सूरदास की कविता 'पद (1)'

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5 Questions

किसके बारे में बोला गया है, 'पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी'?

जल की गागरी

क्या 'पद' कविता में ऊधौ का क्या मतलब है?

मित्र

कवि 'सूरदास' किस संत के रूप में प्रसिद्ध है?

तुलसीदास

'प्रीति-नदी' के संदर्भ में क्या कहा गया है?

नदी की महिमा

'सूरदास' आत्म-समर्पण की संकेतना कहाँ से प्राप्त करते हैं?

जल

Study Notes

सूरदास की प्रेम कविता में आत्म-निरूपण

  • सूरदास ने अपने आपको अति बड़भागी बताया है, क्योंकि वे प्रेम में पूर्ण रूप से डूबे हुए हैं।
  • वे कहते हैं कि उनके मन में अनुरागी नहीं है, बल्कि सनेह तगा रहत सनेह है, जिसका अर्थ है कि वे प्रेम में पूरी तरह से समर्पित हैं।
  • वे पुरइनि पात bleibt जल भीतर की उपमा देते हैं, जिसका अर्थ है कि प्रेम उनके हृदय में है और वे इससे पूरी तरह से जुड़े हुए हैं।
  • उनके अनुसार प्रीति-नदी में पाउँ न बोरयौ, जिसका अर्थ है कि वे प्रेम की नदी में पूरी तरह से डूबे हुए हैं और इससे बाहर नहीं निकल पा रहे हैं।
  • वे अपने आपको 'अबला' कहा है, जिसका अर्थ है कि वे प्रेम में कमजोर हो गए हैं और इससे प्रभावित हैं।
  • सूरदास ने अपने गुरु की चाँटी के साथ अपनी तुलना करते हुए कहा है कि वे प्रेम में पूरी तरह से डूबे हुए हैं और इससे प्रभावित हैं।

इस क्विज़ में 'पद (1)' नामक सूरदास की एक कविता है। इस कविता के पंक्तियों को पहचानें और समझें।

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