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Questions and Answers
निम्नलिखित में से किस अभिलेख में गुर्जर जाति का सर्वप्रथम उल्लेख मिलता है?
निम्नलिखित में से किस अभिलेख में गुर्जर जाति का सर्वप्रथम उल्लेख मिलता है?
- जूनागढ़ अभिलेख
- एहोल अभिलेख (correct)
- ग्वालियर अभिलेख
- प्रयाग प्रशस्ति
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने किस गुर्जर देश का उल्लेख किया है, जिसकी राजधानी भीनमल थी?
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने किस गुर्जर देश का उल्लेख किया है, जिसकी राजधानी भीनमल थी?
- कु-चे-लो (correct)
- कुरुक्षेत्र
- कु-सी-ना-गर
- का-पी-शा
गुर्जर-प्रतिहार राजवंश की स्थापना किन क्षेत्रों में हुई?
गुर्जर-प्रतिहार राजवंश की स्थापना किन क्षेत्रों में हुई?
- सिंध और काठियावाड़ क्षेत्र
- मालवा और राजपूताना क्षेत्र (correct)
- दिल्ली और पंजाब क्षेत्र
- मगध और बंगाल क्षेत्र
निम्नलिखित में से कौन सी गुर्जर प्रतिहारों की शाखा इतिहास में सर्वाधिक प्रसिद्ध हुई, जिसने उत्तर भारत के विस्तृत क्षेत्र पर शासन किया?
निम्नलिखित में से कौन सी गुर्जर प्रतिहारों की शाखा इतिहास में सर्वाधिक प्रसिद्ध हुई, जिसने उत्तर भारत के विस्तृत क्षेत्र पर शासन किया?
मिहिरभोज का ग्वालियर अभिलेख किस प्रकार का स्रोत है?
मिहिरभोज का ग्वालियर अभिलेख किस प्रकार का स्रोत है?
कर्नल जेम्स टॉड ने गुर्जर प्रतिहारों को किस उत्पत्ति का माना है?
कर्नल जेम्स टॉड ने गुर्जर प्रतिहारों को किस उत्पत्ति का माना है?
किस अभिलेख में प्रतिहार राजवंश के मूल पुरुष हरिश्चंद्र को ब्राह्मण कहा गया है?
किस अभिलेख में प्रतिहार राजवंश के मूल पुरुष हरिश्चंद्र को ब्राह्मण कहा गया है?
ग्वालियर प्रशस्ति में वत्सराज को किस वर्ण का बताया गया है?
ग्वालियर प्रशस्ति में वत्सराज को किस वर्ण का बताया गया है?
किस राष्ट्रकूट शासक के संजन ताम्रपत्र में दन्तिदुर्ग द्वारा उज्जयिनी में हिरण्यगर्भ यज्ञ करने का उल्लेख है, जिसमें गुर्जरों को प्रतिहारी का कार्य करने के लिए बाध्य किया गया?
किस राष्ट्रकूट शासक के संजन ताम्रपत्र में दन्तिदुर्ग द्वारा उज्जयिनी में हिरण्यगर्भ यज्ञ करने का उल्लेख है, जिसमें गुर्जरों को प्रतिहारी का कार्य करने के लिए बाध्य किया गया?
गुर्जर प्रतिहार नरेश वत्सराज ने किसे पराजित कर गौड़ राजलक्ष्मी को सरलतापूर्वक अपने अधीन कर लिया था?
गुर्जर प्रतिहार नरेश वत्सराज ने किसे पराजित कर गौड़ राजलक्ष्मी को सरलतापूर्वक अपने अधीन कर लिया था?
नागभट्ट द्वितीय ने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाकर किस उपाधि को धारण किया?
नागभट्ट द्वितीय ने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाकर किस उपाधि को धारण किया?
मिहिरभोज के शासनकाल का पहला अभिलेख कौन सा है?
मिहिरभोज के शासनकाल का पहला अभिलेख कौन सा है?
मिहिरभोज किस धर्म का अनुयायी था, जो उसकी उपाधियों से प्रमाणित होता है?
मिहिरभोज किस धर्म का अनुयायी था, जो उसकी उपाधियों से प्रमाणित होता है?
किस प्रतिहार शासक के दरबार में राजशेखर जैसे प्रसिद्ध विद्वान निवास करते थे?
