उत्तराखंड का इतिहास: प्रागैतिहासिक काल

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Questions and Answers

उत्तराखंड के प्रागैतिहासिक काल के बारे में जानकारी का मुख्य स्रोत क्या है?

  • ताम्र उपकरण और शिलालेख
  • मंदिरों के शिलालेख और ताम्रपत्र
  • पाषाण युगीन उपकरण और गुहा शैल चित्र (correct)
  • मुद्राएँ और साहित्यिक ग्रंथ

लाखों उडियार, जो प्रागैतिहासिक शैल चित्रों के लिए प्रसिद्ध है, किस नदी के तट पर स्थित है?

  • अलकनंदा नदी
  • गंगा नदी
  • सुयाल नदी (correct)
  • यमुना नदी

हेनवुड द्वारा खोजे गए कप मार्क्स (उखल सदृश्य गड्ढे) उत्तराखंड में कहाँ पाए गए थे?

  • अल्मोड़ा के फलसीमा में
  • चंपावत के देवीधुरा में (correct)
  • उत्तरकाशी के हुडली में
  • चमोली के मलारी गाँव में

मलारी गाँव से प्राप्त अवशेषों में निम्नलिखित में से क्या शामिल नहीं है?

<p>ताम्र निर्मित भाला (B)</p> Signup and view all the answers

स्कंद पुराण में हिमालय को कितने खंडों में विभाजित किया गया है?

<p>पाँच (C)</p> Signup and view all the answers

किस ग्रंथ में उत्तराखंड के लिए 'उत्तर कुरु' शब्द का प्रयोग किया गया है?

<p>ऐतरेय ब्राह्मण (C)</p> Signup and view all the answers

निम्न में से कौन सा कुणिंद राजवंश के शासक अमोगभूति के बारे सही नहीं है?

<p>उसकी मुद्राएँ केवल अलकनंदा नदी घाटी में मिली हैं। (A)</p> Signup and view all the answers

अशोक का कालसी शिलालेख किस लिपि में लिखा गया है?

<p>ब्राह्मी (C)</p> Signup and view all the answers

किस राजवंश के शासनकाल में ह्वेनसांग ने उत्तराखंड का दौरा किया और इसे 'ब्रह्मपुर' नाम दिया?

<p>हर्षवर्धन वंश (C)</p> Signup and view all the answers

उत्तराखंड में शक शासन की पुष्टि करने वाला प्रमुख मंदिर कौन सा है?

<p>कटारमल सूर्य मंदिर (D)</p> Signup and view all the answers

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Flashcards

प्रागैतिहासिक काल की जानकारी के स्रोत

पाषाण युग के उपकरण और गुहा शैल चित्र जानकारी के स्रोत हैं।

लाखू उडियार कहाँ स्थित है?

अल्मोड़ा के लाखू उडियार की खोज 1968 में हुई, जो सुयाल नदी के तट पर है।

उत्तराखंड के लिए ऋग्वेद में क्या नाम है?

ऋग्वेद में उत्तराखंड को 'देव भूमि' और 'मनीषियों की भूमि' कहा गया है।

कुणिंदों का उल्लेख टॉलमी ने कैसे किया?

टॉलमी ने कुणिंदों को 'कुणिंदस्य' कहा, इनका शासन गंगा, व्यास और अलकनंदा नदियों के क्षेत्र पर था।

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कुणिंद राजवंश का सबसे शक्तिशाली शासक कौन था?

अमोगभूति कुणिंद राजवंश का सबसे शक्तिशाली शासक था, जिनकी मुद्राओं पर देवी और मृग का अंकन है।

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कुमाऊँ का प्रमुख शककालीन मंदिर कौन सा है?

कटारमल सूर्य मंदिर शक शासन का प्रमुख मंदिर है, जो कुमाऊँ में स्थित है।

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किस शासक की मुद्राएँ उत्तराखंड में मिलीं?

कनिष्क की मुद्राएँ उत्तराखंड से मिली हैं, और वह कुषाण वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था।

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ह्वेनसांग ने उत्तराखंड को क्या कहा?

ह्वेनसांग ने उत्तराखंड को ब्रह्मपुर कहा, और हरिद्वार को 'मो-यु-लो' कहा, जिसका अर्थ है भागीरथी नदी के तट पर स्थित नगर।

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पर्वताकार राज्य का संस्थापक कौन था?

