Understanding Political Theory PDF

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मुक्त शिक्षा विद्याालय

शिकखाा सिंकह

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political theory political science political thinking philosophy

Summary

This document covers the basics of political theory. It is part of a course, likely an introduction, and details several key concepts like the meaning of politics, the approaches to political theory, and different traditional viewpoints. The document includes a table mapping curriculum sections to chapters. It's for a distant learning course at a Delhi University.

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jktuhfrd fl)kar dh le> (Understanding Political Theory) ch-,- ¼vkWulZ½ jktuhfr foKku lsesLVj-I Discipline Specific Core Course (DSC-1) As per the UGCF - 2022 and National Education Policy 2020 lhfer izlkj gsrq nwjLFk ,oa lrr~ f'k{kk foHkkx nwjLFk ,oa lrr~ f'k{kk foHkkx eqDr f'k{kk ifjlj] eqDr f'k{kk fo|ky; eqDr f'k{kk ifjlj] eqDr f'k{kk fo|ky; fnYyh fo'ofo|ky; fnYyh fo'ofo|ky; 20CUS01396 रााजनीीति क सि द्धांं त कीी समझ सीीमि त प्रसाार हेे तुु संंपाादक देे वेंंद्र दि लीीप पई पााठ्य-साामग्रीी लेेखक शि खाा सिं ंह, डॉॉ. शि वुु कुुमाार, डॉॉ. सुुकांं शि काा वत्स शैैक्षणि क समन्‍‍वयक दीीक्षांं त अवस्‍‍थीी दूू रस्‍‍थ एवंं सतत्् शि क्षाा वि भााग ई-मेेल : [email protected]         [email protected] प्रकााशक : दूू रस्‍‍थ एवंं सतत्् शि क्षाा वि भााग मुुक्‍त ‍ शि क्षाा परि सर, मुुक्‍त ‍ शि क्षाा वि द्याालय दि ल्‍‍लीी वि श्‍‍ववि द्याालय-110007 मुुद्रक : मुुक्‍त ‍ शि क्षाा वि द्याालय, दि ल्‍‍लीी वि श्‍‍ववि द्याालय दूू रस्थ एवंं सतत्् शि क्षाा वि भााग, मुुक्त शि क्षाा परि सर, मुुक्त शि क्षाा वि द्याालय, दि ल्लीी वि श्‍‍ववि द्याालय रााजनीीति क सि द्धांं त कीी समझ समीीक्षक शैैताान सिं ंह स्व-शि क्षण साामग्रीी (एस.एल.एम.) मेंं वैैधाानि क नि कााय, डीीयूू/हि तधाारकोंं द्वााराा प्रस्ताावि त सुुधाार/ संंशोोधन/ सुुझााव अगलेे संंस्करण मेंं शाामि ल कि ए जााएँँगेे। हाालाँँ कि , येे सुुधाार/संंशोोधन/सुुझााव वेेबसााइट https://sol.du.ac.in पर अपलोोड कर दि ए जााएँँगेे । कोोई भीी प्रति क्रि याा याा सुु झााव ईमेे ल - [email protected] पर भेेजेे जाा सकतेे हैंं। वि काास पब्लि शिं ग ं हााउस प्राा. लि., प्लाॅॅ ट 20/4, सााईट-IV, इंंडस्ट्रि ि यल एरि याा सााहि बााबााद, गााजि यााबााद - 201 010 मेंं मुुद्रि त (6000 प्रति याँँ ) दूू रस्थ एवंं सतत्् शि क्षाा वि भााग, मुुक्त शि क्षाा परि सर, मुुक्त शि क्षाा वि द्याालय, दि ल्लीी वि श्‍‍ववि द्याालय रााजनीीति क सि द्धांं त कीी समझ SYLLABI-BOOK MAPPING TABLE रााजनीीति क सि द्धांं त कीी समझ Syllabi Mapping in Book Unit 1: What is Politics: Theorizing the 'Political' पााठ 1: रााजनीीति क्याा हैै : रााजनीीति काा सि द्धांं तीीकरण (पृृष्‍ठ ‍ 3-14) Unit 2: Approaches to Political Theory: Normative, Historical पााठ 2: रााजनीीति क सि द्धांं त केे दृष्टि कोोण : नैैति क, and Empirical ऐति हाासि क और अनुुभवजन्य (पृृष्‍ठ ‍ 17-39) Unit 3: Traditions of Political Theory: Liberal, Marxist, पााठ 3: रााजनीीति क सि द्धांं त कीी परम्परााएँँ : Anarchist and Conservative उदाारवाादीी, माार्क्ससवाादीी, अरााजकताावाादीी, और अनुुदाारवाादीी (पृृष्‍ठ ‍ 43-78) Unit 4: Critical Perspectives in Political Theory: Feminist पााठ 4: नाारीीवाादीी परि प्रेेक्ष्‍य ‍ and Postmodern (पृृष्‍ठ ‍ 81-92) पााठ 5: उत्तर आधुुनि कताावााद (पृृष्‍ठ ‍ 93-104) Unit 5: The Idea of Political Community: Political Obligation पााठ 6: रााजनीीति क समुुदााय काा वि चाार : रााजनीीति क दाायि त्व (पृृष्‍ठ ‍ 107-120) दूू रस्थ एवंं सतत्् शि क्षाा वि भााग, मुुक्त शि क्षाा परि सर, मुुक्त शि क्षाा वि द्याालय, दि ल्लीी वि श्‍‍ववि द्याालय रााजनीीति क सि द्धांं त कीी समझ वि षय-सूूचीी इकााई-I पााठ 1 रााजनीीति क्याा हैै : रााजनीीति काा सि द्धांं तीीकरण 3-14 इकााई-II पााठ 2 रााजनीीति क सि द्धांं त केे दृष्टि कोोण: नैैति क, ऐति हाासि क और अनुुभवजन्य 17-39 इकााई-III पााठ 3 रााजनीीति क सि द्धांं त कीी परम्परााएँँ : उदाारवाादीी, माार्क्ससवाादीी, अरााजकताावाादीी, और अनुुदाारवाादीी 43-78 इकााई-IV पााठ 4 नाारीीवाादीी परि प्रेेक्ष्‍य ‍ 81-92 पााठ 5 उत्तर आधुुनि कताावााद 93-104 इकााई-V पााठ 6 रााजनीीति क समुुदााय काा वि चाार : रााजनीीति क दाायि त्व 107-120 दूू रस्थ एवंं सतत्् शि क्षाा वि भााग, मुुक्त शि क्षाा परि सर, मुुक्त शि क्षाा वि द्याालय, दि ल्लीी वि श्‍‍ववि द्याालय इकााई-1 पााठ 1 रााजनीीति क्याा हैै : रााजनीीति काा सि द्धांं तीीकरण राजनीति क्याहै : राजनीति का सिद्धांत पाठ 1 टि प्पणीी रााजनीीति क्याा हैै : रााजनीीति काा सि द्धांं तीीकरण शि खाा सिं ंह सहाायक प्रााध्याापक रााजनीीति वि ज्ञाान वि भााग, मुुक्‍‍त शि क्षाा वि द्याालय, दि ल्लीी वि श्‍‍ववि द्याालय संंरचनाा 1.1 अधि गम केे उद्देेश्य 1.2 परि चय 1.2.1 रााजनीीति क सि द्धांं त और साामाान्य व्यवहाार 1.2.2 सि द्धांं त और कलाा केे बीीच काा संंबंंध 1.3 रााजनीीति क शब्द काा अर्थथ 1.3.1 प्राारंंभि क अर्थथ 1.3.2 आधुुनि कताा केे सााथ रााजनीीति क शब्द काा परि वर्ततन 1.3.3 रााज्य कीी भूूमि काा 1.3.4 चिं ंतन केे वि भि न्न क्षेेत्र 1.4 रााजनीीति क सि द्धाान्त क्याा नहींं हैै ? 