किस प्रतिहार शासक के दरबार में राजशेखर जैसे प्रसिद्ध विद्वान निवास करते थे?
निम्न में से कौन कन्नौज के प्रतिहार वंश का अंतिम शासक था?
निम्न में से कौन कन्नौज के प्रतिहार वंश का अंतिम शासक था?
Flashcards
गुर्जरों का प्रथम उल्लेख
गुर्जरों का प्रथम उल्लेख
गुर्जर जाति का पहला उल्लेख पुलकेशीन द्वितीय के एहोल अभिलेख में मिलता है।
वेन सांग का गुर्जर उल्लेख
वेन सांग का गुर्जर उल्लेख
चीनी यात्री वेन सांग ने गुर्जर देश का उल्लेख 'कु-चे-लो' के रूप में किया, जिसकी राजधानी भीनमल थी।
गुर्जर प्रतिहारों की शाखाएँ
गुर्जर प्रतिहारों की शाखाएँ
गुर्जर प्रतिहार राजवंश की तीन शाखाएँ भृगुकच्छ-नान्दीपुरी, माण्डव्यपुर मेदन्तक, और अवन्ति क्षेत्र थीं।
अग्निकुल उत्पत्ति का सिद्धांत
अग्निकुल उत्पत्ति का सिद्धांत
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प्रतिहार वंश का मूल पुरूष
प्रतिहार वंश का मूल पुरूष
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नागभट्ट प्रथम की उपलब्धि
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नागभट्ट प्रथम का समकालीन शासक
नागभट्ट प्रथम का समकालीन शासक
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वत्सराज की विजय
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प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक
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गुर्जर प्रतिहार वंश का मुख्य इतिहास स्रोत
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मिहिरभोज का धर्म
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महेन्द्रपाल प्रथम का शासन
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महिपाल को किसकी सहायता मिली?
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महमूद गजनबी का आक्रमण
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प्रतिहार साम्राज्य का विभाजन
प्रतिहार साम्राज्य का विभाजन
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Study Notes
गुर्जर-प्रतिहार राजवंश
- गुर्जर जाति का पहला उल्लेख पुलकेशिन द्वितीय के एहोल अभिलेख में मिलता है।
- बाण के हर्षचरित में भी गुर्जर शासकों का उल्लेख है।
- चीनी यात्री ह्वेनसांग ने कु-चे-लो (गुर्जर) देश का उल्लेख किया है, जिसकी राजधानी पी-लो-मो-ली (भीनमल) थी।
- कन्नौज के यशोवर्मन की मृत्यु के बाद, गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना मालवा और राजपूताना में हुई।
गुर्जर प्रतिहारों की शाखाएँ
- अभिलेखीय साक्ष्यों में गुर्जर प्रतिहारों की तीन शाखाओं का उल्लेख मिलता है:
- भृगुकच्छ-नांदीपुरी
- मंडव्यपुर-मेदंतक
- अवंती क्षेत्र (जिसकी राजधानी उज्जैन थी)
- अवंती क्षेत्र की शाखा इतिहास में सबसे प्रसिद्ध हुई, और इसने 8वीं से 11वीं शताब्दी तक उत्तरी भारत के एक विस्तृत क्षेत्र पर शासन किया।
इतिहास जानने के स्रोत
- अभिलेख: मिहिरभोज का ग्वालियर अभिलेख और प्रतिहारों के समकालीन राष्ट्रकूट और पाल शासकों के अभिलेख।
- साहित्य:
