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Questions and Answers
भारतीय उपमहाद्वीप में धार्मिक इमारतों के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
भारतीय उपमहाद्वीप में धार्मिक इमारतों के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
- स्तूप, विहार और मंदिर धार्मिक इमारतों के उदाहरण हैं। (correct)
- इन इमारतों का निर्माण केवल शासकों द्वारा किया जाता था।
- ये इमारतें धार्मिक विश्वासों और आचरणों का प्रतीक नहीं थीं।
- इन इमारतों का निर्माण पहली सहस्राब्दी के अंत में शुरू हुआ।
पुराणों का वर्तमान स्वरूप उसी काल में बनना शुरू हुआ था जब साहित्यिक परंपराओं का पुनर्निर्माण हुआ।
पुराणों का वर्तमान स्वरूप उसी काल में बनना शुरू हुआ था जब साहित्यिक परंपराओं का पुनर्निर्माण हुआ।
True (A)
संत कवियों की रचनाएँ किस भाषा में थीं और वे कैसे संकलित की गईं?
संत कवियों की रचनाएँ किस भाषा में थीं और वे कैसे संकलित की गईं?
संत कवियों की रचनाएँ जनसाधारण की क्षेत्रीय भाषाओं में थीं और उनके अनुयायियों द्वारा उनकी मृत्यु के बाद संकलित की गईं।
इतिहासकार संत कवियों के अनुयायियों द्वारा लिखी गई उनकी ______ का भी इस्तेमाल करते हैं।
इतिहासकार संत कवियों के अनुयायियों द्वारा लिखी गई उनकी ______ का भी इस्तेमाल करते हैं।
निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए:
निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए:
किस देवता/देवी की आराधना की परिपाटी अधिक विस्तृत हुई?
किस देवता/देवी की आराधना की परिपाटी अधिक विस्तृत हुई?
ब्राह्मणीय विचारधारा का प्रसार केवल संतों के उपदेशों द्वारा हुआ।
ब्राह्मणीय विचारधारा का प्रसार केवल संतों के उपदेशों द्वारा हुआ।
"महान" और "लघु" परंपराओं के बीच हुए अविरल संवाद का क्या परिणाम हुआ?
"महान" और "लघु" परंपराओं के बीच हुए अविरल संवाद का क्या परिणाम हुआ?
पुरी, उड़ीसा में मुख्य देवता को बारहवीं शताब्दी तक आते-आते ______ के रूप में प्रस्तुत किया गया।
पुरी, उड़ीसा में मुख्य देवता को बारहवीं शताब्दी तक आते-आते ______ के रूप में प्रस्तुत किया गया।
निम्नलिखित में से कौन सा कथन तांत्रिक पूजा पद्धति के बारे में सही है?
निम्नलिखित में से कौन सा कथन तांत्रिक पूजा पद्धति के बारे में सही है?
वैदिक देवकुल के अग्नि, इंद्र और सोम जैसे देवता पौराणिक परंपरा में और अधिक महत्वपूर्ण हो गए।
वैदिक देवकुल के अग्नि, इंद्र और सोम जैसे देवता पौराणिक परंपरा में और अधिक महत्वपूर्ण हो गए।
भक्त अपने इष्टदेव विष्णु या शिव को कई बार क्या करते थे?
भक्त अपने इष्टदेव विष्णु या शिव को कई बार क्या करते थे?
धर्म के इतिहासकार भक्ति परंपरा को दो मुख्य भागों में बाँटते हैं: सगुण (विशेषण सहित) और ______ (विशेषण विहीन)।
धर्म के इतिहासकार भक्ति परंपरा को दो मुख्य भागों में बाँटते हैं: सगुण (विशेषण सहित) और ______ (विशेषण विहीन)।
अलवार और नयनार संतों का प्राथमिक भक्ति आंदोलन किस क्षेत्र में हुआ?
अलवार और नयनार संतों का प्राथमिक भक्ति आंदोलन किस क्षेत्र में हुआ?
अलवार और नयनार संत केवल एक ही स्थान पर रहकर भजन गाते थे।
अलवार और नयनार संत केवल एक ही स्थान पर रहकर भजन गाते थे।
अलवार और नयनार संतों ने किन स्थलों को अपने इष्ट का निवासस्थल घोषित किया?
