जो गति जोग बिराग जतन करि नहिं पावन मुनि ग्यानी। सो गति देत गीध सबरी कहँ प्रभु न बहुत जिय जानी।। जो संपत्ति दससीस अरप करि रावन सिव पहँ लीन्हीं। सो संपदा बिभीषन कहँ अति सकुच-सहित हरि... जो गति जोग बिराग जतन करि नहिं पावन मुनि ग्यानी। सो गति देत गीध सबरी कहँ प्रभु न बहुत जिय जानी।। जो संपत्ति दससीस अरप करि रावन सिव पहँ लीन्हीं। सो संपदा बिभीषन कहँ अति सकुच-सहित हरि दीन्हीं।

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Understand the Problem

यह प्रश्न एक कविता की पंक्तियों से संबंधित है। इन पंक्तियों का अर्थ और संदर्भ समझने की जरुरत है जिसमें विभिन्न पात्रों और अवधारणाओं का उल्लेख है

Answer

तुलसीदास जी कहते हैं कि श्री राम ने जटायु और शबरी को सहजता से मोक्ष प्रदान किया, और विभीषण को रावण द्वारा शिव से प्राप्त की गई संपत्ति संकोच के साथ दे दी।

इन पंक्तियों में, तुलसीदास जी कहते हैं कि जो मोक्ष की गति मुनि, ज्ञानी, और योगी वैराग्य और कठोर तपस्या करके भी नहीं पा सकते, वही गति प्रभु श्री राम ने जटायु (गीध) और शबरी को सहजता से दे दी। रावण ने अपनी दस सिरों की संपत्ति शिव को अर्पित करके जो वरदान प्राप्त किया, वही संपत्ति भगवान श्री हरि ने विभीषण को अत्यंत संकोच के साथ दे दी।

Answer for screen readers

इन पंक्तियों में, तुलसीदास जी कहते हैं कि जो मोक्ष की गति मुनि, ज्ञानी, और योगी वैराग्य और कठोर तपस्या करके भी नहीं पा सकते, वही गति प्रभु श्री राम ने जटायु (गीध) और शबरी को सहजता से दे दी। रावण ने अपनी दस सिरों की संपत्ति शिव को अर्पित करके जो वरदान प्राप्त किया, वही संपत्ति भगवान श्री हरि ने विभीषण को अत्यंत संकोच के साथ दे दी।

More Information

यह पंक्तियाँ तुलसीदास द्वारा रचित 'विनय पत्रिका' से ली गई हैं, जिसमें भगवान राम की उदारता और कृपालु स्वभाव का वर्णन किया गया है।

Tips

यह समझने के लिए कि इन पंक्तियों का अर्थ क्या है, प्रत्येक शब्द और वाक्यांश को ध्यान से समझना महत्वपूर्ण है।

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