- राजशेखर की काव्यमीमांसा, कर्पूरमंजरी, विद्धशालभंजिका, बालरामायण, भुवनकोश, हरविलास
- जयानक कृत पृथ्वीराज विजय
- चंद्रप्रभसूरि (जैन लेखक) कृत प्रभावक प्रशस्ति
- विदेशी विवरण: ह्वेनसांग, मुस्लिम लेखक सुलेमान (मिहिरभोज के विषय में) और अलमसूदी (महीपाल के विषय में) के विवरण।
उत्पत्ति
- प्रतिहारों की उत्पत्ति के बारे में इतिहासकारों में मतभेद है, जिसके संबंध में विभिन्न मत हैं।
विदेशी उत्पत्ति का मत
- कर्नल जेम्स टॉड ने प्रतिहारों की उत्पत्ति के संदर्भ में चंदबरदाई कृत पृथ्वीराज रासो के उद्धरणों का उल्लेख किया है।
- पृथ्वीराज रासो में प्रतिहार, परमार, चौलुक्य और चाहमान राजवंशों की उत्पत्ति वशिष्ठ द्वारा आबू पर्वत पर संपादित यज्ञ कुंड से बताई गई है, जिसे अग्निकुल की उत्पत्ति का सिद्धांत कहा जाता है।
- इस विवरण के आधार पर, टॉड गुर्जर प्रतिहारों को विदेशी मानते हैं, जिनका शुद्धिकरण करके भारतीयकरण किया गया था।
- गुर्जर प्रतिहारों को विदेशी मानने वाले विद्वान उन्हें सीथियन, हूण, खजर और चीन की यू-ची जाति से संबंधित करते हैं।
भारतीय उत्पत्ति का मत
- मिहिरभोज की ग्वालियर प्रशस्ति में प्रतिहारों को राम के छोटे भाई लक्ष्मण का वंशज बताया गया है।
- मंडव्यपुर शाखा के शासक बाउक के जोधपुर अभिलेख में कहा गया है कि राम के अनुज (लक्ष्मण) ने अपने भाई के लिए प्रतिहार का कार्य किया, इसलिए उनके वंशज प्रतिहार कहलाए।
ब्राह्मण कुल उत्पत्ति का मत
- कक्क के घटियाला लेख में प्रतिहार राजवंश के मूल पुरुष हरिश्चंद्र को ब्राह्मण कहा गया है, जिनकी भद्रा नामक क्षत्रिय पत्नी से प्रतिहारों की उत्पत्ति हुई।
क्षत्रिय कुल उत्पत्ति का मत
- मिहिरभोज की ग्वालियर प्रशस्ति में वत्सराज को क्षत्रिय कहा गया है।
- महाकवि राजशेखर ने महेन्द्रपाल को 'रघुकुल तिलक' और उसके पुत्र महीपाल को 'रघुवंश मुक्तामणि' कहा है।
मूल निवास
- प्रतिहारों के मूल निवास को लेकर विद्वानों में मतभेद है।
- स्मिथ ह्वेनसांग के विवरण के आधार पर इनकी राजधानी आबू पर्वत के उत्तर पश्चिम में स्थित भीनमल को बताते हैं।
- जिनसेन रचित जैनहरिवंश से ज्ञात होता है कि प्रतिहार वंशी शासक वत्सराज 783 ई० में अवंती प्रदेश पर शासन कर रहा था।
- कन्नौज को अपनी नई राजधानी बनाने से पहले, प्रतिहारों का मालवा क्षेत्र पर शासन था, जिसकी राजधानी उज्जयिनी थी।
नागभट्ट प्रथम (730-756 ई०)
- ग्वालियर प्रशस्ति के अनुसार, नागभट्ट प्रथम इस वंश का संस्थापक था।
- ग्वालियर प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि उसने अरबों से आक्रान्त लोगों की प्रार्थना पर नारायण की भांति सद्गुणों का विनाश करने वाले शक्तिशाली म्लेच्छाधिप की सेनाओं को पराजित किया, जिनकी पहचान जुनैद से की जाती है।
- इस संघर्ष का विवरण मुस्लिम लेखक अल-बिलादुरी में भी मिलता है।
- नागभट्ट प्रथम ने जुनैद को पराजित करके चाहमान भर्तृवड्ड को अपने संरक्षण में भड़ौच का शासक बनाया।
- नागभट्ट प्रथम का समकालीन राष्ट्रकूट शासक दन्तिदुर्ग था, और दोनों के मध्य हुए संघर्ष में नागभट्ट पराजित हुआ।
- राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष के संजन ताम्रपत्र में कहा गया है कि दन्तिदुर्ग ने उज्जयिनी में हिरण्यगर्भ नामक यज्ञ किया, जिसमें गुर्जर आदि राजाओं को प्रतिहारी का कार्य करने के लिए बाध्य किया गया।
कक्कुक/ककुस्थ एवं देवराज
- नागभट्ट पुत्रहीन था, इसलिए उसका भतीजा ककुस्थ राजा बना, जिसके बाद उसका अनुज देवराज राजा बना।
- उन्होंने अपने पैतृक राज्य को सुरक्षित रखा और लगभग 775 ई० तक शासन किया।
वत्सराज (775-800 ई०)
- वत्सराज देवराज का पुत्र था, जिसने कन्नौज के शासक इंद्रायुद्ध को पराजित करके अपना अधीनस्थ बना लिया।
वत्सराज का धर्मपाल और राष्ट्रकूट शासक ध्रुव से संघर्ष
-
साम्राज्य विस्तार के क्रम में, गुर्जर प्रतिहार नरेश वत्सराज का पाल नरेश धर्मपाल के साथ युद्ध हुआ, जिसमें धर्मपाल पराजित हुआ।
-
इस युद्ध का उल्लेख राष्ट्रकूटों के राधनपुर अभिलेख में है, जिसमें कहा गया है कि वत्सराज ने गौड़ राजलक्ष्मी को सरलतापूर्वक अपने अधीन कर लिया था, अर्थात वत्सराज ने धर्मपाल को पराजित कर उसके श्वेत राजक्षत्रों को छीन लिया था, परन्तु उसकी यह उपलब्धि क्षणिक रही।
-
राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने वत्सराज को पराजित कर दिया, और वत्सराज राजपूताना के रेगिस्तान की ओर भाग गया।
-
इसके पश्चात ध्रुव ने धर्मपाल को भी पराजित किया और फिर दक्षिण वापस लौट गया।
-
ध्रुव के वापस लौटने के पश्चात धर्मपाल ने कन्नौज पर आक्रमण करके वहां वत्सराज द्वारा मनोनीत शासक इंद्रायुद्ध को पराजित किया तथा अपनी ओर से चक्रायुद्ध को राजा बनाया।
-
धर्मपाल के खालिमपुर अभिलेख से ज्ञात होता है कि भोज (पाल नरेश धर्मपाल द्वारा कई लोगों को जीतने के बाद, कुर्य, यदु, यवन, अवंती, गंधार और कीर जैसे राजाओं ने उत्सुकता से उनके प्रति झुकाव प्रकट किया) ने राज्याभिषेक के लिए उत्सुक पांचाल के बुजुर्गों द्वारा लाए गए पानी से भरे स्वर्ण कलशों का जल प्राप्त किया जिससे काफ़ी शोभा हुई। (संक्षेप में धर्मपाल एक शक्तिशाली राजा था)।
-
कन्नौज पर विजय के पश्चात धर्मपाल ने कन्नौज में एक बड़ा दरबार लगाया, जिसमें भोज, मत्स्य, मद्र, कुरु, यदु, यवन, अवंति, गांधार और कीर के शासकों ने भाग लिया।
नागभट्ट द्वितीय (800-833 ई०)
- वत्सराज के बाद उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय गुर्जर प्रतिहार वंश का राजा हुआ।
- इसे प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
- मिहिरभोज की ग्वालियर प्रशस्ति में कहा गया है कि आन्ध्र, सिन्धु, विदर्भ और कलिंग के राजाओं ने नागभट्ट द्वितीय की शक्ति के सामने स्वंय को वैसे ही समर्पित कर दिया जैसे पतंगे दीपशिखा के प्रति करते हैं।
- नागभट्ट ने परमभट्टारक, परमेश्वर, महाराजाधिराज जैसी उपाधियाँ धारण की।
- नागभट्ट ने कन्नौज पर आक्रमण कर चक्रायुध को पराजित कर वहां से भगा दिया तथा कन्नौज को अपनी राजधानी बनायी।
नागभट्ट द्वितीय का राष्ट्रकूट शासक गोविन्द तृतीय से संघर्ष
- राष्ट्रकूट अभिलेखों से सूचना मिलती है कि गोविन्द ने नागभट्ट को पराजित कर उसे यशहीन कर दिया था।