1.4.1 कॉॉस्मोोलोोजीीज़ और रााजनीीति क सि द्धांं त 1.4.2 सि द्धांं त और वि चाारधााराा 1.5 रााजनीीति वि ज्ञाान और रााजनीीति क सि द्धांं त 1.6 रााजनीीति क सि द्धांं तोंं केे दोो प्रकाार 1.7 रााजनीीति क सि द्धांं त कीी वि भि न्न महत्त्‍‍वपूूर्णण वि शेेषतााएँँ 1.8 माानक और वर्णणनाात्मक सोोच 1.10 नि ष्कर्षष 1.11 अभ्याास प्रश्‍‍न 1.12 संंदर्भभ ग्रंंथ स्व-अधि गम पााठ्य साामग्रीी 3 दूू रस्थ एवंं सतत्् शि क्षाा वि भााग, मुुक्त शि क्षाा परि सर, मुुक्त शि क्षाा वि द्याालय, दि ल्लीी वि श्‍‍ववि द्याालय रााजनीीति क सि द्धांं त कीी समझ टि प्पणीी 1.1 अधि गम केे उद्देेश्य रााजनीीति क सि द्धांं त क्याा हैै और यह क्योंं महत्त्‍‍वपूूर्णण हैै, इसेे स्पष्ट रूप सेे समझनाा। रााजनीीति क सि द्धांं त और व्याावहाारि क रााजनीीति केे बीीच केे संंबंंध कोो समझनाा और यह जााननाा कि कैैसेे सि द्धांं त व्याावहाारि क रााजनीीति कोो दि शाा देे तेे हैंं। रााजनीीति काा स्वभााव समझनाा । रााजनीीति क सि द्धांं त और वि चाारधााराा केे बीीच केे संंबंंधोंं कोो समझनाा, और यह जााननाा कि वि चाारधाारााएँँ कैैसेे रााजनीीति क सि द्धांं तोंं कोो आकाार देे तीी हैंं और उनसेे प्रभाावि त होोतीी हैंं। 1.2 परि चय हम सोोचनेे और समझनेे कीी क्षमताा रखतेे हैंं, इसलि ए हम दुु नि याा कोो अन्य जीीवोंं सेे अलग तरीीकेे सेे देे खतेे हैंं। जहाँँ अन्य जीीव जड़ तत्वोंं , रसाायनोंं और जैैवि क वस्तुुओं ं केे आधाार पर जीीवन जीीतेे हैंं, वहींं हम अपनेे अनुुभवोंं और धाारणााओंं केे बाारेे मेंं वि चाारशीील रहतेे हैंं। उनकेे बि नाा हमााराा जीीवन अधूूराा हैै। येे वि चाारशीीलताा हमाारीी रााजनीीति मेंं भीी होोतीी हैै। रााजनीीति क सि द्धांं त मेंं हम समााज और रााजनीीति केे वि भि न्न पहलुुओं ं कोो समझतेे हैंं। यह न केेवल हमेंं रााजनीीति क घटनााओंं और नीीति योंं कीी व्यााख्याा करनेे मेंं मदद करताा हैै, बल्कि हमेंं यह भीी बतााताा हैै कि उन्हेंं कैैसेे सुुधााराा जााए । उदााहरण केे लि ए, प्लेेटोो और अरस्तूू केे न्यााय केे सि द्धांं त आज भीी प्राासंंगि क हैंं और हमेंं यह समझनेे मेंं मदद करतेे हैंं कि समााज मेंं न्यााय और समाानताा कैैसेे स्थाापि त कीी जाा सकतीी हैै। इसीी तरह, जॉॉन लॉॉक केे प्रााकृृति क अधि काारोंं केे वि चाार और थॉॉमस हॉॉब्स केे साामााजि क अनुुबंंध केे सि द्धांं त हमेंं यह सि खाातेे हैंं कि स्वतंंत्रताा, जीीवन और संंपत्ति केे अधि काार क्योंं महत्त्‍‍वपूूर्णण हैंं और उन्हेंं कैैसेे संंरक्षि त कि याा जाा सकताा हैै। इस प्रकाार, रााजनीीति क सि द्धांं त हमेंं न केेवल वर्ततमाान रााजनीीति क प्रणाालीी कोो समझनेे मेंं मदद करताा हैै, बल्कि इसेे बेेहतर बनाानेे केे लि ए आवश्यक दि शाा भीी प्रदाान करताा हैै। रााजनीीति क सि द्धांं त यह भीी बतााताा हैै कि हमेंं समााज मेंं एक सााथ कैैसेे रहनाा चााहि ए। इसमेंं यह सवााल शाामि ल होोतेे हैंं कि समााज केे संंसााधनोंं कोो कैैसेे बाँँ टाा जाानाा चााहि ए, हम एक-दूू सरेे कीी स्व-अधि गम 4 पााठ्य साामग्रीी दूू रस्थ एवंं सतत्् शि क्षाा वि भााग, मुुक्त शि क्षाा परि सर, मुुक्त शि क्षाा वि द्याालय, दि ल्लीी वि श्‍‍ववि द्याालय राजनीति क्याहै : राजनीति का सिद्धांत सुुरक्षाा कैैसेे करेंं , और हम एक-दूू सरेे केे सााथ कैैसाा व्यवहाार करेंं । रााजनीीति क सि द्धांं तकाार यह जााननेे टि प्पणीी कीी कोोशि श करतेे हैंं कि क्याा सहीी हैै और क्याा गलत, और कि स तरह केे नि यम और नीीति याँँ समााज केे सभीी सदस्योंं केे लि ए सबसेे अच्छाा कााम करेंं गीी। उनकाा उद्देेश्य यह हैै कि हम एक ऐसेे समााज काा नि र्माा ण कर सकेंं जहाँँ सभीी लोोग सुुरक्षि त और सम्माानि त महसूूस करेंं । रााजनीीति क सि द्धांं त हमेंं यह समझनेे मेंं भीी मदद करताा हैै कि न्यााय, अधि काार, लोोकतंंत्र और नाागरि कताा जैैसेे रााजनीीति क अवधाारणााएँँ केेवल सि द्धांं त मेंं हीी नहींं , बल्कि व्याावहाारि क रूप सेे भीी महत्त्‍‍वपूूर्णण हैंं। उदााहरण केे लि ए, रााजनीीति क सि द्धांं त हमाारीी समझ वोोटिं ंग, शाासन और साामााजि क भूूमि कााओंं कीी प्रक्रि यााओंं कोो स्पष्ट करतीी हैै। इसकेे अलाावाा, रााजनीीति क सि द्धांं त यह भीी जाँँ चताा हैै कि इन सब वि षयोंं कीी समझ समय, संंस्कृृति और साामााजि क संंदर्भोंं मेंं कैैसेे बदलतीी हैंं। यह हमेंं वर्ततमाान रााजनीीति क प्रणाालि योंं कीी समीीक्षाा करनेे और समााज केे मूूल्योंं और आकांं क्षााओंं केे अनुुसाार सुुधाार करनेे मेंं मदद करताा हैै। 