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This document provides detailed insights into topics like nutrition in plants and animals, including various types of food and nutrients. It also discusses digestive systems and processes in human beings and different ways of nutrition in plants and animals. Examples of food sources and other related topics are also mentioned.
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CTET 2022 -23 PAPER – 2 IN HINDI ACADEMY The E-Notes is Proprietary & Copyrighted Material of Sachin Academy. Any reproduction in any f...
CTET 2022 -23 PAPER – 2 IN HINDI ACADEMY The E-Notes is Proprietary & Copyrighted Material of Sachin Academy. Any reproduction in any form, physical or electronic mode on public forum etc will lead to infringement of Copyright of Sachin Academy and will attract penal actions including FIR and claim of damages under Indian Copyright Act 1957. ई-नोट्स Sachin Academy के मालिकाना और कॉपीराइट सामग्री है । सार्वजननक मंच आदि पर ककसी भी रूप, भौनिक या इिेक्ट्रॉननक मोड में ककसी भी िरह फैिाने से Sachin Academy के कॉपीराइट का उल्िंघन होगा और भारिीय कॉपीराइट अधिननयम 1957 के िहि प्राथलमकी और क्षनि के िार्े सदहि िं डात्मक कारव र्ाई की जाएगी। कुछ लोगो ने ये नोट्स शेयर ककये थे या इन्हे गलत तरीके से बेचा था तो उनके खिलाफ कानून काययवाही की जा रही है । इसललए आप अपने नोट्स ककसी से भी शेयर न करे । भोजन के रूप में पौिे के भाग और जंिु उत्पािन कुछ पौधों के दो या दो से अधधक भाग खाने योग्य होते हैं। उदाहरण के लिए सरसों के बीज से हमें तेि प्राप्त होता है एवं इसकी पत्तियों का उपयोग साग बनाने के लिए ककया जाता है । मधम ु क्खियााँ फूिों से मकरं ि (मीठे रस) एकत्रित करती हैं और इसे अपने छत्ते में भंडाररि करती हैं फूि और उनका मकरं द, वर्ष के केवि कुछ समय में ही उपिब्ध होते हैं। केिे का पौधा जो भोजन के रूप में उपयोग ककया जाता है कुछ पौधे जहरीिे हो सकते हैं पशु भोजन जो जंतु केर्ि पािप िाते हैं, उन्हें शाकाहारी कहते हैं। जो जंतु केवि जंिुओं को िाते हैं, उन्हें मांसाहारी कहते हैं। जो जंतु पािप तथा दस ू रे प्राणी, दोनों को ही िाते हैं, उन्हें सर्ावहारी कहते हैं। अिग-अिग खाद्य पिाथव सामग्री प्रत्येक व्यंजन एक या एक से अधधक प्रकार की कच्ची सामग्री से बना होता है , जो हमें पािपोंया जंतुओं से लमिते हैं। इस कच्ची सामग्री में हमारे शरीर के लिए कुछ आवश्यक घटक होते हैं। इन घटकों को हम पोषक कहते हैं। हमारे भोजन में मुख्य पोर्क - काबोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, ववटालमन तथा िननज-िवण हैं। हमारे भोजन में पाए जाने वािे मुख्य काबोहाइड्रेट, मंड तथा शकवरा के रूप में होते कार्बोहाइड्रेट मख् ु य रूप से हमारे शरीर को ऊजाष प्रदान करते हैं। वसा से भी ऊजाष लमिती है । कॉपर सल्फेट त्तर्ियन, 100 लमिीिीटर जि में 2 ग्राम कॉपर सल्फेट घोिने से बन जाता है । 100 लमिीिीटर जि में 10 ग्राम कॉस्टटक सोडा घोिने से हमें अभीष्ठ कॉक्टटक सोडा ववियन लमि जाएगा। हमारे शरीर के लिए त्तर्लभन्न पोषक प्रोटीन की आवश्यकता शरीर की र्द् ृ धि तथा टवटथ रहने के लिए होती है । प्रोटीनयुक्ट्ि भोजन को प्रायः 'शरीर वधषक भोजन' कहते हैं ववटालमन रोगों से हमारे शरीर की रक्षा करते हैं। ववटालमन हमारी आाँि, अक्टथयों, दााँत और मसूढों को टवटथ रिने में भी सहायता करते हैं। त्तर्टालमन कई प्रकार के होते हैं, क्जन्हें अिग-अिग नामों से जाना जाता है । इनमें से कुछ को ववटालमन A, ववटालमन B, ववटालमन C, ववटालमन D, ववटालमन E तथा ववटालमन K के नाम से जाना जाता है । ववटालमनों के एक समूह को ववटालमन B-कॉम्प्िैक्ट्स कहते हैं। हमारे शरीर को सभी प्रकार के ववटालमनों की अल्प मािा में आवश्यकता होती है । ववटालमन A हमारी त्वचा तथा आँखों को टवटथ रिता है । ववटालमन C बहुत-से रोगों से िड़ने में हमारी मदद करता है । ववटालमन D हमारी अस्टथयों और दााँतों के लिए कैक्ल्सयम का उपयोग करने में हमारे शरीर की सहायता करता है । हमारा शरीर भी सूयष के प्रकाश की उपक्टथनत से त्तर्टालमन D बनाता है । चावि में काबोहाइड्रेट की मािा दस ू रे पोषकों से अधधक होती है । इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कक चावि कार्बोहाइड्रेट समद् ृ ध भोजन है । इन पोर्कों के अिावा हमारे शरीर को आहारी रे शों तथा जि की भी आवश्यकता होती है । आहारी रे शे रुक्षांश के नाम से भी जाने जाते हैं। हमारे िाने में रुक्ांश की पूनतष मुख्यतः पादप उत्पादों से होती है । रुक्ांश के मुख्य स्रोत सार्बुि खाद्यान्न, दाि, आिू, ताजे फि और सक्ब्जयााँ हैं। संिुलिि आहार कोई भी पोर्क तत्व न आवश्यकता से अधधक हो और न ही कम। हमारे आहार में पयाव्ि मात्रा में रुक्ांश तथा जि भी होना चाहहए। इस प्रकार के आहार को संिुलिि आहार कहते हैं। नछिका उतार कर यहद सक्ब्जयों और फिों को धोया जाता है तो यह संभव है कक उनके कुछ त्तर्टालमन नष्ट हो जाएाँ। सक्ब्जयों और फिों की त्वचा में कई महत्वपूणष त्तर्टालमन तथा िननज-िवण होते हैं। चावि और दािों को बार-बार धोने से उनमें उपक्टथत ववटालमन और कुछ खननज-िर्ण अिग हो सकते हैं। अभार्जन्य रोग कभी-कभी भोजन में ककसी त्तर्शेष पोषक की कमी हो जाती है । यहद यह कमी िंबी अवधध तक रहती है तो वह