- अल्टेकर का मानना है कि गोविन्द तृतीय और नागभट्ट द्वितीय के बीच यह युद्ध बुंदेलखण्ड क्षेत्र में लड़ा गया, जिसमें नागभट्ट पराजित हुआ।
- इसके बाद गोविन्द ने चक्रायुध तथा धर्मपाल को भी आत्मसमर्पण के लिए विवश किया।
- गोविन्द विजय करता हुआ हिमालय की तलहटी तक जा पहुँचा।
- संजन ताम्रपत्र में यह कहा गया है कि गोविन्द के हाथियों ने गंगाजल में स्नान किया तथा उसकी सेना द्वारा उत्पन्न ध्वनि से हिमालय की गुफायें गूंज उठी थी।
नागभट्ट द्वितीय का पाल शासक धर्मपाल से संघर्ष
- ग्वालियर प्रशस्ति में कहा गया है कि जिस प्रकार प्रातःकालीन सूर्य उदय होकर घने अंधकार को दूर करता हुआ सभी दिशाओं को प्रकाशमान कर देता है, उसी प्रकार विशाल हस्ति, रथ एवं अश्व सेना के कारण सघन बादलों की भांति युद्ध में उपस्थित होने वाले अपने शत्रु वंग नरेश को पराजित कर तीनों लोकों को सुखी बनाने वाला नागभट्ट युद्ध भूमि में प्रकट हुआ।
- इस विवरण से प्रतीत होता है कि इस युद्ध में धर्मपाल पराजित हुआ। दोनों के मध्य यह संघर्ष मुंगेर (बिहार) के समीप हुआ था।
रामभद्र (833-836 ई०)
- यह नागभट्ट द्वितीय का पुत्र था एवं एक दुर्बल शासक था।
- इसके समय में प्रतिहारों को पालों के हाथों पराजित होना पड़ा था।
मिहिरभोज (836-885 ई०)
- मिहिरभोज रामभद्र की पत्नी अप्पा देवी से उत्पन्न हुआ था।
- मिहिरभोज ने अपने शासनकाल में अनेक अभिलेख उत्कीर्ण करवाए, जिसमें सर्वप्रमुख ग्वालियर प्रशस्ति है, जिससे गुर्जर प्रतिहार वंश के इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है।
- मिहिरभोज के शासनकाल का पहला अभिलेख बराह अभिलेख है।
- अभिलेखों से पता चलता है कि उसका लोकप्रिय नाम भोज था।
- ग्वालियर प्रशस्ति तथा राष्ट्रकूटों के बेग्राम ताम्रपत्र में उसका नाम मिहिर है।
- ग्वालियर के चतुर्भुज लेख तथा उसकी मुद्रा पर आदिवराह नाम अंकित है।
- दौलतपुर ताम्र पत्र में प्रभास नाम उल्लिखित है।
- आदिवराह उपाधि से प्रमाणित होता है कि मिहिरभोज वैष्णव धर्म का अनुयायी था।
- मिहिरभोज अपने वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था।
मिहिरभोज की उपलब्धियाँ
- राजा बनने के बाद भोज ने सर्वप्रथम उन प्रांतों को अपने अधीन किया जो उसके पिता के समय में स्वतंत्र हो गए थे तथा मध्य भारत एवं राजपूताना में अपनी स्थिति मजबूत की।
- ग्वालियर लेख में कहा गया है कि 'अगस्त्य ऋषि ने तो केवल विन्ध्य पर्वत का विस्तार अवरुद्ध किया था, किन्तु इसने कई राजाओं पर आक्रमण कर उसका विस्तार रोक दिया। इसके अतिरिक्त उसने भारत में अरबों के प्रसार को भी रोक दिया था।
- गुहिलवंशी हर्षराज, जो उसका एक सामंत था, ने भोज के उत्तर भारतीय अभियानों में उसकी सहायता की।
- चाटसू लेख में उल्लेख है कि गुहिल शासक हर्ष ने उत्तर भारत के राजाओं को पराजित कर भोज को घोड़े उपहार में दिए थे।
- कल्चुरीवंशी गुणाम्बोधिदेव भी उसका सामंत था। कहल लेख (बांसगाँव, गोरखपुर) से पता चलता है कि कल्चुरी शासक गुणाम्बोधिदेव ने भोज से कुछ भूमि प्राप्त की थी।
मिहिरभोज तथा पाल वंश
- इसके समय में भी प्रतिहारों का पालों तथा राष्ट्रकूटों के साथ प्रतिद्वन्द्विता चलती रही।
