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This document contains lecture notes discussing important historical, religious, and tourist spots in Uttar Pradesh. It provides detailed information regarding the historical context and significance of the locations mentioned.
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उत्तर प्रदे श : एक समग्र अध्ययन उत्तर प्रदे श की समस्त परीक्षाओं हेतु अतत महत्वपूर्ण 9:00 PM Lecture-20 प्रमुख ऐततहातसक, धातमण क व पयणटन स्थल Study with Mayank सहारनपुर शाकुम्भरी द...
उत्तर प्रदे श : एक समग्र अध्ययन उत्तर प्रदे श की समस्त परीक्षाओं हेतु अतत महत्वपूर्ण 9:00 PM Lecture-20 प्रमुख ऐततहातसक, धातमण क व पयणटन स्थल Study with Mayank सहारनपुर शाकुम्भरी दे वी- सहारनपुर से 41 तकमी. की दूरी पर चार ं ओर पहात़िय ं से तिरा शाकुम्भरी दे वी का मन्दिर एक पतवत्र स्थान है। प्रत्येक वर्ण नवरात्र ं में इस स्थान पर तवशाल मेला लगता है। दे वबि- सहारनपु र में न्दस्थत दे वबि में एक प्रतसद्ध कलात्मक व धातमणक दुगाण का मन्दिर है। यहााँ अरबी भार्ा से सम्बद्ध एक संस्थान है तिसका नाम दारूल उलूम है। Study with Mayank हुलास- सहारनपुर तिले में न्दस्थत है। यहां से उत्तर ह़िप्पा युग से सम्बद्ध अवशेर् प्राप्त हुए हैं। उत्तरी काली ओपदार मृद्भाण्ड सं स्कृतत के प्रमार् भी तमले हैं। शुंग ं और कुर्ार् ं के समय में भी हुलास में आवासीय बन्दस्तयां थी ं। Study with Mayank मुिफ्फरनगर शुक्रताल - मुिफ्फर नगर तिले में न्दस्थत इस स्थल पर वट वृक्ष के नीचे बैठकर महतर्ण शुक्राचायण िी ने रािा परीतक्षत क भागवत कथा सुनाई थी। काततणक में पूर्णमासी व एकादशी पर हिार ं भक्त दशणन के तलए यहााँ आते हैं। मॉडी- मुिफ्फरनगर तिले में न्दस्थत इस स्थल से सैन्धवकालीन साक्ष्य तमले हैं। यहााँ से प्राप्त मृद्भाण्ड ह़िप्पा सभ्यता से प्राप्त मृद्भाण्ड ं के समतुल्य हैं। Study with Mayank मेरठ मेरठ में रािपूत सरदार हरदत्त ने एक तकला तनतमणत कराया था। बारहवी ं शताब्दी के अन्त में कुतुबुद्दीन ऐबक ने मेरठ क तदल्ली सल्तनत का भाग बना तलया था। फीर िशाह तु गलक ने अश क स्तम्भ लेख क मेरठ से उठवाकर तदल्ली में स्थातपत कराया था। 10 मई, 1857 क भारत के महान् तवद्र ह का तवस्फ ट मेरठ से ही हुआ था। Study with Mayank आलमगीरपु र- उत्तर प्रदे श में मेरठ के समीप तहंडन नदी के तकनारे न्दस्थत है। आलमगीरपु र के उत्खनन से प्राप्त अवशेर् सैन्धव सभ्यता के पूवी तवस्तार की पुति करते हैं। यह स्थल उत्तर-ह़िप्पा सभ्यता का भी केन्द्र था। कुरु- महाभारत काल में यह एक प्रतसद्ध राज्य था, तिसकी रािधानी हन्दस्तनापु र थी। इसके अन्तगणत आधुतनक तदल्ली व मेरठ के कुछ भूभाग थे। महािनपद काल में भी यह एक प्रमुख िनपद था। Study with Mayank हन्दस्तनापुर - यह नगरी मेरठ से 37 तकमी. दूर है। इसकी स्थापना हन्दस्तन नामक रािा ने की थी। महाभारत युग में यह कौरव ं की रािधानी थी। मौयोत्तर यु ग में (शुंग काल के) अवशेर्, प्रस्तर प्रततमाएं , मथु रा के दत्तवंशी शासक ,ं कुर्ार् ं तथा यौधेय ं की मुद्राएं यहााँ से प्राप्त हुई हैं। यह एक प्रतसद्ध िैन तीथण भी है। िैनी ल ग ं के तलए यह काशी है। o 16वें, 17वें व 18वें तीथंकर ं (क्रमशः शांततनाथ, कुन्थुनाथ व अरहनाथ) का िन्म व दीक्षा यही ं हुआ था। o आतद तीथंकर ऋर्भदे व िी क रािा श्रेयां स ने यही ं इक्षुरस का दान तदया था। इसतलए इसे 'दानतीथण' भी कहा िाता है। Study with Mayank सरधना- यह मेरठ से 30 तकमी. उ.प. में न्दस्थत प्राचीन नगर है िहााँ दतक्षर् एतशया का अद् भुत चचण है। इस चचण क बेगम समरू ने बनवाया था। Study with Mayank हापु़ि गढ़मुक्तेश्वर- मेरठ से 42 तकमी. दूर हापु़ि तिले में गंगा के दातहने तट पर न्दस्थत गढ़मुक्तेश्वर प्राचीन काल में हन्दस्तनापुर नगर का एक म हल्ला था। यहााँ गढ़मुक्तेश्वर तशव का मन्दिर है। मन्दिर के पास ही झारखंडेश्वर नाम का प्राचीन तशवतलंग है। काततणक पूतर्ण मा क यहााँ मेला लगता है। Study with Mayank बुलिशहर बरन- बुलिशहर तिले में न्दस्थत है। 