व्यक्खत उसके अभाव से ग्रलसि हो सकता है । एक या अधधक पोर्क तत्त्वों का अभाव हमारे शरीर में रोग अथवा त्तर्कृनियाँ उत्पन्न कर सकता है । वे रोग जो िंबी अवधध तक पोर्कों के अभाव के कारण होते हैं. उन्हें अभार्जन्य रोग कहते हैं। पािपों में पोषण पोर्ण की वह ववधध, क्जसमें जीर् अपना भोजन टवयं संश्िेवर्त करते हैं, टर्पोषण कहिाती है । जंतु एव अन्य जीव पादपों द्वारा संश्िेत्तषि भोजन हैं। उन्हें त्तर्षमपोषी कहते हैं। पािपों में खाद्य संश्िेषण का प्रक्रम पवत्तयााँ पादप की खाद्य फैक्खियााँ हैं। जि एवं िननज, वाहहकाओं द्वारा पवत्तयों तक पहुाँचाए जाते है । ये र्ादहकाएँ निी के समान होती है तथा जड़, तना, शािाओं एवं पवत्तयों तक फैिी होती है । पवत्तयों में एक हरा र्णवक होता है , क्जसे क्ट्िोरोकफि कहते है । खिोरोक़िि सूयष के प्रकाश (सौर प्रकाश) की ऊजाष का संग्रहण करने में पत्ती की सहायता करता है । इस ऊजाष का उपयोग जि एवं काबषन डाइऑखसाइड से खाद्य संश्िेषण में होता है , खयोंकक िाद्य संश्िेर्ण सूयष के प्रकाश की उपक्टथनत में होता है । इसलिए इसे प्रकाश संश्िेषण कहते हैं। पवत्तयों द्वारा सौर ऊजाष संग्रदहि की जाती है तथा पादप में खाद्य के रूप में संधचत हो जाती है । अतः सभी जीवों के लिए सूयव ऊजाव का चरम स्रोत है । प्रकाश संश्िेर्ण की अनुपस्टथनि में, पथ् ृ वी पर जीवन की कल्पना असंभव है । सूयव का प्रकाश काबषन डाइऑखसाइड + जि ------------------- काबोहाइड्रेट + ऑखसीजन क्ट्िोरोकफि इस प्रक्रम में ऑक्ट्सीजन ननमख ुष त होती है । काबोहाइड्रेट अंतत: पवत्तयों में मंड (टटाचष) के रूप में संधचत हो जाते हैं। पत्ती में टटाचव की उपक्टथनत प्रकाश संश्िेर्ण प्रक्रम का संपन्न होना दशाषता है । टटाचष भी एक प्रकार का कार्बोहाइड्रेट है । पािपों में पोषण की अन्य त्तर्धियाँ मनुष्य एवं अन्य प्राणणयों की तरह ये पािप भी अपने पोर्ण के लिए अन्य पादपों द्वारा ननलमषत िाद्य पर ननभषर होते हैं। वे त्तर्षमपोषी प्रणािी का उपयोग करते हैं। अमरर्बेि का पादप है । इसमें क्ट्िोरोकफि नहीं होता है । ये अपना भोजन उस पादप से प्राप्त करते हैं, क्जस पर ये आरोहहत होते हैं। क्जस पर ये आरोहहत होते हैं, वह पादप परपोषी कहिाता है । खयोंकक अमरबेि जैसे पादप परपोर्ी को अमल् ू य पोर्कों से र्ॉचि करते हैं, अतः इन्हें परजीर्ी कहते हैं। कुछ ऐसे पादप भी हैं, जो कीटों को पकड़ते हैं तथा उन्हें पचा जाते हैं। मि ृ जीर्ी रुई के धागों के समान संरचनाएाँ हदिाई पड़ें। यह जीव कर्क या फंजाई कहिाते हैं। इनकी पोषण प्रणािी अथवा पोर्ण ववधध लभन्न प्रकार की होती है । ये मत ृ एवं त्तर्घटनकारी (सड़नेवािी) वटतुओं (जैव पदाथों) की सतह पर कुछ पाचक रसों का स्राव करते हैं, तथा उसे साधारण व त्तर्िेय के रूप में पररवनतषत कर दे ते। तत्पश्चात ् वे इस ववियन का भोजन के रूप में अवशोर्ण करते हैं। इस प्रकार की पोर्ण प्रणािी को, क्जसमें जीव ककसी मत ृ एवं त्तर्घदटि जैववक पदाथों से पोर्क तत्त्व प्राप्त करते हैं, मि ृ जीर्ी पोर्ण कहिाती है । कर्क (फंजाई) आचार, चमड़े, कपड़े एवं अन्य पदाथों पर उगते हैं। यीटट एवं छत्रक जैसे अनेक कवक उपयोगी भी हैं; परं तु कुछ कवक पादपों, जंतुओं एवं मनुष्य में रोग उत्पन्न करते हैं। कुछ कवकों का उपयोग औषधि के रूप में भी होता है । कुछ जीव एक-दस ू रे के साथ रहते हैं तथा अपना आर्ास एवं पोर्क तत्त्व एक-दस ू रे के साथ र्बाँटिे हैं। इसे सहजीवी संबंध कहते हैं। उदाहरणत: कुछ कर्क वक् ृ ों की जड़ों में रहते हैं। वक् ृ कवक को पोषण प्रदान करते हैं, बदिे में उन्हें जि एवं पोर्को के अवशोर्ण में सहायता लमिती है । िाइकेन कहे जाने वािे कुछ जीवों में दो भागीदार होते हैं। इनमें से एक शैवाि होता है तथा दस ू रा कर्क। शैवाि में खिोरोक़िि उपक्टथत होता है , जबकक कवक में क्ट्िोरोकफि नहीं होता। कवक शैवाि को रहने का टथान (आवास), जि एवं पोर्क तत्त्व उपिब्ध कराता है तथा बदिे में शैवाि प्रकाश संश्िेर्ण द्वारा संश्िेवर्त खाद्य कवक को दे ता है । पादपों को प्रोटीन बनाने के लिए सामान्यतः नाइरोजन की अधधक आवश्यकता होती है । फसि कटाई के बाद मद ृ ा में नाइिोजन की कमी हो जाती है । यद्यवप वायु में नाइिोजन गैस प्रचुर मािा में उपिब्ध होती है , परं तु पादप इसका उपयोग उस प्रकार करने में असमथव होते हैं, जैसे वे काबषन डाइऑखसाइड का उपयोग करते हैं। पौधे नाइिोजन को त्तर्िेय रूप में ही अवशोवर्त कर सकते हैं। कुछ जीवाणु जो राइजोबर्बयम कहिाते हैं, प्राणणयों में पोषण प्राणणयों के पोर्ण में पोर्क ित्त्र्ों की आवश्यकता, आहार के अंिग्रवहण (भोजन ग्रहण करने) की ववधध और शरीर में इसके उपयोग की ववधध सस्न्नदहि (सक्ममलित) हैं। काबोहाइड्रेट जैसे कुछ संघटक जदटि पदाथष हैं। अनेक जंतु इन जहटि पदाथों का उपयोग सीधे इसी रूप में नहीं कर सकते। अतः उन्हें सरि पदाथों में बदिना आवश्यक है , जैसा ननमन आरे ख द्वारा हदिाया गया है । जहटि िाद्य पदाथों का सरि पदाथों में पररवनतषत होना या टूटना त्तर्खंडन कहिाता है तथा इस प्रक्रम को पाचन कहते हैं। मानर् में पाचन भोजन एक सिि ् निी से गुजरता है , जो मुख- गुदहका से प्रारमभ होकर गुदा तक जाती है । इस निी को ववलभन्न भागों में बााँट सकते हैं: (1) मुि-गुहहका (2) ग्रास-निी या प्रलसका (3) आमाशय (4) क्ुद्ांि (छोटी आाँत) (5) बह ृ दांि (बड़ी आाँत) जो मिाशय से जुड़ी होती है तथा (6) मिद्वार अथवा गुदा ये सभी भाग लमिकर आहार नाि (पाचन निी) का ननमाषण करते हैं। आमाशय