विष्णु वर्मन प्रथम ने पर्वताकार राज्य की स्थापना की, जिसकी जानकारी तालेश्वर ताम्रपत्र से मिलती है।

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Study Notes

उत्तराखंड का इतिहास: एक सिंहावलोकन

  • उत्तराखंड के इतिहास को अध्ययन में आसानी के लिए तीन भागों में बांटा गया है:
    • प्रागैतिहासिक काल
    • आद्य ऐतिहासिक काल
    • ऐतिहासिक काल

प्रागैतिहासिक काल

  • जानकारी के स्रोत: पाषाण युगीन उपकरण और गुहा शैल चित्र
  • अल्मोड़ा के लाखू उडियार की खोज डॉ. महेश्वर प्रसाद जोशी ने 1968 में की थी।
  • लाखों उडियार सुयाल नदी के तट पर स्थित है, जहाँ मानव व पशुओं के शैल चित्र मिले हैं।
  • फड़का नौली (अल्मोड़ा) में यशोधर मठपाल ने 1985 में तीन शैलाश्रय खोजे।
  • पेटसाल (अल्मोड़ा) में यशोधर मठपाल ने 1989 में दो शैलाश्रय खोजे।
  • थाप (अल्मोड़ा) के शैलाश्रयों में लाल रंग के चित्र मिले हैं।
  • फलसीमा (अल्मोड़ा) से योग मुद्रा और नृत्य मुद्रा वाली मानव आकृतियाँ प्राप्त हुई हैं।
  • अल्मोड़ा के कसार देवी मंदिर में 14 नृतकों का चित्रण प्राप्त हुआ है।
  • चमोली के गोरख उडियार की खोज राकेश भट्ट ने की, जहाँ गुलाबी व लाल रंग के चित्र हैं।
  • डॉक्टर यशोधर मठपाल के अनुसार गोरख गुफा में 41 आकृतियाँ मिलीं, जिसमें 30 मानव आकृतियाँ हैं।
  • चमोली के किम्ली गाँव में सफेद रंग के हथियार व पशुओं के शैल चित्र प्राप्त हुए।
  • उत्तरकाशी के हुडली से नीले रंग के शैल चित्र प्राप्त हुए हैं, जो यमुना नदी घाटी में स्थित हैं।

आद्य ऐतिहासिक काल

  • जानकारी के स्रोत: पुरातात्विक व साहित्यिक साक्ष्य

पुरातात्विक स्रोत

  • कप मार्क्स (उखल सदृश्य गड्ढे) आद्य ऐतिहासिक काल के पुरातात्विक स्रोत हैं।
  • हेनवुड ने 1856 में चंपावत के देवीधुरा में कप मार्क्स की खोज की।
  • रिवेट कार्नैक द्वारा द्वाराहाट के चंद्रेश्वर मंदिर के पास लगभग 200 कप मार्क्स खोजे गए।
  • ताम्र उपकरण:
    • बहादराबाद (हरिद्वार) में ताम्र निर्मित भाला व चूड़ियाँ मिली हैं
    • 1986 में अल्मोड़ा और 1989 में पिथौरागढ़ के बनकोट से ताम्र उपकरण प्राप्त हुए।
    • डॉ. महेश्वर प्रसाद जोशी ने बनकोट के ताम्र उपकरणों को 'मूर्ति' कहा, जबकि डीपी शर्मा ने 'स्कंध कुठार' (Hand axe)।

महापाषाण समाधान

  • चमोली के मलारी गाँव से महापाषाण समाधान मिले हैं।
  • शिवप्रसाद डबराल ने 1956 में मलारी गाँव में महापाषाण समाधानों की खोज की।

मलारी गाँव में प्राप्त अवशेष

  • मानव कंकाल, भेड़ व घोड़े के कंकाल, और मिट्टी के बर्तन मिले है।
  • गढ़वाल विश्वविद्यालय द्वारा प्रथम सर्वेक्षण (1983) में मानव अस्थि, लोह उपकरण, मृदभांड व पशु कंकाल प्राप्त हुए।
  • मलारी गाँव में गढ़वाल विश्वविद्यालय के दूसरे सर्वेक्षण (2001-2002) में नर कंकाल के साथ 5.2 kg का स्वर्ण मुखौटा, काँसे का कठौता और मृदभांड मिले।

