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Questions and Answers
हरि कृपा का एक प्रमुख लक्षण क्या है?
हरि कृपा का एक प्रमुख लक्षण क्या है?
किसे हरि कृपा का संकेत माना जाता है?
किसे हरि कृपा का संकेत माना जाता है?
कौन सा विकल्प हरि कृपा के लक्षण में नहीं आता?
कौन सा विकल्प हरि कृपा के लक्षण में नहीं आता?
कर्मों का चयन करते समय साधक को किन कार्यों से दूर रहना चाहिए?
कर्मों का चयन करते समय साधक को किन कार्यों से दूर रहना चाहिए?
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मान-सम्मान का त्याग करने का क्या अर्थ है?
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हरि कृपा के आंतरिक रहस्यों में से एक रहस्य क्या है?
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ध्यान और भजन का क्या महत्व है?
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किस स्थिति में हरि कृपा पात्र व्यक्ति की पहचान होती है?
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कपट और असत्य से दूर रहने का क्या महत्व है?
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हरि कृपा के लक्षणों को साधक को किस आधार पर परीक्षा करनी चाहिए?
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Study Notes
पहचानें प्रभु की कृपा के लक्षण
- दया की भावना: घोर अपराधियों के प्रति भी क्षमा और सहिष्णुता होना, हरि कृपा का एक प्रमुख लक्षण।
- अनुसया: किसी भी व्यक्ति में दोष ना देखना, दूसरों के गुणों की प्रशंसा करना, हरि कृपा का संकेत।
- पवित्रता: भीतर और बाहर से शुद्ध रहना। कपट और असत्य से दूर रहकर भगवत चिंतन में मन लगाना।
- कर्मों का चयन: उन कार्यों से दूर रहना जो भजन और धर्म के खिलाफ हों। जैसे कि धर्म विरुद्ध व्यापार करना।
- निश्छल भजन: अपने भजन का फल न चाहना, दूसरों की भलाई के लिए भजन करना।
- मान-सम्मान का त्याग: पद और प्रतिष्ठा मिलने पर भी हृदय में असंतोष का अनुभव करना, हरि कृपा का लक्षण।
- दया और करुणा: सभी जीवों के प्रति दया और करुणा का भाव रखना, ममता से दूर रहना।
- जहर से मुक्ति: अहंकार, विषयों की आसक्ति, और संबंधों में ममता को मिटाकर जीवन को मुक्त करना।
हरि कृपा के आंतरिक रहस्य
- ध्यान और भजन: भजन शक्ति का अनुकूलन करना, हृदय में हरि की कृपा का अनुभव करना।
- पराई भलाई का ध्यान: दूसरों की भलाई के लिए भजन करना, अपने लाभ की अपेक्षा न करना।
- सीखने की प्रक्रिया: ये लक्षण हरि कृपा पात्र व्यक्तियों में सुसंगत रूप से पाये जाते हैं।
अंत में
- हरि कृपा के ये लक्षण ध्यानपूर्वक सुनने और हृदय में धारण करने योग्य हैं।
- साधक को अपनी आत्मा को इन्हीं निकषों पर परीक्षा करनी चाहिए।
पहचानें प्रभु की कृपा के लक्षण
- दया की भावना: घोर अपराधियों के प्रति भी सहिष्णुता और क्षमा, हरि कृपा का प्रमुख लक्षण।
- अनुसया: किसी भी व्यक्ति में दोष न देखना और दूसरों के गुणों की प्रशंसा करना, हरि कृपा का संकेत।
- पवित्रता: भीतर और बाहर से शुद्ध रहना, कपट और असत्य से दूर रहकर भगवत चिंतन में मन लगाना आवश्यक।
- कर्मों का चयन: उन कार्यों से दूर रहना जो भजन और धर्म के खिलाफ हों, जैसे धर्म विरुद्ध व्यापार।
- निश्छल भजन: भजन का फल न चाहना और दूसरों की भलाई के लिए भजन करने का भाव रखना।
- मान-सम्मान का त्याग: पद और प्रतिष्ठा मिलने पर भी असंतोष का अनुभव करना, हरि कृपा का एक लक्षण है।
- दया और करुणा: सभी जीवों के प्रति दया और करुणा का भाव रखना, ममता से दूर रहना आवश्यक।
- जहर से मुक्ति: अहंकार, विषयों की आसक्ति और संबंधों में ममता को मिटाकर जीवन को मुक्त करना।
हरि कृपा के आंतरिक रहस्य
- ध्यान और भजन: भजन शक्ति का अनुकूलन करना, जिससे हृदय में हरि की कृपा का अनुभव हो सके।
- पराई भलाई का ध्यान: दूसरों की भलाई के लिए भजन करना, अपने लाभ की अपेक्षा न रखना।
- सीखने की प्रक्रिया: हरि कृपा के ये लक्षण पात्र व्यक्तियों में सुसंगत रूप से पाए जाते हैं।
अंत में
- हरि कृपा के ये लक्षण ध्यानपूर्वक सुनने और हृदय में धारण करने योग्य हैं।
- साधक को अपनी आत्मा को इन निकषों पर परीक्षा करनी चाहिए।
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Description
इस क्विज़ में हरि कृपा के विभिन्न लक्षणों की पहचान करने के लिए प्रश्न पूछे जाएंगे। आप दया, पवित्रता और निश्छल भजन जैसे गुणों को समझेंगे। हरि कृपा के आंतरिक रहस्यों को जानने का यह एक अद्भुत अवसर है।