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Questions and Answers
सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष कहाँ पाए गए थे?
सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष कहाँ पाए गए थे?
- गंगा नदी के किनारे
- सिर्फ हड़प्पा
- सिर्फ मोहनजोदड़ो
- सिंध में मोहनजोदड़ो और पश्चिमी पंजाब में हड़प्पा (correct)
सिंधु घाटी सभ्यता के संदर्भ में, कौन सा कथन सही है?
सिंधु घाटी सभ्यता के संदर्भ में, कौन सा कथन सही है?
- यह केवल सिंधु घाटी तक ही सीमित थी।
- यह गंगा की घाटी तक फैली हुई थी। (correct)
- यह सभ्यता केवल ग्रामीण थी।
- यह सभ्यता धार्मिक तत्वों से पूरी तरह प्रभावित थी।
सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषता क्या थी?
सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषता क्या थी?
- यह प्रधान रूप से एक धर्मनिरपेक्ष सभ्यता थी। (correct)
- यह एक खानाबदोश सभ्यता थी।
- यह प्रधान रूप से एक धार्मिक सभ्यता थी।
- यह एक ग्रामीण सभ्यता थी।
सिंधु घाटी सभ्यता ने किस सभ्यता के साथ संबंध स्थापित किया था?
सिंधु घाटी सभ्यता ने किस सभ्यता के साथ संबंध स्थापित किया था?
सिंधु घाटी सभ्यता में किस वर्ग की भूमिका महत्वपूर्ण थी?
सिंधु घाटी सभ्यता में किस वर्ग की भूमिका महत्वपूर्ण थी?
मोहनजोदड़ो के खंडहर किस बात का प्रमाण हैं?
मोहनजोदड़ो के खंडहर किस बात का प्रमाण हैं?
पश्चिमोत्तर दिशा से भारत में कौन आए?
पश्चिमोत्तर दिशा से भारत में कौन आए?
सिंधु घाटी सभ्यता के प्रतिनिधियों और बाहर से आने वाले आर्यों के बीच क्या हुआ?
सिंधु घाटी सभ्यता के प्रतिनिधियों और बाहर से आने वाले आर्यों के बीच क्या हुआ?
मैक्समूलर ने किसे 'आर्य मानव के द्वारा कहा गया पहला शब्द' कहा है?
मैक्समूलर ने किसे 'आर्य मानव के द्वारा कहा गया पहला शब्द' कहा है?
वैदिक युग के आर्यों में जीवन के प्रति कैसी उमंग थी?
वैदिक युग के आर्यों में जीवन के प्रति कैसी उमंग थी?
कौन सी तलाश भारत में कभी समाप्त नहीं हुई?
कौन सी तलाश भारत में कभी समाप्त नहीं हुई?
भारतीय लोग किसमें विश्वास करने लगते हैं जब वे क्रांतिकारी नहीं हो जाते?
भारतीय लोग किसमें विश्वास करने लगते हैं जब वे क्रांतिकारी नहीं हो जाते?
वैदिक संस्कृति की मूल पृष्ठभूमि क्या नहीं है?
वैदिक संस्कृति की मूल पृष्ठभूमि क्या नहीं है?
उपनिषदों का समय ईसा पूर्व कब से माना जाता है?
उपनिषदों का समय ईसा पूर्व कब से माना जाता है?
उपनिषदों की सबसे प्रमुख विशेषता क्या है?
उपनिषदों की सबसे प्रमुख विशेषता क्या है?
उपनिषदों में लगातार किस बात पर ज़ोर दिया गया है?
उपनिषदों में लगातार किस बात पर ज़ोर दिया गया है?
गांधी जी के नेतृत्व में जिन जनांदोलनों ने भारत को हिला दिया उनके पीछे क्या था?
गांधी जी के नेतृत्व में जिन जनांदोलनों ने भारत को हिला दिया उनके पीछे क्या था?
सबसे पहला बड़ा सांस्कृतिक समन्वय और मेलजोल किनके बीच हुआ?