की आंतररक लभवत्त, क्षुद्ांत्र तथा आहार नाि से संबद्ध ववलभन्न ग्रंधथयााँ जैसे कक िािा-ग्रंधथ, यकृि, अग्नन्याशय पाचक रस स्राववत करती हैं। पाचक रस जहटि पदाथों को उनके सरि रूप में बदि दे ते हैं। आहार नाि एवं संबद्ध ग्रंधथयाँ लमिकर पाचन तंि का ननमाषण करते हैं मुख एर्ं मुख – गुदहका आहार को शरीर के अंदर िेने की कक्रया अंिग्रवहण कहिाती है । प्रत्येक िाँि मसूड़ों के बीच अिग-अिग गनिवका (सॉकेट) में फाँसा होता है हमारे मि ु में िािा-ग्रंधथ होती है , जो िािा रस (िार) सात्तर्ि करती है । िािा रस चावि के मंड को शकवरा में बदि दे ता है । जीभ एक मांसि पेशीय अंग है , जो पीछे की ओर मुख-गुदहका के अधर ति से जुड़ी होती है हम बोिने के लिए जीभ का उपयोग करते हैं। इसके अनतररखत यह भोजन में िार को लमिाने का कायष करती है तथा ननगिने में भी सहायता करती है । जीभ द्वारा ही हमें टर्ाि का पता चिता है । जीभ पर टर्ाि-कलिकाएँ होती है हमारे दांतों का प्रथम सेट शैशर्काि में ननकिता है तथा िगभग 8 वर्ष की आयु तक ये सभी दााँत धगर जाते हैं। इन्हें िि ू के दााँत कहते हैं। इन दााँतों के टथान पर दस ू रे दांत ननकिते हैं क्जन्हें टथायी िाँि कहते हैं। सामान्य टवटथ व्यक्खत के टथाई दााँत पूरे जीवन भर यने रहते हैं तथावप र्द् ृ िार्टथा में ये प्रायः धगरने िगते हैं। भोजन निी (ग्रलसका) ग्रलसका गिे एवं वक् से होती हुई जाती है । ग्रलसका की लभवत्त के संकुचन से भोजन नीचे की ओर सरकिा जाता है । वाटतव में, संपूणष आहार नाि संकुधचि होती रहती है तथा यह गनत भोजन को नीचे की ओर धकेिती रहती है कभी-कभी हमारा आमाशय िाए हुए भोजन को टवीकार नहीं करता, फिटवरूप र्मन द्वारा उसे बाहर ननकाि हदया जाता है । भोजन के कण श्वास निी में प्रवेश कर जाते हैं, तो हमें घट ु न का अनभ ु व होता है तथा दहचकी आती है या िााँसी उठती है । आमाशय आमाशय मोटी लभवत्त वािी एक थैिीनम ु ा संरचना है । यह चपटा एवं 'J' की आकृनत का होता है तथा आहार नाि का सबसे चौड़ा भाग है । यह एक ओर ग्रलसका (ग्रास निी) से िाद्य प्राप्त करता है तथा दस ू री ओर क्षुद्ांत्र में िुिता है । आमाशय का आंतररक अटतर (सतह) श्िेष्मि, हाइड्रोखिोररक अमि तथा पाचक रस सात्तर्ि करता है । श्िेष्मि आमाशय के आंतररक अटतर को सरु क्ा प्रदान करता है । अमि अनेक ऐसे जीर्ाणुओं को नष्ट करता है , जो भोजन के साथ वहााँ तक पहुंच जाते हैं। साथ ही यह माध्यम को अमिीय बनाता है क्जससे पाचक रसों को कक्रया करने में सहायता लमिती है । पाचक रस (जठर रस) प्रोटीन को सरि पदाथों में त्तर्घदटि कर दे ता है । क्षुद्ांत्र क्ुद्ांि िगभग 7.5 मीटर िंबी अत्यधधक कंु डलित निी है । यह यकृत एवं अग्न्याशय से नाव प्राप्त करती है । इसके अनतररखत इसकी लभवत्त से भी कुछ रस नाववत होते हैं। यकृि गहरे िाि-भरू े रं ग की ग्रंधथ है , जो उदर के ऊपरी भाग में दाहहनी (दक्षक्ण) ओर अवक्टथत होती है । यह शरीर की सबसे र्बडी ग्रोथ है । यह वपत्त रस नाववत करती है , जो एक थैिी में संग्रदहि होता रहता है , इसे त्तपिाशय कहते हैं। वपत्त रस वसा के पाचन में महत्त्वपूणष भूलमका ननभाता है । काबोहाइड्रेट सरि शकषरा जैसे कक ग्निक ू ोस में पररवनतषत हो जाते हैं। ‘वसा', वसा अमि एवं क्ग्निसरॉि में तथा 'प्रोटीन', ऐमीनो अमि में पररवनतषत हो जाती है । क्षुद्ांत्र में अर्शोषण पचा हुआ भोजन अर्शोत्तषि होकर क्ुद्ांि की लभवत्त में क्टथत रुधधर वाहहकाओं में चिा जाता है । इस प्रक्रम को अवशोर्ण कहते हैं। क्द्ांि की आंतररक लभवत्त पर अंगुिी के समान उभरी हुई संरचनाएाँ होती हैं, क्जन्हें िीघवरोम अथवा रसांकुर कहते हैं। दीघषरोम पचे हुए भोजन के अवशोर्ण हे तु िि क्षेत्र बढा दे ते हैं। प्रत्येक दीघषरोम में सूक्ष्म रुधिर वाहहकाओं का जाि फैिा रहता है । दीघषरोम की सतह से पचे हुए भोजन का अर्शोषण होता है र्बह ृ िांत्र र्बह ृ िांत्र, क्ुद्ांि की अपेक्ा चौड़ी एवं छोटी होती है । यह िगभग 1.5 मीटर िंबी होती है । इसका मुख्य कायष जि एवं कुछ िर्णों का अवशोर्ण करना है । बचा हुआ अपधचत पदाथष मिाशय में चिा जाता है तथा अिवठोस मि के रूप में रहता है । समय-समय पर गद ु ा द्वारा यह मि बाहर ननकाि हदया जाता है । इसे ननष्कासन कहते हैं। घास खाने र्ािे जंिओ ु ं में पाचन गाय, भैस तथा घास िाने वािे (शाकाहारी) अन्य जंतओ ु ं को दे िा है वे उस समय भी िगातार जुगािी करते रहते हैं, जब वे िा न रहे हों। वाटतव में वे पहिे घास को जल्दी- जल्दी ननगिकर आमाशय के एक भाग में भंडाररत कर िेते हैं। यह भाग रूमेन (प्रथम आमाशय) कहिाता है । रूलमनैन्ट में आमाशय चार भागों में बाँटा होता है रूमेन में भोजन का आलशक पाचन होता है , क्जसे जुगाि (कड) कहते हैं। परं तु बाद में जंतु इसको छोटे त्तपंडकों के रूप में पन ु : मि ु में िाता है तथा क्जसे वह चबाता रहता है । इस प्रक्रम को रोमन्थन (जुगािी करना) कहते हैं तथा ऐसे जंतु रूलमनन्ट अथवा रोमन्थी कहिाते हैं। घास में सेिुिोस की प्रचुरता होती है । बहुत-से जंत एवं मानव सेिुिोस का पाचन नहीं कर पाते है । जानवरों जैसे-घोड़ा, िरगोश आहद में क्षुद्ांत्र एवं र्बह ृ िांत्र के बीच एक थैिीनम ु ा बड़ी संरचना होती है क्जसे अंिनाि कहते हैं। भोजन के सेिुिोस का पाचन यहााँ पर कुछ जीवाणुओं द्वारा ककया जाता है , जो मनुष्य के आहार नाि में अनुपस्टथि होते हैं। पररसंचरण िंत्र रक्ट्ि रखत वह तरि पदाथष या द्र् है , जो रखत वाहहननयों में प्रवाहहत होता है । यह पाधचत भोजन को क्षुद्ांि (छोटी आाँत) से