- मिहिरभोज पाल राजाओं देवपाल तथा विग्रहपाल दोनों का समकालीन था।
- प्रतिहार तथा पाल दोनों ही अपने-अपने लेखों में अपनी-अपनी विजय का उल्लेख करते हैं।
- पालों के बादल लेख में देवपाल को गुर्जर प्रतिहार नरेश का विजेता कहा गया है।
- वहीं दूसरी तरफ ग्वालियर प्रशस्ति में उल्लेख है कि जिस लक्ष्मी ने धर्म के पुत्र का वरण किया था उसी ने बाद में, भोज को दूसरे पति के रूप में वरण किया।
- अतः ऐसा प्रतीत होता है कि प्रारम्भ में देवपाल को सफलता मिली, किन्तु बाद में देवपाल के अंतिम दिनों अथवा उसके उत्तराधिकारी विग्रहपाल के काल में भोज ने अपनी पराजय का बदला ले लिया तथा पाल वंश के पश्चिमी क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।
मिहिरभोज तथा राष्ट्रकूट वंश
- मिहिरभोज दो राष्ट्रकूट शासकों अमोघवर्ष तथा कृष्ण द्वितीय का समकालीन था।
- अमोघवर्ष के समय में भोज ने उज्जयिनी पर अधिकार कर लिया और नर्मदा की ओर बढ़ा, किन्तु अमोघवर्ष के सामंत ध्रुव द्वितीय, जो राष्ट्रकूटों की गुजरात शाखा का शासक था, ने भोज को पराजित कर दिया।
- मिहिरभोज का राष्ट्रकूटों की मुख्य शाखा से भी संघर्ष हुआ।
- अमोघवर्ष के पुत्र कृष्ण द्वितीय के समय में भी दोनों राजवंशों का संघर्ष चलता रहा।
- भोज ने नर्मदा नदी के तट पर कृष्ण द्वितीय को पराजित किया।
- राष्ट्रकूट अभिलेख देवली तथा करहाट से पता चलता है कि भोज तथा कृष्ण द्वितीय के बीच एक और भीषण युद्ध उज्जयिनी में हुआ, जिसमें कृष्ण ने भोज को भयाक्रान्त कर दिया।
- इस प्रकार भोज ने उत्तर भारत के विशाल क्षेत्र पर शासन किया। उसका साम्राज्य उत्तर-पश्चिम में पंजाब से लेकर दक्षिण में नर्मदा तक तथा पूर्व में गोरखपुर से लेकर पश्चिम में जयपुर तक फैला था।
- बुन्देलखण्ड के चन्देल भी उसकी अधीनता स्वीकार करते थे। उसने कन्नौज को इस विशाल साम्राज्य की राजधानी बनायी थी।
- भोज वैष्णव धर्मानुयायी था। उसने आदिवराह तथा प्रभास जैसी उपाधियाँ धारण की।
- भोज गुर्जर प्रतिहार वंश का महान शासक था। भोज के शासन काल की प्रशंसा अरब यात्री सुलेमान भी करता है।
महेन्द्रपाल प्रथम (885-910 ई०)
- मिहिरभोज के बाद उसकी पत्नी चन्द्रभट्टारिका देवी से उत्पन्न उसका पुत्र महेन्द्रपाल प्रथम शासक बना।
- महेन्द्रपाल तथा उसके सामंतों के अनेक लेख प्राप्त हुये हैं।
- लेखों में उसे परमभट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वर कहा गया है।
- महेन्द्रपाल के लेख बिहारशरीफ, रामगया तथा गुनरिया (गया), इटखोरी (हजारीबाग) तथा पहाड़पुर आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
- लेखों की प्राप्ति से निष्कर्ष निकलता है कि इन क्षेत्रों पर महेन्द्रपाल प्रथम का अधिकार हो गया था।
- उसका समकालीन पाल शासक नारायणपाल एक निर्बल राजा था।
- पहाड़पुर लेख से पता चलता है कि महेन्द्रपाल प्रथम ने आगे बढ़ते हुए बंगाल तक के प्रदेश पर विजय प्राप्त कर ली थी।
- मालवा का परमार शासक वाक्पति तथा काठियावाड़ के चालुक्य भी उसकी अधीनता स्वीकार करते थे। इस प्रकार महेन्द्रपाल ने उत्तराधिकार में प्राप्त साम्राज्य को न सिर्फ अक्षुण्ण बनाये रखा बल्कि उसकी सीमाओं में भी विस्तार किया।
