भारत एवं विश्व (एमपीएसई-001) अध्यापक जांच सत्रीय कार्य PDF
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2024
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यह दस्तावेज़ एक सत्रीय कार्य पत्र है जो भारत और विश्व की राजनीति और विदेश नीति से संबंधित विभिन्न विषयों पर आधारित है। इसमें विभिन्न अभिकरणों की भूमिका, भारत-चीन संबंध, पड़ोसी प्रथम नीति, और अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर सवाल दिए गए हैं।
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# भारत एवं विश्व (एमपीएसई-001) ## अध्यापक जांच सत्रीय कार्य **सत्रीय कार्य कोड:** एएसएसटी/एमपीएसई-001 / 2024-2025 **पूर्णांक:** 100 इनमें से किन्हीं पांच प्रश्नों के उत्तर दीजिए, प्रत्येक भाग से कम से कम दो प्रश्नों का चयन आवश्यक है। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 500 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्...
# भारत एवं विश्व (एमपीएसई-001) ## अध्यापक जांच सत्रीय कार्य **सत्रीय कार्य कोड:** एएसएसटी/एमपीएसई-001 / 2024-2025 **पूर्णांक:** 100 इनमें से किन्हीं पांच प्रश्नों के उत्तर दीजिए, प्रत्येक भाग से कम से कम दो प्रश्नों का चयन आवश्यक है। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 500 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न 20 अंकों का है। ## भाग - 1 1. उन विभिन्न अभिकरणों (Agencies) की भूमिका की व्याख्या कीजिए जो भारत की विदेश नीति का निर्माण करती हैं। 2. भारत – चीन के मध्य संबंधों के मुख्य मुद्दे क्या हैं। व्याख्या कीजिए। 3. भारत की पड़ोसी प्रथम नीति क्या है? इसकी सफलता और असफलता की व्याख्या कीजिए। 4. भारत की विदेश नीति में इसके आरम्भ से काफी परिवर्तन आया है। पिछले दस वर्षों में हुए मुख्य परिवर्तनों की पहचान कीजिए। 5. 'नेहरूवादी आम सहमति' से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिए। ## भाग 2 प्रश्न के प्रत्येक भाग पर लगभग 250 शब्दों में टिप्पणी कीजिए: 6. क) भारतीय विदेश नीति की संघीय विशिष्टतायें ख) भारत की 'सागर' (SAGAR) नीति 7. क) सार्क (SAARC) ख) बिम्सटेक (BIMSTEC) 8. क) गुजराल सिद्धान्त ख) नदी जल विवाद 9. क) भारत की परमाणु नीति ख) दक्षिण एशिया में हथियारों की होड़ 10. क) भारत - पाकिस्तान संबंध ख) भारत - नेपाल संबंध # भारत एवं विश्व (एमपीएसई-001) ## सत्रीय कार्य कोड: एएसएसटी/एमपीएसई-001/2024-2025 ## पूर्णांक: 100 **अस्वीकरण/विशेष नोट:** ये सत्रीय कार्य में दिए गए कुछ प्रश्नों के उत्तर समाधान के नमूने मात्र हैं। ये नमूना उत्तरऽ/समाधान निजी शिक्षक/शिक्षक/लेखकों द्वारा छात्र की सहायता और मार्गदर्शन के लिए तैयार किए जाते हैं ताकि यह पता चल सके कि वह दिए गए प्रश्नों का उत्तर कैसे दे सकता है। हम इन नमूना उत्तरों की 100% सटीकता का दावा नहीं करते हैं क्योंकि ये निजी शिक्षक/शिक्षक के ज्ञान और क्षमता पर आधारित हैं। सत्रीय कार्य में दिए गए प्रश्नों के उत्तर तैयार करने के संदर्भ के लिए नमूना उत्तरों को मार्गदर्शक/सहायता के रूप में देखा जा सकता है। चूंकि ये समाधान और उत्तर निजी शिक्षक/शिक्षक द्वारा तैयार किए जाते हैं, इसलिए त्रुटि या गलती की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। किसी भी चूक या त्रुटि के लिए बहुत खेद है, हालांकि इन नमूना उत्तरों/ समाधानों को तैयार करते समय हर सावधानी बरती गई है। किसी विशेष उत्तर को तैयार करने से पहले और अप-टू-डेट और सटीक जानकारी, डेटा और समाधान के लिए कृपया अपने स्वयं के शिक्षक/शिक्षक से परामर्श लें। छात्र को विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान की गई आधिकारिक अध्ययन सामग्री को पढ़ना और देखना चाहिए | इनमें से किन्हीं पांच प्रश्नों के उत्तर दीजिए, प्रत्येक भाग से कम से कम दो प्रश्नों का चयन आवश्यक है। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 500 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न 20 अंकों का है। ## भाग - । ### 1. उन विभिन्न अभिकरणों (Agencies) की भूमिका की व्याख्या कीजिए जो भारत की विदेश नीति का निर्माण करती हैं। भारत की विदेश नीति के निर्माण में विभिन्न अभिकरणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह भूमिका केवल सरकारी संस्थानों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें अनेक अन्य राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कारक भी शामिल होते हैं। यहां भारत की विदेश नीति में योगदान देने वाले प्रमुख अभिकरणों की व्याख्या की गई है: 1. **प्रधानमंत्रालय और प्रधानमंत्री** प्रधानमंत्री भारत की विदेश नीति के प्रमुख हैं और यह उनकी नेतृत्वकारी भूमिका का हिस्सा है। वे न केवल नीति की दिशा तय करते हैं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर देश की स्थिति को भी सशक्त करते हैं। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल विदेश यात्रा करते हैं, द्विपक्षीय वार्ताओं में भाग लेते हैं, और वैश्विक मुद्दों पर भारत की स्थिति को स्पष्ट करते हैं। 2. **विदेश मंत्रालय** विदेश मंत्रालय (Ministry of External Affairs - MEA) भारत की विदेश नीति को आकार देने और लागू करने में केंद्रीय भूमिका निभाता है। यह मंत्रालय विदेश नीति की तैयारियों से लेकर उसकी कार्यान्वयन तक के सभी पहलुओं पर निगरानी रखता है। विदेश मंत्रालय के अंतर्गत विभिन्न विभाग होते हैं जैसे राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, और संसदीय मामलों के विभाग, जो विभिन्न मुद्दों पर विशेषज्ञता प्रदान करते हैं। 3. **राष्ट्रपति** राष्ट्रपति का कार्य मुख्यतः संविधानिक और औपचारिक होता है, लेकिन विदेशी राजनयिक संबंधों में राष्ट्रपति की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है। राष्ट्रपति विदेशी नेताओं से मिलते हैं, राजदूतों को नियुक्त करते हैं, और महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संधियों और समझौतों पर हस्ताक्षर करते हैं। 4. **भारतीय संसद** भारतीय संसद का दोनों सदन, लोकसभा और राज्यसभा, विदेश नीति पर विचार-विमर्श और बहस करते हैं। संसद विदेश नीति से संबंधित विधेयकों और प्रस्तावों पर चर्चा करती है और उन्हें मंजूरी देती है। यह सुनिश्चित करती है कि सरकार की विदेश नीति जनहित में हो और लोकतांत्रिक मानकों पर खरी उतरे। 5. **राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC)** राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद एक प्रमुख संस्थान है जो भारत की सुरक्षा नीति और विदेश नीति पर विचार करता है। इसमें प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री, और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शामिल होते हैं। NSC की भूमिका सुरक्षा और विदेशी रणनीतिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना है। 6. **रक्षा मंत्रालय** रक्षा मंत्रालय की भूमिका विदेश नीति में सैन्य दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होती है। यह मंत्रालय अंतर्राष्ट्रीय सैन्य सहयोग, रक्षा समझौतों, और सुरक्षा मुद्दों पर काम करता है। रक्षा मंत्रालय के तहत भारतीय सशस्त्र बल विभिन्न देशों के साथ सैन्य अभ्यास और सहयोग कार्यक्रम आयोजित करते हैं, जो विदेश नीति के प्रमुख हिस्से होते हैं। 