सबसे पहला बड़ा सांस्कृतिक समन्वय और मेलजोल किनके बीच हुआ?
भारत में भौतिकवादी दर्शन का प्रचलन कब रहा?
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अर्थशास्त्र की रचना किसने की थी?
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भारतीय पुराकथाएँ किस काल तक जाती हैं?
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कल्हण की राजतरंगिणी किससे संबंधित है?
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महाभारत का दर्जा कैसा है?
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किसके अनुसार सत्य पर किसी का एकाधिकार नहीं हो सकता?
किसके अनुसार सत्य पर किसी का एकाधिकार नहीं हो सकता?
रामायण की कथा क्या है?
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महाभारत में कृष्ण से क्या संबधित किया गया है?
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गीता में मानव विकास के कितने मार्गों का उल्लेख है?
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बुद्ध के समय से पहले का वृत्तांत हमें किस कथाओ में मिलता है?
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जातक पुरोहित या ब्राह्मण परंपरा तथा क्षत्रिय या शासक परंपरा के विरोध में किसका प्रतिनिधित्व करते हैं?
जातक पुरोहित या ब्राह्मण परंपरा तथा क्षत्रिय या शासक परंपरा के विरोध में किसका प्रतिनिधित्व करते हैं?
महाकाव्यों के युग में अक्सर वनों में क्या जिक्र किया गया था?
महाकाव्यों के युग में अक्सर वनों में क्या जिक्र किया गया था?
Flashcards
सिंधु घाटी सभ्यता क्या है?
सिंधु घाटी सभ्यता क्या है?
सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष सिंध और पश्चिमी पंजाब में पाए गए।
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के खंडहरों की खोज एक संयोग थी।
सिंधु घाटी का विस्तार
सिंधु घाटी का विस्तार
यह सभ्यता उत्तर भारत में दूर-दूर तक फैली थी और गंगा की घाटी तक फैली हो सकती है।
सिंधु घाटी की प्रकृति
सिंधु घाटी की प्रकृति
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सिंधु घाटी का संबंध
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सिंधु घाटी में व्यापारी
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सिंधु घाटी का अंत
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आर्यों का आगमन
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ऋग्वेद
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वेद क्या है?
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उपनिषदों का संदेश
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उपनिषदों का ज़ोर
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भौतिकवाद क्या है?
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रामायण और महाभारत
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महाभारत का संदेश
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आर्यावर्त
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गीता का प्रयास
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गाँवों में दस्तकारी
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पाणिनि
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बौद्ध धर्म