1018ई. में महमूद गिनबी ने बरन क पदाक्रान्त तकया था। 1193ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने यहााँ के शासक क परातित कर इस पर अतधकार कर तलया था। प्रतसद्ध इततहासकार तियाउद्दीन बरनी यही ं का ही तनवासी था। Study with Mayank अलीगढ़ क इल- क इल अथवा क ल अलीगढ़ तिले में न्दस्थत है। भारत में तुकी के आगमन के समय इस पर रािपूत ं का प्रभुत्व स्थातपत था। कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1192 ई. में क इल पर अतधकार स्थातपत तकया था। इब्नबतूता क इल के नगर वैभव की प्रशंसा करता है। Study with Mayank मथुरा मथु रा की गर्ना सप्त महापुररय ं में ह ती है। वतणमान मथु रा के समीप मधुवन में पहले मधु और उसके पुत्र लवर् का शासन था। चंद्रवंश में श्रीकृष्ण का िन्म यही ं हुआ था। महािनपद युग में यह शू रसे न महािनपद की रािधानी और कुर्ार् काल में उनके पूवी साम्राज्य की रािधानी थी। यहां से बैन्दरि याई यूनानी तमने ण्डर के भी तसक्के प्राप्त हुए हैं। Study with Mayank प्राचीन काल में यह शाटक वस्त्र तनमाणर् का प्रमुख केन्द्र था। यहााँ तवकतसत तशल्प कला क मथुरा कला के नाम से िाना िाता है। इस केन्द्र क बुद्ध की प्रथम मूततण बनाने का श्रेय है। मथु रा लगभग 300 वर्ों तक 'मथुरा कला शैली' का प्रमुख केन्द्र रहा। बौद्ध मत की सवाणन्दस्तवादी तवचारधारा का िन्म व तवकास स्थल ह ने के साथ ही श्वेताम्बर िैतनय ं के तलए भी मथु रा महत्वपूर्ण केन्द्र था। Study with Mayank वृिावन - वृिावन मथुरा से लगभग 9.6 तकमी की दूरी पर न्दस्थत है। यहााँ भगवान कृष्ण ने अपनी बाल लीलाएाँ की थी ं। यहााँ बहुत से मन्दिर हैं , तिनमें सवाण तधक प्रतसद्ध ग तवि दे व और रं गनाथ िी (द्रतवर् शैली, सफेद पत्थर) के मन्दिर हैं। ग तवि दे व मन्दिर का तनमाणर् सन् 1590 में महाराि मानतसंह ने कराया ने था। Study with Mayank आगरा आगरा शहर से 80 तकमी. की दू री पर यमुना के दायें तट पर न्दस्थत इस नगर की न्दस्थत शौरीपुर में 22 वें िै न तीथंकर स्थापना 1504 ई. में सुल्तान तसकिर ल दी श्री नेमीनाथ का िन्म हुआ था। ने की थी। मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने इसे अपनी रािधानी बनाया, ि तक औरं गिेब के समय तक रहा। नूरिहां ने आगरा में अपने तपता एत्मादुद्दौला का शानदार मकबरा तनतमणत कराया था। शाहिहां ने िहांगीरी एवं अकबरी महल, म ती मन्दिद तथा स्थापत्यकला के सवणश्रेष्ठ प्रतीक तािमहल का तनमाणर् कराया। यहााँ तशया संत कािी नूरुल्ला की मिार है , ि िहााँगीर के शासनकाल में ईरान से आए थे। Study with Mayank सामूगढ़- यह स्थान आगरा से 16 तकमी पूवण में न्दस्थत है। 29 मई, 1658 ई. क यहां हुए युद्ध में औरं गिेब-मुराद की सं युक्त सेना ने दारा के नेतृत्व में शाही सेना क परातित तकया था। युद्ध में तविय प्राप्त ह ने के उपरान्त औरं गिेब ने शाहिहां क आिीवन निरबि कर तलया और अपने क बादशाह ि तर्त कर तलया था। तसकिरा- आगरा के समीप न्दस्थत तसकिरा मुगल बादशाह अकबर के मकबरे के कारर् प्रतसद्ध है। Study with Mayank फतेहपु र सीकरी- फतेहपु र सीकरी आगरा से 40 तकमी. की दूरी पर न्दस्थत है। इस स्थान क (िहां गीर का िन्म ह ने तथा शेख सलीम तचश्ती का तनवास ह ने के कारर्) अकबर द्वारा काफी महत्व तदया गया। 