1.2.1 रााजनीीति क सि द्धांं त और साामाान्य व्यवहाार सि द्धांं त काा एक महत्त्‍‍वपूूर्णण पहलूू यह हैै कि यह हमाारेे साामाान्य व्यवहाार कोो भीी स्पष्ट करताा हैै। हम अपनेे रोोजमर्राा केे जीीवन मेंं जोो नि र्णणय लेेतेे हैंं, वेे अक्सर हमाारेे व्‍‍याावहाारि क बुुद्धि और साामाान्य सि द्धांं तोंं पर आधाारि त होोतेे हैंं। सि द्धांं त इन नि र्णणयोंं और व्यवहाारोंं कोो एक सुुसंंगत और औपचाारि क रूप मेंं प्रस्तुुत करताा हैै। उदााहरण केे लि ए, जब हम कि सीी रााजनीीति क नि र्णणय केे बाारेे मेंं सोोचतेे हैंं, तोो हम अपनीी साामाान्य समझ काा उपयोोग करतेे हैंं कि यह नि र्णणय समााज केे लि ए अच्छाा हैै याा नहींं । रााजनीीति क सि द्धांं त इस समझ कोो और स्पष्ट करताा हैै और हमेंं यह सि खााताा हैै कि वि भि न्न रााजनीीति क नि र्णणयोंं काा प्रभााव क्याा होो सकताा हैै और उन्हेंं कैैसेे सहीी तरीीकेे सेे लि याा जाा सकताा हैै। दाार्शशनि क हमेेशाा सेे माानव जीीवन और समााज केे बाारेे मेंं कुुछ मौौलि क प्रश्‍‍न पूूछतेे रहेे हैंं, जैैसेे कि “न्यााय क्याा हैै?”, “एक अच्छाा समााज कैैसाा होोनाा चााहि ए?”, “सत्ताा काा सहीी उपयोोग क्याा हैै?”। येे प्रश्‍‍न केेवल दाार्शशनि क चर्चाा ओं ं केे लि ए नहींं होोतेे, बल्कि येे हमाारेे रोोजमर्राा केे जीीवन मेंं भीी महत्त्‍‍वपूूर्णण होोतेे हैंं। हम भीी अपनेे दैैनि क जीीवन मेंं इन प्रश्‍‍नोंं काा साामनाा करतेे हैंं और इनकाा उत्तर अपनीी व्यवहाारि क बुुद्धि (कॉॉमन सेंंस) केे आधाार पर देे नेे कीी कोोशि श करतेे हैंं। उदााहरण केे लि ए, जब हम कि सीी केे सााथ न्यााय करनेे कीी बाात करतेे हैंं, तोो हम अपनीी साामाान्य समझ काा हीी उपयोोग करतेे हैंं कि सहीी और गलत क्याा हैै। स्व-अधि गम पााठ्य साामग्रीी 5 दूू रस्थ एवंं सतत्् शि क्षाा वि भााग, मुुक्त शि क्षाा परि सर, मुुक्त शि क्षाा वि द्याालय, दि ल्लीी वि श्‍‍ववि द्याालय रााजनीीति क सि द्धांं त कीी समझ टि प्पणीी 1.2.2 सि द्धांं त और कलाा केे बीीच काा संंबंंध सि द्धांं त और कलाा दोोनोंं हीी माानव व्यवहाार काा गहन वि श्‍‍लेेषण और व्यााख्याा करनेे काा प्रयाास करतेे हैंं। यह वि धि वत चिं ंतन न केेवल माानव क्रि यााओंं काा नि रीीक्षण करताा हैै, बल्कि उन्हेंं एक संंरचि त और वि चाारशीील तरीीकेे सेे समझाानेे काा भीी प्रयाास करताा हैै। कलाा और सि द्धांं त दोोनोंं हीी साामााजि क और व्यक्ति गत व्यवहाार कोो केेवल चि त्रि त नहींं करतेे, बल्कि उसेे नयाा अर्थथ देे नेे और उसकीी व्यााख्याा करनेे काा प्रयाास करतेे हैंं। इसकेे सााथ हीी, कभीी-कभीी सि द्धांं त और कलाा दोोनोंं काा उद्देेश्य माानव व्यवहाार कोो संंशोोधि त याा बदलनाा भीी होोताा हैै। उदााहरण केे लि ए, एक साामााजि क सि द्धांं त यह वि श्‍‍लेेषण कर सकताा हैै कि समााज मेंं एक वि शेेष व्यवहाार क्योंं प्रचलि त हैै, और फि र यह सुुझााव देे सकताा हैै कि इसेे कैैसेे सुुधाार सकतेे हैंं। इसीी तरह, कलाा भीी साामााजि क माानदंंडोंं और व्यवहाारोंं कोो चुुनौौतीी देे नेे और उन्हेंं बदलनेे काा प्रयाास कर सकतीी हैै। इस प्रकाार, सि द्धांं त और कलाा दोोनोंं हीी समााज कोो समझनेे और उसेे बेेहतर बनाानेे केे सााधन हैंं। इन दोोनोंं केे बीीच काा संंबंंध यह दर्शाा ताा हैै कि माानव व्यवहाार और समााज कीी गहन समझ और व्यााख्याा केे लि ए सि द्धांं त और कलाा दोोनोंं आवश्यक हैंं। यह हमेंं एक व्याापक दृष्टि कोोण प्रदाान करताा हैै और हमेंं समााज केे वि भि न्न पहलुुओं ं कोो समझनेे और उनमेंं सुुधाार करनेे कीी प्रेेरणाा देे ताा हैै। अब तक हमनेे ‘सि द्धांं त’ शब्द पर ध्याान दि याा। अब हम यह समझनेे कि कोोशि श करेंं गे े कीी रााजनीीति क याा पोोलि टि कल काा क्याा अर्थथ हैै। 1.3 रााजनीीति क शब्द काा अर्थथ 1.3.1 प्राारंंभि क अर्थथ ‘पोोलि टि कल’ शब्द कीी उत्पत्ति प्रााचीीन ग्रीीस मेंं प्रचलि त ‘पोोलि स’ शब्द सेे हुई हैै | ‘पोोलि स’ काा मतलब होोताा हैै शहर याा नगर-रााज्य, लेेकि न इसकाा वाास्तवि क अर्थथ एक समुुदााय सेे हैै। यह वह स्थाान थाा जहाँँ लोोग एक सााथ मि लकर अपनेे समुुदााय केे मुुद्दोंं पर चर्चाा करतेे थेे और साामूूहि क नि र्णणय लेेतेे थेे। इस दृष्टि कोोण मेंं, रााजनीीति काा अर्थथ समुुदााय मेंं रहनेे वाालेे लोोगोंं केे बीीच नि र्णणय लेेनेे कीी प्रक्रि याा सेे थाा। प्रााचीीन दृष्टि कोोण मेंं, समााज और रााजनीीति केे बीीच कोोई स्पष्ट अंंतर नहींं थाा। साामााजि क और रााजनीीति क सि द्धांं त एक दूू सरेे केे सााथ जुुड़ेे हुए थेे। समााज केे सभीी पहलूू, चााहेे वेे नि जीी होंं याा स्व-अधि गम 6 पााठ्य साामग्रीी दूू रस्थ एवंं सतत्् शि क्षाा वि भााग, मुुक्त शि क्षाा परि सर, मुुक्त शि क्षाा वि द्याालय, दि ल्लीी वि श्‍‍ववि द्याालय राजनीति क्याहै : राजनीति का सिद्धांत साार्ववजनि क, रााजनीीति क वि चाारोंं और नि र्णणयोंं सेे प्रभाावि त होोतेे थेे। उदााहरण केे लि