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बुद्ध का प्रेम संदेश
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बुद्ध का कर्म संदेश
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नहीं होता, घृणा
मनुष्य को क्रोध
बुराई पर भलाई
यह सदाचार
नहीं होता, घृणा मनुष्य को क्रोध बुराई पर भलाई यह सदाचार
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तत्पर रहना चाहिए, जब तक
की सेवा कर सकता अशोक का है
तत्पर रहना चाहिए, जब तक की सेवा कर सकता अशोक का है
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Study Notes
सिंधु घाटी सभ्यता का परिचय
- सिंधु घाटी सभ्यता भारत के अतीत की सबसे पहली झलक प्रदान करती है
- अवशेषों की खोज से प्राचीन इतिहास को समझने में क्रांतिकारी बदलाव आया
- अवशेष सिंधु के मोहनजोदड़ो और पश्चिमी पंजाब के हड़प्पा में पाए गए
प्रमुख स्थल और विस्तार
- मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के खंडहर संयोग से मिले और ये एक दूसरे से काफी दूर हैं
- प्राचीनकाल में इन दोनों शहरों के बीच कई और नगर दबे होने की संभावना है
- यह सभ्यता विशेष रूप से उत्तरी भारत में दूर-दूर तक फैली हुई थी
- सभ्यता के अवशेष पश्चिम में काठियावाड़ और पंजाब के अंबाला जिले जैसे दूर-दराज के स्थानों पर पाए गए
- ऐसा माना जाता है कि यह सभ्यता गंगा घाटी तक फैली हुई थी, इसलिए यह केवल सिंधु घाटी सभ्यता से कहीं अधिक विशाल थी
सभ्यता का महत्व और स्वरूप
- खोजी गई सिंधु घाटी सभ्यता अत्यंत विकसित थी, संभवत: हजारों वर्षों के विकास के बाद
- आश्चर्यजनक रूप से यह सभ्यता मुख्य रूप से धर्मनिरपेक्ष थी
- धार्मिक तत्वों की मौजूदगी के बावजूद धर्म हावी नहीं था
सांस्कृतिक अग्रदूत और संबंध
- सिंधु घाटी सभ्यता भारत में बाद के सांस्कृतिक युगों की अग्रदूत थी
- इस सभ्यता का फ़ारस, मेसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यताओं के साथ संबंध था और व्यापार होता था
- कुछ मायनों में यह सभ्यता उनसे बेहतर थी और यह एक शहरी सभ्यता थी
शहरी जीवन और व्यापारी वर्ग
- व्यापारी वर्ग समृद्ध था और समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था
- सड़कों पर दुकानों की कतारें थीं, हालांकि दुकानें छोटी रही होंगी
ऐतिहासिक अंतराल और निरंतरता
- सिंधु घाटी सभ्यता और वर्तमान भारत के बीच कई युग बीते हैं जिनके बारे में कम जानकारी है
- इन बदलावों के बावजूद, एक निरंतरता है जो आधुनिक भारत को छह-सात हजार वर्ष पुराने युग से जोड़ती है जब सिंधु घाटी सभ्यता की शुरुआत हुई थी
खुदाइयों से आश्चर्य
- मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खोजों से पता चलता है कि उनमें कुछ तत्व ऐसे हैं जो आज भी मौजूद हैं
- परंपराएं, रीति-रिवाज, हस्तकला और पोशाकों के फैशन में समानता दिखती है
विकसित सभ्यता
- भारत अपनी कहानी की शुरुआत में एक विकसित सभ्यता के रूप में दिखाई देता है
- कला और सुख-सुविधाओं में उल्लेखनीय तकनीकी प्रगति कर ली गई थी
- इस सभ्यता ने सुंदर वस्तुओं के अलावा आधुनिक सभ्यता के उपयोगी प्रतीक, जैसे कि अच्छे स्नानागार और नालियों का निर्माण किया
आर्यों का आगमन और सांस्कृतिक मिलन
- सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों की उत्पत्ति और आगमन अज्ञात है
- संभावना है कि उनकी संस्कृति इसी देश की संस्कृति थी, जिसकी जड़ें दक्षिण भारत में भी हो सकती हैं