1573 ई. से 1588 ई. तक यह मुगल सम्राज्य की रािधानी रही। फतेहपु र सीकरी के शानदार स्थापत्य प्रतीक ं में शेख सलीम तचश्ती का मकबरा, बुलि दरवािा, िामा मन्दिद, ि धाबाई का महल, दीवाने खास, बीरबल का महल, मररयम का महल, पंच महल आतद प्रतसद्ध हैं। Study with Mayank एटा अतरं िीखे़िा- यह प्रदे श के एटा तिले में काली नदी तट पर न्दस्थत है। ह्वे नसांग इसे 'तप ल -शा-न' कहता है। यहााँ से गैररक मृदभाण्ड संस्कृतत से लेकर गुप्त काल तक के अवशेर् तमले हैं। यहााँ से प्राप्त अवशेर् मुख्यतः तचतत्रत धूसर मृद्भाण्ड संस्कृतत से सम्बद्ध हैं। यहााँ से लौह-प्रय ग, वृत्ताकार अतिकुण्ड व धान की खेती के भी प्रमार् तमले हैं। Study with Mayank कासगंि स र ं या शूकर क्षेत्र- कासगंि तिले में न्दस्थत स र क्षेत्र दे श के प्रमुख तीथों में से एक है। यहााँ एक प्राचीन मन्दिर है, तिसमें श्री बाराह भगवान की एक तवशाल प्रततमा है। पृथ्वी पर गंगा क लाने के तलए रािा भागीरथ ने यहां तपस्या की थी। उनके नाम पर यहााँ एक मन्दिर है। Study with Mayank बदायूं बदायूं सल्तनत काल में सवाणतधक महत्पूर्ण इक्ता था। सुल्तान बनने से पूवण इल्तुततमश बदायूं का ही इक्तादार था। सूफी सन्त शेख तनिामुद्दीन औतलया बदायूं के ही थे। अकबर के समय का प्रमुख इततहासकार अब्दुल कातदर बदायूंनी भी बदायूं का था। Study with Mayank शाहिहांपुर बांसखे़िा- शाहिहांपुर तिले में गंगा नदी के तट पर न्दस्थत बांसखे़िा से 628ई. का एक ताम्रपत्र तमला है, तिससे हर्ण की बंशावली, प्रशासतनक संरचना आतद की िानकारी प्राप्त ह ती है। इस अतभलेख में हर्ण के हस्ताक्षर ं की अनुतलतप भी उत्कीर्ण है। Study with Mayank बरे ली अतहच्छत्र- अतहच्छत्र की पहचान राज्य के बरे ली तिले में न्दस्थत रामनगर से की गई है। यहााँ से मृद्भाण्ड सं स्कृतत से लेकर गुप्त त्तर युग के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। महािनपद काल में यह भूभाग उत्तरी पांचाल की रािधानी थी। अश क ने यहााँ पर एक स्तूप बनवाया था। यहााँ से 'तमत्र' उपातध वाले तसक्के, कुर्ार् ं के तसक्के तथा गुप्तकालीन एक यमुना की मूततण तमली है। Study with Mayank फरुणखाबाद शंगीरामपुर - फरुणखाबाद तिले में गं गा के दतक्षर्ी तकनारे पर बसे शं गीरामपुर में पांचाल- यह राज्य वतणमान बरे ली, बदायूाँ श्रृंगी ऋतर् का एक मन्दिर है । व फरूण खाबाद िनपद ं की भूतम पर बसा हुआ था। महाभारत काल में यहााँ के रािा द्रुपद थे तिनकी कन्या द्र पदी थी। महािनपद काल में यह एक प्रमुख गर्राज्य था ि द भाग ं में बाँटा था। o उत्तरी पाञ्चाल की रािधानी अतहच्छत्र व दतक्षर्ी पाञ्चाल की रािधानी कान्दिल्य थी। Study with Mayank कन्दिल - तवष्णु पुरार्, िातक, रामायर् तथा उत्तराध्ययन सूत्र एवं अनेक ग्रन्थ ं में इस नगरी का उल्लेख तवतभन्न रूप ,ं प्रसंग ं तथा पररवेश ं में तकया गया है। महािनपद युग में यह द. पांचाल िनपद की रािधानी थी। गंगा के दायें तट पर न्दस्थत यह तीथण स्थान िैन धमण के प्रवतणक तेहरवें तीथंकर भगवान तवमलनाथ, महासती द्रौपदी तथा गुरु द्र र्ाचायण की िन्मस्थली है। द्रौपदी का स्वयंबर यही ं हुआ था। Study with Mayank संतकसा- फरुणखाबाद के समीप न्दस्थत संतकसा (संकाश्य) का उल्लेख महाभारत, बौद्ध सातहत्य तथा चीनी यातत्रय ं के तववरर् ं में तमलता है। ह्वे नसांग ने इसे कतपत्थ नाम से पुकारा है। महािनपद युग में यह पांचाल िनपद का प्रमुख नगर था। महात्मा बुद्ध ने यही ं सं ि में न्दस्त्रय ं क प्रवज्या की अनुमतत दी थी। तभक्षुर्ी उत्पलवर्ाण दीक्षा पाने वाली प्रथम स्त्री थी। चीनी यात्री फातहयान ने भी संतकसा की यात्रा की थी। यहााँ पर अश क द्वारा तनतमणत एक लाट (गि स्तम्भ) है , तिस पर हाथी की आकृतत उकेरी गई है। Study with Mayank Study with Mayank कन्नौि कन्नौि प्राचीन काल में कान्यकुब्ज के नाम से प्रतसद्ध कन्नौि का उल्लेख टॉले मी के 'द ज्य ग्राफी', पतंितल के महाभाष्य, कई पुरार् ,ं महाभारत एवं चीनी यातत्रय ं (फातहयान, ह्वे नसांग) के यात्रा- तववरर् ं से प्राप्त ह ता है। कन्नौि में सबसे प्राचीन बस्ती के साक्ष्य काले मद्भाण्ड युग से प्राप्त हुए हैं। यह नगर छठी शताब्दी ई.पू. से बारहवी ं शताब्दी तक भारत की रािधानी रहा और उत्सव ं की रं गस्थली था। हर्णवद्धण न के समय कन्नौि की समृन्दद्ध व महत्व तशखर पर था। Study with Mayank हर्णकाल में कन्नौि में अनेक संिालय थे , चिावर नामक स्थल कन्नौि एवं इटावा तिसमें लगभग दस हिार तभक्षु रहते थे। के मध्य न्दस्थत था। 