Complete Organic Chemistry Class 11 & 12 NCERT Notes PDF
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This document is a collection of notes on organic chemistry, covering various topics like classification, nomenclature, isomerism, reaction mechanism, and environmental chemistry. The document also includes details on different types of hydrocarbons, including alkanes, alkenes, alkynes, and aromatic hydrocarbons.
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# कार्बनिक रसायन - कुछ आधारभूत सिद्धांत तथा तकनीकें ## (Organic Chemistry - Some Basic Principles and Techniques) ### ① कार्बनिक यौगिकों का वर्गीकरण - अचक्रीय या विवृत श्रृंखला - (Å) - ऐलिसाइक्लिक यौगिक - समचक्रीय - कार्बनिक यौगिक - विषमचक्रीय या कार्बोचक्रीय यौगिक -...
# कार्बनिक रसायन - कुछ आधारभूत सिद्धांत तथा तकनीकें ## (Organic Chemistry - Some Basic Principles and Techniques) ### ① कार्बनिक यौगिकों का वर्गीकरण - अचक्रीय या विवृत श्रृंखला - (Å) - ऐलिसाइक्लिक यौगिक - समचक्रीय - कार्बनिक यौगिक - विषमचक्रीय या कार्बोचक्रीय यौगिक - चक्रीय या बंद श्रृंखला - ऐरोमैटिक यौगिक - ↓ - बेन्जिनॉइड - नॉन-बेन्जिनाइड यौगिक - (7.0) - (0) - (8) - विषमचक्रीय ऐरोमैटिक यौगिक - (0) - H ### (2) नामकरण - एल्किल समूहों के लिए लघु रूप - CH3 - मेथिल - - CH3-CH- आइसोप्रोपिल - - CH3 - CH3-CH2-CH द्वितीयक-ब्यूटिल - - CH3 - CH3-CH2-CH - तृतीयक-ब्यूटिल - - CH3 - CH3-C-CH2- निओपेन्टिल - - CH3 - शाखित एल्किल समूहों के लिए, जनक एल्केन से बंन्धित शाखा के कार्बन परमाणु को संख्या (1) दी जाती है। - CH3-CH-CH2-CH- (1, 3-डाइमेथिलब्यूटिल) – - CH3 - CH3 - प्रतिस्थापियों के नाम को वर्णमाला क्रम में लिखते समय पूर्वलग्नों आइसो तथा निओ को मूल ऐल्किल समूह के नाम का भाग माना जाता है लेकिन द्वितीयक तथा तृतीयक पूर्वलग्नों को मूल ऐल्किल समूह के नाम का भाग नहीं माना जाता है। - यदि समान संख्या की दो श्रृंखलाएं हों, तो अधिक पार्श्व श्रृंखला युक्त मुख्य श्रृंखला का चयन करना चाहिए। - 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 - ☑ - 5-(2-एथिलब्यूटिल)-3, 3-डाइमेथिलडेकेन - चक्रीय यौगिकों का नामकरण - 1 - 2 - 3 - (वर्णमाला के क्रम में अंकन) - 1-मेथिल-3-प्रोपिलसाइक्लोहेक्सेन - क्रियात्मक समूह से प्रयुक्त कार्बनिक यौगिकों की नामपद्धति - CH3-C-CH2-CH2-CH2-COOH - 5-ऑक्सोहेक्सेनॉइक अम्ल - CH2=CH-CH2-CH - CH₃ - OH - पेन्ट-4-ईन-2-ऑल - प्रतिस्थापित बेन्जीन यौगिकों की नामपद्धति - ० - O₂N - CI - OH - 2 - 3 - 12 - साइक्लोहेक्स-2-ईन-1-ऑल - 3 - NO2 - 3 - 3 - 2 - 1-क्लोरो-2, 4-डाइनाइट्रोबेन्जीन - NO2 - OMe - 2 - CI - CH3 - 2-क्लोरो-1-मेथिल - 4-नाइट्रोबेन्जीन - NH2 - 2CH3 - 3 - CI - 3 - C2H5 - 4-एथिल-2-मेथिलएनीलीन - CH3 - 2-क्लोरो-4-मेथिलएनीसोल ### (3) समावयवता - यौगिक, जिनके अणुसूत्र समान होते हैं लेकिन संरचना भिन्न होती हैं, उन्हें संरचात्मक समावयवियों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। - CH3 - 2-क्लोरो-4-मेथिलएनीसोल #### (a) संरचनात्मक समावयवता - अणु में उपस्थित क्रियात्मक समूह की पहचान की जाती है ताकि उपयुक्त अनुलग्न का चयन हो सके। - क्रियात्मक समूह वाले कार्बन परमाणुओं की दीर्घतम श्रृंखला का क्रमांकन उस सिरे से करते हैं ताकि उस कार्बन जिससे क्रियात्मक समूह बंधित है को न्यूनतम अंक मिले। ##### (i) श्रृंखला समावयवताः - उदाहरण, C5H12 तीन श्रृंखला समावयवियों को निरूपित करता है। ##### (ii) स्थिति समावयवता : - उदाहरण, C₂H₂O दो एल्कोहॉल को निरूपित करता है। ##### (iii) क्रियात्मक समूह समावयवता : - उदाहरण, C3H6O एल्डिहाइड तथा कीटोन को निरूपित करता है। ##### (iv) मध्यावयवताः - क्रियात्मक समूह से लगी भिन्न ऐल्किल श्रृंखलाओं के कारण उत्पन्न होती है। - उदाहरण : CH3OC3H, तथा C2H5OC₂H₃ मध्यावयव हैं। #### (b) त्रिविम समावयवताः - वे यौगिक जिनमें संरचना एवं सहसंयोजक बंधों का अनुक्रम समान रहता है लेकिन उनके अणुओं में परमाणुओं या समूहों की त्रिविम में आपेक्षिक स्थितियाँ भिन्न रहती हैं, त्रिविम समावयव कहलाते हैं। इन्हें निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जाता है। ##### (i) ज्यामितीय समावयवता ##### (ii) प्रकाशिक समावयवता ### ④ कार्बनिक अभिक्रिया की क्रियाविधि में मूलभूत संकल्पनाएँ | कार्बनिक अणु | आक्रमणकारी अभिकर्मक | [मध्यवर्ती] | सह-उत्पाद | उत्पाद | |---|---|---|---|---| | (क्रियाधार) | | | | | #### (i) सहसंयोजक बंध का विदलन - विषमअपघटनी विदलन तथा (ii) समापघटनी विदलन ##### (i) विषमअपघटनी विदलनः - विषमअपघटनी विदलन में बंध इस प्रकार से टूटता कि साझित इलेक्ट्रॉन युग्म एक भाग पर बना रहता है। ###### कार्बधनायनः - धनावेशित स्पीशीज जिसमें कार्बन पर षष्टक होता है, कार्बधनायन कहलाती है। - धनावेशित कार्बन परमाणु से सीधे आबंधित ऐल्किल समूह कार्बधनायन के स्थायित्व में प्रेरणिक तथा अतिसंयुग्मन प्रभाव द्वारा वृद्धि करते हैं। - स्थायित्व क्रमः - (CH3)3C > (CH3)2CH > CH3CH2 > CH3 ###### कार्बऋणायनः - ऐसी कार्बन स्पीशीज जिसके कार्बन परमाणु पर ऋणावेश होता है, कार्बऋणायन कहलाती है। - कार्बऋणायन में कार्बन सामान्यतः sp³ संकरित होता है तथा इसकी