- कुछ विद्वान इन लोगों और दक्षिण भारत की द्रविड़ जातियों के बीच समानताएं देखते हैं
- यदि कुछ लोग प्राचीन समय में भारत आए भी थे, तो यह घटना मोहनजोदड़ो के समय से कई हजार वर्ष पहले हुई होगी
- इसलिए उन्हें भारत के ही निवासी माना जा सकता है
सभ्यता का अंत
- सिंधु घाटी सभ्यता का अंत संभवतः किसी अज्ञात दुर्घटना के कारण हुआ
- सिंधु नदी अपनी भयंकर बाढ़ों के लिए जानी जाती है, जिससे शहर और गांव बह जाते थे
- मौसम में बदलाव के कारण धीरे-धीरे जमीन सूख गई और खेत रेगिस्तान में बदल गए
- मोहनजोदड़ो के खंडहर इस बात का प्रमाण हैं कि रेत की परतें जमती गईं जिससे शहर की जमीन ऊंची होती गई
- निवासियों को पुरानी नींवों पर ऊंचे मकान बनाने पड़े, जिससे खुदाई में दो-तीन मंजिला मकान मिले
- सिंध का इलाका पुराने समय में समृद्ध था, लेकिन मध्ययुग के बाद ज्यादातर रेगिस्तान बन गया
बदलाव का प्रभाव
- संभवतः मौसमी परिवर्तनों ने निवासियों के जीवन और तौर-तरीकों को प्रभावित किया
- हालांकि, इस प्रभाव का दूर-दूर तक फैली सभ्यता के अपेक्षाकृत छोटे हिस्से पर ही असर पड़ा
- सभ्यता शायद गंगा घाटी तक फैली हुई थी, लेकिन इसका फैसला करने के लिए पर्याप्त आंकड़े नहीं हैं
- बालू ने कुछ प्राचीन शहरों को ढक लिया, जिससे वे सुरक्षित रहे, जबकि अन्य शहर नष्ट हो गए
निरंतरता और भिन्नता
- सिंधु घाटी सभ्यता और बाद के युगों में निरंतर संबंध के साथ ही कुछ टूटन भी हुई
- शुरुआती सभ्यता मुख्य रूप से कृषि पर आधारित थी, लेकिन नगर और शहरी जीवन भी मौजूद थे
- कृषि पर जोर नवागंतुकों, यानी आर्यों ने दिया जो उत्तर-पश्चिमी दिशा से कई बार में आए
आर्यों का आगमन और सांस्कृतिक समन्वय
- माना जाता है कि आर्यों का प्रवेश सिंधु घाटी युग के लगभग एक हजार वर्ष बाद हुआ
- यह भी संभव है कि यह अंतर कम रहा हो और ये कबीले पश्चिमोत्तर दिशा से समय-समय पर आते रहे हों
- सबसे पहला बड़ा सांस्कृतिक समन्वय आर्यों और द्रविड़ जाति के लोगों के बीच हुआ
- इस समन्वय से भारतीय जातियों और संस्कृति का विकास हुआ जिसमें दोनों सभ्यताओं के तत्व शामिल हैं
बाद के प्रभाव
- बाद के युगों में कई और जातियाँ आईं, जिन्होंने अपना प्रभाव डाला और यहीं घुल-मिलकर रह गईं
प्राचीनतम अभिलेख, धर्म-ग्रंथ और पुराण
- सिंधु घाटी सभ्यता की खोज से पहले वेदों को भारतीय संस्कृति का सबसे पुराना इतिहास माना जाता था
- वैदिक युग के काल निर्धारण पर मतभेद हैं, यूरोपीय विद्वान इसे बाद का और भारतीय विद्वान पहले का मानते हैं
- आजकल अधिकांश विद्वान ऋग्वेद की ऋचाओं का समय ईसा पूर्व 1500 मानते हैं
- मोहनजोदड़ो की खुदाई के बाद से आरंभिक भारतीय धर्म ग्रंथों को और पुराना साबित करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है
- यह मनुष्य के दिमाग की प्राचीनतम रचना है, जिसे मैक्समूलर ने 'आर्य मानव के द्वारा कहा गया पहला शब्द' कहा है
- भारत में प्रवेश के समय आर्य उसी कुल के विचारों को लाए जिससे ईरान में अवेस्ता की रचना हुई
- भारत में उन्होंने उन्हीं विचारों को विकसित किया, और वेदों और अवेस्ता की भाषा में समानता है
- कहा जाता है कि वेद भारत के अपने महाकाव्यों की संस्कृत की अपेक्षा अवेस्ता के अधिक निकट हैं
वेद
- बहुत से हिन्दू वेदों को प्रकाशित धर्म-ग्रंथ मानते हैं
