श्रुति - संगीत का मूलाधार PDF

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श्रुति संगीत सिद्धांत भारतीय संगीत स्वर

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यह दस्तावेज़ श्रुति, संगीत का मूलभूत तत्व, इसकी परिभाषा, संख्या, विशेषताओं और स्वर-व्यवस्था से संबंधित जानकारी प्रदान करता है। यह भारतीय संगीत के सिद्धांतों से संबंधित विषय वस्तु पर आधारित है।

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# श्रुति ## श्रुति की परिभाषा - श्रुति सूक्ष्मतर ध्वनि है। - संगीत का मूलाधार श्रुति को माना जाता है। - श्रुति शब्द की उत्पत्ति 'श्रु' धातु से मानी है। - 'श्रु' का अर्थ सुनना अर्थात जो सुनाई दे वह श्रुति है। - शास्त्रकारों के अनुसार श्रुति की परिभाषा इस प्रकार है- 'श्रूयते इति श्रुतिः' अर्थात जो...

# श्रुति ## श्रुति की परिभाषा - श्रुति सूक्ष्मतर ध्वनि है। - संगीत का मूलाधार श्रुति को माना जाता है। - श्रुति शब्द की उत्पत्ति 'श्रु' धातु से मानी है। - 'श्रु' का अर्थ सुनना अर्थात जो सुनाई दे वह श्रुति है। - शास्त्रकारों के अनुसार श्रुति की परिभाषा इस प्रकार है- 'श्रूयते इति श्रुतिः' अर्थात जो आवाज सुनाई दे वह श्रुति है। - कानों को सुनाई देने वाली हर आवाज श्रुति नहीं हो सकती, इसीलिए श्रुति को इस प्रकार भी परिभाषित किया जा सकता है कि 'संगीतोपयोगी ध्वनि अथवा नाद जो कानों को स्पष्ट रूप से सुनाई दे सके, श्रुति कहलाती है। - श्रुति को परिभाषित करते हुए यह भी कहा जा सकता है कि जो ध्वनि स्पष्ट सुनी जा सके, समझी जा सके और किन्हीं दो ध्वनियों के बीच का अन्तर बता सके वह श्रुति है। ## श्रुति संख्या - भारतीय संगीत में श्रुतियों की संख्या बाईस मानी गई है। - हमारे संगीत विद्वानों के अनुसार हमारे हृदय स्थान में बाईस नाड़ियां हैं, उनके सभी नाद स्पष्ट, सुने जा सकते हैं; अत: उन्हीं को श्रुति कहा गया और श्रुति के बाईस भेद माने गए। | श्रुति संख्या | श्रुति नाम | श्रुति संख्या | श्रुति नाम | |------------|-------------|------------|-------------| | 1 | तीव्रा | 12 | प्रीति | | 2 | कुमुद्धति | 13 | मार्जनी | | 3 | मंद्रा | 14 | क्षिति | | 4 | छंदोवती | 15 | रक्ता | | 5 | दयावती | 16 | संदीपनी | | 6 | रजनी | 17 | अलापिनी | | 7 | रक्तिका | 18 | मदंती | | 8 | रौद्री | 19 | रोहिणी | | 9 | क्रोधा | 20 | रम्या | | 10 | वज्रिका | 21 | उग्रा | | 11 | प्रसारिणी | 22 | क्षोभिणी | ## श्रुति की विशेषताएं - प्राचीनकाल से ही विद्वान यह मानते आए हैं कि नाद की अप्रयुक्त अवस्था श्रुति तथा प्रयुक्त अवस्था स्वर कहलाती है। - इसी आधार पर श्रुति की निम्न विशेषताएं कही गई हैं: 1. जो पहचानी जा सके, वह श्रुति है। 2. जो प्रयुक्त की जा सके, वह श्रुति है। 3. जो भावाभिव्यक्ति में समर्थ हो। 4. जो स्पष्ट रूप से सुनाई देती हो। 