7. **सांस्कृतिक और आर्थिक एजेंसियां** सांस्कृतिक और आर्थिक एजेंसियां जैसे भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) और भारत व्यापार संवर्धन संगठन (Export Promotion Councils) भारत की विदेश नीति को सांस्कृतिक और व्यापारिक दृष्टिकोण से समर्थन प्रदान करती हैं। सांस्कृतिक आदान-प्रदान और व्यापारिक सहयोग भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि को सशक्त बनाने में सहायक होते हैं। 8. **मीडिया और थिंक टैंक्स** मीडिया और थिंक टैंक्स भी विदेश नीति के निर्माण में अप्रत्यक्ष रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मीडिया अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर जन जागरूकता फैलाने और सरकार की नीतियों की आलोचना करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। थिंक टैंक्स और अनुसंधान संस्थान नीति निर्माण प्रक्रिया में विशेषज्ञता और सुझाव प्रदान करते हैं। 9. **वाणिज्य मंत्रालय** वाणिज्य मंत्रालय विदेश व्यापार और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह मंत्रालय व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा देने, विदेशी निवेश को आकर्षित करने, और व्यापार नीतियों को तैयार करने में योगदान करता है। विदेशी व्यापार नीतियों का विदेश नीति पर सीधा प्रभाव होता है। 10. **निजी क्षेत्र और सिविल सोसाइटी** निजी क्षेत्र और सिविल सोसाइटी भी विदेश नीति पर प्रभाव डालते हैं। व्यापारिक संगठनों, उद्योगपतियों, और नागरिक समाज के संगठनों की आवश्यकताएं और प्राथमिकताएं सरकार की विदेश नीति को प्रभावित कर सकती हैं। ये संस्थान आर्थिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक मुद्दों पर सरकार के साथ सहयोग करते हैं। ### निष्कर्ष भारत की विदेश नीति का निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न अभिकरणों की भूमिका होती है। प्रधानमंत्री, विदेश मंत्रालय, राष्ट्रपति, संसद, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद, रक्षा मंत्रालय, सांस्कृतिक और आर्थिक एजेंसियां, मीडिया, थिंक टैंक्स, वाणिज्य मंत्रालय, और निजी क्षेत्र सभी मिलकर भारत की विदेश नीति को आकार देते हैं। इन सभी अभिकरणों के समन्वित प्रयासों से ही एक प्रभावी और सुसंगत विदेश नीति का निर्माण होता है, जो देश के राष्ट्रीय हितों की रक्षा करती है और वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को सशक्त करती है। ### 2. भारत - चीन के मध्य संबंधों के मुख्य मुद्दे क्या हैं। व्याख्या कीजिए। भारत और चीन के मध्य संबंधों में कई जटिल मुद्दे और गतिरोध शामिल हैं जो समय-समय पर दोनों देशों के बीच तनाव और असहमति का कारण बनते हैं। ये मुद्दे व्यापक हैं और इनमें ऐतिहासिक विवाद, सीमाविवाद, भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, और आर्थिक संबंध शामिल हैं। निम्नलिखित में, भारत और चीन के बीच संबंधों के मुख्य मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की गई है: 1. **सीमाविवाद** **अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश:** भारत और चीन के बीच सबसे प्रमुख मुद्दा सीमा विवाद है। विशेषकर अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश क्षेत्र में विवाद है। * **अक्साई चिन:** यह क्षेत्र जम्मू और कश्मीर के उत्तरी भाग में स्थित है और भारत इसे अपनी सीमा का हिस्सा मानता है। हालांकि, चीन ने 1962 में भारतीय क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और इसे 'जिंचांग' प्रांत का हिस्सा बना लिया। सीमा की इस स्थिति को लेकर भारत और चीन के बीच कई बार विवाद हो चुका है। * **अरुणाचल प्रदेश:** चीन अरुणाचल प्रदेश को 'दक्षिणी तिब्बत' मानता है, जबकि भारत इसे अपनी एकीकृत राज्य का हिस्सा मानता है। यह विवाद दोनों देशों के बीच तनाव का एक महत्वपूर्ण कारण है और कई बार सैन्य झड़पें भी हो चुकी हैं। **सीमा की अस्थिरता:** भारत और चीन की सीमा पर कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां सीमा की सटीक स्थिति स्पष्ट नहीं है। चीन और भारत के बीच भौगोलिक सीमा की परिभाषा में भिन्नता के कारण अक्सर झड़पें और टकराव होते रहते हैं। 