शरीर के अन्य भागों तक िे जाता है । फेफडों से ऑखसीजन को भी रखत ही शरीर की कोलशकाओं तक िे जाता है । रखत शरीर में से अपलशष्ट पदाथों को बाहर ननकािने के लिए उनका पररवहन भी करता है । रखत एक तरि से बना है क्जसे ्िैज्मा कहते हैं। रखत में एक प्रकार की कोलशकाएाँ - िाि रक्ट्ि कोलशकाएाँ (RBC) होती हैं, क्जनमें एक िाि र्णवक होता है , क्जसे हीमोग्िोबर्बन कहते हैं। हीमोग्निोत्रबन ऑखसीजन को अपने साथ संयुखत करके शरीर के सभी अंगों में और अंततः सभी कोलशकाओं तक पररवहन करता है । हीमोग्निोत्रबन की उपक्टथनत के कारण ही रखत का रं ग िाि होता है । रखत में अन्य प्रकार की कोलशकाएाँ भी होती हैं, क्जन्हें श्र्ेि रक्ट्ि कोलशकाएाँ WBC) कहते हैं। ये कोलशकाएाँ उन रोगाणुओं को नष्ट करती हैं, जो हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। रखत का थक्ट्का बन जाना उसमें एक अन्य प्रकार की कोलशकाओं की उपक्टथनत के कारण होता है , क्जन्हें पट्दटकाणु (प्िैटिेट्स) कहते हैं। रक्ट्ि र्ादहननयाँ शरीर में दो प्रकार की रखत वाहहननयााँ पाई जाती हैं- िमनी और लशरा िमननयाँ हृदय से ऑखसीजन समद्ृ ध रक्ट्ि को शरीर के सभी भागों में िे जाती हैं। चाँकू क रखत प्रवाह तेजी से और अधधक दाब पर होता है , धमननयों की लभत्तियाँ (दीवार) मोटी और प्रत्याटथ होती हैं। प्रनत लमनट टपंदों की संख्या टपंिन दर कहिाती है । ववश्राम की अवटथा में ककसी टवटथ वयटक व्यक्खत की टपंदन दर सामान्यतः 72 से 80 टपंदन प्रनत लमनट होती है । वे रखत र्ादहननयाँ, जो काबषन डाइऑखसाइड समद्ृ ध रखत को शरीर के सभी भागों से वापस हृदय में िे जाती हैं, लशराएँ कहिाती हैं। लशराओं की लभवत्तयााँ अपेक्षाकृि पतिी होती हैं। लशराओं में ऐसे वाल्व होते हैं, जो रखत को केवि हृदय की ओर ही प्रवाहहत होने दे ते हैं। िमननयाँ अन्य छोटी-छोटी वाहहननयों में ववभाक्जत होती हदिाई दे ती हैं। ऊतकों में पहुाँचकर वे पन ु ः अत्यधधक पििी नलिकाओं में ववभाक्जत हो जाती है , क्जन्हें केलशकाएाँ कहते हैं। केलशकाएाँ पुनः लमिकर लशराओं को बनाती हैं, जो रक्ट्ि को हृदय में िे जाती हैं। फुफ्फुस धमनी हृदय से रखत को िे जाती है , इसलिए इसे लशरा नहीं बक्ल्क िमनी कहते हैं। यह काबषन डाइऑखसाइड समद् ृ ध रखत को फेफड़ों में िे जाती है । फुफ्फुस लशरा ऑक्ट्सीजन समद् ृ ध रखत को फेफड़ों से हृदय में िाती है । हृिय हृिय वह अंग है , जो रखत द्वारा पदाथों के पररवहन के लिए पंप के रूप में कायष करता है । यह ननरं िर धड़कता रहता है । हृदय चार कक्ों में बाँटा होता है । ऊपरी दो कक् अलिन्ि कहिाते हैं और ननचिे दो कक् ननिय कहिाते हैं। कक्ों के बीच का ववभाजन दीवार ऑखसीजन समद् ृ ध रखत और काबषन डाइऑखसाइड से समद् ृ ध रखत को परटपर लमिने नहीं दे ती है । हृिय टपंि हृदय के कक् की लभवत्तयााँ पेलशयों की बनी होती हैं। ये पेलशयााँ ियबद्ध रूप से संकुचन और त्तर्श्ांनि करती हैं। यह ियर्बद्ि संकुचन और उसके बाद होने वािी ियबद्ध ववश्रांनत दोनों लमिकर हृिय टपंि (हाटष बीट) कहिाता है । धचककत्सक आपके हृदय टपंद को मापने के लिए टटे थॉटकोप नामक यंि का उपयोग करते हैं। मानर् उत्सजवन िंत्र कोई र्यटक व्यक्खत सामान्यतः 24 घंटे में 1 से 1.8 िीटर मूि करता है । मूि में 95% जि, 2.5% यूररया और 2.5% अन्य अपलशष्ट उत्पाद होते हैं। कभी-कभी ककसी व्यक्खत के वख ृ क काम करना बंद कर दे ते हैं। ऐसा ककसी संक्रमण अथवा चोट के कारण हो सकता है । वख ृ क के अकक्रय हो जाने की क्टथनत में रखत में अपलशष्ट पदाथों की मािा बढ जाती है । ऐसे व्यक्खत की अधधक हदनों तक जीववत रहने की संभावना कम हो जाती है । तथावप, यहद कृत्रिम वख ृ क द्वारा रखत को ननयलमत रूप से छानकर उसमें से अपलशष्ट पदाथों को हटा हदया जाए, तो उसके जीवन काि में वद् ृ धध संभव है । इस प्रकार रखत के छनन की ववधध को अपोहन (डायिाइलसस) कहते हैं। जि और खननजों का पररर्हन पादप मि ू ों (जड़ों) द्वारा जि और खननजों को अवशोवर्त करते हैं। मि ू ों में मूिरोम होते हैं। वाटतव में, मूिरोम जि में घुिे हुए िननज पोर्क पदाथों और जि के अंिग्रवहण के लिए मूि के सतह क्ेिफि को बढा दे ते हैं। मूिरोम मद ृ ा कणों के बीच उपक्टथत जि के संपकष में रहते हैं। पािपों में मदृ ा से जि और पोर्क तत्त्वों के पररवहन के लिए पाइप जैसी र्ादहकाएँ होती हैं। वाहहकाएाँ ववशेर् कोलशकाओं की बनी होती हैं, जो संवहन ऊिक बनाती हैं। ऊतक कोलशकाओं का वह समूह होता है , जो ककसी जीव में ककसी कायष ववशेर् को संपादिि करता है । जि और पोर्क तत्त्वों के पररवहन के लिए पादपों में जो संवहन ऊतक होता है , उसे जाइिम (दारू) कहते हैं। जाइिम चैनिों (नलियों) का सिि ् जाि बनाता है , जो मूिों को तने और शाखाओं के माध्यम से पवत्तयों से जोड़ता है और इस प्रकार बना िंत्र पूरे पादप में जि का पररवहन करता है । पवत्तयााँ भोजन का संश्िेषण करती हैं। भोजन को पादप के सभी भागों में िे जाया जाता है । यह कायष एक संवहन ऊतक द्वारा ककया जाता है , क्जसे फ्िोएम (पोर्वाह) कहते हैं। शाक, झाडी एर्ं र्क्ष ृ हम अधिकांश पौधों को 3 संवगों में वगीकृत कर सकते हैं। ये वगष हैं : शाक, झाडी एर्ं र्क्ष ृ हरे एवं कोमि तने वािे पौधे शाक कहिाते हैं। ये सामान्यतः छोटे होते हैं और अखसर इनमें कई शाखाएँ नहीं होती। कुछ पौधों में शािाएाँ तने के आधार के समीप से ननकिती हैं। तना कठोर होता है परं तु अधधक मोटा नहीं होता इन्हें झाडी कहते हैं कुछ पौिे बहुत ऊाँचे होते हैं तथा इनके तने सदृ ु ढ़ एवं गहरे होते