5. जो स्वरों के अंतर को मापने का पैमाना हो। ## श्रुति-स्वर व्यवस्था - बाईस श्रुतियों को मुख्य रूप से सात स्वरों में विभक्त किया गया है। - प्राचीन काल से प्रचलित नियमानुसार ही यह विभाजन किया गया है: "चतुश्चतुश्चतुश्चैव षड्जमध्यमपंचमा, द्वै द्वै निषादगंधारो त्रिस्ती ऋषभधैवतो ।।" - इस आधार पर षड्ज, मध्यम तथा पंचम को चार-चार श्रुतियां, गंधार तथा निषाद को दो-दो तथा ऋषभ तथा धैवत को तीन-तीन श्रुतियां दी गई हैं। - तत्पश्चात् इन सात स्वरों को अपनी-अपनी श्रुति संख्या अनुसार निश्चित श्रुतियों पर स्थापित किया गया है। जो कि नीचे दर्शाया गया है: | श्रुति संख्या | स्वर | |------------|------| | 1 | सा | | 2 | रे | | 3 | ग | | 4 | म | | 5 | प | | 6 | ध | | 7 | नि | | 8 | सा | | 9 | रे | | 10 | ग | | 11 | म | | 12 | प | | 13 | ध | | 14 | नि | | 15 | सा | | 16 | रे | | 17 | ग | | 18 | म | | 19 | प | | 20 | ध | | 21 | नि | | 22 | सा | - इस प्रकार बाईस श्रुतियों पर सात स्वरों की स्थापना में स्वरों का श्रुति अंतराल 4-3-2-4-4-3-2 माना गया है। - श्रुति अंतराल देखने से ही यह जानना सरल हो जाता है कि कौन सा स्वर कौन सी श्रुति पर स्थापित है। # स्वर ## स्वर की परिभाषा - नियमित आंदोलन संख्या वाली ध्वनि स्वर कहलाती है। - यही संगीत में उपयोगी है, सुनने में मधुर लगती है तथा चित्त को प्रसन्नता प्रदान करती है। - इसके विपरीत ध्वनि 'शोर' कहलाती है। - व्याकरण के अनुसार 'स्वयं राजन्ते इति स्वराः' अर्थात् स्वयं प्रकाशित होने वाले अकारादि (अ, आ) स्वर कहलाते हैं। - संगीत ग्रंथों में मतंग की बृहद्देशी अनुसार स्वर शब्द के दो भाग स्व+र माने गए हैं। 'स्व' अर्थात् स्वयं तथा 'र' का अर्थ है 'राजते'। - स्वं राजते अर्थात् जो स्वयं प्रकाशित हो। - जिसमें रंजन करने की क्षमता हो वही. स्वर है। ## स्वर की परिभाषा पं० शारंगदेव के अनुसार - श्रुति पश्चात् निरंतर होने वाली अटूट मधुर ध्वनि जो मानव चित्त को आनंद प्रदान करे, स्वर कहलाती है। ## स्वर की परिभाषा आचार्य बृहस्पति के अनुसार - स्वर को परिभाषित करते हुए आचार्य बृहस्पति कहते हैं कि 'श्रुति के स्थान पर होने वाले अभिघात से उत्पन्न जो शब्द है, उसके प्रभाव से उद्भूत जो अनुरणनात्मक (गूंजयुक्त) स्निग्ध और मधुर जो शब्द होता है, वही स्वर है। - संक्षेप में यह भी कहा जा सकता है- जो ध्वनि स्पष्ट रूप से सुनी जा सकती है, मधुर है तथा मन का रंजन करती है। वही स्वर संज्ञा से सुशोभित होती है। ## स्वर संख्या - वैसे तो स्वर सात माने हैं। सा, रे, ग, म, प, ध, नि। - लेकिन कुल स्वर 12 माने गए हैं। - इन्हीं सात स्वरों में से सा तथा प स्वर को छोड़ कर बाकी पाँच स्वरों के दो रूप माने गए हैं जिससे 5×2=10 और सा तथा प मिला कर कुल 12 स्वर हुए। - इनका विस्तृत वर्णन आगे किया जा रहा है। - इन सात स्वरों के सात सांगीतिक नाम भी रखे गए हैं। | क्रमांक | स्वर | सांगीतिक नाम | |------------|------|-------------| | 1 | सा | षड़ज | | 2 | रे | ऋषभ (रिषभ)| | 3 | ग | गंधार | | 4 | म | मध्यम | | 5 | प | पंचम | | 6 | ध | धैवत | | 7 | नि | निषाद | - उच्चारण तथा गायन की सुविधा के लिए इन स्वर नामों में से प्रत्येक स्वर का प्रथम अक्षर ले लिया गया। जिससे यह स्वरों के संक्षिप्त नाम बन गए। जैसे- षडज का स, रिषभ से रे, गंधार से ग इत्यादि। - इस प्रकार सा, रे ग, म, प ध, नि स्वर प्रचलित हुए। - वैदिक परंपरा के अनुसार स्वर की निश्चित उच्चता तथा नीचता को दर्शाने के लिए सात संज्ञाए प्रचलित हुई। - ये संज्ञाए क्रुष्ट, प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, मंद्र तथा अतिस्वार आदि हैं। - प्राचीन काल में इन सात स्वरों की उत्पत्ति को लेकर भी कई मत हैं- - 'संगीत-दर्पण' के रचनाकार पं० दामोदर के मतानुसार पशु-पक्षियों द्वारा सात स्वरों की उत्पत्ति मानी गई है। - उनके अनुसार