साहित्यिक स्रोत

  • ऋग्वेद में उत्तराखंड को 'देव भूमि' और 'मनीषियों की भूमि' कहा गया है।
  • ऐतरेय ब्राह्मण में उत्तराखंड के लिए 'उत्तर कुरु' शब्द का प्रयोग किया गया है।
  • कौषीतकि ब्राह्मण ग्रंथ में वाग्देवी (सरस्वती) का निवास स्थान बद्री आश्रम बताया गया।
  • स्कंद पुराण में हिमालय को पाँच खंडों में विभाजित किया गया:
    • नेपाल
    • मानस खंड (कुमाऊ)
    • केदार खंड (गढ़वाल)
    • जालंधर
    • कश्मीर

स्कन्द पुराण: सीमांकन

  • केदारखंड की सीमा 50 योजन लम्बी और 30 योजन चौड़ी है, जो गंगाद्वार से श्वेत पर्वत व तमसा नदी से नंदा पर्वत तक फैली है।
  • मानसखंड में नंदागिरि से कालगिरि तक का क्षेत्र शामिल है, जहाँ कूर्मावतार के कारण कुमाऊ का नामकरण हुआ।
  • ब्रह्मपुराण व वायु पुराण में कुमाऊ क्षेत्र को किरात, किन्नर, यक्ष, गंधर्व व नाग जातियों का निवास स्थान बताया गया है।
  • महाभारत के आदि पर्व में अर्जुन और उलूपी का विवाह गंगाद्वार (हरिद्वार) में हुआ।
  • महाभारत के सभा पर्व के अनुसार पुलिंद राजा सुबाहु की राजधानी श्रीनगर (तत्कालीन सुबाहुपुर) में थी।
  • महाभारत के वन पर्व में ऋषि धौम्य ने युधिष्ठिर को तीर्थ स्थलों की जानकारी दी, और उनकी पुत्री उषा का अनिरुद्ध से उखीमठ में विवाह होने का उल्लेख है।
  • रामायण के अनुसार, टेहरी गढ़वाल के हिमवंत क्षेत्र के विष्ण पर्वत पर गुरु वशिष्ठ का आश्रम और वशिष्ठ कुंड स्थित है।
  • रामायण में यह भी उल्लेख है कि लक्ष्मण ने टेहरी गढ़वाल में तपोवन में तपस्या की थी।
  • कालिदास की अभिज्ञान शाकुंतलम में दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कहानी का वर्णन कण्वाश्रम में मिलता है, जो पौड़ी के कोटद्वार के पास मालिनी नदी के तट पर स्थित है।
  • बौद्ध साहित्य में उत्तराखंड को हिमवंत कहा गया।

उत्तराखंड का ऐतिहासिक काल

  • प्राचीन काल:
    • कुणिंद राजवंश
    • शक
    • कुषाण
    • कार्तिकेयपुर राजवंश
  • मध्यकाल:
    • कत्यूरी राजवंश
    • पंवार राजवंश
    • चंद राजवंश
    • गोरखा शासन
  • आधुनिक काल:
    • ब्रिटिश शासन
    • स्वतंत्रता संग्राम
    • पृथक राज्य आंदोलन

कुणिंद राजवंश

  • उत्तराखंड का प्रथम राजनीतिक शक्ति माना जाता है।
  • प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता टॉलमी ने कुणिंदों को 'कुणिंदस्य' कहा और संकेत दिया कि दूसरी व तीसरी शताब्दी के दौरान उनका शासन व्यास, गंगा, व अलकनंदा नदियों के क्षेत्र पर था।
  • पाणिनि व कौटिल्य ने कुणिंदों को 'कुलुत' तथा 'कुणिंड' कहा।
  • माना जाता है कि कुणिंद मौर्यों के अधीन थे।
  • अशोक का कालसी अभिलेख (देहरादून) कुणिंदों का उल्लेख करता है, जिससे ज्ञात होता है कि उनका क्षेत्र मौर्यों के अधीन था।
  • जॉन फ़ॉरेस्ट ने 1860 में कालसी अभिलेख की खोज की, जो प्राकृत भाषा व ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है। यह अभिलेख टोंस व यमुना नदियों के संगम पर स्थित है।
  • कालसी अभिलेख में अशोक ने मनुष्यों और पशुओं के लिए चिकित्सा व्यवस्था का उल्लेख किया है। कालसी अभिलेख में इस क्षेत्र के लोगों को 'पुलिंद' कहा गया है, जिससे इतिहासकारों का मानना है कि पुलिंद ही बाद में कुणिंद कहलाए।