- महेन्द्रपाल प्रथम केवल एक महान शासक ही नहीं था अपितु साहित्य एवं विद्या का महान संरक्षक भी था। उसके राजसभा में राजशेखर जैसे प्रसिद्ध विद्वान निवास करते थे जो उसके गुरू भी थे।
- महेन्द्रपाल प्रथम के काल में कन्नौज नगर ने एक बार पुनः वह गौरव प्राप्त कर लिया जो गौरव हर्ष के समय में प्राप्त था।
महिपाल (912-944 ई०)
- महिपाल को सिंहासन प्राप्त करने में चन्देल नरेश हर्षदेव से सहायता प्राप्त हुई थी।
- महिपाल के शासनकाल में राष्ट्रकूट नरेश इन्द्र तृतीय ने आक्रमण किया।
- इन्द्र ने उज्जैन पर अधिकार कर लिया तथा उसकी सेना ने यमुना नदी को पार करके महोदय नगर (कन्नौज) को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया।
- इस घटना का उल्लेख कन्नड़ कवि पम्प ने अपने ग्रन्थ पम्पभारत में किया है।
- पम्प इन्द्र के चालुक्य सामंत नरसिंह का आश्रित कवि था।
- महिपाल की इस स्थिति का लाभ उठाते हुए पालों ने उन क्षेत्रों पर पुनः अधिकार कर लिया जो उसके पिता ने विजित किए थे।
- पाल नरेश राज्यपाल तथा गोपाल द्वितीय दोनों ही महिपाल के समकालीन थे।
- दोनों के लेख क्रमशः नालन्दा तथा गया से मिले हैं। इन्द्र तृतीय के प्रत्यावर्तन के पश्चात महिपाल ने पुनः अपनी खोयी हुई प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली।
- राजशेखर उसे आर्यावर्त का महाराजाधिराज कहता है।
- मुस्लिम लेखक अलमसूदी जो 915-16 ई० में भारत की यात्रा पर आया था, महिपाल की आपार शक्ति एवं साधनों की प्रशंसा करता है।
- महिपाल के पश्चात प्रतिहार साम्राज्य का विघटन प्रारम्भ हो गया।
महिपाल के उत्तराधिकारी तथा प्रतिहार साम्राज्य का पतन
- महेन्द्रपाल, देवपाल, विनायकपाल और महिपाल द्वितीय ने 960 ई० तक शासन किया।
विजयपाल
- विजयपाल के शासनकाल में प्रतिहार साम्राज्य कई भागों में बंट गया और प्रत्येक भाग में एक स्वतंत्र शासन की स्थापना हुई।
- इनमें कन्नौज के गहड़वाल, जेजाकभुक्ति (बुन्देलखण्ड) के चन्देल, ग्वालियर के कच्छपघात, शाकम्भरी के चाहमान, मालवा के परमार, दक्षिणी राजपूताना के गुहिलोत, मध्य भारत के कलचुरी-चेदी तथा गुजरात के चौलुक्य प्रमुख हैं।
राज्यपाल
- राज्यपाल कन्नौज के प्रतिहार वंश का अंतिम शासक था।
- विजयपाल के पुत्र राज्यपाल के शासनकाल में महमूद गजनबी का आक्रमण हुआ।
- राज्यपाल ने आत्मसमर्पण कर दिया।
- मुस्लिम आक्रान्ताओं ने कन्नौज नगर को खूब लूटा और राज्यपाल राजधानी छोड़कर भाग गया।
- इस घटना से अन्य भारतीय शासक बहुत क्रोधित हुए।
- चन्देल नरेश विद्याधर ने राजाओं का एक संघ बनाकर राज्यपाल को दण्डित करने के लिए आक्रमण किया।
- दूब-कूण्ड लेख से पता चलता है कि कछवाहा वंशी अर्जन ने राज्यपाल की हत्या कर दी।
त्रिलोचनपाल
- त्रिलोचनपाल ने 1090 ई० तक कन्नौज पर शासन किया, जिसके पश्चात कन्नौज पर गहड़वाल वंश की स्थापना हो गयी।
- त्रिलोचनपाल का झूसी से अभिलेख प्राप्त हुआ है।
- उसका शासन प्रयाग के आस-पास के क्षेत्रों तक सीमित था।
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