संरचना विकृत चतुष्फलकीय होती है। - स्थायित्व क्रमः - CH3 > CH3CH2 > (CH3)2CH > (CH3)3C ##### (ii) समापघटनी विदलन: - इसमें सहसंयोजक बंध में साझित युग्म का एक-एक इलेक्ट्रॉन प्रत्येक आबंधी परमाणु पर चला जाता है जिसके परिणामस्वरूप मुक्त मूलकों का निर्माण होता है। ###### मुक्त मूलकः स्थायित्व क्रम - CH3 < CH3CH2 < (CH3)2CH < (CH3)3C #### (b) नाभिकस्नेही तथा इलेक्ट्रॉनस्नेही - नाभिकस्नेहीः क्रियाकारी' स्थल को इलेक्ट्रॉन युग्म प्रदान करने जाने वाले अभिकर्मक को नाभिकस्नेही (Nu:) कहा जाता है। - इलेक्ट्रॉनस्नेही : क्रियाकारी स्थल से इलेक्ट्रॉन युग्म ले जाने वाले अभिकर्मक को इलेक्ट्रॉनस्नेही (E) कहते हैं। #### (c) सहसंयोजी बंधों में इलेक्ट्रॉन विस्थापन के प्रभाव ##### (i) प्रेरणिक प्रभाव - जब भिन्न विद्युतऋणता वाले परमाणुओं के मध्य सहसंयोजक बंध बनता है, तो इलेक्ट्रॉन घनत्व अधिक विद्युतऋणता वाले परमाणु की ओर अधिक होता है। - यह σ-बंध द्वारा संचरित होता है। - प्रेरणिक प्रभाव का सम्बन्ध प्रतिस्थापी से बंधित कार्बन परमाणु को इलेक्ट्रॉन प्रदान करने अथवा अपनी ओर आकर्षित कर लेने की योग्यता से है। ##### (ii) अनुनाद प्रभाव - यह एक स्थायी प्रभाव है। - यह π-बंध द्वारा संचारित होता है। - यह दो प्रकार का होता है। - +R प्रभाव : हैलोजन, –OH, –OR, –OCOR, -NH₂ इत्यादि - -R प्रभाव : -COOH, -CHO, -CN, -NO₂ इत्यादि । ##### (iii) इलेक्ट्रॉमरी प्रभाव - यह एक अस्थायी प्रभाव है। - आक्रमणकारी अभिकर्मक की उपस्थिति में यह प्रभाव बहुबंध (द्विबंध या त्रिबंध) वाले कार्बनिक यौगिकों में प्रदर्शित होता है। - यह दो प्रकार की होती है। - धनात्मक इलेक्ट्रॉमरी प्रभाव (+E प्रभाव) - ऋणात्मक इलेक्ट्रॉमरी प्रभाव (-E प्रभाव) ##### (iv) अतिसंयुग्मन - इसमें किसी असंतृप्त निकाय के परमाणु से सीधे जुड़े एल्किल समूह के C - H आबंध अथवा असाझित p-कक्षक वाले परमाणु के σ इलेक्ट्रॉनों का विस्थानीकरण होता है। - यह एक स्थायी प्रभाव है। - यह दो प्रकार का होता है - +। प्रभाव : उदाहरण –CH3, -CH2CH3 इत्यादि । - -। प्रभाव : उदाहरण –NO2, –CN, –CHO, -COOH इत्यादि ##### (v) अनुनाद संरचना - बेन्जीन को निम्नलिखित (I) तथा (II) समान ऊर्जा संरचनाओं द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। - वास्तविक संरचना (I) तथा (II) की अनुनाद संकर होती है। - अनुनादी संरचनाएँ (केनोनिकल संरचनाएं) काल्पनिक होती हैं तथा ये किसी वास्तविक अणु का प्रतिनिधित्व अकेले नहीं कर पाती। - वास्तविक संरचना तथा न्यूनतम ऊर्जा वाली अनुनाद संरचना की ऊर्जा के मध्य अंतर को अनुनाद ऊर्जा कहते हैं। ## 12 अध्याय # हाइड्रोकार्बन ## (Hydrocarbons) ### 