हैं। इनमें शािाएाँ भलू म से अधधक ऊाँचाई पर तने के ऊपरी भाग से ननकिती हैं। इन्हें र्क्ष ृ कहते हैं कमजोर तने वािे पौधे सीधे िड़े नहीं हो सकते और ये भूलम पर फैि जाते हैं। इन्हें त्तर्सपी िता कहते हैं। जब कक कुछ पौिे सहायता से ऊपर चढ जाते हैं। ऐसे पौधे आरोही कहिाते हैं। ये शाक, झाड़ी और पेड़ों से लभन्न हैं। िना जि तने में ऊपर की ओर चढता है अथाषत ् तना जि का संर्हन करता है । िाि टयाही की भााँनत जि में त्तर्िीन खननज, जि के साथ तने में ऊपर पहुाँच जाते हैं। पिी पिी का वह भाग क्जसके द्वारा वह तने से जड़ु ी होती है , पणवर्ंि कहिाता है । पत्ती के चपटे हरे भाग को फिक कहते है । पत्ती की इन रे णखि संरचनाओं को लशरा कहते हैं। पत्ती के मध्य में एक मोटी लशरा हदिाई दे ती है । इसे मध्य लशरा कहते हैं। पवत्तयों पर लशराओं द्वारा बनाए गए डडजाइन को लशरा- ववन्यास कहते हैं। यहद यह डडजाइन मध्य लशरा के दोनों ओर जाि जैसा है , तो यह लशरा- ववन्यास, जालिका रूपी कहिाता है घास की पवत्तयों में यह लशराएाँ एक दस ू रे के समांतर हैं। ऐसे लशरा-ववन्यास को समांतर लशरा- त्तर्न्यास कहते हैं पत्तियाँ प्रकाश और हरे रं ग के एक पदाथष की उपक्टथनत में अपना भोजन बनाती हैं। इस प्रकक्रया में जि एवं कार्बवन डाइआक्ट्साइड का उपयोग करती हैं। इस प्रक्रम को प्रकाश- संश्िेषण कहते हैं। इस प्रक्रम में ऑखसीजन ननष्कालसत होती है । पवत्तयों द्वारा संश्िेवर्त भोजन अंततः पौधे के ववलभन्न भागों में मंडि के रूप में संग्रहहत हो जाता है । जड मुख्य जड़ को मूसिा जड़ कहते हैं तथा छोटी जड़ों को पाश्वष जड़ कहते हैं। क्जन पौधों की जड़ें उनमें कोई मुख्य जड़ नहीं होती। सभी जड़ें एक समान हदिाई दे ती हैं। इन्हें झकडा जड़ अथवा रे शेिार जड़ कहते हैं। जड़ें लमट्टी से जि का अर्शोषण करती हैं तथा तना, जि एवं िननज को पत्ती एवं पौधे के अन्य भागों तक पहुाँचाता है । पत्तियाँ भोजन संश्िेवर्त करती हैं। यह भोजन िने से होकर पौधे के ववलभन्न भागों में संग्रहहत हो जाता है । इस प्रकार की कुछ जड़ों जैसे- गाजर, मूिी, शकरकंद, शिजम एवं टे वपयोका आहद को हम िाते हैं। पष्ु प णििे हुए पुष्प का प्रमुि भाग यह पुष्प की पंखुडडयाँ हैं। ववलभन्न पुष्पों की पंिुडड़यााँ अिग- अिग रं गों की होती हैं। पुष्प के केंद् में क्टथत भाग को टर्ीकेसर कहते हैं। एक पुष्प के अंडाशय यह टिीकेसर का सबसे ननचिा एवं फूिा हुआ भाग है । अंडाशय में छोटी-छोटी गोि संरचनाएाँ हदिाई दे ती हैं इन्हें र्बीजांड कहते हैं। मानर् शरीर एर्ं इसकी गनियाँ जहााँ पर दो हहटसे एक-दस ू रे से जड ु े हों - उदाहरण के लिए कोहनी, कंधा अथवा गदषन। इन टथानों को संधि कहते हैं। कंिक ु - खस्ल्िका संधि कल्पना कीक्जए कक कागज का र्बेिन आपका हाथ है तथा गें द इसका एक लसरा है । कटोरी कंधे के उस भाग के समान है क्जससे आपका हाथ जड़ ु ा है । एक अस्टथ का गें द वािा गोि हहटसा दस ू री अक्टथ की कटोरी रूपी गुदहका में धंसा हुआ है । इस प्रकार की संधध सभी दिशाओं में गनत प्रदान करती है । िुराग्र संधि गदषन तथा लसर को जोड़ने वािी संधध, िुराग्र संधध है । इसके द्वारा लसर को आगे-पीछे या दाएाँ एवं बाएाँ घुमा सकते हैं। धुराग्र संधध में र्बेिनाकार अक्टथ एक छल्िे में घूमती है । दहंज संधि दहंज संधि घर के ककसी दरवाजे को बार-बार िोलिए और बंद कीक्जए। इसके कब्जों को ध्यानपव ू क ष दे णिए। यह दरवाजे को आगे और पीछे की ओर िुिने दे ता है । इससे ये पता चिता है की हहंज एक दिशा में गनत होने दे ता है । कोहनी में हहंज संधध होती है । अचि संधि अस्टथयाँ इन संधधयों पर दहि नहीं सकतीं। ऐसी संधधयों को अचि संधध कहते हैं। जब आप अपना मुाँह िोिते हैं, तो आप अपने ननचिे जबड़े को लसर से दरू िे जाते हैं। ऊपरी जबड़े एवं कपाि के मध्य अचि संधध है । एक्ट्स-रे धचि से हमें शरीर की अक्टथयों की आकृनि का पता चिता है । अपनी अंगुलियों को मोडड़ए। यह अनेक छोटी-छोटी अस्टथयों से बनी है क्जन्हें कारपेि कहते हैं। पसलियाँ ववशेर् रूप से मड़ ु ी हुई हैं। वे र्क्ष की अक्टथ एवं मेरुिं ड से जड़ ु कर एक बखसे की रचना करती हैं। इस शंकुरूपी बखसे को पसिी-त्तपंजर कहते हैं। वक् के दोनों तरफ 12 पसलियाँ होती हैं। हमारे शरीर के कुछ महत्वपूणष अंग इसमें सुरक्षक्त रहते हैं। मेरुिं ड यह अनेक छोटी-छोटी अक्टथयों से बना है , क्जसे कशेरुका कहते हैं। मेरुदं ड 33 कशेरुकाओं का बना होता है । पसिी-वपंजर भी वक् क्ेि की इन अक्टथयों से जुड़ा है । खोपडी अनेक अक्टथयों के एक-दस ू रे से जुड़ने से बनी है यह हमारे शरीर के अनत महत्वपूणष अंग, मस्टिष्क को पररबद्ध करके उसकी सुरक्ा करती है । कंकाि के कुछ अनतररखत अंग भी हैं जो हड्डडय क्जतने कठोर नहीं होते हैं और क्जन्हें मोड़ा जा सकत है , उन्हें उपास्टथ कहते हैं। कान के ऊपरी भाग में उपास्टथ होती है अक्टथ को गनत प्रदान करने में दो पेलशयाँ संयख ु त रूप से कायष करती है अपनी ऊपरी भुजा में कुछ पररवतषन अनुभव करते हैं दस ू रे हाथ से इसे छूकर दे णिए। खया आपको कोई उभरा हुआ भाग हदिाई दे ता है इसे पेशी कहते हैं। संकुधचत (िंबाई में कमी) - होने के कारण पेलशयों उभर आती हैं। संकुचन की अवटथा में पेशी छोटी, कठोर एवं मोटी हो जाती है । यह अक्टथ को िींचती है । जन्िओ ु ं की चाि केंचआ ु केंचुए का शरीर एक लसरे को दस ू रे से सटाकर रिे गए अनेक छल्िों से बना प्रतीत होता है । केंचुए के शरीर में अस्टथयाँ नहीं होती परं तु इसमें पेलशयाँ होती हैं जो इसके शरीर के घटने