2. **तिब्बत और धलाई क्षेत्र** **तिब्बत का मुद्दा:** चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया, जिसके बाद भारत ने तिब्बत को एक स्वतंत्र क्षेत्र मानते हुए तिब्बती शरणार्थियों को भारत में आश्रय दिया। यह मुद्दा चीन को निरंतर परेशान करता रहा है, और भारत के साथ संबंधों में खटास का कारण बनता है। **धलाई क्षेत्र:** धलाई क्षेत्र, जो भारतीय सीमा के पास स्थित है, भी विवाद का एक क्षेत्र है। यह क्षेत्र सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है और दोनों देशों के बीच तनाव का एक कारण है। 3. **आर्थिक और सामरिक प्रतिस्पर्धा:** चीन और भारत दोनों ही तेजी से विकसित हो रहे देशों में शामिल हैं और उनके बीच भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। * **अर्थशास्त्र:** चीन और भारत दोनों आर्थिक क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को बढ़ाने के प्रयास में हैं। चीन की "वन बेल्ट, वन रोड" (OBOR) पहल और भारत की "एक्ट ईस्ट" नीति के बीच प्रतिस्पर्धा भी देखी जाती है। * **सामरिक दृष्टिकोण:** दोनों देश अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने में लगे हैं। सीमा के पास सैन्य निर्माण और अभ्यास दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ाते हैं। 4. **सीमा पर बुनियादी ढाँचा और सैन्य गतिविधियाँ** **बुनियादी ढाँचा निर्माण:** भारत और चीन दोनों ही सीमा पर बुनियादी ढाँचा निर्माण में लगे हुए हैं, जो कि अक्सर दुसरे देश को उकसाने का कारण बनता है। चीन का सीमा पर सड़क निर्माण और भारत का बुनियादी ढाँचा विकास दोनों ही सीमा पर तनाव का एक कारण बनते हैं। **सैन्य गतिविधियाँ:** दोनों देशों के बीच सीमा पर सैन्य गतिविधियाँ और अभ्यास नियमित रूप से होते रहते हैं। यह गतिविधियाँ कभी-कभी सीमा पर तनाव को बढ़ा देती हैं और तनावपूर्ण परिस्थितियाँ उत्पन्न कर सकती हैं। 5. **अन्य मुद्दे** **जलवायु परिवर्तन और साझा संसाधन:** चीन और भारत के बीच जलवायु परिवर्तन और साझा जल संसाधनों पर भी मतभेद हैं। ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदियों के जल स्रोतों का उपयोग और संरक्षण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि ये दोनों देशों की प्रमुख नदियाँ हैं। **अंतरराष्ट्रीय मंच पर मतभेद:** भारत और चीन विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी अपने-अपने दृष्टिकोणों का अनुसरण करते हैं। संयुक्त राष्ट्र में सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की चाहत, वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर नीतियाँ, और अन्य वैश्विक मुद्दों पर उनके दृष्टिकोण अक्सर अलग होते हैं। ### निष्कर्ष भारत और चीन के बीच संबंधों में कई जटिल मुद्दे हैं, जिनमें सीमा विवाद, भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, सैन्य गतिविधियाँ, और साझा संसाधनों का प्रबंधन शामिल हैं। इन मुद्दों को हल करने के लिए दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग की आवश्यकता है। वर्तमान में, यह समझना आवश्यक है कि ये मुद्दे दोनों देशों के लिए रणनीतिक और स्थिरता से संबंधित हैं और उनका समाधान केवल व्यापक और समझौते पर आधारित दृष्टिकोण से ही संभव है। ### 3. भारत की पड़ोसी प्रथम नीति क्या है? इसकी सफलता और असफलता की व्याख्या कीजिए। #### भारत की पड़ोसी प्रथम नीति भारत की 'पड़ोसी प्रथम नीति' (Neighborhood First Policy) की शुरुआत 