1 एल्केन - सामान्य सूत्र (CnH2n+2) - एल्केन संरचनात्मक समावयवता दर्शाता है। - C6H14 के पाँच संरचनात्मक समावयव होते हैं - जबकि C,H16 के नौ संरचनात्मक समावयव होते हैं। - रासायनिक गुण - प्रतिस्थापन अभिक्रिया - CH₄ + Cl₂CH₂CI + HCI - एल्केनों की हैलोजन के साथ अभिक्रिया के वेग का क्रम निम्न है: - F2>Cl2>Br2>12 - एल्केनों के हाइड्रोजन के विस्थापन की दर निम्न हैः - 3°>2°>1° - दहन - CH₄(g) + 202(g) → CO2(g)+ 2H2O(1) ### विरचन #### (i) हाइड्रोजनीकरण - CH3-CH3 - CH2=CH2+H2 - PVPd/Ni. #### (ii) एल्क्लि हैलाइडों से ##### (a) एल्किल हैलाइडों का अपचयन ##### (b) बुर्ज अभिक्रिया - यह सम कार्बन परमाणु संख्या वाली उच्चतर एल्केन बनाने के लिए प्रयुक्त की जाती है. #### (iii) कार्बोक्सिलिक अम्लों से ##### (a) विकार्बोक्सिलीकरण ##### (b) कोल्बे की विद्युत-अपघटनीय विधि #### (vi) भाप के साथ अभिक्रिया #### (vii) ताप-अपघटन ### भौतिक गुण - अधिक शाखन वाली समावयवी एल्केन का क्वथनांक कम होता है। ### 2 एल्कीन - सामान्य सूत्र (CnH2n) - एल्कीन संरचनात्मक समावयवता दर्शाती है - एल्कीन ज्यामितीय समावयवता दर्शाती है ### विरचन #### (i) एल्काइन से #### (ii) एल्किल हैलाइडों से #### (iii) सन्निध डाइहैलाइडों से ### रासायनिक गुण #### (i) डाइहाइड्रोजन का संयोजन #### (ii) हैलोजन का संयोजन #### (iii) हाइड्रोजन हैलाइड का संयोजन #### (iv) H₂SO₄ का संयोजन #### (v) H₂O का संयोजन ### 3 एल्काइन - सामान्य सूत्र (CnH2n-2) - रासायनिक गुण #### (i) अम्लीय लक्षण - HC = CH > CH2 = CH2 > CH3-CH3 - HC = CH > CH3 – C = CH >> CH3-C = C - CH3 #### (ii) योगज अभिक्रियाएं - डाइहाइड्रोजन का संयोजन - हैलोजन का संयोजन - हाइड्रोजन हैलाइडों का संयोजन - जल का संयोजन - बहुलकीकरण ### विरचन - CaC2+2H2O→ C2H2+ Ca(OH)2 - CH2-CH2 एल्कोहॉली/KOH, CH₂ = CH - Br - Δ - Br Br ### 4 ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन - वे स्पीशीज जो चक्रीय, समतलीय होते हैं तथा जिनमें इलेक्ट्रॉन विस्थानीकृत होते हैं तथा जो हकल के (4n + 2)π इलेक्ट्रॉन नियम का पालन करते हैं, n एक पूर्णाक है (n=0,1,2...) ### बेन्जीन का विरचन #### (i) [O] + NaOH #### (ii) Δ #### (iii) Δ ### रासायनिक गुण #### (i) हैलोजनीकरण #### (ii) नाइट्रीकरण #### (iii) सल्फोनीकरण #### (iv) फ्रीडेल-क्राफ्ट्स ऐसिलीकरण #### (v) फ्रीडेल-क्राफ्ट्स ऐसिलीकरण ### EAS अभिक्रिया के प्रति क्रियात्मक समूह का निर्देशात्मक प्रभावः - o/p निर्देशी समूह : - OH, – NH₂, – NHR, – NHCOCH3 – OCH3 CH3, - C₂H₃ इत्यादि - मेटा निर्देशी समूह : – NO2, – CN, – CHO, – COR, – COOH, -COOR, SO,H