ए, एक परि वाार टि प्पणीी मेंं भीी नि र्णणय लेेनाा एक रााजनीीति क प्रक्रि याा केे रूप मेंं देे खाा जााताा थाा, क्योंं कि यह समााज केे व्याापक ढाँँ चेे मेंं फि ट बैैठताा थाा। इस दृष्टि कोोण मेंं, रााजनीीति क सि द्धांं त केेवल सत्ताा और सरकाार केे बाारेे मेंं नहींं थाा, बल्कि यह समााज केे हर पहलूू कोो कवर करताा थाा। यह दि खााताा हैै कि प्रााचीीन समय मेंं, रााजनीीति और समााज एक दूू सरेे सेे अटूू ट रूप सेे जुुड़ेे हुए थेे। यह एक समग्र दृष्टि कोोण थाा, जहाँँ हर नि र्णणय काा प्रभााव समुुदााय केे व्याापक परि प्रेेक्ष्य मेंं देे खाा जााताा थाा। हन्नाा अरेंंड्् ट केे अनुुसाार, ‘पोोलि स’ मेंं रहनेे काा मतलब थाा कि सभीी नि र्णणय शब्दोंं और प्रेेरणाा केे मााध्यम सेे लि ए जाातेे थेे, न कि बल और हिं ंसाा केे मााध्यम सेे। यह एक महत्त्‍‍वपूूर्णण बिं ंदुु हैै, क्योंं कि यह दि खााताा हैै कि प्रााचीीन ग्रीीक समााज मेंं लोोकतंंत्र और संंवााद काा कि तनाा महत्त्व थाा। लोोग बहस और चर्चाा केे मााध्यम सेे अपनेे वि चाार व्यक्त करतेे थेे और फि र साामूूहि क रूप सेे नि र्णणय लेेतेे थेे। यह प्रक्रि याा न केेवल अधि क लोोकतांं त्रि क थीी, बल्कि यह साामूूहि क जि म्मेेदाारीी और सहभाागि ताा कोो भीी बढ़ाावाा देे तीी थीी। 1.3.2 आधुुनि कताा केे सााथ रााजनीीति क शब्द काा परि वर्ततन समय केे सााथ, रााजनीीति क शब्द काा अर्थथ और उसकीी प्राासंंगि कताा बदल गई हैै। आधुुनि कताा केे आगमन केे सााथ, रााजनीीति क शब्द नेे नए आयााम प्रााप्त कि ए और इसकाा प्रयोोग भीी बदल गयाा। इस परि वर्ततन कोो समझनाा आवश्यक हैै, क्योंं कि यह हमाारेे समााज और सत्ताा केे ढाँँ चेे कोो प्रभाावि त करताा हैै। प्रााचीीन समय मेंं, रााजनीीति क शब्द काा मुुख्य अर्थथ साामूूहि क शक्ति सेे थाा। इसकाा मतलब थाा कि पूूराा समुुदााय मि लकर अपनेे माामलोंं मेंं नि र्णणय लेेताा थाा। लेेकि न, जैैसेे-जैैसेे समय बीीताा, साामूूहि क शक्ति काा सि द्धांं त कमज़ोोर होोनेे लगाा । अब यह केेवल एक आदर्शश याा सि द्धांं त केे रूप मेंं रह गयाा और व्यवहाार मेंं इसकाा पाालन कम हीी हुआ। आधुुनि कताा केे सााथ, समााज मेंं शक्ति काा असंंतुुलन बढ़नेे लगाा। कुुछ समूूहोंं नेे अधि क शक्ति और अधि काार प्रााप्त कर लि याा और वेे अपनेे फाायदेे केे लि ए इस शक्ति काा प्रयोोग करनेे लगेे। यह शक्ति काा असंंतुुलन अन्य समूूहोंं कोो नि र्णणय लेेनेे कीी प्रक्रि याा सेे बााहर रखनेे लगाा। इस प्रकाार, रााजनीीति क शब्द काा एक नयाा अर्थथ वि कसि त हुआ, जोो समूूहोंं केे बीीच शक्ति केे असंंतुुलन और इस असंंतुुलन केे परि णाामस्वरूप कुुछ समूूहोंं द्वााराा अन्य समूूहोंं पर शक्ति काा स्व-अधि गम पााठ्य साामग्रीी 7 दूू रस्थ एवंं सतत्् शि क्षाा वि भााग, मुुक्त शि क्षाा परि सर, मुुक्त शि क्षाा वि द्याालय, दि ल्लीी वि श्‍‍ववि द्याालय रााजनीीति क सि द्धांं त कीी समझ टि प्पणीी प्रयोोग करनाा दर्शाा ताा हैै। यह स्थि िति तब उत्पन्न होोतीी हैै जब कुुछ लोोग अपनेे स्वाार्थथ केे लि ए दूू सरोंं पर नि यंंत्रण करतेे हैंं और उनकेे हि तोंं कीी उपेेक्षाा करतेे हैंं। 1.3.3 रााज्य कीी भूूमि काा आधुुनि कताा केे सााथ, रााज्य कीी भूूमि काा भीी बदल गई। रााज्य कीी संंस्थााएँँ , जैैसेे कि सरकाार, न्याायपाालि काा, नौौकरशााहीी, सैैन्य, और पुुलि स, शक्ति काा केंंद्र बन गईंं। पहलेे जहाँँ साामूूहि क शक्ति काा प्रयोोग समााज केे सभीी सदस्योंं द्वााराा कि याा जााताा थाा, अब यह रााज्य कीी संंस्थााओंं मेंं केंंद्रि त होो गयाा। रााजनीीति क वि ज्ञाान और रााजनीीति क सि द्धांं त अब रााज्य कीी इन संंस्थााओंं केे अध्ययन केे रूप मेंं वि कसि त हुए। इनकाा मुुख्य उद्देेश्य यह समझनाा थाा कि कैैसेे येे संंस्थााएँँ कााम करतीी हैंं, कैैसेे येे नि र्णणय लेेतीी हैंं, और कैैसेे येे शक्ति काा प्रयोोग करतीी हैंं। रााजनीीति क सि द्धांं त अब यह अध्ययन करताा हैै कि रााज्य कीी संंस्थााएँँ कि स प्रकाार सेे शक्ति काा प्रयोोग करतीी हैंं और यह प्रयोोग कि स हद तक साामूूहि क हि त केे लि ए हैै। इसकेे सााथ हीी यह भीी अध्ययन कि याा जााताा हैै कि कि स प्रकाार सेे शक्ति काा दुु रुपयोोग कि याा जाा सकताा हैै और इससेे समााज पर क्याा प्रभााव पड़ताा हैै। 1.3.4 चिं ंतन केे वि भि न्न क्षेेत्र व्यक्ति गत संंबंंध: यह क्षेेत्र इस पर केंंद्रि त हैै कि लोोग वि भि न्न व्यवस्थााओंं मेंं, जैैसेे परि वाारोंं मेंं, दोोस्तोंं केे बीीच, याा काार्ययस्थलोंं मेंं, एक-दूू सरेे केे सााथ कैैसेे व्यवहाार करेंं । इसमेंं नि ष्पक्षताा, सम्माान और हमाारेे दैैनि क जीीवन मेंं एक-दूू सरेे केे प्रति जि म्मेेदाारि योंं केे बाारेे मेंं सवााल शाामि ल हैंं। रााज्य और व्यक्ति गत संंबंंध: यह क्षेेत्र इस बाात कीी जाँँ च करताा हैै कि व्यक्ति योंं कोो सरकाार केे सााथ कैैसेे संंबंंध रखनाा चााहि ए और सरकाार केे अधि काार कीी सीीमााएँँ क्याा होोनीी चााहि ए। इसमेंं व्यक्ति गत अधि काारोंं , सरकाार केे नि यंंत्रण कीी सीीमाा और रााज्य केे प्रति