और बढने में सहायता करती हैं। इसके शरीर में धचकने पदाथष होते हैं जो इसे चिने में सहायता करते हैं। इसके शरीर में छोटे -छोटे अनेक शक ू (बाि जैसी आकृनत) होते हैं। ये शक ू पेलशयों से जड़ ु े होते हैं। ये शूक लमट्टी में उसकी पकड को मजबूत बनाते हैं। केंचुआ वाटतव में अपने राटते में आने वािी लमट्टी को िाता है । उसका शरीर अनपचे पदाथष को बाहर ननकाि दे ता है । केंचुए द्वारा ककया गया यह कायष लमट्टी को उपजाऊ बना दे ता है क्जससे पौधों को फायदा होता है । घोंगा इसकी पीठ पर गोि संरचना होती है इसे कर्च कहते हैं और यह घोंघे का र्बाह्य-कंकाि है । परं तु यह अक्टथयों का बना नहीं होता। यह कवच एकि एकक होता है और यह घोंघे को चिने में कोई सहायता नहीं करता। यह घोंघे के साथ णखंचिा जाता है । नििचट्टा नििचट्टा जमीन पर चिता है , दीवार पर चढता है और वायु में उडिा भी है । इनमें तीन जोड़ी पैर होते हैं जो चिने में सहायता करते हैं। इसका शरीर कठोर बाह्य-कंकाि द्वारा ढका होता है । यह बाह्य-कंकाि ववलभन्न एककों की परटपर संधियों द्वारा बनता है क्जसके कारण गनत संभव हो पाती है । वक् से दो जोड़े पंख भी जुड़े होते हैं। अगिे पैर संकरे और वपछिे पैर चौड़े एवं बहुत पतिे होते हैं। नतिचट्टे में ववलशष्ट पेलशयाँ होती हैं। पैर की पेलशयााँ उन्हें चिने में सहायता करती हैं। वक् की पेलशयााँ नििचट्टे के उड़ने के समय उसके परों को गनि दे ती हैं। पक्षी र्बिख तथा हं स जैसे कुछ पक्ी जि में िैरिे भी हैं और उड़ते भी है । पक्ी इसीलिए उड़ पाते हैं खयोंकक उनका शरीर उड़ने के लिए अनक ु ू लिि होता है । उनकी अक्टथयों में र्ायु प्रकोष्ठ होते हैं क्जनके कारण उनकी अक्टथयााँ हल्की परं तु मजबूत होती हैं। पश्च पाद (पैरों) की अक्टथयााँ चिने एवं बैठने के लिए अनुकूलित होती हैं। अग्र पाि की अक्टथयााँ रूपांतररत होकर पक्ी के पंि बनाती हैं। कंधे की अक्टथयााँ मजबूत होती हैं। वक् की अक्टथयााँ उड़ने वािी पेलशयों को जकड़े रिने के लिए ववशेर् रूप से रूपांिररि होती हैं तथा पंिों को ऊपर-नीचे करने में सहायक होती हैं मछिी नाव की आकृनत का़िी सीमा तक मछिी जैसी है मछिी का लसर एवं पाँछ ू उसके मध्य भाग की अपेक्ा पििा एवं नुकीिा होता है । शरीर की ऐसी आकृनत धारा रे खीय कहिाती है । मछिी का कंकाि दृढ़ पेलशयों से ढका रहता है । मछिी के शरीर पर और भी पंि होते हैं जो तैरते समय जि में संतुिन बनाए रिने एवं दिशा ननधाषरण में सहायता करते हैं। गोिाखोर अपने पैरों में इन पिों की तरह के ववशेर् अररि (flipper) पहनते हैं जो उन्हें जि में िैरने में सहायता करते हैं सपव सपष का मेरुिं ड िंबा होता है । शरीर की पेलशयाँ क्ीण एवं असंख्य होती हैं। वे परटपर जुड़ी होती हैं चाहे वे दरू ही खयों न हों। पेलशयााँ मेरुदं ड, पसलियों एवं त्वचा को भी एक-दस ू रे से जोड़ती हैं। सपष का शरीर अनेक र्िय में मुड़ा होता है । इसी प्रकार सपष का प्रत्येक विय उसे आगे की ओर िकेििा है । इसका शरीर अनेक विय बनाता है और प्रत्येक विय आगे को धखका दे ता है , इस कारण सपष बहुत तेज गनत से आगे की ओर चिता है परं तु सरि रे खा में नहीं चिता। आर्ास एर् अनुकूिन समुद् में जंतु तथा पौधे िर्णीय जि (िारे पानी) में रहते हैं तथा श्वसन के लिए जि में त्तर्िेय वायु ऑखसीजन) का उपयोग करते हैं। ऊाँट की शारीररक संरचना उसे मरुटथिीय पररक्टथनतयों में रहने योग्नय बनाती है । ऊाँट के पैर िंबे होते हैं क्जससे उसका शरीर रे त की गरमी से दरू रहता है । उनमें मूत्रोत्सजवन की मािा बहुत कम होती है तथा मि शुष्क होता है । उन्हें पसीना भी नहीं आता खयोंकक शरीर से जि का हास बहुत कम होता है । इसलिए जि के त्रबना भी वे अनेक हदनों तक रह सकते हैं। मछलियों का शरीर धचकने शल्कों से ढका होता है । ये शल्क मछिी को सरु क्ा तो प्रदान करते ही हैं साथ ही उन्हें जि में सुगम गनत करने में भी सहायक हैं। मछिी के धगि (खिोम) होते हैं जो उसे जि में श्र्ास िेने में सहायता करते हैं। क्जन ववलशष्ट संरचनाओं अथवा टवभाव की उपस्टथनि ककसी पौधे अथवा जंतु को उसके पररवेश में रहने के योग्नय बनाती है , अनुकूिन कहते हैं। ककसी सजीर् का वह टथान क्जसमें वह रहता है , उसका आर्ास कहिाता है । अपने भोजन, वाय,ु शरण टथि एवं अन्य आवश्यकताओं के लिए जीर् अपने आवास पर ननभषर रहता है । टथि (जमीन) पर पाए जाने वािे पौधों एवं जंतओ ु ं के आवास को टथिीय आवास कहते हैं। वन, घास के मैदान, मरुटथि, तटीय एवं पवषतीय क्ेि टथिीय आवास के कुछ उदाहरण हैं। जिाशय, दिदि, झीि, नहदयााँ एवं समुद्, जहााँ पौधे एवं जंतु जि में रहते हैं, जिीय आर्ास हैं। ककसी आवास में पाए जाने वािे सभी जीव जैसे कक पौधे एवं जंतु उसके जैर् घटक हैं। चट्टान, लमट्टी, वायु एवं जि जैसी अनेक ननजीर् वटतुएाँ आवास के अजैर् घटक हैं। सूयष का प्रकाश एवं ऊष्मा भी पररवेश के अजैव घटक हैं। सजीव बहुत ठं डे और बहुत ऊष्ण पररर्ेश में भी पाए जाते हैं। वे जीव ही जीत्तर्ि रहते हैं जो अपने आपको बदिते पररवेश के अनुसार अनुकूलिि कर िेते हैं। कुछ टथिीय आर्ास मरुटथि मरुटथि में रहने वािे चूहे एवं सााँप के, ऊाँट की भााँनत िंर्बे पैर नहीं होते। हदन की तेज गरमी से बचने के लिए वे भलू म के अंदर गहरे त्रबिों में रहते हैं। राबत्र के समय जब तापमान में कमी आती है , तो ये जंतु बाहर ननकिते हैं। मरुटथिीय पौधे र्ाष्पोत्सजवन द्वारा जि की मरुटथिीय पौिे बहुत कम मािा ननष्कालसत करते हैं। मरुटथिीय पौधों में पवत्तयााँ या तो अनुपक्टथत होती हैं अथवा