इत्यादि # पर्यावरणीय रसायन ## (Environmental Chemistry) ### ① पर्यावरण प्रदूषण - यह हमारे परिवेश में अवांछनीय परिवर्तन का वह प्रभाव है जो पौधों, जंतुओं तथा मनुष्यों पर हानिकारक प्रभाव डालता है। ### ② वायुमण्डलीय प्रदूषण - इसमें क्षोभमंडलीय तथा समतापमंडलीय प्रदूषण का अध्ययन किया जाता है। #### क्षोभमण्डल - समुद्र तल से ऊपर 10km की ऊँचाई तक होता है। #### समतापमण्डल - समुद्र तल से ऊपर 10 तथा 50 km के मध्य स्थित होता है। इसमें N2, O2, O, तथा सूक्ष्म मात्र में H₂O वाष्प होता है। इसमें उपस्थित ओजोन सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणां के लगभग 99.5% भाग को पृथ्वी की सतह पर पहुँचने से रोकती है। - क्षोभमण्डलीय प्रदूषण गैसीय वायु प्रदूषकों तथा कणिकीय प्रदूषकों के कारण होता है। ##### (i) गैसीय वायु प्रदूषक - SO₂ के कारण श्वसन रोग, आँखों में जलन होती है, जिससे आँखें लाल हो जाती हैं तथा आँसू आने लगते हैं। - स्वचालित इंजन में जीवाश्म ईंधन के दहन के कारण NO तथा NO, प्राप्त होते हैं। - यातायात तथा सघन स्थानों पर उत्पन्न तीक्ष्ण लाल धूम्र नाइट्रोजन के ऑक्साइड के कारण होता है। - NO₂ के कारण फेफड़ों में उत्तेजना उत्पन्न होती है। - हाइड्रोकार्बन कैन्सरजन्य होते हैं। - CO अत्यन्त विषैली गैस है, तथा यह कार्बन के अपूर्ण दहन के फलस्वरूप उत्पन्न होती है। - CO हीमोग्लोबिन से बंधित होकर कार्बोक्सी हीमोग्लोबिन बनाती है, जो ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन संकुल की अपेक्षा लगभग 300 गुना अधिक स्थायी है। - रक्त में CO के उच्च स्तर के कारण कालपूर्व जन्म तथा बच्चों में विरूपता हो सकती है। - वायुमण्डल में CO₂ श्वसन, जीवाश्म ईंधन का दहन तथा ज्वालामुखी विस्फोट के दोरान भी मुक्त होती है। - वायु में Co₂ की बढ़ती हुई मात्रा मुख्यतः भूमण्डलीय तापवृद्धि के लिए उत्तरदायी है। ##### (ii) कणिकीय प्रदूषक - ये वायु में सूक्ष्म ठोस कण या द्रव बूँद होते हैं। - जीवित कणिकाएँः जीवाणु, कवक, फफूंद, शैवाल इत्यादि । - अजीवित कणिकाएँः सिगरेट का धुआँ, धूल, रेत, सीमेंट, फ्लाई ऐश, सल्फ्यूरिक अम्ल का कोहरा, धूम्र कण इत्यादि। ### 3 भूमंडलीय तापवृद्धि एवं हरितगृह प्रभाव - पृथ्वी पर पहुँचने वाली सौर ऊर्जा का लगभग 75% भाग पृथ्वी की सतह द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है, जिससे इसके ताप में वृद्धि होती है। - हरितगृह गैसेंः CO₂, CH₂, O₂, CFCs, H₂O वाष्प, N₂O, O₃ - CO₂ के अणु ऊष्मा को संग्रहीत कर लेते हैं क्योंकि ये सूर्य के प्रकाश के लिए पारदर्शक होते हैं, लेकिन ऊष्मा विकिरणों के लिए नहीं पारदर्शक नहीं होते