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Questions and Answers
पीपा का जन्म कब हुआ माना जाता है?
पीपा का जन्म कब हुआ माना जाता है?
- 1430 ई.
- 1435 ई.
- 1425 ई. (correct)
- 1420 ई.
पीपा ने किस के शिष्य बनकर भक्ति का आदेश प्राप्त किया?
पीपा ने किस के शिष्य बनकर भक्ति का आदेश प्राप्त किया?
- रामानन्द (correct)
- कबीरदास
- तुलसीदास
- विवेकानंद
पीपा के अनुयायी किस समाज से संबंधित हैं?
पीपा के अनुयायी किस समाज से संबंधित हैं?
- बुजुर्ग समाज
- कृषक समाज
- सैन्य समाज
- दर्ज़ी समाज (correct)
जांभोजी ने किस वर्ष में विश्नोई सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया?
जांभोजी ने किस वर्ष में विश्नोई सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया?
जांभोजी द्वारा अनुयायियों को कितने सिद्धांतों का पालन करने का आदेश दिया गया?
जांभोजी द्वारा अनुयायियों को कितने सिद्धांतों का पालन करने का आदेश दिया गया?
पीपा मूर्ति-पूजा के बारे में क्या मानते थे?
पीपा मूर्ति-पूजा के बारे में क्या मानते थे?
जांभोजी का जन्म कहाँ हुआ?
जांभोजी का जन्म कहाँ हुआ?
जांभोजी की समाधि कहाँ स्थापित है?
जांभोजी की समाधि कहाँ स्थापित है?
पीपा ने किसे ईश्वर-प्राप्ति में गुरु के निर्देशन को आवश्यक बताया?
पीपा ने किसे ईश्वर-प्राप्ति में गुरु के निर्देशन को आवश्यक बताया?
जसनाथजी का जन्म किस वर्ष हुआ था?
जसनाथजी का जन्म किस वर्ष हुआ था?
जसनाथजी ने कितने वर्ष तक कठोर तपस्या की?
जसनाथजी ने कितने वर्ष तक कठोर तपस्या की?
जसनाथजी ने किस तांत्रिक का घमण्ड चकनाचूर किया?
जसनाथजी ने किस तांत्रिक का घमण्ड चकनाचूर किया?
जसनाथजी ने किस वर्ष में जीवित समाधि ली?
जसनाथजी ने किस वर्ष में जीवित समाधि ली?
जसनाथजी का संदेश क्या था?
जसनाथजी का संदेश क्या था?
दिल्ली सुल्तान सिकन्दर लोदी ने जसनाथजी को क्या दिया?
दिल्ली सुल्तान सिकन्दर लोदी ने जसनाथजी को क्या दिया?
जसनाथजी का उपदेश किस ग्रंथ में संग्रहित है?
जसनाथजी का उपदेश किस ग्रंथ में संग्रहित है?
जसनाथजी का जन्म स्थान कहाँ है?
जसनाथजी का जन्म स्थान कहाँ है?
जसनाथजी के पिता का नाम क्या है?
जसनाथजी के पिता का नाम क्या है?