नाागरि कोंं कीी जि म्मेेदाारि योंं केे बाारेे मेंं सवााल शाामि ल हैंं। वैैश्वि क संंबंंध: यह क्षेेत्र इस बाात पर केंंद्रि त हैै कि वि भि न्न रााज्योंं कोो एक-दूू सरेे केे सााथ कैैसेे बाातचीीत करनीी चााहि ए और वैैश्वि क स्तर पर उनकीी क्याा जि म्मेेदाारि याँँ हैंं। इसमेंं अंंतररााष्ट्रीी य सहयोोग, रााष्ट्रोंं केे बीीच न्यााय और वि देे शीी नीीति योंं और वैैश्वि क शाासन केे नैैति क वि चाार शाामि ल हैंं। स्व-अधि गम 8 पााठ्य साामग्रीी दूू रस्थ एवंं सतत्् शि क्षाा वि भााग, मुुक्त शि क्षाा परि सर, मुुक्त शि क्षाा वि द्याालय, दि ल्लीी वि श्‍‍ववि द्याालय राजनीति क्याहै : राजनीति का सिद्धांत टि प्पणीी 1.4 रााजनीीति क सि द्धाान्त क्याा नहींं हैै ? 1.4.1 कॉॉस्मोोलोोजीीज़ और रााजनीीति क सि द्धांं त कॉॉस्मोोलोोजीीज़ और रााजनीीति क सि द्धांं त मेंं अंंतर और उनकेे संंबंंधोंं काा समझनाा माानव समााजोंं और उनकेे शाासन कोो समझनेे मेंं मदद करताा हैै। कॉॉस्मोोलोोजीीज़ जोो अक्सर धाार्मि िक याा दाार्शशनि क माानव दृष्टि कोोण सेे जुुड़ीी होोतीी हैै, प्रााकृृति क अस्ति त्व कीी मौौलि कताा, माानवताा काा वि श्‍‍व मेंं स्थाान, और यह सि द्ध करनेे कीी कोोशि श करतीी हैै कि वाास्तवि कताा केे नि यम क्याा हैंं। इन दृष्टि कोोणोंं द्वााराा समााजोंं अपनेे उद्देेश्योंं और नैैति क दाायि त्वोंं कोो समझतेे हैंं। वि परीीत रूप सेे, रााजनीीति क सि द्धांं त सत्ताा, अधि काार, न्यााय, और शाासन मेंं वि चाार और वि श्लेेषण करताा हैै जोो माानव समााजोंं केे अंंदर होोतेे हैंं। यह सि द्धांं त रााजनीीति क घटनााओंं केे वि वरण और व्यााख्याान केे लि ए तर्ककसंंगत वि वेेचनाा और नैैति क तटस्थताा प्रदाान करनेे काा प्रयाास करताा हैै। रााजनीीति क सि द्धांं त माानव समुुदाायोंं केे संंगठन, संंघर्षोंं केे समााधाान, और साामूूहि क लक्ष्योंं कीी योोजनाा बनाानेे केे लि ए अपनााई जाातीी हैै। हाालांं कि कॉॉस्मोोलोोजीीज़ मौौलि क वि श्‍‍वाास और नैैति क माार्गगदर्शशन प्रदाान करतीी हैंं, वेे अक्सर आधुुनि क समााजोंं केे वि भि न्न और गंंभीीर चुुनौौति योंं कोो समझनेे केे लि ए अपर्याा प्त होोतीी हैंं। आधुुनि क संंदर्भोंं मेंं रााजनीीति क सि द्धांं त महत्त्‍‍वपूूर्णण भूूमि काा नि भााताा हैै। यह वि भि न्न दृष्टि कोोणोंं केे बीीच खुुलेे संंवााद कोो प्रोोत्सााहि त करताा हैै और नैैति क प्रश्‍‍नोंं पर वि चाार करनेे केे लि ए नि यमि त संंरचनााएँँ प्रदाान करताा हैै। वि भि न्न अधि काारोंं केे स्रोोतोंं केे सााथ एकत्रि त होोकर तर्ककसंंगत वि चाार कोो बढ़ाावाा देे ताा हैै। इस प्रकाार, जबकि कॉॉस्मोोलोोजीीज़ मौौलि क अवधाारणााओंं मेंं अंंतर्नि िहि त ज्ञाान प्रदाान करतीी हैै, रााजनीीति क सि द्धांं त समााज मेंं नैैति क चुुनौौति योंं और शाासन केे जटि लताा कोो समझनेे केे लि ए आवश्यक उपकरण प्रदाान करताा हैै। 1.4.1 सि द्धांं त और वि चाारधााराा रााजनीीति क सि द्धांं त और वि चाारधााराा केे बीीच अंंतर कोो समझनाा महत्त्‍‍वपूूर्णण हैै। रााजनीीति क सि द्धांं त मेंं, एक वि शेेष दृष्टि कोोण याा काार्यय कोो अपनाानेे केे लि ए सभीी संंभाावि त काारण प्रस्तुुत करनेे कीी प्रति बद्धताा होोतीी हैै। इसकाा उद्देेश्य यह सुुनि श्चि त करनाा हैै कि दृष्टि कोोण कोो तर्ककसंंगत और गहन रूप सेे समझाा जाा सकेे। दूू सरीी ओर, वि चाारधााराा मेंं काारणोंं कीी प्रस्तुुति अक्सर अधूूरीी और संंक्षि प्त स्व-अधि गम पााठ्य साामग्रीी 9 दूू रस्थ एवंं सतत्् शि क्षाा वि भााग, मुुक्त शि क्षाा परि सर, मुुक्त शि क्षाा वि द्याालय, दि ल्लीी वि श्‍‍ववि द्याालय रााजनीीति क सि द्धांं त कीी समझ टि प्पणीी होोतीी हैै। वि चाारधााराा काा लक्ष्य लोोगोंं कोो त्वरि त और सरल तरीीकोंं सेे प्रेेरि त करनाा होोताा हैै, जि सकेे काारण तर्कोंं कोो संंक्षि प्त और सूूत्रबद्ध कि याा जााताा हैै। वि चाारधााराा काा तर्कक केे सााथ एक रणनीीति क संंबंंध होोताा हैै, जि सकाा अर्थथ हैै कि तर्कक काा उपयोोग केेवल तब तक कि याा जााताा हैै जब तक वह एक वि शेेष उद्देेश्य कीी पूूर्ति ि करताा हैै। जब तर्कक उस उद्देेश्य कीी पूूर्ति ि नहींं करताा, तोो उसेे छोोड़ दि याा जााताा हैै। इसकेे वि परीीत, रााजनीीति क सि द्धांं त मेंं तर्कक केे प्रति एक आंंतरि क प्रति बद्धताा होोतीी हैै। इसकाा मतलब हैै कि सि द्धांं त हमेेशाा तर्ककसंंगतताा और वि चाारशीीलताा कोो बनााए रखनेे काा प्रयाास करताा हैै, चााहेे परि स्थि िति कुुछ भीी होो। इस प्रकाार, रााजनीीति क सि द्धांं त और वि चाारधााराा केे बीीच यह अंंतर स्पष्ट करताा हैै कि दोोनोंं काा उद्देेश्य और काार्ययप्रणाालीी कैैसेे भि न्न होोतेे हैंं। वि चाारधााराा और रााजनीीति क सि द्धांं त दोोनोंं काा अपनाा-अपनाा महत्त्‍‍व हैै। जहाँँ वि चाारधााराा समााज मेंं त्वरि त और व्याापक प्रेेरणाा प्रदाान करतीी हैै, वहींं रााजनीीति क सि द्धांं त गहन और तर्ककसंंगत दि शाा प्रदाान करताा हैै। दोोनोंं मि लकर समााज केे संंपूूर्णण और संंतुुलि त वि काास मेंं योोगदाान देे तेे हैंं। 