हैं। - भूमंडलीय तापवृद्धि में CO₂ का विशिष्ट योगदान है। ### 4) अम्लवर्षा - जब वर्षा जल की pH5.6 से कम हो जाती है, ता इसे अम्लवर्षा कहते हैं। - S, N तथा C के ऑक्साइड अम्लवर्षा के कारण होते हैं। - अम्लवर्षा के कारण ताजमहल धीरे-धीरे क्षत हो रहा है तथा अपना प्राकृतिक रंग व आकार खोता जा रहा है। - अम्लवर्षा ताजमहल के संगमरमर, CaCO₃ के साथ अभिक्रिया करता है। - CaCO3+H₂SO₄ → CaSO4 + H2O + CO2 ### 5) धूम-कोहरा - यह धूम एवं कोहरे का मिश्रण है। - सामान्य धूम कोहरा, धूम, कोहरा तथा SO₂ का मिश्रण है, जो ठंडी नम जलवायु में होता है। यह एक अपचायक मिश्रण है। - प्रकाश रासायनिक धूम कोहरा असंतृप्त हाइड्रोकार्बन तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइडों पर सूर्य के प्रकाश की क्रिया द्वारा होता है। इसके मुख्य घटक O3, NO, एक्रोलीन, HCHO तथा PAN हैं। यह ऑक्सीकारक धूम कोहरा कहलाता है। - कणिकीय प्रदूषकों के प्रभाव मुख्यतया उनके कणों के आकार पर निर्भर करता है। - वाहनों द्वरा उत्सर्जित लेड मुख्य वायु-प्रदूषक है। - समतापमंडलीय प्रदूषण सुरक्षात्मक ओजोन परत के अवक्षय का कारण है। CFCs ओजोन के साथ संयोग करके ओजोन परत को हानि पहुँचाते हैं। ### 6 जल प्रदूषण #### (i) रोगजनक - रोगजनकों में जीवाणु तथा अन्य जीव हैं, जो घरेलू सीवेज एवं पशु-अपशिष्ट द्वारा जल में प्रवेश करते हैं। मानव अपशिष्ट में एशरिकिआ कोली तथा स्ट्रेप्टोकॉकस फेकेलिस जीवाणु होते हैं, जो जठरांत्र बीमारियों के कारण होते हैं। #### (ii) कार्बनिक अपशिष्ट - पत्तियाँ, घास, कूड़ा-कर्कट, पादप प्लवकों की अधिक बढ़ोत्तरी इत्यादि । - यदि जल में घुलित ऑक्सीजन (DO) की सांद्रता 6 ppm से नीचे हो जाए, तो मछलियों का विकास रूक जाता है। - जल के एक नमूने के निश्चित आयतन में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ को विखंडित करने के लिए जीवाणु द्वारा आवश्यक ऑक्सीजन, जैवरासायनिक ऑक्सीजन माँग (BOD) कहा जाता है। #### (iii) रासायनिक प्रदूषक - जल में विलेयशील अकार्बनिक रसायन जैसे Cd, Hg, Ni इत्यादि इसमें सम्मिलित हैं। ये धातुएँ वृक्कों, केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र, यकृत (लीवर) इत्यादि को नुकसान पहुँचा सकते हैं। #### (iv) सुपोषण - वह प्रक्रम जिसमें जल निकायों में पौष्टिक अभिवृद्धि के फलस्वरूप सघन पादप समष्टि में वृद्धि होती है जिससे ऑक्सीजन की कमी के कारण जलीय जंतु नष्ट हो जाते हैं तथा इसके परिणामस्वरूप जैवविविधता में क्रमिक ह्रास होता है, सुपोषण कहते हैं। ### 7 मृदा प्रदूषण - कीटनाशी, पीड़कनाशी तथा शाकनाशी मृदा प्रदूषण के कारण हैं। ### 8 औद्योगिक अपशिष्ट - ये अपशिष्ट सूत की