Indian Geography Notes PDF
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This document provides notes on Indian geography, focusing on the diverse landforms of India, particularly the Himalayan region. It covers the different mountain ranges, their characteristics, and their role in shaping the Indian landscape. The material also explores the major plains and rivers of India.
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GEOGRAPHY www.khanglobalstudies.com भारत का भूगोल (Indian Geography) भारत के धरातल मेें अत्यधिक विविधता पायी जाती है कही ं पर पहाड़ पठार, नदी, गड्ढा तो कही ं पर सपाट मैदान और कही ं पर...
GEOGRAPHY www.khanglobalstudies.com भारत का भूगोल (Indian Geography) भारत के धरातल मेें अत्यधिक विविधता पायी जाती है कही ं पर पहाड़ पठार, नदी, गड्ढा तो कही ं पर सपाट मैदान और कही ं पर प्राचीन पठार है। भारत के सम्पूर््ण क्षेत्रफल का D 10.7% पर््वतीय भाग D 27.7% पठारी क्षेत्र D 10.6% पहाड़ियाँ D 43% मैदानी भाग भारत को निम्नलिखित 5 धरातलीय भागों मेें बाँटा गया है i. उत्तर का पर््वतीय क्षेत्र iii. प्रायद्वीपीय पठार v. भारतीय द्वीप ii. उत्तर भारत का विशाल मैदान iv. तटीय मैदान उत्तर का पर््वतीय क्षेत्र भारत मेें कई पर््वत श्रेणियाँ हैैं परन्तु उत्तर के पर््वतीय क्षेत्र की विशेषता अलग है। विस्तार: सिंधु नदी से शुरू होकर ब्रह्मपुत्र तक 2500 km लम्बी तथा 6000 मी. ऊंची एशिया महाद्वीप की 94 सबसे अधिक चोटियों मेें से 92 इसी पर््वत माला पर हैैं। पर््वतमाला का विस्तार 5 लाख वर््ग किमी- तक है। हिमालय पर््वत क्षेत्र को 4 प्रमुख श्रेणियों मेें बाँटा गया है i. ट््र राांस हिमालय (600 मी.) iii. लघु या मध्य हिमालय (300 मी.) ii. वृहद या आंतरिक हिमालय (6100 मी.) iv. शिवालिक हिमालय (1000 से 2500 मी.) ट््र राांस हिमालय क्षेत्र यह यूरेशिया प्ट ले का हिस्सा है। अधिकांश भाग तिब्बत मेें है इसलिए इसे तिब्बती हिमालय / टेथीस हिमालय भी कहा जाता है। यहाँ पर वनस्पतियों का अभाव है। इसके अन्तर््गत कराकोरम, लद्दाख, पीरपंजाल, कैलाश, जास्कर आदि श्रेणियाँ आती हैैं जिनका निर््ममाण हिमालय से पहले हुआ है। भारत की सबसे ऊँची चोटी K-2 (गाडविन आस्टिन) 8611 मी. कराकोरम श्रेणी की सर्वोच्च चोटी है, K-4 (गैसरब्रुम) प्रमुख चोटी है। काराकोरम श्रेणी मेें अनेकों ग्लेशियर हैैं जैसे i. सियाचीन ग्लेशियर 72 Km iii. बाल्टेरो ग्लेशियर 62 Km ii. बियाफो ग्लेशियर 63 Km iv. हिस्पर ग्लेशियर 61 Km काराकोरम श्रेणी पामीर की गाँठ से मिलती है जबकि दक्षिण पूर््व की ओर यह कैलाश श्रेणी के रूप मेें विकसित है। विश्व की सबसे बड़ी ढाल वाली चोटी राकापोशी (लद्दाख श्रेणी की सबसे ऊंची चोटी) स््थथित है। कराकोरम के दक्षिण मेें लद्दाख श्रेणी सिंधु नदी और उसकी सहायक नदी श्योक नदी के मध्य जल विभाजक का कार््य करती है। ट््र राांस हिम्मालय का निर््ममाण अवसादी चट्टानों से हुआ है। यहाँ पर टर््शशियरी से लेकर कैम्ब्रियन युग तक चट्टानेें पायी जाती हैैं। द््राांस हिमालय, वृहद हिमालय से सचर जोन या हिन््ज लाइन द्वारा अलग होता है। BY Khan Sir ( मानचित्र विशेषज्ञ ) 52 www.khanglobalstudies.com GEOGRAPHY वृहद हिमालय या आं तरिक हिमालय इसे महान, सर्वोच्च, हिमद्री तथा मुख्य हिमालय भी कहते हैैं। यह हिमालय की सबसे ऊंची तथा दु र््गम श्रेणी है। यहाँ सदा हिमाच्छादन होता रहता है। इसकी औसत ऊंचाई 6100 मी- है। विस्तार: नंगा पर््वत से नामचाबरबा पर््वत तक इस पर््वत की सबसे ऊंची चोटी माउं ण्ट एवरे स्ट (नेपाल) D Mt. Everest की चामोलुगमा सागर माथा भी कहते हैैं। D एवरे स्ट चोटी को तिब्बती भाषा मेें चोमोलुगमा कहते हैैं। जिसका अर््थ है पर््वतों की रानी। D यहाँ अनेक हिमनद भी पाये जाते हैैं-कुमायु हिमालय मेें मिलाम व गंगोत्री हिमनद और सिक्किम मेें जेमू हिमनद (लं. 20 Km)। D सामान्यतः हिमनद की लम्बाई 3 - 5 Km होती है। D यहाँ गंगा व यमुना का उद्गम स््थल है। D इस पर््वत श्रेणी मेें अनेक दर्रे हैैं कश्मीर मेें जोजिला व बुर््जजिला । D वृहद हिमालय की चोटियाँ नोट: कामेट पर््वत के पश्चिम मेें बन्दरपूछ, यमुनोत्री, गंगोत्री, त्रिशुल, बद्रीनाथ, केदारनाथ है। लघु या मध्य हिमालय औसत ऊंचाई 1800 - 3000 मी- तथा चौड़ाई 80 - 100 km है। पीरपंजाल श्रेणी इसका पश्चिमी विस्तार है यही ं पर पीरपंजाल व बनिहाल दर््ररा उपस््थथित है। बनिहाल दर्रे से होकर जम्मू-कश्मीर जाता है। इसी के पास मसूरी, नैनीताल, रानीखेत और डलहौजी नगर शिमला, कुल्,लु मनाली पर््यटक स््थल है। ढालों पर छोटे-छोटे घास के मैदान पाये जाते हैैं जिन्हहें काश्मीर मेें मर््ग (गुलमर््ग व सोनमर््ग) और उत्तराखण्ड मेें बुग्याल या पयार कहते हैैं। प्रमुख घाटी: कश्मीर घाटी, कुल्लु घाटी, कागड़ा घाटी, काठमाण्डू घाटी। शिवालिक हिमालय इसे उपहिमालय या बाह्य हिमालय या नवीन हिमालय/पदस््थली भी कहते हैैं। 