बहुत छोटी होती हैं। कुछ पौधों में पवत्तयााँ काँटों (शूि) का रूप िे िेती हैं। इन पौधों में प्रकाश-संश्िेषण सामान्यतः तने में होता है । तना एक मोटी मोमी परत से ढका होता है , क्जससे पौधों को जि-संरक्षण में सहायता लमिती है । अधधकतर मरुटथिीय पौधों की जड़ें जि अवशोर्ण के लिए लमट्टी में र्बहुि गहराई तक चिी जाती हैं। पर्विीय क्षेत्र पर्विीय क्ेि में पाए जाने वािे जंिु भी वहााँ की पररक्टथनतयों के प्रनत अनुकूलित होते हैं शरीर को गरम रिने के लिए याक का शरीर िंबे बािों से ढका होता है । पहाड़ी तेंदए ु के शरीर पर फर होते हैं। यह बफष पर चिते समय उसके पैरों को ठं ड से बचाता है । पहाड़ी बकरी के मजबूत खुर उसे ढािदार चट्टानों पर दौड़ने के लिए अनुकूलित बनाते हैं। कुछ जिीय आर्ास समुद्ी बहुत से समुद्ी जंतुओं का शरीर भी िारा-रे खीय होता है क्जससे वह जि में सुगमिा से चि सकते हैं। क्टखवड एवं ऑक्ट्टोपस जैसे कुछ समद् ु ी जंतओ ु ं का शरीर आमतौर पर धारा-रे िीय नहीं होता। डॉिकफन एवं ह्वेि जैसे कुछ जंतुओं में धगि नहीं होते। ये लसर पर क्टथत नासाद्वार अथवा र्ाि-नछद्ों द्वारा श्वास िेते हैं। ये जि में िंबे समय तक त्रबना श्वास लिए रह सकते हैं। मि ृ ा मिृ ा अनेक परतों की बनी होती है । मदृ ा में उपक्टथत सडे- गिे जैर् पदाथष ह्यूमस कहिाते हैं। पवन, जि और जिवायु की कक्रया से शैिों (चट्टानों) के टूटने पर मद ृ ा का ननमाषण होता है । यह प्रक्रम अपक्षय कहिाता है । मि ृ ा पररच्छे दिका मदृ ा की ववलभन्न परतों से गुजरती हुई ऊर्धर्ावकाट मदृ ा पररच्छे दिका कहिाती है । प्रत्येक परत टपशव (गठन), रं ग, गहराई और रासायननक संघटन में लभन्न होती है । ये परतें संटिर- स्टथनियाँ कहिाती हैं मदृ ा पररच्छे हदका को कँु ए की िुदाई करते समय अथवा ककसी इमारत की नींव िोदते समय भी दे िा जा सकता है । इसे पहाड़ों पर, सड़कों के ककनारे अथवा नहदयों के िड़े ककनारों पर भी दे िा जा सकता है । सबसे ऊपर वािी संटिर-स्टथनि सामान्यतः गहरे रं ग की होती है , खयोंकक यह ह्यूमस और खननजों समद् ृ ध होती है । ह्यूमस, मद ृ ा को उर्वर बनाता है और पादपों को पोर्ण प्रदान करता है । यह परत सामान्यतः मद ृ ,ु सरं ध्र और अधिक जि को धारण करने वािी होती है । इसे शीर्षमद ृ ा अथवा A -संटिर-स्टथनि कहते हैं। छोटे पादपों की जड़ें पूरी तरह से शीषवमिृ ा में ही रहती हैं। शीर्षमदृ ा से नीचे की परत में ह्यूमस कम होती है , िेककन िननज अधधक होते हैं। यह परत सामान्यतः अधधक कठोर और अधधक संहि (घनी) होती है और B-संटतर-क्टथनत या मर्धयपरि कहिाती है । तीसरी परत C-संटिर-स्टथनि कहिाती है , जो दरारों और ववदरोंयुखत शैिों के छोटे ढे िों की बनी होती है । इस परत के नीचे आधार शैि होता है , जो कठोर होता है और इसे फार्डे से िोदना कहठन होता है । मि ृ ा के प्रकार शैि कणों और ह्यूमस का लमश्ण, मुदा कहिाता है । यहद मदृ ा में बड़े कणों का अनुपात अधधक होता है , तो वह र्बिुई मि ृ ा कहिाती है । यहद बारीक (सूक्ष्म) कणों का अनप ु ात अपेक्षाकृि अधधक होता है , तो यह मण्ृ मय मि ृ ा कहिाती है । यहद बड़े और छोटे कणों की मािा िगभग समान होती है , तो यह िम ु टी मि ृ ा कहिाती है । बािू के कण अपेक्षाकृि बड़े होते हैं। ये आसानी से एक-दस ू रे से जड़ ु नहीं पाते, अतः इनके बीच में काफी ररखत टथान होते हैं। ये टथान र्ायु से भरे रहते हैं। बिुई मदृ ा हल्की, सुर्ानिि और शुष्क होती है । मवृ त्तका (धचकनी लमट्टी) के कण सूक्ष्म (बहुत छोटे ) होने के कारण परटपर जुड़े रहते हैं और उनके बीच ररखत टथान बहुत कम होता है । धचकनी लमट्टी में वायु कम होती है , िेककन यह भारी होती है , खयोंकक इसमें र्बिुई मिृ ा की अपेक्ा अधधक जि रहता है । पािपों को उगाने के लिए सबसे अच्छी शीषवमिृ ा िम ु ट है । दम ु टी मद ृ ा, बाि,ू धचकनी लमट्टी और गाि नामक अन्य प्रकार के मद ृ ा कणों का लमश्रण होती है । मि ृ ा और फसिें पवन, वर्ाष, ताप, प्रकाश और आद्व िा द्र्ारा मदृ ा । प्रभाववत होती है । ये कुछ प्रमुि जिर्ायर्ी (जिवायु संबंधी) कारक हैं, जो मद ृ ा पररच्छे हदका को प्रभाववत करते हैं और मि ृ ा संरचना में पररवतषन िाते हैं। मण्ृ मय और दम ु टी मद ृ ा दोनों ही गेहूँ और चने जैसी ़िसिों की िेती के लिए उपयुखत होती हैं। ऐसी मद ृ ा की जि धारण क्मता अच्छी होती है । धान के लिए, मत्तृ िका एर्ं जैर् पदाथष से समद् ृ ध तथा अच्छी जि धारण क्मता वािी मद ृ ा आदशष होती हैं। मसरू और अन्य दािों के लिए दम ु टी मद ृ ा की आवश्यकता होती है , क्जनमें से जि की ननकासी आसानी से हो जाती है । गेहूाँ जैसी ़िसिें महीन मण्ृ मय मिृ ा में उगाई जाती हैं, खयोंकक वह ह्यूमस से समद्ृ ध और अत्यधधक उर्वर होती है । जीर्ों में श्र्सन कोलशका में भोजन के त्तर्खंडन के प्रक्रम में ऊजाष मुखत होती है । इसे कोलशकीय श्र्सन कहते हैं। सभी जीवों की कोलशकाओं में कोलशकीय श्वसन होता है । कोलशका के अंदर, भोजन (ग्निक ू ोस) ऑखसीजन का उपयोग करके काबषन डाइऑखसाइड और जि में वविंडडत हो जाता है । जब ग्निूकोस का वविंडन ऑखसीजन के उपयोग द्वारा होता है , तो यह र्ायर्ीय श्र्सन कहिाता है । ऑखसीजन की अनुपक्टथनत में भी भोजन वविंडडत हो सकता है । यह प्रक्रम अर्ायर्ीय श्र्सन कहिाता है । भोजन के वविंडन से ऊजाष ननमख ुष त होती है । यीटट जैसे अनेक जीव, वायु की अनप ु क्टथनत में जीववत रह सकते हैं। ऐसे जीव अर्ायर्ीय श्र्सन के द्वारा ऊजाष प्राप्त करते हैं। इन्हें अवायवीय जीव कहते हैं। यीटट