कशस्त्रों के प्रमुख कर्म
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कशस्त्रों के प्रमुख कर्म

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Questions and Answers

शस्त्रों के प्रमुख कर्मों को उनके कार्यों से मिलाएं:

ऐषण = वेधन आहरण = बडिश विसावण = भेदन छेदन व लेखन = मण्डलाय व करपत्र

शस्त्र गुणों को उनके विशेषताओं से मिलाएं:

सुग्रहाणि = अत्यल्प सुलोहानि = खरटार सुधाराणि = अतिदीर्घ चुसमाहित मुखाग्र = सुरुपाणि

भारतीय शस्त्रों के निर्माण में प्रयुक्त सामग्रियों को उनके ज्ञान से मिलाएं:

शुद्ध शैक्य अयस्क = लोहार कर्मको बिद = कुमार अग्नि = क्षार जलौका = कांच

अनुशस्त्र संख्या को उनके प्रकारों से मिलाएं:

<p>त्वकसार = बांस स्फटिक = कांच कुरुविद = जलौका गोजिका = अग्नि</p> Signup and view all the answers

शस्त्र दोषों को उनके विशेषताओं से मिलाएं:

<p>कुण्ठ = अतिह्रस्व अतिस्थूल = अत्यल्प खग्ड = अतिदीर्घ खरटार = आहार</p> Signup and view all the answers

भेद तीन त्रिविधा क्षारोदकतैलेषु को उनके प्रकारों से मिलाएं:

<p>क्षात्र पायना = तैल पायना उदक पायना = अग्नि जलौका = क्षार कांच = बांस</p> Signup and view all the answers

कसरत्रों का परिमाण को उनकी मापों से मिलाएं:

<p>सूची = 2 से 3 अंगुल नख शस्त्र = 8 अंगुल शेष शस्त्र = 6 अंगुल ऐषण = 5 अंगुल</p> Signup and view all the answers

भारत में शस्त्र पकड़ने के स्थान को उनके गुणों से मिलाएं:

<p>खरदार शस्त्र = करपेत्र छेदन भेदन = संयोग स्थल विसावण = तर्जनी पायना = धार तीक्ष्णता</p> Signup and view all the answers

Study Notes

कशस्त्रों के प्रमुख कर्म

  • प्रमुख कशस्त्र क्रियाएं: ऐषण, ऐषणी, मूलन, छेदन, लेखन, मण्डलाय, करपत्र, वेधन, आहरण, बडिश, दन्तशंकु, विसावण, भेदन, मसूरी।
  • कशस्त्रों का कार्य विभाजन आहरण, विसावण और भेदन में होता है।

कसरत्रों का परिमाण

  • सामान्य कशस्त्रों की लम्बाई: 2 से 3 अंगुल।
  • नख शस्त्र व ऐषणी की लम्बाई: 8 अंगुल।
  • शेष शस्त्र की लम्बाई: 6 अंगुल।

शस्त्रगुण

  • उत्कृष्ट गुण: सुग्रहाणि, सुलोहानि, सुधाराणि, सुरुपाणि, चुसमाहित मुखाग्र, अकरालानि।

शस्त्र दोष

  • प्रमुख दोष: अत्यल्प, कुण्ठ, खग्ड, खरटार, अतिदीर्घ, अतिह्रस्व, अतिस्थूल, अतिस्थूल।

भारत को पकडने का स्थान

  • खरदार शस्त्र में दोष होते हैं, किन्तु यह करपत्र का शस्त्र गुण है।
  • छेदन, भेदन और लेखन शस्त्र फल तथा वृन्तु के संयोग स्थल से संबंधित हैं।
  • आहरण के लिए मूल से कार्य होता है।
  • विसावण हेतु तर्जनी और अगूठे का उपयोग किया जाता है।
  • पायना उद्देश धार की तीक्ष्णता पर निर्भर करता है।

भेद 3 त्रिविधा क्षारोदकतैलेषु

  • क्षात्र पायना
  • उदक पायना
  • तैल पायना

शस्त्रनिर्माण

  • शुद्ध शैक्य अयस्क (स्टील) का उपयोग।
  • कर्मको विद कमार (लोहार) हैं।

शस्त्रकोश का वर्णन

  • वाग्भट् द्वारा शस्त्रकोश का विवरण: 9 अंगुल चौड़ाई और 12 अंगुल लम्बाई।

अनुशस्त्र संख्या

  • सुश्रुत द्वारा 14 और वाग्मट् द्वारा 12 को अंकित किया गया।
  • प्रमुख सामग्री: त्वकसार (बांस), स्फटिक, कांच, कुरुविद, जलौका, अग्नि, क्षार, नख, गोजिका, शेफालीपत्र, शाकपत्र, करीर, बाल, अंगुली।
  • त्वकसारादि चर्तुवर्ग में वंश, स्फटिक, कांच और कुरुविंद शामिल हैं।

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Description

यह क्विज कशस्त्रों के प्रमुख कर्म के विभिन्न पहलुओं पर केंद्रित है। इसमें शस्त्रों का परिमाण, गुण और दोष शामिल हैं। इसका उद्देश्य कशस्त्र विज्ञान के ज्ञान को बढ़ाना है।

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