53 BY Khan Sir ( मानचित्र विशेषज्ञ ) GEOGRAPHY www.khanglobalstudies.com पूर््व मेें इसकी चौ- 15 km तथा हिमालय व पंजाब मेें चौड़ाई 50 km तक है। शिवालिक हिमालय अरुणाचल मेें दफ़ला, अबोर, मिरी, मिश्मी पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है। शिवालिक और मध्य हिमालय के बीच अनेक घाटियाँ पायी जाती हैैं। जिसे पश्चिम मेें दू न (मण््ह- दे हरादू न) पूरब मेें द्वार (मण््हण्-हरिद्वार) कहा जाता है। यह पश्चिम मेें सुलम े ान पर््वत तथा पूरब मेें आराकाम पर््वत से मिल जाती है। शिवालिक का दक्षिण-पूर्वी-सुदूर भाग अण्डमान है। हिमालय का प्रादेशिक विभाजन 1. पंजाब हिमालय 3. नेपाल हिमालय 2. कुमायूँ हिमालय 4. असम हिमालय सर सिडनी बुरार््ड द्वारा सर््वप्रथम पूर््व से पश्चिम की ओर हिमालय को 4 प्रादे शिक भागों मेें विभाजित किया गया। यह विभाजन घाटियों को आधार मानकर किया गया। पंजाब हिमालय / कश्मीर हिमायल विस्तार: सिन्धु नदी तथा सतलज नदी के मध्य का पर््वतीयी भाग। लम्बाई - 56 km काश्मीर हिमालय करे वा झीलीय निक्षेपों के लिये प्रसिद्ध है यहाँ जाफरान की खेती होती है। करेवा: चिकनी चट्टानी मिट्टी। BY Khan Sir ( मानचित्र विशेषज्ञ ) 54 www.khanglobalstudies.com GEOGRAPHY कुमायूँ हिमालय विस्तार सतलज नदी तथा काली नदी के मध्य का पश्चिम भाग पश्चिमी भाग - गढ़वाल हिमालय तथा पूर्वी भाग कुमाऊँ हिमालय कहलाता है। पंजाब हिमालय की अपेक्षा अधिक ऊंचा नन्दादे वी (7817) मी. कुमायूँ का सर्वोत्तम शिखर। नेपाल हिमालय विस्तार: काली नदी तथा महानन्दा नदी। विस्तार (लं-): 800 km असम हिमालय विस्तार: तिस्ता नदी से ब्रह्मपुत्र नदी तक, 750 km उत्तर का विशाल मैदान हिमालय पर््वत के दक्षिण मेें सिंधु गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा निर््ममित मैदान विशाल मैदान कहलाता है। D कुल क्षेत्र = 7 Lakh sq. km D पूर््व से पश्चिम लम्बाई = 3200 km D चौड़ाई = 100 - 150 km समृद्ध मृदा आवरण, पानी की पर््ययाप्त उपलब्धता एवं अनुकूल जलवायु के कारण कृषि की दृष्टि से यह भारत का अत्यधिक उपजाऊ मैदान है इसलिए यह सघन जनसंख्या वाला भौगोलिक क्षेत्र भी है। उत्तर के विशाल मैदान का विभाजन विशाल मैदान का विभाजन मुख्य 6 भागों मेें किया जा सकता है i. भाबर iii. बांगर v. रे ह (कल्लर) ii. तराई iv. खादर (कछारी) vi. डे लटा भाबर प्रदे श यह शिवालिक के गिरिपद प्रदे श मेें (छोटे-बड़े पत्थरों के टु कड़ों-जलोढ़ पंख) का निक्षेप करती है। जिसे भाबर नाम दिया गया है। यह प्रदे श कृषि के लिये नही ं है। यह नदियाँ लुप्त हो जाती है। तराई प्रदे श भाबर के दक्षिण मेें मैदान का वह भाग जहाँ भाबर की लुप्त नदियाँ फिर से भूतल पर प्रकट हो जाती है तराई प्रदे श कहलाता है। यहाँ पर अधिकांश भाग दल-दल होता है यहाँ पर वन तथा विभिन्न प्रकार के वन्य प्रणाली पाये जाते हैैं। यहाँ मच्छरों का प्रकोप होता है। कॉप प्रदे श काप रे त की कम मात्र रखने वाली सख्त चिकनी मिट्टी की भांति होती है। इस मिट्टी को दो भागों मेें वर्गीकृत किया जाता है। 1. खादर मिट्टी 2. बांगर मिट्टी प्रदे श खादर मिट्टी प्रदे श जहाँ पर बाढ़ का पानी प्रतिवर््ष पहुुँचता है। प्रतिवर््ष बाढ़ के जल से यहाँ की मिट्टी नवीन जलोढ़ होती है। इसे नदियों का बाढ़ का मैदान या कछारी प्रदे श करते हैैं। इसका रं ग हल्का तथा बालू व कंकड़ युक्त है। 55 BY Khan Sir ( मानचित्र विशेषज्ञ ) GEOGRAPHY www.khanglobalstudies.com बांगर मिट्टी प्रदे श रेह उत्तरी मैदान का सबसे विशालतम भाग पुर ाने बांगर मिट्टी के क्षेत्ररें मेें जहाँ सिंचाई कार्ययों की अधिकता जलोढ़ मिट्टी से बना है इस मै दान के अधिक ऊं चा होती है वही पर कही ं-कही ं एक नमकीन परत या सफेद होने के कारण यहाँ नदियों की बाढ़ का जल नही ं परत बिछी हुई होती है इसे ही रे ह या कलहर कहते हैैं। पहुुँ च पाता है अतः यहाँ पु रानी काँ प मिट्टी ही पायी यह यूपी तथा हरियाणा, पंजाब के शुष्क भागों मेें पायी जाती है । जाती है। डेल्टा (Delta) गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियों ने अपने मुहानों के निकट विशाल डे ल्टा का निर््ममाण किया है। जो भारत व बांग्लादे श मेें विस्तृत है। उत्तर के विशाल मैदान का प्रादेशिक विभाजन सिन्धु तंत्र का मैदान उत्तरी मैदान के पश्चिमी भाग को पंजाब का मैदान कहा जाता है सिन्धु तथा इसकी सहायक नदियाँ झेलम, चिनाब, रावी, व्यास, सतलज द्वारा निर््ममित किये गये मैदान का बहुत बड़ा हिस्सा पाकिस्तान मेें है। इन पाँचों नदियों का संगम पाकिस्तान के मिठानकोट नामक जगह पर होता है। भारत मेें पंजाब व हरियाणा का पश्चिमी भाग सम्मिलित है इस क्षेत्र मेें दोआब की संख्या बहुत अधिक है। दोआब - दो नदियों के बीच का क्षेत्र i. सिन्धु और झेलम का दोआब: सिन्धु सागर दोआब iv. रावी और व्यास का दोआब: ऊपरी दोआब / बारी ii. झेलम और चिनाब का दोआब: चाझ दोआब दोआब iii. चिनाब और रावी का दोआब: रचना दोआब v. व्यास और सतलज का दोआब: विस्त दोआब गंगा का मैदान यमुना नदी से लेकर पूर््व मेें बांग्लादे श के पश्चिमी सीमा तक विस्तृत मैदान को मध्यवर्ती मैदान या गंगा का मैदान कहते हैैं। इसका विस्तार 1400 km की लम्बाई हरियाणा, दिल्ली, बिहार, झारखण्ड और प. बंगाल तक है। यह मैदान हिमालय से निकलने वाली गंगा तथा इसकी निक्षेप क्रिया द्वारा बनाया गया है इस मैदान पर नदियों का जाल फैला हुआ है प्रतिवर््ष हजारों टन मिट्टी यहाँ लाकर निक्षेप करती हैैं भू-आकृतिक दृष्टि से बांगर और खादर इसके दो भाग हैैं- मैदान को निम्न तीन भागों मेें बाँटा गया है- BY Khan Sir ( मानचित्र विशेषज्ञ ) 56 www.khanglobalstudies.com GEOGRAPHY i. ऊपरी गंगा का मैदान: दिल्ली से इलाहाबाद (पश्चिमी यू.