संज्ञा (Sangya) in Indian Philosophy
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Questions and Answers

संज्ञा के दो प्रकार कौन से हैं?

  • सविकल्पा संज्ञा और अविकल्पा संज्ञा
  • विषय संज्ञा और अध्यस्य संज्ञा
  • सविकल्पा संज्ञा और निर्विकल्पा संज्ञा (correct)
  • प्रत्यय संज्ञा और विषय संज्ञा
  • संज्ञा में प्रत्यय क्या है?

  • विषय का मानस में बोध
  • वस्तु और उसके गुणों का मानस में बोध
  • मानस में वस्तु के प्रति उठने वाला भाव (correct)
  • अध्यस्य का मानस में बोध
  • संज्ञा में विषय क्या है?

  • अध्यस्य का मानस में बोध
  • मानस में वस्तु का बोध
  • वस्तु और उसके गुणों का मानस में बोध
  • जिस वस्तु का मानस में बोध होता है (correct)
  • संज्ञा का महत्व क्या है?

    <p>यह Realty और भ्रम के बीच का अंतर स्पष्ट करता है</p> Signup and view all the answers

    भारतीय दर्शन में संज्ञा का क्या महत्व है?

    <p>यह Realty और भ्रम के बीच का अंतर स्पष्ट करता है</p> Signup and view all the answers

    संज्ञा में अध्यस्य क्या है?

    <p>वह जिसके मानस में वस्तु का बोध होता है</p> Signup and view all the answers

    Study Notes

    संज्ञा (Sangya)

    Definition

    • संज्ञा (Sangya) is a Sanskrit term that refers to a concept or a notion in Indian philosophy, particularly in Hinduism and Buddhism.

    Types of संज्ञा

    • There are two types of संज्ञा:
      1. सविकल्पा संज्ञा (Savikalpa Sangya): Conceptual or determinate perception, where the mind is aware of an object and its attributes.
      2. निर्विकल्पा संज्ञा (Nirvikalpa Sangya): Non-conceptual or indeterminate perception, where the mind is aware of an object without its attributes.

    Characteristics of संज्ञा

    • विषय (Vishaya): The object of perception or the thing that is perceived.
    • अध्यस्य (Adhyasya): The subject or the perceiver.
    • प्रत्यय (Pratyaya): The notion or concept that arises in the mind due to the perception of the object.

    Importance of संज्ञा in Indian Philosophy

    • संज्ञा is a crucial concept in Indian philosophy, as it helps to understand the nature of reality and the process of perception.
    • It is used to explain the relationship between the subject and the object, and how our perceptions shape our understanding of the world.
    • संज्ञा is also used to distinguish between reality and illusion, and to understand the nature of consciousness.

    संज्ञा (Sangya)

    परिभाषा

    • संज्ञा भारतीय दर्शन में एक अवधारणा या धारणा है, विशेष रूप से हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म में.

    संज्ञा के प्रकार

    • संज्ञा दो प्रकार की होती है:
    • सविकल्पा संज्ञा (Savikalpa Sangya): जहां मन वस्तु और उसके गुणों के बारे में जानता है.
    • निर्विकल्पा संज्ञा (Nirvikalpa Sangya): जहां मन वस्तु के बारे में जानता है, लेकिन उसके गुणों के बारे में नहीं जानता.

    संज्ञा की विशेषताएं

    • विषय (Vishaya): वह वस्तु जिसका हम अनुभव करते हैं.
    • अध्यस्य (Adhyasya): वह जivid जिसका अनुभव होता है.
    • प्रत्यय (Pratyaya): वह धारणा जो वस्तु के अनुभव से मन में आती है.

    संज्ञा का महत्व भारतीय दर्शन में

    • संज्ञा भारतीय दर्शन में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, क्योंकि यह वास्तविकता और अनुभव की प्रक्रिया को समझने में मदद करती है.
    • यह विषय और वस्तु के बीच संबंध को समझने में मदद करती है.
    • संज्ञा वास्तविकता और माया के बीच अंतर करने में भी मदद करती है.
    • यह चेतना की प्रकृति को समझने में भी मदद करती है.

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    Description

    संज्ञा (Sangya) is a concept in Indian philosophy, particularly in Hinduism and Buddhism, referring to a notion or perception. Learn about its types, including सविकल्पा संज्ञा and निर्विकल्पा संज्ञा.

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