1194ई. में कन्नौि के गह़िवाल नरे श ियचि क मु हम्मद ग री ने यही ं पर हुए युद्ध में परातित तकया था। इसके अलावा लगभग द सौ दे वी-दे वताओं के मंतदर भी थे। यहां के बौद्ध महातवद्यालय में चीनी यात्री ह्वे नसांग ने अध्ययन-अध्यापन तकया था। यहां तहन्दू व बौद्ध द न ं प्रकार की तशक्षा-तवतध प्रचतलत थी। मुहम्मद ग री के आक्रमर् के समय कन्नौि का शासक ियचि गह़िवाल था। पुरातत्व, कला और संस्कृतत का केन्द्र कन्नौि अपने इत्र की सुवातसत गंध के तलए भी प्रतसद्ध है। Study with Mayank कानपु र भीतरगांव- कानपुर दे हात तिले में न्दस्थत भीतरगांव गुप्तकालीन शैली अथाणत ईट ं और पत्थर ं से तनतमणत मन्दिर के भिावशेर् के कारर् प्रतसद्ध है। यह मन्दिर चन्द्रगुप्त तद्वतीय तवक्रमातदत्य के काल में बना था। तबठूर- तबठूर कानपुर से 24 तकमी. दूर गंगा के तकनारे न्दस्थत है। इसे प्राचीनकाल में ब्रह्मवती तीथण कहा िाता था। रामायर् के रचतयता महतर्ण वाल्मीतक का आश्रम यही ं पर न्दस्थत था। झााँसी की रानी लक्ष्मीबाई बचपन में यहां रही थी ं। Study with Mayank िालौन काल्पी- यह स्थल िालौन तिले में यमुना नदी के तट पर न्दस्थत है। दसवी ं शताब्दी ई. में काल्पी में चिे ल ं का शासन स्थातपत था। बारहवी ं शताब्दी के अन्त में कुतुबुद्दीन ऐबक ने काल्पी क तदल्ली सल्तनत का अंग बना तलया था। फीर िशाह तुगलक के पश्चात यह एक स्वतंत्र मुन्दिम राज्य बन गया था। बीरबल का िन्म यही ं हुआ था। यहााँ से बीरबल के रं गमहल तथा मुगल टकसाल के अवशेर् प्राप्त ह ते हैं। Study with Mayank झांसी झांसी एक मध्यकालीन नगर है तिसकी स्थापना 1631ई. में ओरछा शासक बीर तसंह बुिेला ने की थी। 1732ई. में िैतपु र यु द्ध के बाद झां सी स्थानीय ओरछा शासक छत्रसाल द्वारा पेशवा बािीराव प्रथम क सौंप दी गई थी। रानी लक्ष्मीबाई झांसी के स्वतंत्र राज्य के शासक गंगाधर राव की पत्नी थी तिन् न ं े 1857 ई. के स्वतंत्रता संग्राम में वीर गतत प्राप्त की थी। झांसी में लक्ष्मीबाई का महल, महादे व मन्दिर व मेंहदी बाग आतद प्रतसद्ध ऐततहातसक स्मारक हैं। Study with Mayank गढ़कुण्डार- झांसी तिले में अवन्दस्थत गढ़कुण्डार पर पूवण मध्यकाल में परमार ं का अतधपत्य था, लेतकन बाद में इस पर चिे ल ं का अतधकार ह गया था। चिे ल ं क परातित कर पृथ्वीराि ने इस पर अतधकार कर तलया था। पृथ्वीराि चौहान के सेनानायक खेततसं ह ने यहां खंगार राज्य की स्थापना की थी। सुल्तान बलबन के समय (1265-1287ई.) गढ़कुण्डार पर बुिेल ं ने अतधकार कर तलया था, तिस पर 1531ई0 तक उनकी रािधानी रही थी। Study with Mayank लतलतपुर दे वगढ़- लतलतपुर तिले में बेतवा के तकनारे दे वगढ़ (दे वताओं का तकला) तहन्दुओ ं और िैतनय ,ं द न ं के तलए महत्वपूर्ण स्थान है। इस स्थान से गुप्तकालीन तहन्दू मन्दिर एवं मूततणय ं के साक्ष्य तमले हैं। इनमें तवष्णु का दशावतार मन्दिर सवाणतधक उल्लेखनीय है। यहााँ से िैन तीथणकर ऋर्भदे व की पुत्री ब्राह्मी द्वारा उत्कीतर्णत तलतपय ं के साक्ष्य तथा चिे ल ं के अतभलेख भी प्राप्त हुए हैं। Study with Mayank मह बा मह बा 831ई. में चिे ल रािपूत ं ने मह बा क अपनी रािधानी बनाई थी। चिे ल ं का राज्य िेिाकभुन्दक्त (िुझौती) के नाम से प्रतसद्ध था। तेरहवी ं शताब्दी के प्रारम्भ में मह बा पर तुकी का आतधपत्य स्थातपत ह गया था। कीरत सागर, चिे ल कालीन स्मारक व ग खर पहा़िी पर 24 िैन तीथंकर ं की प्रततमाएं यहााँ के प्रमुख दशणनीय स्थल हैं। Study with Mayank बााँदा कातलंिर- प्रदे श के बांदा िनपद में न्दस्थत कातलंिर एक दुगीकृत स्थल है। पूवणमध्य यु ग में यहााँ रािपूत ं का शासन था। 1022ई. में महमूद गिनवी ने कातलंिर क पदाक्रान्त तकया था। 1202ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने चिे ल शासक परमतदण देव क कातलंिर में परातित तकया था। 