यार्थी सभा की ओर से विद्यार्थी सप्ताह का आयोजन किया गया था ।वहां भी सर अब्दल ु कादर और प्रोफेसर ईश्वर चंद्र नंदा ने इस बात पर जोर दिया कि विद्यार्थियों को राजनीति में हिस्सा नहीं लेना चाहिए । ज़शायद आप यह मानते हैं कि विद्यार्थियों का मख् ु य कार्य पढ़ाई करना ।उन्हें अपना परू ा ध्यान उस और लगा दे ना चाहिए, लेकिन क्या दे श की परिस्थितियों का ज्ञान और उनके सध ु ार के उपाय सोचने की योग्यता पैदा करना उस शिक्षा में शामिल नहीं है । यदि नहीं तो हम उस शिक्षा को भी निकम्मी समझते हैं जो सिर्फ क्लर्की करने के लिए हासिल की जाए । आज भी हमारे समाज में गैर बराबरी, भेदभाव, अशिक्षा अंधविश्वास, गरीबी अन्याय आदि दर्गु ु ण एवं अभाव अभी भी जमे हुए हैं संस्कृतिक स्वाधीनता का लक्ष्य अभी भी दरू है बेहतर मानवीय जमे हुए है ।वेहतर मानवीय व्यवस्था के लिए आज भी राजनीतिक संघर्ष जारी है । एक पत्र में भगत सिंह ने अपने मित्र सखु दे व को पत्र लिखा है । जिसमें आत्महत्या को कहीं भी किसी स्थिति में अच्छा नहीं कहा जा सकता है क्योंकि आत्महत्या एक एक घणि ृ त अपराध है । यह पर्ण ू तः कायरता का कार्य है । क्रांतिकारी का तो कहना क्या कोई भी मनष्ु य ऐसे कार्य को उचित नहीं ठहरा सकता है ।आप जैसे व्यक्ति की ओर से ऐसा प्रश्न करना बड़े आश्चर्य की बात है क्योंकि नौजवान भारत सभा के लक्ष्य' सेवा द्वारा कष्टों को सहन करना एवं बलिदान करना 'को हमने सोच समझकर कितना प्यार किया था मानव किसी भी कार्य को उचित समझकर करता है ।जैसे कि हमने असेंबली में बम फोड़कर किया था ।हम अपने लक्ष्य में सफल हुए इस प्रकार संघर्ष में मरना एक आदर्श मत्ृ यु है । धैर्य पर्ण ू उस दिन की प्रतीक्षा करनी होगी जब यह सजा सन ु ाई जाएगी और तत्पश्चात फांसी दी जाएगी।यह मत्ृ यु सद ंु र होगी परं तु आत्महत्या करना केवल कुछ दख ु ों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर दे ना कायरता है ।मैं आपको बताना चाहता हूं कि विपत्तियां व्यक्ति को पर्ण ू बनाने वाली होती है ।हम में से किसी ने भी किंचित कष्ट सहन नहीं किया है ।हमारे जीवन का यह भाग तो आरं भ होता है मझ ु े अपने लिए मत्ृ यद ु ं ड सन ु ाए जाने का अटल विश्वास है ।मझ ु े किसी प्रकार की पर्ण ू क्षमा या नम्र व्यवहार का तनिक भी आशा नहीं है । मेरी अभिलाषा है कि जब यह आंदोलन अपने चरम सीमा पर पहुंचे उसी समय मझ ु े फांसी दे दी जाए। जब दे श के भाग्य का फैसला हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पर्ण ू तया भल ु ा दे ना चाहिए ।क्रांति तो केवल सतत कार्य करते रहने से प्रयत्नों से कष्ट सहन करने से एवं बलिदानों से ही उत्पन्न की जा सकती है और की जाएगी। निष्कर्ष - इस पत्र में भगत सिंह और सख ु दे व के बीच के अंतरं ग संवाद की एक शिक्षाप्रद झलक मिलती है ।जो मनष्ु य के लिए प्रेरणा स्रोत है । प्रश्न :- 1. क्या आज आजादी के सम्पूर्ण लक्ष्य हासिल कर लिए गए हैं ? उत्तर - इस समस्या को भगत सिंह ने अपने लेख में उठाया है ।दे श की वर्तमान में जो स्थिति थी उसका सटीक चित्रण इस लेख में मिलता है । समाज में गैर बराबरी, भेदभाव, अंधविश्वास, गरीबी ,अन्याय आदि दर्गु ु ण एवं अभाव अभी भी जमे हुए हैं ।सांस्कृतिक स्वाधीनता का लक्ष्य भी दरू दिखाई पड़ता है । बेहतर मानवीय व्यवस्था के लिए आज भी राजनीतिक संघर्ष जारी है । 2. आत्महत्या के बारे में सुखदे व के क्या विचार थे ?