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में की गई। इस नीति का मुख्य उद्देश्य भारत के पड़ोसी देशों के साथ मित्रता और सहयोग को बढ़ावा देना है, ताकि क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को सुनिश्चित किया जा सके। इस नीति के अंतर्गत, भारत ने विशेष रूप से दक्षिण एशिया के देशों के साथ अपने रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने का प्रयास किया है। #### नीति का उद्देश्य और प्रमुख पहल 'पड़ोसी प्रथम नीति' के तहत भारत ने निम्नलिखित मुख्य उद्देश्यों को ध्यान में रखा: 1. **संबंधों को प्रगाढ़ बनाना:** भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को मजबूत करने के लिए विभिन्न उपाय किए, जैसे कि उच्च स्तरीय द्विपक्षीय वार्ताओं, आर्थिक सहयोग, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान की पहल। 2. **आर्थिक सहयोग और विकास:** भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए विभिन्न परियोजनाओं की शुरुआत की, जिनमें बुनियादी ढांचे के विकास, व्यापार और निवेश के अवसर शामिल हैं। 3. **क्षेत्रीय सुरक्षा:** भारत ने क्षेत्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करने का संकल्प लिया। इसके तहत, सीमा विवादों को सुलझाने और आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त प्रयास किए गए। 4. **मानवतावादी सहायता:** प्राकृतिक आपदाओं और संकट की स्थिति में भारत ने पड़ोसी देशों को मानवीय सहायता प्रदान की। #### नीति की सफलता 1. **उच्च स्तरीय संपर्क और संवाद:** 'पड़ोसी प्रथम नीति' के तहत, भारत ने कई बार अपने पड़ोसी देशों के नेताओं से उच्च स्तरीय मुलाकातें की। इन मुलाकातों ने द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने में मदद की और आपसी विश्वास को मजबूत किया। 2. **आर्थिक सहयोग में वृद्धि:** भारत ने पड़ोसी देशों के साथ आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ शुरू कीं। उदाहरण के लिए, बांग्लादेश के साथ व्यापारिक संबंधों में वृद्धि, नेपाल में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में सहयोग, और श्रीलंका में आर्थिक सहायता की गई। 3. **क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता:** भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवादों के समाधान के लिए प्रयास किए। इसके अलावा, भारत ने समुद्री सुरक्षा के मुद्दे पर भी पड़ोसी देशों के साथ सहयोग किया। 4. **मानवतावादी पहल:** भारत ने नेपाल में भूकंप राहत, मालदीव में तूफान राहत, और श्रीलंका में राहत कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन प्रयासों ने भारत की छवि को एक जिम्मेदार पड़ोसी के रूप में मजबूत किया। #### नीति की असफलताएँ 1. **चीन के साथ तनाव:** चीन के साथ सीमा विवादों और स्ट्रैटेजिक प्रतिस्पर्धा ने भारत की पड़ोसी प्रथम नीति को चुनौती दी। चीन ने भारत के पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंधों को बढ़ाया, जिससे भारत की क्षेत्रीय स्थिति प्रभावित हुई। 2. **पाकिस्तान के साथ रिश्तों में तनाव:** भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे और आतंकवाद के कारण संबंधों में तनाव रहा। पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय वार्ता और सहयोग के प्रयासों को जमीनी हकीकत के कारण असफलता का सामना करना पड़ा। 3. **नेपाल और श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता:** नेपाल और श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता के कारण भारत के साथ उनके रिश्तों में जटिलताएँ आईं। नेपाल में भारत के खिलाफ जनमत और श्रीलंका में चीन के प्रभाव ने भारत की नीति की प्रभावशीलता को चुनौती दी। 