एक-कोलशक जीव है । यीटट अवायवीय रूप से श्वसन करते हैं और इस प्रकक्रया के समय ऐल्कोहॉि ननलमवि करते हैं। अत: इनका उपयोग शराब (वाइन) और त्रबयर बनाने के लिए ककया जाता है । हमारी पेशी-कोलशकाएँ भी अवायवीय रूप से श्वसन कर सकती हैं, िेककन ये ऐसा थोड़े समय तक ही कर सकती हैं। वाटतव में, यह प्रक्रम उस समय होता है , जब ऑक्ट्सीजन की अटथायी रूप से कमी हो जाती है । ऐसी क्टथनतयों में पेशी कोलशकाएाँ अवायवीय श्वसन द्वारा ऊजाव की अनतररखत मााँग को पूरा करती हैं जब पेलशयााँ अर्ायर्ीय रूप से श्वसन करती हैं। इस प्रक्रम में ग्निूकोस के आंलशक वविंडन से िैस्क्ट्टक अम्पि और काबषन डाइऑखसाइड बनते हैं। िैक्खटक अमि का संचयन पेलशयों में ऐंठन उत्पन्न करता है । श्र्सन श्वसन या सााँस िेने का अथष है ऑक्ट्सीजन से समद् ृ ध वायु को अंदर खींचना या ग्रहण करना और काबषन डाइऑखसाइड से समद् ृ ध वायु को बाहर ननकािना। ऑखसीजन से समद् ृ ध वायु को शरीर के अंदर िेना अंतःश्वसन और काबषन डाइऑखसाइड से समद् ृ ध वायु को बाहर ननकािना उच्छर्सन कहिािा है । कोई व्यक्खत एक लमनट में क्जतनी बार श्वसन करता है , वह उसकी श्र्सन िर कहिाती है । कोई वयटक व्यक्खत त्तर्श्ाम की अर्टथा में एक लमनट में औसतन 15-18 बार सााँस अंदर िेता और बाहर ननकािता है । अधधक व्यायाम करने में श्वसन दर 25 बार प्रनत लमनट तक बढ सकती है । जब हम व्यायाम | करते हैं, तो हम न केवि तेजी से सााँस िेते हैं, बक्ल्क हम गहरी सााँस भी िेते हैं और इस प्रकार अधधक ऑक्ट्सीजन ग्रहण करते हैं। श्वलसत और उच््वलसत वायु में ऑखसीजन और काबषन डाइऑखसाइड का प्रनतशत श्वलसत वायु - 21% ऑखसीजन , 0.04% काबषन डाइऑखसाइड उच््वलसत वायु - 16.4% ऑखसीजन , 4.4% काबषन डाइऑखसाइड पािप में जनन सभी जीव अपने समान जीवों का जनन करते हैं। माता-वपता से संिनि का जन्म जनन कहिाता है । जनन की त्तर्धियाँ अधधकांश पािपों में मि ू , तना और पवत्तयााँ होती हैं। ये पादप के कानयक अंग कहिाते हैं। पुष्प पािप में जनन का कायष करते हैं। वाटतव में , पुष्प पादप के जनन अंग होते हैं। ककसी पुष्प में केवि नर जनन अंग अथवा मादा जनन अंग या कफर दोनों ही जनन अंग हो सकते हैं। अिैंधगक जनन अिैंधगक जनन में नए पादप र्बीजों अथवा र्बीजाणुओं के उपयोग के त्रबना ही उगाए जाते हैं। वो अिैंधगक जनन, क्जसमें पादप के मि ू , तने, पत्ती, अथवा किी (मुकुि) जैसे ककसी कानयक अंग द्वारा नया पादप प्राप्त ककया जाता है । चाँकू क जनन पादप के कानयक भागों से होता है , इसे कानयक प्रर्िवन कहते हैं। कुछ पादपों की जडें (मि ू ) भी नए पादपों को जन्म दे सकती हैं। उदाहरण के लिए, शकरकंि और डालिया (डहे लिया)। कैक्ट्टस जैसे पादप के वे भाग, जो मुख्य पादप से अिग (वविग्नन) हो जाते हैं, नए पादप को जन्म दे ते हैं। प्रत्येक वविग्नन भाग नए पादप के रूप में र्द् ृ धि कर सकता है । िैंधगक जनन द्वारा उत्पन्न होने वािे पादप में मािा-त्तपिा (जनक) दोनों के गण ु होते हैं। िैंधगक जनन के पररणामटवरूप पादप बीज उत्पन्न करते हैं। मक ु ु िन यीटट क्जसे केवि सक्ष् ू मिशी द्वारा ही दे िा जा सकता है । इनके लिए यहद पयाषप्त पोर्ण उपिब्ध हो, तो यीटट कुछ ही घंटों में वद् ृ धध करके गुणन (अथाषत ् जनन) करने िगते हैं। याद रणिए कक यीटट एक एकि कोलशका (एककोलशक) जीव है । यीटट में मुकुि द्र्ारा जनन यीटट कोलशका से बाहर ननकिने वािा छोटे बल्ब जैसा प्रर्िव मुकुि या किी कहिाता है । मुकुि क्रमशः वद् ृ धध करता है और जनक कोलशका से वविग होकर नई यीटट कोलशका बनाता है । नई यीटट कोलशका ववकलसत होकर पररपक्ट्र् हो जाती है और कफर नई यीटट कोलशकाएाँ बनाती है । कभी-कभी नवीन मक ु ु ि से नए मक ु ु ि ववकलसत हो जाते हैं क्जससे एक मुकुि श्रंि ृ िा बन जाती है । यहद यह प्रक्रम चिता रहे , तो कुछ ही समय में बहुत अधधक संख्या में यीटट कोलशकाएँ बन जाती हैं। खंडन आपने तािाबों अथवा ठहरे हुए पानी के अन्य जिाशयों में हरे रं ग के अवपंकी गच्ु छे (कफसिनदार) तैरते हुए दे िे होंगे। ये शैर्ाि हैं। जब जि और पोर्क ित्त्र् उपिब्ध होते हैं, तो शैवाि वद् ृ धध करते हैं और तेजी से िंडन द्वारा गुणन करते हैं। शैवाि दो या अधधक िंडों में त्तर्खंडडि हो जाते हैं। ये खंड अथवा टुकड़े नए जीवों में वद् ृ धध कर जाते हैं। यह प्रक्रम ननरं िर चिता रहता है और कुछ ही समय में शैवाि एक बड़े क्ेि में फैि जाते हैं। र्बीजाणु ननमावण डर्बिरोटी में, वायु में उपक्टथत बीजाणुओं से कर्क उग जाते हैं। डबिरोटी पर रुई के जाि में बीजाणओ ु ं को दे णिए। जब बीजाणु ननमख ुष त होते हैं, तो ये र्ायु में तैरते रहते हैं। चाँकू क ये बहुत हल्के होते हैं, इसलिए ये िंबी दरू ी तक जा सकते हैं। बीजाणु अिैंधगक जनन ही करते हैं। प्रत्येक बीजाणु उच्च ताप और ननमन आद्षता जैसी प्रनतकूि पररक्टथनतयों को झेिने के लिए एक कठोर सुरक्ात्मक आर्रण से ढका रहता है , इसलिए ये िंबे समय तक जीववत रह सकते हैं। अनुकूि पररक्टथनतयों में बीजाणु अंकुररत हो जाते हैं और नए जीव में त्तर्कलसि हो जाते हैं। िैंधगक जनन पुष्प पािप के जनन अंग होते हैं। पंकेसर नर जनन अंग और टत्रीकेसर मादा जनन अंग हैं। ऐसे पुष्प, क्जनमें या तो केवि पुंकेसर अथवा केवि टिीकेसर उपक्टथत होते हैं, एकलिंगी पष्ु प कहिाते हैं। क्जन पुष्पों में पंुकेसर और टिीकेसर दोनों ही होते हैं, वे द्त्तर्लिंगी पष्ु प कहिाते हैं। मखका, पपीता और ककड़ी या िीरे के पौधे में एकलिंगी पुष्प होते हैं, जबकक सरसों, गुिाब और वपटूननया के पौधो