लिखें। उत्तर - सख ु दे व को लिखे पत्र में भगत सिंह ने आत्महत्या की चर्चा की है । जेल के बाहर रहने की स्थिति में चर्चा हुई थी ।कई परिस्थितियों में आत्महत्या उचित हो सकती है , इसका सख ु दे व ने विरोध किया था। आत्महत्या को कायरता कार्य मानकर उसे अनचि ु त करार दिया।और कहा कि आत्महत्या भयानक एवं घणि ृ त कार्य है । बाद में भगत सिंह भी इस विचार से सहमत हुए। गृहकार्य प्रश्न :- 1. भगत सिंह कौन थे ? 2. भगत सिंह के अनुसार दे स को कैसे युवको की आवश्यकता है ? पाठ - 7. ओ सदानीरा लेखक - जगदीश चन्द्र माथुर जन्म - 16 जुलाई 1917 ई० जन्म स्थान - शाहजहाँपुर प्रदे श - उत्तर प्रदे श शिक्षा - एम०ए०( अ ं ग्रेजी) इलाहाबाद विश्वविद्यालय। 1941 में आई० सी०एस० परीक्षा उतीर्ण । प्रशिक्षण के लिए अमेरिका गये और उसके बाद बिहार में शिक्षा सचिव हुए। कार्य - सन 1944 में बिहार के सुप्रसिद्ध सांस्कृतिक उत्सव वैशाली महोत्सव का बीजारोपण किया । ऑल इंडिया रेडियो में महानिदे शक रहे । सम्मान - विद्या वारिधि की उपाधि से विभूषित, कालिदास अवार्ड और बिहार राजभाषा पुरस्कार से सम्मानित । प्रमुख रचनाए ँ - मेरी बासुरी , भोर का तारा, ओ मेरे सपने ,मेरे श्रेष्ठ रंग एकांकी, कोणार्क , बंदी, *एकांकी) बोलते क्षण ( निबंध संग्रह )। मृत्यु - 14 मई 1978 ई०. पाठ का सारांश :- प्रस्तत ु निबंध ओ सदानीरा इनके बोलते क्षण से लिया गया है इसमे गंडक को निमित्त बनाकर लिखा गया है । पर उसके किनारे की संस्कृति और जीवन प्रवाह की अतरं गी झांकी पेश करता हुआ जैसे स्वयं गंडक की तरह ही प्रवाहित होता दिखाई पड़ता है । लेखक जब चंपारण यात्रा पर गए थे । उन्होंने गंडक नदी के सौंदर्य को दे खा साथ ही उसके इतिहास से भी रूबरू हुए उसी का वर्णन इस पाठ में कर रहे हैं ।गंडक नदी जो प्राचीन काल से सदा हरे -भरे वनों से आच्छादित जल से परिपर्ण ू नदी है ।लेकिन आज वनों को काटे जाने से बाढ़ जैसे हालात हर साल बनी हुई है । बाढ़ आती है । सारी फसलें बर्बाद हो जाती है । पहले नदी में बाढ़ आती थी लेकिन वनों के कारण पेड़ो के कारण इतना भयावह रूप नहीं लेती थी जितना आज। लेखक बौद्ध काल से लेकर तग ु लक वंश के साथ अंग्रेजों के समय साथ ही बंगाल के विभाजन के बाद पर्वी ू बांग्लादे श से आए शरणार्थियों की चर्चा की है जिसको गंडक नदीऔर जंगल से छीनी गई धरती को जोतने के लिए हाथ बाहर से ही आए। पिछले पाँच सात सौ वर्षों में थारू और भागड़ जातियां यहां आकर बसी।थारुओं के उद्भव के विषय में अनेक मत हैं। वे लोग अपने को आदिवासी नहीं मानते थारू शब्द को थार राजस्थान से निकला मानते हैं।धागड़ो को 18वीं शताब्दी के अंत में लाया गया। नील की खेती के सिलसिले में वर लोग दक्षिण बिहार छोटा नागपरु पठार से आए और वहां की आदिवासी जातियां मड ंु ा ,लोहार इत्यादि के वंशज हैं धांगड़ शब्द का अर्थ है ।ओरांव भाषा में भाड़े का मजदरू दक्षिण बिहार के गया जिले से भई ू या लोग भी इसी भांति नील की खेती के लिए हिमालय की तलहटी में लाए गए ।इस तरह दक्षिण का रक्त और संस्कृति इस प्रदे श की निधि बने कितने लोग इतिहास की इस किमीआयी रासायनिक प्रक्रिया से परिचित हैं। इस प्रकार सभी संस्कृति के लोग गंगा किनारे रहने लगे । यद्यपि मेरे अनरु ोध पर एक दे हाती प्रदर्शनी का आयोजन किया गया तथा थारुओं की कला मल ू तः उनके दै निक जीवन का अंग है जिस पात्र में धान रखा जाता है ।वह सिक का बनाया जाता है । कई तरह के रं गों और डिजाइन के साथ सीक की रं ग बिरं गी टोकरियों के किनारे सीपों की झालर लगाई जाती है । दीपक की आकृति भी कलापर्णू है ।किंतु सबसे मनोहर नववधू का एक अनोखा अलंकरण जो मात्र आभष ू ण नहीं है । हर पत्नी दोपहर का खाना लेकर पति के पास खेत में जाती है नव वधु जब पहली बार जाती है तो अपने मस्तक पर पीड़ा रखती है । उसके ऊपर टोकरी टोकरी में भोजन रखा होता है ।जिसे धीरे -धीरे खेत पर ले जाती है ।अपने पति को भोजन कराने। किंतु यहां का जीवन सख ु ी संपन्न नहीं था । बेतिया राज की जमीन दारी में तो अंग्रेज ठे केदार बन गए और 19वीं सदी में नील की खेती का विस्तार किया। नील से ही उन दिनों रं ग बनते थे इसलिए नील कि 50 दे शों में बहुत मांग थी। किसानों से जबरदस्ती नील की खेती कराई गई हर 20 कट्ठा जमीन में 3 कट्ठा नील की खेती करने के लिए हर किसान को रखना जरूरी था। इस तिनकठिया परं परा से किसान बहुत परे शान थे उनसे ज्यादा लगान टै क्स लिए जाते थे। अंग्रेजों के आतंक से वहां के किसान बहुत परे शान थे ।अगर किसी घर में शादी हो तो नजराना पेश करना पड़ता था। अगर किसी अंग्रेज को हाथी खरीदना हो चाहे उसकी तबीयत खराब हो गई हो उसके लिए किसानों को पैसा दे ना पड़ता था ।एमन साहब का आतंक तो और था जबरन किसी को जेल में डाल दे ना किसी के झोपड़ी में आग लगा दे ना। यह सब उन दिनों आम बात थी ।साथ ही अंग्रेज गंगा नदी पर पल ु का निर्माण नहीं कराए थे कि दक्षिण बिहार के बागी विचारों का असर चंपारण में दे र से पहुंचे । आतंक और बेबसी के उस आलम में सन 1917 के अप्रैल में एक बिजली सी चमकी चंपारण में गांधी जी का आगमन हुआ। निलहों के आतंक को उन्होंने अपनी आंखों से दे खा। गांधी जी चंपारण आए तो किसी की हिम्मत नहीं हुई की गांधी जी को अपने यहाँ आश्रय दे ।अंग्रेज का डर वहां के लोगों में भरा था। गांधीजी एक मठ में पेड़ के नीचे अपनी झोपड़ी बनाई उसको भी एमन साहब के कर्मचारियों ने आग लगा दी। लेकिन गांधीजी हार नहीं माने अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाते रहे ।उनको लगा कि जब तक यहां के जनमानस में शिक्षा का प्रसार नहीं होगा तब तक उनके सामाजिक जीवन में सध ु ार नहीं हो सकता है ।थोड़े दिन बाद उन्होंने तीन गाँवो में आश्रम विद्यालय स्थापित किए। बरहरवा मधब ु न और भितिहारवा कुछ निष्ठावान कार्यकर्ताओं को इन गाँवो में तैनात किए ।गजु रात और महाराष्ट्र से विद्वानों को बल ु ाया गया साथ ही दे वदास गांधी के साथ कस्तरू बा भी आश्रम में रहकर सेवा करती थी । इन विद्यालयों का आदर्श था जिसे गांधी जी ने एक पत्र के माध्यम से अंग्रेज कलेक्टर से कहा मैंने इन स्कूलों में किसी तरह का नापा तल ु ा पाठ्यक्रम चालू नहीं किया है । क्योंकि वर्तमान शिक्षा पद्धति को तो मैं खौफनाक मानता हूं ।जो छोटे बच्चों के चरित्र और बद् ु धि का विकास करने के बजाय यह पद्धति उन्हें बौना बनाती है । अपने प्रयोग में वर्तमान पद्धति के गण ु ों को ग्रहण करते हुए दोषो से बचने की चेष्टा करूंगा । पड ंु लिक जी को गांधी जी ने बेलगांव से बल ु ाया भितिहरवा आश्रम में रह कर बच्चों को पढ़ाने के लिए और ग्राम वासियों के दिल से भय दरू करने के लिए एक दिन एमन साहब इनके आश्रम में आया कायदा था कि साहब जब आए तो गह ृ पति उसके घोड़े की लगाम पकड़े ।