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Questions and Answers
किं कर्तुं प्रवृत्तिः श्रीसर्वज्ञदे वा गणधरदे वा?
किं कर्तुं प्रवृत्तिः श्रीसर्वज्ञदे वा गणधरदे वा?
किं सरस्वती हरतु नो दरितान्?
किं सरस्वती हरतु नो दरितान्?
किं पुण्यफलम् प्राप्ति प्राप्नोति?
किं पुण्यफलम् प्राप्ति प्राप्नोति?
'विधिना प्रददति' केन केन?
'विधिना प्रददति' केन केन?
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'हितान्तर्' केन केन परिहारयेत्?
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Who is the text addressed to?
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What does the syllable ॐकार represent?
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Who is invoked as the divine, melodic sound that washes away impurities?
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Who is the giver of knowledge mentioned in the hymn?
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Who are addressed in the hymn as Paraguru and Paramparacharya?
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Study Notes
- श्रीसर्वज्ञवीतरागाय नम: श्रीपरमगरु वे नम:, परम्पराचार्यगरु वे नम:, श्रीपरमपूज्य श्रीपरु षार्थसिद्यपाय नामधेय मल ू आग्र्ह्यकर्ता: श्रीसर्वज्ञदे वास्तदत्त उरग्रन्थकर्ता:, श्रीगणधरदे वा, प्रतिगणधरदे वा - ये श्रीमद्-अमत ृ चंद्राचार्यदे विरचितम् । तत्र केवलज्ञानप्रणाम सम्पन्नादर्शी श्रीसर्वज्ञादिगरूनमकर्तुमाश्रित्य, सर्वपपाप्रणाशकम् शास्त्रं पठनादिक्रियाप्रवृत्तिः ॥1॥
- योगिनः श्रीगरुवे अविरलशब्दघनौघप्रक्षालितसकलभत उरग्रवश्यचिन्तयन्ति, सरस्वती हरतु नो दरितान् ॥2॥
- अज्ञानतिमिरान्धानां ज्ञानाञ्जनशलाकया चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगरुवे नमः ॥3॥
- श्रित्वा कामदं मोक्षदं त्रयम् इदं विधिपूर्वकं पठति पुण्यं पुण्यफलम् ॥4॥
- वाचादिविधिपूर्वकेन विधिना पठनार्हान् वाचादिकम् श्रीगरुवे नमस्कारयेत् ॥5॥
- विपरीतभावे हितान्तर्दधीनान् परिहारयेत् प्रतिपत्तिमान् विद्यते ॥6॥
- निवेदनादिकं श्रीसर्वज्ञदेवादिगरूणां शेषाद् विविधान् शेषान् विधिना प्रददति ॥7॥
Meaning:
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श्रीपरमगरु, परम्पराचार्यगरु, और श्रीपरु षार्थसिद्यपाय नाम के श्रीसर्वज्ञदे, गणधरदे, अवस्थे के पद्धतियें हैं जिन्हें श्रीसर्वज्ञवीतरागाय नमकरना सही है। उन्होंने यह शास्त्र पढाया है।
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अविरलशब्दघनौघप्रक्षालितसकलभत उरग्रवश्य कामदं और मोक्षदं श्रीगरुवे नमस्कार करके सदा ध्यान सहित रखनेवाले योगिनों को सरस्वती से दरितान प्रसन्न करने वाली है।
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अज्ञानतिमिरान्धकार से प्रवक्तित अंधेरे से स्वतंत्र जीवों के नेत्र ज्ञानरूपी अंजन के साथ खोले जाते हैं और इस श्रीगरुवे के लिए नमस्कार करने वाले हैं।
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सदा कामदं और मोक्षदं श्रीगरुवे नमस्कार करने से पुण्यफल प्राप्त होता है।
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विधिपूर्वक और श्रीगरुवे नमस्कार करने से विधिना प्रदद्यमान श्रीसर्वज्ञदे वा गणधरदे वा और अन्य सधिवार्ग के साथ कामनाएं शुरुआत रखने वाले हैं।
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प्रतिपत्तिमान हितान्तर्दधीनों को विपरीतभावसे बचाने वाली की कोशिश करनेवाले हैं।
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विधिपूर्वक श्रीसर्वज्ञदेवादिगरूतों के शेषां सुनने और प्रदान करने वाले हैं।
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The text is a hymn or prayer, addressed to Lord Sarvajñavītarāgamy namely ॐकाराय.
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Yogis constantly meditate on the syllable ॐकार, which represents the giver of both desires and liberation.
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The text invokes Lord Saraswati, the divine, melodic sound that washes away the impurities of the world and the minds of those who are bound by it.
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For those trapped in the darkness of ignorance, Lord Garu, the giver of knowledge, is the one to illuminate the path.
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Paraguru and Paramparacharya are also addressed in the hymn.
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The text, composed by the authors Sarvajñade, Ganadhara, Pratiganadhara, and Swami Amat Chandra, is a scripture that brings about the annihilation of all sins, increases happiness, upholds dharma, and enlightens future generations.
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The scripture was composed by these authors, as indicated by the verses they wrote, in the presence of Swami Amat Chandra.
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The text is for the benefit of all listeners.
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The text concludes with an invocation of various blessings, including those of the virtuous Virasena, Gautama, Kundakundarya, and Jainism.
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The last verse prays for the victory of Jainism and its teachings.
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Description
इस भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा के प्रशंसकों के लिए एक प्रेरणादायक संस्कृत गाथा पद्यानुवाद क्विज़। इसका लक्ष्य संस्कृत भाषा में प्रतिभाशाली अनुवाद कौशल का मूल्यांकन करना है।