पी.) ii. मध्य गंगा का मैदान: इलाहाबाद से फरक्का (UP + Bihar) iii. निम्न गंगा का मैदान: गंगा को डे ल्टाई प्रदे श (Bihar + बंगाल) ऊपरी गंगा का मैदान विस्तार: पश्चिमी उत्तरी प्रदे श मेें विस्तृत पश्चिम मेें यमुना नदी इसकी प्राकृतिक सीमा है। उत्तरी गंगा के मैदान की प्रमुख नदियाँ गंगा, यमुना, रामगंगा गंडक, घाघरा है। मध्य गंगा का मैदान विस्तार: यह उत्तरी बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदे श तक विस्तृत है। यह मैदान नदियों के प्रवाह मार््ग मेें परिवर््तन से बुरी तरह प्रभावित है। कोसी नदी इसका उदाहरण है। निम्न गंगा का मैदान विस्तार: हिमालय की तलछटी से लम्बाकार गंगा के डे ल्टा तक पश्चिम बंगाल मेें है। इस प्रदे श मेें दार््जजिलिंग के उत्तर पर््वतीय क्षेत्र तथा पश्चिम मेें स््थथित पुरुलिया जिले के अलावा सम्पूर््ण पश्चिम बंगाल सम्मिलित है। जलपाईगुड़ी तथा दार््जजिलिंग जिले का पर््वत द्वीप एवं तराई का क्षेत्र दु आर कहलाता है। ब्रह्मपुत्र का मैदान इसे असम घाटी / ब्रह्मपुत्र घाटी कहते हैैं। यह तीन ओर से पर््वतों से तथा पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इस मैदान का निर््ममाण ब्रह्मपुत्र तथा इसकी सहायक नदियों द्वारा किया गया है। मिट्टी के भारी जमाव के कारण कही ं-कही ं द्वीप भी निर््ममित हो गये हैैं। ऐसा ही एक द्वीप असम मेें माजुली द्वीप है जो कि दु निया का सबसे बड़ा नदी निर््ममित द्वीप है। 57 BY Khan Sir ( मानचित्र विशेषज्ञ ) GEOGRAPHY www.khanglobalstudies.com मृदा (Soil) मृदा/मिट्टी (Soil): मृदा भूमि की ऊपर पाई जाने वाली दानेदार परत है जिसका निर््ममाण मूलरूप से चट्टानों के विखण्डित होने उनमेें वनस्पति व जीवों के सड़ने, गलने तथा जलवायु की क्रिया मेें निर््ममित अम्लीय पदार्थथों से लाखों वर्षषों की प्रक्रिया के बाद मृदा का रूप लेती है। इसका निर््ममाण चट्टानों के घिसावट से होता है जिसमेें अत्यधिक समय लगता है मिट्टी के अध्ययन विज्ञान को मृदा विज्ञान (Pedology) जोन कहते हैैं। मिट्टी कि पांच परतेें होती हैैं। इन पाँचों परतों को मिलाने पर मृदा परिच्छे द यास्बान Profile बनता है। होरिजोन 0 → इसे ह्यूयूमस कहते हैैं यह मिट्टी का सबसे ऊपरी भाग होता है इसमेें सर््ववाधिक मात्र मेें कार््बनिक पदार््थ तथा खाद्य पाये जाते हैैं। यह जंगलों की मृदा मेें अधिक होता है। Horizone A → इसे ऊपरी मृदा कहते हैैं छोटे पौधे का जड़ होरिजोन A तक ही जाता है यह बहुत ही उपजाऊ होती है। इसमेें कीड़े -मकोड़े और चूहे रहते हैैं। Horizone B → बड़े पेड़ पौधों के जड़ होरिजोन B तक ही जाते हैैं। Horizone C → जो खेतों के लिए अच्छी नही ं है। Horizone R → यहाँ केवल पत्थर पाये जाते हैैं। भूगोल के अनुसार मिट्टी के प्रकार भूगोल के अनुसार मिट्टी को दो भागों मेें बाँटते हैैं स््थथानवद्ध मिट्टी तथा स््थथानांतरित मिट्टी। स््थथानवद्ध मिट्टी स््थथानांतरित मिट्टी वैसी मिट्टी जो अपने बनने वाले स््थथान पर ही रूकी रहती है उसे वैसी मिट्टी जो अपने बनने वाले स््थथान को छोड़कर वायु या जल के स््थथानवद्ध मिट्टी कहते हैैं। जैस-े काली, लाल, लेटेराइट द्वारा दू सरे स््थथान पर चली जाती है उसे स््थथानांतरित मिट्टी कहते हैैं। जैस-े जलोढ़ मिट्टी। Indian Council for agricultural Research (ICAR) भारतीय कृषि अनुसध ं ान परिषद ने भारत की मिट्टी को आठ भागों मेें विभाजित किया है। भारत मेें सर््ववाधिक जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है। 1. जलोढ़ मिट्टी: इसे दोमट मिट्टी और कछारी मिट्टी कहते हैैं। जलोढ़ मिट्टी नदियों द्वारा पहाड़ी क्षेत्र से लाकर मैदानी क्षेत्ररें मेें बिछा दी जाती है। जलोढ़ मिट्टी भारत मेें पाये जाने वाली सर््ववाधिक उपजाऊ मिट्टी है। यह 43% क्षेत्र पर पायी जाती है ये नदी वाले क्षेत्र मेें दे खी जाती है इसका विस्तार उत्तर भारत मेें है। जब जलोढ़ मेें बहुत कम मात्र मेें बालू हो तो उसे कॉप कहते हैैं जब जलोढ़ मेें अधिक मात्र मेें बालू मिल जाता है, तो उसे दोमट कहते हैैं। ये मिट्टी धान की खेती के लिए काफी अच्छी मानी जाती है तथा साथ ही गेहूूं, मक्का, तिलहन, आलू की खेती के लिए भी अच्छी होती है। BY Khan Sir ( मानचित्र विशेषज्ञ ) 58 www.khanglobalstudies.com GEOGRAPHY D क्षेत्र: भारत का सम्पूर््ण उत्तरी मैदान और तटीय मैदान D प्रचुरता: चूना पत्थर तथा पोटैशियम प्रचुर मात्र मेें पाया जाता है। D कमी: नाइट््र रोजन, फास्फोरस तथा ह्यूयूमस की कमी है। 2. काली मिट्टी: इसका निर््ममाण बेसाल्ट चट्टानों के टू टने फूटने से होता है। इसे लावा निर््ममित मिट्टी कहते है। इसमेें सर््ववाधिक मात्र मेें ह्यूयूमस होता है यह मिट्टी सबसे ज्यादा जल सोखती है। काली मिट्टी को रे गुर मिट्टी, कपास की मिट्टी और लावा मिट्टी भी कहते हैैं। इस मिट्टी का काला रं ग ‘टिटेनीफेरस मैग्ट ने ाइट’ की उपस््थथिति के कारण होता है। यह कपास तथा गन्ना के उत्पादन के लिए अच्छी है, यह 13% क्षेत्र पर पायी जाती है। क्षेत्र: मध्य प्रदे श, गुजरात, महाराष्टट्र , उत्तरी कर््ननाटक प्रायद्वीपीय भारत मेें काली मिट्टी सबसे ज्यादा पायी जाती है। काली मिट्टी का सबसे ज्यादा विस्तार महाराष्टट्र मेें दे खने को मिलता है। 3. लाल मिट्टी: लाल मिट्टी प्रायद्वीपीय भारत के कम वर््षषा वाले क्षेत्ररें मेें पायी जाती है। इस मिट्टी का रं ग लाल फेरिक ऑक्साइड के उपस््थथिति के कारण होता है। इसमेें खनिज अधिक पाये जाते हैैं। इस मिट्टी मेें लोहा और सिलिका की अधिकता होती है। किन्तु यह खेती के लिए के लिए अच्छी नही ं है। यह मिट्टी तमिलनाडु , आंध्रप्रदे श, नागालैण्ड, महाराष्टट्र , कर््ननाटक के कुछ भाग मेें पायी जाती है। सबसे ज्यादा इसका विस्तार तमिलनाडु एवं आंध्रप्रदे श मेें दे खने को मिलता है। यह मिट्टी बाजरे की खेती के लिए उपयुक्त होती है। जब लाल मिट्टी जल सोख लेती है यानि कि जलयोजित रूप मेें होती है जब यह पीली दिखाई पड़ती है। ये 18% क्षेत्र पर पाई जाती हैैं। 