पड ंु लिक जी ने कहा नहीं उसे आना है तो मेरी कक्षा में आए लगाम पकड़ने नहीं जाऊंगा। पड ंु लिक जी ने गांधी जी से सीखी निर्भीकता और वही निर्भीकता गांव वालों को भी दी ।फिर गांधी जी के द्वारा चंपारण के लोगों को अंग्रेजों के आतंक से मक्ति ु मिली । गंडक नदी के किनारे बौद्ध तीर्थ और जैन तीर्थ हैं इसी रास्ते फाह्यान और व्हे न सांग यहां आए थे यही वो रास्ता है जिसे भगवान बद् ु ध अपनी अंतिम यात्रा पर गए थे। गज ग्राह की लड़ाई यही शरू ु हुई थी ।वही तमसा नदी भी है जहां बाल्मीकि आश्रम है ।गंडक घाटी के दोनों और नाना आकृति के ताल दिखाई पड़ते हैं कहीं उथले कहीं गहरे इन तालों को चोर और मन कहते हैं ।चोर उथले ताल हैं जिनमें पानी जाड़ों और गर्मियों में कम हो जाता है और खेती भी होती है ।मन विशाल और गहरे ताल है मन शब्द मानस का अपभ्रंश है ।आज भैंसा लोटन में भारतीय इंजीनियर जंगल के बीच इस नवीन जीवन केंद्र का निर्माण कर रहे हैं । निष्कर्ष - आज विधत ु शिराओं का जाल फैल रहा है ।बैराज नहरों का निर्माण हो रहा है जिससे गंडक नदी फिर से शस्य श्यामल हो मानव जीवन के लिए वरदान साबित होगीl प्रश्न:- 1. धांगड़ शब्द का क्या अर्थ है? उत्तर - धांगड़ छोटा नागपरु की आदिवासी जातियों --उराँव, मड ंु ा, लोहार आदि के वंशज हैं ।धांगड़ शब्द का अर्थ उरांव भाषा में होता है --" भाड़े का मजदरू " । धागड़ो को 18वीं शताब्दी के अंत में नील की खेती के सिलसिले में छोटा नागपरु के पहाड़ से लाया गया। इनके लोकगीतों में 200 वर्ष पर्व ू के उस महाप्रस्थान की कथा बिखरी पड़ी है ।इन्हें लगभग गल ु ामी का जीवन बिताना पड़ा। ये काफी वलिष्ठ मे हनती होते हैं। आपस में धांगड़ मिश्रित ओराँव भाषा में बात करते हैं और दस ू रों के साथ भोजपरु ी या मधेसी भाषा में ।इनका आदिवासी नत्ृ य अत्यंत मनोहारी होता है । 2. पुंडलीक जी कौन थे ? उत्तर - पड ंु लीक जी को महात्मा गांधी ने भितिहरवा में रहकर बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजा था ।उन्हें दस ू रा कार्य सौंपा गया था कि ग्राम वासियों के दिल से भय दरू करें ।उन्हें ग्राम वासियों के हृदय में नई आशा तथा सरु क्षा का भाव जागत ृ करना था ।यह लगभग एक साल रह सकें । अंग्रेज सरकार ने उन्हें जिले से निलंबित कर दिया लेकिन फिर भी वह हर दो-तीन साल में अपने परु ाने स्थान को दे खिए आ जाते हैं । लेखक की मल ु ाकात संयोग से पड ंु लीक जी से भितिहरवा आश्रम में हुई ।वह उनके व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुए। 3. गांधीजी के शिक्षा संबंधी आदर्श क्या थे ? उत्तर - गांधीजी ने उन तीनों विद्यालयों में सरकार की शिक्षा नीति के आधार पर नापा -तौला पाठ्यक्रम चालू नहीं किया क्योंकि वे परु ाने लीक से हटकर पठन-पाठन की व्यवस्था करना चाहते थे । वह ब्रिटिश सरकार की शिक्षा पद्धति को खौफनाक समझते थे तथा उसे हे य मानते थे ।उनके अनस ु ार छोटे बच्चों के चरित्र और बद् ु धि का विकास करने के बजाय यह पद्धति उन्हें बौना बना दे ती है ।उनका मख् ु य उद्दे श्य था कि बच्चे ऐसे परु ु ष और महिलाओं के संपर्क में आए जो सस ु स् ं कृत और निष्कलष ु चरित्र के हो ।इसे ही गांघी जी वस्तत ु ः शिक्षा मानते थे । गृहकार्य 1. गंगा पर पुल बनाने में अ ं ग्रेजों ने क्यो दिलचस्पी नहीं ली? 2. थारुओं की कला का परिचय पाठ के आधार पर दें ।

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