1.5 रााजनीीति वि ज्ञाान और रााजनीीति क सि द्धांं त प्रत्यक्षवााद (positivism) एक दृष्टि कोोण हैै जोो कि केेवल वैैज्ञाानि क और तथ्याात्मक दृष्टि कोोण कोो माानताा हैै और इसकाा मााननाा हैै कि केेवल इससेे हीी ज्ञाान प्रााप्त कि याा जाा सकताा हैै। इसकाा मतलब हैै कि केेवल वह जोो सि द्ध कि याा जाा सकताा हैै, जोो अनुुभव, वि श्‍‍लेेषण, और प्रमााणोंं पर आधाारि त होो, वहीी ज्ञाान माान्य हैै। प्रत्यक्षवााद केे प्रमुुख प्रति नि धि आधुुनि क समााजशाास्त्र मेंं लॉॉर्डड वि ल्हेेलम ऑफ ओरेंं ज, आगस्ट कॉॉन्ट, और हर्बबर्टट स्पेंंसर जैैसेे वि द्वाान थेे। रााजनीीति क वि ज्ञाान मेंं, प्रत्यक्षवााद काा प्रभााव वि शेेष रूप सेे 19वींं सदीी केे आधुुनि कीीकरण केे समय सेे आरंंभ हुआ। यह वि चाारधााराा यह सि द्ध करनेे कीी कोोशि श करतीी थीी कि रााजनीीति क वि ज्ञाान कोो भीी एक वैैज्ञाानि क दृष्टि कोोण सेे अध्ययन करनाा चााहि ए, जि ससेे समााज मेंं होोनेे वाालीी प्रक्रि यााओंं कोो समझाा जाा सकेे। यह प्राासंंगि क थाा उस समय केे लि ए जब साामााजि क और रााजनीीति क परि वर्ततन बहुत तेेजीी सेे होो रहेे थेे। हाालांं कि , इसकेे बााद येे दृष्टि कोोण अपनीी सीीमााओंं तक पहुँँच गयाा। इसकेे बााद रााजनीीति क वि ज्ञाान मेंं नैैति कताा, मूूल्यांं कन, और माानवीीय दृष्टि कोोण केे प्रााथमि कतााओंं कोो बढ़ाावाा देे नेे काा प्रयाास कि याा गयाा, जि ससेे प्रत्यक्षवााद केे खि लााफ एक सकााराात्मक प्रति क्रि याा उत्पन्न हुई। इस प्रकाार, स्व-अधि गम 10 पााठ्य साामग्रीी रााजनीीति क वि ज्ञाान मेंं प्रत्यक्षवााद काा प्रभााव अब भीी अहम हैै, लेेकि न इसकीी समझ कोो बदल दि याा दूू रस्थ एवंं सतत्् शि क्षाा वि भााग, मुुक्त शि क्षाा परि सर, मुुक्त शि क्षाा वि द्याालय, दि ल्लीी वि श्‍‍ववि द्याालय राजनीति क्याहै : राजनीति का सिद्धांत गयाा हैै और नए सि द्धांं तोंं कोो सम्मि लि त कि याा गयाा हैै जोो नैैति कताा और माानवीीयताा केे माामलोंं कोो टि प्पणीी समझनेे मेंं महत्त्‍‍वपूूर्णण हैंं। प्रत्यक्षवााद काा रााजनीीति क सि द्धांं त पर प्रभााव अत्यधि क महत्त्‍‍वपूूर्णण रहाा हैै। प्रत्यक्षवााद एक दृष्टि कोोण हैै जि सनेे दाावाा कि याा कि नैैति कताा और वैैज्ञाानि कताा केे बीीच कोोई सम्मि लन संंभव नहींं हैै। इसकाा परि णाामस्वरूप, रााजनीीति क सि द्धांं त कोो एक समय केे लि ए ‘मृृत’ घोोषि त कि याा गयाा, जि ससेे यह सि द्ध हुआ कि रााजनीीति क सि द्धांं त केेवल वैैज्ञाानि क और वाास्तवि कताा केे माापदंंडोंं पर आधाारि त होोनाा चााहि ए। पॉॉजि टि वि स्ट समााजशाास्त्र और रााजनीीति क वि ज्ञाान नेे इसेे अपनाायाा, जोो कि समााज मेंं घटि त क्रि यााओंं कोो केेवल नैैति क मूूल्योंं केे प्रति असहमति दि खााताा थाा। हाालांं कि , कुुछ दशकोंं मेंं इस दृष्टि कोोण कोो पुुनःः वि चाार कि याा गयाा। वि भि न्न रााजनीीति क दाार्शशनि कोंं और वि शेेषज्ञोंं नेे सुुझााव दि याा कि हमेंं माानवताा, नैैति कताा, और सांं स्कृृति क मूूल्योंं केे प्रति भीी ध्याान देे नाा चााहि ए, जोो कि प्रत्यक्षवााद केे पक्ष मेंं समाावि ष्ट नहींं कि ए जाातेे थेे। इस प्रकाार, रााजनीीति क सि द्धांं त कोो पुुनःः सकााराात्मक नैैति क और वि श्‍‍लेेषणाात्‍म ‍ क दृष्टि कोोण केे प्रति आकर्षि ित कि याा गयाा। आजकल, रााजनीीति क सि द्धांं त मेंं प्रत्यक्षवााद काा प्रभााव अभीी भीी महसूूस होोताा हैै, लेेकि न इसकीी सख्त सीीमााओंं कोो पुुनर्वि िचाार कि याा गयाा हैै। नए रााजनीीति क दाार्शशनि क धाारााओंं नेे नैैति कताा और मूूल्यांं कन कोो समााजशाास्त्र और रााजनीीति क वि ज्ञाान केे अध्ययन मेंं महत्त्‍‍वपूूर्णण बनाायाा हैै, जि ससेे रााजनीीति क सि द्धांं त कीी व्याापकताा और गहरााई मेंं वृृद्धि हुई हैै। इस प्रकाार, प्रत्यक्षवााद काा प्रभााव रााजनीीति क सि द्धांं त पर गहराा असर डाालाा हैै। 1.6 रााजनीीति क सि द्धांं तोंं केे दोो प्रकाार 1. व्यााख्याात्मक सि द्धांं त (Explanatory Theories): येे सि द्धांं त यह बताातेे हैंं कि रााजनीीति क घटनााएँँ और प्रक्रि यााएँँ कैैसेे और क्योंं होोतीी हैंं। उदााहरण केे लि ए, वेेबर काा पूँँ जीीवााद केे उदय काा सि द्धांं त और माार्क्सस काा ऐति हाासि क भौौति कवााद ऐसेे सि द्धांं त हैंं जोो घटनााओंं केे काारणोंं और उनकेे परि णाामोंं काा वि श्लेेषण करतेे हैंं। 2. माानकीीय सि द्धांं त (Normative Theories): येे सि द्धांं त यह नि र्धाा रि त करतेे हैंं कि रााजनीीति और समााज कैैसेे होोनाा चााहि ए। येे मूूल्योंं और आदर्शोंं पर आधाारि त होोतेे हैंं और यह बताानेे काा प्रयाास करतेे हैंं कि न्यााय, स्वतंंत्रताा, समाानताा जैैसेे मुुद्दोंं पर समााज कोो कैैसाा होोनाा चााहि ए। उदााहरण केे लि ए, उदाारवााद एक माानकीीय सि द्धांं त हैै जोो व्यक्ति गत स्वतंंत्रताा स्व-अधि गम और समाानताा पर जोोर देे ताा हैै। पााठ्य साामग्रीी 11 दूू रस्थ एवंं सतत्् शि क्षाा वि भााग, मुुक्त शि क्षाा परि सर, मुुक्त शि क्षाा वि द्याालय, दि ल्लीी वि श्‍‍ववि द्याालय रााजनीीति क सि द्धांं त कीी समझ टि प्पणीी 1.7 रााजनीीति क सि द्धांं त कीी वि भि न्न महत्त्‍व ‍ पूूर्णण वि शेेषतााएँँ 1. वि भि न्नताा और व्याापकताा: वि भि न्न वि चाारोंं कोो स्पष्ट करनेे काा प्रयाास कि याा जााताा हैै, जैैसेे न्यााय, स्वतंंत्रताा, समाानताा और शक्ति । 