मिलों, कागज की मिलों तथा वस्त्र उद्योगों द्वारा उत्पन्न होते हैं। ### 9) अपशिष्ट का प्रबंधन - पर्यावरण के निम्नीकरण का एक मुख्य कारण अपशिष्टों का अनुपयुक्त विधि से किया गया निस्तारण है। इसलिए अपशिष्ट का प्रबंधन परम आवश्यक है। - दो कार्यक्रम कार्यान्वित किये जाते हैं। - स्वच्छ भारत मिशन. शहरी (SBM-U) - स्वच्छ भारत मिशन. ग्रामीण (SBM-G) ### 10 हरित रसायन - रसायन विज्ञान तथा अन्य विज्ञानों के उन सिद्धांतो का ज्ञान जिससे पर्यावरण के दुष्प्रभावों को कम किया जा सके, हरित रसायन कहलाता है। - टेट्राक्लोरोएथीन (CI₂C = Ccl₂) का उपयोग प्रारंभ में निर्जल धुलाई के लिए विलायक के रूप में किया जाता था, यह एक संभावित कैन्सरजन्य है। अब द्रवित CO₂ का उपयोग उपुयक्त अपमार्जक के साथ किया जाता है। - पूर्व में पेपर के विरंजन के लिए क्लोरीन गैस उपयोग में आती थी। आजकल उपयुक्त उत्प्रेरक के साथ H₂O₂ का उपयोग किया जाता है। # हैलोएल्केन तथा हैलोएरीन ## (Haloalkanes and Haloarenes) ### ① वर्गीकरण - हैलोजन परमाणुओं की संख्या के आधार परः - C2H5X - मोनोहैलोएल्केन - CH2-CH2 - डाइहैलोएल्केन - X - X - CH2 - ट्राइहैलोएल्केन - X - CH - X - CH2 - X - X - sp3 C-X आबंध युक्त यौगिक - एल्किल हैलाइड या हैलोएल्केन (R – X) - प्राथमिक (1°) - द्वितीयक (2°) - तृतीयक (3°) - एलिलिक हैलाइड - बेन्जिलिक हैलाइड - sp2C-Xआबंध युक्त यौगिक - वाइनिलिक हैलाइङः - X - एरिल हैलाइड: - X ### 2 विरचन की विधियाँ #### (a) एल्कोहॉल से - R-OH + HCI - R-OH + NaBr - 3R-OH + PX3 - R-OH + PCI5 - R-OH - R-OH + SOCI₂ #### (b) हाइड्रोकार्बनों से ##### (i) मुक्त मूलक हैलोजनीकरण द्वारा #### (iii) सैन्डमायर अभिक्रिया द्वारा - फ्लुओरीन की उच्च क्रियाशीलता के कारण इस विधि द्वारा, फ्लुओरीन युक्त यौगिकों का विरचन नहीं किया जाता है। #### iv) ऐल्कीनों से - हैलोजन के संयोजन द्वाराः - CCI4 में घुली Br2 को एल्कीन में डालने पर Br2 का लाल भूरा रंग विलुप्त हो जाता है। - हाइड्रोजन हैलाइड के संयोजन द्वारा : - मुख्य - गौण - हैलोजन के संयोजन द्वाराः - विस-डाईब्रोमाइड #### (c) हैलोजन विनिमय ##### फिंकेल्स्टाइनः - R-X + Nal→R-I + NaX [X CI, Br] ##### स्वार्ट्स अभिक्रियाः - Ch3 - Br + AgF→ CH3 - F + AgBr↓ ### ③ भौतिक गुण - एल्किल हैलाइड के क्वथनांक का घटता क्रमः - RI>RBr>RCI>RCI>RF - समावयवी हैलोएल्केन के क्वथनांक शाखन में वृद्धि के साथ घटते हैं। ### ④ रासायनिक अभिक्रियाएं - हैलोएल्कीन की अभिक्रिया #### (A) नाभिकरागी प्रतिस्थापन अभिक्रिया ##### (i) एल्किल हैलाइड या हैलोएल्केन (R – X) - Nu +-→-Nu+x¯ ##### (ii) द्विअणुक नाभिकरागी प्रतिस्थापन