अलवार और नयनार संतों ने किन स्थलों को अपने इष्ट का निवासस्थल घोषित किया?
अलवार संतों के एक मुख्य काव्य संकलन को ______ के रूप में जाना जाता था।
अलवार संतों के एक मुख्य काव्य संकलन को ______ के रूप में जाना जाता था।
निम्नलिखित में से कौन-सी स्त्री अलवार संत हैं?
निम्नलिखित में से कौन-सी स्त्री अलवार संत हैं?
करइक्काल अम्मइयार ने नयनार परंपरा में अपने सामाजिक कर्तव्यों का परित्याग नहीं किया।
करइक्काल अम्मइयार ने नयनार परंपरा में अपने सामाजिक कर्तव्यों का परित्याग नहीं किया।
अंडाल स्वयं को क्या मानकर अपनी प्रेमभावना को छंदों में व्यक्त करती थीं?
अंडाल स्वयं को क्या मानकर अपनी प्रेमभावना को छंदों में व्यक्त करती थीं?
______ ने अपने उद्देश्य प्राप्ति हेतु घोर तपस्या का मार्ग अपनाया।
______ ने अपने उद्देश्य प्राप्ति हेतु घोर तपस्या का मार्ग अपनाया।
तमिल क्षेत्र में कौन से राज्य प्रथम सहस्त्राब्दी ईसवी के उत्तरार्ध में उभरे?
तमिल क्षेत्र में कौन से राज्य प्रथम सहस्त्राब्दी ईसवी के उत्तरार्ध में उभरे?
तमिल भक्ति रचनाओं में बौद्ध और जैन धर्म का समर्थन किया गया है।
तमिल भक्ति रचनाओं में बौद्ध और जैन धर्म का समर्थन किया गया है।
किसने ब्राह्मणीय और भक्ति परंपरा को समर्थन दिया तथा विष्णु और शिव के मंदिरों के निर्माण के लिए भूमि-अनुदान दिए?
किसने ब्राह्मणीय और भक्ति परंपरा को समर्थन दिया तथा विष्णु और शिव के मंदिरों के निर्माण के लिए भूमि-अनुदान दिए?
चोल सम्राटों ने तमिल भाषा के ______ का गायन इन मंदिरों में प्रचलित किया।
चोल सम्राटों ने तमिल भाषा के ______ का गायन इन मंदिरों में प्रचलित किया।
बारहवीं शताब्दी में कर्नाटक में एक नवीन आंदोलन किसने शुरू किया?
बारहवीं शताब्दी में कर्नाटक में एक नवीन आंदोलन किसने शुरू किया?
लिंगायत पुनर्जन्म के सिद्धांत का समर्थन करते हैं।
लिंगायत पुनर्जन्म के सिद्धांत का समर्थन करते हैं।
लिंगायत किन आचारों को मान्यता प्रदान करते हैं जिन्हें धर्मशास्त्रों में अस्वीकार किया गया था?
लिंगायत किन आचारों को मान्यता प्रदान करते हैं जिन्हें धर्मशास्त्रों में अस्वीकार किया गया था?
______ शताब्दी में भक्ति परंपरा का विकास महाराष्ट्र में हुआ।
______ शताब्दी में भक्ति परंपरा का विकास महाराष्ट्र में हुआ।
उत्तरी भारत में धार्मिक उफ़ान के काल में कौन से धार्मिक नेता रूढ़िवादी ब्राह्मणीय साँचे के बाहर थे?
उत्तरी भारत में धार्मिक उफ़ान के काल में कौन से धार्मिक नेता रूढ़िवादी ब्राह्मणीय साँचे के बाहर थे?