2. ताार्कि िक सोोच: यहाँँ हम वि भि न्न दाावोंं और प्रस्ताावोंं कोो तर्ककबद्ध तरीीक़ेे कोो समझनेे कीी कोोशि श करतेे हैंं। यह उसेे व्याापक और समग्र दृष्टि कोोण सेे समझनेे काा प्रयाास करताा हैै। 3. सत्य: रााजनीीति क सि द्धांं त मेंं सत्य कीी खोोज कीी जाातीी हैै, जोो साामााजि क और रााजनीीति क वि षयोंं पर साामूूहि क तर्कक केे मााध्यम सेे होोतीी हैै। 4. अवधाारणााओंं और पूूर्वाा ग्रहोंं कीी समीीक्षाा: यह रााजनीीति क सि द्धांं त अवधाारणााओंं और पूूर्वाा ग्रहोंं कोो समझनेे काा प्रयाास करताा हैै। 5. दृष्टि कोोण: यहाँँ रााजनीीति क सि द्धांं त काा प्रयाास हैै कि वह वि भि न्न वि चाारोंं कोो व्याापक दृष्टि कोोण सेे समझेे, न कि केेवल एक हीी दृष्टि कोोण पर आधाारि त होो। 1.8 माानक और वर्णणनाात्मक सोोच माानक और वर्णणनाात्मक सोोच दोोनोंं हीी रााजनीीति क सि द्धांं त काा हि स्साा हैंं। माानक सोोच उस बाारेे मेंं सोोचनेे कीी प्रक्रि याा हैै कि चीीजेंं कैैसीी होोनीी चााहि ए। माानक सोोच मेंं, रााजनीीति क सि द्धांं तकाार यह नि र्धाा रि त करनेे काा प्रयाास करतेे हैंं कि आदर्शश समााज कैैसाा होोनाा चााहि ए, कि स तरह केे नि यम और नीीति याँँ सबसेे उचि त और नैैति क हैंं, और कि स प्रकाार काा व्यवहाार सहीी हैै। यह एक प्रकाार कीी आदर्शश सोोच होोतीी हैै, जोो एक बेेहतर और न्याायपूूर्णण समााज कीी कल्पनाा करतीी हैै। उदााहरण केे लि ए, माानक सोोच यह कह सकतीी हैै कि सभीी लोोगोंं कोो समाान अवसर मि लनेे चााहि ए और समााज मेंं कि सीी प्रकाार काा भेेदभााव नहींं होोनाा चााहि ए। इसकेे वि परीीत, वर्णणनाात्मक सोोच वर्ततमाान वाास्तवि कताा कोो समझनेे कीी कोोशि श करतीी हैै। यह इस बाात काा वि श्‍‍लेेषण करतीी हैै कि चीीजेंं वाास्तव मेंं कैैसीी हैंं, वर्ततमाान समााज मेंं क्याा समस्यााएँँ हैंं, और लोोग वाास्तव मेंं कैैसेे व्यवहाार करतेे हैंं। वर्णणनाात्मक सोोच वाास्तवि क तथ्योंं और आंंकड़ोंं पर आधाारि त होोतीी हैै। उदााहरण केे लि ए, वर्णणनाात्मक सोोच यह बतााएगीी कि वर्ततमाान समााज मेंं कि स प्रकाार काा भेेदभााव मौौजूूद हैै और वि भि न्न समूूहोंं केे बीीच कि स प्रकाार कीी असमाानतााएँँ हैंं। स्व-अधि गम 12 पााठ्य साामग्रीी दूू रस्थ एवंं सतत्् शि क्षाा वि भााग, मुुक्त शि क्षाा परि सर, मुुक्त शि क्षाा वि द्याालय, दि ल्लीी वि श्‍‍ववि द्याालय राजनीति क्याहै : राजनीति का सिद्धांत रााजनीीति क सि द्धांं तकाार अक्सर माानक और वर्णणनाात्मक सोोच दोोनोंं काा उपयोोग करतेे हैंं। टि प्पणीी वेे एक बेेहतर समााज कीी कल्पनाा करनाा चााहतेे हैंं, लेेकि न उनकीी सोोच और सुुझााव वाास्तवि कताा पर आधाारि त होोनेे चााहि ए तााकि उन्हेंं व्यवहाार मेंं लाायाा जाा सकेे। इस प्रकाार, वेे न केेवल यह सोोचतेे हैंं कि चीीजेंं कैैसीी होोनीी चााहि ए, बल्कि यह भीी देे खतेे हैंं कि वर्ततमाान परि स्थि िति याँँ क्याा हैंं और उन परि स्थि िति योंं मेंं सुुधाार कैैसेे संंभव हैै। इस संंतुुलि त दृष्टि कोोण सेे, वेे ऐसीी नीीति याँँ और सि द्धांं त वि कसि त कर सकतेे हैंं जोो न केेवल आदर्शशवाादीी होंं बल्कि व्याावहाारि क भीी होंं । 1.10 नि ष्कर्षष रााजनीीति क सि द्धांं त एक महत्त्‍‍वपूूर्णण और व्याापक क्षेेत्र हैै जोो हमेंं समााज और रााजनीीति केे मूूल्योंं , नीीति योंं , और प्रक्रि यााओंं कोो समझनेे मेंं मदद करताा हैै। इसकेे मााध्यम सेे हम न केेवल व्यक्ति गत स्तर पर अपनीी सोोच और वि चाारधााराा कोो मजबूूत करतेे हैंं, बल्कि साामााजि क स्तर पर भीी वि भि न्न रााजनीीति क नीीति योंं और प्रणाालि योंं केे संंदर्भभ कोो समझतेे। यह हमेंं यह भीी सि खााताा हैै कि रााजनीीति केे वि भि न्न पहलुुओं ं कोो समझनेे काा महत्त्‍‍वपूूर्णण हि स्साा हैै और उन्हेंं सुुधाारनेे केे लि ए दि शाा नि र्देे श प्रदाान करताा हैै। इसकेे अति रि क्त, रााजनीीति क सि द्धांं त हमेंं सि खााताा हैै कि न्यााय, स्वतंंत्रताा, समाानताा, और नाागरि कताा जैैसेे महत्त्‍‍वपूूर्णण रााजनीीति क मुुद्दोंं पर गहरााई सेे सोोचनेे कीी आवश्यकताा हैै। यह हमेंं बतााताा हैै कि इन मुुद्दोंं कोो समझनेे सेे हम अपनेे समााज कोो सुुधाार सकतेे हैंं और एक बेेहतर रााजनीीति क व्यवस्थाा काा नि र्माा ण कर सकतेे हैंं। वि भि न्न दाार्शशनि क परंंपरााओंं और वि चाारधाारााओंं केे मााध्यम सेे, हम यह समझतेे हैंं कि रााजनीीति क सि द्धांं त हमेंं यहाँँ तक लेे जााताा हैै कि कैैसेे समााज कोो सुुरक्षि त, समृृद्ध, और समाान महसूूस कराायाा जाा सकताा हैै। अंंत मेंं, रााजनीीति क सि द्धांं त हमेंं यह भीी सि खााताा हैै कि वि भि न्न वि चाारोंं और धाारणााओंं कोो समझनेे और समााहि त करनेे कीी क्षमताा क्योंं महत्त्‍‍वपूूर्णण