अमोगभूति

  • कुणिंद राजवंश का सबसे शक्तिशाली शासक था।
  • उसकी मुद्राओं में एक देवी और मृग का अंकन है, ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपि में 'राज कुणिंदस्य अमोगभूति महाराजस' लिखा है।
  • अमोगभूति की मुद्राएँ व्यास नदी से लेकर गंगा नदी व अलकनंदा नदी घाटी, और दक्षिण में सुनेत व ब्यास नदियों तक मिली हैं।

कुणिंद मुद्राओं के प्रकार:

  • अमोगभूति प्रकार
  • अल्मोड़ा प्रकार
  • चत्रेश्वर प्रकार

अल्मोड़ा प्रकार की मुद्राएँ

  • अल्मोड़ा प्रकार मुद्राओं में आठ कुणिंद राजाओं का उल्लेख है
  • ब्रिटिश संग्रहालय (लंदन) से कुछ मुद्राएँ मिली हैं, जिनमें शिवदत्त, शिवपालित, हर्यदत्त, और मगभत के नाम हैं।
  • कत्यूर घाटी से मिलीं 54 मुद्राओं में से 1 मुद्रा शिवदत्त की, 1 आशय की, बाकी गोमित्र की हैं।
  • गढ़वाल से मिली मुद्राओं में राजा विजयभूति का उल्लेख है।
  • राजा शिवरक्षित की मुद्रा डॉ. महेश्वर जोशी को लंदन संग्रहालय से मिली।

चत्रेश्वर प्रकार की मुद्राएँ

  • आगे के भाग में दो हाथों वाली मूर्ति है, जिसके दाहिने हाथ में त्रिशूल है, और पीछे के भाग में मृग, स्वास्तिक और नदी का प्रतीक है।
  • ब्राह्मी लिपि में 'भगवत चत्रेश्वर महात्म्य' लिखा है।
  • मुद्राओं से पता चलता है कि कुणिंद भगवान शिव के उपासक थे।

कुणिंद राजवंश का पतन

  • अमोगभूति के बाद, कुषाणों ने मैदानी क्षेत्रों पर आक्रमण किया, जिससे कुणिंद पर्वतीय क्षेत्रों में सीमित हो गए।
  • कुषाण से हारने के बाद, कुणिंद शासक पर्वतीय क्षेत्रों में सीमित हो गए।

उत्तराखंड में शक शासन

  • कुमाऊ के सूर्य मंदिर और मूर्तियाँ शक शासन की पुष्टि करती हैं।
  • कटारमल सूर्य मंदिर कुमाऊ का प्रमुख शककालीन मंदिर है।

उत्तराखंड में कुषाण वंश

  • कुषाणों ने शकों को परास्त कर उत्तराखंड पर अधिकार किया।
  • कुषाण वंश का संस्थापक कुजुल कडफिसेस था, लेकिन सबसे शक्तिशाली शासक कनिष्क था।
  • कनिष्क की मुद्राएँ उत्तराखंड से मिली हैं।
  • वीरभद्र (ऋषिकेश), मोराध्वज (कोटद्वार) और गोविशन (काशीपुर) कुषाण कालीन अवशेषों के प्रमुख स्थल हैं।
  • कनिष्क की स्वर्ण मुद्राएँ काशीपुर (गोविशन) में मिली हैं।
  • हुविष्क की 44 स्वर्ण मुद्राएँ टेहरी गढ़वाल के मुनि की रेती से 1972 में मिलीं।
  • वासुदेव प्रथम की पाँच स्वर्ण मुद्राएँ बिजनौर जिले से मिली थीं।
  • वासुदेव द्वितीय की तीन स्वर्ण मुद्राएँ उधमसिंह नगर जिले के गोविशन (काशीपुर) से मिलीं।

कुषाणोत्तर काल में उत्तराखंड

  • कुषाण वंश के पतन के बाद, योद्धे प्रमुख शक्ति के रूप में उभरे।
  • माना जाता है की योद्धे पहले कुषाणों के सामंत थे
  • योद्धे ने कुणिंदों की मदद से कुषाणों को हराया।
  • योद्धे मुद्राओं पर ब्राह्मी लिपि में 'योद्धे गणस्य जय' लिखा है।
  • मुद्राओं में कार्तिकेय और एक देवी का चित्रण मिलता है
  • योद्धे मुद्राएँ मध्य हिमालय के पश्चिमी भाग, जैसे शिमला, काँगड़ा, जौनसार-बावर, काला डांडा और सहारनपुर में पाई जाती हैं।
  • कुषाणोत्तर काल में, पर्वतीय क्षेत्रों में परवर्ती कुणिंद का शासन था।