Flashcards
भक्ति-सूफी परंपराएँ
भक्ति-सूफी परंपराएँ
लगभग आठवीं से अठारहवीं सदी तक भारत में धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ।
गंगा-जमुनी बनावट
गंगा-जमुनी बनावट
विभिन्न धार्मिक विश्वासों और आचरणों का मिश्रण।
पूजा प्रणालियों का समन्वय
पूजा प्रणालियों का समन्वय
पूजा करने के तरीकों का मिश्रण।
"महान" परंपरा
"महान" परंपरा
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"लघु" परंपरा
"लघु" परंपरा
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जगन्नाथ
जगन्नाथ
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विश्वासों का एकीकरण
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तांत्रिक
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अलवार
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नयनार
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चतुर्वेदी
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अस्पृश्य
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अंडाल
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मारपेरू के स्वामी
मारपेरू के स्वामी
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नलयिरादिव्यप्रबंधम्
नलयिरादिव्यप्रबंधम्
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अप्पार संबंदर और सुंदरार की कविताएँ
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नटराज
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लिंगायत
लिंगायत
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वीरशैव
वीरशैव
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ज़िम्मी
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फ़रमान
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मुसलमान समुदाय का कानून
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औलिया
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उलमा
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रहस्यवाद और वैराग्य
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सुन्ना
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मुरीद
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सिलसिला
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वली
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सामाजिक केंद्र
सामाजिक केंद्र
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लंबी कविताएँ
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कव्वाली शुरू करना
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रोशनी फैलाना
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संत कवि
संत कवि
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निराकार भक्ति
निराकार भक्ति
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Study Notes
धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ
- अध्याय 4 में मंदिरों, स्तूपों और विहारों जैसी धार्मिक इमारतों पर प्रकाश डाला गया है।
- पुराणों जैसे साहित्यिक परंपराओं पर आधारित धार्मिक विश्वासों का पुनर्गठन किया गया।
- साहित्यिक और मौखिक रूपों पर धार्मिक विश्वास जो पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं
- संत कवियों ने क्षेत्रीय भाषाओं में खुद को अभिव्यक्त किया, जो उनके अनुयायियों द्वारा उनकी मृत्यु के बाद संकलित किए गए थे।
- इतिहासकारों के लिए प्रमुख चुनौती अनुयायियों द्वारा मूल संदेश के मूल्यांकन, परिवर्तन और त्याग में निहित है।
- इतिहासकार संत कवियों के अनुयायियों द्वारा लिखी गई जीवनियों का उपयोग यह समझने के लिए करते हैं कि वे पथ-प्रदर्शक स्त्री-पुरुषों के जीवन को कैसे देखते हैं।
- ये स्त्रोत एक कार्यात्मक और विविध दृश्य योजना को समझने की अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
धार्मिक विश्वासों और आचरणों की गंगा-जमुनी बनावट
- इस युग की विशेषता साहित्य और मूर्तिकला दोनों में देवताओं की बढ़ती संख्या है।
- विष्णु, शिव और देवी की पूजा जारी रही और व्यापक हो गई।
पूजा प्रणालियों का समन्वय
- इतिहासकार ब्राह्मणीय विचारधारा और स्त्री, शूद्रों और अन्य सामाजिक समूहों की आस्थाओं के सम्मिलन की दोहरी प्रक्रिया का तर्क देते हैं।
- पूरे उपमहाद्वीप में कई धार्मिक विचारधाराएँ "महान" और "लघु" परंपरा के साथ एक सतत संवाद के माध्यम से उभरीं हैं।
- बारहवीं शताब्दी तक आते-आते पुरी, उड़ीसा में, मुख्य देवता जगन्नाथ (संपूर्ण विश्व के स्वामी), विष्णु के एक रूप में उभरे।
महान और लघु परंपराएँ
- राबर्ट रेडफील्ड ने किसान समाज के सांस्कृतिक आचरणों का वर्णन करने के लिए 'महान' और 'लघु' शब्द गढ़े थे
- किसानों ने पुरोहितों और राजाओं जैसे प्रभुत्वशाली वर्गों द्वारा अपनाई गई कर्मकांडों और प्रथाओं का अनुकरण किया।
- रेडफील्ड ने इन्हें "महान" परंपराएँ कहा।
- कृषक समुदाय के पास लोकाचार थे जो "महान" परंपरा से अलग थे, जिन्हें उन्होंने "लघु" परंपराएँ कहा।
- विद्वान इन प्रक्रियाओं और वर्गीकरण के महत्व को स्वीकार करते हैं, लेकिन इन शब्दों में निहित पदसोपानात्मक स्वरों को अस्वीकार करते हैं।
मतभेद और संघर्ष
- देवी की आराधना पद्धति को तांत्रिक नाम से जाना जाता है और इसमें स्त्री और पुरूष दोनो शामिल हो सकते थे और कर्मकांडीय संदर्भ में वर्ग या वर्ण का भेद नहीं था
- तांत्रिक विचारों ने शैव और बौद्ध धर्म को प्रभावित किया
- वैदिक देवता जैसे अग्नि, इंद्र और सोम गौण हो गए, जबकि विष्णु, शिव और देवी अधिक प्रमुख हो गए
- वैदिक परंपरा के प्रशंसक ईश्वर की उपासना के लिए मंत्रों के उच्चारण के साथ यज्ञों के संपादन की निंदा करते थे
- भक्त अपने इष्टदेव विष्णु या शिव को कई बार सर्वोच्च स्थान पर रखते थे
- बौद्ध या जैन धर्म के साथ संघर्ष कम ही दिखाई देते थे।
आराधना की कविताएँ
- भक्ति परंपरा के दौरान संत-कवि नेताओं के रूप में उभरे जिसके बाद, भक्तों के समुदाय का गठन हुआ।
- ब्राह्मण देवताओं और भक्तजनों के बीच मध्यस्थ थे फिर भी, इस परंपरा ने स्त्रियों और निम्र वर्णो" को भी स्वीकार किया।
- सगुण (विशेषण सहित) और निर्गुण (विशेषण विहीन) दो तरह की विचारधाराये है।
- सगुण शिव, विष्णु और उनके अवतारों व देवियों पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि निर्गुण अमूर्त भगवान की उपासना की ओर निर्देशित करता है।
तमिलनाडु के आलवार और नायनार संत
- शुरुआती भक्ति आंदोलन अलवारों (विष्णु भक्ति में तन्मय) और नयनारों (शिवभक्त) का नेतृत्व करता था, जिसके कारण उन्होंने अपने इष्ट स्तुति में भजन गाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर यात्राये की थी।
- यात्राओं के दौरान अलवारों और नयनार संतों ने कुछ पावन स्थलों को अपने इष्टदेव का निवास मान लिया।