1545 ई. में कातलंिर के सैन्य अतभयान में बारूद तवस्फ ट से शेरशाह सू री की मृत्यु ह गई थी। अकबर ने 1569ई. में यहााँ के शासक रामचन्द्र क परातित कर कातलंिर पर अतधपत्य स्थातपत कर तलया था। Study with Mayank तचत्रकूट वनवास काल में सीता राम व लक्ष्मर् िी ने 12 वर्ण से कुछ अतधक समय तक यही तनवास तकया था। यहााँ प्रवातहत मिातकनी नदी तिसे पयन्दस्वनी भी कहते हैं , के बायें तट पर अनेक प्राचीन मंतदर हैं। रामिाट से लगभग 3 तकमी. की दूरी पर सीतापु र है, िहााँ रामायर् मेला आय तित तकया िाता है। रािापु र- ग स्वामी तुलसीदास की िन्मस्थली रािापु र तचत्रकूट से 38.4 तकमी. की दूरी पर न्दस्थत है। Study with Mayank तमिाण पुर तवन्ध्याचल- तमिाण पुर तिले में न्दस्थत इस स्थान पर तवन्ध्यावातसनी दे वी का पौरातर्क मन्दिर है। चुनार- चुनार तवन्ध्य पहा़िी क्षेत्र में गंगानदी के तट पर तमिाणपुर तिले में न्दस्थत है। चौदहवी ं शताब्दी में चुनार में चिे ल ं का शासन स्थातपत था। यहााँ के दुगण में तवक्रमातदत्य द्वारा तनतमणत भतृहरर मंतदर है पास ही बल्लभ सम्प्रदाय का कूप मंतदर भी है। Study with Mayank कौशाम्बी यह नगर प्रयागराि के दतक्षर् पतश्चम 60 तकमी. की दूरी पर यमुना नदी के तट पर न्दस्थत था। इसे आद्य नगरीय स्थल भी कहा िा सकता है। महािनपद युग में यह वत्स िनपद की रािधानी थी िहााँ का रािा उदयन था। यहााँ से कुर्ार् शासक ं यथा तवम कडतफसेस व कतनष्क के तसक्के भी प्राप्त हुए हैं। यहााँ पर ि तर्ताराम-तवहार (तनमाण र्क ि तर्त नामक श्रेतष्ठ) था। Study with Mayank अश क व समुद्र गुप्त का प्रयाग स्तम्भ अतभलेख तिसे अकबर ने प्रयागराि के तकले में स्थातपत करवाया था, भी यही ं था। यह बौद्ध थेरपंथ का केन्द्र था। रािा उदयन तकला अवशेर्, ि तर्तराम तवहार अवशेर्, तदगम्बर िैन मंतदर आतद यहााँ के दशणनीय स्थल है। छठे िैन तीथंकर पद्म प्रभु का िन्म यही ं हुआ था। यही ं पर महावीर स्वामी क माता शन्दक्त ने दीक्षा तदया था। Study with Mayank क़िा- यह स्थान प्रयागराि से 64 तकमी पतश्चम गंगा तट पर कौशांबी तिले में न्दस्थत है। सुल्तान िलालुद्दीन न्दखलिी के समय क़िा का सूबेदार अलाउद्दीन न्दखलिी था। 1296 ई. में क़िा में ही सुल्तान िलालुद्दीन न्दखलिी की हत्या अलाउद्दीन न्दखलिी ने करवाई थी और अपने क तदल्ली सल्तनत का सुल्तान ि तर्त कर तलया था। क़िा क्षेत्र में ही सुल्तान मुहम्मद तबन तुगलक ने स्वगणद्वारी की स्थापना की थी। शाहिादा सलीम ने 1602 ई. में अकबर के तवरुद्ध तवद्र ह करके क़िा दुगण में ही शरर् ली थी। 1765ई. में सन्दन्ध के अनुसार अवध के नवाब शुिाउद्दौला ने अंग्रेि किनी क क़िा क्षेत्र सौंप तदया था। भक्त सन्त मलूकदास की िन्मस्थली क़िा में ही है। Study with Mayank प्रयागराि प्रयागराि गंगा-यमुना व अदृश्य सरस्वती नतदय ं के संगम पर न्दस्थत है। अकबर ने कौशाम्बी न्दस्थत अश क स्तम्भ क प्रयाग में अपने तकले में स्थातपत करवाया था, तिस पर हररर्े र् रतचत गुप्तवंशीय समुद्रगुप्त का भी लेख उत्कीर्ण है। गुप्तकाल में यह समुद्रगुप्त की धातमणक- सांस्कृततक रािधानी थी। गुप्त ं के पतन के पश्चात् प्रयाग पर हर्णवद्धण न, गुिणर प्रततहार ,ं चिे ल ं व गह़िवाल ं का आतधपत्य रहा। Study with Mayank अकबर ने प्रयाग की पुनस्थाणपना कर सन् 1574 में इसे 'इलाहाबाद' नाम तदया था, तिसे 444 वर्ण बाद बदलकर अरू बर 2018 में पुनः प्रयागराि कर तदया गया है। प्रयाग क सभी तहन्दू तीथों के रािा ह ने का सम्मान प्राप्त है। यहााँ हर बारहवें वर्ण महाकुम्भ व महाकंु भ के 6वें वर्ण कुम्भ तथा महाकंु भ व कंु भ से इतर वर्ों में माि मेला लगता है। Study with Mayank खंिवा या खिुहा- यह प्रयागराि के समीप अवन्दस्थत है। इसका सम्बन्ध मुगल-उत्तरातधकार युद्ध से है। 