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Study Notes
पीपा
- खींची राजपूत पीपा गागरौन (झालावाड़) के शासक थे, जिनका जन्म 1425 ई. में हुआ।
- पीपा ने कालोपरान्त काशी जाकर रामानन्द के शिष्य बने और गृहस्थ जीवन में भक्ति की साधना की।
- आचार्य रामानन्द के निमंत्रण पर द्वारिका यात्रा के दौरान पीपा ने राज्य त्यागकर उनके साथ यात्रा की।
- टोडा (टोंक) में शासक शूरसेन को अपनी दौलत संतों में बांटने पर अपना शिष्य बनाया।
- आहू तथा कालीसिंध के पवित्र संगम पर एक गुफा में निवास किया जहाँ उनका मंदिर और निवास स्थान प्रसिद्ध है।
- बाड़मेर जिले के समदड़ी गाँव में पीपाजी का भव्य मंदिर है जहाँ ड़र्ज़ी समाज हर वर्ष चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को बड़ा समागम आयोजित करता है।
- पीपा से संबंधित साहित्य भंडारों में उपलब्ध है, जिनमें 'पीपा की कथा', 'पीपा-परची', 'पीपा की वाणी' प्रमुख हैं।
- गुरु के निर्देशन को ईश्वर प्राप्ति के लिए आवश्यक समझा, भक्ति को मोक्ष का साधन माना।
- मूर्ति-पूजा का विरोध करते हुए ईश्वर-उपासना पर जोर दिया।
- ऊँच-नीच में विश्वास नहीं रखा, सभी प्राणियों की समानता का समर्थन किया।
जांभोजी
- जांभोजी ने 1451 ई. में पीपासर (नागौर) में जन्म लिया और 1485 ई. में विश्नोई सम्प्रदाय की स्थापना की।
- माता-पिता के देहांत के बाद वे सम्भराथल (बीकानेर) में सत्संग और हरि-चर्चा में लगे रहे।
- अनुयायियों के लिए 29 सिद्धांतों का पालन जरूरी समझा, जीव कल्याण और वृक्ष संरक्षण पर जोर दिया।
- पर्यावरण प्रेम के कारण जांभोजी को पर्यावरण वैज्ञानिक मानते हैं।
- प्रमुख रचनाएँ: जम्भ संहिता, जम्भ सागर शब्दावली, विश्नोई धर्मप्रकाश।
- 1536 ई. में लालासर गाँव में निधन, तालवा गाँव के निकट समाधिस्थ किया गया, जिसे 'मुकाम' कहा जाता है।
- यहाँ वर्ष में दो बार फाल्गुन और आश्विन की अमावस्या को मेला लगता है।
जसनाथजी
- जसनाथजी का जन्म 1482 ई. में कतरियासर (बीकानेर) में हुआ और इन्हें हमीरजी जाणी जाट का पौष्य पुत्र माना जाता है।
- इन्होंने गोरखमालिया में बारह वर्षों तक कठोर तप किया और जीवन की दया पर जोर दिया।
- लोह पांगल नामक तांत्रिक का घमंड चकनाचूर किया और रावलूणकरण को राजपद का वरदान दिया।
- दिल्ली सुलतान सिकन्दर लोदी ने भी जसनाथजी के चमत्कारों से प्रभावित होकर उन्हें भूमि दी।
- 1500 ई. में जांभोजी के साथ मिलन हुआ।
- 1506 ई. में चौबीस वर्ष की अल्प आयु में जीवित समाधि ली, उपदेश 'सिंभूधड़ा' और 'कोंडा' ग्रंथों में संचित हैं।
जसनाथजी का संप्रदाय
- जसनाथजी का जन्म 1482 ई. में कतरियासर (बीकानेर) में हुआ।
- पिता का नाम हमीरजी जाणी जाट और माता का नाम रूपांदे बताया जाता है।
- लोक-विश्वास के अनुसार, इन्होंने गोरखमालिया में बारह वर्षों तक कठोर तपस्या की।
उनके उपदेश और योगदान
- जसनाथजी ने सभी जीवों पर दया करने का सन्देश फैलाया।
- लोह पांगल नामक तांत्रिक के घमण्ड को चकनाचूर किया।
- रावलूणकरण को बीकानेर का राजपद पाने का वरदान दिया।
चमत्कार और प्रभाव
- दिल्ली के सुल्तान सिकन्दर लोदी ने जसनाथजी के चमत्कारों से प्रभावित होकर उन्हें कतरियासर के पास भूमि दी।
- 1500 ई. में जसनाथजी और जांभोजी का मिलन हुआ।
समाधि और लेखन
- जसनाथजी ने 1506 ई. में आश्विन शुक्ल सप्तमी को चौबीस वर्ष की आयु में कतरियासर में जीवित समाधि ली।
- उनके उपदेश "सिंभूधड़ा" और "कोंडा" नामक ग्रंथों में संग्रहित हैं।
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