4. लैटे राइट मिट्टी: यह मिट्टी उस क्षेत्र मेें पायी जाती है जहाँ पर 200 सेेंटीमीटर से अधिक वर््षषा होती है और अत्यधिक गर्मी पड़े । इसे मखमली मिट्टी भी कहते हैैं। इसका निर््ममाण निच्छालन (Litching) द्वारा होती है इस विधि मेें तेज वर््षषा के कारण मिट्टी के छोटे-छोटे कण भूमि के अंदर घुस जाते हैैं, जिससे यह भूमि ऊपर से पथरीली दिखती है। इस मिट्टी मेें लौह-ऑक्साइड एवं एल्मयु िनियम की भरपूर मात्रा होती है। लौह-ऑक्साइड के कारण ही इस मिट्टी का रं ग लाला होता है। यह मिट्टी मुख्यतः केरल, कर््ननाटक, तमिलनाडु , महाराष्टट्र के कुछ हिस््सोों मेें और उड़ीसा, मेघालय, असम की कुछ हिस््सोों मेें पायी जाती है। यह काजू, मसाला, काफी, इलाइची तथा भवनों के ईंट बनाने के लिए अच्छी है इसका सर््ववाधिक विस्तार केरल है। जिस कारण इसे मासालों का राज्य कहते हैैं। 5. पर््वतीय मिट्टी: इस प्रकार की मृदा का विस्तार पर््वतों पर दे खने पर मिलता है। जहाँ पर हिमालय पर््वत का विस्तार है वही ं इस प्रकार की मिट्टी पायी जाती है। पर््वतीय मृदा का विस्तार जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदे श, उत्तराखण्ड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदे श मेें दे खने को मिलता है। यह अत्यधिक कठोर होती है जिस कारण वनस्पति का अभाव होता है यहाँ जंगली झाड़ियां होती हैैं और अल्पाइन वृक्ष पाया जाता है। यह भारत के उत्तरी पर््वतीय क्षेत्र मेें पाये जाते हैैं। पर््वतीय ढालों पर सेब, नासपाती, चाय की खेती की जाती है। 6. दलदली मृदा: दलदली मृदा का विकास अत्यधिक वर््षषा और वनस्पतियों के सड़ने के कारण होता है। दलदली मृदा मेें ह्यूयूमस की मात्रा अधिक होती है। दलदली मृदा का विस्तार मुख्यतः केरल, उत्तराखण्ड और पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत््रोों मेें दे खने को मिलता है। 7. मरुस््थलीय / बलुई मिट्टी: इस प्रकार की मृदा मेें नमी की कमी होती है। इसकी जल सोखने की क्षमता सबसे कम होती है। इसका विस्तार भारत मेें मुख्यतः राजस््थथान, गुजरात, दक्षिण पंजाब और दक्षिण हरियाणा मेें दे खने को मिलता है। मरुस््थलीय भूमि होने के कारण यहाँ पर खाद्यान्न उगना संभव नही ं है। पर मोटा अनाज जैस-े बाजरा, ज्वार और सरसो की खेती की जाती है। इस मिट्टी मेें खजूर, नागफनी बबूल तथा कटीली झाड़ियाँ होती है। 8. लवणीय मृदा: जब मिट्टी की प्रकृति क्षारीय होती है और उसमेें नमक की मात्र बढ़ जाती है तो उसे लवणीय मृदा कहते हैैं। लवणीय मृदा को रे ह, कल्लर, ऊसर मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है। भारत मेें इस मिट्टी का सबसे ज्यादा विस्तार गुजरात के कच्छ के रण मेें दे खने को मिलता है। मुख्यतः फसलों को उगाने के लिए भूमि का Ph 6 से 7.5 के मध्य होना चाहिए। अम्लीय मृदा:- यह खेती के लिए अच्छी नही ं होती है मिट्टी मेें अम्लीयता को कम करने के लिए चूने का उपयोग किया जाता है। क्षारीय मृदा:- यह भी खेती के लिए अच्छी नही ं होती है। मिट्टी मेें क्षारीयता को कम करने के लिए जिप्सम का उपयोग किया जाता है। Remark: भारत नाइट््र रोजनी उर््वरक पर आत्म निर््भर है यूरिया मेें 46% नाइट््र रोजन पाया जाता है। फास्फेट, उर््वरक की प्राप्ति जानवरों के हड्डी से होती है। इसकी पूर्त्ति के लिए सुपर फास्फेट का छिड़काव किया जाता है। बीजे बोते समय फास्फेट की अधिक आवश्यकता होती है। फसल = N:P:K बीज रोपण = N:P:K 4 : 2 : 1 1:2:1 Note: भारत की सभी मृदा मेें N, P, तथा ह्यूयूमस की कमी है, Note: United States Department of Agriculture ने मृदा को 11 भाग मेें बाँटा है। 59 BY Khan Sir ( मानचित्र विशेषज्ञ ) GEOGRAPHY www.khanglobalstudies.com भारत की जलवायु (Indian Climate) भारत की जलवायु को समझने के लिए सर््वप्रथम मौसम को समझना पड़े गा। मौसम (Weather) एक सीमित क्षेत्र के अंतर््गत दिन-प्रतिदिन होने वाले परिवर््तन को मौसम कहते हैैं। मौसम हर दिन बदलता रहता है। अगर हम मौसम को प्रतिदिन दे खते हैैं तो उसके स्वभाव का पता चल जाता है। जब हम किसी क्षेत्र के मौसम पर हमेशा नजर रखते हैैं और उस पर लगातार 30 सालों तक नजर रखते हैैं, तो हमेें एक बहुत ही बेहतरीन अनुभव लग जाता है। यह मौसम 30 सालों मेें कैसा रहेगा यही 30 साल का अनुभव और औसत को जलवायु कहते हैैं। अर््थथात् किसी स््थथान अथवा प्रदे श मेें लम्बे समय के तापमान, वर््षषा, वायुमण्डलीय दाब तथा पवनों की दिशा एवं गति की समस्त दशाओं के योग को जलवायु कहते हैैं। जलवायु कभी चेेंज नही ं होती है। भारत मेें जलवायु को प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारक- 1. पर््वतों की स््थथिति भारत की जलवायु मेें पर््वत किस जगह पर है यह भी बहुत ही महत्त्वपूर््ण भूमिका निभाता है। Example: i. पश्चिमी तथा पूर्वी घाट पर््वत। ii. हिमालय पर््वत उत्तर मेें स््थथित हिमालय पर््वत उत्तरी पवनों से हमेें अभेद सुरक्षा प्रदान करता है। जमा दे ने वाली महाठण्डी (–600C) पवनेें उत्तरी ध्व रु से चलकर मध्य एवं पूर्वी ऐशिया से भारत की ओर बढ़ती है। उन हवाओं को हिमालय पर््वत रोक लेता है। iii. अरावली पर््वत 2. समुद्र से दू री समुद्र से आप जितनी दू र जाइएगा मौसम मेें आपको उतना ही बदलाव दे खने को मिलेगा। समुद्र का पानी न जल्दी गर््म होती है न ही जल्दी ठं डा होता है, लेकिन समुद्र से सटी भूमि, सूर््य की उष्मा से जल्दी गर््म तथा जल्दी ठं डी होती है। जो-जो शहर समुद्र के किनारे होते है। वहाँ न ज्यादा गर्मी न ही ज्यादा ठण्डी पड़ती है। वहाँ का मौसम औसत रहता है। 3. विषुवत रे खा से दू री जितना ज्यादा हम विषुवत रे खा से दू र रहेेंग े उतना ही ज्यादा गोरा रहेेंग े और जितना ही नजदीक रहेेंग े उतना ही ज्यादा काले रहेेंग ।