5 िनवरी, 1659 ई. क औरं गिेब ने इस स्थल पर हुए युद्ध में शाहशु िा क परातित कर उत्तरातधकार में तनर्ाणयक सफलता प्राप्त कर ली थी। Study with Mayank गढ़वा- प्रयागराि तिले में अवन्दस्थत गढ़वा से कुमारगुप्त प्रथम के द तशलालेख तथा स्किगुप्त का एक लेख प्राप्त हुआ है। कुमारगुप्त के तशलाले ख ं में गुप्त संवत् 98 की तततथ अंतकत है। स्किगुप्त के तशलालेख ं में गुप्त संवत् 148 की तततथ अंतकत है। तशलालेख ं से दानगृह क दान दे ने की सूचना प्राप्त ह ती है। Study with Mayank श्रृंगवेरपु र- यह स्थान प्रयागराि नगर से लगभग 45 तकमी दूर गंगा के बायें तट पर न्दस्थत है। अपनी वनवास यात्रा के दौरान भगवान श्रीराम ने यहााँ के रािा और तमत्र तनर्ाद रािगुह के कहने पर एक रात तवश्राम तकया था। रामचौरािाट, हनु मान मंतदर, श्रृंगी मंतदर आतद यहााँ के दशणनीय स्थल हैं। Study with Mayank प्रतापगढ़ सरायनाहर राय- सरायनाहर राय प्रतापगढ़ तिले में न्दस्थत है। यहां उत्खनन में लगभग 8000ई.पू. की मध्यपार्ार् युगीन सभ्यता के साक्ष्य तमले हैं। Study with Mayank िौनपुर िौनपु र की स्थापना सु ल्तान तफर िशाह तुगलक ने 1358ई. में मुहम्मद तुगलक उफण िौना खां के सम्मान में की थी। तुगलक वंश के पतन के समय िौनपु र मतलक हुसैन शकी के नेतृत्व में स्वतंत्र ह गया और शकी सल्तनत की स्थापना की। सातहत्य, स्थापत्य (िै से अटाला मन्दिद, लाल दरवािा व िामा मन्दिद आतद) व संगीत कला के तलए िौनपु र के शक सुल्तान ं का य गदान तचरस्मरर्ीय रहा है। इसी तवशेर्ता के कारर् िौनपु र क 'शीराि-ए-तहि' कहा िाता था। Study with Mayank काशी (वारार्सी) यह प्रदे श या दे श के ही नही ं बन्दि सं सार के प्राचीनतम नगर ं में से एक है। इसे वरूर्ा व अस्सी नामक द नतदय ं के मध्य न्दस्थत ह ने के कारर् वारार्सी भी कहा िाता है। इसका प्रथम उल्लेख अथणववेद में प्राप्त ह ता है। महाभारत तथा रामायर् में भी काशी राज्य का उल्लेख है। 6वी ं शताब्दी ई.पू. के र् डर् महािनपद ं में काशी प्रमुख महािनपद था। बुद्ध काल के ग्रन्थ ं में काशी की तवस्तृत चचाण प्राप्त ह ती है। Study with Mayank महाभारत के अनु सार काशी की स्थापना तदव दास नामक रािा ने की थी। यह शैव धमण का - प्रमुख केन्द्र तथा तहन्दू धमण की एक महत्वपूर्ण धातमणक नगरी के रूप में सदै व प्रतततष्ठत रहा है। िैन धमण के 6 वें और 23वें तीथंकर ं (सुपाश्वणनाथ व पाश्वणनाथ) का िन्म यही ं हुआ था। राििाट- राििाट वारार्सी नगर का उपभाग है िहााँ से उत्तरी काले मृद्भाण्ड संस्कृतत के अवशेर् प्राप्त हुए हैं। Study with Mayank सारनाथ- बौद्ध सम्प्रदाय एवं मौयणकला से सम्बद्ध यह प्राचीन स्थल वारार्सी से 12 तकमी उत्तर में न्दस्थत है। तिसे पहले ऋतर्पतन नाम से िाना िाता था। ब धगया में ज्ञान प्रान्दप्त के बाद भगवान बुद्ध का पहला उपदे श अथाणत् धमणचक्र प्रवतणन सारनाथ में हुआ था। मौयण सम्राट अश क ने सारनाथ में एक तसं ह-शीर्ण प्रस्तर स्तम्भ बनवाया था। स्वतंत्र भारत के राि तचन् के रूप में इसी तसंह-शीर्ण क अपनाया गया है। फातहयान ने सारनाथ की यात्रा की थी। Study with Mayank ह्वे नसांग के समय सारनाथ थे रबाद का प्रमुख केन्द्र था। मध्य युग में गह़िवाल शासक की रानी कुमारदे वी ने यहां तवहार और संिाराम बनवाए थे। 11 वें िैन तीथंकर श्रेयांसनाथ का िन्म तसंहपुरी (वतणमान सारनाथ) में हुआ था। धमेक स्तूप (गुप्तकालीन), चौखण्डी स्तूप (सम्भवतः अश क तनतमणत), मूलगंध कुटी तवहार, िैन मंतदर व सारं गनाथ मंतदर आतद यहााँ के दशणनीय स्थल हैं। Study with Mayank गािीपुर भीतरी - यह गािीपु र तिले के सै दपु र रे लवे स्टे शन से 5 मील उ.पू. में न्दस्थत है। यहााँ से गुप्तकाल के अनेक अवशेर् प्राप्त हुए हैं तिनमें स्किगुप्त का स्तम्भ-लेख सवणप्रमुख है। इस लेख में स्किगुप्त के शासनकाल की महत्वपूर्ण िटनाओं का उल्लेख है। Study with Mayank बतलया ददरी- बतलया तिले में न्दस्थत यह स्थल ब्रह्मा िी के पुत्र भृगुिी के तशष्य दरदर मुतन की तप भूतम रही है। यहााँ भृगु ऋतर् का एक मंतदर है। दे वररया काकण्डी- यह स्थान दे वररया नगर से द. पू. तदशा में है। यहााँ 9वें िैन तीथंकर सुतवधानाथ का िन्म हुआ था। Study with Mayank ग रखपुर पूवी उ.