- विशाल मंदिरों का धीरे-धीरे निर्माण हुआ, अंततः तीर्थस्थल माने जाने लगे।
- संत-कवियों के स्तोत्र मंदिरों में अनुष्ठानों के समय गाए जाते थे और साथ ही इन संतों की प्रतिमा की पूजा की जाती थी।
जाति के प्रति दृष्टिकोण
- माना जाता है कि अलवार और नयनार संतों ने जाति-व्यवस्था और ब्राह्मणों के शासन का विरोध किया था, इस तर्क का आंशिक रूप से समर्थन किया गया है कि संत विभिन्न समुदायों से आए थे, जिनमें ब्राह्मण, कारीगर, किसान और "अछूत" शामिल थे।
- अल्वार और नयनार की रचनाओं को सम्मानित करके वेदों के रूप में स्थान दिया गया, उदाहरण के लिए, संस्कृत वेदों के लिए अल्वरों के प्राथमिक काव्यात्मक संकलन नलयिरा दिव्यप्रबंधम का तमिल संस्करण बनाया गया, जो ब्राह्मणों द्वारा संरक्षित है।
स्त्री भक्त
- इस परंपरा की सबसे विशिष्ट विशेषता महिलाओं की उपस्थिति थी।
- अंडाल नामक अलवर महिला के भक्ति गीतों को विष्णु के पति के रूप में व्यापक रूप से गाया गया, और करइक्काल अम्मइयार नामक एक और महिला शिव भक्त ने मुक्ति प्राप्त करने के लिए तीव्र तपस्या की प्रतिज्ञा की।
- नायनार परंपरा में उनके गीत हमेशा सुरक्षित थे, लेकिन दोनों महिलाओं ने अपनी सामाजिक जिम्मेदारी खो दी।
राज्य के साथ संबंध
- तमिल क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण सरदारी की उपस्थिति से चिह्नित, पल्लवों और पांड्यों राज्यों ने सहस्राब्दी के उत्तरार्ध में धार्मिक विकास देखा।
- तमिल भक्ति रचनाओं में बौद्ध और जेन धर्म का एक सामान्य विषय वस्तु विरोध था, खासकर नायनार संतों की रचना में।
- शक्तिशाली चोल सम्राटों (9वीं-13वीं शताब्दी) ने ब्राह्मणवादियों और भक्ति परंपराओं का समर्थन किया और इस संदर्भ में, मंदिरों को भूमि दी।
कर्नाटक की वीरशैव परंपरा
- बासवन्ना नामक एक ब्राह्मण द्वारा स्थापित, 12वीं शताब्दी के कर्नाटक में एक नया आंदोलन उभरा
- वासावन्ना राजा कलाचुरी के दरबार में मंत्री थे।
- अनुयायियों को वीरशैव (शिव के नायक) और लिंगायत (लिंग पहनने वाले) के रूप में जाना जाता था।
- लिंगायत आज भी एक महत्त्वपूर्ण समुदाय हैं जो लिंग के रूप में शिव की पूजा करते हैं।
उत्तरी भारत में धार्मिक उफान
- उत्तरी भारत में, शासकों द्वारा मंदिरों का निर्माण किया गया था, ताकि विष्णु और शिव जैसे संतों को मंदिर में सम्मानित किया जा सके।
- चौदहवीं में, अलवार और नयनार का कोई संबंधित काम उत्तरी भारत के संत नेताओं से नहीं मिलता है
- ब्राह्मण, जो लौकिक और अनुष्ठानिक दोनों कर्तव्य निभाते थे, इन समाजों में महत्त्वपूर्ण थे।
###अनुष्ठान और यथार्थ संसार
- बासवन्ना ने अनुष्ठानों पर राय व्यक्त करते हुए तर्क दिया कि जो लोग पत्थर के सांप को दूध पिलाते हैं, वे असली सांप को भगाने का काम करते हैं, और उपासक जो भोजन की सेवा के समय खाते हैं, उन्हें दूर भगाया जाता है, जबकि ईश्वर की न खाने वाली छवि को परोसा जाता है।
इस्लाम की परंपराएँ
- दिल्ली सल्तनत का स्थापित होना और तुर्कों का प्रवेश राजपूतों और ब्राह्मणों के पतन का कारण था।
- सूफियों की शिक्षाएँ और आगमन का संस्कृति और धर्म में महत्त्वपूर्ण योगदान था
शाशक और प्रशाशक का धर्म जोड़ने
- यह संपर्क विशिष्ट शासकों के धर्म पर केंद्रित था और 711 ई में मुहम्मद बिन कासिम नामक अरब सेनापति ने सिंध पर विजय प्राप्त की जो खलीफा के डोमेन का हिस्सा बना।