े विषुवत रे खा से जितनी ही दू र पर रहेेंग े आपकी जलवायु उतनी ही अलग रहेगी। Ex: केरल और तमिलनाडु के लोग काले और जम्मू कश्मीर के लोग गोरे होते हैैं। विषुवत रे खा से जितने हम दू री पर जाएं गे गर्मी की मात्रा कम होती जायेगी और आपकी जलवायु हल्का-हल्का चेेंज होने लगेगी। 4. समुद्र तट से ऊँचाई दु निया के किसी भी ऊँचाई को हम समुद्र तल से मापते हैैं। अगर आपकी जगह की ऊँचाई जितनी ज्यादा रहेगी तो ठं ड उतनी ही ज्यादा पड़ती है। BY Khan Sir ( मानचित्र विशेषज्ञ ) 60 www.khanglobalstudies.com GEOGRAPHY 5. मानसून हमारी जलवायु मानसून पर निर््भर करती है। वैसा काला बादल जिसमेें बारिश कराने की मात्रा रहती है उसे मानसून कहते हैैं। ये बादल जब पर््वतों से टकराते हैैं तो वर््षषा करा दे ते हैैं और बहुत ज्यादा टकरा जाते हैैं तो वहाँ बादल फट जाता है। जून-जुलाई मेें बादल बहुत ज्यादा बनते हैैं क््योोंक ि इस समय सूर््य कर््क रे खा पर रहते हैैं। सूर््य समुद्र के पानी को गर््म कर दे ता है और पानी वाष्प बनकर ऊपर चला जाता है, यही वाष्प बादल बन जाता है। यह मानसून हल्का दाहिने ओर घूमकर चलता है। इस मानसून को अरावली पर््वत नही ं रोक पाती है क््योोंक ि वह समांतर है और यह उत्तराखण्ड मेें जाकर बहुत तेजी से हिमालय से टकराता है। यहाँ बादल बहुत अधिक आकर तेजी से टकरा जाते हैैं और बहुत तेज बारिश होती है। इसी को बादल का फटना कहा जाता है। जलवायु (Climate) किसी निश्चित स््थथान के लगभग तीस वर्षषों के मौसम का औसत उस स््थथान विशेष की जलवायु कहलाती है। मौसम का अनुभव जब हमेें हो जाता है तो उसका अंदाजा हमेें लग जाता है और वही अनुभव जलवायु कहलाता है। भारत की जलवायु हमेशा एक नही ं रहती है। हमारी हर चीज जलवायु पर ही निर््भर करती है। हमारे दे श मेें एक जैसी जलवायु नही ं पायी जाती है। हम लोग जलवायु को ऋतुओ ं मेें बाँट रखे है। भारत मेें 4 प्रकार की ऋतुएं पायी जाती है 1. शीत ऋतु 2. ग्रीष्म ऋतु 3. वर््षषा ऋतु 4. शरद ऋतु 15 दिसम्बर से 15 मार््च 15 मार््च से 15 जून 15 जून से 15 सितम्बर 15 सितम्बर से 15 दिसम्बर 1. शीत ऋतु यह 15 दिसम्बर से 15 मार््च तक होता है। ऋतु को सबसे ज्यादा बदलाव करने मेें सूर््य की मुख्य भूमिका होती है। हमारे पृथ्वी पर तीन महत्त्वपूर््ण रेखा है - i. कर््क रे खा ii. मकर रे खा iii. विषुवत रे खा जब शीत ऋतु का समय होता है तो सूर््य मकर रे खा पर चला जाता है, जिस वजह से भारत की दू री सूर््य से बढ़ जाती है। जिस कारण भारत मेें ठं ड पड़ने लगती है। ठं डी हवाएं भारी होती है क््योोंक ि इसमेें नमी की मात्रा अधिक होती है। जिस कारण हवाएं भारी होकर नीचे बैठ जाती है जिसके कारण उत्तर भारत मेें ठं डी हवाएं बहुत तेजी से चलने लगती है क््योोंक ि इसको बहने का रास्ता नही ं मिलता है। उत्तर भारत मेें हिमालय खड़ा है और हिमालय पूरा बर््फ का है। उससे टकराकर हवाएं बहुत तेजी से निकलती है। जिससे यूपी, बिहार, पूरे उत्तर भारत के लोग इसे शीतलहर कहते हैैं। इस ठं ड के दिन मेें वर््षषा नही ं होना चाहिए क््योोंक ि वर््षषा के लिए भाप बनना जरूरी है। ठं ड के दिन मेें वर््षषा नही ं होना चाहिए लेकिन ठं ड के दिनों मेें भारत मेें दो जगहों पर थोड़ी वर््षषा हो जाती है। 61 BY Khan Sir ( मानचित्र विशेषज्ञ ) GEOGRAPHY www.khanglobalstudies.com उत्तर भारत और तमिलनाडु मेें जनवरी के महीने मेें थोड़ी-थोड़ी वर््षषा हो जाती है। ठं ड के दिन मेें भारत मेें वर््षषा का कारण मानसून नही ं है। ठं ड के दिन मेें सूर््य मकर रे खा पर चला जाता है और भारत मेें उच्च दाब बन जाता है। 2. ग्रीष्म ऋतु यह 15 मार््च से 15 सितम्बर तक होता है। गर्मी के दिन मेें सूर््य जून के महीने होने के कारण कर््क रे खा पर चला आता है और वहां की हवाओं को गर््म करके ऊपर उठा दे ता है जिस वजह वहाँ हवाओं की कमी दे खने को मिलती है। वहाँ की कमी को पूरा करने के लिए हवाएं बहुत तेजी से चलने लगती है और आंधी का रूप ले लेती है। इन हवाओं को अलग-अलग राज््योों मेें अलग-अलग नामों से जानते हैैं। बंगाल मेें इसे काल वैशाखी, पंजाब मेें धुल भरी आंधी, यूपी-बिहार मेें इसे लू, असम मेें वोडो-चिल्ली के नाम से जाना जाता है। बादल को वर््षषा ऋतु मेें बरसना चाहिए लेकिन कभी-कभी यह पहले ही वर््षषा करा दे ता है जिसे Premonsoon कहते हैैं। मानसून जब बरसता है तो मौसम ठण्डा रहता है लेकिन Premonsoon जब बरसता है तो गर्मी और वर््षषा दोनों होने लगती है। यह किसी-किसी चीज के लिए फायदा हो जाता है- जैसे अंगरू , आम, फूल। कभी-कभी प्री मानसून अच्छा साबित हो जाता है। असम मेें चाय की खेती बहुत अच्छी हो जाती है इसी कारण असम के लागे इस प्री मानसून का इं तजार करते हैैं और कहते हैैं ये वर््षषा नही ं ये झरना के समान है। इसलिए असम के लोग इसे Tea Shower कहते है। कर््ननाटक मेें फुलों की खेती है और फूलों की खेती के लिए यह वर््षषा अच्छा काम कर दे ता है, तो वहाँ के लोग इसे चेरी ब्लासम, केरल के लोग इसे Mango Shower कहते हैैं। 3. वर््षषा ऋतु यह 15 जून से 15 सितम्बर तक होता है। इस समय मानसून का आगमन होता है। मानसुन की उत्पत्ति अरबी भाषा के मासिम शब्द से हुई है जिस का अर््थ होता है ऋतु के अनुसार वायु की दिशा मेें परिवर््तन। यह दिशा परिवर््तन कर लेता है। भारत मेें मानसुन दक्षिण-पश्चिम दिशा से जून के पहले सप्ताह मेें केरल मेें प्रवेश करता है और 15 जुलाई तक पूरे भारत मेें फैल जाता है। सबसे अंत मेें पंजाब मेें पहुुँचता है। सबसे ज्यादा वर््षषा मेघालय के मौसिनराम मेें 1400 cm वर््षषा होती है। रे न गेज से वर््षषा को मापते हैैं। सबसे कम वर््षषा लेह मेें होती है। लौटते मानसून से वर््षषा आंध्र प्रदे श तथा तमिलनाडु मेें होती हैैं। भारत मेें मानसून दो दिशा से आती है- i. भारत मेें आने वाला मानसून दक्षिण-पश्चिम मानसुन होता है। यह मानसून 80% वर््षषा कराती है। ii. भारत मेें लौटने वाले मानसून उत्तर-पूरब मानसून होते हैैं जो 17% वर््षषा कराते हैैं। शेष 3% वर््षषा पश्चिमी विक्षोभ कराती है। 