हैै। यह न केेवल हमाारेे सोोचनेे केे तरीीकेे कोो वि स्ताारि त करताा हैै, बल्कि हमेंं व्याावहाारि क रूप सेे भीी अधि क समझदाार नाागरि क बनााताा हैै। इस प्रकाार, रााजनीीति क सि द्धांं त न केेवल व्यक्ति गत वि काास मेंं मदद करताा हैै, बल्कि समााज केे लि ए भीी एक महत्त्‍‍वपूूर्णण उपकरण हैै जोो समााजशाास्त्र, नीीति शाास्त्र, और रााजनीीति क अध्ययन मेंं वि शेेष रूप सेे महत्त्‍‍वपूूर्णण भूूमि काा नि भााताा हैै। स्व-अधि गम पााठ्य साामग्रीी 13 दूू रस्थ एवंं सतत्् शि क्षाा वि भााग, मुुक्त शि क्षाा परि सर, मुुक्त शि क्षाा वि द्याालय, दि ल्लीी वि श्‍‍ववि द्याालय रााजनीीति क सि द्धांं त कीी समझ टि प्पणीी 1.11 अभ्याास प्रश्‍‍न 1. रााजनीीति क सि द्धांं त क्याा हैै? इसकाा महत्त्‍‍व क्याा हैै ? व्यााख्याा कीीजि ए। 2. प्रत्यक्षवााद और रााजनीीति क सि द्धांं त केे बीीच क्याा संंबंंध हैै? समझााइए। 3. रााजनीीति क सि द्धांं त और वि चाारधााराा केे बीीच मेंं क्याा संंबंंध हैै? वि स्ताार सेे व्यााख्याा कीीजि ए। 1.12 संंदर्भभ ग्रंंथ McKinnon, C. (2008) ‘Introduction’. Issues in Politic al Theory. New York: Oxford University Press. Bhargava, R. (2008) ‘What is Political Theory’, in Bhargava, R. and Acharya, A. (eds), Political Theory: An Introduction. New Delhi: Pearson Longman, pp. 2-16. Bhargava, R. (2008) 'Why do we.need Political Theory', in Bhargava, R. and Acharya, A. (eds), Political Theory: An Introduction. - ew Delhi: Pearson Longman, pp. 17-36. स्व-अधि गम 14 पााठ्य साामग्रीी दूू रस्थ एवंं सतत्् शि क्षाा वि भााग, मुुक्त शि क्षाा परि सर, मुुक्त शि क्षाा वि द्याालय, दि ल्लीी वि श्‍‍ववि द्याालय इकााई-II पााठ 2 रााजनीीति क सि द्धांं त केे दृष्टि कोोण: नैैति क, ऐति हाासि क और अनुुभवजन्य राजनीतिक सिद्धांत के दृष्टिकोण : नैतिक, ऐतिहासिक और अन पाठ 2 टि प्पणीी रााजनीीति क सि द्धांं त केे दृष्टि कोोण : नैैति क, ऐति हाासि क और अनुुभवजन्य शि खाा सिं ंह सहाायक प्रााध्याापक रााजनीीति वि ज्ञाान वि भााग, मुुक्‍‍त शि क्षाा वि द्याालय दि ल्लीी वि श्‍‍ववि द्याालय संंरचनाा 2.1 अधि गम केे उद्देेश्य 2.2 परि चय 2.3 अनुुभवजन्य दृष्टि कोोण: व्यवहाारवााद 2.3.1 व्यवहाारवााद कीी उत्पत्ति 2.3.2 व्यवहाारवााद काा उदय 2.3.3 व्यवहाारवााद केे कुुछ आलोोचनााएँँ 2.3.4 व्यवहाारवाादीी सि द्धांं त कीी मजबूूतीी 2.4 नैैति क सि द्धांं त (Normative Theory) 2.5 इसकीी मुुख्य वि शेेषतााएँँ 2.6 नैैति क सि द्धांं त (Normative Theory) केे उदााहरण 2.6.1 उदाारवााद (Liberalism) 2.6.2 आलोोचनाात्मक सि द्धांं त (Critical Theory) 2.6.3 साामुुदाायि क दृष्टि कोोण (Communitarianism) 2.6.4 उत्तर-आधुुनि कताावााद: फूूकोो (Post-modernism: Foucault) 2.6.5 माार्क्ससवाादीी व्यााख्याा (Marxist Interpretation) 2.6.6 सर्ववसत्ताावाादीी व्यााख्याा (Totalitarian Interpretation) 2.6.7 मनोोवि श्‍‍लेेषणाात्‍‍मक व्यााख्याा (Psychoanalyst Interpretation) 2.6.8 नाारीीवाादीी व्यााख्याा (Feminist Interpretation) 2.7 रााजनीीति क सि द्धांं त काा ऐति हाासि क दृष्टि कोोण 2.8 नि ष्कर्षष 2.9 अभ्याास प्रश्‍‍न 2.10 संंदर्भभ-ग्रंंथ स्व-अधि गम पााठ्य साामग्रीी 17 दूू रस्थ एवंं सतत्् शि क्षाा वि भााग, मुुक्त शि क्षाा परि सर, मुुक्त शि क्षाा वि द्याालय, दि ल्लीी वि श्‍‍ववि द्याालय रााजनीीति क सि द्धांं त कीी समझ टि प्पणीी 2.1 अधि गम केे उद्देेश्य रााजनीीति क सि द्धांं त केे व्याावहाारि क पहलूू कोो समझनाा, व्यवहाारवााद केे इति हाास, शक्ति योंं और कमजोोरि योंं कोो समझनाा, नैैति क सि द्धांं त और उसकेे वि भि न्न प्रकाारोंं कोो समझनाा, हर्मेेन्यूूटि क्स केे महत्त्‍‍व कोो समझनाा, रााजनीीति क सि द्धांं त वि भि न्न दृष्टि कोोणोंं कोो समझनाा 2.2 परि चय पि छलीी इकााई मेंं हमनेे येे जाानाा कीी रााजनीीति क सि द्धांं त क्याा हैै। रााजनीीति क सि द्धाान्त मेंं वह सब कुुछ हैै जोो हमाारेे साामााजि क और रााजनीीति क मुुद्दोंं केे पीीछेे छि पाा होोताा हैै। हम इन मुुद्दोंं कोो समझनेे केे लि ए सटीीक और व्यवस्थि ित रूप सेे उन्हेंं प्रस्तुुत करतेे हैंं। और इसीी कोो रााजनीीति क सि द्धाान्त कीी श्रेेणीी मेंं लाातेे हैंं। अब इस बाात पर चर्चाा करेंं गे े कि रााजनीीति क चिं ंतन मेंं जि न भीी प्रश्‍‍नोंं पर वि चाार कि याा जााताा हैै उनकोो देे खनेे केे कि तनेे दृष्टि कोोण होो सकतेे हैंं? कि न्हीी दोो व्यक्ति योंं केे एक हीी समस्याा कोो देे खनेे काा नज़रि याा बहुत अलग अलग होो जााताा हैै। इस काारण वि भि न्न दृष्टि कोोण हमाारेे लि ए बहुत महत्त्‍‍वपूूर्णण हैंं और हमेंं इनकाा व्यवस्थि ित रूप सेे अध्ययन करनाा चााहि ए। इससेे हमेंं समस्यााओंं कोो हल करनेे केे कई तरीीक़ोंं सेे हम अवगत होोतेे हैंं । यह हमेंं रााजनीीति क वि चाारोंं कोो वि कसि त करनेे मेंं भीी मदद करताा हैै, जि ससेे ?

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