अभिक्रिया (SN2) : - CH3CI तथा ŌH आयन के मध्य अभिक्रिया जिसमें मेथेनॉल बनत है, अभिक्रिया द्वितीय कोटि बलगतिकी का पालन करती है, अर्थात वेग दोनों अभिकारकों की सांद्रता पर निर्भर करता है। - संक्रमण अवस्था (T.S.) बनती है - अभिक्रिया सामान्यतः एसीटोन या ध्रुवीय अप्रोटिक विलायको में सम्पन्न होती है। ##### (iii) एकाणुक नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया (SN1) : - यह दो पदों में होती है - कार्बधनायन का स्थायित्व उच्च होने पर अभिक्रिया वेग उच्च होगा: - SN1 तथा SN2 के लिए क्रियाशीलता क्रम - SN2 अभिक्रिया के लिए - तृतीयक हैलाइड, द्वितीयक हैलाइड, प्राथमिक हैलाइड, CH3X - SN अभिक्रिया के लिए #### (B) विलोपन अभिक्रियाः #### (C) धातुओं से अभिक्रियाः ##### (i) विरचन #### (A) नाभिकस्नेही प्रतिस्थापनः - एरिल हैलाइड नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं के प्रति निम्नलिखित कारणों से कम क्रियाशील होते हैं: #### (B) इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन अभिक्रियाएं: - हैलोएरीन बेन्जीन वलय की इलेक्ट्रॉनस्नेही अभिक्रियाएं देते हैं - जैसे-हैलोजनीकरण, नाइट्रीकरण, सल्फोनीकरण तथा फ्रीडेल काफ्ट अभिक्रिया #### धातुओं के साथ अभिक्रिया ##### (i) वुर्टज फिटिग अभिक्रिया ##### (ii) फिटिग अभिक्रिया #### पॉलिहैलोजन यौगिक - 2CHCl3 + O2 - hv - 2COCI₂ + 2HCI ### 24 अध्याय # एल्कोहॉल, फीनॉल तथा ईथर ## (Alcohols, Phenols and Ethers) ### ① एल्कोहॉलों का विरचन #### (i) एल्कीन से ##### (a) अम्ल उत्प्रेरित जलयोजनः ##### (b) हाइड्रोबोरीकरण-ऑक्सीकरण के द्वारा #### (ii) कार्बोनिल यौगिकों से ##### (a) एल्डिहाइड तथा कीटोन के अपचयन द्वारा ##### (b) कार्बोक्सिलिक अम्ल तथा एस्टर के अपचयन द्वारा ##### (iii) ग्रिग्नार्ड अभिकर्मक से ### ② फीनॉल का विरचन #### (a) हैलोएरीनों से #### (b) बेन्जीन सल्फोनिक अम्ल से #### (c) डाईएजोनियम लवण से #### (d) क्यूमीन से ### ③ भौतिक गुण - एल्कोहॉलों के उच्च क्वथांक मुख्यतः इनमें अंतरआणविक हाइड्रोजन बंधन की उपस्थिति के कारण होता है। - जल में एल्कोहॉल तथा फीनॉल की विलेयता जल के साथ इनकी हाइड्रोजन आबंध बनाने की क्षमता के कारण होती है। ### ④ रासायनिक अभिक्रियाएं #### [A] एल्कोहॉलों की अभिक्रियाएं ##### (a) O-H आबंध के विदलन की अभिक्रिया ###### (i) एल्कोहॉल तथा फीनॉल की अम्लता - धातुओं के साथ अभिक्रिया - फीनॉल जलीय NaOH की साथ अभिक्रिया करता है। ###### (ii) एस्टरीकरण : ##### (b) एल्कोहॉलों में C-O आबंध के विदलन वाली अभिक्रियाएं ###### (i) हाइड्रोजन हैलाइड के साथ अभिक्रियाः (ल्यूकास परीक्षण) ###### (ii