4. **बांग्लादेश के साथ विवाद:** बांग्लादेश के साथ भूमि सीमा समझौते के बावजूद, कुछ विवाद और समस्याएँ बनी रहीं, जिससे दोनों देशों के रिश्ते प्रभावित हुए। ### निष्कर्ष 'पड़ोसी प्रथम नीति' ने भारत के पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन इस नीति के कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ भी आई हैं। भारत को अपनी नीति को और प्रभावी बनाने के लिए इन चुनौतियों का समाधान करना होगा और साथ ही अपने पड़ोसी देशों के साथ सहयोग और संवाद को बढ़ावा देना होगा। यदि सही दिशा में प्रयास जारी रहे, तो भारत की 'पड़ोसी प्रथम नीति' क्षेत्रीय शांति और विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। ## भाग - 2 ### प्रश्न के प्रत्येक भाग पर लगभग 250 शब्दों में टिप्पणी कीजिए: #### 6. क) भारतीय विदेश नीति की संघीय विशिष्टतायें भारतीय विदेश नीति की संघीय विशिष्टताएँ कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर निर्भर करती हैं, जो भारतीय संघीय ढांचे और विभिन्न राज्यों की भूमिका को दर्शाती हैं। इन विशिष्टताओं को समझने के लिए, हमें पहले यह देखना होगा कि भारतीय संघीय प्रणाली विदेश नीति के निर्माण और कार्यान्वयन में कैसे प्रभावित होती है। 1. **संघीय संरचना का प्रभाव:** भारत एक संघीय गणराज्य है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारें अपनी-अपनी शक्तियों का प्रयोग करती हैं। भारतीय विदेश नीति पर केंद्र सरकार का प्रमुख नियंत्रण होता है, लेकिन संघीय ढांचे की विशेषताएँ इस नीति के क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। संविधान के अनुच्छेद 246 के अनुसार, विदेश नीति के विषय केंद्र के अधीन आते हैं। हालांकि, राज्यों को विदेश नीति के मामलों में सीधे भागीदारी का अधिकार नहीं होता, फिर भी राज्यों की भूमिका और उनके साथ के संबंध विदेश नीति पर प्रभाव डाल सकते हैं। 2. **राज्यों की भूमिका और प्रभाव:** राज्यों के पास कुछ अधिकार होते हैं जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, राज्य सरकारें अपनी स्थानीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के अनुसार कुछ अंतरराष्ट्रीय समझौतों में भाग ले सकती हैं या विदेशी निवेश को आकर्षित करने के प्रयास कर सकती हैं। ये गतिविधियाँ विदेशी नीति पर अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डाल सकती हैं, जैसे कि कर्नाटक में आईटी और बायोटेक्नोलॉजी के लिए विदेशी निवेश आकर्षित करना। 3. **संघीय नीति निर्माण में राज्य सरकारों की भूमिका:** भारतीय विदेश नीति को लागू करने में केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच तालमेल की आवश्यकता होती है। हालांकि विदेश नीति का निर्माण और प्रमुख निर्णय केंद्र सरकार द्वारा किए जाते हैं, लेकिन राज्यों की प्रतिक्रिया और उनके मुद्दे विदेश नीति पर विचार करते समय महत्वपूर्ण हो सकते हैं। केंद्रीय सरकार राज्य सरकारों से सलाह ले सकती है या उनके विचारों को ध्यान में रख सकती है, विशेष रूप से उन मुद्दों पर जो राज्यों के स्थानीय मुद्दों से जुड़े होते हैं। 4. **आर्थिक और वाणिज्यिक हित:** राज्यों के आर्थिक और वाणिज्यिक हित भी विदेश नीति को प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, राज्य सरकारें अपनी विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) और व्यापार नीति के माध्यम से विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर सकती हैं। ये राज्य स्तर पर किए गए प्रयास अंतरराष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक संबंधों में योगदान कर सकते हैं, जिससे केंद्रीय विदेश नीति को समर्थन मिल सकता है। 