- सोलहवीं में स्थापित मुगल साम्राज्य भी इस्लाम को वैध धर्म माना, लेकिन अंत में 18 वीं शताब्दी में यह क्षेत्रीय शासकों में उभरा, जिनमें से कई अभी भी इसे धार्मिक अभ्यास का हिस्सा मानते हैं।
खम्भात का गिरजाघर
- 1598 में, अकबर ने एक फरमान जारी किया कि खम्भात शहर में यीशु की पवित्र जमात को एक गिरजाघर मिला जहाँ उन्होंने पूजा की क्योंकि वह शाही फरमान है जिसे बनाए रखने की आवश्यकता थी।
शरिया
- मुसलमानों का मार्गदर्शन करने वाले शरिया कानून कुरान और हदीस पर आधारित हैं (पैगंबर और उनके शब्दों और गतिविधियों से जुड़ी परंपराएँ)।
- पैग़म्बर की प्रथाओं के साथ अनुरूपता के आधार पर जब इस्लाम अरब दुनिया से आगे बढ़ा, तो क्रियास (तर्क) और इजमा (समुदाय की सहमति) को कानून के अतिरिक्त स्रोतों के रूप में मान्यता दी गई।
जोगी के प्रति श्रद्धा
- 1661-62 में, औरंगजेब ने शिवमूरत गुरु आनंद नाथ जीओ को एक पत्र लिखा जिसमें कहा गया था कि उन्हें भेंट के रूप में 25 रुपए के कपड़े मिलेंगे जब भी उन्हें राज्य द्वारा समर्थित मदद की ज़रूरत हो तो कृपया पत्राचार बनाए रखें।
लोक प्रचलन में इस्लाम
- इस्लाम का प्रसार धार्मिक से लेकर किसानों, कारीगरों, योद्धाओं और व्यापारियों तक कई वर्ग जो केवल शासक वर्ग की सीमाओं तक सीमित नहीं था उन तक पहुँच गया
- जो लोग इस्लाम में परिवर्तित हुए हैं, वे मूल रूप से इसकी "चीजों" में से पाँच को मानते हैं: अल्लाह एकमात्र ईश्वर है; मुहम्मद उनके अगुआ (शाहद) हैं; दिन में पाँच बार नमाज़ अदा की जानी चाहिए; जकात का भुगतान किया जाना चाहिए रमजान के महीने में उपवास करो और हज मक्का की तीर्थ यात्रा करनी चाहिए।
सूफीवाद और तसव्वुफ़
- सूफीवाद को 19वीं सदी में अंग्रेजी शब्द के रूप में छापा गया।
- तसव्वुफ़ वह है जिसका इस्तेमाल इस्लामी ग्रंथों में सूफीवाद के लिए किया जाता है।
- कुछ विद्वानों का मानना है कि यह शब्द 'सूफ़' से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ ऊन है।
- यह उस खुरदुरे ऊनी कपड़े की ओर इशारा करता है जिसे सूफ़ी पहनते थे।
- अन्य विद्वानों का तात्पर्य है कि यह शब्द 'सफ़ा' से निकला है जिसका अर्थ है साफ़।
- यह भी संभव है कि यह शब्द 'सफ़ा' से लिया गया हो जो पैगंबर की मस्जिद के बाहर एक चबूतरा था, जहाँ निकट अनुयायियों की मंडली आपस में चर्चा करती थी।
सूफीमत का विकास
- शुरुआती शताब्दियों में रहस्यवादी और वैराग्य के प्रति आध्यात्मिकता के संदर्भ में बढ़ती शक्ति के विरोध में खिलाफत का धर्म स्थापित हो रहा था, जिन्हें सूफी कहा जाता था।
- इन सूफियों ने कट्टरपंथी परिभाषाओं और धर्माचार्यों द्वारा कुरान की व्याख्या की आलोचना की।
- उन्होंने मुक्ति प्राप्त करने के लिए ईश्वर की भक्ति और आदेशों का पालन करने पर जोर दिया।
- उन्होंने पैगंबर मुहम्मद के आदेशों का पालन करने के लिए इंसान-ए-कामिल से परामर्श करके कुरान का निजी अनुभव के आधार पर अनुवाद किया।
खानकाह और सिलसिला
- 11वीं शताब्दी में सूफीवाद एक पूर्ण विकसित सूफी आंदोलन था जिसका कुरान से जुड़ा अपना साहित्य था
- संस्थागत रूप से, सूफी खुद को एक संगठित समुदाय - खानकाह (फ़ारसी) के इर्द-गिर्द स्थापित करते थे, जिसका नियंत्रण शेख (अरबी) या पीर उर्फ मुर्शीद (फ़ारसी) के पास था।
- उन्होंने अनुयायियों की भर्ती की और आध्यात्मिक आचरण को विनियमित करने के अलावा खानकाह और आम जनता में अपने उत्तराधिकारी (खलीफा) नियुक्त किए।
सिलसिलों के नाम