- इनका महत्व इस बात में है कि मानव-मस्तिष्क ने विचारों की प्रारंभिक अवस्था में खुद को कैसे व्यक्त किया
- 'वेद' शब्द 'विद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'जानना', यानी वेद का अर्थ है अपने समय के ज्ञान का संग्रह
- वेदों में न मूर्ति-पूजा है न देव-मंदिर
- वैदिक युग के आर्यों में जीवन के प्रति उत्साह था और वे मृत्यु के बाद के जीवन पर बहुत कम ध्यान देते थे
- पहला वेद, ऋग्वेद, मानव जाति की पहली पुस्तक है, जिसमें मानव-मन के आरंभिक उद्गार, काव्य-प्रवाह और प्रकृति के सौंदर्य के प्रति हर्षोन्माद मिलता है
- इसमें मनुष्य के साहसिक कारनामों का रिकॉर्ड है
- यहीं से भारत ने एक ऐसी तलाश आरंभ की जो कभी समाप्त नहीं हुई
सभ्यता के उषाकाल में
- प्रबल और सहज कल्पना से संपन्न लोग जीवन में छिपे रहस्य जानने के लिए सजग हुए
- उन्होंने प्रकृति के प्रत्येक तत्व और शक्ति में देवत्व का आरोप किया, जिसमें साहस और आनंद का भाव था
- पश्चिमी लेखकों ने भारतीय लोगों को परलोक-परायण बताया है, लेकिन हर देश के निर्धन और अभागे लोग परलोक में विश्वास करते हैं
- गुलामी और गरीबी में परलोक में विश्वास करना स्वाभाविक है
दो धाराएँ
- भारत में विचार और कर्म की दो धाराएँ विकसित होती दिखाई देती हैं, एक जीवन को स्वीकार करती है और दूसरी उससे बचना चाहती है
- अलग-अलग युगों में कभी एक तो कभी दूसरी धारा का दबदबा रहा
- वैदिक संस्कृति की मूल पृष्ठभूमि परलोकवादी नहीं बल्कि जीवन को महत्व देने वाली थी
जीवन का रस
- जब भी भारत की सभ्यता में बहार आई, लोगों ने जीवन और प्रकृति में गहरा रस लिया और जीने की प्रक्रिया में आनंद लिया
- ऐसे युगों में कला, संगीत, साहित्य, नृत्य, चित्रकला और रंगमंच का विकास हुआ
- परलोक को मानने वाली संस्कृति इतने रूपों की रचना नहीं कर सकती
संस्कृति का आधार, सामाजिक जीवन और निरंतरता
- कोई भी संस्कृति जो मूल रूप से पारलौकिकतावादी हो, हजारों वर्षों तक जीवित नहीं रह सकती
- भारतीय संस्कृति की शुरुआत से ही एक ऐसी सभ्यता और संस्कृति दिखाई पड़ती है जो आज भी बनी हुई है
- इसी समय मूल आदर्श आकार ग्रहण करने लगते हैं, और साहित्य दर्शन, कला, नाटक और जीवन के क्रियाकलाप इन आदर्शों के अनुसार चलने लगते हैं
- विशिष्टतावाद और छुआछूत की प्रवृत्ति भी इसी समय शुरू होती है, जो बाद में असह्य हो जाती है; यह आधुनिक युग की जाति-व्यवस्था है
जातिवाद
- व्यवस्था विशेष परिस्थिति के लिए बनाई गई थी, जिसका उद्देश्य समाज-व्यवस्था को मजबूत बनाना और शक्ति प्रदान करना था, लेकिन बाद में यह कारागृह बन गई
- फिर भी यह व्यवस्था लंबे समय तक बनी रही, और इसके भीतर बंधे रहते हुए भी विकास करने की प्रेरणा बनी रही
- इतिहास के लंबे दौर में भारत अलग नहीं रहा, ईरानियों, यूनानियों, चीनियों और मध्य एशियाई लोगों से उसका संपर्क बना रहा
उपनिषद्
- उपनिषदों का समय ईसा पूर्व 800 के आसपास माना जाता है
- ये भारतीय-आर्यों के चिंतन को एक कदम आगे ले जाते हैं
उपनिषदों का चिंतन
- उपनिषदों में जाँच-पड़ताल की चेतना और सत्य की खोज का उत्साह है
- आधुनिक विज्ञान की वस्तुनिष्ठ पद्धति से खोज नहीं की गई, फिर भी दृष्टिकोण में वैज्ञानिक तत्व मौजूद है
- वे किसी हठवाद को अपने रास्ते में नहीं आने देते, उनका जोर आत्म-बोध पर है
- व्यक्ति की आत्मा और परमात्मा संबंधी ज्ञान पर जोर है
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