4. शरद ऋतु यह 15 सितम्बर से 15 दिसम्बर के बीच होता है। इस समय मानसून लौट चुका होता है। मानसून लौटने के कारण आसमान पूरी तरह साफ हो चुका रहता है जिस कारण चिलचिलाती धूप पड़ती है। इस समय मौसम औसत रहता है क््योोंक ि सूर््य हमसे दू र जा रहा होता है। BY Khan Sir ( मानचित्र विशेषज्ञ ) 62 www.khanglobalstudies.com GEOGRAPHY कृषि (AGRICULTURE) भारत एक कृषि प्रधान दे श है। भारत की कुल जनसंख्या का 65% आबादी कृषि पर निर््भर है। किन्तु भारत के राष्ट्रीय आय मेें कृषि का योगदान मात्र 15% है। हमारे यहाँ कृषि मेें पैदावार कम होती है जिसका मुख्य कारण खेत का छोटा होना है। हमारे यहाँ कृषि व्यापारिक न होकर जीवन निर््ववाहन कृषि की जाती है। कृषि कई प्रकार की होती है- i. जीवन निर््ववाहन कृषि: इस प्रकार की कृषि का उद्दे श्य केवल जीवन यापन होता है । जैसे - भारत की खेती, द्विसश्यन। ii. मिश्रित कृषि: कम जगह मेें ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए मिश्रित कृषि की जाती है। इसमेें कृषि और पशुपालन दोनों साथ-साथ किया जाता है। iii. द्वि-फसली कृषि: इस प्रकार की कृषि मेें दो-दो फसल एक साथ उगाये जाते हैैं। एक की जड़ कम गहरी दु सरी की जड़ ज्यादा गहरी एक कम पानी सोखता है दु सरी ज्यादा पानी सोखता है। iv. DROP फार््मििंग: इसका प्रयोग फूलों की खेती के लिए किया जाता है। इसमेें फुहारों वाला सिंचाई का प्रयोग किया जाता है। v. Truck Farming: यह खेती भारत मेें ना के बराबर ही होती है। हमारे यहाँ अलग-अलग मौसम मेें अलग-अलग फसल उगाये जाते हैैं। हमारे यहाँ की कृषि पूरी तरह मानसून पर निर््भर होती है। भारत मेें फसलों का वर्गीकरण भारत मेें मुख्यतः तीन फसलेें उगाई जाती हैैं i. जायद फसल: यह फसल मार््च मेें बोई जाती है। इसमेें मुख्य रूप से सब्जी, तरबूज, खीरा, ककड़ी आते हैैं। यह बहुत जल्दी समय मेें लग जाते हैैं। मई मेें इस फसल को काट लिया जाता है। ये बहुत तेजी से बढ़ते हैैं। ii. खरीफ फसल: इसे जुलाई के महीने मेें बोया जाता है। इस फसल को पानी की ज्यादा जरूरत नही ं होती। इसमेें मुख्य रूप से धान, ज्वार, बाजरा, मक्का आते हैैं। इसे मानसूनी फसल भी कहते है। इसकी कटाई अक्टूबर-नवम्बर मेें की जाती है। iii. रबी फसल: ये फसल ठण्ड के दिन मेें (नवम्बर) मेें बोई जाती हैैं। इसमेें पानी की आवश्यकता बहुत ही कम होती है। इसकी कटाई मार््च मेें की जाती है। जैस-े गेहूूँ, जौ, सरसों, चना, मटर, अलसी, तीसी। प्रमुख खाद्यान फसल: गेहूूँ, चावल, जौ, मोटे अनाज, दाल नगदी फसल वैसी फसल जो पैसा कमाने के लिए बोयी जाए उसे नगदी फसल कहते हैैं। i. गन्ना : गन्ना का जन्म स््थथान भारत है। गन्ना उत्पादन मेें भारत ब्राजील के बाद दू सरे स््थथान पर है जबकि खपत की दृष्टि से भारत प्रथम स््थथान पर है। हमारे यहाँ विश्व का लगभग 40% गन्ना उत्पादन होता है। गन्ना की फसल तैयार होने मेें 1 साल लग जाता है। उत्तर प्रदे श गन्ना उत्पादन मेें अग्रणी राज्य है। उत्तर प्रदे श अकेले ही दे श के लगभग 45% गन्ना उत्पादन कर दे ता है। उत्तर प्रदे श के बाद महाराष्टट्र दू सरे स््थथान पर है। भारत मेें सर््ववाधिक चीनी मिल उत्तर प्रदे श मेें है जबकि चीनी उत्पादन मेें पहला स््थथान महाराष्टट्र का है। ii. चाय: पूरे विश्व मेें चाय का सर््ववाधिक उत्पादन चीन एवं सर््ववाधिक उपभोक्ता वाला दे श भारत है। भारत मेें सर््ववाधिक चाय का उत्पादन असम मेें होता है। जबकि दू सरा स््थथान पश्चिम बंगाल का है। चाय की प्राप्ति पत्ती से होती है। चाय मेें थीन पाया जाता है, जो थकान को दू र करता है। चाय का सबसे ज्यादा निर््ययात श्रीलंका करता है। iii. कहवा: यह भारत मेें सबसे ज्यादा कर््ननाटक मेें पाया जाता है। कॉफी की प्राप्ति बीज से होती है। इसमेें कैफिन पाया जाता है जो निंद्रा को भगा दे ता है। iv. कपास: इसकी प्राप्ति बीज से होती है। इसे कच्चे माल के रूप मेें सूती वस्त्र उद्योग मेें प्रयोग किया जाता है। पूरे भारत मेें कपास का सर््ववाधिक उत्पादन गुजरात करता है जबकि दू सरा स््थथान महाराष्टट्र का है। कपास के उत्पादन मेें 200 दिन धूप का लगना आवश्यक है। कपास को White Fiver भी कहते हैैं। 63 BY Khan Sir ( मानचित्र विशेषज्ञ ) GEOGRAPHY www.khanglobalstudies.com v. जूट (पटसन): ये पौधे के तना से प्राप्त होता है। इसके तने को पानी मेें भीगोकर इसके छाल को निकाल कर बोरा (Jute Bag) या सुतरी बनाया जाता है। इसे Golden Fiber कहते हैैं। पश्चिम बंगाल इसके उत्पादन मेें अग्रगन्य राज्य है। प्रमुख फसल उसके उत्पादक राज्य i. चावल: यह भारत का सबसे प्रमुख खाद्यान फसल है। भारत मेें सर््ववाधिक चावल उगाया जाता है इसकी कृषि पूरी मानसून पर निर््भर करती है, क््योोंक ि चावल के खेत मेें हमेशा पानी का होना आवश्यक है। भारत मेें सर््ववाधिक चावल उत्पादन पश्चिम बंगाल मेें होता है। छत्तीसगढ़ को चावल का कटोरा कहा जाता है। कृष्णा नदी घाटी को दक्षिण भारत का चावल का कटोरा कहा जाता है। चावल के कृषि के लिए 125cm से 200cm वर््षषा जरूरी माना जाता है। Note: वैज्ञानिकों ने जीन परिवर््तन करके विटामिन-A की कमी को दू र करने वाले चावल का विकास किया है, इस चावल का नाम गोल्डन राइस रखा गया है। गोल्डन राइस मेें पर््ययाप्त मात्र मेें बीटाकैरोटीन पाया जाता है। ii. गेहूूँ: यह भारत का दू सरा खाद्यान फसल है। गेहूूँ उत्पादन मेें पहला स््थथान उत्तर प्रदे श का