मोर से सा स्वर, चातक से रे, बकरे से ग, कौए से म, कोयल से प, मेंढक से ध तथा हाथी से नि स्वर की उत्पत्ति हुई। - फारसी के एक विद्वान के अनुसार पहाड़ों पर 'मूसीकार' नामक एक पक्षी की चोंच में बांसुरी की भाँति सात सुराख होते हैं और इन्ही सात सुराखों से सात स्वर उत्पन्न हुए। - एक अन्य फारसी विद्वान के मत में हजरत मूसा जब पहाड़ों पर घूम रहे थे तो उसी वक्त आकाश से एक आवाज हुई कि 'या मूसा हक़ीक़ी तू अपना असा इस पत्थर पर मार!' (असा एक प्रकार का डंडा जो फकीर लोग अपने पास रखते हैं) - इस आवाज का अनुसरण कर जब हज़रत मूसा ने अपना असा जोर से उस पत्थर पर मारा तो उस पत्थर के सात टुकड़े हुए और हर एक टुकड़े में से पानी की धारा बहने लगी। - उसी जल-धारा की आवाज से हज़रत मूसा ने सात स्वरों की रचना की। ## स्वर प्रकार अथवा स्वर रूप - स्वर के दो प्रकार माने गए हैं- 1. शुद्ध तथा 2. विकृत - (i) शुद्ध स्वर- जो स्वर अपने निश्चित स्थान पर स्थिर रहते हैं। वे शुद्ध स्वर (प्राकृतिक स्वर) कहलाते हैं। इनकी संख्या सात **है (사, 레이, 기, 마, 파, 도, 스)**। - (ii) विकृत स्वर- जो स्वर अपने स्थान से हट जाते हैं अथवा आगे या पीछे की ओर हो जाते हैं उन्हें विकृत स्वर कहते हैं। इनकी संख्या पाँच मानी गई है। रे, ग, म, ध तथा नि। - विकृत स्वर भी दो प्रकार के माने गए हैं- 1. कोमल विकृत 2. तीव्र विकृत - (1) कोमल विकृत- जब किसी स्वर का उच्चारण उसके निश्चित स्थान से नीचे की ओर होता है तब वह स्वर कोमल विकृत हो जाता है। इनकी संख्या चार है- रे, ग, ध, नि - (2) तीव्र विकृत- जब कोई स्वर अपनी निश्चित जगह से ऊपर की ओर उच्चारित होता है तो वह तीव्र विकृत की श्रेणी में आता है। जैसेः- म स्वर। - शुद्ध और विकृत स्वरों में अंतर दर्शाने के लिए कोमल तथा तीव्र विकृत स्वरों को चिन्हित किया जाता है। - कोमल स्वरों के नीचे लेटी रेखा तथा तीव्र स्वर के ऊपर खड़ी रेखा लगा दी जाती है। ## उदाहरण स्वरूप- - शुद्ध स्वर (7) = सा, रे, ग, म, प, ध, नि - विकृत स्वर (5) = रे, ग, म, ध, नि - कोमल विकृत (4) = रे, ग, ध, नि - तीव्र विकृत (1) = म - इस प्रकार शुद्ध स्वर तथा विकृत स्वरों की पहचान करना सुविधाजनक हो जाता है। - 7 शुद्ध तथा 5 विकृत स्वरों को मिलाकर कुल 12 स्वर माने गए हैं। - बारह स्वरों को लेखन क्रम में इस प्रकार रखा जाता है:- - कोमल स्वर शुद्ध स्वर से पहले और तीव्र स्वर शुद्ध स्वर के बाद की ओर लिखे जाते हैं। - शुद्ध तथा विकृत स्वरों का लेखन क्रम सा, रे, रे, ग, ग, म, मं, प, ध, ध, नि, नि। - उपरोक्त ढंग से स्वरों का यह क्रम निश्चित हो जाता है। - इसके अतिरिक्त स्वरों का एक अन्य वर्गीकरण भी माना जाता है जिससे चल व अचल कह कर पुकारा जाता है। ## चल और अचल स्व - 1) चल स्वरः- वे स्वर जो अपने निश्चित स्थान से ऊपर नीचे होते रहते हैं, वे चल स्वर कहलाते हैं। विकृत स्वर चल स्वर की श्रेणी में ही आते हैं। इस प्रकार विकृत स्वरों को चल स्वर के नाम से भी जाना जाता है। - 2) अचल स्वरः- पाँच विकृत स्वरों के अतिरिक्त सा, प दो स्वर ही ऐसे हैं जो अपने निश्चित स्थान पर स्थिर रहते हैं। ये सदैव ही शुद्ध रहते हैं। - स्वरों के यह वर्गीकरण एक रेखाचित्र के द्वारा प्रदर्शित किए जा रहे हैं। - कुल स्वर (12) - शुद्ध स्वर (7) - विकृत स्वर (5) - कोमल विकृत (4) - तीव्र विकृत (1)

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