युगशैल वंश

  • इस वंश का राजा शीलवर्मन था।
  • जिसका शासन लगभग 250-300 ईसवी तक था।
  • देहरादून के कालसी में यमुना नदी के तट पर शीलवर्मन द्वारा वाड़वाला यज्ञ वेदी का निर्माण कराया गया।

गुप्तकाल

  • मौर्य वंश के पतन के बाद गुप्त (275-600 ईसवी) सबसे बड़ी शक्ति के रूप में उभरे।
  • गुप्त वंश का संस्थापक श्रीगुप्त और वास्तविक संस्थापक चंद्रगुप्त प्रथम था।
  • समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा जाता था।
  • समुद्रगुप्त के समय, उत्तराखंड में कुणिंदों का कत्यूर राज्य था, जिसकी राजधानी कार्तिकेयपुर थी।
  • कुमाऊ में किरतपुर राज्य का उल्लेख समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख में मिलता है।
  • कत्यूर राज्य में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश व रोहिलखंड का उत्तरी भाग शामिल थे, तथा इसकी सीमा गुप्त साम्राज्य से लगती थी।
  • बहुत से इतिहासकार यह भी कहते हैं कि उस समय शक राजा का शासन था, जबकि कुछ और शासक होने का दावा करते हैं।
  • रामगुप्त का युद्ध कुणिंद राजा से कार्त्तिकेयपुर में हुआ।

छागलेश राजवंश

  • 5वीं सदी ईसवी के आसपास, छागलेश राजवंश सत्ता में आया।
  • उनका उल्लेख लाखामंडल शिलालेख में मिलता है।
  • छागलेश इस वंश का आठवाँ राजा था।

सिंहपुरा का यदु वंश

  • इस का स्रोत एक लाखामंडल शिलालेख है।
  • लाखामंडल शिलालेख में राजकुमारी ईश्वरा का उल्लेख है जिसके पिता भास्कर वर्मन और पति जालंधर का राजकुमार श्री चंद्रगुप्त थे।
  • यदुवंशियों की राजधानी सिंहपुर थी।
  • राजकुमारी ईश्वरा ने लाखामण्डल में एक शिव मंदिर का निर्माण भी करवाया।

नाग राजवंश

  • इसका स्रोत गोपेश्वर त्रिशूल शिलालेख है, जहाँ चार नागवंशी राजाओं (स्कन्द नाग, विभ नाग, अंशु नाग, गणपति नाग) का उल्लेख है। माना जाता है कि इस राजवंश का शासन 6वीं और 7वीं शताब्दी में था।

मोखरी राजवंश

  • मोखरी राजवंश के बाद हर्षवर्धन का शासन आया, जिसके समय उत्तराखंड भी उसके अधीन था।
  • ह्वेनसांग, जो हर्षवर्धन के समय में उत्तराखंड आया था, ने उत्तराखंड को ब्रह्मपुर कहा।
  • ह्वेनसांग ने हरिद्वार को 'मो-यु-लो' कहा, जिसका अर्थ है भागीरथी नदी के तट पर स्थित नगर।
  • ह्वेनसांग की रचना 'सी-यू-की' में उत्तराखंड का विवरण मिलता है।
  • हर्षवर्धन का शासनकाल 606 से 647 ईसवी तक था।

हर्षोत्तर काल में उत्तराखंड (647 ईसवी)

  • हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद, उत्तराखंड में अराजकता फैल गई।
  • इस अवधि में कई छोटे-छोटे राज्य बने, जिनमें शत्रुघ्न राज्य (गंगा नदी के पश्चिमी ओर), ब्रह्मपुर राज्य (बाद में पर्वताकार राज्य), गोविसन राज्य और पूर्वी स्त्री राज्य शामिल थे।
  • पर्वताकार राज्य का संस्थापक विष्णु वर्मन प्रथम था।
  • तालेश्वर ताम्रपत्र पर्वताकार राज्य के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।
  • पर्वताकार राज्य का उल्लेख तालेश्वर ताम्रपत्र में भी मिलता है।
  • तालेश्वर ताम्रपत्र में जिन पाँच शासकों का उल्लेख है, वह हैं:
    • विष्णु वर्मन प्रथम (संस्थापक)
    • वृष वर्मन
    • श्री अग्नि वर्मन
    • द्युति वर्मन
    • विष्णु वर्मन द्वितीय
  • उनका कुलदेवता वीरेश्वर स्वामी था।

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