है जबकि प्रति हेक्टेयर मेें सबसे अधिक उत्पादन पंजाब करता है। गेहूूँ के लिए अधिकतम 50cm से 75cm वर््षषा उपयुक्त माना जाता है। विश्व मेें गेहूूँ उत्पादन मेें चीन के बाद भारत दू सरे स््थथान पर आता है। iii. जौ: जौ भी दे श की एक महत्वपूर््ण खाद्यान फसल है जौ का सबसे प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदे श है इसकी गणना मोटे अनाजों की श्रेणी मेें की जाती है। जौ के लिए कम उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है। iv. बाजरा: यह भी मोटे अनाजों की श्रेणी मेें आता है। इसका सर््ववाधिक उत्पादन राजस््थथान मेें होता है। बाजरा के उत्पादन मेें भारत विश्व मेें पहला है। v. मक्का: मक्का की उत्पत्ति पाईकॉर््न से हुई है यह एक उभयलिंगी पौधा हे। हमारे दे श के अपेक्षाकृत शुष्क भागों मेें मक्के का उपयोग प्रमुख खाद्यान के रूप मेें किया जाता है। मक्का का सर््ववाधिक उत्पादन कर््ननाटक मेें होता है। इसके बाद मध्य प्रदे श और बिहार का स््थथान आता है। मक्के के उत्पादन मेें भारत का विश्व मेें 7वाँ स््थथान है। vi. तिलहन: तिलहनों के उत्पादन मेें मध्य प्रदे श अग्रणी राज्य है। क्रमशः राजस््थथान, गुजरात, कर््ननाटक, मध्य प्रदे श एवं तमिलनाडु भारत मेें प्रथम स््थथान रखते हैैं। vii. दाल: दालों के उत्पादन तथा उपयोग दोनों दृष्टि से भारत विश्व मेें प्रथम स््थथान रखता है। viii. रबड़: रबड़ का जन्म स््थथान ब्राजील है। रबड़ के प्रमुख उत्पादक राज्य केरल, तमिलनाडु तथा कर््ननाटक हैैं। अण्डमान निकोबार मेें भी रबड़ का उत्पादन होता है। ix. तम्बाकू: भारत मेें तम्बाकु उत्पादन के प्रथम तीन शीर््ष राज्य हैैं- (i) आंध्र पद्रेश, (ii) गुजरात और (iii) कर््ननाटक। भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा तम्बाकू निर््ययातक तथा चीन के बाद दू सरा सबसे बड़ा उपभोक्ता वाला दे श है। भारत मेें विश्व की कुल 8% तम्बाकू उत्पादन होता है। हरित क््राांति यह तीसरी पंचवर्षीय योजना के अंतिम समय मेें 1966 मेें प्रारं भ हुई, विश्व मेें इसकी जनक अमेरिकी वैज्ञानिक नॉर््मन बोरलॉग को मानते हैैं। भारत मेें हरित क््राांति के जनक एस- स्वामी नाथन है। हरित क््राांति शब्द विलियम कार््ड ने दिया था। हरित क््राांति मेें उन्नत बीज High yield verity के प्रयोग को बढ़ावा दिया गया। हरित क््राांति मेें मोटे अनाज के उत्पादन पर जोड़ दिया गया। इसमेें गेहूूँ का उत्पादन बढ़ गया धान का उत्पादन को कोई प्रभाव नही ं पड़ा जबकि दलहन एवं तिहलन का उत्पादन घट गया। हरित क््राांति का केन्द्र UP का शामली मेें था। हरित क््राांति मेें सर््ववाधिक लाभ पंजाब को हुआ। द्वितीय हरित क््राांति इसमेें आनुवांशिक रूप से वृद्धि किये गए फसल को बोते हैैं। ऐसे फसलों को जेनट े ेकिली मोडीफाई (G.M.) फसल कहते हैैं। BY Khan Sir ( मानचित्र विशेषज्ञ ) 64 www.khanglobalstudies.com GEOGRAPHY खनिज (Minerals) खनिज (Minerals): पृथ्वी के भूगर््भ से खुदाई करके प्राकृतिक रुप से पाए जाने वाले तत््वोों या यौगिक को खनिज कहते है। जैसेः - कोयला, अभ्रक, जस्ता आदि। अयस्क (Ore): जिस खनिज मेें धात्विक गुण हो और उसमेें से धातु आसानी से कम खर्चे मेें प्राप्त की जा सकती है। उसे अयस्क कहते हैैं जैसेः -हेमट े ाइट, बॉक्साइट आदि। ऊर््जजा के स्रोत (Source of Energy) ऊर््जजा के स्रोत को दो भागों मेें बाँटा जाता है- 1. अनवीकरणीय ऊर््जजा/ परं परागत (Non Renewable Energy): ऊर््जजा का वैसा स्रोत जिसका एक बार उपयोग करने के बाद दु बारा उपयोग मेें नही ं लाया जा सकता है। जैस-े तापीय ऊर््जजा (कोयला, पेट््ररोलियम पदार््थ एवं प्राकृतिक गैस), जल ऊर््जजा, आण्विक ऊर््जजा (U, Th, Zr, Be, Plutonium etc) 2. नवीकरणीय ऊर््जजा/ गैरपरं परागत (Renewable Energy): ऊर््जजा का वैसा स्रोत जिसका बार-बार उपयोग करते हैैं अर््थथात एक बार समाप्त हो जाने पर उससे दु बारा ऊर््जजा प्राप्त किया जा सकता है। जैस-े सौर ऊर््जजा, पवन ऊर््जजा, ज्वारीय ऊर््जजा, तरं ग ऊर््जजा, भूकम्पीय ऊर््जजा, भूगर्भीय ऊर््जजा। भारत मेें खनिज विकास एवं सर्वेक्षण के लिए मुख्य रूप से 2 संस््थथाएं हैैं (i) जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इं डिया (कोलकाता) (ii) भारतीय खनन ब्रयू ो (नागपुर) भारत के शीर््ष तीन खनिज उत्पादक राज्य 1. राजस््थथान = 17% 3. आंध्रप्रदे श = 13% 2. उड़ीसा = 14% 65 BY Khan Sir ( मानचित्र विशेषज्ञ ) GEOGRAPHY www.khanglobalstudies.com भारत मेें पाए जाने वाले प्रमुख खनिज तांबा (Copper): तांबा मानव सभ्यता द्वारा सबसे पहले प्रयोग की जाने वाली धातु है, तांबा विद्यु युत का सुचालक है इसलिए विद्यु युत तार बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। भारत मेें तांबे का सबसे अधिक उत्पादन i. मध्य प्रदे श (64%) ii. राजस््थथान (28%) भारत मेें तांबे का सबसे अधिक भण्डार:- राजस््थथान प्रमुख खानेें राजस््थथान: खेतड़ी, झझ ुं न ु ,ू अलवर मध्य प्रदेश: बालाघाट हीरा (Diamond): हीरा सबसे कठोर अधातु है ओर कार््बन का सबसे शुद्ध रूप होता है। भारत मेें ही ेरे का सबसे अधिक उत्पादनः - मध्य प्रदे श भारत मेें हीरे का सबसे अधिक भण्डारः - मध्यप्रदे श दुनिया मेें सबसे अधिक हीरे का उत्पादन:- रुस दुनिया मेें हीरे का सबसे अधिक भंडार:- किम्बरले (दक्षिण अफ्रीका) प्रमुख खानेें: मध्य प्रदे श का पन्ना जिला सोना (Gold): सोना एक बहुमूल्य धातु है इसका उपयोग आभूषण बनाने, सिक्के बनाने मेें किया जाता है। भारत का लगभग 99% सोना कर््ननाटक से ही मिलता है। भारत मेें सोने का सबसे अधिक उत्पादनः -कर््ननाटक भारत मेें सोने का सबसे अधिक