प्र. का यह नगर राप्ती नदी के बायें तट पर बसा है। यहााँ से भारत का प्रमुख धातमणक मातसक पत्र 'कल्यार्' प्रकातशत ह ता है। ि धातमणक पु स्तक ं के प्रतसद्ध प्रकाशक 'गीता प्रेस ग रखपुर' का प्रकाशन है। बाबा ग रखनाथ मन्दिर यहााँ का मुख्य दशणनीय स्थल है। यह महाय गी ग रखनाथ की तप स्थली व नाथ सम्प्रदाय की तसद्धपीठ भी है। Study with Mayank स हगौरा- ग रखपुर तिले में न्दस्थत है। यहां से उत्तरी काली ओपदार मृद्भाण्ड संस्कृतत तथा मौयोत्तर युग से सम्बद्ध अवशेर् प्राप्त हुए हैं। यहााँ से मौयोत्तर काल के तसक्के भी तमले हैं। कुर्ार् ं के तसक्के तथा लौह वस्तु एं भी प्राप्त हुई हैं। यहााँ से अनाि भण्डारर् के अवशेर् भी तमले हैं। Study with Mayank कुशीनगर कुशीनगर (कुशीनारा) ग रखपु र से लगभग 45 तकमी. दूरी पर वतणमान कसया नगर के पास न्दस्थत है । इस नगर का पुराना नाम बसेया था। महािनपद काल में यह मल्ल गर्राज्य की रािधानी थी। भगवान बुद्ध का महातनवाणर् (483 ई.पू.) यही ं हुआ था। अश क ने यहााँ कई स्तूप ं व तवहार ं का तनमाणर् कराया था। कुमारगुप्त के समय हररबल ने भी यहााँ पर स्तूप व तवहार बनवाये थे। Study with Mayank यहां खु दाई में एक प्राचीन तनवाणर् स्तूप तमला है। यहााँ का सबसे अतधक उल्लेखनीय मंतदर महापररतनवाणर् मंतदर है, तिसमें 5वी ं शताब्दी की 6.10 मी. लम्बी शयन मुद्रा में बुद्ध की तवशाल प्रततमा है। िापान की मदद से यहााँ एक महत्वाकांक्षी 'मैत्रेय पररय िना' चलाई िा रही है। पावानगर - िैन तीथंकर महावीर स्वामी ने 468 पू. में इसी स्थान पर अपने शरीर का त्याग तकया था। Study with Mayank महरािगंि लुन्दम्बनी- गौतम बुद्ध का िन्म लुन्दम्बनी में ही हुआ था, ि तक महारािगंि तिले के नौतनवां स्टे शन से 15 तकमी की दूरी पर नेपाल में न्दस्थत है। वतणमान में इसे रून्दम्मनदे ई कहा िाता है। अश क अपने अतभर्ेक के 20वें वर्ण इस स्थल की यात्रा तकया था। o उसने यहााँ पर लेखयु क्त एक तशलास्तम्भ ग़िवाया तिसके शीर्ण भाग पर अश्व की मूततण थी ि अब नि ह चुकी है। अश्वि र् के बुद्धचररत में भी इस स्थल का उल्लेख बुद्ध के िन्म स्थल के रूप में तकया गया है। Study with Mayank तसद्धाथणनगर कतपलवस्तु की पहचान उत्तर प्रदे श के तसद्धाथणनगर तिले के तपपरहवा से की गई है। बौद्ध काल में कतपलवस्तु शाक्य गर्राज्य की रािधानी थी और गौतमबुद्ध के तपता शुद्ध धन यहााँ के शासक थे। यहााँ से एक प्राचीनतम बौद्ध स्तूप तथा उसके भीतर रखी हुई बुद्ध की अन्दस्थयां यु क्त एक पार्ार् मंिूर्ा प्राप्त हुई है। यहााँ का बौद्ध स्तूप उन आठ स्तूप ं में से एक है तिसका तनमाणर् बुद्ध के पररतनवाण र् के तुरन्त बाद करवाया गया था। मौयण सम्राट अश क ने इस पतवत्र स्थल की यात्रा की थी। यहााँ के सालारगढ़ पुरातान्दत्वक स्थल से कुर्ार् ं के तसक्के तमले हैं। यहााँ के गनवाररया पुरातान्दत्वक स्थल से रािा शुद्ध धन के रािमहल के भिावशेर् तमले हैं। यह श्रावस्ती-वारार्सी मागण तथा वैशाली-पुरूर्पुर मागण का एक प्रमुख केन्द्र स्थल था। Study with Mayank बलरामपुर दे वीपाटन (बलरामपु र) - यहााँ तुलसीपुर रे लवे स्टे शन के तनकट पाटे श्वरी दे वी का प्रतसद्ध मन्दिर है। कहा िाता है तक यहााँ पर दे वी की स्थापना महाराि तवक्रमातदत्व ने की थी। यहां प्रततवर्ण मेला लगता है। Study with Mayank श्रावस्ती श्रावस्ती तिले में न्दस्थत वतणमान सहेट महे ट नामक स्थान की पहचान प्राचीन श्रावस्ती के रूप में की िाती है। महािनपद यु ग में यह क शल महािनपद की दूसरी रािधानी थी। यह भगवान बु द्ध की तप्रयनगरी थी। यहााँ बुद्ध ने 25 वर्ाणकाल व्यतीत तकया था। यहां के साहूकार अनाथतपण्डक ने िेतवन-तवहार बनवाकर भगवान बुद्ध क दान में तदया था। तीसरे िैन तीथंकर सम्भवनाथ का िन्म यही ं हुआ था। अतः यह िैन तीथण भी है। आिीवक सम्प्रदाय के महान् प्रवतणक मक्खतल ग साल की िन्मस्थली यही ं थी। Study with Mayank बहराइच यहााँ पर एक प्रतसद्ध मुन्दिम फकीर सैयद सालार व मसूद गािी की पतवत्र दरगाह है। ये संत महमूद गिनवी के साथ भारत में आये थे। यहााँ के मेले में प्रत्ये क वर्ण हिार ं की संख्या में मुन्दिम एवं तहन्दू भक्त अपनी मन कामना पूततण हेतु आते हैं। Study with Mayank लखीमपुर खीरी ग ला ग कर्णनाथ- प्रदे श के लखीमपुर खीरी से लगभग 35 तकमी. दूर न्दस्थत ग ला- ग कर्णनाथ में एक तवशाल झील और उसके तनकट भगवान ग कर्णनाथ महादे व का एक तवशाल तथा प्राचीन मन्दिर है। महाय गी ग रखनाथ िी द्वारा न्दखि़िी प्रसाद तवतरर् स्थल पर स्थातपत मन्दिर तथा नाथ सम्प्रदाय का तसद्धपीठ यही ं पर है। Study with Mayank सीतापु र नैतमर्ारण्य - सीतापु र शहर से लगभग 21 तकमी. दूर ग मती नदी तट पर न्दस्थत है। इस स्थान क 88 हिार ऋतर्य ं की तप भूतम और 30 हिार तीथों का स्थान कहा िाता है। यहााँ न्दस्थत चक्रतीथण (ग लाकार िल कुण्ड) क पृथ्वी का सवोपरर तीथण कहा िाता है। लतलतादे वी नैतमर्ारण्य की अतधष्ठात्री दे वी हैं। Study with Mayank नैतमर्ारण्य से 10 तकल मीटर दूरी पर तमतश्रख न्दस्थत है। कथा है तक यहााँ पर महतर्ण दधीतच ने अपनी अन्दस्थ दान करने के पूवण समस्त तीथों के िल से स्नान तकया था, तिससे इसका नाम तमतश्रत अथवा तमतश्रख प़िा। Study with Mayank लखनऊ िनश्रुतत है तक इस नगर क भगवान श्रीराम के भाई लक्ष्मर् ने बसाया था और इसका प्राचीन नाम लक्ष्मर्पुरी था। लखनऊ क सबसे अतधक प्रतसन्दद्ध उत्तर मुगलकाल में तब तमली, िब अवध के सुबेदार सआदत खां ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थातपत की। नवाब आसफउद्दौला के समय अवध की रािधानी फैिाबाद से लखनऊ लाई गयी और तब से वातिद अली शाह (1856 ई.) तक यह सांस्कृततक गतततवतधय ं का केन्द्र रहा। Study with Mayank 1857 के तवद्र ह में वीरांगना बेगम हिरतमहल ने अंग्रेि ं से डटकर मुकाबला तकया था। आसफुद्दौला ने रूमी दरवािा, इमामबा़िा, आसफी मन्दिद, दौलतखाना, रे िीडें सी, तबतबयापुर क ठी और चौक बािार का तनमाण र् करवाया था। गािीउद्दीन है दर ने शाहनिफ, म तीमहल, मुबारक मंतिल, सआदत अली और खुशीदिादी के मकबरे तथा नगर के दतक्षर् में एक नहर बनवायी। म हम्मद अली शाह ने हुसैनाबाद का इमामबा़िा, ब़िी िामा मन्दिद, आतद इमारतें बनवाई।ं Study with Mayank हुलासखे़िा- हुलासखे़िा लखनऊ िनपद में न्दस्थत है। यहां से कुर्ार्काल से गुप्त युग तक के भौततक अवशेर् प्राप्त हुए हैं। कुर्ार्कालीन अवशेर् ं में उल्लेखनीय हैं- 200 मीटर लम्बी स़िक, सुतनय तित िल तनकासी की व्यवस्था, काततणकेय की स्वर्णप्रततमा, चां दी के आहत तसक्के और तीन कुर्ार् शासक ं के ताम्र तसक्के । Study with Mayank बाराबंकी बाराबंकी में ल धेश्वर महादे व, कंु तेश्वर महादे व, क टवाधाम आतद प्रतसद्ध तीथण स्थान हैं। इसी िनपद के ग्राम बद सराय में तहन्दु- मुन्दिम एकता की प्रतीक सलामत शाह का मिार है। दे वा शरीफ- बाराबंकी से लगभग 12 तकमी. दूर न्दस्थत दे वा में प्रतसद्ध सूफी संत हािी वाररस अली शाह की मिार है। बांसा- यह बाराबंकी शहर से 16 तकमी. दूर है। यह स्थल सूफी संत सैय्यद शाह अब्दुल रज्जाक की दरगाह के कारर् प्रतसद्ध है। Study with Mayank अय ध्या अय ध्या धाम- अय ध्या तिले में सरयू नदी के दाये तट पर न्दस्थत इस नगर का प्राचीन नाम अयाज्सा था। यह भगवान राम की िन्मभूतम के साथ ही िैन धमण के 1 वें, 2वें, 4वें, 5वें व 14वे तीथंकर ं (क्रमशः आतदनाथ या ऋर्भदे व, अतितनाथ. अतभनिनाथ, सु मततनाथ व अनन्त नाथ) का भी िन्म स्थल है। महािनपद काल में यह (साकेत) क शल िनपद की प्रमुख नगरी थी ि उत्तरी भाग की रािधानी थी। यहााँ अश क ने एक स्तूप का तनमाणर् करवाया था। यहााँ से पुष्यतमत्र शुंग का एक लेख भी तमला है तिसके अनुसार उसने यहााँ द अश्वमेध तकए थे। गुप्त काल में भी यह एक प्रमुख नगर था। ह्वे नसांग यहााँ अनेक बौद्ध मंतदर ह ने का उल्लेख तकया है। Study with Mayank studywithmayank1 Study with Mayank