5. **संघीय प्रभाव और अंतरराष्ट्रीय संधियाँ:** केंद्रीय सरकार द्वारा की गई अंतरराष्ट्रीय संधियाँ और समझौते अक्सर राज्यों के क्षेत्रीय मुद्दों और हितों पर भी प्रभाव डालते हैं। राज्यों को इस प्रकार की संधियों से संबंधित जानकारी और सहभागिता की आवश्यकता हो सकती है। केंद्र सरकार राज्यों को इन समझौतों और संधियों के प्रभावों के बारे में अवगत करती है, कभी-कभी राज्यों के साथ परामर्श भी करती है। 6. **राजनीतिक परिदृश्य और संघीय संबंध:** राजनीतिक परिदृश्य भी संघीय विदेश नीति को प्रभावित कर सकता है। विभिन्न राज्यों में विभिन्न राजनीतिक दलों की सरकारें केंद्र सरकार की विदेश नीति को प्रभावित कर सकती हैं। राज्य सरकारों द्वारा उठाए गए मुद्दे और स्थानीय राजनीतिक दबाव केंद्र सरकार की विदेश नीति को बदल सकते हैं या उसमें संशोधन कर सकते हैं। ### निष्कर्ष: भारतीय विदेश नीति की संघीय विशिष्टताएँ इस बात को दर्शाती हैं कि कैसे एक संघीय प्रणाली के भीतर केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन बनाना आवश्यक होता है। जबकि विदेश नीति के प्रमुख निर्णय केंद्र सरकार द्वारा किए जाते हैं, राज्यों की भूमिका और उनके स्थानीय मुद्दे विदेश नीति पर अप्रत्यक्ष प्रभाव डाल सकते हैं। इस प्रकार, भारतीय संघीय संरचना विदेश नीति के निर्माण और कार्यान्वयन में एक महत्वपूर्ण कारक होती है, और इसके विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए नीति तैयार की जाती है। #### ख) भारत की 'सागर' (SAGAR) नीति भारत की 'सागर' (SAGAR) नीति, जिसका पूरा नाम 'Security and Growth for All in the Region' है, भारतीय विदेश नीति की एक महत्वपूर्ण पहल है। यह नीति दक्षिणी एशिया में भारत की रणनीतिक भूमिका और समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने के लिए विकसित की गई है। इसे 2015 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लॉन्च किया गया था। इस नीति का उद्देश्य भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच स्थिरता और सुरक्षा को बढ़ावा देना है, विशेषकर समुद्री क्षेत्र में। 1. **पृष्ठभूमि और उद्देश्य** 'सागर' नीति का उद्देश्य भारतीय समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा और दक्षिणी एशिया में सभी देशों के साथ सहयोग को बढ़ावा देना है। यह नीति समुद्री सुरक्षा, शांति और स्थिरता के साथ-साथ विकास के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। भारत ने इस नीति के माध्यम से अपने समुद्री पड़ोसी देशों के साथ सहयोग बढ़ाने और क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा में एक प्रमुख भूमिका निभाने का संकल्प लिया है। 2. **मुख्य तत्व और पहलू** * **समुद्री सुरक्षा:** 'सागर' नीति का एक प्रमुख तत्व समुद्री सुरक्षा है। इसमें भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल की क्षमताओं को बढ़ाने और समुद्री क्षेत्र में किसी भी प्रकार की अवैध गतिविधियों को रोकने के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। समुद्री सुरक्षा के लिए भारत ने विभिन्न देशों के साथ समन्वय बढ़ाया है और संयुक्त अभ्यास और संवाद की पहल की है। * **क्षेत्रीय सहयोग:** इस नीति के तहत भारत ने दक्षिणी एशिया के देशों के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया है। इसमें सहयोग के क्षेत्र में समुद्री विज्ञान, आपदा प्रबंधन, और समुद्री संसाधनों का सतत प्रबंधन शामिल है।  * **विकास और मानवीय सहायता:** ‘सागर' नीति के अंतर्गत भारत ने समुद्री आपदाओं और संकटों से प्रभावित देशों को मानवीय सहायता प्रदान करने का प्रयास किया है। भारत ने अपने समुद्री पड़ोसियों को आपदा प्रबंधन में सहायता प्रदान की है और राहत कार्यों में सहयोग किया है।  * **समुद्री सुरक्षा में सुधार:** भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल की क्षमता को बेहतर बनाने के लिए विभिन्न योजनाओं पर काम किया जा रहा है। इसमें आधुनिक उपकरणों और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके समुद्री निगरानी और सुरक्षा को मजबूत करना शामिल है। 3. **प्रभाव और परिणाम** 'सागर' नीति ने भारतीय विदेश नीति और समुद्री सुरक्षा में महत्वपूर्ण सुधार किए हैं। इससे भारत के समुद्री पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में सुधार हुआ है और क्षेत्रीय सहयोग बढ़ा है। इस नीति के प्रभावी कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप भारतीय समुद्री क्षेत्र में सुरक्षा की स्थिति में सुधार हुआ है और दक्षिणी एशिया के देशों के बीच समुद्री सुरक्षा पर बेहतर समझ बनी है। * **क्षेत्रीय स्थिरता:** इस नीति के माध्यम से भारतीय समुद्री क्षेत्र में स्थिरता और सुरक्षा बढ़ी है। विभिन्न देशों के साथ समन्वय और सहयोग से समुद्री अपराधों और आतंकवाद पर नियंत्रण पाने में मदद मिली है। * **आर्थिक विकास:** 'सागर' नीति ने समुद्री व्यापार और व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देने में भी मदद की है। इसके तहत विभिन्न देशों के साथ समुद्री संसाधनों के साझा उपयोग और विकास के लिए सहयोग बढ़ाया गया है । * **मानवीय सहायता:** भारत ने समुद्री आपदाओं और संकटों के दौरान मानवीय सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे प्रभावित देशों की मदद करने में भारत की छवि को सकारात्मक बढ़ावा मिला है। 4. **चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा** हालांकि 'सागर' नीति ने कई सकारात्मक परिणाम दिए हैं, लेकिन इसके सामने कुछ चुनौतियाँ भी हैं। इनमें समुद्री सुरक्षा में तकनीकी और मानव संसाधन की कमी, क्षेत्रीय राजनीतिक तनाव, और विभिन्न देशों के बीच समन्वय की कठिनाइयाँ शामिल हैं। भविष्य में, भारत को इन चुनौतियों का सामना करने के लिए अपनी समुद्री सुरक्षा क्षमताओं को और मजबूत करना होगा और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना होगा। इसके साथ ही, भारत को अपने समुद्री पड़ोसी देशों के साथ संचार और सहयोग के नए तरीके विकसित करने होंगे ताकि समुद्री सुरक्षा और विकास को सुनिश्चित किया जा सके। ### निष्कर्ष ‘सागर' नीति भारतीय समुद्री सुरक्षा और क्षेत्रीय सहयोग में एक महत्वपूर्ण पहल है। इसका उद्देश्य दक्षिणी एशिया में स्थिरता और सुरक्षा को बढ़ावा देना है, और यह भारत की समुद्री रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस नीति के प्रभावी कार्यान्वयन से भारतीय समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा में सुधार हुआ है और क्षेत्रीय सहयोग में वृद्धि हुई है। हालांकि, भविष्य में इस नीति की सफलता के लिए चुनौतियों का सामना करना और नए उपायों को अपनाना आवश्यक होगा। #### 7. क) सार्क (SAARC) दक्षिण एशिया की विविधता और जटिलताओं के बावजूद, इस क्षेत्र में आर्थिक और सामाजिक प्रगति के लिए एक सामूहिक प्रयास की आवश्यकता महसूस की गई । इस संदर्भ में, 1985 में स्थापित दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। SAARC का उद्देश्य दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग और एकता को बढ़ावा देना है। इसके सदस्य देश भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, मालदीव और अफगानिस्तान हैं। ### इतिहास और स्थापना SAARC की स्थापना 1985 में ढाका, बांग्लादेश में हुई थी। इसके संस्थापक सदस्य देशों में बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और मालदीव शामिल थे। अफगानिस्तान ने 2007 में सदस्यता ग्रहण की। इस संगठन की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य दक्षिण एशिया के देशों के बीच सहयोग को बढ़