भण्डारः - कर््ननाटक दु निया मेें सबसे अधिक सोने का उत्पादन:-चीन D प्रमुख खानेें: कर््ननाटक की कोलार की खान, हट्टी की खान। D बिहार मेें स्वर््ण संचित भंडार जमुई जिले मेें सोनों प्रखंड के करमटीया नामक स््थथान पर है। चाँदी (Silver): भारत मेें चांदी की स्वतंत्र खाने नही ं पाई जाती। यह प्रायः जस्ता और सीसा के साथ मिश्रित रूप मेें पाई जाती है। भारत मेें चाँदी का सबसे अधिक उत्पादनः राजस््थथान (99%) भारत मेें चांदी का सबसे अधिक भण्डारः राजस््थथान दुनिया मेें सबसे अधिक चाँदी का उत्पादन: मेक्सिको D प्रमुख खानेें: राजस््थथान की जवार खान जस्ता (Zinc) सीसा (Lead) सीसा और जस्ता को जुड़वा खजिन भी कहा जाता है क््योोंक ि यह साथ-साथ पाए जाते हैैं। गैलन े ा सीसे के एक प्रमुख अयस्क है। भारत मेें सीसा और जस्ते का सबसे अधिक उत्पादन और भंडारः - राजस््थथान D प्रमुख खानेें: राजस््थथान की जवार खान। जिप्सम (Gypsum): प्लास्टर ऑफ पेरिस मेें इसका उपयोग होता है और क्षारीय मृदा को उदासीन करने मेें भी जिप्सम का उपयोग किया जाता है। भारत मेें जिप्सम का सबसे अधिक उत्पादन और भंडारः राजस््थथान D प्रमुख खानेें: राजस््थथान का हनुमानगढ़ जिला चूना पत्थर (Limestone) : यह अवसादी चट्टानों मेें पाया जाता है। इसके प्रमुख खान आंध्र प्रदे श तथा राजस््थथान मेें है। BY Khan Sir ( मानचित्र विशेषज्ञ ) 66 www.khanglobalstudies.com GEOGRAPHY संगमरमर (Marble) : यह एक कायान्तरित चट्टान है। इसका उपयोग मुख्यतः भवन निर््ममाण मेें होता है। इसके उत्पादन हेतु राजस््थथान के नागौर जिले के मकराना क्षेत्र प्रसिद्ध हैैं। राजसमंद, जैसलमेर, अजमेर अन्य प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैैं। मध्य प्रदे श दू सरा प्रमुख उत्पादक राज्य है। यहाँ जबलपुर, बैतल ू प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैैं। आन्ध्र प्रदे श के विशाखापट्टनम मेें भी संगमरमर का भंडार है। टिन (Tin): इनका उपयोग धातु की चादर बनाने मेें किया जाता है और भारत मेें लगभग इसका संपर् ू ्ण भंडार व उत्पादन छत्तीसगढ़ मेें ही होता है। भारत मेें टिन का सबसे अधिक उत्पादन और भंडारः छत्तीसगढ़ D प्रमुख खानेें: छत्तीसगढ़ का बस्तर जिला टं गस्टन: उड़ीसा, आंध्र प्रदे श निकेल: राजस््थथान, मध्य प्रदे श अभ्रक (Mica): अभ्रक विद्यु युत का कुचालक होता है इसीलिए इसका उपयोग विद्यु युत उपकरण बनाने मेें किया जाता है। भारत मेें अभ्रक का सबसे अधिक उत्पादन और भंडारः आंध्र प्रदे श D प्रमुख खानेें: आंध्र प्रदे श का नेल्लोर जिला बॉक्साइट (Bauxite): बॉक्साइट एक धात्विक खनिज है यह एल्युमीनियम का अयस्क है भारत मेें उड़़ीसा बॉक्साइट का उत्पादन और भंडारण मेें प्रथम स््थथान पर है। भारत मेें बॉक्साइट का सबसे अधिक उत्पादन: उड़ीसा क्रोमाइट (Chromite): क्रोमाइट एक धात्विक खनिज है। क्रोमाइट से ही क्रोमियम प्राप्त किया जाता है। इसका उपयोग स्टेनलेस स्टील (Stainless Steel) बनाने मेें किया जाता है। भारत मेें क्रोमाइट का सबसे अधिक उत्पादन: उड़ीसा लौह अयस्क (Iron ore): भारत मेें लौह-अयस्क प्राचीन धारवाड़ श्रेणी के अग्य ने चट्टान से प्राप्त होता है। लौह अयस्क भारत का महत्वपूर््ण खनिज संसाधन है भारत का लौह अयस्क उत्पादन मे े ं विश्व मेें चौथा स््थथान है। i. चीन ii. ऑस्ट्रेलिया iii. ब्राजील iv. भारत भारत मेें लौह अयस्क का सबसे अधिक उत्पादन: उड़ीसा D प्रमुख खानेें: कर््ननाटक का कुद्रेमुख, छत्तीसगढ़ का बैलाडीला और उड़ीसा का क््योोंझर। हमारे यहाँ चार प्रकार के लौह अयस्क पाए जाते हैैं- मैग्ट ने ाइट, हेमाटाइट, लिमोनाइट, िसडे राइट। इनमेें हेमाटाइट एवं मैग्ट ने ाइट प्रमुख हैैं। 1. मैग्नेटाइट यह सर्वोत्तम प्रकार का लौह- अयस्क है। यह काले रं ग का होता है तथा इसमेें धातु की मात्र 72% तक होती है। भारत मेें यह मुख्यतः दक्षिण- पूर्वी सिंहभूम (झारखण्ड), बेल्लारी-हॉस्पेट (कर््ननाटक), बरामजादा (उड़ीसा), बैलाडीला (छत्तीसगढ़) आदि जगहों पर पाया जाता है। 2. हेमाटाइट यह लाल एवं भूरे रं ग का होता है। इसमेें धातु का अंश 60 से 70% के बीच होता है। भारत का अधिकतर (लगभग 58%) लौह अयस्क इसी श्रेणी का है। यह मुख्यतः सिंहभूम (झारखण्ड), मयूरभंज, क््योोंझर, सुद ं रगढ़ (उड़ीसा), कर््ननाटक, गोवा आदि जगहों मेें पाया जाता है। भारत का अधिकांश लौह हेमट े ाइट अयस्क के रूप मेें ही पाया जाता है। 3. लिमोनाइट यह प्रायः पीले रं ग का होता है। इसमेें धातु का अंश 10% से 40% तक होता है। पश्चिम बंगाल के रानीगंज क्षेत्र मेें इस प्रकार के लौह अयस्क मिलते हैैं। 67 BY Khan Sir ( मानचित्र विशेषज्ञ ) GEOGRAPHY www.khanglobalstudies.com 4. सिडे राइट इसमेें अशुद्धियाँ अधिक पायी जाती हैैं। धातु का अंश 48% तक होता है। इसका रं ग भूरा होता है। इसमेें लोहा एवं कार््बन का मिश्रण होता है। लिमोनाइट तथा सिडे राइट निम्न कोटि का लौह-अयस्क है। कोयला (Coal): कोयला एक ठोस कार््बनिक पदार््थ है, जिसको ईंधन के रूप मेें प्रयोग मेें लाया जाता है। ऐन्थ्रेसाइट बिटुमिनस लिग्नाइट पीट यह सबसे अच्छी किस्म का कोयला है। इस कोयले मेें कार््बन की मात्रा इसमेें कार््बन की मात्रा इसमेें कार््बन की मात्रा 45% इसमेें कार््बन की मात्रा (85-90%) से (65-75%) होती है, भारत मेें (45-55%) होती है इसे से भी कम होती है और यह अधिक होती है। इसे कठोर कोयला भी सबसे ज्यादा बिटु मिनस कोयला भूरा कोयला भी कहा सबसे निम्न श्रेणी का कोयला कहते है। इस प्रकार की कोयला मुख्यतः ही पाया जाता है। इसे काला जाता है। होता है। जम्मू-कश्मीर मेें पाया जाता है। कोयला भी कहा जाता है। कार््बन की मा?