- मुख्य रूप से सूफी वंश उन्हें स्थापित करने वालों के नाम पर आधारित थे जैसे कादरी सिलसिला शेख अब्दुल कादिर जिलानी के नाम पर है।
- कुछ अन्य सिलसिले मध्य अफगानिस्तान के चिश्ती शहर जैसे अपने जन्मस्थान के आधार पर रखे गए हैं।
- वली (बहुवचन औलिया) का अर्थ है ईश्वर का मित्र, वह ज़ुफ़िक जो अल्लाह के करीब होने का दावा करता था और इस प्रकार शक्ति को चमत्कारिक होने के लिए नियत कर दिया जाता था।
चिश्ती ख़ानक़ाह में जीवन
- खानकाह सामाजिक जीवन में केन्द्रीयकृत थी और शेख निजामुद्दीन औलिया (चौदवीं शताब्दी) की खानकाह दिल्ली शहर की बाहरी सीमा पर रियासपुर में थी।
- यहाँ छोटे-छोटे कमरे थे, एक बड़ा हॉल (जमातखाना) था और सहवासियों के साथ-साथ उपासक भी थे। सहवासियों में अलग-अलग परिवार होते थे, जिनमें सेवक और अनुयायी भी शामिल थे।
चिश्ती उपासना: ज़ियारत और कव्वाली
- सूफ़ी संतों के दरगाहों की यात्राएँ पूरे इस्लामी क्षेत्र में की जाती हैं, इस अवसर पर सभी लोग एक साथ बरकत की इच्छा रखते हैं।
- यह क्षेत्र 700 वर्षों से पाँच महान चिश्ती संतों के धार्मिक संप्रदायों, वर्गों और समाजों द्वारा मान्यता प्राप्त कर रहा है।
- इनमें सबसे प्रमुख दरगाह ख्वाजा मुइनुद्दीन की दरगाह है और इसे 'गरीब नवाज' कहा जाता है।
मुल्क का चिराग
- 18वीं शताब्दी में, दरगाह कुली खान नाम के एक दरबारी ने शेख नसीरुद्दीन चिराग देहलवी की दरगाह (दिल्ली) के बारे में कहा कि "शेख न केवल दिल्ली के चिराग हैं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति जो रविवार को दीवाली में आता है , दिल्ली के सभी स्थानीय तंबू लगाते हैं और हौज के पास रहते हुए कई दिन बिताते हैं, जहाँ हिंदू और मुस्लिम एक ही सम्मान के साथ एक साथ सुबह से शाम तक पेड़ की छाया में दिन बिताते हैं।
मुगल शहजादी जहाँआरा की तीर्थयात्रा 1643
- शाहजादी अल्लाहतला द्वारा रचित गद्यांश जहां आरा की मृत्यु के बाद ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती को पवित्र और अतुलनीय अजमेर के बारे में लिखा गया, जहाँ सभी दिन हर मुकाम मुझे दो बार पूजा करने की इजाजत देते हैं और बहुत देर तक जमीन को चूमने में मेरी जर्द चेहरे को मिट्टी के ढेर से रगड़ते है !
भाषा और संपर्क
- चिश्तियों ने न केवल भाषा को अपनाया, बल्कि दिल्ली में रहने वाले चिश्ती सिलसिले के शिष्य हिन्दवी में संवाद करते थे
- बाबा फरीद ने क्षेत्रीय भाषा में काव्या रचना की, जिसे गुरु ग्रन्थ साहिब में संकलित किया। इस तरह सोफियों ने मसनवी लिखी जो ईश्वर के प्रति प्रेम को इंसान प्रेम से दर्शाता था।
चरखानामा
- यह गीत चरखे के घूमने की धुन पर आधारित है
- जैसे आप रुई लेते हैं,आप ज़िक्र-ए-जाली करें
- जैसे आप रुई को धुनते हैं, आप ज़िक्र-ए-कल्बी करें
- इसे धागे की तरह गले से उतारें श्वास के धागे एक-एक गिनें, बहन चौबीस हज़ार तक गिनें सबुह-शाम ऐसा करें और इसे तोहफे में अपने पीर को पेश करें..।
सूफी और राज्य
- चिश्ती के मार्ग की एक खासियत है संयम और सादगी और उन पर बल दिया जाता है, जो शक्ति से अलग जीवन जीते था लेकिन ऐसा नहीं है कि यह अपने राजनीतिक प्रभाव से दूर रह कर रहा हो वे अगर अनुदान या भेंट देते तो उसे स्वीकार करते थे
- सुल्तानों ने खानकाहों को कर-मुक्त भूमि अनुदान में दी और दान सम्बन्धी ट्रस्ट स्थापित किए, जिससे यह जाहिर होता था की औलिया मध्यस्थ के रूप में सेवारत हैं।
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